Sunday, December 27, 2015

अब तो शर्म करो केजरीवाल

            एक समय था, जब अरविन्द केजरीवाल अन्ना हजारे के प्रतिबिंब माने जाते थे। अन्ना आन्दोलन के दौरान आईआईटी, चेन्नई में उनका भाषण सुनकर मैं इतना प्रभावित हुआ कि उनका प्रबल प्रशंसक बन गया। अन्ना ने यद्यपि घोषित नहीं किया था, फिर भी भारतीय जन मानस उन्हें अन्ना के प्रवक्ता और उत्तराधिकारी के रूप में मान्यता देने लगा था। उन्होंने तात्कालीन भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी पर भ्रष्टाचार के आरोप क्या लगाए, भाजपा समेत आरएसएस भी हिल गया। संघ के ही निर्देश पर गडकरी को भाजपा के अध्यक्ष पद से त्यागपत्र भी देना पड़ा। गडकरी ने अदालत की शरण ली। केजरीवाल कोई प्रमाण प्रस्तुत नहीं कर सके। उन्होंने गडकरी से माफ़ी मांगकर इस घटना का पटाक्षेप किया। गडकरी को उस समय निश्चित रूप से नुकसान उठाना पड़ा, लेकिन केजरीवाल को ज्यादा क्षति हुई। उनकी स्थापित विश्वसनीयता का ग्राफ अब X-Axis पर लुढ़कने लगा।
      इस समय केजरीवाल लालू और दिग्विजय सिंह की श्रेणी में पहुंच गए हैं। मैं आरंभ से ही खेल संघों पर राजनीतिक हस्तियों के नियंत्रण के विरुद्ध रहा हूं। जेटली, शरद पवार, राजीव शुक्ला जैसे कद्दावर नेताओं को क्रिकेट-प्रबन्धन ज्यादा भाता है। मात्र इस कारण उनकी चरित्र हत्या नहीं की जा सकती। केजरीवाल ने अपने प्रधान सचिव के भ्रष्टाचार और उनके कार्यालय पर सीबीआई के छापे से जनता का ध्यान हटाने के लिए बदले की भावना से प्रेरित हो बिना किसी प्रमाण के अरुण जेटली की चरित्र-हत्या करने की अपनी ओर से पूरी कोशिश की। डीडीसीए में हुई कथित अनियमितता के लिए जेटली को दोषी ठहराकर उनसे इस्तीफ़े की मांग भी कर डाली। इसके पूर्व केजरी सरकार ने ही डीडीसीए में कथित भ्रष्टाचार की जांच के लिए अपने मनपसंद त्रिसदस्यीय जांच आयोग का गठन किया था जिसकी रिपोर्ट भी आ गई है। जांच आयोग ने अपनी रिपोर्ट में अरुण जेटली के नाम का उल्लेख भी नहीं किया है। ज्ञात हो कि इसके पूर्व  शीला दीक्षित की कांग्रेसी सरकार ने भी अरुण जेटली को घेरने का पूरा प्रयास किया था और डीडीसीए में कथित भ्रष्टाचार की जांच के लिए एक आयोग का गठान किया था। उसने भी जेटली को क्लीन चिट दी थी। मोदी और अन्य भाजपा नेता राजनीतिक असहिष्णुता के हमेशा से शिकार रहे हैं। पूर्व प्रधान मंत्री नरसिंहा राव ने आडवानी को हवाला काण्ड में लपेटने के लिए भरपूर प्रयास किया था, चार्ज शीट भी दाखिल की थी; लेकिन आडवानी बेदाग सिद्ध हुए। नरेन्द्र मोदी पर जिला अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक कांग्रेस ने एक दर्ज़न से अधिक मुकदमे दर्ज़ कराए। सिट से लेकर सीबीआई तक ने वर्षों तक गहन जांच की, लेकिन सत्य, सत्य ही रहा। मोदी पर एक भी आरोप सिद्ध नहीं हुआ। आज वे देश के प्रधान मंत्री हैं। देश ही नहीं विदेश भी उनके मुरीद हैं।

      केजरीवाल कोई आज़म खां, ओवैसी या लालू यादव नहीं हैं। उन्होंने आईआईटी से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है। आईआरएस में एक जिम्मेदार अधिकारी के पद की शोभा बढ़ाई है। किसी पर अनर्गल आरोप लगाना, कम से कम उन्हें शोभा नहीं देता है। राजनीति में आने के बाद केजरीवाल इतना नीचे गिर सकते हैं, किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी।

Wednesday, December 16, 2015

केजरीवाल का सच

         हिन्दुस्तान के स्वघोषित सबसे बड़े ईमानदार नेता अरविंद केजरीवाल इतनी जल्दी बेनकाब हो जायेंगे, ऐसी उम्मीद नहीं थी। इतनी जल्दी तो लालू और ए. राजा के चेहरे से भी नकाब नहीं उतरा था। भ्रष्टाचार के खिलाफ बिगुल फूंककर जो व्यक्ति सत्ता में आया, वही भ्रष्टाचार का संरक्षक बन गया। पटना में नीतीश के शपथ ग्रहण समारोह में खिलखिलाते हुए लालू के गले लगना, कोई  आकस्मिक संयोग नहीं था। कहीं न कहीं दोनों की केमिस्ट्री मैच कर रही थी। 
अपनी हर कमजोरी के उजागर होने पर सारा दोष प्रधान मंत्री के सिर मढ़ देने की केजरीवाल की फितरत है। उनके मंत्री मिस्टर तोमर डिग्री के फर्जिवाड़े में पकड़े गए और गिरफ़्तार किए गए। इसे मोदी की साज़िश कहा गया। सोमनाथ भारती ने अपनी पत्नी को कुत्ते से कटवाया, बेल्ट से मारा, पत्नी ने एफ़.आई.आर. दर्ज़ कराकर न्याय की गुहार की। इसमें भी केजरीवाल को मोदी का षडयंत्र नज़र आया। शुरु में केजरीवाल उपराज्यपाल नज़ीब जंग से ही जंग करते नज़र आए, लेकिन शीघ्र ही उन्हें ज्ञात हो गया कि नज़ीब जंग बहुत बड़े पहलवान नहीं हैं। उनसे लड़ने में बहुत ज्यादा प्रसिद्धि नहीं मिल रही थी। अतः उन्होंने सबसे बड़े पहलवान का चुनाव किया और मोदी से ही जंग छेड़ दिया। ताज़ा घटना उनके प्रधान सचिव राजेन्द्र कुमार के घर और कार्यालय पर सीबीआई द्वारा डाले गए छापे की है। छापा डालने के पूर्व सीबीआई ने अदालत से अनुमति भी ली थी। एक भ्रष्ट अधिकारी के बचाव में उतरे केजरीवाल ने शालीनता की सारी सीमायें लांघते हुए प्रधान मंत्री को  कायर और मनोरोगी तक कह डाला। अगर ऐसा वक्तव्य लालू ने दिया होता, तो कोई आश्चर्य नहीं होता। उन्होंने तो अन्ना के खिलाफ बोलते हुए उनके ब्रह्मचर्य पर भी सवाल उठाए थे। लालू विदूषक ज्यादा हैं, नेता कम। लेकिन एक आई.आई.टी. का ग्रेजुएट गाली-गलौज की भाषा का प्रयोग करेगा और वह भी जनता द्वारा चुने गए भारत के लोकप्रिय प्रधान मंत्री के लिए, अत्यन्त दुर्भाग्यपूर्ण और निंदनीय है। 
अब हम केजरीवाल जी के मित्र, उनके प्रधान सचिव, श्री श्री १०८ राजेन्द्र बाबा के बारे में जानकारी देना अपना फ़र्ज़ समझ रहे हैं।
*४८ वर्षीय राजेन्द्र कुमार सीएम केजरीवाल के प्रधान सचिव है।
* आईआईटी खड़गपुर से बी.टेक. करने वाले राजेन्द्र १९८९ बैच के आईएएस अधिकारी हैं।
* इसी साल फरवरी में दिल्ली के मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव के रूप में नियुक्त हुए।
* शहरी विकास विभाग में सचिव रह चुके हैं। ऊर्जा-ट्रांसपोर्ट जैसे विभाग भी संभाल चुके हैं।
* राजेन्द्र, केजरीवाल के सबसे विश्वासपात्र अधिकारी हैं।
* केजरी ने एल.जी. की सलाह को अनदेखा करते हुए उन्हें अपना प्रधान सचिव बनाया।
* आईआईटी, खड़गपुर में पढ़ते समय ही दोनों एक-दूसरे के काफी करीब थे, लेकिन पढ़ने में वे केजरी से तेज थे इसीलिए उनका चुनाव आएएस में हुआ और केजरी का एलाएंस सर्विसेज में।
* केजरीवाल के प्रधान सचिव राजेन्द्र कुमार चर्चित घोटालेबाज रहे हैं।
* उनके खिलाफ़ भ्रष्टाचार निरोधक शाखा (एसीबी) में २०१२ तक सात शिकायतें दर्ज़ थीं, उस समय मोदी पीएम नहीं थे। 
* पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के कार्यकाल में हुए सीएनजी घोटाले में शामिल अभियुक्तों की सूची में उनका नाम शीर्ष पर है। 
* शिक्षा और आईटी विभाग में रहते हुए एक निजी कंपनी से रिश्वत लेकर लाभ पहुँचाने का भी उनपर आरोप है। 
* अलग-अलग विभाग में रहते हुए राजेन्द्र कुमार ने कई कंपनियों की स्थापना कराई; फिर बिना टेंडर के उन्हें काम दिया और जी भरकर सरकारी खजाने को लूटा।
राजेन्द्र कुमार के राजधानी और उत्तर प्रदेश के ठिकानों पर छापा मारकर सीबीआई ने अबतक १६ लाख की अवैध संपत्ति बरामद की है। इनमें से २ लाख रुपए नकद और ३ लाख की विदेशी मुद्रा शामिल है।
ऐसे भ्रष्ट अधिकारी के आवास और कार्यालय पर छापे को मुख्यमंत्री कार्यालय पर छापे के रूप में प्रचारित किया गया। छापे के तुरन्त बाद केजरी महाशय  प्रेस कान्फ़ेरेन्स करते हैं और गंवार लालू की तरह प्रधान मंत्री को गाली देते हैं। प्याज के छिलके की भाँति केजरी के चेहरे से एक-एक करके ईमानदारी की परतें उतरती जा रही हैं। मुझे और किसी की फ़िक्र नहीं है। फ़िक्र है तो बस अन्ना की। अपने प्रिय शिष्य की हरकतों के कारण उन्हें कही हृदयाघात न हो जाय!

Thursday, December 3, 2015

सहिष्णुता और द्रौपदी

         शान्ति का प्रस्ताव लेकर श्रीकृष्ण हस्तिनापुर जाने के लिए तैयार हो गए थे। सिर्फ पाँच गाँवों के बदले शान्ति के लिए पाण्डवों ने स्वीकृति दे दी थी। द्रौपदी को यह स्वीकार नहीं था। १३ वर्षों से खुली केशराशि को हाथ में पकड़कर उसने श्रीकृष्ण को दिखाया। नेत्रों में जल भरकर वह बोली --
“कमलनयन श्रीकृष्ण! मेरे पाँचों पतियों की तरह आप भी कौरवों से संधि की इच्छा रखते हैं। आप इसी कार्य हेतु हस्तिनापुर जाने वाले हैं। मेरा आपसे सादर आग्रह है कि अपने समस्त प्रयत्नों के बीच मेरी इस उलझी केशराशि का ध्यान रखें। दुष्ट दुःशासन के रक्त से सींचने के बाद ही मैं इन्हें कंघी का स्पर्श दूँगी। यदि महाबली भीम और महापराक्रमी अर्जुन मेरे अपमान और अपनी प्रतिज्ञा को विस्मृत कर, युद्ध की विभीषिका से डरकर कायरता को प्राप्त कर संधि की कामना करते हैं, तो करें। धर्मराज युधिष्ठिर की सहिष्णुता तो पूरी कौरव सभा ने देखी। मैं निर्वस्त्र की जा रही थी; वे शान्त बैठे रहे। आपने भी पाँच गाँवों के बदले शान्ति के प्रस्ताव पर अपनी सहमति दे दी है। अपमान की प्रचंड अग्नि में जलते हुए मैंने १३ वर्षों तक प्रतीक्षा की है। आज मेरे पाँचों पति कायरों की भांति संधि की बात करते हैं। वे सहिष्णुता की आड़ में नपुंसकता को प्राप्त हो रहे हैं। मेरे अपमान का बदला मेरे वृद्ध पिता, मेरा पराक्रमी भ्राता, मेरे पाँच वीर पुत्र और अभिमन्यु लेंगे। वे कौरवों से जुझेंगे और दुःशासन की दोनों सांवली भुजाएं तथा मस्तक को काट, उसके शरीर को मेरे समक्ष धूल-धूसरित कर मेरी छाती को शीतलता प्रदान करेंगे।"
---- ‘महाभारत’, विराट पर्व