Saturday, October 27, 2012

नौकरी के नौ सिद्धान्त - अशोक खेमका के नाम एक खुला पत्र




प्रिय खेमका जी,
हमेशा खुश रहिए।
दिनांक १६ अक्टुबर के पहले न मैं आपको जानता था और न आप मुझे। लेकिन अब तो मैं ही क्या सारा हिन्दुस्तान आपको जान गया है। मुझे जानने की आपको कोई जरुरत नहीं। वैसे भी नौकरशाही के शीर्ष पर बैठे किसी भी अधिकारी को अपने से छोटे ओहदेवालों को जानना या याद करना पद की गरिमा के अनुकूल नहीं होता। फिर भी मैं आपको बता दूं कि उत्तर प्रदेश  में एक उच्च पदस्थ अधिकारी हूं। सरकारी नौकरी करने का मेरा अनुभव आपसे १४ वर्ष ज्यादा है। उम्र भी अधिक है। अतः बिना मांगे भी मुफ़्त की सलाह आपको देने का मुझे स्वाभाविक अधिकार प्राप्त है। 
आपने हरियाणा के चकबन्दी महानिदेशक के पद पर रहते हुए १५ अक्टुबर को राज जमाता कुंवर राबर्ट वाड्रा द्वारा डीएलएफ को बेची गई ३.५३ एकड़ ज़मीन का म्यूटेशन (दाखिल खारिज़) रद्द कर दिया। यह म्यूटेशन २० सितंबर को गुड़गांव के कर्त्तव्यनिष्ठ, वफ़ादार और आज्ञाकारी सहायक चकबन्दी अधिकारी ने किया था। आपने बिना सोचे-समझे सहायक चकबन्दी अधिकारी का आदेश रद्द कर दिया। उसी दिन आपका तबादला कर दिया गया। यह तो होना ही था। शुक्र कीजिए कि हरियाणा एक छोटा प्रान्त है। हुड्डा जी आपका ट्रान्सफर कहां करेंगे - चन्डीगढ़, गुड़गांव, भिवंडी या हिसार। सारी जगहें राजमाता की राजधानी के पास ही हैं। कल्पना कीजिए, आप यू.पी. में होते! ऐसे अपराध के लिए आपका ट्रान्सफर पीलीभीत से बलिया या नोएडा से सोनभद्र भी हो सकता था। पता नहीं आपको नौकरी का सहूर क्यों नहीं आता। आपने मसूरी और हैदराबाद में सही प्रशिक्षण लिया भी था अथवा नहीं? २० साल की नौकरी में ४३ तबादले! अपने तौर-तरीके बदलिए ज़नाब वरना केजरीवाल की तरह सड़क पर आने के अलावा कोई चारा नहीं बचेगा। उन्हें तो अन्ना जैसा एक गाड फादर मिल गया। आपको कौन मिलेगा? माना कि आप नौकरशाही के शीर्ष पद पर हैं, पर हैं तो नौकर ही न। जिस तरह न्यूटन ने गति के तीन नियम प्रतिपादित किए थे उसी तरह सरकारी नौकरी में सफलता के लिए मैंने नौ नियम प्रतिपादित किए हैं। मुगल काल से लेकर आज तक जिसने भी इन नियमों का ईमानदारी और निष्ठा से पालन किया है, उसकी दसों उंगलियां हमेशा शुद्ध देसी घी में रही हैं। अपने लंबे शोध और अनुभव के आधार पर मैंने इन्हें लिपिबद्ध किया है। आप बहुत बड़े आई.ए.एस. आफिसर हैं। मेरे इस शोध के लिए मेरा नाम अगर नोबेल प्राइज़ के लिए भेजने में यदि दिक्कत हो तो कम से कम रेवड़ी की तरह बंटने वाले राष्ट्रीय पद्म पुरस्कारों के लिए अनुमोदित तो कर ही सकते हैं। आप तो जानते ही हैं कि बिना पैरवी के सरकारी नौकरी में वार्षिक वेतनवृद्धि भी नहीं मिलती। विषयान्तर हो गया। कभी-कभी मेरा मन भी Inadia Against Corruption के नेताओं की तरह लक्ष्य से भटक जाता है।
सरकारी नौकरी के नौ सिद्धान्त
१. सदैव याद रखें - बास हमेशा सही होता है - Boss is always right.
२. अपने बास को कभी ‘ना’ मत कहो - Never say `No' to your boss.
३. इस देश में दो तरह का राजस्व होता है - (अ) पी.आर. (personal revenue), (ब) एस.आर (State revenue)
             पी.आर. बढ़ाने के लिए सतत त्रुटिहीन तकनीक डिजाइन करो।
४. प्राप्त पी.आर. का मात्र ५०% ही अपनी आनेवाली सात पीढ़ियों के लिए सुरक्षित जगह पर रखो। शेष ५०% को मंत्रियों, नेताओं, बास और मीडिया में ईमानदारी से बांट दो।
५. हमेशा आज्ञाकारी रहो और हर हाइनेस (Her Highness)  यानि Mrs. Boss की हर पुकार पर एक पैर पर खड़े रहो।
६. श्रीमती बास की मखमली गोद में खेलते हुए अपने बास के सफ़ेद, प्यारे, नन्हे पामेलियन बबुआ कुत्ते को हमेशा पुत्रवत स्वाभाविक प्यार और स्नेह दो।
७. इस तथ्य को हृदयंगम कर लो कि तुम सत्ताधारी पार्टी के नौकर हो, केन्द्र या राज्य सरकार के नहीं।
८. काम कम दिखावा ज्यादा - Work less, show more.
९. बातें कम, सुनना ज्यादा - Talk less, listen more.
खेमका भाई! आप मेरे छोटे भाई की तरह हैं। इसलिए मैंने ३४ वर्षों के अनुभव के आधार पर स्वयं द्वारा प्रतिपादित इन शाश्वत सिद्धान्तों को आपके हित में सार्वजनिक किया। आप इन सूत्रों को अमली जामा पहनाइए। फिर देखिए यू.पी. की नीरा यादव, अखंड प्रताप सिंह और सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश बाल कृष्णन की तरह लक्ष्मी आपकी दासी होंगीं और कुबेर सबसे विश्वस्त दास। रिटायरमेन्ट के बाद भी नौकरी पक्की।
कम लिखना, ज्यादा समझना।
                               ।इति।
       शुभकामनाओं के साथ,
                                                   आपका शुभचिन्तक
                                                    यादव सिंह कृष्णन

Wednesday, October 17, 2012

राष्ट्रीय जमाता - वाड्रा बाबू




भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है। यहां अपने-अपने धर्म की रीति और परंपराओं के अनुसार जीने का हर नागरिक को अधिकार है। अपने देश में जमाता को विशेष दर्ज़ा मिला हुआ है। विवाह के पूर्व भी वह दान-दक्षिणा, जिसे मूर्ख लोग दहेज कहते हैं, लेता है और विवाह के पश्चात भी जीवन भर बर-बिदाई लेना उसका जन्मसिद्ध अधिकार है। इतना ही नहीं, ससुराल में पत्नी की सुन्दर बहनों, सहेलियों और भाभियों से छेड़छाड़ का भी अधिकार उसे परंपरा से प्राप्त है। बारात दरवाजे पर लगते समय बाजा की आवाज़ जहां तक जाती है, वहां तक के लोग स्वतः उसके साले-ससुर और साली-सरहज बन जाते हैं। दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र, हमारा भारत महान नेहरू परिवार की जागीर है। तभी तो आपातकाल के दौरान तात्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष स्वर्गीय देवकान्त बरुआ जी ने घोषणा की थी - India is Indira and Indira is India. आज की तिथि में भी यह पवित्र घोषणा सोनिया जी पर लागू होती है। उन्हें भारत महान में राजमाता का दर्ज़ा प्राप्त है। राहुल बाबा युवराज हैं, प्रियंका बिटिया राजकुमारी और वाड्रा बाबू कुंवरजी यानि राष्ट्रीय जमाता हैं। जमाता जब भी ससुर गृह, ससुर के भ्राता गृह या ससुर के अभिन्न मित्र गृह में विशेष अतिथि के रूप में पदार्पण करता है, तो उसके स्वागत की विशेष तैयारियां होती है - तरह-तरह के व्यंजन - आमिष-निरामिष बनते हैं, सुन्दर सालियां चुहलबाज़ी और संगीत से मनोरंजन करती हैं, गांव के जवान और बुज़ुर्ग भक्तिभाव से उसका प्रवचन सुनते हैं और विदाई के वक्त अपनी औकात के अनुसार उसकी ज़ेबें नोटों से भर देते हैं। किसी की औकात पांच रुपए की होती है, किसी की ग्यारह, किसी की इक्यावन, तो किसी की एक सौ एक की। लेकिन ज़रा यह भी सोचिए कि हमारा राष्ट्रीय जमाता यदि डीएलएफ़ के मालिक के.पी.सिंह, जिनसे गांधी परिवार के घनिष्ठ संबंध हैं, के घर जाता है, तो क्या वे जमाता की विदाई एक सौ एक रुपए से करेंगे? उनके पास लाखों करोड़ रुपयों की घोषित-अघोषित संपत्ति है। यदि उन्होंने अपनी और राष्ट्रीय जमाता के सोसल स्टेटस को ध्यान में रखते हुए जमाई राजा की विदाई ८५ करोड़ से कर ही दी, तो इसमें शोर मचाने वाली कौन सी बात है? जमाई राजा ने ठीक ही कहा है कि श्री के.पी.सिंह के साथ उनका पारिवारिक उठना-बैठना है। दोनों के बच्चे एक ही स्कूल में पढ़ते हैं। हमलोगों में लेन-देन चलता रहता है। जमाई राजा की इतनी शानदार बर-बिदाई करने वालों में डीएलएफ अकेले नहीं है। उसके साथ बेदरवाला इन्फ़्राप्रोजेक्ट, निखिल इन्टरनेशनल और वी.आर.एस. इन्फ़्रास्ट्रक्चर भी शामिल हैं। केजरीवाल पगला गया है या ईर्ष्या की आग में जल रहा है। हो सकता है ससुराल से उसको एक धेला भी न मिला हो। भाजपा भी अपने हिन्दू परंपराओं से दूर जा रही है। सरकार की आलोचना का मतलब यह तो नहीं कि राष्ट्रीय जमाता को ही कटघरे में खड़ा कर दिया जाय? राबर्ट बाबू जैसे सोनिया जी के दामाद हैं, वैसे ही सुषमा जी के हैं। वे जैसे राहुल बाबा के जीजा हैं, वैसे ही अरविन्द केजरीवाल के भी हैं। रिश्तों की नज़ाकत तो इनलोगों को समझना ही चाहिए। राजनीतिक महत्वाकांक्षा अपनी जगह सही हो सकती है, लेकिन भारत महान की स्वस्थ धार्मिक परंपराओं का अपमान, चाहे वह भाजपा की ओर से हो, अरविन्द केजरीवाल की ओर से हो या स्वयं अन्ना जी की ओर से हो, बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। 
राष्ट्रीय जमाता पर कुछ सिरफिरे आरोप लगा रहे हैं कि उन्होंने राजमाता के प्रभाव का अपने हित में उपयोग किया।   ये लोग यह भूल जाते हैं कि जनवरी २००२ में राबर्ट बाबू ने सार्वजनिक रूप से यह कहा था कि उनके पिता और भाई, दोनों ही उनके गांधी परिवार का दामाद होने का नाज़ायज़ लाभ उठाना चाहते हैं। नाराज़ पिता ने पुत्र के इस सुकृत्य पर मानहानि का दावा भी किया था। शायद वे यह भूल गए थे कि सोनिया जी ने कन्यादान नहीं किया था बल्कि उन्होंने पुत्रदान किया था। ऐसे सिद्धान्तप्रिय और निष्पक्ष जमाता पर लाभ लेने का आरोप लगाना घोर निन्दनीय कृत्य है।
जिस कार्य के लिए राष्ट्रीय जमाता जी को ‘भारत रत्न’ मिलना चाहिए उसी काम के लिए कुछ असामाजिक तत्त्व उनकी आलोचना कर रहे हैं। यार-दोस्तों से किसी तरह ५० लाख रुपए जुटाकर अपनी कंपनी ‘एरटेक्स’ शुरु की थी जमाई राजा ने। २००७ से २०१० के बीच उन्होंने अपनी प्रतिभा, कुशलता, संपर्क, दूरदृष्टि और कठिन श्रम के बूते स्काईलाइट हास्पीटलिटी, स्काईलाइट रियलिटी, ब्लू ब्रिज ट्रेडिंग और नार्थ इंडिया आई.टी. पार्क जैसी चार बड़ी कंपनियां खड़ी कर दीं। ये सभी कंपनियां २६८, सुखदेव विहार, नई दिल्ली के एक ही मकान से चलती हैं। इन सबकी निदेशक राजमाता की एकमात्र समधिन श्रीमती मारिन वाड्रा हैं। बिना कर्मचारियों के इन कंपनियों ने आशा से अधिक मुनाफ़ा कमाया है। राबर्ट बाबू आजकल ३०० करोड़ रुपए के मालिक हैं। उनके अनुभवों को देशहित तथा युवा उद्यमियों के हित में देश के प्रत्येक व्यक्ति के पास पहुंचाना हम सबका पुनीत राष्ट्रीय कर्त्तव्य है। इंडियन इन्स्टीच्यूट आफ मैनेजमेन्ट, इंडियन इन्स्टीच्यूट आफ टेक्नोलाजी तथा देश के सभी कामर्स कालेजों में राबर्ट बाबू का लेक्चर आयोजित करना चाहिए, उन्हें डाक्टर आफ मैनेजमेन्ट की मानद उपाधि से सम्मानित करना चाहिए। लेकिन हो इसका उल्टा रहा है। नेता और उद्योगपति को भारी छूट प्राप्त है - नेता को सैकड़ों करोड़ का चारा खाने का अधिकार है, कोलटार पी जाने का अधिकार है, कोयला खा जाने का अधिकार है। टाटा, माल्या, अंबानी, जिन्दल.........को दोनों हाथों से देश की पूंजी लूटने का अधिकार है। हमारे राष्ट्रीय जमाता ने ३०० करोड़ की पूंजी क्या बना ली, सब की आंख लग गई। बुरी नज़र वाले, तेरा मुंह काला।
दक्षिण भारत से एक समाचार पत्र निकलता है - The Hindu. नाम तो हिन्दू है लेकिन काम है पूरी तरह अहिन्दू का। दिनांक ११.१०.१२ के अंक में अखबार लिखता है - सरकारी कारपोरेशन बैंक, मंगलोर ने राबर्ट बाबू को महज़ एक लाख की जमा राशि पर २००७-०८ में ८ करोड़ रुपया उनकी स्काईलाइट हास्पीटलिटी को हंसते-हंसते दे दिया। अरे भाई! दामाद को कुछ भी देने में दिल हमेशा रोता है लेकिन चेहरे को तो हंसना ही पड़ता है। अखबार आगे लिखता है कि जमाई राजा ने अन्य स्रोतों से भी कुछ इसी तरह १५.३८ करोड़ रुपए जुटाए और मनेसर, हरियाणा में जमीन खरीदी। वही जमीन डीएलएफ को ५८ करोड़ में बेंच दी। दिनांक १२.१०.१२ के अमर उजाला में जमीन-खरीद का एक समाचार ओम प्रकाश चौटाला जी ने दिया है। चौटाला जी कहते हैं कि मेवात जिले में फ़िरोजपुर झिनका के शकरपुरी गांव में २९ एकड़ जमीन, जमाई राजा ने मुख्यमंत्री हुड्डा के आशीर्वाद से सस्ते में खरीद ली है। कलेक्टर रेट १६ लाख रुपए प्रति एकड़ था, मार्केट रेट ४५ लाख रुपए प्रति एकड़ था मगर राबर्ट बाबू ने मात्र २ लाख रुपए प्रति एकड़ की दर से यह अचल संपत्ति खरीदी। इसके बदले अहमद परिवार को उनके मूल गांव खानपुर की जमीन को रेजिडेन्सियल ज़ोन में तब्दील करा दिया गया। भारत की सभ्यता दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यता है; लेकिन इस महान सभ्यता और संस्कृति की सही जानकारी न तो अमर उजाला को है, न दि हिन्दू को है, न केजरीवाल को है और ना ही ओम प्रकाश चौटाला को है। इन्हें शर्म भी नहीं आती, दामाद पर उंगली उठाते हुए। इस मामले में भारत सरकार की भूमिका प्रशंसनीय है। सभी मंत्री और सभी कांग्रेसी सियार एक साथ, एक जगह बैठकर, एकजुट हो, मुंह को उपर करके एक स्वर में क्या सुन्दर राग अलाप रहे हैं - हमारा दामाद भ्रष्टाचारी नहीं हो सकता। जय राजमाता! जय राज जमाता!!

Thursday, October 4, 2012

हम सेक्युलर हैं





हम सेक्युलर हैं, क्योंकि --

१. हम भारत के संविधान में निहित प्रावधानों का उल्लंघन करके अल्पसंख्यकों को आरक्षण देते हैं।

२. हम बांग्लादेश के घुसपैठी मुसलमानों का हिन्दुस्तान में सिर्फ़ स्वागत ही नहीं करते, बल्कि राशन कार्ड और मतदाता पहचान पत्र बनवाकर भारत की नागरिकता भी देते हैं।

३. हम हिन्दू-तीर्थस्थलों की यात्रा के लिए एक पैसा भी नहीं देते, उल्टे टिकट और अन्य सुविधाओं के लिए सर्विस टैक्स भी वसूलते हैं।

४. हम सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले को दरकिनार करके हज़ यात्रियों को हिन्दुओं पर जाजिया टैक्स लगाकर भारी सब्सिडी देते हैं।

५. हम हिन्दुओं के लिए एक पत्नी रखने का कानून बनाते हैं और मुसलमानों के चार पत्नियां रखने के अधिकार को जायज ठहराते हैं।

६. हम हिन्दू लड़कियों के घटते वस्त्र को नारी स्वातंत्र्य का जीवन्त उदाहरण मानते हैं और मुसलमानों की बुर्का प्रथा का समर्थन करते हैं।

७. हम भारत माता और हिन्दू देवी-देवताओं की नंगी तस्वीर बनाने वाले को सर्वश्रेष्ठ पेन्टर का खिताब देते हैं।

८. हम भारत माता को सार्वजनिक रूप से डायन कहने वाले को कैबिनेट मंत्री के पद से सम्मानित करते हैं।

९. हम राष्ट्रगीत "वन्दे मातरम" को अपमानित करने वालों को राज्य और केन्द्र सरकार में ऊंचे ओहदे देते हैं।

१०. हम १५ अगस्त के दिन पाकिस्तानी झंडा फ़हराने वालों और तिरंगा जलानेवालों को दिल्ली में बुलाकर बिरयानी खिलाकर वार्त्ता करते हैं।

११. हम कश्मीर घाटी से हिन्दुओं को जबरन खदेड़े जाने पर चुप्पी साध लेते हैं और असम के कोकराझार के बांग्लादेशियों के विस्थापन को राष्ट्रीय शर्म (शेम) मानते हैं।

१२.हम अमेरिका में बनी फ़िल्म "इनोसेन्स आफ़ मुस्लिम्स" के खिलाफ़ हिन्दुस्तान में हर तरह के प्रदर्शन, हिंसा, दंगा, तोड़फ़ोड़ और आगजनी को जायज मानते हैं।

१३.हम गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस की बोगियों में आग लगाकर हिन्दुओं को ज़िन्दा जला देने की घटना पर चुप्पी साध लेते हैं और प्रतिक्रिया में उपजी हिंसा को दुनिया की सबसे बड़ी सांप्रदायिक घटना मानते हैं।

१४.हम देश के बंटवारे के लिए जिम्मेदार मुस्लिम लीग से केरल और केन्द्र में सत्ता की साझेदारी करते हैं और राष्ट्रवादी संगठन आरएसएस पर बार-बार प्रतिबंध लगाते हैं।

१५ हम बाबरी ढांचा गिराने के अपराध में यूपी, एमपी, राजस्थान और सुदूर हिमाचल प्रदेश की सरकारें पलक झपकते बर्खास्त करते हैं तथा कश्मीर में मन्दिरों को तोड़नेवालों के साथ सत्ता की साझेदारी करते हैं।

१६.हम मदरसों में आतंकवाद की शिक्षा देनेवालों को सरकारी अनुदान देते हैं एवं सरस्वती शिशु मन्दिरों पर नकेल लगाते हैं।

१७. हम भारतीय नरेन्द्र मोदी को राष्ट्रीय खलनायक मानते हैं और इटालियन को राजमाता - Long live our queen.

१८. हम भारत के प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद, सरदार पटेल और कन्हैया लाल माणिक लाल मुन्शी के प्रयासों से सोमनाथ मन्दिर के पुनर्निर्माण को सेक्युलर मानते हैं और राम मन्दिर निर्माण को घोर सांप्रदायिक।

१९.हम रामसेतु तोड़कर जलमार्ग बनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं और बाबरी निर्माण के लिए भी कृतसंकल्प हैं।

२०. हम १९८४ के सिक्खों के कत्लेआम को इन्दिरा गांधी की मृत्यु से उत्पन्न सामान्य प्रतिक्रिया मानते हैं और गुजरात की हिंसा को महानतम सांप्रदायिक घटना।

२१.हम मज़हब के आधार पर देश के विभाजन को मिनारे पाकिस्तान पर जाकर मान्यता देते हैं और अन्यों को भी भविष्य में इसी घटना की पुनरावृत्ति के लिए प्रोत्साहन देते हैं।

२२. हम देश की प्राकृतिक संपदा पर मूल निवासी होने के कारण मुसलमानों का पहला हक मानते हैं और हिन्दुओं (आर्यों) को बाहर से आया हुआ बताते हैं।

२३. हम मस्जिदों में जमा अकूत आग्नेयास्त्रों की खुफ़िया जानकारी प्राप्त होने के बाद भी छापा नहीं मारते हैं और हिन्दू मन्दिरों की संपत्ति छापा डालकर रातोरात ज़ब्त कर लेते हैं।

२४. हम मन्दिरों की संपत्ति और रखरखाव के लिए सरकारी ट्रस्ट बना देते हैं और अज़मेर शरीफ़, ज़ामा मस्ज़िद की संपत्ति से नज़रें फेर लेते हैं।

२५. हम हिन्दुओं के शादी-ब्याह, जन्म-मृत्यु, उत्तराधिकार, जीवन शैली, पूजा-पाठ के लिए सैकड़ों कानून बना देते हैं लेकिन मुस्लिम पर्सनल ला की चर्चा करना भी अपराध मानते हैं।

२६. हम मुसलमानों को रास्ता रोककर नमाज़ पढ़ने की इज़ाज़त देते हैं और मन्दिर प्रांगण में एकत्रित श्राद्धालुओं पर लाठी चार्ज करते हैं।

२७. हम "वीर शिवाजी" पर आधारित टी.वी. सिरीयल पर प्रतिबंध लगाते हैं और "मुगले आज़म" को राष्ट्रीय पुरस्कार देते हैं।

२८. हम मुसलमानों को अपना व्यवसाय खोलने के लिए आसान किश्तों पर ५ लाख रुपए का ऋण कभी न चुकाने के आश्वासन के साथ देते हैं और हिन्दू किसानों को ऋण न चुकाने के कारण आत्महत्या के लिए प्रेरित करते हैं।

२९. हम रमज़ान के महीने में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और अन्य गण्यमान व्यक्तियों द्वारा सरकारी पैसों से रोज़ा अफ़्तार का आयोजन करते हैं तथा होली-दिवाली पर एक पैसा भी खर्च नहीं करते।

३०. हम हज़रत मोहम्मद पर डेनमार्क में बने कार्टून पर बलवा करनेवालों पर लाठी के बदले फूल बरसाते हैं और राम-कृष्ण को गाली देनेवालों को पद्म पुरस्कार देते हैं।

३१. हम म्यामार और कोकराझार की घटना पर पूरी मुंबई के यातायात और संपत्ति को उग्र मुस्लिम प्रदर्शनकारियों के हवाले कर देते हैं और हिन्दुओं की बारात पर भी लाठी चार्ज करते हैं।

३२. हम पाकिस्तान से आए हिन्दुओं को ज़बरन भेड़ियों के हवाले कर देते हैं और बांग्लादेशियों के लिए स्वागत द्वार बनाते हैं।

३३. हम जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में "गोमांस पार्टी" का आयोजन करते हैं और बाबा रामदेव के शहद को प्रतिबंधित करते हैं।

३४. हम अलीगढ़ मुस्लिम युनिवर्सिटी की शाखाएं देश के कोने-कोने में खोलने के लिए सरकारी पैकेज देते हैं और काशी हिन्दू विश्वविद्यालय का अनुदान रोक देते हैं।

३५. हम आतंकवादियों के घर (आज़मगढ़) जाकर आंसू बहाते हैं और शहीद जवानों की विधवाओं और बच्चों को भगवान भरोसे छोड़ देते हैं।

३६.हम आतंकवादियों से मुठभेड़ को फ़र्ज़ी एनकाउंटर कहते हैं और हिन्दू साधु-सन्तों को आतंकवादी।

३७. हम सलमान रश्दी को भारत आने की अनुमति नहीं देते, तसलीमा नसरीन को भारत में रहने की इज़ाज़त नहीं देते लेकिन वीना मलिक को अनिश्चित काल के लिए सरकारी मेहमान बनाते हैं।