Thursday, January 6, 2011

बोए थे फूल उग आए नागफनी के कांटे


सन १९७५ में श्रीमती इन्दिरा गांधी द्वारा थोपे गए आपातकाल के दौरान बालकवि वैरागी ने एक कविता लिखी थी - बोए थे फूल, उग आए नागफनी के कांटें/ किस-किस को दोष दें, किस-किस को डांटें. उस समय वे कांग्रेस पार्टी से जुड़े थे. इन्दिरा जी ने ऐसी कविता लिखने के अपराध में उन्हें पार्टी से निकाल दिया. वैरागी जी की कविता की ये पंक्तियां कालजयी हैं. वे तब भी उतनी ही सत्य थीं, जितनी आज हैं. भारतीय संविधान द्वारा न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका की स्थापना के पीछे निश्चित रूप से पवित्र मनोभाव रहे होंगे, लेकिन आजकल इन संवैधानिक संस्थाओं की जो दुर्दशा बिना सूक्ष्मदर्शी की सहायता के भी दिखाई पड़ रही है, वह सोचनीय ही नही, चिन्ताजनक भी है.
सरकार, नेता, मन्त्री और नौकरशाही में व्याप्त भ्रष्टाचार के किस्से तो अब किसी को चौंकाते भी नहीं. देश के सबसे ईमानदार माने जाने वाले मुख्य मन्त्री श्री नीतीश कुमार के पास ४३.२५९ लाख की संपत्ति और उनके बेटे प्रशान्त के पास १०५.६६७ लाख की संपत्ति है. उनके मन्त्रिमंडल के अधिकांश सदस्य करोड़पति हैं. ये आंकड़े बिहार के सरकारी वेबसाइट से लिए गए हैं. निश्चित रूप से नीतीश कुमार, लालू यादव, मायावती, मुलायम सिंह, जय ललिता, करुणानिधि और मधु कोड़ा की तुलना में बहुत गरीब मुख्य मन्त्री हैं, फिर भी उनके बेटे के पास १०५ लाख की संपत्ति चौंकानेवाली सूचना है. मेरा दावा है, अनुभव भी है कि कोई भी क्लास-१ का अधिकारी भी अगर ईमानदारी से अपनी ड्यूटी करे, उसके परिवार में पत्नी, माता-पिता और तीन बच्चे हों, तो अपनी सेवा के २५ वर्षों के बाद भी २५ लाख का घर नहीं खरीद सकता. अनुशासन हमेशा ऊपर से नीचे की ओर आता है. अपने देश में प्रधान मन्त्रियों के सीधे भ्रष्टाचार में लिप्त होने के मामलों के सार्वजनिक होने के बाद जनता को भी इस दौड़ में बेहिचक शामिल होने की हरी झंडी मिल गई. इन्दिरा गांधी-नागरवाला, राजीव गांधी-बोफ़ोर्स, नरसिंहा राव-हर्षद मेहता, मनमोहन सिंह-ए.राजा, सोनिया गांधी-क्वात्रोची के प्रसंग किसी से छुपे नहीं हैं. कांग्रेस भ्रष्टाचार की जननी है. बाकी पार्टियों ने सिर्फ उसका अनुसरण किया है.
न्यायपालिका पर आम जनता को कुछ ज्यादा ही भरोसा रहा है. लेकिन कभी उनलोगों से भी पूछिए जिन्होंने कम से कम एक भी मुकदमा लड़ा हो. एक गरीब आदमी तो न्याय पा ही नहीं सकता. अदालतों में तो दी जानेवाली और ली जानेवाली रिश्वत को बाकायदा ‘दस्तूर’ का नाम देकर इसे वैधानिक कर दिया गया है. अब सर्वोच्च न्यायालय में व्याप्त भ्रष्टाचार की परतें भी धीरे-धीरे खुल रही हैं.
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के वर्तमान अध्यक्ष न्यायमूर्ति के.जी. बालकृष्णन के रिश्तेदारों की धांधली और काली कमाई का व्योरा भी धीरे-धीरे सामने आ रहा है. श्री बालकृष्णन के छोटे भाई के.जी. भास्करन ने केरल के सरकारी वकील के पद पर रहते हुए अकूत संपत्ति अर्जित की, जिसमें तमिलनाडू के डिंडुगुल में ६० एकड़ जमीन क एक फार्म हाउस भी शामिल है. पूर्व मुख्य न्यायाधीश के दो दामाद - पी.वी.श्रीनिजन और एम. जे. बेनी भी करोड़ों की संपत्ति बनाने में किसी से पीछे नहीं रहे. जस्टिस बालाकृष्णन के खिलाफ उसी सुप्रीम कोर्ट में आय से अधिक संपत्ति बनाने की जांच के लिए एक याचिका दायर की गई है, जिसके वे कभी मुख्य न्यायाधीश थे.
हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जज राजनीतिज्ञों की तरह किसी नीरा राडिया की सहायता नहीं लेते. वे वकालत के पेशे में जुड़े अपने रिश्तेदारों की सेवाएं लेते हैं. सुप्रीम कोर्ट के वर्तमान न्यायाधीश श्री काटजू ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के कामकाज पर टिप्पणी करते हुए इस तथ्य का खुलासा किया था. भोपाल गैस त्रासदी के नायक एंडरसन, चारा घोटाले के चर्चित अभियुक्त लालू यादव, ताज कारिडोर की मायावाती, अकूत संपत्ति के मालिक मुलायम सिंह आदि अनायास ही सुप्रीम कोर्ट की कृपा नहीं प्राप्त करते. जस्टिस चो रामास्वामी, जस्टिस दिनकरन, जस्टिस रंगनाथ मिश्र, जस्टिस अहमदी, जस्टिस बालकृष्णन.............कितनों का नाम गिनाया जाय! भारत के सभी जजों, मन्त्रियों और कार्यपालिका से जुड़ी बड़ी मछलियों की संपत्ति की निष्पक्ष जांच कराई जाय तो लाखों हजार करोड़ों की बेनामी और अवैध संपत्ति का खुलासा हो सकता है. प्रधान मंत्री से लेकर सेनाध्यक्ष तक बहती गंगा में हाथ धो रहे हैं. जांच कराएगा कौन?
बर्बाद गुलिस्तां करने को, सिर्फ़ एक ही उल्लू काफ़ी है;
हर शाख पर उल्लू बैठे हैं, अंजामे गुलिस्तां क्या होगा.

1 comment:

  1. Numerous stories of corruption involving politicians are rife in the media but off late we have started getting a whiff of the rampant corruption in the judiciary. I wonder if the judiciary had always been suffering with this disease or is it just a recent phenomenon. I wonder if the judges earlier had higher standards of morality or does this just indicate the blind faith we had in judicial system? There was a recent case where a tribal woman was paraded naked in a village and the case was registered in 2 courts and one of the courts acquitted the accused. Although I am unsure of the grounds on which this atrocious decision was given but if anything it just indicates moral dereliction the judiciary is suffering from and if it is not the corrupt system then this certainly suggests that this judicial system is ineffective. Now that we are aware that even the judiciary is flawed it is time to change the system itself. I believe that this degeneration has been caused by the absolute sense of power which the arbiters think they have. I think we should do away with the system of one person deciding on any issue. It must be decided by atleast a panel of 3 judges. Anyone who wants to bribe the judges would have to bribe atleast 2 of them which would increase the financial burden on the parties involved and of course having more than 1 judge gives a possibility of more than one point of views. Even science relies on the concept of taking numerous readings, taking a mean of those readings and then publishing the results. A modern era which is ushering so many changes in society calls for a radical change in the judicial system too.

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