Wednesday, May 28, 2014

भारत की आज़ादी


१५ अगस्त १९४७ को इन्डिया आज़ाद हुआ था। वह एक अधूरी आज़ादी थी। हम मानसिक रूप से गुलामी की अवस्था में ही जी रहे थे। २६ मई, २०१४ को भारत आज़ाद हुआ। हमने मानसिक गुलामी की जंजीरें तोड़ डाली। प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में सर्वत्र भारत दिखाई पड़ रहा था। ब्रिटेन और अमेरिका के अखबारों ने अन्त अन्त तक मोदी का घोर विरोध किया। लोकसभा चुनाव के पहले ब्रिटेन का प्रमुख अन्तराष्ट्रीय अखबार ‘गार्जियन’ यूरोप, अमेरिका और भारत के भी उन अंग्रेजी अखबारों में शामिल था, जिन्होंने भारतीय मतदाताओं से विभाजनकारी नरेन्द्र मोदी को न चुनने की  सेक्युलर बुद्धिजीवियों की अपीलें जोरदार ढंग से छापी थीं। लेकिन मोदी की भारी जीत के बाद इनके सुर अचानक बदल गये। १८ मई को गार्जियन ने अपने संपादकीय में लिखा - “मोदी की जीत दिखाती है कि अंग्रेज आखिर भारत से चले गए।” पश्चिम के एक और अखबार ने उन्हीं दिनों लिखा - “भारत एक केन्द्रीकृत, बाड़ों में बन्द, सांस्कृतिक रूप से दबा हुआ और पूर्ववर्तियों की तरह अपेक्षाकृत छोटे, अंग्रेजी बोलने वाले संभ्रान्त वर्ग द्वारा शासित देश था, जिसका आम लोगों के प्रति नज़रिया उनको नज़रानें बांटने और उनका फायदा उठाने का तो था, लेकिन सबको साथ लेकर चलने वाला कभी नहीं था।” इस अखबार समेत कई विचारक अब मान रहे हैं कि “नया भारत खैरात नहीं, अवसर और अपनी पहचान चाहता है और यह किसी की धौंस में आने को राजी नहीं है।” चर्चित समाचार वेबसाईट ‘हफ़िंगटन पोस्ट’ में प्रख्यात ब्लागर वामसी जुलुरी ने भाजपा विरोधी पार्टियों के सेक्युलरिज्म को ‘हिन्दुफ़ोबिया’ बताया है और लिखा है कि यह जनादेश जितना सुशासन और विकास के लिये है, उससे कही अधिक इस नए उभरते हुए विचार की घोषणा के लिये भी है कि विश्व में हिन्दू और भारतीय होने का क्या मतलब है; सर्व धर्म समादर और शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व जिसके सभ्यतागत जीवन मूल्य हैं। यह नया रूप १९८०-९० दशक के हिन्दू राष्ट्रवादी उभार से अलग है। भारतीयता का यह बोध उग्र राष्ट्रवाद और अल्पसंख्यकों की लानत-मलामत को तवज्जो नहीं देता, फ़र्जी सेक्युलरवाद और उद्धत राष्ट्रवादी अतिरेक, दोनों को नकारता है। प्रचलित धारणा के उलट भारत के लोगों ने ठीक ही सोचा कि यह चुनाव सेक्युलरिज्म और हिन्दू उग्रवाद के बीच नहीं बल्कि ‘हिन्दूफ़ोबिया’ और ‘भारत सबके लिए’ के बीच है।”
पश्चिमी जगत के अखबारों के ये बदलते स्वर अनायास नहीं हैं। सचमुच भारत की जनता को भी यह विश्वास है कि भारत की सांस्कृतिक विरासत को विश्व में एक नई पहचान देते हुए प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी इसे विकास की नई ऊंचाई प्रदान करेंगे। अगर हम निष्पक्ष समीक्षा करेंगे तो यह पायेंगे कि १९४७ में आज़ादी पाने के बाद भी हम मानसिक रूप से अंग्रेजों के गुलाम रहे। भारत की संसद, सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट की कार्यवाही देखने के बाद क्या कोई विश्वास के साथ कह सकता है कि हम एक आज़ाद देश के वासी हैं। हम भारतवासी अंग्रेजी, अंग्रेज और अंग्रेजियत के इस कदर गुलाम रहे कि एक वंश के शासन को ६० वर्षों तक स्वीकार करते रहे। हद तो तब हो गई जब अंग्रेजों के खिलाफ़ आज़ादी की लड़ाई लड़ने वाली कांग्रेस ने एक आयातित गोरी चमड़ी का नेतृत्व सहज भाव से स्वीकार कर लिया। कांग्रेस के कुशासन से तंग आकर जनता ने एक खांटी देसी व्यक्ति को देश की कमान देकर भारत में कांग्रेस मुक्त राज की कल्पना को साकार किया है। कांग्रेस से मुक्ति पाये बिना सुशासन की कल्पना एक दिवास्वप्न थी। चाटुकारों और स्वार्थी तत्वों ने इस देश के स्वाभिमान को रसातल में पहुंचा दिया है। जनता ने उन्हें नकार दिया। लेकिन अभी भी कई काम अधूरे हैं। चुनाव ने तो राज को कांग्रेस मुक्त बना दिया लेकिन अगर कांग्रेसियों में तनिक भी स्वाभिमान शेष है तो भारत की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी को विदेशी नेतृत्व से मुक्त कराना होगा। वंशवाद की जिस बेल का कांग्रेस ने खाद-पानी देकर ६७ वर्षों से हरा-भरा किया, वह विषबेल अब भाजपा और कम्युनिस्ट पार्टियों को छोड़ सभी पार्टियों को अपनी गिरफ़्त में ले चुकी है। यह विषबेल लोकतंत्र और भारत के लिये भी गंभीर चुनौती है। अच्छे दिन आ गये हैं। हम आशा करते हैं कि हमारे महान राष्ट्र को वंशवाद से भी शीघ्र मुक्ति मिल जायेगी। बिहार ने राह दिखा दी है। अन्यों को सिर्फ़ अनुसरण करना है।

Tuesday, May 20, 2014

वंशवाद की विषबेल

        आज़ादी के बाद अगर अंग्रेज भी ब्रिटिश कांग्रेस पार्टी के नाम से चुनाव लड़ते तो कम से कम ४४ सीटें जरुर पा जाते। उपलब्धियों के नाम पर गिनाने के लिये उनके पास ढेर सारे प्रकरण थे। भारत में विश्व की सबसे लंबी रेल लाईन का निर्माण उन्होंने किया था, डाक-तार सेवा का आरंभ उन्होंने किया था, न्याय प्रणाली की स्थापना उन्होंने की थी, पुलिस-व्यवस्था उन्हीं की देन थी आदि, आदि। कांग्रेस की तरह अपनी इन उपलब्धियों का मीडिया और गुलाम चाटुकारों के माध्यम से प्रचार करके वे बड़ी आसानी से भारतीय राजनीति में एक सम्मानजनक उपस्थिति दर्ज़ करा सकते थे लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। कारण यह था की अंग्रेजियत की पालकी ढोने के लिये उनकी चहेती पार्टी कांग्रेस में ही अग्रिम पंक्ति के नेताओं की कोई कमी नहीं थी। पंडित नेहरू के प्रधानमंत्री बनने के कारण वे आश्वस्त थे कि ब्रिटेन और अमेरिका के हित पहले की तरह ही सुरक्षित रहेंगे। देश की एकता, अखंडता और सामाजिक सौहार्द्र को छिन्न-भिन्न करने की जो कोशिश वे २०० वर्षों तक करते रहे, नेहरू जी ने आते ही उसे अंजाम दे दिया। सांप्रदायिक आधार पर देश को दो टुकड़ों में बांट दिया। नेहरू जी इससे भी संतुष्ट नहीं हुए। कश्मीर का एक तिहाई हिस्सा पाकिस्तान को दे दिया और बचे कश्मीर को धारा ३७० का उपहार देकर शेष भारत से हमेशा के लिये काट दिया। हिन्दी-चीनी भाई-भाई का नारा लगाकर उत्तर पूर्व की ६०००० वर्ग किलो मीटर जमीन चीन को उपहार में दे दिया। सदियों से स्वतंत्र देश तिब्बत को खुशी-खुशी चीन का गुलाम बना दिया। ज्ञातव्य है कि १९६२ के पूर्व भारत की सीमायें कही भी चीन से नहीं मिलती थीं। देश की एकता और अखंडता के साथ उन्होंने जितना खिलवाड़ किया उतना उनकी प्यारी बेटी ने भी नहीं किया। लेकिन हिन्दुस्तान पर तानाशाही थोपने का प्यारी बेटी ने अभूतपूर्व प्रयोग किया। कुर्सी बचाने के लिये देश में आपात्काल थोप दिया गया। आपात्काल की सबसे बड़ी देन थे संजय गांधी जिन्हें न संविधान में विश्वास था और न नियम-कानून में। हिन्दुस्तान वंशवाद की बेड़ी में पुनः परतंत्र हो गया। जनता ने पहली बार अपनी ताकत दिखाई और वंशवाद एक ही झटके में धूल चाटता नज़र आया। लेकिन इस देश में न तो जयचन्दों की कमी रही है और न मीरज़ाफ़रों की। जनता के विश्वास को एक बार फिर सत्ता के दलालों ने धोखा दिया और ढाई साल बाद ही वंशवाद पुनः स्थापित हो गया जो कुछ छोटे अन्तरालों को छोड़कर फलता फूलता रहा। हद तो तब हो गई जब कांग्रेसियों ने देश की सत्ता एक विदेशी महिला को सौंपने का निर्णय ले लिया। भला हो मुलायम सिंह यादव, डा. सुब्रह्मण्यम स्वामी और तात्कालीन राष्ट्रपति डा. ए.पी.जे. कलाम का जिन्होंने इटली और अमेरिका की मन्शा पूरी नहीं होने दी। निराश महिला ने रिमोट कन्ट्रोल से सत्ता संचालित करने का निर्णय लिया। वरिष्ठ और योग्य नेताओं को दरकिनार कर एक नौकरशाह को प्रधानमंत्री बना दिया गया। सफल नौकरशाह बहुत अच्छे YES MAN होते हैं। मनमोहन सिंह इस कसौटी पर खरे उतरे। पिछले १० सालों में वंशवाद ने पूरे देश में नंगा नाच किया। भ्रष्टाचार, महंगाई, अराजकता ने सुरसा के मुंह की तरह विस्तार पाया। राष्ट्रीय सुरक्षा, अर्थव्यवस्था, न्याय, नैतिकता - सबके सब मां-बेटे की सरकार की भेंट चढ़ गए। दामाद ने एक लाख लगाकर ३०० करोड़ की संपत्ति अर्जित कर ली और स्वयं विदेशी खातों में जमा अकूत धन के स्वामी बन बैठे। शहज़ादे की ताज़पोशी के लिए चाटुकारों की विशेष टोली का निर्माण किया गया जिसमें झूठ के बड़बोले और चरित्रहीनों का दबदबा था। दिग्विजय सिंह, अभिषेक मनु सिंहवी, शशि थरुर, कपिल सिब्बल, सलमान खुर्शीद, जनार्दन द्विवेदी आदि आदि विरोधियों का चरित्रहरण और शहज़ादे की वन्दना करने के लिये चारण का काम मनोयोग से करने लगे। सभी एक ऐसे युवक के गुणों का बखान करने की होड़ लगाये हुए थे जो लिखित परीक्षा देकर बाबू की नौकरी पाने की पात्रता भी नहीं रखता था। बांह चढ़ाकर अपनी ही सरकार के आदेशों को पत्रकारों के सामने चिन्दी-चिन्दी करने के अलावे उसे कुछ भी नहीं आता था।
जनता के सब्र का बांध आखिर टूट ही गया। खंडित राजनीतिक आज़ादी हमने १९४७ में प्राप्त की थी लेकिन यह आज़ादी वंशवाद की गिरवी बन गई थी। नरेन्द्र मोदी की आवाज़ जन-जन की आवाज़ बनी और हिन्दुस्तान ने मानसिक गुलामी से मुक्ति पाने का निर्णय ले ही लिया। मोदी की आवाज़ अवाम की आवाज़ बन गई जिसे पूरे हिन्दुस्तान ने ध्यान से सुना। १६ मई को नतीज़ा पूरी दुनिया ने देखा। एक चमत्कार हुआ है जिसकी कल्पना कुछ साल पहले की नहीं जा सकती थी। भारत अपने स्वर्णिम भविष्य की ओर अग्रसर है। १९४७ अगर राजनीतिक आज़ादी के लिये याद किया जायेगा, तो निश्चय ही २०१४ भी मानसिक आज़ादी के लिये सदा स्मृति पटल पर रहेगा।
                              तेरा वैभव अमर रहे मां, हम दिन चार रहे न रहें।
    सत्यमेव जयते, भारत माता की जय, वन्दे मातरम।

Monday, May 12, 2014

काशी में मतदान

       मैं काशी के महामनापुरी का निवासी हूं और सौभाग्य से अन्तिम दौर तक मेरा नाम मतदाता सूची में मौजूद रहा। विधान सभा के लिये मैं रोहनिया के लिये और लोकसभा के लिए वाराणसी से अपने प्रतिनिधि चुनता हूं। दोनों की मतदाता सूची में मेरा नाम है लेकिन यह विडंबना ही है कि लोकतन्त्र के सबसे निचले पायदान, ग्राम पन्चायत की मतदाता सूची में मेरा नाम नहीं है। दो बार सूची में रहने के बाद तीसरी बार अचानक गायब हो गया। पता नहीं चुनाव आयोग हजारों करोड़ रुपए खर्च करके किस तरह मतदाता सूची तैयार कराता है कि जीवित मतदाता सूची से गायब हो जाते हैं और मृत जीवित हो उठते हैं। चुनाव आयोग और प्रशासन की महिमा लाख प्रयत्न करने के बाद भी मेरी समझ में नहीं आई। निष्पक्ष और प्रभावी मतदान की तैयारियों के लिये चुनाव आयोग द्वारा पानी की तरह बहाया गया पैसा गंगा की सफाई के लिये बहाये गये पैसों के समान ही है। जिस तरह गंगा मैली उसी तरह चुनाव आयोग भी।
मैंने आज सवेरे ही निर्णय लिया कि मतदान करने के बाद ही नाश्ता करुंगा। मतदान केन्द्र मेरे घर से १/२ कि.मी. की दूरी पर आई.टी.आई. करौदी में था। मैं सात बजे मतदान स्थल पर पहुंच गया। लोग मुझसे भी कई गुना जागरुक थे। सैकड़ों लोग पहले से ही लाईन में खड़े थे। पीठासीन अधिकारी और पोलिंग अधिकारी बहुत सुस्त थे। एक मतदाता पर कमसे कम तीन मिनट का समय ले रहे थे। मतदाताओं के लिये किसी तरह के शेड या तंबू की व्यवस्था नहीं थी। पसीने से तरबतर मतदाता चटखती धूप में अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रहे थे। दिन के नौ बजे ही बाहर का तापमान ४२ डिग्री पहुंच गया। प्यास से बुरा हाल था लेकिन आस-पास कही पानी की व्यवस्था नहीं थी। इतनी गर्मी में घंटों खड़े होकर मतदान करना ७५ के उपर के वरिष्ठ नागरिकों के लिये बहुत मुश्किल साबित हो रहा था। समाधान लाईन में खड़े मतदाता ही निकाल रहे थे। स्वयं पीछे रहकर बुजुर्गों को आगे कर दे रहे थे। बनारस की यह मौलिक तहज़ीब मुझे बहुत अच्छी लगी।
बूथ के अन्दर किसी बाहरी व्यक्ति का प्रवेश निषिद्ध था। राजनीतिक पार्टियों के कार्यकर्त्ताओं ने अपना केन्द्र २०० मीटर की दूरी पर पर ही रखा था। लेकिन बूथ के अन्दर आकर आम आदमी का एक कार्यकर्त्ता लाईन में खड़े मतदाताओं से झाड़ू पर मुहर लगाने का लगातार आग्रह कर रहा था। न पीठासीन अधिकारी उसे मना कर रहा था और न केन्द्रीय सुरक्षा बल के जवान। मुझसे नहीं रहा गया। मैं उसे लेकर पीठासीन अधिकारी के पास गया और शिकायत दर्ज़ कराई। उन्होंने लिखित शिकायत लेने से इन्कार कर दिया। तभी पेट्रोलिंग मज़िस्ट्रेट साहब पधारे। मैंने उनसे भी शिकायत की। उन्होंने उसे बाहर भेज दिया। मैं उसकी गिरफ़्तारी की मांग कर रहा था लेकिन चुनाव अधिकारी और मजिस्ट्रेट ने उसे राहत देते हुए सिर्फ़ बाहर भेजा। यह घटना भाग संख्या ३०९ के पोलिंग बूथ पर हुई। मैं अपना मोबईल फोने घर पर ही छोड़ आया था इसलिये कोई फोटो नहीं ले पाया लेकिन अगर सीसी टीवी कैमरा उस बूथ पर लगा होगा तो उस अवांछित एजेन्ट, मेरी, चुनाव अधिकारी तथा मजिस्ट्रेट की बातचीत अवश्य रिकार्ड हुई होगी। यह घटना सवेरे ७.३० बजे की है।
कुछ ही देर बाद ‘आप’ का एक नेता टोपी लगाये हुए बूथ पर पहुंचा और उसने भी वही करना शुरु किया जो कुछ देर पहले ‘आप’ के एक कर्यकर्त्ता ने किया था। लोगों ने उसकी उपस्थिति और वह भी पार्टी की टोपी में, कड़ा विरोध किया। टोपी उतारकर उसे भी जाना पड़ा।  यह घटना भाग संख्या ३१० के पोलिंग बूथ पर सवेरे ८ बजे घटी। पुलिस के जवान और चुनाव अधिकारी सिर्फ़ तमाशबीन रहे। दो घंटे की मिहनत के बाद मैं वोट डालने में सफल रहा। घर आकर टीवी पर समाचार देखा। कांग्रेस के प्रत्याशी अजय राय सीने पर पंजे के बैज के साथ सीना तानकर पोलिंग बूथ में पहुंचे और वोट दिया। मीडिया के अलावे किसी ने इसपर आपत्ति नहीं की। कोई शायद ही भूला होगा जब वोट डालने के बाद पोलिंग बूथ से २०० मीटर की दूरी के बाहर संवाददाताओं से बातचीत में फूल दिखाने पर बदोदरा में नरेन्द्र मोदी पर एफ़.आई.आर. दर्ज़ हुई थी। सारे मोदी विरोधी दलों और प्रत्याशियों को चुनाव आयोग और प्रशासन का संरक्षण मिल रहा है। यह अनजाने में नहीं हो रहा है, बल्कि पूर्ण रूप से नियोजित है। देखते हैं देश की जनता इस मिलीभगत का उत्तर कैसे देती है?

Saturday, May 10, 2014

चुनाव आयोग की आंखें बन्द क्यों हैं?

            भारत की सबसे चर्चित लोकसभा की सीट से नरेन्द्र मोदी का मुकाबला अरविन्द केजरीवाल से है। एक ओर मोदी के लिये प्रशासन तरह-तरह के प्रतिबन्ध और मुश्किलें खड़ी करने के किए संकल्पबद्ध है, तो दूसरी ओर केजरीवाल के लिए सहुलियतों का पिटारा खोलने में न तो उसे कोई संकोच हो रहा है और न कोई अड़चन। चुनाव आयोग ने भी आंखें बन्द कर रखी है। कुछ बानगी का वर्णन निम्नवत है ---
      १. श्रीमती सुनीता केजरीवाल केन्द्र सरकार के आयकर विभाग में आयकर उप आयुक्त/आयुक्त हैं। वे अपनी पहली पोस्टिंग से लेकर आज तक, लगभग २० वर्षों से बिना किसी स्थानान्तरण के सोनिया गांधी की सिफ़ारिश पर दिल्ली में ही जमी हुई हैं। वे केजरीवाल की पत्नी हैं। किसी भी सरकारी कर्मचारी या अधिकारी के लिये किसी भी राजनीतिक पार्टी का चुनाव करना वर्जित है। इन्दिरा गांधी का राय बरेली से लोकसभा का चुनाव इसी आधार पर १९७५ में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अवैध घोषित किया था। उन्होंने कुछ केन्द्रीय कर्मचारियों की मदद अपने चुनाव-प्रचार के लिये ली थी। आहत इन्दिरा गांधी ने कुर्सी की रक्षा के लिये जून १९७५ में इमर्जेन्सी लगा दी। श्रीमती केजरीवाल पिछले एक महीने से बनारस में रहकर आम आदमी पार्टी का चुनाव प्रचार कर रही हैं। २५ मार्च को वे बेनियाबाग की रैली में सार्वजनिक रूप से देखी गईं, २६ मार्च को रोड शो में केजरीवाल के साथ उन्होंने जनता से संपर्क किया, २३ अप्रैल को रोड शो और नामांकन के दौरान वे आप की रैली में खुलेआम घूम रही थीं और दिनांक ९-५-१४ के रोड शो में भी आप और केजरीवाल का प्रचार सार्वजनिक रूप से कर रही थीं। वे नित्य ही आप के चुनाव कार्यालय में बैठकर चुनाव का संचालन करती हैं। क्या यह आदर्श चुनाव संहिता और कर्मचारी आचरण नियमावली का खुल्लमखुल्ला उल्लंघन नहीं है? चुनाव आयोग और केन्द्र सरकार इसपर आंख मूंदे हुए हैं।
      २. स्थानीय प्रशासन और चुनाव आयोग ने नरेन्द्र मोदी को दिनांक ८-५-१४ को बेनिया बाग में रैली करने की इज़ाज़त नहीं दी। स्मरण रहे कि इसी प्रशासन ने केजरीवाल को २५ मार्च को बेनिया बाग में रैली करने दी और सारी सुविधायें मुहैया कराई। 
      ३. जिस प्रशासन ने मोदी को खुले मैदान में आम सभा की अनुमति नहीं दी, उसी प्रशासन ने केजरीवाल को पक्का महाल की छतों पर सभा करने की इज़ाज़त दी है। पक्का महाल बनारस का वह हिस्सा है जो अति प्राचीन है और संकरी गलियों के लिये प्रसिद्ध है। इन गलियों में एक सांढ़ भी प्रवेश कर जाता है, तो ट्रैफ़िक जाम हो जाता है। मकान सैकड़ों वर्ष पुराने हैं। समझ में नहीं आता कि ऐसे मकानों की छत पर आम सभा की अनुमति प्रशासन ने कैसे दे दी? यह अलग बात है कि स्थानीय जनता ने केजरीवाल को एक भी छत उपलब्ध कराने से इन्कार कर दिया और केजरीवाल की योजना धरी की धरी रह गई।
      ४.  दिनांक २३-४-१४ को केजरीवाल के कलेक्टेरेट में पहुंचने के बाद कुछ ही सेकेन्ड में उनका नामांकन पत्र ले लिया गया लेकिन इसी काम के लिये नरेन्द्र मोदी को ४५ मिनट तक खड़ा रखा गया जिसे सारे देश ने देखा।

      ऐसे में पूर्व चुनाव आयुक्त टी.एन.शेषन की याद आती है। उनके लिये सत्तारुढ़ और विपक्षी - सभी बराबर थे। क्या चुनाव आयोग की निष्पक्षता के वे दिन कभी लौटेंगे?

Monday, May 5, 2014

एक पाती दिग्गी चाचा के नाम

(अ) आदरणीय दिग्गी चाचा, 
जय कामदेव की।
आगे समाचार है कि जबसे तुम्हरी और ३१ वर्षीया अमृता चाची की शादी की खबर काशी वालों को मीडिया के माध्यम से मिली है, दुनिया भर में चर्चित काशी की चुनाव-चर्चा पर विराम लग गया है। अब तो पप्पू चाय वाले की दूकान पर भी तुम्हारी ही चर्चा चल रही है। केजरीवाल के प्रचार में लगे दिल्ली से आये नौजवान अपना भविष्य खतरे में देख रहे हैं और बुजुर्ग कांग्रेसियों में गज़ब का उत्साह आ गया है। मोदी के समर्थक हमेशा की तरह अपनी भावनाओं पर नियन्त्रण तो रखे हुए हैं लेकिन चाय के साथ कचौड़ी और जिलेबी के साथ चच्ची की शहद और तुम्हारे नवरतन नमकीन पर खूब चटकारे ले रहे हैं। काशी के ६७ साल के उपर के कांग्रेसी बुढवों पर तो जैसे जवानी का नशा छा गया है। सभी जेन्ट्स ब्युटी पार्लर फ़ुल चल रहे हैं। कोई फ़ेसियल करा रहा है, तो कोई ब्लिचिंग। कोई थ्रेडिंग करा रहा है, तो कोई वैक्सिंग। मूंछ, दाढ़ी और बाल तो सब रंग रहे हैं। बाज़ार से गोदरेज, गार्नियर, लोरियल, काली मेंहदी -- सब तरह के डाई गायब हो गये हैं। अबतक जो लाल मेंहदी से काम चलाते थे, वे भी अब ब्लैक डाई कर रहे हैं। बूढे कांग्रेसी तो बाल काला करके दिन-रात बीएचयू के सिंहद्वार से लेकर रविदास गेट तक लंकेटिंग कर रहे हैं। अमृता चच्ची बीएचयू से ही पढ़ी-लिखी हैं, इसलिये इन बुढ़वों को लंका में अपार संभावना दिखाई पड़ रही है। बीएचयू की लड़कियों की आजकल शामत आई हुई है। बेचारियां हास्टल से निकलने में भी डर रही हैं। बुढ़वे उम्र का लिहाज़ छोड़कर अब धड़ल्ले से किशोरियों को भी घूर रहे हैं।
चाचा, ई भाजपाइयन के पास कवनों काम नहीं रहता है का क्या? जब देखो, तुम्हारी ही चर्चा करते रहते हैं। आजकल चुनाव प्रचार के दौरान मोदी के लिये तो वोट मांगते ही हैं, तुम्हारी और चच्ची की आलिंगनबद्ध तस्वीर भी जनता को दिखाते चल रहे हैं। ई कवनो नींक बात नहीं है। पर्सनल लाइफ़ में इन्टरफ़ेरेन्स की तो कानून भी इज़ाज़त नहीं देता है। चुनाव आयोग से शिकायत करके इस पार्टी पर ही बैन क्यों नहीं लगवा देते? जब फूल दिखाने पर मोदी के खिलाफ़ एफ़आईआर दर्ज़ करवा सकते हो, तो इतने बड़े ज़ुर्म के लिये बैन से कम कोई सज़ा हो ही नहीं सकती। और सुनो चाचा, शदिया में इतना डिले काहे कर रहे हो? आनन्द प्रधनवा तुम्हारा क्या बिगाड़ लेगा? उसको पटाओ। कहीं से राज्य सभा का सदस्य बनवा दो। आपसी सहमति से तलाक की अर्ज़ी दिलवाकर जज को बालकृष्णन से फोन करा दो। दो दिन में फ़ैसला आ जायेगा। जितना डिले करोगे, भाजपइया चुनाव में उतना ही लाभ लेंगे। तुम्हारा बेटवा बहुत समझदार हो गया है। नय़ी मम्मी के स्वागत में बढ़िया स्टेटमेन्ट दिया है। इसी तरह का फ़ेवरेबुल स्टेटमेन्ट अपनी चारों बेटियों से भी दिलवा लो और ब्याह तुरत रचा लो। और कहीं से गड़बड़ी की आशंका नहीं है सिवाय भाजपाइयन के। यही तुम्हारा प्रोजेक्ट गुड़-गोबर कर सकते हैं। एक सलाह दे रहा हूं चच्चा, बहुत बेशकीमती है। ध्यान से सुनना। आरे, मैडम से कहकर इमर्जेन्सी काहे नहीं लगवा देते? जून १९७५ में ही तो तुम्हारी मदर इन्डिया ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के जजमेन्ट के बाद इमर्जेन्सी लगाकर अपनी कुर्सी बचाई थी। तुम क्या समझते हो, इस मोदी की सुनामी के बाद तुम्हारी, मैडम और शहज़ादा की कुर्सी सलामत रहेगी? बिल्कुल नहीं। इमर्जेन्सी लगाना कांग्रेसियों का खानदानी पेशा है। इसमें हिचक कैसी? Everything is fair in love and war. इस समय वार भी है और लव भी। जब इमर्जेन्सी लगाकर इन्दिरा जी ने जय प्रकाश नारायण, अटल बिहारी वाजपेयी, मोररजी देसाई, चन्द्रशेखर, चरण सिंह, राजनारायण, लाल कृष्ण आडवानी जैसे दिग्गजों को जेल में ठूंसकर बोलती बन्द कर दी, तब ये नरेन्दर मोदी, राजनाथ, अरुण जेटली, अमित शाह कवना खेत की मुरई हैं। कितना अच्छा लगेगा जब दिल्ली की खाली सड़कों पर तुम्हारी बारात निकलेगी। चच्चा, देरी मत करो। मुहुरत निकलवाओ, इमर्जेन्सी और शादी, दोनों का।
आज लंका में केशव की पान की दूकान पर बतकही हो रही थी कि तोहरी शादी में कन्यादान देने के लिये नारायण दत्त तिवारी ने शर्त रखी थी कि चच्ची, शादी के पहले उनके घर में रहेगी। होता तो ऐसा ही है। शादी के पहले सभी लड़कियां पितृगृह में ही रहती हैं। लेकिन यह बुढ़वा पुराना कांग्रेसी है। बहुते खतरनाक है। डीएनए पत्नी डा. उज्ज्वला शर्मा को फिर से कुछ दिनों के लिये घर से भगा देगा। अच्छा किया जो तुमने मैडम और अहमद पटेल का चुनाव कन्यादान के लिये किया है। तिलक तो भाई चढ़ाता है लेकिन पप्पू की शर्त भी मन्जूर करने लायक नहीं थी। बताओ, यह भी कोई बात है? वह कह रहा था कि शादी के पहले एक महीने तक अमृता चच्ची के साथ बुन्देलखंड की दलित बस्ती में रहकर उसके हाथ की रोटी खायेगा। तिलक चढ़ाने के लिए शशि थरुर ठीक रहेगा। लेकिन उसको साफ-साफ बता देना कि चच्ची को लेकर किसी होटल में नहीं जायेगा। उसकी दूसरी पत्नी सुनन्दा का इन्तकाल होटले में हुआ था। शादी में एक नेग लावा मिलाने का भी होता है। यह रस्म भी भाई ही करता है। अभिषेक मनु सिंघवी यह काम कर सकता है। लेकिन उसपर पैनी दृष्टि रखनी होगी। कहीं चच्ची को लेकर किसी दिन सुप्रीम कोर्ट के अपने चैंबर में न चला जाय। लेकिन चिन्ता की कोई बात नहीं। सीबीआई किस दिन काम आयेगी। दुल्हे के जूते चुराने के लिये कम से कम एक साली की भी व्यवस्था करनी पड़ेगी। अरे, वो कौन है जो एक, दो, तीन पर पर्फ़ेक्ट डान्स करती थी और जूते भी बड़ी सफ़ाई से पार करती थी? नाच-नाच के गाती भी थी - जूते ले लो, पैसे दे दो। उसका नमवा भी इसी समय भूलना था! का करें, तुम्हारी तरह हमारी भी अकल सठिया गई है। हां, याद आ गया। माधुरी दीक्षित। जूता चुराने के लिए उसी को बुला लो। “हम आपके होते हैं कौन” की तरह तुम्हारी शादी की सीडी भी हिट हो जायेगी। अगर वह किसी कारण से तैयार नहीं होती है तो डमी कैन्डिडेट के रूप में ‘आप’ की युवा नेता शाज़िया इल्मी के नाम पर भी विचार किया जा सकता है। दिल्ली के चुनाव के बाद वह खालिए बैठी है। जयमाल के समय चच्ची को बुरके में ले आना। कांग्रेसियों का क्या भरोसा? आंख से भी एके-४७ की तरह फ़ायर करते है। चच्ची को बुरके में लाने के दो फायदे होंगे - नंबर एक कि उन्हें कोई बुरी नज़र नहीं लगेगी। नंबर दो कि सेकुलरिज्म तुम्हारा पेटेन्ट हो जायेगा। लालू का एम-वाई समीकरण भी तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ पायेगा। कुछ काम मौनी बाबा को भी दे देना। उनसे किसी तरह का कोई भी खतरा कभी भी नहीं रहता। पूरब में शादी के बाद मण्डप में एक विशेष बन्धन को खोलकर लड़के का पिता यानि समधी लड़की के पिता को बन्धनमुक्त करता है। इसे बन्धन-खोलाई कहते हैं। मौनी बाबा से यह काम जरुर कराना। २-जी, ३-जी, कामनवेल्थ, कोलगेट, बोफ़ोर्स, भ्रष्टाचार, महंगाई, वन्शवाद, राजतन्त्र और इटली-अमेरिका के बन्धनों से देश को भी तो मुक्त होना है। अरविन्द केजरीवलवा को भी कवनो काम दे देना, नहीं तो बिना खदी-बदी धरने के लिये जन्तर-मन्तर बुक करा लेगा। वैसे भी आजकल वह तुम्हीं लोगों का तो प्रौक्सी वार लड़ रहा है। एके-४९, मनीष शिसोदिया और आशुतोष राणा को प्रचार-प्रसार, मीडिया मैनेजमेन्ट और कार्ड बांटने का काम दे देना। यह मत भूलना की तुम्हारा सवता (अवधी में सौतेले पति के लिये यह शब्द प्रयुक्त होता है) आनन्द प्रधान भी आम आदमी पार्टी का ही नेता है।
मैं सोचता हूं - कैसी होगी वह शाम जब दिल्ली की सड़कों पर तुम्हारी बारात निकलेगी। मेरा बदन रोमान्च से भर जाता है, पांव थिरकने लगते हैं और होठों पर अनायास किसी पुरानी फ़िल्म के बोल दुबारा स्वर बन जाते हैं - दिग्गी की आयेगी बारात, रंगीली होगी रात, मगन मैं नाचूंगा ......। क्या नज़ारा होगा जब मल्लिका-ए-हिन्दुस्तान शहज़ादा और शहज़ादी के साथ नृत्य करते हुए बारात के आगे-आगे चलेंगी। नारायण दत्त तिवारी पुष्प-वर्षा करेंगे, अभिषेक मनु सिंघवी और शशि थरुर  बैड-बाज़ा पर विशेष धुन बजायेंगे - मेरी प्यारी बहनिया, बनी है दुल्हनिया, सजके आये हैं दिग्गी राजा, भैया राजा बजाये हैं बाज़ा.........। देश भर के कांग्रेसी नेता काली जिन्स और नेहरू-एडविना माउन्ट्बेटन युगल की रंगीन तस्वीर वाली सफ़ेद टी शर्ट पहनकर बारात में डिस्को करते हुए चलेंगे। दूरदर्शन संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त सारी भाषाओं में इसका लाइव टेलिकास्ट करेगा और सारे हिन्दुस्तानी नरेगा के मज़दूरों की तरह टीवी पर आंख लगाकर जिया जुड़ायेंगे। 
चच्चा। जल्दी करो। चच्ची को देखने का बहुत मन कर रहा है। तैयारी बहुत करनी है। बोलो, कब आ जाऊं? इहां हम राजी-खुशी हैं। तुम्हारा क्या पूछना ---- दसों ऊंगली घी में, सिर कड़ाही में।
              इति शुभ।
 तुम्हारा अपना ही  -- भतीजा बनारसी।

Thursday, May 1, 2014

चुल्लू भर पानी में डूब मरो दिग्विजय

        किसी की निजी ज़िन्दगी में ताक-झाँक हमेशा निंदनीय होता है. पिछली पीढ़ी ने इसका धार्मिक रीति-रिवाज़ की तरह पालन किया था. कांग्रेस और देश को पता था कि अपने ब्रह्मचर्य की स्वयं परीक्षा लेने के लिए महात्मा गाँधी नंगी लड़कियों के साथ सोते थे. यह उनका निजी प्रयोग था. इसलिए गांधीजी की मृत्यु के बाद भी लम्बे समय तक इसपर सार्वजनिक चर्चा नहीं की गई. भारत कोकिला सरोजिनी नायडू की पुत्री पद्मजा नायडू से पंडित जवाहर लाल नेहरू के रिश्ते जगजाहिर थे. दोनों शादी भी करनेवाले थे. नेहरूजी की ज़िन्दगी में लेडी माउंट बैटन के आने के पूर्व पद्मजा नेहरूजी के साथ तीन मूर्ति भवन में ही रहती थीं. लेडी माउंट बैटन आंधी की तरह आईं और अल्प समय में ही तूफान की तरह चली गईं. सबकुछ जानते हुए भी विरोधियों ने इस सम्बन्ध पर सार्वजनिक चर्चा नहीं की. लेडी माउंट बैटन के  मरने के बाद नेहरू और उनके चुने हुए पत्रों के सार्वजनिक होने के बाद ही विदेशी मिडिया के माध्यम से इस प्रेम-प्रसंग की विस्तृत जानकारी भारतवासियों को मिल पाई. राजनीतिज्ञों के ऐसे ढेर सारे निजी  प्रसंग हैं जिनपर चटकारे लिए जा सकते थे परन्तु समकालीन नेताओं ने शालीनता बरती. लेकिन जब से सोनिया जी ने कांग्रेस की बागडोर संभाली, कांग्रेस में पतित नेताओं की बाढ़ सी आ गई. तंदूर पर जलाई गई नैना साहनी केस की सुर्खियाँ अभी मद्धिम भी नहीं हुई थीं की कांग्रेसी नेताओं ने पब में बार गर्ल  मोनिका लाल की हत्या कर दी. कांग्रेस के सम्मानित नेता नारायण दत्त तिवारी की हैदराबाद राजभवन में कॉल गर्ल के साथ सीडी की चर्चा अभी थमी भी नहीं थी कि सोनिया जी के प्रिय प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी  द्वारा सुप्रीम कोर्ट के उनके ही कक्ष में उनके द्वारा एक महिला से किये जा रहे यौन-क्रियाओं  की लाइव सीडी u-tube पर आ गई. जनता की आँखों में धूल झोंकने  के लिए मैडम द्वारा प्रवक्ता के पद से उन्हें  हटा दिया गया. बवाल थोडा थमा, तो दुबारा बहाल कर दिया गया. मैडम का काम ऐसे लोगों के बिना चलता ही नहीं. ऐसे ही लोगों के सरगना हैं मैडम के प्रिय महासचिव श्री श्री दिग्विजय सिंह उर्फ़ दिग्गी राजा. मैडम ने उन्हें इतनी छूट  दे रखी है की वे किसी पर भी भौंक सकते हैं. निजी ज़िन्दगी में ताक-झाँक न करने की जो शालीनता नेहरू, इंदिरा, राजीव, अटल, आडवानी, लाल बहादुर शास्त्री, मोरारजी भाई आदि अनेक नेताओं ने बरती थी वह देवकांत बरुआ, प्रियरंजन दास मुंशी, अभिषेक मनु सिंघवी, कपिल सिब्बल और दिग्गी राजा के शिखर पर पहुंचते ही तार-तार हो गई.
      क्या दिग्विजय सिंह (70) के पास बेटी की  उम्र की अमृता राय (40) के साथ अवैध सेक्स स्कैंडल का कोई जवाब है? दूसरों पर कीचड़ उछालना कभी-कभी बहुत महंगा पड़ता है. प्रकृति स्वयं न्याय कर देती है. मिडिया में दिग्गी और अमृता राय के अन्तरंग संबंधों के सेक्सी चित्र न तो भाजपा वालों ने जारी किये हैं और न अरविंद केजरीवाल ने. सीधी सी बात है – जैसा बोवोगे, वैसा ही काटोगे.

      मैं बहुत शर्मिंदा महसूस कर रहा हूँ. वह इसलिए की दिग्गी की प्रेमिका अमृता राय उसी गौरवशाली काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की छात्रा रही है जहाँ से मैंने इंजीनियरिंग में स्नातक की डिग्री हासिल की है. मुझे उसके पति आनंद राय के साथ गहरी सहानुभूति है. चार लड़कियों और एक लडके के बाप और अनेक नाती-पोते-पोतियों के नाना-दादा, दिग्गी और सिर्फ दिग्गी ही ऐसा काम कर सकते हैं. सोनिया गाँधी के आगमन के बाद कांग्रेस की नयी संस्कृति उन्हें ऐसा करने की अनुमति भी देती है, प्रोत्साहन अलग से. दिग्गी ने आनंद और अमृता का बसा बसाया घर उजाड़ दिया. भारतीय संस्कृति की धज्जियाँ उड़ाने के पुरस्कार स्वरुप मैडम उन्हें कांग्रेस-रत्न से भी पुरस्कृत कर सकती हैं.