Thursday, December 27, 2012

यौन-अनाचार, कानून और समाज


१. दिल्ली की चलती बस में एक २३ वर्षीया युवती के साथ छः दरिन्दों द्वारा ब्लात्कार। युवती अस्पताल में वेन्टीलेटर पर।
२. ऊंझा (मेहसाना) में गत मंगलवार की रात में एक ३७ वर्षीया विधवा से दो लोगों द्वारा ब्लात्कार।
३. पुलिस की हिरासत में पिछले ९ वर्षों में बलात्कार की ४५ घटनाएं (पंजीकृत एफ़.आई.आर के आधार पर) - द एशियन सेन्टर फ़ार ह्युमन राइट्स
४. पटना के मनेर कस्बे में रात में सोते समय एक युवती से सामूहिक ब्लात्कार की कोशिश। असफल होने पर तेज़ाब से हमला। लड़की का पटना मेडिकल कालेज हास्पीटल में गत २ महीने से जीवन और मृत्यु से संघर्ष जारी।
५. पूर्व मुख्यमंत्री और राज्यपाल नारायण दत्त तिवारी के अवैध पुत्र को हाईकोर्ट ने नारायण दत्त तिवारी का वैध पुत्र घोषित किया।
६. कांग्रेस के प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी द्वारा सुप्रीम कोर्ट के अपने चैंबर में एक महिला के साथ यौनाचार।
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      महिलाओं पर पुरुषों की दरिन्दगी के न जाने कितने ऐसे मामले हैं जो प्रकाश में आए ही नहीं। ऐसी घटनाएं जो अखबारों में छप जाती हैं या न्यूज चैनलों द्वारा प्रमुखता से कवर कर ली जाती हैं, वास्तविक घटना का मात्र १% है। जब भी दिल्ली की चलती बस में ब्लात्कार जैसी कोई घटना प्रकाश में आती है, जनाक्रोश, प्रदर्शन, आन्दोलन की बाढ़-सी आ जाती है। कुछ दिनों के बाद सबकुछ सामान्य हो जाता है। केन्द्रीय गृह मन्त्री शिन्दे ठीक ही कहते हैं - जनता की याद्दाश्त बहुत कमजोर होती है। इस समय देश के हर कोने से यह मांग की जा रही है कि संसद का विशेष सत्र बुलाकर बलात्कारियों को मृत्युदण्ड देने के लिए कानून बनाया जाय। क्या मत्युदण्ड या कोई अन्य सख्त कानून इस समस्या का समाधान हो सकता है? क्या हत्यारे को मृत्युदण्ड देने का स्पष्ट प्रावधान कानून में नहीं है? हत्याओं का प्रतिशत बढ़ता ही जा रहा है। क्या दहेज लेना गैर कानूनी नहीं है? यह रोग दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। क्या रिश्वत और भ्रष्टाचार विधिसम्मत है? अन्ना के आन्दोलन के बाद भी इसमें कोई कमी नहीं आई है। किस अपराध के लिए इंडियन पेनल कोड-१८६० में दण्ड की व्यवस्था नहीं है? क्या अपराध कानून बनाने से रुक जाते हैं?
      समरस समाज, प्रेरणादायक नेतृत्व और नागरिकों के उच्च चरित्र ही अपराध की रोकथाम या उन्मूलन में सहायक होते हैं। फिजिक्स, केमिस्ट्री, मैथेमेटिक्स, इतिहास, भूगोल और अर्थशास्त्र की किस पुस्तक में लिखा है कि बड़ों का सम्मान करो, स्त्रियों को मां-बहन का सम्मान दो, माता-पिता-गुरु को पैर छूकर प्रणाम करो। राम, कृष्ण, गौतम, गांधी के चरित्र को हृदय से हृदयंगम किए बिना नैतिकता और चरित्र का विकास असंभव है। मैकाले की सेकुलर शिक्षा व्यवस्था ने नैतिकता और चरित्र को कालवाह्य बनाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है।
      फरवरी १८३५ में इंग्लैंड के हाउस आफ़ कामन्स में भारत की शिक्षा व्यवस्था में परिवर्तन हेतु अपनी दलील देते हुए लार्ड मेकाले ने कहा था -
      "I have travelled across the length and breadth of India and I have not seen one person who is beggar, who is a thief. Such wealth I have seen in this country, such high moral values, people of such calibre, that I do not think that we would ever conquer this country unless we break the very backbone of this nation, which is the cultural and the spiritual heritage, and thereof, I propose that we replace her old and ancient education system, her culture, for if the Indians think that all that is foreign and English is good and greater than their own, they will lose their self esteem, their native culture and they will become what we want them - a truly dominated nation." (बिना किसी संशोधन के एक-एक शब्द, कामा फ़ुलस्टाप के साथ मेकाले के लिखित वक्तव्य से उद्धृत)
      "मैंने पूरे भारत की यात्रा की और ऐसा व्यक्ति नहीं देखा जो भिखारी हो या चोर हो। इस तरह की संपत्ति मैंने इस देश में देखी है, इतने ऊंचे नैतिक मूल्य, लोगों की इतनी क्षमता, मुझे नहीं लगता कि कभी हम इस देश को जीत सकते हैं, जबतक कि इस देश की रीढ़ को नहीं तोड़ देते जो कि उसकी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत है। इसलिए मैं प्रस्ताव करता हूं कि हमें इसकी पुरानी और प्राचीन शिक्षा-व्यवस्था, इसकी संस्कृति को बदलना होगा। इसके लिए यदि हम भारतीयों को यह सोचना सिखा दें कि जो भी विदेशी है और अंग्रेज है, यह उनके लिए अच्छा और बेहतर है, तो इस तरह से वे अपना आत्मसम्मान खो देंगे, अपनी संस्कृति खो देंगे और वे वही बन जायेंगे जैसा हम चाहते हैं - एक बिल्कुल गुलाम देश।"
      एक अंग्रेज जो भारत और भारतीयों के लिए बड़ी ओछी मानसिकता रखता था, वह भी भारतीयों के चरित्र और व्यवस्था से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका। भारतीयों को अपनी मूल प्रकृति, संस्कृति, शिक्षा और उच्च नैतिक मूल्यों से विरत करने के लिए ही उसने स्पष्ट रूप से भारत में शिक्षा के क्षेत्र में अंग्रेजीकरण की वकालत की थी जिसे इंग्लैंड की संसद ने न सिर्फ स्वीकार किया बल्कि लागू भी कर दिया। आज़ादी के बाद हमारे पास अपना संविधान, अपने नियम-कानून, अपनी न्याय-व्यवस्था और अपनी शिक्षा-व्यवस्था को परिभाषित करने तथा लागू करने का अवसर प्राप्त हुआ था जिसे हमने बड़ी सहजता से गंवा दिया। दुर्भाग्य से हमारा नेतृत्व ऐसे लोगों के हाथ में चला गया, जो मैकाले की मानसिकता से बुरी तरह ग्रस्त थे और जिन्हें भारत की संस्कृति के लिए कोई आदर-भाव भी नहीं था। भारत का युवा किसका अनुसरण करे - जवाहर लाल नेहरू, इन्दिरा गांधी, नारायण दत्त तिवारी या अभिषेक मनु सिंहवी का? रही सही कसर हमारी फिल्मों, टीवी सिरियल्स, इन्टरनेट और घटिया साहित्य ने पूरी कर दी। अभिनय के लिए हमारा सर्वोच्च राष्ट्रीय पुरस्कार ‘डर्टी पिक्चर’ में अभिनय के लिए विद्या बालन को जाता है। इस फिल्म को कोई भी संवेदशील व्यक्ति अपने पूरे परिवार के साथ नहीं देख सकता। ऐसी फिल्मों ने राखी सावन्त, प्रियंका चोपड़ा, मलाइका अरोड़ा, बीना मलिक, सनी लियोन आदि को देश की युवतियों का रोल माडेल बना दिया। नारी स्वातंत्रय, उच्छृंखलता और अल्प वस्त्र का पर्याय बन गया। असंस्कारित युवक-युवतियों का सार्वजनिक स्थानों पर आपत्तिजनक अवस्था में प्रेम-प्रदर्शन मुंबई, दिल्ली पुणे या अन्य मेट्रोपोलिटन में आम बात है। ऐसी स्थिति में दिल्ली जैसी घटना की पुनरावृत्ति  मात्र कानून बनाने से नहीं रोकी जा सकती।
      मेरे गांव से मेरा स्कूल दो किलो मीटर की दूरी पर था। मेरे गांव के सभी लड़के और लड़कियां एक स्थान पर एकत्रित होते थे और साथ ही पैदल स्कूल जाते थे। लड़कियों की सुरक्षा का सामूहिक दायित्व लड़कों पर रहता था क्योंकि होश संभालने के बाद से ही हमें बताया गया था कि गांव की सभी लड़कियां तुम्हारी बहनें हैं। मैं ११वीं कक्षा क छात्र था - शरीफ़ एवं पढ़ाकू। मेरे गांव की एक लड़की जो दसवीं कक्षा में पढती थी को उसके क्लास के एक लड़के ने छेड़ दिया। उसने लौटते समय हमलोगों को बताया। दूसरे दिन हम लोग थोड़ा जल्दी घर से निकले, स्कूल के गेट पर उस लड़के को पकड़ा और लात-घूंसों से जबर्दस्त पिटाई की। उसने स्कूल के प्रिन्सिपल से हमलोगों की शिकायत की। प्रिन्सिपल ने मुझे बुलाकर पूछताछ की। मैंने अपराध स्वीकार किया और यह भी बताया कि क्यों हमलोगों को ऐसा करना पड़ा। विद्यालय का अनुशासन तोड़ने की सज़ा हमें मिली - दो-दो बेंत हमलोगों की हथेलियों पर लगाए गए। वहां उपस्थित वाइस प्रिन्सिपल ने हमलोगों की सज़ा का विरोध किया था। प्रिन्सिपल ने अपनी सफाई में कहा था - लड़कों ने काम तो अच्छा किया था लेकिन अनुशासन के लिए सज़ा देना जरुरी था। हमलोगों को न कोई खेद था, न पश्चाताप। शाम को हमलोग अपने गांव आए। गांव के बुज़ुर्गों ने भी हमारे कार्य की सराहना की। क्या लड़के-लड़कियों में आज के अभिभावक ऐसी भावना भर रहे हैं? कोई भी सामाजिक संस्था इस दिशा में कार्य कर रही है? शायद नहीं।
      चरित्र और चरित्र निर्माण ही एकमात्र विकल्प है। विवेकानन्द ने कहा था - I want a man with capital `M'. कहां लुप्त हो गया हमारा capital `M'? इस देश को राजनीतिक परिवर्तन की कम, सामाजिक परिवर्तन की आवश्यकता है। जन्मघुट्टी की तरह प्रत्येक के मन-मस्तिष्क में यह संदेश स्थापित करने की आवश्यकता है -
      मातृवत परदारेषु पर द्रव्येषु लोष्टवत।
      आत्मवत सर्वभूतेषु यः पश्यति स पण्डितः॥
      सभी स्त्रियों को माता समान, दूसरे के धन को मिट्टी के ढेले के समान तथा सभी जीवों को अपने समान जो देखता है, वही सच्चा विद्वान है।
      पश्चिमी सभ्यता की चकाचौंध में हम कबतक अपनी मौलिक अच्छाइयों की अनदेखी करते रहेंगे? हम इन अच्छाइयों को कालवाह्य या दकियानूसी मानकर खारिज़ नहीं कर सकते। हम भारतीय हैं, कभी भी अंग्रेज नहीं बन सकते। हमारा चरित्र-बल ही हमें हमारी समस्त समस्याओं से मुक्ति दिलाने का एकमात्र साधन है। क्यों नहीं अपने आचार-विचार, बोल-चाल और वस्त्रों में हम मर्यादा का ध्यान रखें? जो चीज हमारे पूरे समाज में क्रान्तिकारी परिवर्तन ला सकती है, उसे अपनाने में कैसा संकोच? यह निर्णय लेने की घड़ी है - अभी नहीं तो कभी नहीं।
      

Saturday, December 22, 2012

नरेन्द्र मोदी और चुनावी विश्लेषण


 भारतीय जनता पार्टी की जीत को हमारा सेकुलर मीडिया, चुनावी विश्लेषक और कांग्रेसी पचा नहीं पा रहे हैं। नरेन्द्र मोदी द्वारा अर्जित चुनावी सफलता से हतप्रभ विशेषज्ञों ने चुनाव परिणाम के बाद जो वक्तव्य दिए वे इतने हास्यास्पद थे कि उनका उल्लेख करना किसी चुटकुले को पढ़ना और सुनाने जैसा है। जनता की इच्छाओं का सम्मान करने और मोदी को बधाई देने के बदले हमारे वित्तमंत्री पी चिदंबरम ने बयान दिया कि भाजपा को पिछले चुनाव से दो सीटें कम मिली हैं, इसलिए इसे भाजपा या मोदी की जीत नहीं कहा जा सकता। दूसरे बड़बोले मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा कि यह मोदी के ३-डी प्रचार का २-डी परिणाम है। एक चुनावी विश्लेषक के अनुसार मोदी ने चूंकि ५१% मत नहीं प्राप्त किए हैं अतः इसे मोदी की स्पष्ट जीत नहीं कहा जा सकता। अभी डिग्गी राजा का ()विद्वतापूर्ण बयान आया ही नहीं; शायद वे होमवर्क कर रहे हैं। लोग यह भूल जा रहे हैं कि गुजरात के कद्दावर नेता विद्रोही भाजपायी केशुभाई पटेल की गुजरात परिवर्तन पार्टी द्वारा सभी १८२ सीटों पर अपना उम्मीदवार उतारने के बावजूद भाजपा ने ११५ सीटों पर जीत हासिल की। यह मोदी का जादू नहीं तो और क्या है? अगर केशुभाई पटेल अलग चुनाव नहीं लड़ते तो भाजपा का आंकड़ा १५० को छू रहा होता।
      भारत की वह जनता जो सुशासन और विकास चाहती है, मोदी की ऐतिहासिक जीत से अत्यन्त उत्साहित और आशान्वित है। भारतीय जनता पार्टी को अटल बिहारी वाजपेयी के बाद राष्ट्रीय स्तर पर पहली बार एक योग्य नेता जिसके पास जनता तक सीधे अपनी बात पहुंचाने वाली वक्तृत्व क्षमता और स्पष्ट दृष्टि है, मोदी के रूप में प्राप्त हुआ है। निश्चित रूप से भाजपा पंडित दीनदयाल उपाध्याय और अटल बिहारी वाजपेयी की पार्टी नहीं रही, फिर भी अपनी अपनी तमाम कमियों के बावजूद वह कांग्रेस से हजार गुना अच्छी है। जनता भी भाजपा को वोट देना चाहती है, परन्तु भाजपा वोट नहीं ले पाती है। इसी वर्ष उत्तर प्रदेश में विधान सभा चुनावों के बाद १५ महानगरों के नगर निगम के चुनाव हुए। भाजपा ने ११ महानगरों में मेयर के पद पर जनता का विश्वास प्राप्त किया। केजरीवाल, अन्ना और बाबा रामदेव के भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन का भाजपा को सीधे लाभ पहुंचना चाहिए था लेकिन इस पार्टी ने अपने प्रतिगामी निर्णयों से लगता है वह अवसर गंवा दिया है। नितिन गडकरी को लाल कृष्ण आडवानी का अनुशरण करते हुए क्लीन चिट मिलने तक अध्यक्ष पद से त्यागपत्र दे देना चाहिए था। तब भ्रष्टाचार के विरुद्ध उसके संघर्ष में स्वाभाविक पैनापन आ जाता। पदोन्नति में आरक्षण का विरोध करके भाजपा ने अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली है। उत्तर प्रदेश जहां लोकसभा की ८० सीटें हैं, की अनदेखी कर कोई भी राष्ट्रीय पार्टी केन्द्र में सत्तारुढ़ नहीं हो सकती। मुलायम सिंह यादव ने २०१४ के चुनावों को दृष्टि में रखकर ही प्रोमोशन में आरक्षण का पूरी शक्ति से विरोध किया है। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस, भाजपा या सपा लाख उपाय करें, वे मायावती के अनुसूचित वोट बैंक में सेंध लगाने की बात तो दूर, एक छोटा सा सुराख भी नहीं कर सकते। मुलायम सिंह ने इस तथ्य को भलीभांति समझ लिया है। यहां पहलवान मुलायम सिंह अरुण जेटली और सुषमा स्वराज से अधिक समझदार प्रतीत होते हैं। भाजपा ने हाथ आए इस अवसर को खो दिया है। अब सिर्फ नरेन्द्र मोदी ही भाजपा के लिए आशा के एकमात्र केन्द्र हैं। देखें, भाजपा नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता और विकास पुरुष की छवि को जनता के सामने रख लोकसभा का अगला चुनाव लड़ती है या वातानुकूलित संसद में जोरदार भाषण देनेवाले जड़विहीन नेताओं के सहारे?
      गुजरात के लिए नरेन्द्र मोदी ने वे कार्य किए हैं जो किसी भी राज्य में किसी भी नेता या मुख्यमंत्री ने नहीं किया है। इस चुनाव में गुजरात के दौरे पर गए मोदी के धुर विरोधी अर्थशास्त्रियों और पत्रकारों ने जब गुजरात में विकास की चकाचौंध देखी तो उनकी आंखें भी चौंधियाए बिना नहीं रह सकीं। गुजरात के लगातार और स्थायी विकास, दूर तक विस्तृत आधुनिक सिंचाई सुविधाओं से संपन्न खेत-खलिहान, निर्धूम कल-कारखाने, पवन ऊर्जा, सौर ऊर्जा और नर्मदा के जल-विद्युत गृहों के बल पर पर्यावरणमित्र निर्बाध विद्युत आपूर्ति, सुन्दर और गड्ढ़ामुक्त सड़कें, विकसित जनजाति, नियंत्रित कानून-व्यव्स्था और अपेक्षाकृत स्वच्छ तथा प्रभावी प्रशासन देखकर सभी आश्चर्यचकित थे। गुजरात देश का आज की तिथि में पहला राज्य है जहां बिजली का उत्पादन मांग से अधिक है। इस बरसात में अपने कई ताप विद्युत गृहों में उत्पादन कम करके - जिसे थर्मल बैकिंग कहते हैं - गुजरात ने पश्चिमी क्षेत्र के ग्रीड की फ्रिक्वेन्सी मेन्टेन की। पूरे देश में किस राज्य के पास ऐसा उदाहरण है? गुजरात में बिना गए गुजरात की प्रगति का साक्षात्कार संभव नहीं है। वहां जाने पर एक ही प्रश्न मस्तिष्क में कौंधता है - क्या गुजरात भी हिन्दुस्तान में ही है?
      हमारा देश १८५७ की क्रान्ति की असफलता के बाद जब निराशा के अंधकार में डूब रहा था, तब भी गुजरात ने ही रोशनी दिखाई थी। बांस की एक लाठी लिए और आधे तन पर वस्त्र धारण किए महात्मा गांधी ने दुनिया के सबसे विशाल साम्राज्य को घुटने टेकने पर विवश किया था। द्वापर में द्वारिकाधीश श्रीकृष्ण ने ही संपूर्ण आर्यावर्त को धर्म की राह दिखाई थी। अब बारी नरेन्द्र मोदी की है। सारा देश उनकी ओर टकटकी लगाए देख रहा है। बस भाजपा के कुछ नेताओं की आंखें खुलनी बाकी है।

Tuesday, December 18, 2012

पदोन्नति में आरक्षण



  कोई भी व्यक्ति या संस्था अगर सर्वोच्च न्यायालय की अवमानना करती है, तो पूरे देश में एकसाथ बवाल मच जाता है, लेकिन अगर सरकार ही इस संवैधानिक संगठन के आदेश को मानने से इंकार कर दे, तो क्या किया जा सकता है! केन्द्र की सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल में सर्वोच्च न्यायालय से लेकर सीएजी, सीबीआई, सीवीसी तक प्रत्येक स्वायत्तशासी संगठन को अपने अनुसार चलाने का कार्य किया है। अगर इन संगठनों ने देशहित और न्याय के हित में सरकार के अनुकूल कोई काम नहीं किया तो सरकार ने इनकी विश्वसनीयता पर ही प्रश्नचिह्न खड़े कर दिए। देश के सर्वोच्च न्यायालय ने एनडीए के कार्यकाल में अपना निर्णय देते हुए प्रोन्नति में आरक्षण को अवैध घोषित किया था। सारी राजनीतिक पार्टियों ने वोट की राजनीति करते हुए संविधान में संशोधन करके प्रोन्नति में आरक्षण को बहाल कर दिया। इसके खिलाफ़ विभिन्न कर्मचारी संगठनों ने देश के लगभग प्रत्येक भाग से विभिन्न उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय में याचिकाएं दायर की। सभी याचिकाओं को एकसाथ सुनवाई के लिए मंजूर करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मार्च महीने में प्रोन्नति में आरक्षण को खारिज़ करते हुए अपना निर्णय सुनाया। कोर्ट ने यह भी कहा कि प्रोन्नति में आरक्षण संविधान में वर्णित समानता के सिद्धान्त का उल्लंघन है। नौकरी में आरक्षण को जायज ठहराते हुए कोर्ट ने यह टिप्पणी की थी कि नौकरी प्राप्त करने के समय सामाजिक रूप से पिछड़े वर्ग के लिए समानता प्राप्त करने हेतु आरक्षण उचित है लेकिन एक बार समानता प्राप्त कर लेने के बाद पुनः आरक्षण देना अपने कुछ नागरिकों को जाति के आधार पर विशेषाधिकार देने के समान है जो संविधान की मूल आत्मा के हनन के समान होगा। सुप्रीम कोर्ट ने दूसरी बार प्रोन्नति में आरक्षण के खिलाफ़ अपना निर्णय सुनाया। इसपर गंभीरता से सोच-विचार के बदले सरकार ने अपनी सत्ता की रक्षा हेतु बसपा सुप्रीमो मायावती के तुष्टीकरण के लिए संविधान में संसोधन करना ही मुनासिब समझा। बिल राज्यसभा से पारित हो चुका है और लोकसभा से भी इसका पारित होना निश्चित है। मुलायम सिंह यादव की सपा को छोड़कर सभी राजनीतिक दल संगठित दलित वोटों की चाहत में इसका विरोध करने में अपने को असमर्थ पा रहे हैं।
      सत्ता की राजनीति ने इस देश का जितना अकल्याण किया है, उतना विदेशी शासकों ने भी नहीं किया है। देश के बंटवारे से लेकर समाज के विभाजन के खेल खेले गए। सारे देश को सन २०२० तक विकसित राष्ट्र बनाने का सपना दिखाया जाता है परन्तु अक्षम और अयोग्य व्यवस्था के साथ क्या यह सपना पूरा किया जा सकता है? प्रोन्नति में आरक्षण के कारण सभी ऊंचे पदों पर आरक्षित जातियों के अधिकारी और कर्मचारी छा जाएंगे। उनसे दक्ष और वरिष्ठ अधिकारी तथा कर्मचारी अपने मूल पद से ही सेवानिवृत्ति के लिए वाध्य होंगे जैसा उत्तर प्रदेश में मार्च २०१२ के पहले हो रहा था।
      मैंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से इंजीनियरिंग में स्नातक होने के बाद सन १९७८ में तब के उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत परिषद में सहायक अभियन्ता के पद पर नियुक्ति के साथ नौकरी शुरु की थी। नियम के अनुसार मुझे सात वर्षों के बाद अधिशासी अभियन्ता के पद पर पहली प्रोन्नति मिलनी चाहिए थी। लेकिन नहीं मिली। मेरे साथ सहायक अभियन्ता के पद पर नियुक्ति पाने वाले मेरे ही साथियों को जो अनुसूचित जाति से आते थे, सात वर्ष के बाद प्रोन्नति मिल गई। वे सात वर्षों के बाद अधिशासी अभियन्ता, अगले पांच वर्षों के बाद अधीक्षण अभियन्ता और उसके अगले तीन वर्षों के बाद मुख्य अभियन्ता के पद पर प्रोन्नति पा गए। मैं २६ वर्षों तक अपने मूल पद पर सहायक अभियन्ता के रूप में कार्य करता रहा जबकि आरक्षित वर्ग के मेरे साथी और कनिष्ठ २० वर्षों में ही प्रबन्ध निदेशक के उच्चतम पद पर आसीन थे। इस दौरान मुझे अपने से १५ साल जूनियर अधिकारी की मातहती में काम करना पड़ा। मुझे लगातार कई वर्षों तक उत्कृष्ट कार्य करने का प्रमाण पत्र भी मिला लेकिन यह किसी काम का नहीं था। मैंने सन २००४ में अधिशासी अभियन्ता के पद पर पहला प्रोमोशन पाया और आठ साल बाद पिछले मई में अधीक्षण अभियन्ता का प्रोमोशन सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद पाया। देश के सारे प्रदेशों में कमोबेस यही स्थिति है। देश की सारी विकास योजनाएं राज्य सरकारों द्वारा ही लागू की जाती हैं। राज्य सरकारों में विभिन्न विभागों में सर्वोच्च पदों पर नीति निर्धारक और कार्यान्यवन अधिकारी के रूप में जाति के आधार पर आरक्षण पाए अधिकारी ही उपलब्ध होंगे जिनपर विकास की जिम्मेदारी होगी। उनकी टीम में सबसे निचले स्तर पर वे लोग होंगे जो उनसे वरिष्ठ, कुशल, दक्ष और प्रतिभाशाली हैं। जातीय आधार पर बंटे प्राशासकीय तंत्र से किस तरह के चमत्कार की उम्मीद की जा सकती है। एक तरफ होंगे भग्न हृदय, भग्न मनोबल वाले निम्न अधिकारी और कर्मचारी तथा दूसरी ओर होंगे राजनीतिज्ञों से अभयदान प्राप्त आरक्षित वर्ग के कनिष्ठ और अपेक्षाकृत अकुशल अधिकारी/कर्मचारी।
      राजनीतिक दलों को न देश की चिन्ता है, न विकास की और ना ही सामाजिक समरसता की। उनकी आंखें तो सिर्फ कुर्सी पर है चाहे वह जिस विधि मिले -
तमाम मुल्क अंधेरे में डूब जाए तो क्या,
वो चाहते हैं कि सूरज उन्हीं के घर में रहे।

Saturday, December 8, 2012

सन्देह के घेरे में अरविन्द केजरीवाल




      दिनांक ६ दिसंबर को अन्ना हजारे जी ने अरविन्द केजरीवाल के विरुद्ध जो वक्तव्य दिया उससे अरविन्द केजरीवाल की निष्ठा सन्दिग्ध हुई है। अन्नाजी ने कहा कि अरविन्द केजरीवाल सत्ता और धन के लिए राजनीति कर रहे हैं और वे कभी भी केजरीवाल की आम आदमी पार्टी के पक्ष में वोट नहीं डालेंगे। अन्नाजी कोई दिग्विजय सिंह नहीं हैं जिनके कथन को हवा में उड़ा दिया जाय। अन्नाजी के कारण ही केजरीवाल ज़ीरो से हीरो बने। उन्होंने यश और प्रसिद्धि के लिए अन्ना जी का भरपूर दोहन किया। अन्नाजी को जब केजरीवाल की असली मन्शा का पता लगा तो उन्होंने अविलंब केजरीवाल से संबन्ध तोड़ लिया। अन्ना के जन आन्दोलन के साथ अरविन्द केजरीवाल की निष्ठा आरंभ से ही सन्दिग्ध रही है। कांग्रेस के एजेन्ट स्वामी अग्निवेश केजरीवाल की ही अनुशंसा पर अन्ना की कोर कमिटी के सदस्य बने। अग्निवेश के चरित्र को सबसे पहले किरण बेदी ने पहचाना और वीडियो के माध्यम से आम जनता के सामने रखा। किरण बेदी और केजरीवाल के बीच मतभेदों की यही शुरुआत थी। आज भी स्वामी अग्निवेश से केजरीवाल के संबन्ध पूर्ववत हैं। सन २००५-०६ में केजरीवाल ने स्वामी अग्निवेश के माध्यम से सोनिया गांधी तक उनकी राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की सदस्यता पाने के लिए जोरदार लाबिंग की थी। किसी तरह आमंत्रित सदस्य के रूप में दिनांक ४ अप्रिल २००११ को स्वामी अग्निवेश के साथ राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की बैठक में सोनिया गांधी के साथ चाय पीने की उनकी आकांक्षा सफल हो पाई।
      केजरीवाल के दादा हरियाणा के एक सफल व्यवसायी थे। धन के प्रति केजरीवाल का लोभ भी जगजाहिर हो चुका है। अन्नाजी ने उनके इस लोभ को सार्वजनिक किया है। केजरीवाल अपने और अपने एनजीओ के लिए देसी या विदेशी, कहीं से भी धन लेने में तनिक भी परहेज़ नहीं करते। वे घोषित रूप से  मुख्यतया ‘परिवर्तन’ और ‘कबीर’ नामक दो एनजीओ से संबन्धित हैं। उनकी संस्था ‘कबीर’ ने अमेरिका के फोर्ड फाउन्डेशन से वर्ष २००५ मे १,७२००० एवं वर्ष २००६ में १,९७,००० डालर प्राप्त किए। इसके पर्याप्त साक्ष्य हैं। उन्होंने वर्ष २०१० में भी लाखों डालर फोर्ड फाउन्डेशन से प्राप्त किए। इन सभी अनुदानों का क्या उपयोग हुआ और और किन उद्देश्यों के लिए प्राप्त किए गए, आज तक रहस्य बने हुए हैं। फोर्ड एक मज़े हुए व्यवसायी हैं। बिना लाभ के वे एक धेला भी खर्च नहीं कर सकते। उनके माध्यम से अमेरिका विदेशों में अपने हित साधन करता है। अमेरिका में ‘आवाज़’ नामक एक एनजीओ है जिसे वहां के उद्योगपति चलाते हैं। इस संस्था ने विश्व में अमेरिका के हित में कार्य करते हुए अनेक संस्थाओं को प्रत्यक्ष वित्तीय अनुदान दिया है। मिस्र के तहरीर चौक में आन्दोलन चलाने के लिए इसने करोड़ों डालर खर्च किए, लीबिया में तख्ता पलट के लिए उसने सारे खर्चे उठाए और अब सीरिया में गृह युद्ध के लिए यह संस्था दोनों हाथों से धन ऊलीच रही है। केजरीवाल के दोनों एनजीओ ‘आवाज़’ से संबद्ध हैं। 
      केजरीवाल को कांग्रेस तथा सरकार में तबतक कोई बुराई या भ्रष्टाचार दिखाई नहीं पड़ा जबतक वे सोनिया गांधी के नेतृत्व में कार्यरत राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की सदस्यता के प्रति आशान्वित थे। सरकार के आशीर्वाद से ही लगभग २० वर्षों तक आयकर विभाग में वे दिल्ली में ही पदस्थापित थे। दिल्ली के बाहर उनका एक बार भी स्थानान्तरण नहीं हुआ। जबकि उनके स्तर के अन्य अधिकारियों को इतनी ही अवधि में पूरा देश दिखा दिया जाता है। उनकी पत्नी श्रीमती सुनीता केजरीवाल जो उनकी बैचमेट हैं, आज भी विगत २० वर्षों से अतिरिक्त इन्कम टैक्स कमिश्नर के पद पर दिल्ली में ही जमी हुई हैं। उनका भी आज तक दिल्ली के बाहर एक बार भी तबादला नहीं हुआ है। ये उनकी कुछ ऐसी कमजोरियां हैं जिनका केन्द्रीय सरकार जब चाहे अपने पक्ष में इस्तेमाल करती हैं। भाजपा के नेताओं पर केजरीवाल ने कांग्रेस के इशारे पर ही आरोप लगाए थे। वे मुकेश अंबानी, अनु पटेल इत्यादि के चुटकी भर धन के विदेशी बैंकों में जमा होने का भंडाफोड़ करते हैं। मुकेश अंबानी एक अन्तराष्ट्रीय व्यवसायी हैं, उनके यदि सौ करोड़ विदेशी बैंकों में जमा हैं, तो कौन सी आश्चर्य की बात है? केजरीवाल ऐसे ही रहस्योद्घाटन करते हैं। विदेशों में कार्यरत या वहां से वापस आने वाले भारत के  लाखों इन्जीनियरों, डाक्टरों, प्रबन्धकों, वैज्ञानिकों और उद्यमियों के खाते विदेशी बैंकों में हैं। क्या उनके द्वारा जमा धन काला धन है? केजरीवाल सोनिया गांधी और राजीव गांधी के विदेशी बैंकों में जमा लाखों करोड़ रुपयों पर रहस्यमयी चुप्पी साध लेते हैं। बाबा रामदेव पूरे हिन्दुस्तान में प्रमाणों के साथ चिल्ला-चिल्ला कर यह बात कहते हैं, सुब्रहमण्यम स्वामी ने प्रधानमंत्री को भेजी अपनी २५६ पेज की याचिका में प्रमाणों के साथ इन तथ्यों का खुलासा किया है, लेकिन केजरीवाल सोनिया जी पर एक शब्द भी नहीं बोलते।
      १९७४-७५ में इन्दिरा सरकार और कांग्रेस आज की तरह ही भ्रष्टाचार और निरंकुशता का प्रतीक बन चुकी थी। इन्दिरा गांधी के लोकसभा के चुनाव को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अवैध घोषित कर दिया था, जय प्रकाश नारायण की संपूर्ण क्रान्ति का देशव्यापी आन्दोलन अपने चरम पर था। इन्दिरा जी ने आपात्काल लागू करके अपनी सत्ता बचा ली और लोकतंत्र का गला घोंट दिया। उस समय कांग्रेस के कुशासन और तानाशाही से देश की मुक्ति के लिए सभी विरोधी दलों का एकीकरण अत्यन्त आवश्यक था। जयप्रकाश नारायण ने यह असंभव कार्य कर दिखाया और १९७७ में पहली बार मोरारजी भाई के नेतृत्व में एक प्रभावी और भ्रष्टाचारमुक्त गैरकांग्रेसी सरकार बनी। अपने ढाई साल के कार्यकाल में उस सरकार ने जिस तरह महंगाई, भ्रष्टाचार और तानाशाही के विरुद्ध प्रभावशाली नियंत्रण स्थापित किया उसे हिन्दुस्तान की जनता आज भी याद करती है। अल्प समय में ही वह सरकार कांग्रेस के षडयंत्र का शिकार बन गई। उस समय राजनारायण और चौधरी चरण सिंह ने इन्दिरा जी के इशारे पर जनता के साथ जो विश्वासघात किया, वही कार्य सोनिया जी के इशारे पर आज अरविन्द केजरीवाल और मनीष सिसोदिया कर रहे हैं। अगर २०१४ के आम चुनावों के बाद भ्रष्ट और निकम्मी कांग्रेस पुनः सत्ता में वापस आती है, तो इसका पूरा श्रेय राहुल-सोनिया को नहीं, अरविन्द केजरीवाल को जाएगा जो विपक्ष की विश्वसनीयता को सन्देह के घेरे में लाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रहे हैं

Friday, November 16, 2012

राजनीति ही क्यों




महात्मा गांधी ने कांग्रेस को लोकप्रियता के चरम शिखर पर पहुंचाया। उन्होंने इसके माध्यम से देश को पराधीनता की बेड़ियों से मुक्त भी कराया। लेकिन क्या उन्होंने सपने में भी सोचा था कि उनकी कांग्रेस बोफ़ोर्स, २-जी स्कैम, राष्ट्रमंडल घोटाला, कोलगेट जैसे घोटालों में आकण्ठ डूब जाएगी? जबतक कांग्रेस गांधीजी के आभामंडल के आस-पास थी, देश के लिए काम किया। सरदार पटेल, डा. राजेन्द्र प्रसाद, लाल बहादुर शास्त्री, मोरारजी देसाई जैसे चरित्रवान नेता कांग्रेस की ही देन थे। लेकिन जब से कांग्रेस ने चरित्र को बाहर का रास्ता दिखाया, तब से यह राजीव गांधी, सोनिया गांधी, राहुल गांधी, नारायण दत्त तिवारी, चिदंबरम, वाड्रा, अभिषेक सिंघवी और दिग्विजय सिंह की पार्टी बनकर रह गई। भारत की ऐसी कौन सी राजनीतिक पार्टी है जो अपने घोषणा पत्र में घोटालों और भ्रष्टाचार की वकालत करती है? कौन पार्टी वंशवाद को अपना नैतिक अधिकार मानती है?  सबके सिद्धान्त अच्छे प्रतीत होते हैं। उनके कार्यक्रम भी लोक लुभावन हैं।  फिर ऐसा कौन सा कारण है कि कोई भी पार्टी भ्रष्टाचार को रोकने में सफल नहीं हो पा रही है? कारण एक ही है - चरित्र की कमी। विवेकानन्द ने कहा था - I want a man with capital M. इस समय capital M वाले मनुष्यों की समाज के हर क्षेत्र में कमी हो गई है जिसका परिणाम घोटाले, भ्रष्टाचार, बलात्कार, लूटपाट, आगजनी, दंगा इत्यादि के रूप में सबके सामने है। क्या पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम, मनरेगा, मिड डे मिल, वृद्धावस्था पेन्शन, पंचायती राज, सांसद/विधायक निधि की योजनाएं गलत हैं? शायद नहीं। लेकिन भ्रष्टाचार के घुन ने इन्हें इतना खोखला कर दिया है कि सभी योजनाएं लक्ष्य से भटक गईं हैं। स्वराज प्राप्ति के पश्चात सुराज कि अत्यन्त आवश्यकता थी और इसके लिए अधिक चरित्रवान और निष्ठावान कार्यकर्त्ताओं की आवश्यकता थी, लेकिन दुर्भाग्य से देश में चरित्र निर्माण करने वाले संगठनों की भारी कमी होने के कारण हम चरित्रवान नागरिकों का निर्माण नहीं कर पाए। ले-देकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसी एक ही संस्था देश को उपलब्ध हुई जिसने चरित्रवान कार्यकर्त्ताओं की कई पीढ़ियों का निर्माण किया। राजनीति और इसके इतर भी इसके कार्यकर्ताओं ने अपने कार्य से राष्ट्र की महत्तम सेवा की है। पंडित दीन दयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण अडवानी ने अपने अपने क्षेत्र में मील के पत्थर स्थापित किए, परन्तु आज की तिथि में येदुरप्पा, मधु कोड़ा और नीतिन गडकरी के क्रिया कलापों को देख मन में यह संशय घर करने लगता है कि इस महान संगठन के प्रशिक्षण में भी कही कोई दोष तो नहीं?
आजकल हर आदमी कुछ दिन समाज सेवा करता है, आन्दोलन चलाता है और फिर राजनीति में घुस जाता है। हम यह भूल जाते हैं कि राजनीति से अधिक श्रेष्ठ समाज सेवा है। समाज श्रेष्ठ होगा तो सरकारें स्वयं ही श्रेष्ठ बन जाएंगीं। स्व. लोकमान्य तिलक अपने समय के सर्वमान्य राजनेता थे। वे अपने युग की राजनीति के शिखर पुरुष थे। उनका नारा - स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है, वन्दे मातरम की तरह देश पर मर मिटने वालों के लिए ध्येय वाक्य था। उन्हीं दिनो तिलक जी से किसी पत्रकार ने पूछा -
"यदि इन कुछ वर्षों में स्वराज मिल गया तो आप भारत सरकार के किस पद को संभालना पसंद करेंगे?"
इस सवाल को पूछने वाले ने सोचा था कि तिलक महाराज उत्तर में अवश्य प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति बनने की मंशा जाहिर करेंगे। लेकिन उसे लोकमान्य तिलक का उत्तर सुनकर अत्यन्त हैरानी हुई। बाल गंगाधर तिलक ने कहा था -
" मैं तो देश के स्वाधीन होने के पश्चात स्कूल का अध्यापक होना पसंद करूंगा क्योंकि देश को सबसे बड़ी आवश्यकता अच्छे नागरिक एवं उन्नत व्यक्तियों की होगी जिसे शिक्षा एवं समाज सेवा के द्वारा ही पूरा किया जाना संभव है।"
हजार वर्षों की गुलामी के कारण अपना सबकुछ खो बैठने वाले समाज में अनगिनत बुराइयों के साथ नैतिक, बौद्धिक और सामाजिक पिछड़ेपन को दूर किया जाना आज की तिथि में सबसे बड़ा काम है और इसे किसी राजनीति के द्वारा नहीं बल्कि सामाजिक सत्प्रवृतियों के द्वारा ही पूरा किया जा सकता है। समाजसेवा के लिए अनगिनत क्षेत्र हैं। निरक्षरता की समस्या अभी खत्म नहीं हुई है। प्रौढ़ों और महिलाओं को पढ़ाने की सुध किसे है? सरकार तो अपने वर्तमान शैक्षणिक ढांचे को चलाने में ही चरमरा रही है। ऐसी स्थिति में शिक्षा की सामयिक चुनौती को समर्पित लोकसेवी ही पूरी कर सकते हैं। खर्चीली शादियां, तंबाकू, शराब, भांग, अफ़ीम, दिखावा आदि में समाज के हजारों लाखों करोड़ नित्य ही व्यर्थ जा रहे हैं। यह धन २-जी स्कैम और कोलगेट से ज्यादा है। यदि इस धन को बचाया जा सके तो न जाने कितनी राष्ट्रीय समस्याओं के समाधान के साथ अनगिनत परिवारों की खुशियां वापस लौट सकती हैं। 
जात-पांत के नाम पर हजारों टुकड़ों में बंटे-बिखरे समाज को फिर से एकता-समता के सूत्र में बांधने की आवश्यकता है। गृह उद्योगों के अभाव में देश की महिलाएं एवं वृद्ध निठल्ला जीवन जीते हैं। यदि इन्हें विकसित किया जाय तो घरों के साथ देश की आर्थिक स्थिति भी सुधर सकती है। देश का युवा वर्ग आज के सिनेमा और टीवी चैनलों से दिशा प्राप्त कर रहा है। सार्थक साहित्य का सृजन ठप्प है। ये पंक्तियां समाज सेवा की अनगिनत जरुरतों में से कुछ की ही चर्चा करती हैं। इनके अतिरिक्त और भी अनेकों कार्य करने को पड़े हैं जिन्हें हाथ में लेकर व्यक्ति, समाज और राष्ट्र के लिए बहुत कुछ किया जा सकता है। लेकिन ये सारे कार्य करेगा कौन? सोनिया या अरविन्द केजरीवाल?

Friday, November 9, 2012

दिग्विजय की राह पर केजरीवाल




अपुष्ट प्रमाणों के आधार पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाकर किसी का भी चरित्र-हनन करना अरविन्द केजरीवाल का स्वभाव बन चुका है। वे अपने उद्देश्य से भटक गए हैं। अन्ना हजारे को लगभग दो वर्षों तक उन्होंने भुलावे में रखा। जन लोकपाल बिल के लिए अन्ना के आन्दोलन से ही अरविन्द केजरीवाल अचानक नायक की भांति उभरे।  अन्ना के गिरते स्वास्थ्य की चिन्ता किए बिना उन्होंने अन्नाजी को मुंबई और दिल्ली में अनिश्चित काल के लिए अनशन पर बैठा दिया। अन्नाजी को अरविन्द केजरीवाल की राजनीतिक महत्त्वाकांक्षा को पहचानने में दो वर्ष लग गए। एक कहावत है - साधु, चोर और लंपट ज्ञानी, जस अपने तस अनका जानी। साधु अन्ना अपनी तरह ही अपने सलाहकारों को साधु समझते रहे। उन्हें पहला झटका स्वामी अग्निवेश ने दिया, दूसरा झटका केजरीवाल ने। जब आन्दोलन के पीछे केजरीवाल की राजनीतिक मंशा से पर्दा हटा, तो उन्होंने न केवल इसका विरोध किया, अपितु केजरीवाल से अपना संबन्ध विच्छेद भी कर लिया। किरण बेदी ने भी यही किया। अन्नाजी ने सार्वजनिक रूप से अपने नाम का उपयोग करने से केजरीवाल को स्पष्ट मनाही कर दी। आज दोनों के रास्ते अलग-अलग हैं। एक व्यवस्था परिवर्तन चाहता है, तो एक अन्ना के आन्दोलन का लाभ उठाकर सत्ता। प्रश्न यह है कि अगर अरविन्द केजरीवाल के सपनों का जन लोकपाल कानून बिना किसी काट-छांट के पास भी कर दिया जाय, तो क्या गारन्टी है कि यह भारत की न्याय-व्यवस्था की तरह भ्रष्टाचार का केन्द्र बनने से बच पाएगा? हमारी सारी समस्याओं की जड़ हमारा उधारी संविधान, इसके द्वारा संचालित व्यवस्था और इसके द्वारा उत्पन्न चारित्रिक गिरावट है। एक नहीं, सौ लोकपाल बिल पास आ जाएं, फिर भी भ्रष्टाचार में कोई कमी नहीं आएगी, वरन बढ़ेगा। अवैध धन कमाने का एक और काउंटर खुल जाएगा। अन्नाजी ने देर से इस तथ्य को समझा। इसीलिए वे बाबा रामदेव, किरण बेदी और जनरल वी.के.सिंह के साथ व्यवस्था परिवर्तन के लिए कार्य कर रहे हैं।
अरविन्द केजरीवाल अब दिग्विजय सिंह की राह पर चल पड़े हैं। सलमान खुर्शीद, वाड्रा, मुकेश अंबानी और गडकरी पर उन्होंने जो आरोप लगाए हैं, वे मात्र सनसनी फैलाने के लिए हैं। २-जी, कामनवेल्थ और कोलगेट के मुकाबले ये घोटाले कही ठहरते नहीं हैं। उन्हें डा. सुब्रह्मण्यम स्वामी की तरह पूरे प्रमाणों के साथ कोर्ट में जाना चाहिए ताकि राष्ट्र का कल्याण हो सके। २-जी स्कैम के लिए अगर स्वामी सुप्रीम कोर्ट में नहीं गए होते, तो इसे कभी का दबा दिया गया होता। सुब्रह्मण्यम स्वामी ने देश पर एक बड़ा उपकार किया है। सरकार की अनैतिक गतिविधियों पर प्रभावी अंकुश लगाया है। भ्रष्टाचार के खिलाफ़ उनका संघर्ष सही दिशा में है। केजरीवाल या तो दिग्भ्रान्त हैं या अपनी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए कुछ भी कर गुजरने के लिए कटिबद्ध हैं। वे अपने रहस्योद्घाटनों से यह सिद्ध करने का प्रयास कर रहे हैं कि सभी राजनीतिज्ञ भ्रष्ट हैं। ऐसा करके परोक्ष रूप से वे भ्रष्टाचार की जननी कांग्रेस की ही मदद कर रहे हैं। वे यह धारणा बनवा रहे हैं कि पूरे भारत में उनके अतिरिक्त कोई भी ईमानदार नहीं है। यदि उन्हें बेहतर राजनीतिक विकल्प देने की चिन्ता होती, तो वे राजनीतिक पार्टी बनाने की दिशा में ठोस पहल करते, जो कांग्रेस और भाजपा का विकल्प बनने की क्षमता रखती। राष्ट्रीय स्तर की पार्टी बनाना कोई हंसी ठठ्ठा नहीं है। उनके पास हिमाचल और गुजरात के चुनावों से आरंभ करने का एक सुनहरा अवसर था, जिसे उन्होंने खो दिया। यदि उनकी पार्टी २०१४ के लोकसभा के चुनाव से कार्य आरंभ करना चाहती है, तो भी सदस्य बनाने, संगठन बनाने, चुनाव कोष एकत्रित करने और ५४२ योग्य उम्मीदवारों का चयन कोई छोटी प्रक्रिया नहीं है। वर्तमान व्यवस्था में बड़ी जटिल प्रक्रिया है यह। इसके अतिरिक्त श्री केजरीवाल को राष्ट्रीय/अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दों, यथा अर्थव्यवस्था, विदेश नीति, आतंकवाद, कश्मीर, बांग्लादेशी आव्रजन, सर्वधर्म समभाव, पूंजीवाद, समाजवाद, स्वदेशी, रक्षानीति, व्यवस्था परिवर्तन, जनलोकपाल में मीडिया, एन.जी.ओ. और कारपोरेट घरानों को सम्मिलित करने के विषय में, राष्ट्रीयकरण, निजीकरण, निवेश, ऊर्जा नीति, आणविक नीति, शिक्षा, चिकित्सा, न्याय पद्धति, कृषि, उद्योग, ब्यूरोक्रेसी और आरक्षण पर अपने सुस्पष्ट विचारों से भारत की जनता को अवगत कराना चाहिए।
कांग्रेस के साथ भाजपा की विश्वसनीयता को संदिग्ध बनाकर कुछ भी हासिल नहीं होनेवाला। कल्पना कीजिए - अगर केजरीवाल के प्रयासों के कारण भाजपा की विश्वसनीयता समाप्त हो जाती है, तो देश की जनता के पास क्या विकल्प रहेगा? केजरीवाल विकल्प नहीं दे सकते। क्या भारत की जनता सन २०१४ के बाद भी अगले पांच सालों तक कांग्रेस को झेलने के लिए पुनः अभिशप्त होगी? अन्ना के आभामंडल का भरपूर दोहन कर केजरीवाल जनता में भ्रम की स्थिति का निर्माण कर रहे हैं। वे पूर्ण रूप से दिग्विजय सिंह की राह पर चल चुके हैं, परिणाम की परवाह किए बिना। हिन्दी न्यूज चैनलों के समाचार वाचकों की तरह चिल्ला-चिल्ला कर बोलने से न तो समस्याएं कम होती हैं और न समाधान निकल पाते हैं। सनसनी समाधान नहीं बन सकती।

Saturday, October 27, 2012

नौकरी के नौ सिद्धान्त - अशोक खेमका के नाम एक खुला पत्र




प्रिय खेमका जी,
हमेशा खुश रहिए।
दिनांक १६ अक्टुबर के पहले न मैं आपको जानता था और न आप मुझे। लेकिन अब तो मैं ही क्या सारा हिन्दुस्तान आपको जान गया है। मुझे जानने की आपको कोई जरुरत नहीं। वैसे भी नौकरशाही के शीर्ष पर बैठे किसी भी अधिकारी को अपने से छोटे ओहदेवालों को जानना या याद करना पद की गरिमा के अनुकूल नहीं होता। फिर भी मैं आपको बता दूं कि उत्तर प्रदेश  में एक उच्च पदस्थ अधिकारी हूं। सरकारी नौकरी करने का मेरा अनुभव आपसे १४ वर्ष ज्यादा है। उम्र भी अधिक है। अतः बिना मांगे भी मुफ़्त की सलाह आपको देने का मुझे स्वाभाविक अधिकार प्राप्त है। 
आपने हरियाणा के चकबन्दी महानिदेशक के पद पर रहते हुए १५ अक्टुबर को राज जमाता कुंवर राबर्ट वाड्रा द्वारा डीएलएफ को बेची गई ३.५३ एकड़ ज़मीन का म्यूटेशन (दाखिल खारिज़) रद्द कर दिया। यह म्यूटेशन २० सितंबर को गुड़गांव के कर्त्तव्यनिष्ठ, वफ़ादार और आज्ञाकारी सहायक चकबन्दी अधिकारी ने किया था। आपने बिना सोचे-समझे सहायक चकबन्दी अधिकारी का आदेश रद्द कर दिया। उसी दिन आपका तबादला कर दिया गया। यह तो होना ही था। शुक्र कीजिए कि हरियाणा एक छोटा प्रान्त है। हुड्डा जी आपका ट्रान्सफर कहां करेंगे - चन्डीगढ़, गुड़गांव, भिवंडी या हिसार। सारी जगहें राजमाता की राजधानी के पास ही हैं। कल्पना कीजिए, आप यू.पी. में होते! ऐसे अपराध के लिए आपका ट्रान्सफर पीलीभीत से बलिया या नोएडा से सोनभद्र भी हो सकता था। पता नहीं आपको नौकरी का सहूर क्यों नहीं आता। आपने मसूरी और हैदराबाद में सही प्रशिक्षण लिया भी था अथवा नहीं? २० साल की नौकरी में ४३ तबादले! अपने तौर-तरीके बदलिए ज़नाब वरना केजरीवाल की तरह सड़क पर आने के अलावा कोई चारा नहीं बचेगा। उन्हें तो अन्ना जैसा एक गाड फादर मिल गया। आपको कौन मिलेगा? माना कि आप नौकरशाही के शीर्ष पद पर हैं, पर हैं तो नौकर ही न। जिस तरह न्यूटन ने गति के तीन नियम प्रतिपादित किए थे उसी तरह सरकारी नौकरी में सफलता के लिए मैंने नौ नियम प्रतिपादित किए हैं। मुगल काल से लेकर आज तक जिसने भी इन नियमों का ईमानदारी और निष्ठा से पालन किया है, उसकी दसों उंगलियां हमेशा शुद्ध देसी घी में रही हैं। अपने लंबे शोध और अनुभव के आधार पर मैंने इन्हें लिपिबद्ध किया है। आप बहुत बड़े आई.ए.एस. आफिसर हैं। मेरे इस शोध के लिए मेरा नाम अगर नोबेल प्राइज़ के लिए भेजने में यदि दिक्कत हो तो कम से कम रेवड़ी की तरह बंटने वाले राष्ट्रीय पद्म पुरस्कारों के लिए अनुमोदित तो कर ही सकते हैं। आप तो जानते ही हैं कि बिना पैरवी के सरकारी नौकरी में वार्षिक वेतनवृद्धि भी नहीं मिलती। विषयान्तर हो गया। कभी-कभी मेरा मन भी Inadia Against Corruption के नेताओं की तरह लक्ष्य से भटक जाता है।
सरकारी नौकरी के नौ सिद्धान्त
१. सदैव याद रखें - बास हमेशा सही होता है - Boss is always right.
२. अपने बास को कभी ‘ना’ मत कहो - Never say `No' to your boss.
३. इस देश में दो तरह का राजस्व होता है - (अ) पी.आर. (personal revenue), (ब) एस.आर (State revenue)
             पी.आर. बढ़ाने के लिए सतत त्रुटिहीन तकनीक डिजाइन करो।
४. प्राप्त पी.आर. का मात्र ५०% ही अपनी आनेवाली सात पीढ़ियों के लिए सुरक्षित जगह पर रखो। शेष ५०% को मंत्रियों, नेताओं, बास और मीडिया में ईमानदारी से बांट दो।
५. हमेशा आज्ञाकारी रहो और हर हाइनेस (Her Highness)  यानि Mrs. Boss की हर पुकार पर एक पैर पर खड़े रहो।
६. श्रीमती बास की मखमली गोद में खेलते हुए अपने बास के सफ़ेद, प्यारे, नन्हे पामेलियन बबुआ कुत्ते को हमेशा पुत्रवत स्वाभाविक प्यार और स्नेह दो।
७. इस तथ्य को हृदयंगम कर लो कि तुम सत्ताधारी पार्टी के नौकर हो, केन्द्र या राज्य सरकार के नहीं।
८. काम कम दिखावा ज्यादा - Work less, show more.
९. बातें कम, सुनना ज्यादा - Talk less, listen more.
खेमका भाई! आप मेरे छोटे भाई की तरह हैं। इसलिए मैंने ३४ वर्षों के अनुभव के आधार पर स्वयं द्वारा प्रतिपादित इन शाश्वत सिद्धान्तों को आपके हित में सार्वजनिक किया। आप इन सूत्रों को अमली जामा पहनाइए। फिर देखिए यू.पी. की नीरा यादव, अखंड प्रताप सिंह और सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश बाल कृष्णन की तरह लक्ष्मी आपकी दासी होंगीं और कुबेर सबसे विश्वस्त दास। रिटायरमेन्ट के बाद भी नौकरी पक्की।
कम लिखना, ज्यादा समझना।
                               ।इति।
       शुभकामनाओं के साथ,
                                                   आपका शुभचिन्तक
                                                    यादव सिंह कृष्णन

Wednesday, October 17, 2012

राष्ट्रीय जमाता - वाड्रा बाबू




भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है। यहां अपने-अपने धर्म की रीति और परंपराओं के अनुसार जीने का हर नागरिक को अधिकार है। अपने देश में जमाता को विशेष दर्ज़ा मिला हुआ है। विवाह के पूर्व भी वह दान-दक्षिणा, जिसे मूर्ख लोग दहेज कहते हैं, लेता है और विवाह के पश्चात भी जीवन भर बर-बिदाई लेना उसका जन्मसिद्ध अधिकार है। इतना ही नहीं, ससुराल में पत्नी की सुन्दर बहनों, सहेलियों और भाभियों से छेड़छाड़ का भी अधिकार उसे परंपरा से प्राप्त है। बारात दरवाजे पर लगते समय बाजा की आवाज़ जहां तक जाती है, वहां तक के लोग स्वतः उसके साले-ससुर और साली-सरहज बन जाते हैं। दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र, हमारा भारत महान नेहरू परिवार की जागीर है। तभी तो आपातकाल के दौरान तात्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष स्वर्गीय देवकान्त बरुआ जी ने घोषणा की थी - India is Indira and Indira is India. आज की तिथि में भी यह पवित्र घोषणा सोनिया जी पर लागू होती है। उन्हें भारत महान में राजमाता का दर्ज़ा प्राप्त है। राहुल बाबा युवराज हैं, प्रियंका बिटिया राजकुमारी और वाड्रा बाबू कुंवरजी यानि राष्ट्रीय जमाता हैं। जमाता जब भी ससुर गृह, ससुर के भ्राता गृह या ससुर के अभिन्न मित्र गृह में विशेष अतिथि के रूप में पदार्पण करता है, तो उसके स्वागत की विशेष तैयारियां होती है - तरह-तरह के व्यंजन - आमिष-निरामिष बनते हैं, सुन्दर सालियां चुहलबाज़ी और संगीत से मनोरंजन करती हैं, गांव के जवान और बुज़ुर्ग भक्तिभाव से उसका प्रवचन सुनते हैं और विदाई के वक्त अपनी औकात के अनुसार उसकी ज़ेबें नोटों से भर देते हैं। किसी की औकात पांच रुपए की होती है, किसी की ग्यारह, किसी की इक्यावन, तो किसी की एक सौ एक की। लेकिन ज़रा यह भी सोचिए कि हमारा राष्ट्रीय जमाता यदि डीएलएफ़ के मालिक के.पी.सिंह, जिनसे गांधी परिवार के घनिष्ठ संबंध हैं, के घर जाता है, तो क्या वे जमाता की विदाई एक सौ एक रुपए से करेंगे? उनके पास लाखों करोड़ रुपयों की घोषित-अघोषित संपत्ति है। यदि उन्होंने अपनी और राष्ट्रीय जमाता के सोसल स्टेटस को ध्यान में रखते हुए जमाई राजा की विदाई ८५ करोड़ से कर ही दी, तो इसमें शोर मचाने वाली कौन सी बात है? जमाई राजा ने ठीक ही कहा है कि श्री के.पी.सिंह के साथ उनका पारिवारिक उठना-बैठना है। दोनों के बच्चे एक ही स्कूल में पढ़ते हैं। हमलोगों में लेन-देन चलता रहता है। जमाई राजा की इतनी शानदार बर-बिदाई करने वालों में डीएलएफ अकेले नहीं है। उसके साथ बेदरवाला इन्फ़्राप्रोजेक्ट, निखिल इन्टरनेशनल और वी.आर.एस. इन्फ़्रास्ट्रक्चर भी शामिल हैं। केजरीवाल पगला गया है या ईर्ष्या की आग में जल रहा है। हो सकता है ससुराल से उसको एक धेला भी न मिला हो। भाजपा भी अपने हिन्दू परंपराओं से दूर जा रही है। सरकार की आलोचना का मतलब यह तो नहीं कि राष्ट्रीय जमाता को ही कटघरे में खड़ा कर दिया जाय? राबर्ट बाबू जैसे सोनिया जी के दामाद हैं, वैसे ही सुषमा जी के हैं। वे जैसे राहुल बाबा के जीजा हैं, वैसे ही अरविन्द केजरीवाल के भी हैं। रिश्तों की नज़ाकत तो इनलोगों को समझना ही चाहिए। राजनीतिक महत्वाकांक्षा अपनी जगह सही हो सकती है, लेकिन भारत महान की स्वस्थ धार्मिक परंपराओं का अपमान, चाहे वह भाजपा की ओर से हो, अरविन्द केजरीवाल की ओर से हो या स्वयं अन्ना जी की ओर से हो, बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। 
राष्ट्रीय जमाता पर कुछ सिरफिरे आरोप लगा रहे हैं कि उन्होंने राजमाता के प्रभाव का अपने हित में उपयोग किया।   ये लोग यह भूल जाते हैं कि जनवरी २००२ में राबर्ट बाबू ने सार्वजनिक रूप से यह कहा था कि उनके पिता और भाई, दोनों ही उनके गांधी परिवार का दामाद होने का नाज़ायज़ लाभ उठाना चाहते हैं। नाराज़ पिता ने पुत्र के इस सुकृत्य पर मानहानि का दावा भी किया था। शायद वे यह भूल गए थे कि सोनिया जी ने कन्यादान नहीं किया था बल्कि उन्होंने पुत्रदान किया था। ऐसे सिद्धान्तप्रिय और निष्पक्ष जमाता पर लाभ लेने का आरोप लगाना घोर निन्दनीय कृत्य है।
जिस कार्य के लिए राष्ट्रीय जमाता जी को ‘भारत रत्न’ मिलना चाहिए उसी काम के लिए कुछ असामाजिक तत्त्व उनकी आलोचना कर रहे हैं। यार-दोस्तों से किसी तरह ५० लाख रुपए जुटाकर अपनी कंपनी ‘एरटेक्स’ शुरु की थी जमाई राजा ने। २००७ से २०१० के बीच उन्होंने अपनी प्रतिभा, कुशलता, संपर्क, दूरदृष्टि और कठिन श्रम के बूते स्काईलाइट हास्पीटलिटी, स्काईलाइट रियलिटी, ब्लू ब्रिज ट्रेडिंग और नार्थ इंडिया आई.टी. पार्क जैसी चार बड़ी कंपनियां खड़ी कर दीं। ये सभी कंपनियां २६८, सुखदेव विहार, नई दिल्ली के एक ही मकान से चलती हैं। इन सबकी निदेशक राजमाता की एकमात्र समधिन श्रीमती मारिन वाड्रा हैं। बिना कर्मचारियों के इन कंपनियों ने आशा से अधिक मुनाफ़ा कमाया है। राबर्ट बाबू आजकल ३०० करोड़ रुपए के मालिक हैं। उनके अनुभवों को देशहित तथा युवा उद्यमियों के हित में देश के प्रत्येक व्यक्ति के पास पहुंचाना हम सबका पुनीत राष्ट्रीय कर्त्तव्य है। इंडियन इन्स्टीच्यूट आफ मैनेजमेन्ट, इंडियन इन्स्टीच्यूट आफ टेक्नोलाजी तथा देश के सभी कामर्स कालेजों में राबर्ट बाबू का लेक्चर आयोजित करना चाहिए, उन्हें डाक्टर आफ मैनेजमेन्ट की मानद उपाधि से सम्मानित करना चाहिए। लेकिन हो इसका उल्टा रहा है। नेता और उद्योगपति को भारी छूट प्राप्त है - नेता को सैकड़ों करोड़ का चारा खाने का अधिकार है, कोलटार पी जाने का अधिकार है, कोयला खा जाने का अधिकार है। टाटा, माल्या, अंबानी, जिन्दल.........को दोनों हाथों से देश की पूंजी लूटने का अधिकार है। हमारे राष्ट्रीय जमाता ने ३०० करोड़ की पूंजी क्या बना ली, सब की आंख लग गई। बुरी नज़र वाले, तेरा मुंह काला।
दक्षिण भारत से एक समाचार पत्र निकलता है - The Hindu. नाम तो हिन्दू है लेकिन काम है पूरी तरह अहिन्दू का। दिनांक ११.१०.१२ के अंक में अखबार लिखता है - सरकारी कारपोरेशन बैंक, मंगलोर ने राबर्ट बाबू को महज़ एक लाख की जमा राशि पर २००७-०८ में ८ करोड़ रुपया उनकी स्काईलाइट हास्पीटलिटी को हंसते-हंसते दे दिया। अरे भाई! दामाद को कुछ भी देने में दिल हमेशा रोता है लेकिन चेहरे को तो हंसना ही पड़ता है। अखबार आगे लिखता है कि जमाई राजा ने अन्य स्रोतों से भी कुछ इसी तरह १५.३८ करोड़ रुपए जुटाए और मनेसर, हरियाणा में जमीन खरीदी। वही जमीन डीएलएफ को ५८ करोड़ में बेंच दी। दिनांक १२.१०.१२ के अमर उजाला में जमीन-खरीद का एक समाचार ओम प्रकाश चौटाला जी ने दिया है। चौटाला जी कहते हैं कि मेवात जिले में फ़िरोजपुर झिनका के शकरपुरी गांव में २९ एकड़ जमीन, जमाई राजा ने मुख्यमंत्री हुड्डा के आशीर्वाद से सस्ते में खरीद ली है। कलेक्टर रेट १६ लाख रुपए प्रति एकड़ था, मार्केट रेट ४५ लाख रुपए प्रति एकड़ था मगर राबर्ट बाबू ने मात्र २ लाख रुपए प्रति एकड़ की दर से यह अचल संपत्ति खरीदी। इसके बदले अहमद परिवार को उनके मूल गांव खानपुर की जमीन को रेजिडेन्सियल ज़ोन में तब्दील करा दिया गया। भारत की सभ्यता दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यता है; लेकिन इस महान सभ्यता और संस्कृति की सही जानकारी न तो अमर उजाला को है, न दि हिन्दू को है, न केजरीवाल को है और ना ही ओम प्रकाश चौटाला को है। इन्हें शर्म भी नहीं आती, दामाद पर उंगली उठाते हुए। इस मामले में भारत सरकार की भूमिका प्रशंसनीय है। सभी मंत्री और सभी कांग्रेसी सियार एक साथ, एक जगह बैठकर, एकजुट हो, मुंह को उपर करके एक स्वर में क्या सुन्दर राग अलाप रहे हैं - हमारा दामाद भ्रष्टाचारी नहीं हो सकता। जय राजमाता! जय राज जमाता!!

Thursday, October 4, 2012

हम सेक्युलर हैं





हम सेक्युलर हैं, क्योंकि --

१. हम भारत के संविधान में निहित प्रावधानों का उल्लंघन करके अल्पसंख्यकों को आरक्षण देते हैं।

२. हम बांग्लादेश के घुसपैठी मुसलमानों का हिन्दुस्तान में सिर्फ़ स्वागत ही नहीं करते, बल्कि राशन कार्ड और मतदाता पहचान पत्र बनवाकर भारत की नागरिकता भी देते हैं।

३. हम हिन्दू-तीर्थस्थलों की यात्रा के लिए एक पैसा भी नहीं देते, उल्टे टिकट और अन्य सुविधाओं के लिए सर्विस टैक्स भी वसूलते हैं।

४. हम सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले को दरकिनार करके हज़ यात्रियों को हिन्दुओं पर जाजिया टैक्स लगाकर भारी सब्सिडी देते हैं।

५. हम हिन्दुओं के लिए एक पत्नी रखने का कानून बनाते हैं और मुसलमानों के चार पत्नियां रखने के अधिकार को जायज ठहराते हैं।

६. हम हिन्दू लड़कियों के घटते वस्त्र को नारी स्वातंत्र्य का जीवन्त उदाहरण मानते हैं और मुसलमानों की बुर्का प्रथा का समर्थन करते हैं।

७. हम भारत माता और हिन्दू देवी-देवताओं की नंगी तस्वीर बनाने वाले को सर्वश्रेष्ठ पेन्टर का खिताब देते हैं।

८. हम भारत माता को सार्वजनिक रूप से डायन कहने वाले को कैबिनेट मंत्री के पद से सम्मानित करते हैं।

९. हम राष्ट्रगीत "वन्दे मातरम" को अपमानित करने वालों को राज्य और केन्द्र सरकार में ऊंचे ओहदे देते हैं।

१०. हम १५ अगस्त के दिन पाकिस्तानी झंडा फ़हराने वालों और तिरंगा जलानेवालों को दिल्ली में बुलाकर बिरयानी खिलाकर वार्त्ता करते हैं।

११. हम कश्मीर घाटी से हिन्दुओं को जबरन खदेड़े जाने पर चुप्पी साध लेते हैं और असम के कोकराझार के बांग्लादेशियों के विस्थापन को राष्ट्रीय शर्म (शेम) मानते हैं।

१२.हम अमेरिका में बनी फ़िल्म "इनोसेन्स आफ़ मुस्लिम्स" के खिलाफ़ हिन्दुस्तान में हर तरह के प्रदर्शन, हिंसा, दंगा, तोड़फ़ोड़ और आगजनी को जायज मानते हैं।

१३.हम गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस की बोगियों में आग लगाकर हिन्दुओं को ज़िन्दा जला देने की घटना पर चुप्पी साध लेते हैं और प्रतिक्रिया में उपजी हिंसा को दुनिया की सबसे बड़ी सांप्रदायिक घटना मानते हैं।

१४.हम देश के बंटवारे के लिए जिम्मेदार मुस्लिम लीग से केरल और केन्द्र में सत्ता की साझेदारी करते हैं और राष्ट्रवादी संगठन आरएसएस पर बार-बार प्रतिबंध लगाते हैं।

१५ हम बाबरी ढांचा गिराने के अपराध में यूपी, एमपी, राजस्थान और सुदूर हिमाचल प्रदेश की सरकारें पलक झपकते बर्खास्त करते हैं तथा कश्मीर में मन्दिरों को तोड़नेवालों के साथ सत्ता की साझेदारी करते हैं।

१६.हम मदरसों में आतंकवाद की शिक्षा देनेवालों को सरकारी अनुदान देते हैं एवं सरस्वती शिशु मन्दिरों पर नकेल लगाते हैं।

१७. हम भारतीय नरेन्द्र मोदी को राष्ट्रीय खलनायक मानते हैं और इटालियन को राजमाता - Long live our queen.

१८. हम भारत के प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद, सरदार पटेल और कन्हैया लाल माणिक लाल मुन्शी के प्रयासों से सोमनाथ मन्दिर के पुनर्निर्माण को सेक्युलर मानते हैं और राम मन्दिर निर्माण को घोर सांप्रदायिक।

१९.हम रामसेतु तोड़कर जलमार्ग बनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं और बाबरी निर्माण के लिए भी कृतसंकल्प हैं।

२०. हम १९८४ के सिक्खों के कत्लेआम को इन्दिरा गांधी की मृत्यु से उत्पन्न सामान्य प्रतिक्रिया मानते हैं और गुजरात की हिंसा को महानतम सांप्रदायिक घटना।

२१.हम मज़हब के आधार पर देश के विभाजन को मिनारे पाकिस्तान पर जाकर मान्यता देते हैं और अन्यों को भी भविष्य में इसी घटना की पुनरावृत्ति के लिए प्रोत्साहन देते हैं।

२२. हम देश की प्राकृतिक संपदा पर मूल निवासी होने के कारण मुसलमानों का पहला हक मानते हैं और हिन्दुओं (आर्यों) को बाहर से आया हुआ बताते हैं।

२३. हम मस्जिदों में जमा अकूत आग्नेयास्त्रों की खुफ़िया जानकारी प्राप्त होने के बाद भी छापा नहीं मारते हैं और हिन्दू मन्दिरों की संपत्ति छापा डालकर रातोरात ज़ब्त कर लेते हैं।

२४. हम मन्दिरों की संपत्ति और रखरखाव के लिए सरकारी ट्रस्ट बना देते हैं और अज़मेर शरीफ़, ज़ामा मस्ज़िद की संपत्ति से नज़रें फेर लेते हैं।

२५. हम हिन्दुओं के शादी-ब्याह, जन्म-मृत्यु, उत्तराधिकार, जीवन शैली, पूजा-पाठ के लिए सैकड़ों कानून बना देते हैं लेकिन मुस्लिम पर्सनल ला की चर्चा करना भी अपराध मानते हैं।

२६. हम मुसलमानों को रास्ता रोककर नमाज़ पढ़ने की इज़ाज़त देते हैं और मन्दिर प्रांगण में एकत्रित श्राद्धालुओं पर लाठी चार्ज करते हैं।

२७. हम "वीर शिवाजी" पर आधारित टी.वी. सिरीयल पर प्रतिबंध लगाते हैं और "मुगले आज़म" को राष्ट्रीय पुरस्कार देते हैं।

२८. हम मुसलमानों को अपना व्यवसाय खोलने के लिए आसान किश्तों पर ५ लाख रुपए का ऋण कभी न चुकाने के आश्वासन के साथ देते हैं और हिन्दू किसानों को ऋण न चुकाने के कारण आत्महत्या के लिए प्रेरित करते हैं।

२९. हम रमज़ान के महीने में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और अन्य गण्यमान व्यक्तियों द्वारा सरकारी पैसों से रोज़ा अफ़्तार का आयोजन करते हैं तथा होली-दिवाली पर एक पैसा भी खर्च नहीं करते।

३०. हम हज़रत मोहम्मद पर डेनमार्क में बने कार्टून पर बलवा करनेवालों पर लाठी के बदले फूल बरसाते हैं और राम-कृष्ण को गाली देनेवालों को पद्म पुरस्कार देते हैं।

३१. हम म्यामार और कोकराझार की घटना पर पूरी मुंबई के यातायात और संपत्ति को उग्र मुस्लिम प्रदर्शनकारियों के हवाले कर देते हैं और हिन्दुओं की बारात पर भी लाठी चार्ज करते हैं।

३२. हम पाकिस्तान से आए हिन्दुओं को ज़बरन भेड़ियों के हवाले कर देते हैं और बांग्लादेशियों के लिए स्वागत द्वार बनाते हैं।

३३. हम जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में "गोमांस पार्टी" का आयोजन करते हैं और बाबा रामदेव के शहद को प्रतिबंधित करते हैं।

३४. हम अलीगढ़ मुस्लिम युनिवर्सिटी की शाखाएं देश के कोने-कोने में खोलने के लिए सरकारी पैकेज देते हैं और काशी हिन्दू विश्वविद्यालय का अनुदान रोक देते हैं।

३५. हम आतंकवादियों के घर (आज़मगढ़) जाकर आंसू बहाते हैं और शहीद जवानों की विधवाओं और बच्चों को भगवान भरोसे छोड़ देते हैं।

३६.हम आतंकवादियों से मुठभेड़ को फ़र्ज़ी एनकाउंटर कहते हैं और हिन्दू साधु-सन्तों को आतंकवादी।

३७. हम सलमान रश्दी को भारत आने की अनुमति नहीं देते, तसलीमा नसरीन को भारत में रहने की इज़ाज़त नहीं देते लेकिन वीना मलिक को अनिश्चित काल के लिए सरकारी मेहमान बनाते हैं।

Wednesday, September 19, 2012

एक पाती सोनिया भौजी के नाम





       आदरणीय भौजी,

                  सादर परनाम!

मैं यहां खैरियत से हूं और उम्मीद करता हूं कि अमेरिका से लौटने के बाद आपकी जर-बीमारी भी भाग गई होगी। पहले आपके बारे में चिंता-फ़िकिर लगी रहती थी, लेकिन जबसे मनमोहन चाचा प्रधानमंत्री बने, तबसे मन हल्का रहता है। वे आपका बहुते खयाल रखते हैं। बनाया तो प्रधान मंत्री आपने नरसिंहा राव को भी था लेकिन वह वफ़ादार नहीं था। बोफ़ोर्स की फाइल दिखा-दिखा कर आप ही को ब्लैक मेल कर रहा था। ई सरदार ठीक है। सारा इल्जाम अपने सिर ले लेता है। इसलिए अब हमको कौनो चिन्ता नहीं रहती। अब तो आप सर्दी-जुकाम का भी इलाज़ कराने अमेरिका या इटली जा सकती हैं। आ इहवां भी कौनो परेशानी थोड़े ही है। आपके एक इशारे पर आल इन्डिया मेडिकल इन्स्टीच्यूट से लेकर मेदान्ता तक डाक्टर-बैद १०, जनपथ में १२ बजे रात में भी लाइन लगा देंगे। इ सबके बावजूद भी मन में कभी-कभी खटका होने लगता है। आखिर कौन गुप्त बीमारी आपको लग गई है कि बार-बार अमेरिका का चक्कर लगाना जरुरी हो गया है। अडवनिया कौनो जादू-टोना तो नहीं करा दिया है। होशियार रहिएगा। इ भाजपाई कुछ भी कर सकते हैं। आपकी बीमारी की बात सुनकर कभी-कभी हम नरभसा जाते हैं। रोज़ टीवी देखते हैं और अखबार भी पढ़ते हैं, लेकिन कहीं से भी कोई जवाब नहीं मिलता है। स्विस बैंक के खातों के माफिक बेमरियो को गुप्त ही रखिएगा क्या? हम पर विश्वास कीजिए। सही-सही समाचार लौटती डाक से पेठाइयेगा। ई गुप्त बात हम ना तो अडवानी को बताएंगे और ना ही सुब्रह्मण्यम स्वामी को।

एगो बात हमारी मोटी बुद्धि में नहीं आ रही है। ई फ़ेसबुकवा क्या है? इसपर आपका कवनो कन्ट्रोल नहीं है क्या? जनवरी में स्विस बैंक की एक चिठ्ठी उसपर देखी। भारत सरकार के नाम वह चिठ्ठी बैंक के मनेजर मार्टिन डिसा पिन्टो ने लिखी थी। उसमें क्रमांक-एक पर राजीव भैया का नाम था और उनके खाता नंबर - IN-155869-256648-102011 में १९८३५६ करोड़ रुपया जमा दिखाया गया था। आपके भी कई खातों में कई लाख करोड़ रुपया जमा है, ऐसा रोज़े छपता है। विदेशी बैंक के मनेजरों को थोड़ा-थोड़ा घुड़की देना जरुरी है। अगर वो सब आपसे खौफ़ खाना छोड़ दिया हो तो ओबमवा से डंटवा दीजिए। कही सब खातन के जानकारी रामदेव बबवा को हो जाएगा, तो वह बवाल खड़ा कर देगा। उसकी दवा के कारखाना में दो-चार टन अफ़ीम या हिरोइन रखवा कर उसे गिरफ़्तार कर अंडमान काहे नहीं भेजवा देती हैं। हिन्दुस्तान में रहेगा, तो रोज़े अनशन करेगा। सफ़ेद कुर्ता-धोती और टोपी पहनकर वह बुढ़वा - क्या नाम है उसका.........अन्ना हज़ारे, हां अन्ना हज़ारे ही नाम है; जब देखो रामलीला मैदान में रामलीला करने लग जाता था। ऐसा दांव मारा आपने कि उसकी मंडली ही बिखर गई। किरन बेदी बाबा के साथ चली गई और बुढ़ऊ पहुंच गए रालेगन सिद्धि। अरविन्द केजरिवलवा राजनीतिक पार्टी बना रहा है। जन लोकपाल! जन लोकपाल!! घंटा!!! करा ले पास जन लोकपाल। केजरिवलवा को राज सभा का टिकट का आफ़र देकर देखिए। वह पट सकता है।

ई भाजपाइयन को आजकल क्या हो गया है? कवनो काम करो, चिल्लाने लगते हैं। डीजल पर पांच रुपया बढ़िए गया तो क्या सुनामी आ गया? आजकल तो भिखारियो पांच रुपया का भीख नहीं लेता है। ज़रा जाइये बनारस के संकट मोचन मन्दिर में। पांच रुपए के चढ़ावे को देख पुजारी दूरे से दुरदुरा देगा। टीका लगाना तो दूर, चरणामृत भी नहीं देगा। सोना बतीस हज़ार पहुंच गया, चांदी बासठ हज़ार किलो, दाल सौ रुपया किलो, गेहूं-चावल को कौन कहे, मड़ुआ-मकई जैसा मोटा अनाज भी पचास रुपया किलो मिलता है। दूध की तो बाते छोड़िए, आजकल पानी भी पन्द्रह रुपया लीटर है। कपड़ा-लत्ता, गहना-गुरिया, खान-पान, सब्जी-तरकारी - कौन चीज सस्ता मिल रहा है? डीज़ल पर पांच रुपया बढ़िए गया तो कवन अनर्थ हो गया - गला फाड़-फाड़ कर चिल्ला रहे हैं, भारत बन्द करा रहे हैं। ई कमनिस्टन को क्या हो गया है? जिनगी भर नेहरूजी, इन्दिरा माई और राजीव भैया के चरण दबाए और अब भाजपैयन के साथ भारत बन्द करा रहे हैं। बीस तारीख को भारत बन्द होना है। घबराइयेगा मत। चुनाव अभी दू साल दूर है। शिन्दे बहुत ठीक बोलता है। दू साल में जनता सब भूल जाएगी - २-जी, कोलगेट, राष्ट्रमंडल..............सब। बस एतना ध्यान रखिएगा कि भाजपा अगले चुनाव में किसी तरह बुढ़ऊ अडवानी को ही प्रधानमंत्री बनाने का एलान कर दे। सांप भी मर जाएगा और लाठी भी नहीं टूटेगी। बुढ़ऊ कभी अटल बिहारी वाजपेयी नहीं बन सकते हैं। सुषमा और जेटली से डरने की जरुरत नहीं है। ई अरुन जेटलिया को क्रिकेट कन्ट्रोल बोर्ड का चेयरमैन काहे नहीं बनवा देती हैं? वह आपका मुरीद बन जाएगा। फिर राज सभा में आपका एको बिल नहीं रुकेगा। पूरे देश में एक ही आदमी से आपको सावधान रहना है। गुजरात का मुख्यमंत्री नरेन्दर मोदी होशियार लगता है। उसके खिलाफ़ आपलोग जितना ही बोलते हैं, वह उतना ही ताकतवर हुआ जा रहा है। बस उसी से खतरा है। जवान भाषण भी बहुते बढ़िया देता है। आपके इशारे पर नीतीश जी उसकी नाक में नकेल डालने की बहुत कोशिश किए लेकिन उसका कुछो नहीं बिगाड़ पाए। वह तो सिंह की तरह दहाड़ रहा है। गुजरात में बबुआ राहुल को चुनाव प्रचार में मत भेजिएगा। यूपी, बिहार की तरह गुजरातो में अगर पार्टी हार गई, तो अमेरिका की पत्रिकाएं जाने क्या-क्या लिखना शुरु कर दें। कही बबुआ की शादी भी खटाई में न पड़ जाय। बबुआ को ज़रा कहिए कि होम वर्क ठीक से करे। एक सलाह है - उसका भेस बदलकर दो महीने के लिए आर.एस.एस. की शाखा में भेज दीजिए। वहां से आएगा, तो अटल बिहारी की तरह भाषण देने लगेगा।

अभी कम से कम दू साल तक तो अपनी ही सरकार रहेगी। फिर भी सब मंत्रियन पर निगाह रखना जरुरी है। पता नहीं कौन आस्तिन का सांप बन जाय? सीबीआई के भरोसेमन्द खास अफ़सरों को एक-एक के पीछे जरुर लगा दीजिएगा। एफ़.डी.आई पर माया-मुलायम से डरने की जरुरत नहीं है। ये समुद्र में चलते हुए जहाज के पंछी हैं। उड़ेंगे जरुर, पर थक हार कर जहाज पर ही आएंगे। ताज़ कोरिडोर और आय से अधिक संपत्ति वाली फाइलों को अपने पर्सनल कस्टडी में रखिएगा। बस एक और आदमी से होशियार रहिएगा - बाबू मोशाय से। आपने उन्हें राष्ट्रपति बनाकर बहुत अच्छा काम किया। कैबिनेट में रहकर करते ही क्या थे - चिठ्ठी लीक करने के अलावा। लेकिन वे घायल सांप हैं। दो-दो बार उन्होंने प्रधानमंत्री की कुर्सी पर अपना दावा जताया था। अच्छा किया आपने कि उनके पर कतर दिए, नहीं तो वे दूसरे नरसिंहा राव बन जाते। फिर भी उनसे होशियार रहने की जरुरत है। हंग पार्लियामेन्ट में शंकर दयाल शर्मा की तरह वे विरोधियों का ही साथ देंगे। हम तो बस एक आदमी की वफ़ादारी के कायल हैं और वे हैं डिग्गी बाबू। वह पठ्ठा गज़ब का स्वामीभक्त है। आप ज़रा सा इशारा करती हैं और वह भूंकना चालू कर देता है। बाबा रामदेव, अन्ना हज़ारे, भाजपा और आर.एस.एस. के लाखों-करोड़ों समर्थकों को अपनी भौंक से चुप करा देता है। देखिएगा इस साल न अन्ना जन्तर-मन्तर पर कोई मन्तर पढ़ेंगे और न बाबा रामदेव रामलीला मैदान में कोई लीला करेंगे। वाह रे डिग्गी! जियो राजा।

यहां आपकी देयादिन और बाल-गोपाल एक टाइम भोजन करके भी मज़े में हैं। कल बड़की बिटिया, क्षुधा, आइसक्रीम के लिए मचल रही थी। पेट में दाना न पानी। उसे आइसक्रीम चाहिए था। मैंने उसे समझाया कि नवरात्तर में दिल्ली चलेंगे। तबतक एफ़.डी.आई. लागू हो जाएगा। तुम्हारी ताईजी तुम्हें मलाई मारकर आइसक्रीम खिलाएंगी। दोनो बेटे दीन और अभाव पयलग्गी कह रहे हैं।

                                   थोड़ा लिखना, ज्यादा समझना।

                                                 इति शुभ।

                                                                                                    आपका प्रिय देवर

                                                                                                          जनता गांधी

Tuesday, September 18, 2012

यह सरकार है या जल्लाद




स्वतंत्र भारत के ६५ वर्षों के इतिहास की यह सबसे असंवेदनशील और भ्रष्ट सरकार है। सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह के कुप्रबंधन और अक्षमता का का दुष्परिणाम महंगाई, भ्रष्टाचार, स्वार्थपरता, सत्तालोलुपता और परस्पर अविश्वास के रूप में  देश की सारी जनता भुगत रही है। समझ में नहीं आ रहा है कि यह सरकार आखिर किसके हित के लिए काम कर रही है। कारपोरेट घराने, मंत्री, सांसद, विधायक, ब्यूरोक्रैट्स और बढ़ेराओं के अलावे इस देश में कौन खुश है? अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए प्रधान मंत्री कड़े कदम उठाने की बात कर रहे हैं। संवेदनशीलता से दूर प्रधान मंत्री क्या यह बताएंगे कि उनके तथाकथित कड़े कदम के नीचे कितनी करोड़ जनता दम तोड़ेगी?
सरकार ने पेट्रोल की कीमत पहले ही ७५ रुपए प्रति लीटर पहुंचा दी। रातों रात बिना किसी घोषणा के एक्स्ट्रा प्रीमियम पेट्रोल ६.७१ रुपए महंगा कर दिया गया। तेल कंपनियों की टेढ़ी नज़र डीज़ल और रसोई गैस पर थी, सो वह कमी भी पूरी कर दी गई। डीज़ल पर ५ रुपए प्रति लीटर तथा रसोई गैस के सातवें सिलिन्डर पर ३७१ रुपए की एकमुश्त बढ़ोत्तरी सरकार की असंवेदनशीलता का सबसे बड़ा प्रमाण है। सरकार की ओर से पूरे देश को बताया जा रहा है कि बढ़ते राजकोषीय घाटे पर अंकुश लगाने के लिए मूल्यों में यह वृद्धि आवश्यक ही नहीं अपरिहार्य थी। इससे बड़ा झूठ दूसरा हो ही नहीं सकता। बोफ़ोर्स घोटाला, २-जी घोटाला, कोलगेट घोटाला, राष्ट्रमंडल खेल घोटाला, स्विस बैंक घोटालों पर लगातार झूठ बोलने के कारण सरकार को झूठ बोलने की आदत लग गई है। सच्चाई यह है कि हमारे सकल घरेलू उत्पाद के ६.९% के ऊंचे सतर पर भी राजकोषीय घाटा ५.२२ लाख करोड़ रुपया ही आएगा। पिछले वित्तीय वर्ष में इसी सरकार ने कारपोरेट खिलाड़ियों तथा धनी तबकों को पूरे ५.२८ लाख करोड़ रुपए की प्रत्यक्ष रियायतें दी है। जो पहले से ही संपन्न हैं और देश की संपदा दोनों हाथों से लूट रहे हैं, उनपर यह भारी रकम यदि नहीं लुटाई गई होती, तो सरकारी खजाने पर राजकोषीय घाटे का कोई बोझ होता ही नहीं। लेकि धनी तबकों पर भारी राशि लुटाने के बाद हमारी केन्द्र सरकार अब राजकोषीय घाटे पर अंकुश लगाने के लिए गरीबों और मध्यम वर्ग को जो भी थोड़ी बहुत सबसिडी हासिल थी, उसपर बेरहमी से कैंची चला रही है। 
जिन तेल कंपनियों के घाटे की बात कहकर डीज़ल और रसोई गैस की कीमतों में भयानक वृद्धि की गई है, क्या वे वाकई घाटे में हैं? सफ़ेद झूठ बोलते हुए इस असंवेदनशील सरकार को लज्जा भी नहीं आती। अपनी बैलेन्स शीट मे देश की विशालतम तेल तथा प्राकृतिक गैस कंपनी ओएनजीसी ने वर्ष २०११-१२ के लिए २५१२३ करोड़ रुपए के शुद्ध लाभ की घोषणा की है। इसी प्रकार इंडियन आयल कारपोरेशन ने वर्ष २०११-१२ में ४२६५.२७ करोड़ रुपए के शुद्ध लाभ की घोषणा की है। हिन्दुस्तान पेट्रोलियम ने भी मुनाफ़े की घोषणा की है। दिलचस्प बात यह है कि इस कंपनी ने पिछले वर्ष की अन्तिम तिमाही में मुनाफ़े में ३१२% की वृद्धि दर्शाई थी।
उपर लिखे गए आंकड़े कल्पना की उड़ान नहीं हैं। ये सभी आंकड़े सरकारी हैं और नेट पर उपलब्ध हैं। तेल कंपनियों ने भारी मुनाफ़ा कमाया है, भारी भ्रष्टाचार के बावजूद। तेल कंपनियों में प्रत्येक स्तर पर भ्रष्टाचार शामिल है। तेल खोजने के नाम पर कंपनियां असंख्य कुंए कागज़ पर खोदती हैं और पाट भी देती हैं। ठेकेदारों को भुगतान के बाद खुदाई और पाटने का कोई प्रमाण ही नहीं बचता। कोई सी.वी.सी. कैग या सी.बी.आई. इन घोटालों को नहीं पकड़ सकती। विदेशों से कच्चा तेल खरीदने में बिचौलियों की भूमिका बहुत बड़ी होती है। हजारों करोड़ के कमीशन की लेन-देन होती है। सरकार यदि इन भ्रष्टाचारों पर अंकुश लगा दे और उत्पाद शुल्क में ५०% तथा अन्य टैक्सों में २५% की कटौती कर दे, तो पेट्रोल २५ रुपए प्रति लीटर, डीज़ल १५ रुपए प्रति लीटर तथा रसोई गैस का एक सिलिंडर १५० रुपए में प्राप्त होगा। 
देश की जनता के साथ बहुत बड़ी धोखाधड़ी की जा रही है। महंगाई के बोझ तले पहले ही पिस रही जनता पर और भारी बोझ डाल दिया गया है। बरबस ही मुंह से निकल पड़ता है - यह सरकार है या जल्लाद। अगर किसी तरह सिर्फ़ सोनिया गांधी के विदेशी बैंकों में जमा धन को वापस देश में लाया जा सकता हो, तो पेट्रोलियम उत्पादों में किसी तरह की मूल्यवृद्धि की आवश्यकता नहीं होगी। क्या जनता का इस तरह शोषण करने वाली असंवेदनशील सरकार को सत्ता में रहने का अधिकार है? ज़िन्दा कौमें पांच साल इन्तज़ार नहीं करतीं।

Tuesday, September 11, 2012

हथौड़े की आखिरी चोट





न्यूटन के गति के दूसरे नियम से कृत कार्य को परिभाषित किया गया, जो निम्नवत है -

कार्य = बल*विस्थापन

(Work done = Force.displacement)

इस नियम के तहत यदि बाबा रामदेव और अन्ना हज़ारे के आन्दोलन से प्राप्त परिणाम की समीक्षा की जाय, तो वह शून्य होगा। दोनों आन्दोलनों में बल तो भरपूर लगा, लेकिन विस्थापन शून्य रहा। न तो जनलोकपाल बिल कानून का रूप ले सका और ना ही काले धन की एक चवन्नी भी भारत में वापस आ सकी। भौतिक विज्ञान के अनुसार परिणाम शून्य के अतिरिक्त कुछ हो ही नहीं सकता। आजकल मीडिया भी इसी सिद्धान्त को सही मानकर अन्दोलन की सफलता का आंकलन कर रही है। और तो और, अन्ना के मुख्य सलाहकार अरविन्द केजरीवाल भी तत्काल लाभ न मिल पाने के कारण विक्षिप्त और दिग्भ्रान्त हो, राजनीतिक पार्टी बनाने की दिशा में कार्य कर रहे हैं। उनकी समझ ही में नहीं आ रहा है कि कौन चोर है और कौन सिपाही। वे सिपाही का भी घेराव कर रहे हैं और चोर का भी। महात्मा गांधी भी अगर अपने आन्दोलनों की सफलता या असफलता से उत्साहित या हतोत्साहित होकर ऐसे कदम उठाते, तो आज़ादी प्राप्त नहीं हो पाती।

कार्य की शून्य अंकगणितीय उपलब्धि के आधार पर लगाए गए बल या ऊर्जा की गणना नहीं की जा सकती। विस्थापन भले ही न हुआ हो, लेकिन ऊर्जा तो लगी ही। एक पत्थर पर जोर से मारे गए हथौड़े के प्रथम या द्वितीय प्रहार का, कोई आवश्यक नहीं कि असर दिखे, परन्तु यह भी सत्य है कि हथौड़े के लगातार प्रहार से ही पत्थर टूटते हैं। यह किसी को नहीं पता कि आखिर वह अन्तिम प्रहार कौन सा होगा जिससे पत्थर टूटेगा -- हथौड़ा चलाने वाले को भी नहीं।

भारत की सरकार ने, प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह और सुपर पी.एम. सोनिया गांधी के नेतृत्व में भ्रष्टाचार को आम आदमी के जीवन का एक अभिन्न अंग बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है। बोफ़ोर्स के सिर्फ़ ६५ करोड़ रुपए के कमीशन के कारण राजीव गांधी की कुर्सी चली गई, लेकिन अब हज़ारों/लाखों करोड़ के घोटालों पर भी जनता प्रायः चुप ही रहती है। सरकार ने जनता की मनोदशा बदलने में आंशिक सफलता भी प्राप्त की है। आम जनता ने राजनेताओं से शुचिता, सच्चरित्र और ईमानदारी कि अपेक्षा छोड़ दी है। किसी दूसरे देश में राष्ट्रमण्डल खेल घोटाला, २-जी घोटाला, कोल घोटाला, चारा घोटाला, खनन घोटाला, ताज़ कोरिडोर घोटाला, संसद के अन्दर नोट के बदले वोट घोटाला, आदर्श सोसाइटी घोटाला, विदेशों में जमा काला धन घोटाला ......................जैसी घटनाएं घटी होतीं, तो सत्ता कब की बदल गई होती। क्या राष्ट्रपति सुकर्णो, सद्दाम हुसेन, कर्नल गद्दाफ़ी या हुस्नी मुबारक के पास स्विस बैंकों में सोनिया गांधी से ज्यादा धन जमा था?

भारत कि जनता में विश्व के अन्य देशों की तुलना में धैर्य की मात्रा अधिक होती है। वह वर्षों खामोशी से प्रतीक्षा करती है। इन्दिरा गांधी की इमर्जेन्सी में गजब की शान्ति थी। विरोध में आवाज़ उठाने वाले को अविलंब जेल में ठूंस दिया जाता था। सारे नेता जेल में बन्द थे। सभी जगह श्मशान की शान्ति थी। इस शान्ति को इन्दिरा जी ने जनता का अपने पक्ष में समर्थन समझा और चुनाव करवाने की भूल कर बैठीं। स्वयं तो पराजित हुई ही, पूरे देश से कांग्रेस का भी सूपड़ा साफ़ करा बैठीं। विभिन्न घोटालों पर जनता की चुप्पी कुछ इसी तरह की है। अन्ना, रामदेव और भाजपा का हथौड़ा चल रहा है। पत्थर तो टूटना ही है। बस देखना यह है कि वह सन २०१४ में टूटता है या उसके पूर्व।

Wednesday, August 29, 2012

सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा और गुजरात




हिन्दू धर्मशास्त्रों में कहा गया है कि ऐसा कोई अक्षर नहीं, जिससे कोई मन्त्र न बना हो और ऐसा कोई दिन नहीं, जिसमें शुभ घड़ी न हो। इसी प्रकार अब यह कहा जा सकता है कि पृथ्वी पर ऐसा कोई स्थान नहीं जहां प्राकृतिक संपदा उपकब्ध न हो। अपने देश के गुजरात प्रान्त ने पिछले १० वर्षों में पूर्व में गुजरात के लिए अभिशप्त वस्तु को अपने लिए वरदान में परिणत कर, इसे सिद्ध किया है। गुजरात प्रान्त सदियों से दो प्राकृतिक अभिशापों से त्रस्त था - पहला सूर्य की प्रखर किरणों के कारण बढ़ते रेगिस्तानी इलाकों से और दूसरा १६०० किलोमीटर के हिन्दुस्तान के सबसे लंबे समुद्री तट से। गुजरात में पूरे वर्ष लगभग ३०० दिनों में आकाश साफ रहता है और सूर्यदेव अपनी पूर्ण प्रखरता से पृथ्वी पर अपनी किरणें प्रेषित करते हैं। पूरे गुजरात में जल का अभाव था। परिणाम यह निकला कि कच्छ का रेगिस्तानी क्षेत्र बढ़ने लगा। कच्छ की महिलाएं कई किलोमीटर दूर से पीने का पानी पैदल चलकर लाती थीं। लेकिन नर्मदा पर सरदार सरोवर और उससे निकलीं नहरों के कारण गुजरात की तस्वीर ही बदल गई। सरदार सरोवर से निकली नहरों के कारण कच्छ के प्रत्येक गांव और घर में आज की तिथि में पर्याप्त जल उपलब्ध है। सूर्य से मुफ़्त में मिलनेवाली सौर ऊर्जा का उपयोग करने का गुजरात ने मन क्या बनाया, देश-विदेश के कई निवेशकों ने कई सौर ऊर्जा केन्द्र स्थापित कर दिए। गुजरात के पास सौर ऊर्जा से १०००० मेगावाट बिजली-उत्पादन की क्षमता है। राज्य सरकार ने Renewable Energy programme का क्रियान्यवन अत्यन्त गंभीरता से किया है। गुजरात एनर्जी डेवलेपमेन्ट एजेन्सी (GEDA) ने इस क्षेत्र में ६१२८९ करोड़ रुपए के देशी/विदेशी निवेशकों से ७७६१ मेगावाट, सौर ऊर्जा से विद्युत उत्पादन हेतु ६६ एग्रीमेन्ट किए हैं। जून, २०१२ तक ६९० मेगावाट का विद्युत उत्पादन आरंभ हो चुका था। और आगामी दिसंबर तक पावर ग्रिड में सौर विद्युत के ३०० मेगावाट और जुड़ जाएंगे। अन्तिम लक्ष्य १०००० मेगावाट सौर विद्युत ऊर्जा का है। 
गुजरात के पाटन जिले के चरंक गांव में ३०० एकड़ की ऊसर जमीन पर एशिया के सबसे बड़े सोलर पार्क - गुजरात सोलर पार्क की स्थापना की गई है। भारत में अपने तरह का यह अनोखा पार्क २१४ मेगावाट की सौर विद्युत ऊर्जा का उत्पादन कर रहा है। प्रदेश के तेरह और जिलों में सोलर पार्क बनाने की योजना पर तेजी से काम चल रहा है। इसके कारण राज्य को ४७६ मेगावाट की बिजली प्राप्त होगी। गांधी नगर को आधुनिक सोलर सिटी भी कहा जाने लगा है। इस शहर के आवासीय क्षेत्रों के बड़े-बड़े मकानों की खुली छतों पर सोलर रूफ लगाए गए हैं जिससे ५ मेगावाट की बिजली प्राप्त होती है। अन्य पांच महानगर - सूरत, बदोदरा, राजकोट, भाव नगर और मेहसाना भी सोलर रूफ के लिए चयनित हो चुके हैं। जिस गति से सौर ऊर्जा से विद्युत ऊर्जा के उत्पादन का कार्य चल रहा है, उससे यह प्रबल आशा बंधती है कि आगामी ५ वर्षों में गुजरात १०००० मेगावाट के अपने सौर विद्युत उत्पादन के लक्ष्य को निश्चित रूप से प्राप्त कर लेगा। 
इसी तरह गुजरात ने अपने १६०० किलोमीटर लंबे समुद्री तटों से तेज रफ़्तार से आती हुई हवा से भी विद्युत ऊर्जा प्राप्त करने की दिशा में तेजी से कदम उठाए हैं। गुजरात के पास विंड पावर जेनेरेशन की १०००० मेगावाट की क्षमता है। राज्य सरकार ने कई विंड मिल लगाकर अबतक अपने पावर ग्रिड में २९३४ मेगावाट जोड़ भी दिया है। ये सारे कार्य गुजरात ने केन्द्र सरकार के असहयोग और बिना किसी वित्तीय सहायता के अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति के सहारे स्वयं और देशी/विदेशी निवेशक जुटाकर पूरे किए हैं।
सौर ऊर्जा और हवाई ऊर्जा (Solar Energy & Wind Power EnergY)  को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करने में किसी प्रकार का प्रदूषण नहीं होता। ९०% विश्वसनीयता से विद्युत उत्पादन करने वाले ऐसे सभी संयंत्र प्रर्यावरण-मित्र होते हैं। 
गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी कोई इंजीनियर नहीं हैं लेकिन उनके पास जवाहर लाल नेहरू और ए.पी.जे. कलाम की तरह एक दृष्टि (Vision) है। उनकी दूरदृष्टि और दृढ़ संकल्प के कारण गुजरात  सौर ऊर्जा एवं पवन ऊर्जा के अतिरिक्त अपनी ४६९० मेगावाट की तापीय बिजली तथा सरदार सरोवर की १४५० मेगावाट की पनबिजली के बल पर बिजली के डिमांड और सप्लाई के बीच की चौड़ी खाई को पूर्णतः पाटने में सफल रहा है। जब सारा हिन्दुस्तान बिजली की कमी का रोना रो रहा हो, उसी समय गुजरात के प्रत्येक गांव और शहर में चौबीस घंटे की निर्बाध विद्युत आपूर्ति सुखद आश्चर्य से कम नहीं है। अगस्त के प्रथम सप्ताह में ग्रिड से अत्यधिक बिजली लेने के कारण उत्तरी, पूर्वी और पूर्वोत्तर का नेशनल पावर ग्रिड दो दिन के अन्तराल पर दो बार फेल हुआ लेकिन पश्चिमी ग्रिड पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा क्योंकि गुजरात के पास अपनी आवश्यकता से अधिक बिजली उपलब्ध है। पिछले २०, अगस्त को गुजरात १३३५४ मेगावाट बिजली का उत्पादन कर रहा था, लेकिन आवश्यकता मात्र १०००० मेगावाट की थी। थर्मल बैकिंग द्वारा उत्पादन कम करके फ़्रिक्वेन्सी मेन्टेन की गई। आज भी अधिक उत्पादन के कारण ५ पावर प्लान्ट बंद हैं। ऐसा सिर्फ विकसित देशों में होता है। विकासशील या पिछड़े देशों के लिए यह घटना मात्र एक कल्पना है। 
उत्तर प्रदेश और बिहार के लोगों के लिए गुजरात की वर्तमान पावर पोजिशन  एक आश्चर्यजनक घटना हो सकती है, लेकिन यह सत्य है। यू.पी. और बिहार, दोनों राज्यों के मुख्य मंत्री इंजीनियरिंग स्नातक हैं। दोनों ही राज्यों में संसाधनों की भी कोई कमी नहीं है; कमी मात्र दृष्टि (Vision) और सुशासन (Good Administration) की है। यही बात पूरे भारत पर भी लागू होती है।
    (सभी आंकड़े वाइकीपीडिया से साभार)

Friday, August 17, 2012

असम की समस्या - एक अनुत्तरित प्रश्न




    

      बांग्लादेशियों के कारण उत्पन्न असम की समस्या को बोडोलैण्ड, कोकराझार  या स्थानीय समस्या समझना ऐतिहासिक भूल होगी। अखण्ड भारत और वर्तमान भारत में यह समस्या कितनी बार आई, इसकी गणना असंभव है। आज़ादी के पूर्व जिन्ना की  मुस्लिम लीग के "डाइरेक्ट एक्शन" का परिणाम इतिहास के काले पृष्ठों में आज भी दर्ज़ है। आज जो समस्या लघु असम झेल रहा है, वही समस्या आज़ादी के पूर्व वृहद आसाम, पूरा बंगाल और आज के पाकिस्तान ने झेली थी जिसका परिणाम देश के विभाजन के रूप में सामने आया। अपने देश में विभिन्न धर्मावलंबी रहते हैं, लेकिन यदि एक विशेष धर्मावलंबी समुदाय शान्तिपूर्ण सह अस्तित्व में विश्वास करना छोड़ दे और दूसरे धर्मावलंबियों के विश्वासों, परंपराओं और रहन-सहन को बलात परिवर्तित करना चाहे, तो क्या होगा? असम की समस्या, कश्मीर की समस्या और देशव्यापी इस्लामी आतंकवाद की समस्या के पीछे एक समुदाय विशेष की यही मानसिकता मूल कारण है। भारत ही नहीं, पूरा विश्व इस समस्या से जूझ रहा है। रूस चेचेन्या से परेशान है, म्यामार बांग्लादेशियों से, चीन सिक्यांग से, फ़्रान्स बुरका से, पूरा यूरोप बढ़ती इस्लामिक कट्टरता से, अमेरिका तालिबान से, दो तिहाई अफ़्रिका फ़िरकापरस्तों से, मिस्र गरमपंथी-नरमपंथियों से, सीरिया तानाशाही बनाम इस्लाम से, इराक शिया-सुन्नी से और पाकिस्तान स्वयं निर्मित भस्मासुर से परेशान है। जो देश अपने इतिहास से सबक नहीं लेता है, उसका भूगोल बदल जाता है। इतिहास साक्षी है - अपने देश के जिस हिस्से में हिन्दू अल्पसंख्यक हुआ, वह हिस्सा ही देश से कट गया या कटने की तैयारी कर रहा है। भारत के भूगोल को सुरक्षित रखने के मामले में तुलनात्मक दृष्टि से यदि अध्ययन किया जाय तो हम पाएंगे कि अंग्रेज, कांग्रेस की तुलना में भारत के भूगोल के प्रति अधिक वफ़ादार थे।

      इस समय पूरे देश में लगभग दो करोड़ बांग्लादेशी मुसलमान मौजूद हैं। बांग्लादेश की सीमा से लगे अपने देश के प्रत्येक जिले में इनलोगों ने स्थाई बसेरा बना लिया है। असम, पश्चिम बंगाल और बिहार के किशन गंज जैसे जिलों में आबादी का अनुपात अचानक बदल गया है। बांग्लादेशियों के थोक आवक के कारण स्थानीय हिन्दू अल्पमत में हो गए हैं। बात सिर्फ़ अल्पमत में ही होने की होती, तो भी कोई विशेष बात नहीं थी। मुश्किल तब होती है, जब स्थानीय हिन्दू आबादी को तालिबानी फ़रमान मानने के लिए बाध्य किया जाता है। इन बांग्लादेशी मुसलमानों की तुलना में सिन्ध और पाकिस्तानी पंजाब के मुसलमान ज्यादा सहिष्णु हैं। वोटों की लालच में कांग्रेसी सरकारों ने इन बांग्लादेशियों के नाम वोटर लिस्ट में डलवाए और राशन कार्ड तक बनवाए। आज की तारीख में यह पता करना कि कौन हिन्दुस्तानी है और कौन बांग्लादेशी, बहुत ही कठिन है। इसी से उत्साहित होकर बांग्लादेश की प्रधान मंत्री शेख हसीना यह घोषणा करती है कि भारत में अवैध रूप से रहने वाला एक भी बांग्लादेशी मौजूद नहीं है। भारत सरकार इसका कोई प्रतिवाद नहीं कर पाती है क्योंकि पार्टी का हित राष्ट्र के हित पर हावी है। सत्तर के दशक तक जिस लोकतंत्र ने देश को विविधता में एकता का मंत्र दिया था, वही लोकतंत्र अब सत्ताधारी पार्टी के निहित स्वार्थों के कारण एकता में अनेकता के पाठ पढ़ा रहा है। सत्ता की राजनीति के लिए कांग्रेस कोई भी सौदा कर सकती है - देश का भी। १९४७ में किया भी है।

      १९७७ के पूर्व पूरे देश में कांग्रेस का एकछत्र राज था। जयप्रकाश नारायण की संपूर्ण क्रान्ति के बाद केन्द्र और लगभग सभी राज्यों में कांग्रेस की चूलें हिल गईं। लोकतंत्र के माध्यम से आए इस परिवर्तन को कांग्रेस ने कभी हृदय से स्वीकार नहीं किया। जिस तरह देश के अधिकांश मुसलमान आज भी बाबर, अकबर और औरंगज़ेब को याद करते हुए हिन्दुस्तान को अपनी जागीर मानते हैं, उसी तरह कांग्रेसी भी खंडित भारत को नेहरू, इन्दिरा और सोनिया की जागीर मानते हैं। अपनी इस जागीर को बनाए रखने के लिए कांग्रेस ने तरह-तरह के तिकड़म किए। पंजाब में राष्ट्रवादी शक्तियों को हराने के लिए इन्दिरा गांधी ने भिन्डरवाला जैसे आतंकवादी को जन्म दिया। कुछ ही समय  में योजनाबद्ध ढंग से पंजाब को आतंकवाद के गिरफ़्त में जाने दिया गया। आतंकवादी किसी के नहीं होते हैं। इसके भस्मासुर ने इन्दिरा गांधी की बलि ले ली। कांग्रेस को तब भी समझ में नहीं आया। पूरे देश में सिख विरोधी दंगे कराए गए जो देश के विभाजन के समय हुए दंगों की भांति भयावह थे। कांग्रेसियों ने खड़े होकर सिखों का कत्लेआम कराया। हत्यारों को मंत्री पद देकर सम्मानित किया गया। राजीव गांधी ने भी यही खेल खेला। तमिलनाडु में अपनी खोई जमीन प्राप्त करने के लिए भारत भूमि पर लिट्टे को प्रशिक्षण दिया गया। कालान्तर में लिट्टे के भस्मासुर ने ही उनके प्राण लिए। सत्ता की राजनीति के लिए देश के बहुसंख्यक हिन्दू समाज को टुकड़ों में बांटने के लिए अगड़ा, पिछड़ा, दलित, आदिवासी, उत्तर, दक्खिन - न जाने कितने कार्ड खेले गए। दुख होता है कि संपूर्ण क्रान्ति की कोख से जन्मे अनेक राजनेता भी कांग्रेस की गोद में जा बैठे।

      कश्मीर घाटी से सभी हिन्दू भगा दिए जाते हैं, सरकार के कान पर जूं तक नहीं रेंगती। गोधरा में अयोध्या से आती साबरमती के डिब्बों में आग लगाकर सैकड़ों हिन्दू ज़िन्दा जला दिए जाते हैं, कुसूरवार मोदी को माना जाता है। अफ़जल गुरु और कसाब को फ़ांसी की सज़ा के बाद भी बचाया जाता है, बाबा रामदेव और बालकृष्ण को झूठे मुकदमों में फ़ंसाया जाता है। म्यामार में बांग्लादेशियों पर कथित ज्यादतियों के लिए मुंबई में योजनाबद्ध दंगे किए जाते हैं, पुलिस मूक दर्शक बनी रहती है। पुणे और बंगलोर में निवास करने वाले पूर्वोत्तर के भारतीय नागरिकों को जान से मारने की धमकी दी जाती है, सरकार कोई कार्यवाही नहीं करती। मैसूर में तिब्बती तथा पुणे में पूर्वोत्तर के छात्रों पर जानलेवा हमले किए जाते हैं, पुलिस के हाथ अपराधी तक नहीं पहुंच पाते। पूर्वोत्तर के नागरिकों को इन शहरों में सुरक्षा की गारंटी देने के बदले केन्द्र सरकार उनके पलायन की व्यवस्था कर रही है। गौहाटी ले लिए स्पेशल ट्रेनें चलाई जा रही हैं। केन्द्र और केरल में मुस्लिम लीग के सहयोग से चल रही कांग्रेसी सरकार से इससे ज्यादा की उम्मीद भी कैसे की जा सकती है?

      सवाल आज की समस्या का नहीं, हिन्दुस्तान के भविष्य का है। अगर देश में तथाकथित अल्पसंख्यकों की आबादी आयात और उत्पादन से इसी तरह बढ़ती गई, तो सिर्फ़ श्रीकृष्ण ही इसकी रक्षा कर सकते हैं। कश्मीर घाटी से निष्कासित हिन्दू जम्मू और दिल्ली के शरणार्थी शिविरों में हैं, लेकिन पच्चीस साल बाद हिन्दुस्तान से निष्कासित हिन्दू किस देश के शरणार्थी शिविर में शरण लेंगे?