Wednesday, January 26, 2011

बैलेट या बुलेट

जिनका विश्वास जनता, जनशक्ति और बहुमत में नहीं होता है, वे ही अपनी बात मनवाने के लिए हिंसा का सहारा लेते हैं. अल्पमत या सूक्ष्म अल्पमत वाले ही बंदूक की नाली के बल पर सत्ता हथियाने का सपना देखते हैं. बहुत पहले जब सभ्यता अपने विकास के प्रारंभिक दौर से गुज़र रही थी, तो कबीलाई संस्कृति का प्रभाव स्पष्ट था. तब सबसे ताकतवर आदमी कबीले का सरदार हुआ करता था. बंदरों के झूंड में यह नियम आज भी लागू है. सरदार के मुंह से निकला वाक्य ही कानून होता था. औरतों के भाग्य का फ़ैसला भी पुरुष लड़कर किया करते थे. शादी के लिए उत्सुक प्रत्याशी आपस में मल्लयुद्ध करते थे, तलवारबाज़ी करते थे या निशानेबाज़ी करते थे. विजेता ही इच्छित लड़की से विवाह करने की योग्यता प्राप्त करता था. लड़की की पसंद या नापसंद कोई मायने नहीं रखती थी. क्या हम फिर उसी आदिम युग की ओर नहीं लौट रहे?
नक्सलियों द्वारा देश के विभिन्न प्रान्तों में खूनी संघर्ष के दौरान पिछले ५ वर्षों में जिनलोगों ने अपने प्राणों की आहुति दी, उनकी संख्या तालिका में निम्नवत है --
वर्ष नागरिक सुरक्षा जवान नक्सलवादी कुल संख्या
२०१० ७१३ २८५ १७१ ११६९
२००९ ५९१ ३१७ २१७ ११२५
२००८ ६६० २३१ १९९ १०९०
२००७ ४६० २३६ १४१ ८३७
२००६ ५२१ १५७ २७४ ९५२
उपरोक्त आकड़ों में सभी मृत नागरिक ‘सर्वहारा’ वर्ग के हैं. इसमें एक भी पूंजीपति, नेता, नौकरशाह या मफ़िया नहीं है, जिसने देश की गरीब जनता को लूटकर स्विस बैंकों में अकूत धन जमा कर रखा है. आश्चर्य है कि नक्सल आंदोलन में जो मोटा धन खर्च होता है, वह भ्रष्ट अधिकारियों, ठेकेदारों और माफ़ियाओं से जबरन वसूला गया हफ़्ता ही होता है. पैसे लेकर उन्हें अभयदान दे दिया जाता है. समझ में नहीं आता कि यह लड़ाई किसके लिए लड़ी जा रही है. यहां मरनेवाले और मारनेवाले, दोनों ही उस परिवार से आते हैं, जिसमें दो जून की रोटी का जुगाड़ बड़ी मुश्किल से हो पाता है. चाहे वह सीआरपीएफ का जवान हो या गांव का निरीह नागरिक, एक व्यक्ति की मौत का मतलब है, १० आदमी के एक परिवार की रोटी का एकाएक छीन लिया जाना. याद नहीं आता कि १९६७ से आरंभ इस खूनी आंदोलन का शिकार पिछले ४४ वर्षों में कभी कोई अंबानी, टाटा या दाउद रहा हो. नाज़ीवाद और फ़ासीवाद को पानी पी-पीकर गाली देनेवाले इन तथाकथित मार्क्स और माओ के अनुयायी क्या उन्हीं का अनुसरण नहीं कर रहे हैं? लोकतंत्र में साम्यवादियों का विश्वास कभी नहीं रहा. लेकिन यह सिद्ध हो चुका है कि अपनी तमाम कमियों के बावजूद लोकतंत्र विश्व की सबसे अच्छी शासन प्रणाली है. लोकतंत्र से छ्त्तीस का आंकड़ा रखने के कारण दुनिया से साम्यवाद लगभग समाप्त हो चुका है. आज भी लैटिन अमेरिका के कुछ देशों में अगर साम्यवाद जिन्दा है, तो इसका श्रेय लोकतंत्र को ही जाता है. अगर आपकी जनता में पैठ है और जनता पर विश्वास है, तो बिना खून की नदी बहाए भी सत्ता परिवर्तन किया जा सकता है. इंदिरा गांधी की निरंकुश सत्ता को जनशक्ति ने ही १९७७ में धूल चटा दी थी. लालू की गुंडागर्दी और जयललिता की तानाशाही को भी जनता के आगे घुटने टेकने पड़े.
पूरी दुनिया में भारत भूमि साम्यवाद के लिए सबसे अनुकूल है. यहां की गरीबी, सामाजिक आर्थिक विषमता, साम्यवाद के लिए सबसे उपयुक्त वातावरण का सृजन करते हैं. कभी कम्युनिस्ट पार्टी भारत की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी हुआ करती थी. लेकिन अपने नेताओं के क्षणिक स्वार्थों के कारण यह पार्टी सत्ताधारी पार्टी की पिछलग्गू बनकर रह गई. इंदिरा गांधी जब अलोकप्रियता के शिखर पर थीं, तो कम्युनिस्टों ने आपातकाल में बिना शर्त उनका समर्थन किया. वे इंदिरा गांधी और संजय गांधी के माध्यम से भारत में साम्यवाद लाना चाह रहे थे! जब चीन ने १९६२ में भारत पर आक्रमण किया तो वे चीन का समर्थन कर रहे थे. जनता की नब्ज़ पहचानने में वे हमशा गलती करते रहे. परिणाम यह निकला कि जिस पार्टी का देशव्यापी जनाधार था, अपनी ही गलत नीतियों के कारण सिर्फ़ दो प्रान्तों में सिमट कर रह गई. अब वे अपने ही निर्दोष भाइयों के रक्त से अपना हाथ रंग रहे हैं. वे एक गंभीर अपराध कर रहे हैं जिसे इतिहास कभी माफ़ नहीं करेगा. इन साम्यवादियों की अदूरदर्शिता का लाभ उठाकर कभी लालू सत्ता पा लेते हैं, तो कभी मायावती. कभी देवगोड़ा भारत का कर्णधार बन जाते हैं, तो कभी मनमोहन सिंह. ये लोकसभा का अध्यक्ष पद पाकर संतुष्ट हो जाते हैं और सारे देश को सोनिया का चरागाह बनने के लिए छोड़ देते हैं. कभी संसदीय लोकतंत्र में विश्वास करते हैं तो कभी दुनाली में. पता नहीं ये जनता में विश्वास करना कब शुरू करेंगे. कोई आवश्यक नहीं कि प्रत्येक चुनाव लड़ा ही जाय. अगर नक्सलवादी और बाकी कम्युनिस्ट हथियार फेंककर महंगाई, गरीबी, असमानता, भ्रष्टाचार, कुशासन और शोषण के विरुद्ध ईमानदारी से जनजागरण करें, आंदोलन चलाएं, तो वे बड़ी आसानी से जनता का विश्वास अर्जित कर सकते हैं. जो काम पिछले ६ दशक में नहीं हो सका, वह आनेवाले २-३ वर्षों में संभव हो सकता है. भारतीय राजनीति में एक बहुत बड़ा शून्य उत्पन्न हो चुका है. इसे भरने के लिए नक्सलवादी या साम्यवादी क्या ईमानदारी से प्रतिबद्ध हैं? चुनाव उन्हें ही करना है -- एकता या बिखराव, बैलेट या बुलेट.

Thursday, January 20, 2011

चीरहरण जारी है

विदेशी बैंकों से कालाधन वापस लाने के प्रयास में सारी आशाएं अब सर्वोच्च न्यायालय पर ही केंद्रित हो गई हैं. सन १९४८ से लेकर आजतक भारत से कालाधन जमा करनेवाले स्विस और जर्मन बैंकों को अवैध पूंजी पलायन निर्बाध रूप से जारी है. यह गैरकानूनी धंधा सामान्यतया भ्रष्टाचार, घूस, दलाली और आपराधिक गतिविधियों की उपज है. ग्लोबल फ़ाइनेंशियल इंटिग्रिटी द्वारा पिछले महीने जारी एक सारगर्भित रिपोर्ट के अनुसार भारत की कुल अवैध पूंजी पलायन की वर्तमान कीमत कम से कम ४६२ बिलियन डालर है. भारतीय रुपए में यह धनराशि २० लाख, ८५ हज़ार करोड़ बैठती है. विदेशी बैंकों में जमा यह धन अगर देश में आ जाय तो अद्भुत कायाकल्प हो सकता है. देश के मानेजाने कानून विशेषज्ञ रामजेठमलानी, सुभाष कश्यप और के.पी.एस.गिल ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर कर यह अनुरोध किया है कि विदेशों के टैक्स हेवेन्स में जमा भारतीय धन को वापस लाने हेतु सरकार को वाध्य किया जाय. इन दिनों इस याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश बी सुदर्शन रेड्डी और एस.एस.निर्झर की पीठ गंभीरतापूर्वक सुनवाई कर रही है. बुधवार (१९.१.११) सुनवाई के दौरान विदेशी बैंकों में जमा काले धन पर पूरी जानकारी देने में हिचकिचा रही केंद्र सरकार को जमकर फ़टकार लगाते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कड़ी टिप्पणी की -- "भारतीय संपत्ति को विदेशों में रखना, देश के साथ लूट है. इसे सिर्फ़ टैक्स-चोरी का मामला नहीं माना जा सकता. अदालत विदेशी बैंकों से की गई संधियों का व्योरा नहीं जानना चाहती. वह देश की संपत्ति को लूटनेवाले अपराधियों का व्योरा जानना चाहती है. हम दिमाग को झकझोरनेवाले अपराध की बात कह रहे हैं. यह पूरे तौर पर देश की संपत्ति की चोरी है.”
जर्मनी के लिचटेंस्टीन बैंक ने २६ भारतीयों द्वारा उस बैंक में जमा की गई करोड़ों रुपयों की धनराशि का व्योरा खातेदारों के नाम के साथ भारत सरकार को उपलब्ध करा दिया है, लेकिन सरकार इसे कोर्ट को उपलब्ध नहीं करा रही है. स्विस बैंकों में जमा भारतीयों के काले धन के बारे में भारत सरकार को जानकारी मिलने का मार्ग प्रशस्त करते हुए स्विट्जरलैंड की संसद की एक समिति ने इस संबंध में हुई संधि को अपनी मंजूरी दे दी है. कई सनसनीखेज़ खुलासे करनेवाली वेबसाइट विकिलीक्स के पास भी स्विस बैंक के गुप्त खातों की सीडी उपलब्ध है.
सरकार के पास सबकुछ है, बस ईमानदारी का अभाव है. इस भ्रष्ट सरकार से विदेशों में अपनी काली कमाई रखनेवाले सफेदपोशों का स्याह चेहरा बेनकाब करने की आशा करना, दिवास्वप्न है. महाभारतकालीन धृतराष्ट्र की भूमिका का सफलतापूर्वक निर्वहन करनेवाले हमारे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह चाह कर भी ऐसा नहीं कर सकते. उनकी निष्ठा देश के साथ नहीं, एक परिवार विशेष और कुर्सी के साथ जुड़ी है. आनेवाला कल उनसे इसका हिसाब अवश्य मांगेगा, भले ही वे आज आंख बचाकर निकल जांय.
कुछ ही वर्ष पूर्व संयुक्त राष्ट्रसंघ द्वारा ‘फ़ूड फार ऑयल’ की जांच हेतु गठित वोल्कर कमिटी ने कांग्रेस पार्टी को एक लाभार्थी के रूप में नामित किया है. भारतीय जांच एजेंसियों और इन्कम टैक्स की जांच में यह साफ सिद्ध हुआ है कि बोफ़ोर्स घूस कांड में दलाली लेनेवालों में इटली के अतावियो क्वात्रोची ने ए.ई.सर्विसेज़ और कोल बार इंवेस्टमेंट जैसी कंपनियों की आड़ में घूस ली है. क्वात्रोची और उनकी पत्नी मारिया के कांग्रेस पार्टी की अध्यक्षा सोनिया गांधी और स्व. राजीव गांधी से संबंध निर्विवाद और सर्वज्ञात है. एक स्विस पत्रिका ‘Schweizer Illustrirte' के १९ नवंबर १९९१ के अंक में प्रकाशित एक खोजपरक समाचार में तीसरी दुनिया के १४ वैश्विक नेताओं के नाम दिए गए हैं, जिनके स्विस बैंकों में खाते हैं. भारत के एक पूर्व प्रधानमंत्री का नाम भी उस सूची में शामिल है. डा. येवनेज़िया एलबट्स की पुस्तक ‘The state within a state - The KGB hold on Russia in past and future' में चौंकानेवाले रहस्योद्घाटन किए गए हैं कि भारत के एक पूर्व प्रधानमंत्री और उनके परिवार को रूस से व्यवसायिक सौदों के बदले लाभ मिले हैं.
उपरोक्त तथ्यों को ध्यान में रखते हुए वर्तमान सरकार और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से यह आशा करना कि वे सफ़ेदपोश बने उन नेताओं, पूंजीपतियों, नौकरशाहों और माफ़ियाओं के नाम, जिन्होंने देश की संपत्ति लूटकर विदेशी बैंकों में जमा कर रखी है, सार्वजनिक करेंगे, निश्चित रूप से मूर्खता होगी. लाचार मनमोहन सिंह धृतराष्ट्र हैं. सारे मंत्री कौरव हैं. जनता द्रौपदी है. विरोधी दल द्यूत में हारे पांडव हैं. श्रीकृष्ण की प्रतीक्षा है. क्या पता, वे सर्वोच्च न्यायालय की वीथियों से आएं!

Thursday, January 6, 2011

बोए थे फूल उग आए नागफनी के कांटे


सन १९७५ में श्रीमती इन्दिरा गांधी द्वारा थोपे गए आपातकाल के दौरान बालकवि वैरागी ने एक कविता लिखी थी - बोए थे फूल, उग आए नागफनी के कांटें/ किस-किस को दोष दें, किस-किस को डांटें. उस समय वे कांग्रेस पार्टी से जुड़े थे. इन्दिरा जी ने ऐसी कविता लिखने के अपराध में उन्हें पार्टी से निकाल दिया. वैरागी जी की कविता की ये पंक्तियां कालजयी हैं. वे तब भी उतनी ही सत्य थीं, जितनी आज हैं. भारतीय संविधान द्वारा न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका की स्थापना के पीछे निश्चित रूप से पवित्र मनोभाव रहे होंगे, लेकिन आजकल इन संवैधानिक संस्थाओं की जो दुर्दशा बिना सूक्ष्मदर्शी की सहायता के भी दिखाई पड़ रही है, वह सोचनीय ही नही, चिन्ताजनक भी है.
सरकार, नेता, मन्त्री और नौकरशाही में व्याप्त भ्रष्टाचार के किस्से तो अब किसी को चौंकाते भी नहीं. देश के सबसे ईमानदार माने जाने वाले मुख्य मन्त्री श्री नीतीश कुमार के पास ४३.२५९ लाख की संपत्ति और उनके बेटे प्रशान्त के पास १०५.६६७ लाख की संपत्ति है. उनके मन्त्रिमंडल के अधिकांश सदस्य करोड़पति हैं. ये आंकड़े बिहार के सरकारी वेबसाइट से लिए गए हैं. निश्चित रूप से नीतीश कुमार, लालू यादव, मायावती, मुलायम सिंह, जय ललिता, करुणानिधि और मधु कोड़ा की तुलना में बहुत गरीब मुख्य मन्त्री हैं, फिर भी उनके बेटे के पास १०५ लाख की संपत्ति चौंकानेवाली सूचना है. मेरा दावा है, अनुभव भी है कि कोई भी क्लास-१ का अधिकारी भी अगर ईमानदारी से अपनी ड्यूटी करे, उसके परिवार में पत्नी, माता-पिता और तीन बच्चे हों, तो अपनी सेवा के २५ वर्षों के बाद भी २५ लाख का घर नहीं खरीद सकता. अनुशासन हमेशा ऊपर से नीचे की ओर आता है. अपने देश में प्रधान मन्त्रियों के सीधे भ्रष्टाचार में लिप्त होने के मामलों के सार्वजनिक होने के बाद जनता को भी इस दौड़ में बेहिचक शामिल होने की हरी झंडी मिल गई. इन्दिरा गांधी-नागरवाला, राजीव गांधी-बोफ़ोर्स, नरसिंहा राव-हर्षद मेहता, मनमोहन सिंह-ए.राजा, सोनिया गांधी-क्वात्रोची के प्रसंग किसी से छुपे नहीं हैं. कांग्रेस भ्रष्टाचार की जननी है. बाकी पार्टियों ने सिर्फ उसका अनुसरण किया है.
न्यायपालिका पर आम जनता को कुछ ज्यादा ही भरोसा रहा है. लेकिन कभी उनलोगों से भी पूछिए जिन्होंने कम से कम एक भी मुकदमा लड़ा हो. एक गरीब आदमी तो न्याय पा ही नहीं सकता. अदालतों में तो दी जानेवाली और ली जानेवाली रिश्वत को बाकायदा ‘दस्तूर’ का नाम देकर इसे वैधानिक कर दिया गया है. अब सर्वोच्च न्यायालय में व्याप्त भ्रष्टाचार की परतें भी धीरे-धीरे खुल रही हैं.
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के वर्तमान अध्यक्ष न्यायमूर्ति के.जी. बालकृष्णन के रिश्तेदारों की धांधली और काली कमाई का व्योरा भी धीरे-धीरे सामने आ रहा है. श्री बालकृष्णन के छोटे भाई के.जी. भास्करन ने केरल के सरकारी वकील के पद पर रहते हुए अकूत संपत्ति अर्जित की, जिसमें तमिलनाडू के डिंडुगुल में ६० एकड़ जमीन क एक फार्म हाउस भी शामिल है. पूर्व मुख्य न्यायाधीश के दो दामाद - पी.वी.श्रीनिजन और एम. जे. बेनी भी करोड़ों की संपत्ति बनाने में किसी से पीछे नहीं रहे. जस्टिस बालाकृष्णन के खिलाफ उसी सुप्रीम कोर्ट में आय से अधिक संपत्ति बनाने की जांच के लिए एक याचिका दायर की गई है, जिसके वे कभी मुख्य न्यायाधीश थे.
हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जज राजनीतिज्ञों की तरह किसी नीरा राडिया की सहायता नहीं लेते. वे वकालत के पेशे में जुड़े अपने रिश्तेदारों की सेवाएं लेते हैं. सुप्रीम कोर्ट के वर्तमान न्यायाधीश श्री काटजू ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के कामकाज पर टिप्पणी करते हुए इस तथ्य का खुलासा किया था. भोपाल गैस त्रासदी के नायक एंडरसन, चारा घोटाले के चर्चित अभियुक्त लालू यादव, ताज कारिडोर की मायावाती, अकूत संपत्ति के मालिक मुलायम सिंह आदि अनायास ही सुप्रीम कोर्ट की कृपा नहीं प्राप्त करते. जस्टिस चो रामास्वामी, जस्टिस दिनकरन, जस्टिस रंगनाथ मिश्र, जस्टिस अहमदी, जस्टिस बालकृष्णन.............कितनों का नाम गिनाया जाय! भारत के सभी जजों, मन्त्रियों और कार्यपालिका से जुड़ी बड़ी मछलियों की संपत्ति की निष्पक्ष जांच कराई जाय तो लाखों हजार करोड़ों की बेनामी और अवैध संपत्ति का खुलासा हो सकता है. प्रधान मंत्री से लेकर सेनाध्यक्ष तक बहती गंगा में हाथ धो रहे हैं. जांच कराएगा कौन?
बर्बाद गुलिस्तां करने को, सिर्फ़ एक ही उल्लू काफ़ी है;
हर शाख पर उल्लू बैठे हैं, अंजामे गुलिस्तां क्या होगा.

Friday, December 31, 2010

वी.वी.एस.लक्ष्मण - टीम इंडिया के संकटमोचक

वी.वी.एस.लक्ष्मण को ऐसे ही वेरी वेरी स्पेशल लक्ष्मण नहीं कहा जाता है, वे इस नाम के पूरी तरह हकदार भी हैं. जब टीम इंडिया के सारे दिग्गज तेज गेंदबाजों की गति और स्विंग तथा फिरकी गेंदबाजों की स्पिन पर डांस करते हुए पेवेलियन की राह पकड़ते हैं, तब यह अद्भुत बल्लेबाज़ गज़ब की एकाग्रता और इच्छाशक्ति के साथ तबतक क्रीज पर टिका रहता है, जबतक टीम की जीत सुनिश्चित नहीं हो जाती. वहीं पिच, वही गेंद, वही उछाल, लेकिन जब लक्ष्मण क्रीज पर हों, तो दुनिया के सारे गेंदबाज़ बेबस नज़र आते हैं. हिन्दुस्तान के दूसरे बल्लेबाज़ भी खेलते हैं -- मैच बचाने के लिए, हार के अंतर को कम करने के लिए, लेकिन लक्ष्मण खेलते हैं, सिर्फ़ जीत के लिए. संकट के समय उनका खेल विशेष रूप से निखर जाता है. वे जिस विश्वास और परफेक्शन के साथ खेलते हैं, वह दर्शनीय होता है. भारतीय क्रिकेट के इतिहास में ऐसा खिलाड़ी इसके पूर्व कभी नहीं देखा गया. असंभव को संभव कर दिखाने का नाम है, वी.वी.एस.लक्ष्मण.
गत २९ दिसंबर को भारत ने दक्षिण अफ़्रीका के विरुद्ध जो असंभव सी जीत दर्ज़ की, उसके नायक लक्ष्मण ही थे. स्टेन की उछाल और स्विंग लेती कहर बरपाती गेंदों पर जब भारत के रिकार्डधारी बल्लेबाज़ बेबस नज़र आ रहे थे, तब लक्ष्मण ने कमान संभाली. दूसरी पारी में उनके द्वारा बनाए गए ९६ रनों ने भारत की जीत की इबारत लिख दी. वे शतक बनाने से सिर्फ़ ४ रनों से चूक गए, लेकिन उनके ९६ रन कई द्विशतकों से बड़े थे. लक्ष्मण ने ऐसा करनामा कोई पहली बार नहीं किया है. इसी वर्ष जुलाई के महीने में, लंका में लंका के विरुद्ध चौथी पारी में जब टीम इंडिया जीत के लिए २५७ रनों का पीछा करते हुए ६२ रन पर ४ विकेट गंवाकर लड़खड़ा चुकी थी, तब लक्ष्मण ने क्रीज़ पर कदम रखा. जिस गेंदबाज़ी के आगे भारत की बल्लेबाज़ी ताश के पत्तों की तरह ढह रही थी, वही लक्ष्मण के आगे नतमस्तक थी. लक्ष्मण ने न सिर्फ़ शतक लगाया, बल्कि टीम इंडिया को जीत भी दिलाई. इसी वर्ष सितंबर के महीने में मज़बूत आस्ट्रेलिया के विरुद्ध भी पुरानी कहानी दुहराई भरोसेमंद लक्ष्मण ने. चौथी पारी में भारत को जीत के लिए २१६ रनों की ज़रुरत थी और भारत का स्कोर था, ८ विकेट पर १२४ रन. संभावित हार सामने खड़ी थी, लेकिन कभी हार न माननेवाले लक्ष्मण क्रीज़ पर थे. वे पूरी तरह फिट भी नहीं थे. चोटिल लक्ष्मण पेन किलर, इंजेक्शन और रनर लेकर खेलते रहे. टेल एंडर ईशांत और ओझा के साथ उस पराक्रमी बल्लेबाज़ ने न केवल अपनी अद्भुत प्रतिभा प्रदर्शित की, बल्कि शतक लगाकर भारत को जीत का एक अविस्मरणीय तोहफ़ा दिया. वर्षों पूर्व, फ़ालोआन के बाद उतरी टीम इंडिया के लिए नंबर एक आस्ट्रेलिया के खिलाफ़ कलकत्ता के इडेन गार्डेन में उनके द्वारा बनाए गए २८४ रनों की ऐतिहासिक पारी को कौन भूल सकता है! लक्ष्मण की बड़ी पारी ने हमेशा भारत को जीत से नवाज़ा है. उन्होंने हमेशा लगभग हारी हुई लड़ाई को जीत में तब्दील किया है. उन्हें क्या कहा जाय -- अद्वितीय, महान! प्रतिभावान, धैर्यवान!! सारे विशेषण उनके लिए छोटे पड़ेगें. उन्हें सिर्फ़ सलाम किया जा सकता है.

Monday, December 27, 2010

मालवीय राग

महामना मालवीय जयन्ती (पौष कृष्ण ८, संवत २०६७, तदनुसार २८.१२.२०१०) के अवसर पर
पौष कृष्ण, ८, संवत २०६७ तदनुसार २८.१२.२०१० को पूरा देश महामना पंडित मदन मोहन मालवीय जी की १४९वीं जयन्ती मना रहा है. महामना की १५०वीं जयन्ती को राष्ट्रीय स्तर पर मनाने और महामना के व्यक्तित्व के विभिन्न आयामों से राष्ट्र को परिचित कराने के लिए भारत सरकार ने सन २०११ को महामना जन्म शताब्दी वर्ष घोषित किया है तथा इस अवसर पर विभिन्न कार्यक्रम आयोजित करने का निर्णय भी लिया है. इसके लिए प्रधान मंत्री की अध्यक्षता में एक कमिटी का गठन भी किया जा चुका है.
विलक्षण प्रतिभा के धनी पंडित मदन मोहन मालवीय का जन्म २५ दिसम्बर १८६१ को हुआ था. अपने जीवन काल में ही किंवदन्ती बन चुके महामना मालवीय चार बार कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने गए. स्वतंत्रता संग्राम में उनका योगदान अतुलनीय था. चौरी चौरा कांड के बाद जब कांग्रेस ने क्रान्तिकारियों की भर्त्सना करते हुए अपना आन्दोलन वापस ले लिया, तब महामना ने सार्वजनिक रूप से क्रान्तिकारियों का समर्थन किया. वर्षों पूर्व वकालत के पेशे को स्वतन्त्रता आन्दोलन की वेदी पर अर्पित कर देने के बाद महामना ने चौरी चौरा कांड के अभियुक्तों को बचाने के लिए फिर से काला कोट पहना और अपने जोरदार तर्कों से १५० से ज्यादा निरपराधियों को फाँसी के फ़न्दे से बचा लिया. उनका पूरा जीवन राष्ट्र को समर्पित था. छूआछूत और अन्य सामाजिक बुराइयों से लड़ने के लिए उन्होंने कई सफल आन्दोलन चलाए. महात्मा गांधी उन्हें अपना राजनीतिक गुरु मानते थे. भारत और विश्व को उनका सबसे बड़ा योगदान है, सन १९१६ में उनके द्वारा स्थापित एसिया का सबसे बड़ा आवासीय विश्वविद्यालय -- काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, जिसे आज भी भारत के सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालय होने का गौरव प्राप्त है. इंडिया टूडे ने अपने ताजा सर्वे में सबसे अधिक मौलिक शोधों एवं शिक्षा की गुणवत्ता के आधार पर भारत के दस सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालयों की सूची प्रकाशित की है. काशी हिन्दू विश्वविद्यालय उसमें नंबर एक पर विद्यमान है. इसी विश्वविद्यालय की एक प्रतिभाशाली संगीत शिक्षिका ने इस वर्ष एक अनोखा कार्य किया है. डा. ॠचा कुमार, जो संगीत विभाग में रीडर के पद पर कार्यरत हैं, ने ‘मालवीय राग’ के नाम से एक विशेष राग की रचना की है. शास्त्रीय संगीत विशारद डा. ॠचा कुमार हिन्दू विश्वविद्यालय के साथ-साथ महामना मालवीय मिशन और संसकृति शोध एवम प्रकाशन ट्रस्ट, वाराणसी से भी जुड़ी हैं. काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के कला इतिहास एवं पर्यटन प्रबंधन के पूर्व विभागाध्यक्ष तथा महामना मालवीय मिशन, वाराणसी के अध्यक्ष प्रोफेसर दीनबन्धु पांडेय से प्रेरणा और प्रोत्साहन पाकर डा. ॠचा कुमार ने मालवीय राग की रचना की जिसे उन्होंने पहली बार दिनांक २५.१२.२०१० को महामना की १४९वीं जयन्ती के अवसर पर महामना मालवीय मिशन द्वारा आयोजित मालवीय जयन्ती कार्यक्रम में समारोहपूर्वक प्रस्तुत किया. स्थान था - नई दिल्ली में दीन दयाल मार्ग पर स्थित नवनिर्मित महामना मालवीय स्मृति भवन. कर्यक्रम के मुख्य अतिथि थे भारत के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त श्री कृष्णमूर्ति और अध्यक्ष थे पूर्व केंद्रीय मंत्री श्री भीष्म नारायण सिंह.
‘मालवीय राग’, शुद्ध धैवत विभास और अहीर भैरव को आधार मानकर रचा गया है. यह महामना के धीर, गंभीर, उदात्त और तेजोमय व्यक्तित्व को ध्यान में रखकर बनाया गया है. राग का पूर्वांग शान्त, धीर, गंभीर और उत्तरांग उदात्त एवं तेजोमय स्वरूप का सहज, सुन्दर, कर्णप्रिय और प्रभावी प्रस्तुतीकरण है. संगीत के मर्मवेत्ताओं ने इस राग की भूरि-भूरि प्रशंसा की है. महामना मालवीय के जन्म-शताब्दी वर्ष में इस अद्भुत राग की रचना हिन्दुस्तानी संगीत को काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की ओर से एक महान भेंट है.
डा. ॠचा कुमार, रीडर, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, प्रोफेसर दीनबन्धु पांडेय एवं महामना मालवीय मिशन, वाराणसी को इस अविस्मरणीय कार्य के लिए ढ़ेरों बधाइयां!

Friday, December 17, 2010

भारत सरकार या कठपुतली का खेल

पेट्रोल तीन रुपये महंगा हुआ. एयर लाइन्स ने किराया सात गुणा बढ़ाया. प्याज ५० रुपए किलो. दाल १०० रुपए किलो. चावल ५० रुपए किलो. नीरा राडिया ने मंत्रियों को विभाग बांटा. सोनिया गांधी ने जेपीसी की मांग खारिज़ की. बनारस में बम ब्लास्ट. दिल्ली में लड़की के साथ गैंग रेप. अमेरिका में भारतीय राजदूत के साथ अभद्रता. सेना भी घोटालों में. जम्मू और कश्मीर नहीं है भारत का अभिन्न अंग. चीन नहीं मानता अरुणाचल को भारत का हिस्सा. चीनी प्रधान मंत्री बेन जियाबाओ का दिल्ली में शानदार स्वागत.
भारत में सरकार है भी क्या? जमाखोर-पूंजीपति जब चाहें आवश्यक वस्तुओं की कीमत बढ़ाकर आम आदमी का जीना दूभर कर दें, माफ़िया-अपराधी जब चाहें, जहां चाहें किसी का भी शीलभंग कर दें, महंगाई चाहे आकाश छू ले, सरकार के कान पर अब जूं नहीं रेंगती. मनरेगा के सौ रुपयों से दस सदस्यों वाले परिवार का एक मुखिया क्या-क्या खरीद सकता है? चावल खरीदे, गेहूं खरीदे, दाल खरीदे, प्याज खरीदे, बच्चों की किताबें खरीदे, पत्नी की फटी साड़ी बदले या खांसती अम्मा के लिए च्यवनप्राश लाए. इस देश में किसकी सरकार चलती है - मनमोहन सिंह की या कारपोरेट घराने की? इंडिया शाइनिंग! मेरा भारत महान!
पौने दो लाख करोड़ रुपयों का २-जी स्पेक्ट्रम घोटाला. राजा खुलेआम घूम रहे हैं. आय से कई गुणा संपत्ति रखने वाले मुख्य मंत्री बने हुए हैं. अरबों रुपयों की हेराफेरी करने वाली सज़ायाफ़्ता पूर्व मुख्य सचिव तीन दिनों में ज़मानत पा जाती हैं. लाखों बेगुनाह, जिनके विरुद्ध अभीतक अभियोग पत्र भी अदालत में दाखिल नही किए गए हैं, वर्षों से जेलों में सड़ रहे हैं. न्याय अंधा होता है! समरथ के नहीं दोष गुसाईं.
पूर्व केन्द्रीय संचार मंत्री ए. राजा द्वारा मद्रास हाई कोर्ट के जज को प्रभावित करने से जुड़े विवाद के संदर्भ में भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश के. जी. बालकृष्णन की टिप्पणी - मद्रास हाई कोर्ट के तात्काकीन चीफ जस्टिस गोखले के पत्र में किसी केन्द्रीय मंत्री का ज़िक्र नहीं था.
सर्वोच्च न्यायालय के वर्तमान न्यायाधीश एवं तात्कालीन मुख्य न्यायाधीश, मद्रास हाई कोर्ट, जस्टिस गोखले का उत्तर -
सच नहीं बोल रहे हैं पूर्व चीफ जस्टिस. चीफ जस्टिस के.जी.बालकृष्णन को भेजे गए पत्र के दूसरे पैरे में राजा का उल्लेख था.
जस्टिस रघुपति, मद्रास हाई कोर्ट - सच सामने आ गया है.
एक अन्य मामले में जस्टिस काटजू, न्यायाधीश सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी - इलाहाबाद हाई कोर्ट में भ्रष्टाचार. अधिकांश जज भाई-भतीजावाद में लिप्त. अन्तरपरीक्षण आवश्यक.
शीशे के घरों में रहने वाले, दूसरों के घर पर पत्थर नहीं फेंका करते.
धृतराष्ट्र पांडु-पुत्रों को भी अपने पुत्रों की ही भांति प्यार करते थे, लेकिन विवश थे. पांडवों को लाक्षा गृह में जलने के लिए भेज दिया गया. भरी सभा में कुलवधू का चीरहरण किया गया. पांडवों को वनवास दे दिया गया. धृतराष्ट्र देखते रहे. नहीं, उन्होंने कुछ भी नहीं देखा. वे अंधे जो थे. महाभारत हो गया, सबकुछ नष्ट हो गया. हस्तिनापुर की गद्दी उन्होंने फिर भी नहीं छोड़ी. वे हस्तिनापुर की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध जो थे.
श्री मनमोहन सिंह भले आदमी हैं. सीधे सच्चे इन्सान हैं. ईमानदार भी हैं. अच्छे प्रधान मंत्री हैं. मंत्रियों के विभागों के बंटवारे के बवाल में नहीं पड़ते. इस मामले में नीरा राडिया उनकी मदद करती हैं. उन्हें भ्रष्टाचार पसंद नहीं, लेकिन ए. राजा अच्छे लगते हैं. मैदानी इलाकों में इस्लामी आतंकवाद और पहाड़ी इलाकों में लाल सलाम का राज है. गृह मंत्री को पूरी आज़ादी है. उन्हें कुछ कह नहीं सकते. दिग्विजय को शहीद करकरे का सारा रहस्य मालूम है, प्रधान मंत्री अनजान. महंगाई रोकना वित्त-मंत्री का काम, सीमा विवाद विदेश मंत्रालय के नाम. प्रधान मंत्री का मुख्य काम - बराक ओबामा और वेन जियाबाओ को स्वागत पैगाम. १०, जनपथ में सारे लगाम. लोकतंत्र (राजतंत्र?) तुझे सलाम! संसदीय प्रणाली (परिवारवाद?) तुझे प्रणाम!!

Monday, November 29, 2010

राजमाता का राज जमाता

पिछले ३ नवंबर को दीपावली मनाने के लिए बच्चों के पास बंगलोर जा रहा था. वाराणसी के लाल बहादुर शास्त्री एयर्पोर्ट से इंडियन एयर लाइंस की फ़्लाइट पकड़नी थी. समय से दो घंटे पहले ही पहुंचकर चेक इन की सारी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद, एक खाली कुर्सी देख बैठ गया. तभी उदघोषणा हुई कि इंडियन एयर लाइंस के पैसेंजर सुरक्षा जांच के लिए प्रस्थान करें. वाराणसी के पुराने एयरपोर्ट में सुरक्षा जांच के लिए मात्र एक ही मार्ग है, अतः देखते ही देखते लंबी लाईन लग गई. मैं ५५ पार कर चुका हूं. लगातार खड़े होने पर पैर और कमर में दर्द शुरू हो जाता है. अतः अपनी कुर्सी पर ही बैठा रहा. इंतज़ार कर रहा था कि लाइन ज़रा छोटी हो जाय तो मैं भी सुरक्षा जांच के लिए प्रस्थान करूं. लेकिन यह क्या? लाइन छोटी होने के बदले और बड़ी होने लगी. मज़बूरी में मुझे उठना ही पड़ा - लाइन में लग गया. चींटी की चाल से लाइन सरकने लगी. एक घंटे के बाद मैं जांच कर्मियों के सामने पहुंचा. पैर दर्द कर रहे थे और प्यास भी लग रही थी. तभी मेरी दृष्टि दाहिनी ओर लगे एक सूचना-पट्ट की ओर गई. उसपर भारत के उन अति विशिष्ट व्यक्तियों की सूची थी, जिन्हें सुरक्षा जांच से मुक्त रखा गया था. सुरक्षा जांच की पीड़ादायक प्रक्रिया से गुजरने के कारण स्वाभाविक रूप से मेरे अंदर यह जानने की उत्सुकता पैदा हो गई कि आखिर वे कौन-कौन से अति भाग्यशाली व्यक्ति हैं, जिन्हें घंटों लाइन में खड़ा होकर पसीना बहाने से हमेशा के लिए मुक्ति दे दी गई है. लगभग ढाई दर्ज़न अति विशिष्ट व्यक्तियों का लिस्ट में उल्लेख था -- राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, मुख्य न्यायाधीश, प्रधान मंत्री, लोक सभा अध्यक्ष..............................................श्री राबर्ट बढेरा. लिस्ट में किसी का नाम नहीं लिखा था, पद ही लिखा था. सिर्फ़ एक आदमी का नाम लिखा था -- श्री राबर्ट बढेरा. बुढ़ापे में स्मरण शक्ति कुछ कमज़ोर हो जाती है, हालांकि मैं समाचार-पत्र नित्य पढ़ता हूं. मुझे याद ही नहीं आ रहा था कि आखिर ये मिस्टर बढ़ेरा हैं कौन? मैं अपने अज्ञान और अपनी उलझनों में खोया था कि सुरक्षा कर्मी ने मेरे कंधे पर हाथ रखकर कहा -- कहां खोए हैं मिस्टर? सुरक्षा जांच के लिए आगे बढ़िए. मैंने आगे बढ़ने के पहले उससे प्रश्न किया - क्या आप बताने का कष्ट करेंगे कि ये मिस्टर राबर्ट बढेरा कौन हैं, जिन्हें सुरक्षा जांच से परमानेंट मुक्ति मिली हुई है. वह मेरी अज्ञानता पर हंसा. फिर हिकारत से मुझे देखते हुए बोला - विचित्र आदमी हैं आप! देखने से तो पढ़े-लिखे मालूम पड़ते हैं. आपको इतना भी नहीं मालूम है कि बढेराजी, माननीया सोनिया गांधीजी के एकमात्र दामाद हैं? मुझे अपनी अज्ञानता पर अफ़सोस हुआ. खैर, मेरा नंबर आ चुका था. सुरक्षा जांच मुकम्मिल हुई. कोई आपत्तिजनक सामान नहीं मिला. मुझे अंदर जाने की इज़ाज़त मिल गई.
बात आई और गई, इसपर सोचने-समझने की कोई विशेष आवश्यकता तो थी नहीं, लेकिन क्या करूं, मेरा दिमाग फ़ालतू की बातों में कुछ ज्यादा ही उलझ जाता है. सोचने लगा - सुरक्षा जांच से मुक्त किए गए अति विशिष्ट व्यक्तियों के पदों का ही उल्लेख था सूची में. सिर्फ़ एक ही व्यक्ति का नाम लिखा था, आगे पीछे कोई पद नहीं लिखा था. यह नाम - राबर्ट बढेरा, राष्ट्रपति और प्रधान मंत्री के साथ लिखा जाना कुछ अटपटा सा लग रहा था. अचानक मेरे ज्ञान-चक्षु खुले. वैसे भी काशी में ज्ञान-प्राप्ति तो होती ही है. भगवान बुद्ध की तरह मुझे भी ज्ञान प्राप्त हो गया. मुझे अपनी सभ्यता-संस्कृति की याद आई. यद्यपि सब मन ही मन यह मानते हैं - जमाता दशमो ग्रह, लेकिन प्रत्यक्ष उसकी देवता की भांति पूजा करते हैं. श्री राबर्ट बढेरा वर्तमान सरकार की राजमाता श्रीमती सोनिया गांधी के एकमात्र राज जमाता हैं. उन्हें सुरक्षा जांच से छूट नहीं मिलेगी, तो तुम्हें मिलेगी मिस्टर बी. के. सिन्हा, बूढ़े खूसट! मेरी सारी उलझनें समाप्त हो गईं. विमान पकड़ने के लिए फिर लाइन में लग गया.