Wednesday, September 19, 2012

एक पाती सोनिया भौजी के नाम





       आदरणीय भौजी,

                  सादर परनाम!

मैं यहां खैरियत से हूं और उम्मीद करता हूं कि अमेरिका से लौटने के बाद आपकी जर-बीमारी भी भाग गई होगी। पहले आपके बारे में चिंता-फ़िकिर लगी रहती थी, लेकिन जबसे मनमोहन चाचा प्रधानमंत्री बने, तबसे मन हल्का रहता है। वे आपका बहुते खयाल रखते हैं। बनाया तो प्रधान मंत्री आपने नरसिंहा राव को भी था लेकिन वह वफ़ादार नहीं था। बोफ़ोर्स की फाइल दिखा-दिखा कर आप ही को ब्लैक मेल कर रहा था। ई सरदार ठीक है। सारा इल्जाम अपने सिर ले लेता है। इसलिए अब हमको कौनो चिन्ता नहीं रहती। अब तो आप सर्दी-जुकाम का भी इलाज़ कराने अमेरिका या इटली जा सकती हैं। आ इहवां भी कौनो परेशानी थोड़े ही है। आपके एक इशारे पर आल इन्डिया मेडिकल इन्स्टीच्यूट से लेकर मेदान्ता तक डाक्टर-बैद १०, जनपथ में १२ बजे रात में भी लाइन लगा देंगे। इ सबके बावजूद भी मन में कभी-कभी खटका होने लगता है। आखिर कौन गुप्त बीमारी आपको लग गई है कि बार-बार अमेरिका का चक्कर लगाना जरुरी हो गया है। अडवनिया कौनो जादू-टोना तो नहीं करा दिया है। होशियार रहिएगा। इ भाजपाई कुछ भी कर सकते हैं। आपकी बीमारी की बात सुनकर कभी-कभी हम नरभसा जाते हैं। रोज़ टीवी देखते हैं और अखबार भी पढ़ते हैं, लेकिन कहीं से भी कोई जवाब नहीं मिलता है। स्विस बैंक के खातों के माफिक बेमरियो को गुप्त ही रखिएगा क्या? हम पर विश्वास कीजिए। सही-सही समाचार लौटती डाक से पेठाइयेगा। ई गुप्त बात हम ना तो अडवानी को बताएंगे और ना ही सुब्रह्मण्यम स्वामी को।

एगो बात हमारी मोटी बुद्धि में नहीं आ रही है। ई फ़ेसबुकवा क्या है? इसपर आपका कवनो कन्ट्रोल नहीं है क्या? जनवरी में स्विस बैंक की एक चिठ्ठी उसपर देखी। भारत सरकार के नाम वह चिठ्ठी बैंक के मनेजर मार्टिन डिसा पिन्टो ने लिखी थी। उसमें क्रमांक-एक पर राजीव भैया का नाम था और उनके खाता नंबर - IN-155869-256648-102011 में १९८३५६ करोड़ रुपया जमा दिखाया गया था। आपके भी कई खातों में कई लाख करोड़ रुपया जमा है, ऐसा रोज़े छपता है। विदेशी बैंक के मनेजरों को थोड़ा-थोड़ा घुड़की देना जरुरी है। अगर वो सब आपसे खौफ़ खाना छोड़ दिया हो तो ओबमवा से डंटवा दीजिए। कही सब खातन के जानकारी रामदेव बबवा को हो जाएगा, तो वह बवाल खड़ा कर देगा। उसकी दवा के कारखाना में दो-चार टन अफ़ीम या हिरोइन रखवा कर उसे गिरफ़्तार कर अंडमान काहे नहीं भेजवा देती हैं। हिन्दुस्तान में रहेगा, तो रोज़े अनशन करेगा। सफ़ेद कुर्ता-धोती और टोपी पहनकर वह बुढ़वा - क्या नाम है उसका.........अन्ना हज़ारे, हां अन्ना हज़ारे ही नाम है; जब देखो रामलीला मैदान में रामलीला करने लग जाता था। ऐसा दांव मारा आपने कि उसकी मंडली ही बिखर गई। किरन बेदी बाबा के साथ चली गई और बुढ़ऊ पहुंच गए रालेगन सिद्धि। अरविन्द केजरिवलवा राजनीतिक पार्टी बना रहा है। जन लोकपाल! जन लोकपाल!! घंटा!!! करा ले पास जन लोकपाल। केजरिवलवा को राज सभा का टिकट का आफ़र देकर देखिए। वह पट सकता है।

ई भाजपाइयन को आजकल क्या हो गया है? कवनो काम करो, चिल्लाने लगते हैं। डीजल पर पांच रुपया बढ़िए गया तो क्या सुनामी आ गया? आजकल तो भिखारियो पांच रुपया का भीख नहीं लेता है। ज़रा जाइये बनारस के संकट मोचन मन्दिर में। पांच रुपए के चढ़ावे को देख पुजारी दूरे से दुरदुरा देगा। टीका लगाना तो दूर, चरणामृत भी नहीं देगा। सोना बतीस हज़ार पहुंच गया, चांदी बासठ हज़ार किलो, दाल सौ रुपया किलो, गेहूं-चावल को कौन कहे, मड़ुआ-मकई जैसा मोटा अनाज भी पचास रुपया किलो मिलता है। दूध की तो बाते छोड़िए, आजकल पानी भी पन्द्रह रुपया लीटर है। कपड़ा-लत्ता, गहना-गुरिया, खान-पान, सब्जी-तरकारी - कौन चीज सस्ता मिल रहा है? डीज़ल पर पांच रुपया बढ़िए गया तो कवन अनर्थ हो गया - गला फाड़-फाड़ कर चिल्ला रहे हैं, भारत बन्द करा रहे हैं। ई कमनिस्टन को क्या हो गया है? जिनगी भर नेहरूजी, इन्दिरा माई और राजीव भैया के चरण दबाए और अब भाजपैयन के साथ भारत बन्द करा रहे हैं। बीस तारीख को भारत बन्द होना है। घबराइयेगा मत। चुनाव अभी दू साल दूर है। शिन्दे बहुत ठीक बोलता है। दू साल में जनता सब भूल जाएगी - २-जी, कोलगेट, राष्ट्रमंडल..............सब। बस एतना ध्यान रखिएगा कि भाजपा अगले चुनाव में किसी तरह बुढ़ऊ अडवानी को ही प्रधानमंत्री बनाने का एलान कर दे। सांप भी मर जाएगा और लाठी भी नहीं टूटेगी। बुढ़ऊ कभी अटल बिहारी वाजपेयी नहीं बन सकते हैं। सुषमा और जेटली से डरने की जरुरत नहीं है। ई अरुन जेटलिया को क्रिकेट कन्ट्रोल बोर्ड का चेयरमैन काहे नहीं बनवा देती हैं? वह आपका मुरीद बन जाएगा। फिर राज सभा में आपका एको बिल नहीं रुकेगा। पूरे देश में एक ही आदमी से आपको सावधान रहना है। गुजरात का मुख्यमंत्री नरेन्दर मोदी होशियार लगता है। उसके खिलाफ़ आपलोग जितना ही बोलते हैं, वह उतना ही ताकतवर हुआ जा रहा है। बस उसी से खतरा है। जवान भाषण भी बहुते बढ़िया देता है। आपके इशारे पर नीतीश जी उसकी नाक में नकेल डालने की बहुत कोशिश किए लेकिन उसका कुछो नहीं बिगाड़ पाए। वह तो सिंह की तरह दहाड़ रहा है। गुजरात में बबुआ राहुल को चुनाव प्रचार में मत भेजिएगा। यूपी, बिहार की तरह गुजरातो में अगर पार्टी हार गई, तो अमेरिका की पत्रिकाएं जाने क्या-क्या लिखना शुरु कर दें। कही बबुआ की शादी भी खटाई में न पड़ जाय। बबुआ को ज़रा कहिए कि होम वर्क ठीक से करे। एक सलाह है - उसका भेस बदलकर दो महीने के लिए आर.एस.एस. की शाखा में भेज दीजिए। वहां से आएगा, तो अटल बिहारी की तरह भाषण देने लगेगा।

अभी कम से कम दू साल तक तो अपनी ही सरकार रहेगी। फिर भी सब मंत्रियन पर निगाह रखना जरुरी है। पता नहीं कौन आस्तिन का सांप बन जाय? सीबीआई के भरोसेमन्द खास अफ़सरों को एक-एक के पीछे जरुर लगा दीजिएगा। एफ़.डी.आई पर माया-मुलायम से डरने की जरुरत नहीं है। ये समुद्र में चलते हुए जहाज के पंछी हैं। उड़ेंगे जरुर, पर थक हार कर जहाज पर ही आएंगे। ताज़ कोरिडोर और आय से अधिक संपत्ति वाली फाइलों को अपने पर्सनल कस्टडी में रखिएगा। बस एक और आदमी से होशियार रहिएगा - बाबू मोशाय से। आपने उन्हें राष्ट्रपति बनाकर बहुत अच्छा काम किया। कैबिनेट में रहकर करते ही क्या थे - चिठ्ठी लीक करने के अलावा। लेकिन वे घायल सांप हैं। दो-दो बार उन्होंने प्रधानमंत्री की कुर्सी पर अपना दावा जताया था। अच्छा किया आपने कि उनके पर कतर दिए, नहीं तो वे दूसरे नरसिंहा राव बन जाते। फिर भी उनसे होशियार रहने की जरुरत है। हंग पार्लियामेन्ट में शंकर दयाल शर्मा की तरह वे विरोधियों का ही साथ देंगे। हम तो बस एक आदमी की वफ़ादारी के कायल हैं और वे हैं डिग्गी बाबू। वह पठ्ठा गज़ब का स्वामीभक्त है। आप ज़रा सा इशारा करती हैं और वह भूंकना चालू कर देता है। बाबा रामदेव, अन्ना हज़ारे, भाजपा और आर.एस.एस. के लाखों-करोड़ों समर्थकों को अपनी भौंक से चुप करा देता है। देखिएगा इस साल न अन्ना जन्तर-मन्तर पर कोई मन्तर पढ़ेंगे और न बाबा रामदेव रामलीला मैदान में कोई लीला करेंगे। वाह रे डिग्गी! जियो राजा।

यहां आपकी देयादिन और बाल-गोपाल एक टाइम भोजन करके भी मज़े में हैं। कल बड़की बिटिया, क्षुधा, आइसक्रीम के लिए मचल रही थी। पेट में दाना न पानी। उसे आइसक्रीम चाहिए था। मैंने उसे समझाया कि नवरात्तर में दिल्ली चलेंगे। तबतक एफ़.डी.आई. लागू हो जाएगा। तुम्हारी ताईजी तुम्हें मलाई मारकर आइसक्रीम खिलाएंगी। दोनो बेटे दीन और अभाव पयलग्गी कह रहे हैं।

                                   थोड़ा लिखना, ज्यादा समझना।

                                                 इति शुभ।

                                                                                                    आपका प्रिय देवर

                                                                                                          जनता गांधी

Tuesday, September 18, 2012

यह सरकार है या जल्लाद




स्वतंत्र भारत के ६५ वर्षों के इतिहास की यह सबसे असंवेदनशील और भ्रष्ट सरकार है। सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह के कुप्रबंधन और अक्षमता का का दुष्परिणाम महंगाई, भ्रष्टाचार, स्वार्थपरता, सत्तालोलुपता और परस्पर अविश्वास के रूप में  देश की सारी जनता भुगत रही है। समझ में नहीं आ रहा है कि यह सरकार आखिर किसके हित के लिए काम कर रही है। कारपोरेट घराने, मंत्री, सांसद, विधायक, ब्यूरोक्रैट्स और बढ़ेराओं के अलावे इस देश में कौन खुश है? अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए प्रधान मंत्री कड़े कदम उठाने की बात कर रहे हैं। संवेदनशीलता से दूर प्रधान मंत्री क्या यह बताएंगे कि उनके तथाकथित कड़े कदम के नीचे कितनी करोड़ जनता दम तोड़ेगी?
सरकार ने पेट्रोल की कीमत पहले ही ७५ रुपए प्रति लीटर पहुंचा दी। रातों रात बिना किसी घोषणा के एक्स्ट्रा प्रीमियम पेट्रोल ६.७१ रुपए महंगा कर दिया गया। तेल कंपनियों की टेढ़ी नज़र डीज़ल और रसोई गैस पर थी, सो वह कमी भी पूरी कर दी गई। डीज़ल पर ५ रुपए प्रति लीटर तथा रसोई गैस के सातवें सिलिन्डर पर ३७१ रुपए की एकमुश्त बढ़ोत्तरी सरकार की असंवेदनशीलता का सबसे बड़ा प्रमाण है। सरकार की ओर से पूरे देश को बताया जा रहा है कि बढ़ते राजकोषीय घाटे पर अंकुश लगाने के लिए मूल्यों में यह वृद्धि आवश्यक ही नहीं अपरिहार्य थी। इससे बड़ा झूठ दूसरा हो ही नहीं सकता। बोफ़ोर्स घोटाला, २-जी घोटाला, कोलगेट घोटाला, राष्ट्रमंडल खेल घोटाला, स्विस बैंक घोटालों पर लगातार झूठ बोलने के कारण सरकार को झूठ बोलने की आदत लग गई है। सच्चाई यह है कि हमारे सकल घरेलू उत्पाद के ६.९% के ऊंचे सतर पर भी राजकोषीय घाटा ५.२२ लाख करोड़ रुपया ही आएगा। पिछले वित्तीय वर्ष में इसी सरकार ने कारपोरेट खिलाड़ियों तथा धनी तबकों को पूरे ५.२८ लाख करोड़ रुपए की प्रत्यक्ष रियायतें दी है। जो पहले से ही संपन्न हैं और देश की संपदा दोनों हाथों से लूट रहे हैं, उनपर यह भारी रकम यदि नहीं लुटाई गई होती, तो सरकारी खजाने पर राजकोषीय घाटे का कोई बोझ होता ही नहीं। लेकि धनी तबकों पर भारी राशि लुटाने के बाद हमारी केन्द्र सरकार अब राजकोषीय घाटे पर अंकुश लगाने के लिए गरीबों और मध्यम वर्ग को जो भी थोड़ी बहुत सबसिडी हासिल थी, उसपर बेरहमी से कैंची चला रही है। 
जिन तेल कंपनियों के घाटे की बात कहकर डीज़ल और रसोई गैस की कीमतों में भयानक वृद्धि की गई है, क्या वे वाकई घाटे में हैं? सफ़ेद झूठ बोलते हुए इस असंवेदनशील सरकार को लज्जा भी नहीं आती। अपनी बैलेन्स शीट मे देश की विशालतम तेल तथा प्राकृतिक गैस कंपनी ओएनजीसी ने वर्ष २०११-१२ के लिए २५१२३ करोड़ रुपए के शुद्ध लाभ की घोषणा की है। इसी प्रकार इंडियन आयल कारपोरेशन ने वर्ष २०११-१२ में ४२६५.२७ करोड़ रुपए के शुद्ध लाभ की घोषणा की है। हिन्दुस्तान पेट्रोलियम ने भी मुनाफ़े की घोषणा की है। दिलचस्प बात यह है कि इस कंपनी ने पिछले वर्ष की अन्तिम तिमाही में मुनाफ़े में ३१२% की वृद्धि दर्शाई थी।
उपर लिखे गए आंकड़े कल्पना की उड़ान नहीं हैं। ये सभी आंकड़े सरकारी हैं और नेट पर उपलब्ध हैं। तेल कंपनियों ने भारी मुनाफ़ा कमाया है, भारी भ्रष्टाचार के बावजूद। तेल कंपनियों में प्रत्येक स्तर पर भ्रष्टाचार शामिल है। तेल खोजने के नाम पर कंपनियां असंख्य कुंए कागज़ पर खोदती हैं और पाट भी देती हैं। ठेकेदारों को भुगतान के बाद खुदाई और पाटने का कोई प्रमाण ही नहीं बचता। कोई सी.वी.सी. कैग या सी.बी.आई. इन घोटालों को नहीं पकड़ सकती। विदेशों से कच्चा तेल खरीदने में बिचौलियों की भूमिका बहुत बड़ी होती है। हजारों करोड़ के कमीशन की लेन-देन होती है। सरकार यदि इन भ्रष्टाचारों पर अंकुश लगा दे और उत्पाद शुल्क में ५०% तथा अन्य टैक्सों में २५% की कटौती कर दे, तो पेट्रोल २५ रुपए प्रति लीटर, डीज़ल १५ रुपए प्रति लीटर तथा रसोई गैस का एक सिलिंडर १५० रुपए में प्राप्त होगा। 
देश की जनता के साथ बहुत बड़ी धोखाधड़ी की जा रही है। महंगाई के बोझ तले पहले ही पिस रही जनता पर और भारी बोझ डाल दिया गया है। बरबस ही मुंह से निकल पड़ता है - यह सरकार है या जल्लाद। अगर किसी तरह सिर्फ़ सोनिया गांधी के विदेशी बैंकों में जमा धन को वापस देश में लाया जा सकता हो, तो पेट्रोलियम उत्पादों में किसी तरह की मूल्यवृद्धि की आवश्यकता नहीं होगी। क्या जनता का इस तरह शोषण करने वाली असंवेदनशील सरकार को सत्ता में रहने का अधिकार है? ज़िन्दा कौमें पांच साल इन्तज़ार नहीं करतीं।

Tuesday, September 11, 2012

हथौड़े की आखिरी चोट





न्यूटन के गति के दूसरे नियम से कृत कार्य को परिभाषित किया गया, जो निम्नवत है -

कार्य = बल*विस्थापन

(Work done = Force.displacement)

इस नियम के तहत यदि बाबा रामदेव और अन्ना हज़ारे के आन्दोलन से प्राप्त परिणाम की समीक्षा की जाय, तो वह शून्य होगा। दोनों आन्दोलनों में बल तो भरपूर लगा, लेकिन विस्थापन शून्य रहा। न तो जनलोकपाल बिल कानून का रूप ले सका और ना ही काले धन की एक चवन्नी भी भारत में वापस आ सकी। भौतिक विज्ञान के अनुसार परिणाम शून्य के अतिरिक्त कुछ हो ही नहीं सकता। आजकल मीडिया भी इसी सिद्धान्त को सही मानकर अन्दोलन की सफलता का आंकलन कर रही है। और तो और, अन्ना के मुख्य सलाहकार अरविन्द केजरीवाल भी तत्काल लाभ न मिल पाने के कारण विक्षिप्त और दिग्भ्रान्त हो, राजनीतिक पार्टी बनाने की दिशा में कार्य कर रहे हैं। उनकी समझ ही में नहीं आ रहा है कि कौन चोर है और कौन सिपाही। वे सिपाही का भी घेराव कर रहे हैं और चोर का भी। महात्मा गांधी भी अगर अपने आन्दोलनों की सफलता या असफलता से उत्साहित या हतोत्साहित होकर ऐसे कदम उठाते, तो आज़ादी प्राप्त नहीं हो पाती।

कार्य की शून्य अंकगणितीय उपलब्धि के आधार पर लगाए गए बल या ऊर्जा की गणना नहीं की जा सकती। विस्थापन भले ही न हुआ हो, लेकिन ऊर्जा तो लगी ही। एक पत्थर पर जोर से मारे गए हथौड़े के प्रथम या द्वितीय प्रहार का, कोई आवश्यक नहीं कि असर दिखे, परन्तु यह भी सत्य है कि हथौड़े के लगातार प्रहार से ही पत्थर टूटते हैं। यह किसी को नहीं पता कि आखिर वह अन्तिम प्रहार कौन सा होगा जिससे पत्थर टूटेगा -- हथौड़ा चलाने वाले को भी नहीं।

भारत की सरकार ने, प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह और सुपर पी.एम. सोनिया गांधी के नेतृत्व में भ्रष्टाचार को आम आदमी के जीवन का एक अभिन्न अंग बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है। बोफ़ोर्स के सिर्फ़ ६५ करोड़ रुपए के कमीशन के कारण राजीव गांधी की कुर्सी चली गई, लेकिन अब हज़ारों/लाखों करोड़ के घोटालों पर भी जनता प्रायः चुप ही रहती है। सरकार ने जनता की मनोदशा बदलने में आंशिक सफलता भी प्राप्त की है। आम जनता ने राजनेताओं से शुचिता, सच्चरित्र और ईमानदारी कि अपेक्षा छोड़ दी है। किसी दूसरे देश में राष्ट्रमण्डल खेल घोटाला, २-जी घोटाला, कोल घोटाला, चारा घोटाला, खनन घोटाला, ताज़ कोरिडोर घोटाला, संसद के अन्दर नोट के बदले वोट घोटाला, आदर्श सोसाइटी घोटाला, विदेशों में जमा काला धन घोटाला ......................जैसी घटनाएं घटी होतीं, तो सत्ता कब की बदल गई होती। क्या राष्ट्रपति सुकर्णो, सद्दाम हुसेन, कर्नल गद्दाफ़ी या हुस्नी मुबारक के पास स्विस बैंकों में सोनिया गांधी से ज्यादा धन जमा था?

भारत कि जनता में विश्व के अन्य देशों की तुलना में धैर्य की मात्रा अधिक होती है। वह वर्षों खामोशी से प्रतीक्षा करती है। इन्दिरा गांधी की इमर्जेन्सी में गजब की शान्ति थी। विरोध में आवाज़ उठाने वाले को अविलंब जेल में ठूंस दिया जाता था। सारे नेता जेल में बन्द थे। सभी जगह श्मशान की शान्ति थी। इस शान्ति को इन्दिरा जी ने जनता का अपने पक्ष में समर्थन समझा और चुनाव करवाने की भूल कर बैठीं। स्वयं तो पराजित हुई ही, पूरे देश से कांग्रेस का भी सूपड़ा साफ़ करा बैठीं। विभिन्न घोटालों पर जनता की चुप्पी कुछ इसी तरह की है। अन्ना, रामदेव और भाजपा का हथौड़ा चल रहा है। पत्थर तो टूटना ही है। बस देखना यह है कि वह सन २०१४ में टूटता है या उसके पूर्व।