Friday, September 27, 2013

राहुल का ड्रामा

       दागी नेताओं को बचाने के लिए राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए भेजे गए अध्यादेश पर आनन फानन में बुलाई गई प्रेस कान्फ़्रेन्स में राहुल गांधी एक बदले हुए तेवर में दिखाई पड़े। कांग्रेस के महासचिव अजय माकन प्रेस क्लब आफ़ इंडिया द्वारा आयोजित ‘प्रेस से मिलिए’ कार्यक्रम के दौरान पत्रकारों के प्रश्नों के उत्तर दे रहे थे। अचानक उनके मोबाइल में वी.आई.पी. टोन की घंटी बज उठी। वे तत्काल बाहर चले गए। एक मिनट बाद ही वे पत्रकारों के सामने थे। आते ही उन्होंने घोषणा की कि कांग्रेस के महासचिव माननीय राहुल गांधी आप लोगों को कुछ ही मिनटों के बाद संबोधित करेंगे। कुछ ही मिनटों में राहुल गांधी प्रकट भी हो गए। आते ही बिना किसी भूमिका के उन्होंने दोषी जन प्रतिनिधियों की सदस्यता समाप्त करने के उच्च्चतम न्यायालय के आदेश को निष्प्रभावी करने के लिए सरकार द्वारा लाए गए अध्यादेश को बिल्कुल बकवास करार दिया। इसे फाड़कर कूड़ेदान में फेंकने लायक बताया और यह भी कहा कि उनकी सरकार ने जो किया, वह गलत है। प्रेस को तीन मिनट के अपने संबोधन में राहुल काफी गुस्से में दिखे। अपना वक्तव्य पूरा करने के बाद वे एक मिनट भी नहीं रुके। आंधी की तरह आए थे, तूफ़ान की तरह चले गए।
क्या ड्रामा था! क्या बिना सोनिया और राहुल की स्वीकृति के प्रधान मंत्री ऐसा साहसिक अध्यादेश ला सकते थे? कदापि नहीं। एक सांस लेने के बाद दूसरी सांस के लिए हमेशा सोनिया से अनुमति लेनेवाले मनमोहन सिंह लोक सभा में दागी नेताओं को बचाने के लिए बिल लाते हैं, बिना चर्चा के संख्या बल से पास भी करा लेते हैं परन्तु कानून बनाने में सफल नहीं हो पाते हैं। शार्ट कट अपनाते हुए अध्यादेश का सहारा लेते हैं। क्या कोई विश्वास कर सकता है कि इस प्रक्रिया की भनक सोनिया या राहुल को नहीं थी? राहुल के जो तेवर आज देखने को मिले, वह तेवर अगर लोकसभा में बिल पेश करते समय दिखाई पड़ जाता, तो क्या प्रधान मंत्री इसे छू भी पाने का साहस कर पाते; पेश करने की बात तो बहुत दूर है। इस अति विवादित अध्यादेश की मिट्टी पलीद करने का सारा श्रेय राष्ट्रपति महोदय को जाता है। कल ही उन्होंने तीन केन्द्रीय मंत्रियों को बुलाकर अध्यादेश पर अपनी असहमति जता दी थी। प्रणव दा और प्रतिभा पाटिल में जमीन आसमान का फ़र्क है। अध्यादेश पर राष्ट्रपति का दस्तखत होना असंभव पाकर आज राहुल ने यह ड्रामा किया। यह ड्रामा ठीक उसी तरह का था जो उनकी माता जी ने सन २००२ में किया था। कांग्रेस पार्टी ने उन्हें अपना नेता चुन लिया था। कांग्रेस संसदीय दल का निर्णय और सहयोगी दलों के समर्थन पत्र के साथ प्रधान मंत्री पद के शपथ ग्रहण के लिए राष्ट्रपति से औपचारिक न्योता ग्रहण करने के लिए वे राष्ट्रपति भवन गई थीं। कुछ ही मिनटों में वे वापस आ गईं। वे भी राहुल की तरह ही तमतमाई हुई थीं। उन्होंने अपनी जगह मनमोहन सिंह को पार्टी का नेता घोषित किया और स्वयं त्याग की प्रतिमूर्ति बन गईं। चाटुकार मीडिया और कांग्रेसियों ने जी भरके यशोगान किया। सच्चाई यह थी कि एक विदेशी नागरिक को प्रधान मंत्री की शपथ दिलाने से तात्कालीन राष्ट्रपति ए.पी.जे. कलाम ने साफ़ मना कर दिया था। सुब्रह्मण्यम स्वामी ने उस दिन दोपहर में ही राष्ट्रपति से मुलाकात करके संविधान की वह धारा  पढ़ा दी  जिसके अनुसार Law of recipracation को भारत के संविधान में भी मान्यता मिली थी। इसके अनुसार सोनिया गांधी की दोहरी नागरिकता की स्थिति वाला कोई व्यक्ति अगर इटली में वहां के संविधान के अनुसार प्रधान मंत्री के पद पर नियुक्ति की पात्रता रखता हो, तो भारत में भी इटली  और भारत की संयुक्त नागरिकता वाला व्यक्ति प्रधान मंत्री बन सकता है। सोनिया के दुर्भाग्य से इटली का संविधान इसकी इज़ाज़त नहीं देता। अब्दुल कलाम जी ने सोनिया जी को संविधान की वह धारा सिर्फ़ दिखा भर दी थी। आगे की कहानी सबको पता है।
राहुल का यह ड्रामा पार्टी के लिए कितना शुभ होगा, यह तो सन २०१४ बतायेगा लेकिन मनमोहन सिंह के लिए अशुभ ही अशुभ है। सरकार की सारी नाकामियों का ठिकरा अब मनमोहन जी के सिर पर फूटनेवाला है। वे कांग्रेस के दूसरे नरसिंहा राव बनने वाले हैं। कुछ ही दिनों में ब्रेकिंग न्युज़ आनेवाला है - प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह का इस्तीफ़ा, राहुल  की ताज़पोशी। 

Wednesday, September 25, 2013

क्या नैरोबी, पेशावर और मुज़फ़्फ़र नगर में नरेन्द्र मोदी की सरकार है


केन्या की राजधानी नैरोबी में एक शापिंग माल में दिनांक २१-९-१३ को दिल दहला देनेवाला आतंकी हमला हुआ। पहले गैरमुस्लिम जनता की पहचान की गई। उन्हें माल में रोक लिया गया। बाकी को सुरक्षित बाहर निकाला गया। फिर रोके गए गैर मुस्लिम समुदाय पर अन्धाधुन्ध फायरिंग की गई। सैकड़ों बेकसूर निहत्थे लोग मारे गए। इसमें आधी संख्या महिलाओं और बच्चों की थी जिसमें कई हिन्दुस्तानी भी शामिल थे। भारत में इसके विरोध में न कहीं मोमबत्ती जलाई गई और ना ही कोई विरोध प्रदर्शन हुआ। इस घटना के २४ घंटे भी नहीं बीते थे कि पेशावर के एक प्राचीन चर्च में भीषण धमाका हुआ। रविवार की ईश-आराधना में शामिल ईसाई समुदाय के ६० से अधिक व्यक्ति मारे गए। यह जघन्य कार्यवाही भी धर्म के नाम पर की गई। मुज़फ़्फ़रनगर का दंगा इस कड़ी की शुरुआत थी। इसमें भी बड़ी संख्या में बेकसूर बेरहमी से मारे गए। दंगा करानेवाला मंत्रिपरिषद में दहाड़ रहा है और निर्दोष ज़मानत के लिए अदालतों के चक्कर लगा रहे हैं। राजनीतिक विरोधियों को बलि का बकरा बनाया जा रहा है।
     इन तीनों स्थानों पर न तो नरेन्द्र मोदी की सरकार है और न भाजपा की। फिर भी आतंकवादी हमले हुए, दंगे हुए। भारत की सेकुलर मीडिया गुजरात के दंगों पर पिछले ११ सालों से छाती पीट रही है, लेकिन इन दंगों के लिए दोषी को भी दोषी कहने के मुद्दे पर मुंह सिल लेती है। यह सोचने का विषय है कि भारत समेत पूरी दुनिया में गैर मुस्लिमों पर ऐसे हमले क्यों हो रहे हैं? वह कौन सी मानसिकता है जो इन हमलावरों को प्रोत्साहित और पुरस्कृत करती है?
शान्तिपूर्ण सह अस्तित्व और धार्मिक सहिष्णुता का अभाव ही इसका मूल कारण है। एक हिन्दू स्वभाव और संस्कार से ही शान्तिपूर्ण सह अस्तित्व और सर्वधर्म समभाव में विश्वास करता है। वह हर धार्मिक अनुष्ठान में इसकी घोषणा भी करता है -
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्दुखभाग्भवेत।
ओम शान्तिः। ओम शान्तिः। ओम शान्तिः। 
       (गरुड़ पुराण, उत्तरखंड ३५.५१)
सभी सुखी हों, सभी निरापद हों, सभी शुभ देखें, शुभ सोचें। कोई कभी भी दुख को प्राप्त न हो।
ईसाई समुदाय के किसी उग्रवादी या अन्य संगठन ने विगत कई वर्षों में अन्य धर्मावलंबियों की इस प्रकार समूह में नृशंस हत्या की हो, ऐसा उदाहरण नहीं मिलता। ईसा मसीह के उपदेश में करुणा, दया और प्रेम का संदेश है। इसका प्रभाव उनके अनुयायियों पर देखा जा सकता है। जनकल्याण के लिए चिकित्सालय और विद्यालय के साथ अन्य प्रकल्प चलाने में इनकी कोई सानी नहीं है।
इस्लाम की पुस्तकों में वर्णित ‘काफ़िर’ और ‘ज़िहाद’ शब्दों की गलत व्याख्या ही कथित इस्लामी आतंकवादियों को दूसरों पर जुल्म ढाने का लाइसेंस देती है। आज का पूरा विश्व जिस युग में प्रवेश कर गया है, वहां असहिष्णुता और घृणा का कोई स्थान हो ही नहीं सकता। विश्व-शान्ति के लिए सहिष्णुता, सर्वधर्म समभाव और शान्तिपूर्ण सह अस्तित्व के भाव और संस्कार परम आवश्यक हो गए हैं। हम पुनः मध्य युग की ओर नहीं लौट सकते। लौटना संभव भी नहीं है। ऐसे में मुस्लिम विद्वानों और धर्म गुरुओं पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी आ गई है। उनसे अपेक्षा है कि ‘काफ़िर’ और ‘ज़िहाद’ की आज के परिवेश में मानवता के हित में उचित व्याख्या कर पूरे विश्व में शान्ति स्थापित करने के पुनीत कार्य में अपना अमूल्य योगदान दें।
 घृणा का प्रेम से जिस रोज अलंकरण होगा,
 धरा पर स्वर्ग का उस रोज अवतरण होगा।

Tuesday, September 17, 2013

आडवानीजी संघर्ष करो, सोनिया तुम्हारे साथ है

आदरणीय आडवानी बाबा, 
             सादर परनाम !
आगे समाचार इ है कि नीतिश कुमार के तरह-तरह के विरोध के बाद भी नरेन्दर मोदिया बिहार में भी लोकप्रिय होता जा रहा है। बिहार के लोगबाग नरेन्दर का इन्तज़ार बड़ी बेसब्री से कर रहा है। नीतीश तो आपके ही मानस पुत्र हैं। जब जरुरत थी तो सांप्रदायिक भाजपा से कवनो परहेज़ नहीं था; अब काम चलाऊ बहुमत पा गए तो सेकुलर बन गए। इ प्रधान मंत्री की कुरसिए ऐसी है कि जो भी उधर देखता है, रातोरात सेकुलर बन जाता है या बनने की कोशिश करने लगता है। आपको भी तो इ कुर्सिए न सेकुलर बनाई है वरना क्या कारण था आपको जिन्ना की तारीफ़ में कसीदा काढ़ने का। छद्म धर्मनिरपेक्षता की पोलपट्टी खोलनेवाले, रामरथ के सवार, राम जन्मभूमि आन्दोलन के मसीहा को भी अल्ला-हो-अकबर का नारा लगाना ही पड़ा। कबीर दास कह गए हैं - माया महा ठगनी हम जानी। अब देखिए, आप न घर के रहे न घाट के। जातो गवांए और भातो नहीं खाये। 
बाबा ! हमरी बात का बुरा मत मानिएगा। इ खत में हम उहे बात लिख रहे हैं, जो जनता कह रही है। सुषमा स्वराज और अरुण जेटली के चक्कर में पड़कर बुढ़ापा काहे खराब कर रहे हैं? कर्नाटक का अनन्त कुमार जो वहां पर येदुरप्पा के साथ-साथ भाजपा को भी ले डूबा, सुनते हैं आपका सलाहकार है और सुधीर कुलकर्णी आपका प्रवक्ता है। आप जो कल करने को होते हैं कुलकर्णिया दो दिन दिन पहले ही ट्वीट कर देता है। फिर भी आप उसपर ही विश्वास करते है। आपके साथ लगे इस गैंग आफ़ फ़ोर के चारों मेम्बर बहुते डेन्जरस हैं। आप खुद ही देखिए - संसदीय दल की बैठक के दिन आप तो कोप-भवन में थे और ये सभी मोदी को माला पहना रहे थे। आपको छोड़ ये सभी वक्त का मिज़ाज़ भांप चुके हैं। आप से लेटर-बम फोड़वाते हैं और स्वयं राजनाथ की चमचागीरी करते हैं। वैसे कोप-भवन में जाने का परिणाम इस आर्यावर्त्त में अच्छा ही रहा है। कैकयी के कोप-भवन में जाने से राम को वनवास तो जरुर मिला, लेकिन इसके बिना रावण-वध भी नहीं हो सकता था। कलियुग की इक्कीसवीं सदी में आप दो बार कोप-भवन में जा चुके हैं। दोनों बार रिजल्ट ठीके रहा है। मोदी को पी.एम. बनाने के लिए आपको एक बार और कोप-भवन में जाना पड़ेगा। इस बार इसको थोड़ा लंबा रखिएगा। ताज़पोशी के बादे बाहर आइयेगा। लेकिन आपको सलाह देना बेकारे है। आप तो वही कीजिएगा जो कुलकर्णी कहेगा। साठ के बाद लोग सठियाते हैं, आप तो अंठिया गए है। आरे, वर्ण-व्यवस्था बनाने वाले मनु महाराज और हमारे ऋषि-मुनि बुड़बक तो थे नहीं। पचहत्तर के बाद उन्होंने संन्यास आश्रम कम्पलसरी किया था। आप तो पचासी पार कर चुके हैं। काहे को लार टपका रहे हैं। अब राम-राम जपने का वक्त आ गया है। जिन्ना-जिन्ना जपकर काहे आकबद खराब कर रहे हैं? मरने के बाद स्मारको नहीं बनेगा।
पानी पी-पीकर आपको कट्टरवादी और सांप्रदायिक कहनेवाले कांग्रेसी आपसे बहुत आस लगाए हैं। क्या सोनिया गांधी और क्या दिग्गी बाबू, सब आपके लिए आंसू बहा रहे हैं। नीतीश तो नीतीश, लालू भी तारीफ़ कर रहे हैं। कांग्रेसी खेमे में आपकी लोकप्रियता अमिताभ बच्चन से भी ज्यादा है। कल बनारस के लंका चौराहे पर कांग्रेसी नारा लगा रहे थे - आडवानीजी संघर्ष करो, सोनिया तुम्हारे साथ है।
इहां यू.पी बिहार ही नहीं, सगरे हिन्दुस्तान में आपके पोता-पोती राजी-खुशी हैं। बस एके गड़बड़ है - सब नमो-नमो जप रहे हैं। अब चिठ्ठी बन्द करता हूं। थोड़ा लिखना, ज्यादा समझना। पयलग्गी कुबूअल कीजिएगा।
 आपका पोता 
जवान हिन्दुस्तानी