Monday, October 31, 2011

ज़िन्दगी



ज़िन्दगी एक संघर्ष है,
जब तक जिओगे, हर पल संघर्ष करना है -
आखिरी सांस तक।
ज़िन्दगी एक पाठशाला है,
हर दिन, हर आदमी से सीखना है,
आखिरी आस तक।
ज़िन्दगी एक प्रयोगशाला है,
गलतियां होंगी, सुधारना है,
आखिरी प्रयास तक।
ज़िन्दगी एक यात्रा है,
चलते रहो, आगे ही बढ़ना है,
मंज़िल आ जाने तक।
स्वर्ग-नरक एक कल्पना है,
कौन आया है लौटकर,
अनुभव बताने को।
यहां से वहां अच्छा नहीं,
जहां हो, वहीं अच्छा है,
जरुरत क्या आज़माने को।
दर्पण में नहीं, छवि देखो अपनी,
आसपास रहने वालों में,
वही आएंगे बताने को।
हर प्रश्न का उत्तर अन्दर है,
कहीं नहीं जाना है,
समाधान तलाशने को।
संसाधन सभी तुम्हारे पास हैं,
दृष्टि तो उठाओ,
उन्हें पहचानने को।
सीमित साधनों से भी,
चमत्कार संभव है,
निर्णय तो लो,
हौसला दिखाने को।

Wednesday, October 19, 2011

देश की अखंडता और अन्ना का मौन



भ्रष्टाचार के खिलाफ़ जनलोकपाल बिल के लिए अन्ना हजारे ने अप्रिल, २०११ में दिल्ली के जन्तर-मन्तर में आमरण अनशन किया। मंच की पृष्ठभूमि में भारत माता का चित्र लगा हुआ था। स्वामी अग्निवेश उस समय अन्ना के मुख्य सलाहकार हुआ करते थे। उन्होंने सलाह दी कि भारत माता का चित्र लगाने से अल्पसंख्यक समुदाय में गलत संदेश जाएगा। अनशन के दो दिन के बाद मंच की पृष्ठभूमि से भारत माता का चित्र हटा दिया गया। अन्नाजी के अगस्त आन्दोलन के दौरान देश के करोड़ों युवकों ने ‘वन्दे मातरम्‌’ और‘भारत माता की जय’ के उद्‌घोष के साथ भ्रष्टाचार के खिलाफ़ जो मोर्चा खोला वह अद्‌भुत और अविस्मरणीय है। १९७४ के जेपी आन्दोलन के बाद पहली बार देश की युवा शक्ति एकजुट होकर भ्रष्टाचार के खिलाफ़ अन्ना के नेतृत्व में प्रत्यक्ष संघर्ष के लिए उतरी। करोड़ों भारतवासियों के हृदय में राष्ट्र के लिए सबकुछ न्योछावर करने का जज्बा भरने वाले उद्‌घोष - वन्दे मातरम्‌, पर दिल्ली के जामा मस्जिद के शाही ईमाम मौलाना बुखारी ने गंभीर आपत्ति दर्ज़ की, इस नारे को ईस्लाम के खिलाफ़ बताया और मुसलमानों को अन्ना के आन्दोलन से दूर रहने का फ़तवा जारी कर दिया। अन्ना के हाथ-पांव फूल गए। फ़ौरन किरण बेदी को मनाने के लिए जामा मस्जिद भेजा। बुखारी से किरण बेदी ने घंटों मिन्नतें की लेकिन बुखारी टस से मस नहीं हुए। निराश किरण बेदी वापस आ गईं। इस घटना के कुछ ही दिन बाद अन्नाजी का अनशन समाप्त हो गया - वन्दे मातरम्‌ बच गया। अन्नाजी के अगले आन्दोलन से वन्दे मातरम्‌ और भारत माता गायब हो जाएं, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
प्रशान्त भूषण टीम अन्ना के सबसे महत्त्वपूर्ण सदस्य हैं और अन्नाजी के मुख्य सलाहकार भी। उनके और अरविन्द केजरीवाल के मुख से निकली वाणी अन्नाजी की ही मानी जाती है। अक्टुबर, २०११ के पहले सप्ताह में वाराणसी में उन्होंने बयान दिया कि कश्मीर से भारत को अपनी सेना अविलंब हटा लेनी चाहिए और जनमत संग्रह कराकर कश्मीरियों को आज़ादी दे देनी चाहिए। इस राष्ट्रद्रोही बयान के कारण १२, अक्टुबर को तीन आक्रोशित युवकों ने प्रशान्त भूषण की लात-घूसों से मरम्मत की। इस घटना के बाद प्रशान्त का बयान पुनः सुर्खियों में आया। अन्नाजी से इस बयान पर अपनी राय जाहिर करने के लिए असंख्य लोगों ने पत्र लिखकर, फेसबुक के माध्यम से, उनके ब्लाग पर टिप्पणी द्वारा आग्रह किया। उत्तर में अन्नाजी एक हफ़्ते के मौन व्रत पर चले गए। मौन रहते हुए भी वे पर्चियों पर पूछे गए प्रश्नों का लिखित उत्तर देते हैं, निर्देश भी जारी करते हैं, लेकिन प्रशान्त भूषण के अराष्ट्रीय बयान पर उन्होंने एक शब्द भी नहीं लिखा।
अन्नाजी के आन्दोलन के दौरान प्रथमतया भारत माता के चित्र का मंच की पृष्ठभूमि से अचानक गायब हो जाना, द्वितीयतया मौलाना बुखारी जैसे घोर सांप्रदायिक व्यक्ति के यहां किरण बेदी का जाकर समर्पण की मुद्रा में समर्थन के लिए याचना करना और तृतीयतया प्रशान्त भूषण का पाकिस्तान समर्थक देशद्रोही बयान क्या एक सोची-समझी रणनीति के तीन कदम नहीं हैं? क्या यह कांग्रेस की तुष्टीकरण नीति की सीधी नकल नहीं है? क्या यह बहुसंख्यक राष्ट्रवादियों का अपमान नहीं है?
मैं व्यक्तिगत रूप से अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन का प्रबल समर्थक हूं। अपने मित्रों के साथ अन्ना के समर्थन में २१ अगस्त को वाराणसी के भारत माता मन्दिर में एक दिन का प्रतीक अनशन भी रखा। मैं हृदय से चाहता हूं कि अन्नाजी का जनलोकपाल बिल शीघ्रातिशीघ्र कानून का रूप ले ले। लेकिन कश्मीर की आज़ादी की वकालत करते हुए उनके प्रिय सहयोगी प्रशान्त भूषण का देशद्रोही बयान और इसपर अन्नाजी की सप्रयास चुप्पी ने मुझे आहत किया है। कही अन्नाजी वही गलती तो नहीं दुहराने जा रहे हैं, जो १९४७ में महात्मा गांधी ने की थी? उस समय महात्मा गांधी कांग्रेस के सबसे शक्तिशाली नेता थे, राष्ट्रपिता थे। उन्होंने मुसलमानों और जिन्ना को खुश करने की हर संभव कोशिश की, लेकिन देश के बंटवारे को नहीं टाल सके। जिन्ना को कायदे आज़म का खिताब महात्मा गांधी ने ही दिया था। अन्ना हजारे को आज दूसरे गांधी का दर्ज़ा दिया जा रहा है। कही अन्नाजी भी तुष्टीकरण की पुरानी ग्रन्थि के शिकार तो नहीं हैं? कहा जाता है कि अन्नाजी ठेठ स्पष्टवादी हैं। उनसे अपेक्षा है कि इन विषयों पर मतिभ्रम की स्थिति में आए युवाशक्ति का मार्गदर्शन करेंगे। भ्रष्टाचार के मुद्दे पर सारा देश उनके साथ है लेकिन भारत की अखंडता के मुद्दे पर यदि उन्होंने प्रशान्त भूषण का समर्थन किया, तो उनके साथ भूषण द्वय ही बचेंगे। अभी तक तो ऐसा ही लग रहा है - मौनं स्वीकृतिं लक्षणं।

Saturday, October 15, 2011

सलाहकारों द्वारा अन्ना का दोहन


भोजपुरी में एक कहावत है -
साधु, चोर और लंपट, ज्ञानी,
जस अपने तस अनका जानी।
साधु, चोर, लंपट और ज्ञानी, अपने समान ही औरों को भी समझते हैं।
यह कहावत अन्ना हजारे पर शत-प्रतिशत खरी उतरती है। अन्ना जन्मजात सन्त हैं, बाल ब्रह्मचारी हैं, सत्याग्रही हैं, भारत माता के पुजारी हैं और महात्मा गांधी के सच्चे अनुयायी हैं। लेकिन यही बातें उनके सलाहकारों पर लागू नहीं होतीं। वे सभी अपना राजनीतिक और व्यक्तिगत स्वार्थ सिद्ध करने में लगे हैं और इस काम के लिए अन्ना के साफ सुथरे चरित्र का दोहन कर रहे हैं। अन्ना के सलाहकार नंबर-१ हैं - प्रशान्त भूषण। प्रशान्त जी कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह की तरह अपने विवादास्पद बयानों के लिए कुख्यात हैं। वे जब चुप रहते हैं, तो बहुत अच्छे लगते हैं, लेकिन जब बोलते हैं, तो जहर उगलते हैं। पाकिस्तान, इस्लामी आतंकवाद और नक्सलवाद के प्रबल समर्थक प्रशान्त जी ने अभी हाल ही में बयान दिया था कि कश्मीर से भारत को अपनी सेना को पूरी तरह हटाकर जनमत संग्रह के माध्यम से कश्मीर को आज़ादी दे देनी चाहिए। जिस युवा शक्ति ने अन्ना के लिए ऐतिहासिक अगस्त क्रान्ति की थी, उसी शक्ति को यह बात इतनी नागवार गुजरी कि दिनांक १२ अक्टुबर को प्रशान्त भूषण के सुप्रीम कोर्ट स्थित चैंबर में घुसकर लात-घूंसों से उनकी जबर्दस्त पिटाई कर दी। युवकों के इस व्यवहार की प्रशंसा नहीं की जा सकती, लेकिन उन्हें यह काम करने के लिए प्रशान्त भूषण ने ही मज़बूर किया था। कश्मीर के मुद्दे पर प्रशान्त जी का वह देशद्रोही वक्तव्य वन्दे मातरम और भारत माता की जय के साथ अन्ना की जयकार बोलने वाले समस्त युवा वर्ग को अत्यन्त आपत्तिजनक लगा है। यह दुर्घटना भावों की अभिव्यक्ति के रूप में आई है। यह बात और है कि तरीका प्रशंसनीय नहीं था। लेकिन कल्पना कीजिए कि अगर प्रशान्त भूषण चीन में होते और तिब्बत की आज़ादी के विषय में ऐसी ही राय जाहिर करते, तो क्या होता?
अन्ना जी ने प्रशान्त भूषण को अपने विवादास्पद बयान के लिए माफ़ी मांगने का कोई निर्देश नहीं दिया है, जबकि उनसे ऐसी अपेक्षा थी। उनकी चुप्पी को प्रशान्त भूषण के बयान का समर्थन न समझ लिया जाय, अतः उन्हें स्पष्ट रूप से उस बयान की निन्दा करनी चाहिए और अविलम्ब प्रशान्त भूषण को अपनी टीम से निकाल बाहर करना चाहिए। प्रशान्त भूषण के बयान पर अन्ना की चुप्पी उनके करोड़ों युवा भक्तों में मतिभ्रम की स्थिति पैदा कर देगी।
अन्ना स्वामी अग्निवेश पर भी बहुत विश्वास करते थे। अग्निवेश २१ अगस्त, २०११ तक टीम अन्ना के सक्रिय सदस्य थे। भला हो किरण बेदी का जिनकी खुफ़िया दृष्टि के कारण अग्निवेश बेनकाब हुए। वे टीम अन्ना नहीं, टीम सिब्बल के एजेन्ट थे। कपिल सिब्बल से स्वामी अग्निवेश की गोपनीय बातचीत का आडियो-वीडियो टेप आज भी U-Tube पर उपलब्ध है।
अन्ना के तीसरे विश्वासपात्र हैं - अरविन्द केजरीवाल। इनका अथक प्रयास है कि जनलोकपाल बिल में एन.जी.ओ., मीडिया और कारपोरेट घराने शामिल न होने पाएं। वे अपने को सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टीस और प्रधान मंत्री से भी उपर मानते हैं। ज्ञात हो कि जनलोकपाल बिल का जो मसौदा टीम अन्ना द्वारा पेश किया गया है उसमें प्रधान मंत्री और सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को शामिल करने का तो प्रावधान है लेकिन एन.जी.ओ., मीडिया और कारपोरेट घराने को बाहर रखने की सिफारिश की गई है। कारण है टीम अन्ना के अरविन्द केजरीवाल, मनीष सिसोदिया और किरण बेदी के द्वारा कई एन.जी.ओ. संचालित होते हैं जिन्हें कारपोरेट घरानों से करोड़ों रुपए प्राप्त होते हैं। इन्हें ईसाई मिशनरियों, इस्लामी आतंकवादियों और नक्सलवादियों की तरह विदेशों से भी अकूत धन प्राप्त होते हैं। प्रसिद्ध अंगेरेजी पत्रिका OUTLOOK ने अपने १९.९.११ के अंक में अमेरिका के फोर्ड फाउन्डेशन से वित्तीय सहायता प्राप्त कई एन.जी.ओ. के नाम का खुलासा, प्राप्त रकम के साथ किया है। अरविन्द केजरीवाल और मनीष सिसोदिया द्वारा संयुक्त रूप से चलाए जाने वाले एन.जी.ओ. ‘कबीर’ ने फोर्ड फाउन्डेशन से ३,९७,००० डालर प्राप्त किए। अन्य लाभार्थियों की सूची निम्नवत है -
१. योगेन्द्र यादव (CSDS) - 3,50,000 डालर
२. पार्थिव साह (CMAC) - 255000 डालर
३. नन्दन एम निलकेनी (NCAER) - 230000 डालर
४. अमिताभ बेहर, National Foundation for India - 2500000 डालर
५. ग्लेडविन जोसफ (ATREE) - 1319031 डालर
६. किनशुक मित्रा (WIN ROCK) - 800000 डालर
७. संदीप दीक्षित (CBGA) - 650000 डालर
८. इन्दिरा जयसिंह (Lawyers' Collective) - 1240000 डालर
९. Shiwadas Centre for Advocacy & Research - 500000 डालर
१०. प्रताप भान मेहता (Centre for Policy Research) - 687888 डालर
११. जे. महन्ती (Credibility Alliance) - 600000 डालर
१२. JNU Law & Governance - 400000 डालर
फोर्ड पाउन्डेशन के अतिरिक्त इन लोगों ने कोका कोला और लेहमन ब्रदर्स से भी करोड़ों रुपए प्राप्त किए हैं। आजकल एन.जी.ओ. चलाना बहुत फ़ायदे का धंधा है। इसपर मन्दी का असर नहीं पड़ता है। मनीष सिसोदिया जी टीवी के कर्ताधर्ता हैं। इन्होंने अन्ना आंदोलन में सभी न्यूज चैनलों द्वारा रामलीला मैदान के कार्यक्रमों के २४-घंटे के कवरेज की प्रशंसनीय अभूतपूर्व व्यवस्था की थी। प्रस्तावित जनलोकपाल बिल की परिधि से एन.जी.ओ., मीडिया और कारपोरेट घराने को बाहर रखने का यही मूल कारण है।
अन्ना के एक और विश्वस्त सहयोगी हैं, पूर्व कानून मंत्री शान्तिभूषण। वे मुकदमा कम लड़ते हैं क्रिकेट की तर्ज़ पर मुकदमा फिक्स ज्यादा करते हैं। मुलायम सिंह और अमर सिंह के साथ एक मुकदमें के लिए २ करोड़ रुपए के खर्चे में सुप्रीम कोर्ट से मनपसन्द निर्णय दिलवाने संबन्धित उनकी बातचीत का व्योरा कुछ ही महीने पूर्व एक सीडी के माध्यम से सभी न्यूज चैनलों ने प्रसारित किया था। मुलायम ही नहीं, उत्तर प्रदेश की वर्तमान मुख्य मंत्री मायावती के भी वे कानूनी सलाहकार हैं। स्मरणीय है कि ये दोनों आय से अधिक संपत्ति रखने के मामलों में सुप्रीम कोर्ट में कई मुकदमें लड़ रहे हैं। अन्ना जी भ्रष्टाचार का जड़-मूल से उन्मूलन चाहते हैं और उनके सलाहकार मुलायम और मायावती जैसे लोगों को संरक्षण देते हैं। कैसा विरोधाभास है! घोर आश्चर्य तो तब हुआ जब अन्ना जी के सलाहकारों ने उन्हें तो आमरण अनशन पर बैठा दिया लेकिन स्वयं एक दिन का प्रतीक अनशन भी नहीं किया। किरण बेदी तो रंग बिरंगे परिधान बदलने में ही व्यस्त रहीं। हद तो तब हो गई जब उन्होंने अन्ना जी की उपस्थिति में उसी मंच से दुपट्टे की सहायता से तरह-तरह के नाटक अभिनीत करना शुरु कर दिया। अन्ना जी इतने सरल हृदय और शरीफ़ हैं कि वे सबमें अपनी ही छवि देखते हैं। इसे गुण भी कह सकते हैं और सद्‌गुण विकृति भी। अन्ना जी, चाटुकार और स्वार्थी सलाहकारों से होशियार रहने की जरुरत है, क्योंकि ----------
ALL IS NOT WELL