Tuesday, January 21, 2014

आओ धरना-धरना खेलें

सत्ता पाये भ्रष्टों के बल,
मुंह तो अब छुपाना है,
मूर्ख बनाओ जी भर-भर के,
धरना एक बहाना है।
जी भर नूरा कुश्ती खेलें,
आओ धरना-धरना खेलें। (१)
झुंझलाकर के सड़क पर बैठे,
मुझे छोड़कर सभी चोर हैं,
एक उठे पराये पर जब,
तीन ऊंगलियां अपनी ओर हैं।
भ्रष्टातंकी पाले चेले --
आओ धरना-धरना खेलें। (२)
कहां गई सस्ती बिजली,
कहां गया मुफ़्ती पानी,
कहां गया वह लोकपाल,
कहां गया झूठा दानी?
देखें दिल्ली कबतक झेले --
आओ धरना-धरना खेलें। (३)
नगर देहली रोटी सेके,
गाज़ियाबाद में चूल्हा,
बाराती हैं रजधानी में,
गायब रहता दूल्हा।
सड़क जाम लगायें ठेले --
आओ धरना-धरना खेलें। (४)
पेट नहीं भरता भाषण से,
दशकों से सुनते आये हैं,
झूठे वादे, झूठे सपने,
अबतक हम इतना पाये हैं।
कड़वा थू-थू, मीठा ले लें --

आओ धरना-धरना खेलें। (५)

Tuesday, January 14, 2014

एक पाती अन्ना काका के नाम

पूजनीय काका,
                                         चरण-कमलों में सादर परनाम!
      आगे काका के मालूम हो कि ईहां का समाचार अच्छा है, हम राजी खुशी हैं। बस, ठंढ़िए कभी-कभी वाणप्रस्थी हडियन में समा जाती है। काका, तुम तो जानते ही हो कि अपनी दिहाड़ी की मज़दूरी से सिर्फ नून, तेल और लकड़ी का ही इन्तज़ाम हो पाता है। तोहार चेलवा दिल्ली का मुख्यमंत्री बन गया है। आम आदमी है, इसलिये बड़े अरमान से एगो चिट्ठी लिखकर खिचड़ी पर कुछ पैसा-कौड़ी मनीआर्डर से भेजने का निवेदन किया था। का बतायें काका, ई परब-त्योहार हमलोगों के गले का फांस बनकर आता है। अपने घर खाने के लिये नून-रोटी-मुरई लेकिन बहिनौरा और फुफु के यहां चिऊड़ा, लाई, मिठाई, आलू, गोभी, मटर, दाल आऊर कुछ नकदी अगर खिचड़ी पर न भेजी जाय, तो बहन-बुआ की जगहंसाई तो होगी ही, बहनोई और फुफा शादियो-बियाह में आना बन्द कर देंगे। इहे कुल्ही सोच के अरविन्दजी को एक पाती लिखे रहे। लेकिन ऊ कौनो जवाबे नहीं दिये। अब तो ऊ सचिवालय की छत से जनता दरबार चला रहे हैं। का करते; उधार-पाईंच लेकर खिचड़ी भेज दिये।
      काका, एक बात हमरी समझ में नहीं आ रही है। ई तोहार टोपिया केजरीवलवा लेकर कैसे भाग गया? हम तोहके बचपन से देख रहे हैं। तुम्हरी टोपी तो झकाझक सफेद हुआ करती थी, अभी भी है। उसपर कवनो भाषा में कुछ लिखा नहीं रहता था। आदर्श, चरित्र और ईमानदारी की कोई भाषा तो होती नहीं। गांधीजी की टोपी पर भी एको अच्छर नहीं लिखा था। अगर वे कुछ लिखवाते भी, तो उसपर रामराज्य ही लिखवाते। लेकिन वे जानते थे कि कांग्रेस के काले-भूरे अंग्रेज उसको लाइक नहीं करेंगे। सो, उन्होंने टोपिया को ब्लैंक ही छोड़ दिया। बाद में जवाहर लाल नेहरू ने टोपिया हथिया ली। उसपर कभी सेकुलरिज्म लिखा, तो कभी समाजवाद। बड़े आराम से तीन पीढ़ी राज की। चौथी पीढ़ी करने को तैयार है। काका, जब तुम्हरी टोपिया केजरिवलवा किडनैप कर रहा था, तो तुम्हारी समझ में का कुच्छो नहीं आया? पहिले उसपर लिखा - मैं भी अन्ना, तू भी अन्ना। इन्कम टैक्स कमिश्नर को चेला बनाकर तुम भी खूब खुश हुए थे। जब टोपिया पर वह आम आदमी लिखवाया, तब तुम्हारी आंख खुली। तब तक तो बहुत देर हो चुकी थी; वह आम आदमी छाप, अन्ना टोपी का पेटेन्ट करा चुका था। गांधी जी की पार्टी में औरतें टोपी नहीं पहनती थीं। इसने तो औरतों को भी टोपी पहना दी है। हिम्मत तो देखो इसकी, जिस लोकपाल को खून-पसीना, अनशन-आन्दोलन, जूस-पानी से सींचकर तुमने राहुल बबुआ की मदद से संसद से पास कराकर रिकार्ड पीरियड में पर्णबो मुखर्जी से दस्तखत करा लिया, उसी को वह बकवास कह रहा है। माना कि उसमें न एनजीओ है, न मीडिया है और न कारपोरेट घराना। फिर भी कुछ तो है। उसकी नीयत ठीक नहीं है। तुम जब दिल्ली में अनशन करते थे, तो वह रतिया में गाज़ियाबाद पहुंच जाता था। बीवी के साथ मालपुआ खाता था और फिर भिनसहरे तुम्हारे पास हाज़िर हो जाता था। तुम तो ठहरे भोले बाबा। स्वामी अग्निवेश को भी अपने साथ बिठा लिया था। वह तो भला हो पुलिस कप्ताईन किरण बेदी का। पता नहीं कैसे कैमरा अग्निवेशवा के घर पर लगवा दी, स्वामी-सिब्बल वार्त्तालाप तो टेप किया ही, फोटुआ भी खींच लिया। न्यूज चैनलों को वीडियो भी दे दिया। तब जाकर तुम्हारा आन्दोलन बचा। वह भेदिया तो केजरीवाल की मदद से तुम्हारे बगल का आसन तो हथियाइये लिया था। उसने भी केजरीवाल की काफी मदद की थी। सोनिया भौजी की राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार परिषद का मेम्बर बनवाने के लिये उसने एड़ी-चोटी एक कर दी थी। एक बार भौजी के साथ चाय भी पिलवाई थी। तुमने उसे पहचाना, लेकिन देर से। इससे अब कम से कम इतना तो फायदा होगा ही कि वह तुम्हारी झकाझक सफ़ेद धोती और कुर्ते का अपहरण नहीं कर पायेगा।
      काका, ई जाड़ा-पाला का दिन जब बीत जाय, तो अपनी सेहत को ध्यान में रखते हुए देश के लिये कुछ करने का मन बनाओ। केजरीवलवा तो क्वीन का प्यादा बन गया, आम से खास हो गया, प्रशान्त भूषणवा कश्मीर पाकिस्तान को दे रहा, ऊ विदूषक का क्या नाम है ...... कुमार विश्वास। कुछ ही दिन पहले नरेन्दर मोदी को सामने बैठाकर राग दरबारी की कवितायें सुना रहा था, अब नक्सलवादी विनायक सेन के कसीदे काढ़ रहा है। शहज़ादा के खिलाफ़ चुनाव लड़ेगा, लखनऊ के फाइव-स्टार होटल से। सुना है उस होटल के एक कमरे का एक दिन का किराया ५००० रुपिया है। रुपये-पैसे की चिन्ता अब आम आदमी को क्यों होगी? सैंया भये कोतवाल ........। कही खुदा-न-खाश्ते पैसे की कमी पड़ भी गई, तो अमेरिका का एनजीओ आवाज़और महादानी फ़ोर्ड किस काम आयेंगे। काका, फ़ोर्ड को तो आप जानते ही होंगे। आपके चेले के एनजीओ परिवर्तनऔर कबीरके लिये उसने अबतक साढे तीन लाख डालर से ज्यादा पैसे दिये हैं। चलते-चलते आवाज़के बारे में भी बता दें। अमेरीकी पूंजीपतियों के द्वारा स्थापित यह संगठन अमेरिकी हितों के लिये विदेशी सरकारों को गिराकर अव्यवस्था फैलाने का काम करती है। इसका बजट भारत के वार्षिक बजट से ज्यादा है। जैसमिन क्रान्ति के नाम पर मिस्र, लीबिया और सीरिया के गृहयुद्ध में इसका प्रत्यक्ष योगदान है। काकू, चुप बैठने का समय नहीं है। अभी नहीं, तो कभी नहीं। तुमने राष्ट्र-सेवा का व्रत ले रखा है। अब जब सारा राष्ट्र नरेन्दर मोदी के नेतृत्व में राष्ट्र निर्माण का संकल्प ले रहा है और बहुरुपिया केजरीवाल को आगे कर भ्रष्ट वंशवाद, प्रौक्सी वार की तैयारी कर रहा है, चुप बैठना या तटस्थ रहना ऐतिहासिक भूल होगी। जिस भूमिका का निर्वाह श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र के धर्मयुद्ध में किया था, उसी भूमिका में आओ। आओ अन्ना, आओ, देर मत लगाओ।
      ई पाती जरुरत से ज्यादा ही लंबी हो गई। भारत में कवनो चीज छोटे में कब खत्म होती है। रामजी के राज मिलल -चौदह साल के बाद, पाण्डवन के राज मिलल - तेरह साल के बाद, उहो सबकुछ गंववला के बाद और आज़ादी भी मिली, त उहो एक हज़ार साल बाद - भारत माता के अंग-भंग के साथ. सुराज का मौका ६५ साल के बाद उपस्थित हुआ है। मैं इन्हीं आंखों से, इसी देह से भारत माता को परम वैभव पर आसीन होते देखना चाहता हूं। भतीजे की ख्वाहिश पूरी करो काका। छोटी मुंह बड़ी बात। अगर गलती हो गई हो तो माफ़ करना। छमा बड़न को चाहिये, छोटन को अपराध।
      पाती बन्द करता हूं। थोड़ा लिखना, ज्यादा समझना। बाल-बच्चे और तोहरी बहुरिया तोके पयलग्गी बोल रहे हैं। अपने स्वास्थ्य पर ध्यान देना। उमर भी कोई चीज है। किसी के चढ़ावे में आकर अन्न-जल जिन त्यागना। तुम्हारी हुंकार ही काफी है। शेष कुशल। इति शुभ।
            तोहार भतीजा - चाचा बनारसी

      

Saturday, January 11, 2014

एक पाती केजरी बाबु के नाम

 लख्ते ज़िगर केजरी बाबू,
                  जय आम आदमी की!
            चाचा बनारसी की आदत है सबको ‘जय रामजी की’ कहने की। लेकिन बचवा, तोके अगर हम ‘जय रामजी की’ कह देंगे तो तोहरे सेकुलरिज्म पर खतरा पैदा हो जायेगा। इसलिये तोरे भलाई के खातिर हम रामजी का परित्याग कर दिये हैं। तोहार कुर्सी बनल रहे, ओह बदे झूठ-सांच, वचन-पालन, वचन-भंग, भ्रष्टाचार, शिष्टाचार - जो भी करना पड़े, हम करेंगे। बबुआ, ई जनता और मीडिया से हमेशा होशियार रहना। दो दिन में यह बांस पर चढ़ा देती है और तीसरे दिन बिना नोटिस के बंसवा खींच भी लेती है। बड़ी बेमुर्रवत कौम हैं, ये दोनों। अब तुम्हीं देखो न, पांच दिन तक ये दोनों तुम्हारे नाम का कीर्तन राउन्ड द क्लाक करते रहे। छठवें दिन जब तुमने अपने १० बीएचके में गृह-प्रवेश का मुहुरत निकलवाया, तो ये दो कौड़ी के मीडिया रिपोर्टर ईर्ष्या की आग में जलने लगे। तुम्हारे घर का, फ़र्श का, मोडुलर किचेन का, बाथ-रूम का, बालकोनी का, लान का लाइव पोस्टमार्टम करने लगे। अगर हिम्मत हो, तो १०, जनपथ का फोटो दिखायें। हवा खिसक जायेगी। और तुम भी बचवा, इनकी बातों में आ गये। गृह-प्रवेश करने के बदले गृह-निकास कर गये। ऐसे ही इनकी चालों में फंसते गये, तो बहुत जल्दी ये तुमको मुख्यमंत्री कार्यालय से भी निकलवा देंगे। आरे, जब मुख्यमंत्री बने हो, तो मुख्यमंत्री के दफ़्तर से ही काम करोगे न। सचिवालय, वज़ीराबाद के स्लम में तो बनाओगे नहीं। फिर मुख्यमंत्री निवास में रहने से काहे परहेज़ कर रहो हो। या तो उसे बेघर और फूटपाथ पर सोनेवालों का रैन-बसेरा बना दो, या खुद रहो। खाली छोड़ने से का फायदा। मोटे-मोटे चूहे उसमें रहकर आबादी बढ़ायेंगे, दिल्ली का खाद्यान्न चट करेंगे, आम जनता फ़्री में राशन की मांग करेगी, हर्षवर्धन तुम्हारी राह पर चलते हुए तीन दिन में देने का वादा भी कर देगा। फिर खड़ा हो जायेगा तुम्हारी मुसीबतों का पहाड़। बेटा आम आदमी-आम आदमी जपते रहो, पर करो अपने मन की। आई.ए.एस. की नौकरी छोड़कर राजनीति में कोई योग सिखाने तो आये नहीं हो। नफ़ा-नुकसान तो तौल ही लिया होगा। फिर तुम अन्ना हजारे तो हो नहीं कि रालेगन सिद्धि के यादव-मन्दिर में रहकर गुज़ारा कर लोगे। तुम खाते-पीते घर के हो। व्यापार तुम्हारा खानदानी पेशा है। पत्नी इन्कम टैक्स कमिश्नर है। बच्चे स्कूल भी एसी बस से जाते हैं। उन्हें अच्छा खाने-पीने की आदत है। वे अच्छे घर में नहीं रहेंगे, तो क्या झुग्गी में रहेंगे। पत्रकारों को अपना कौशाम्बी, गाज़ियाबाद वाला ४ बीएचके कभी मत दिखाना। वे चार एसी देखकर चकरा जायेंगे। शीला दीक्षित की कुर्सी पर तो कब्ज़ा कर ही लिया, घर पर भी कब्ज़ा करो। कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना।
      आजकल कांग्रेस से तुम्हारे गठबन्धन पर तरह-तरह की टीका-टिप्पणी हो रही है। तनिको मत घबराना। गठबन्धन को राष्ट्रीय धर्म का दर्ज़ा प्राप्त है। जो भाजपाई तुम्हारे कांग्रेस की गोद में बैठने की आलोचना पानी पी-पीकर कर रहे हैं, उन्हें याद दिला दो कि उनके आदर्श नेता अटलजी ने भी छः साल तक गठबन्धन सरकार चलाई थी। तुमने तो सिर्फ एक से गठबन्धन किया है। एक से गठबन्धन कर ज़िन्दगी भर साथ निभानेवाले को मर्यादा पुरुषोत्तम और साथ निभानेवाली को पतिव्रता कहते हैं। माना कि कांग्रेस हिन्दुस्तान की सबसे भ्रष्ट पार्टी है, पर है तो वफ़ादार। तुमने उसकी जितनी आलोचना की है, उसका अगर १% भी अपनी बीवी का कर देते, तो कभी का तलाक हो चुका होता। तुम्हारे और कांग्रेस की पाक मुहब्बत पर जलने वालों की नज़र न लगे। बुरी नज़र वाले, तेरा मुंह काला।
      स्वाधीन भारत का इतिहास गवाह है कि हिन्दुस्तान के सभी नेता कांग्रेस को गाली देकर ही आगे बढ़े हैं। तुमने कोई अनोखा काम तो किया नहीं है। स्व. वी.पी.सिंह बोफ़ोर्स का दस्तावेज़ लेकर हिन्दुस्तान भर घूमे। कहते थे कि प्रधान मंत्री बनते ही राजीव गांधी को गिरफ़्तार कर लेंगे और दलाली का पैसा खज़ाने में जमा करायेंगे। क्या किया सबको मालूम है। तुमने भी शीला दीक्षित के भ्रष्टाचार की ३७० पेज की फाईल चुनाव के पहले जनता को दिखाई थी। जब देश का एक प्रधान मंत्री अपने चुनावी वादे को पूरा नहीं कर पाया, तो दिल्ली जैसे अपूर्ण राज्य के मुख्यमंत्री से ऐसी आशा करना क्या वाज़िब है। बेटा, कुत्ता भी जिसकी रोटी खाता है, उसके आगे दुम हिलाता है। तुम्हारे आगे तो शीला ने सोने की थाली में जिमना परोसा है। जिमो रजा, जी भर के जिमो। नमक हरामी मत करना। संकोच मत करना। लालू, मुलायम, मायावती, सिबू सोरेन, शरद पवार, नीतिश आदि-आदि, कितने नाम गिनायें, सभी तो जिम ही रहे हैं। तुम अपवाद नहीं हो। अच्छा किया, हर्षवर्धन को सबूत लाने का जिम्मा सौंप दिया।
      बचवा, तुम्हारी बुद्धि का लोहा पूरा हिन्दुस्तान मान गया। फ़ोर्ड फ़ाउन्डेशन भी मानता है, भटकल भी मानता है और विनायक सेन भी मानता है। मैगसेसे पुरस्कार कोई फोकट में तो मिलता नहीं है? दिल्ली वालों को बिजली-पानी में उलझाये रखो। इन लोगों को ओसामा बिन लादेन ने अगर फ़्री बिजली पानी देने का वादा किया होता, तो उसके लिये दिल्ली में परमाणु निरोधक बंकर बना देते, प्रधान मंत्री बनाते अलग से। वह आज भी जीवित रहता। पाकिस्तान कश्मीर को ले ले, चीन मेघालय को कब्ज़िया ले, नक्सलवादी देश को तबाह कर दें, आतंकवादी हत्या का ताण्डव करते रहें, प्याज़ सौ रुपये किलो बिकता रहे, लाखों करोड़ रुपये स्विस बैंक में पड़ा रहे, कोई बात नहीं। इन विषयों पर बोलने की गलती कभी मत करना। बस बिजली-पानी पर बोलना। चलते-चलते एक सलाह और - राजमाता, राज जमाता और शहज़ादे की अच्छी खिदमत करना। यह कभी मत भूलना कि वे क्वीन हैं और तुम प्यादे हो। चाचा की बात को गंठिया लो।
      मैं यहां ठीके-ठाक हूं। बुआ और बहिना के यहां खिचड़ी भेजना है। पाकेट में एको छदाम नहीं है। दिहाड़ी की कमाई से नमक, मुरई और रोटी का इन्तज़ाम हो जाता है। अपना सालाना बज़ट तुम्हारे एक बच्चे की एक महीने की फीस से ज्यादा नहीं है। कुछ मनी आर्डर से भेज दोगे तो खिचड़ी भी भेज देंगे और एक कथरी आ एगो कम्बल भी खरीद लेंगे। बाल-बच्चों को हमार प्यार-दुलार कहना और दुल्हिन को आशीर्वाद। इति शुभ।
            तुम्हारा अपना
            चाचा बनारसी

विवाह संस्था का सन्देश

  पिछले नवम्बर में अपने एक घनिष्ठ मित्र श्री गोविन्द अग्रवाल  के पुत्र के विवाह समारोह में सम्मिल्लित होने का सुअवसर प्राप्त हुआ। यह सुआयोजित कार्यक्रम लखनऊ में संपन्न हुआ जिसमें श्री गोविन्दाचार्य और श्री कलराज मिश्र जैसी विभूतियाँ भी उपस्थित थीं। मेरे मित्र के पूर्वज मूलत: हरियाणा के निवासी थे, अत: सारी रस्में हरियाणवी परंपरा और संस्कृति को समेटे हुए थीं। बारात जाने के दिन जिस एक रस्म ने मेरा सर्वाधिक ध्यान खींचा, वह थी - भाई द्वारा बहन को दी जाने वाली भात की रस्म --
सजी-धजी महिलाएं एक गोलाकार घेरा बनाकर मधुर स्वर में एक गीत गा रही थीं - मत बरसों इन्दर राजा मेरी माँ का जाया भीन्जे।
भाई-बहन के रिश्तों का माधुर्य और महत्ता को गीत की इस प्रथम पंक्ति में जितनी खुबसूरती से उकेरा गया है, उसका उदाहरण विरले ही मिलता है। अपने भाई और भाभी का विधिवत पूजन, वर की माँ द्वारा किया जा रहा था। भैया-भाभी काठ के एक पीढ़े पर खड़े थे। बहन ने उनको तिलक लगाकर, आरती उतारी और एक लम्बे रक्षासूत्र से दोनों को एक सूत्र में बांधा। हिन्दू विवाह-पद्धति में प्रत्येक रस्म एक गूढ़ सन्देश प्रेषित करता है। भात के रस्म के माध्यम से भाई मैके की तरफ से अपनी हैसियत के अनुसार और प्राय: उससे बढकर गहने, कपड़े और नकद का भेंट लाता है जिसे बहन सहर्ष स्वीकार करती है और तिलक, आरती तथा रक्षा सूत्र के माध्यम से भैया-भाभी के दीर्घजीवन, सम्पन्नता और एक सूत्र में बंधे रहने की कामना करतीं है। पहले पिता की संपत्ति में कन्या का अधिकार नहीं होता था, परन्तु ऐसी रस्मों के माध्यम से जीवन भर लड़की का हिस्सा उसतक पहुँचाया जाता था। इससे संबंधों में माधुर्य भी बना रहता था और सम्बन्ध भी प्रगाढ़ होते जाते थे। जिस तरह पश्चिम भारत  में भाई और भात की रस्म के बिना लड़के या लड़की के ब्याह की कल्पना नहीं की जा सकती, उसी तरह बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में भाई द्वारा अपनी बहन को इमली घोंटाने की रस्म के बिना विवाह का कार्यक्रम आगे बढ़ ही नहीं सकता। इसी दिन के लिए सभी हिन्दू बहनें भाई की कामना करती हैं।
अब महानगरीय आपाधापी में भले ही बड़े शहरों में समाज के सभी तबकों और सभी संबंधियों से सहयोग लेने और देने की भावना कम हो गई हो लेकिन रस्म अदायगी तो अब भी की जाती है। कस्बों और देहातों में सारी परम्पराएँ ज्यों की त्यों व्यवहार में लाई जाती हैं। जन्म से लेकर शादी-विवाह तक में बहन और बुआ का सर्वाधिक महत्त्व होता है। भोजपुरी लोकगीतों में आँख आंजने से लेकर लापर परिछने और विवाह के बाद पत्नी के साथ घर लौटने पर बहनों द्वारा द्वार-छेंकी की रस्म को भला कोई कैसे भूल सकता है! इन रस्मों के दौरान भाई-बहन और ननद-भौजाई के बीच के मनुहार से लोक साहित्य पटा पड़ा है। वाध्यता ऐसी है कि बिना  बहन और बुआ को संतुष्ट किये कार्यक्रम आगे नहीं बढ़ सकता है। रिश्तेदारों और सम्बन्धियों के अलावे गांव के सभी जातियों के अनिवार्य सहयोग को भी रस्मों का अंग बनाया गया है। धोबिन सुहाग देती है, हजामिन नाख़ून काटती है, चमारिन नार काटती है, कुम्हार कलश देता है, बढ़ई पीढ़ा बनाता है, हरीस देता है, लोहार हल का फाल देता है, सोनार गहने बनाता है, डोम मौर बनाता है, डाल देता है और सिंहा बजाकर बारात की रवानगी का निर्देश देता है। पंडितजी के मंत्रोच्चार के बिना तो विवाह हो ही नहीं सकता। सभी अपने हिस्से के रस्मों के लिए मुहमांगा न्योछावर लेते हैं। ये स्वस्थ परम्पराएँ सदियों से परस्परावलंबन का सन्देश दे रही हैं। परावलंबन निन्द्य है, स्वावलंबन प्रशंशनीय है पर परस्पर अवलम्बन अनुकरणीय है। यह परस्परावलंबन ही हमारे प्राचीन देश, समाज और संस्कृति को एकजुट रखने में अबतक प्रभावी रहा है।
हमारे समाज में शादी-ब्याह के समारोह सबसे शानदार और भव्य ढंग से मनाये जाते हैं। समाज का हर तबका अपनी औकात से ज्यादा खर्च करता है। क़र्ज़ लेकर फिजूलखर्ची का समर्थन तो कतई नहीं किया जा सकता लेकिन जो खर्च कर सकते हैं, उन्हें खर्च करने देना चाहिए। कैटरर, बैंड पार्टी, सजावट करने वाले, फूल वाले, आतिशबाजी वाले, शहनाई वाले........ ऐसे सैकड़ों छोटे कामगार हैं जिनका कोई नियमित व्यवसाय नहीं होता। उनकी  आजीविका शादी- ब्याह जैसे समारोहों पर ही पूर्णतया निर्भर है। फिर इन समारोहों पर खर्च किया गया पैसा किसी स्विस बैंक में भी नहीं पहुंचता। संघे शक्ति कलियुगे। परिवार, कुटुंब और समाज के मज़बूत संगठन के प्रोत्साहन में ये समारोह सदियों से ध्रुवतारा बनकर हमारा मार्गदर्शन कर रहे हैं।
आज जब एकल परिवार हमारी मज़बूरी बन गया है, ऐसे में हमारी स्वस्थ परम्पराओं का अगली पीढ़ी को पारेषण एक समस्या बन गई है। शादी-विवाह में सामूहिक एकत्रीकरण एवं सभी रस्मों और नियमों का सार्वजनिक पालन अगली पीढ़ी को प्रशिक्षित करने में काफी सहायक होता है। इन्हीं समारोहों के कारण हम आज तक अपनी सभ्यता, संस्कृति और स्वस्थ परम्पराओं को प्रभावी ढंग से अस्तित्व में रख पाए हैं। पहले सभी रिश्तेदार आस-पास ही रहते थे। लेकिन आज इस ग्लोबलैज़ेशन के युग में एक ही परिवार का एक सदस्य यूरोप में रहता है, दूसरा अमेरिका में, तो तीसरा हिंदुस्तान में ही दो हज़ार किलोमीटर की दूरी पर रहता है। अगर शादी- ब्याह न हो तो वर्षों तक एक दूसरे से कभी भेंट-मुलाकात न हो। कैसा है इन समारोहों में शामिल होने का आकर्षण की लोग-बाग लाखों खर्च करके आते है और कई दिनों तक रहकर अपनी सक्रीय भागीदारी करते हैं। संबंधों के नवीनीकरण का इससे सुन्दर कोई उपाय हो ही नहीं सकता।