Thursday, January 20, 2011

चीरहरण जारी है

विदेशी बैंकों से कालाधन वापस लाने के प्रयास में सारी आशाएं अब सर्वोच्च न्यायालय पर ही केंद्रित हो गई हैं. सन १९४८ से लेकर आजतक भारत से कालाधन जमा करनेवाले स्विस और जर्मन बैंकों को अवैध पूंजी पलायन निर्बाध रूप से जारी है. यह गैरकानूनी धंधा सामान्यतया भ्रष्टाचार, घूस, दलाली और आपराधिक गतिविधियों की उपज है. ग्लोबल फ़ाइनेंशियल इंटिग्रिटी द्वारा पिछले महीने जारी एक सारगर्भित रिपोर्ट के अनुसार भारत की कुल अवैध पूंजी पलायन की वर्तमान कीमत कम से कम ४६२ बिलियन डालर है. भारतीय रुपए में यह धनराशि २० लाख, ८५ हज़ार करोड़ बैठती है. विदेशी बैंकों में जमा यह धन अगर देश में आ जाय तो अद्भुत कायाकल्प हो सकता है. देश के मानेजाने कानून विशेषज्ञ रामजेठमलानी, सुभाष कश्यप और के.पी.एस.गिल ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर कर यह अनुरोध किया है कि विदेशों के टैक्स हेवेन्स में जमा भारतीय धन को वापस लाने हेतु सरकार को वाध्य किया जाय. इन दिनों इस याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश बी सुदर्शन रेड्डी और एस.एस.निर्झर की पीठ गंभीरतापूर्वक सुनवाई कर रही है. बुधवार (१९.१.११) सुनवाई के दौरान विदेशी बैंकों में जमा काले धन पर पूरी जानकारी देने में हिचकिचा रही केंद्र सरकार को जमकर फ़टकार लगाते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कड़ी टिप्पणी की -- "भारतीय संपत्ति को विदेशों में रखना, देश के साथ लूट है. इसे सिर्फ़ टैक्स-चोरी का मामला नहीं माना जा सकता. अदालत विदेशी बैंकों से की गई संधियों का व्योरा नहीं जानना चाहती. वह देश की संपत्ति को लूटनेवाले अपराधियों का व्योरा जानना चाहती है. हम दिमाग को झकझोरनेवाले अपराध की बात कह रहे हैं. यह पूरे तौर पर देश की संपत्ति की चोरी है.”
जर्मनी के लिचटेंस्टीन बैंक ने २६ भारतीयों द्वारा उस बैंक में जमा की गई करोड़ों रुपयों की धनराशि का व्योरा खातेदारों के नाम के साथ भारत सरकार को उपलब्ध करा दिया है, लेकिन सरकार इसे कोर्ट को उपलब्ध नहीं करा रही है. स्विस बैंकों में जमा भारतीयों के काले धन के बारे में भारत सरकार को जानकारी मिलने का मार्ग प्रशस्त करते हुए स्विट्जरलैंड की संसद की एक समिति ने इस संबंध में हुई संधि को अपनी मंजूरी दे दी है. कई सनसनीखेज़ खुलासे करनेवाली वेबसाइट विकिलीक्स के पास भी स्विस बैंक के गुप्त खातों की सीडी उपलब्ध है.
सरकार के पास सबकुछ है, बस ईमानदारी का अभाव है. इस भ्रष्ट सरकार से विदेशों में अपनी काली कमाई रखनेवाले सफेदपोशों का स्याह चेहरा बेनकाब करने की आशा करना, दिवास्वप्न है. महाभारतकालीन धृतराष्ट्र की भूमिका का सफलतापूर्वक निर्वहन करनेवाले हमारे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह चाह कर भी ऐसा नहीं कर सकते. उनकी निष्ठा देश के साथ नहीं, एक परिवार विशेष और कुर्सी के साथ जुड़ी है. आनेवाला कल उनसे इसका हिसाब अवश्य मांगेगा, भले ही वे आज आंख बचाकर निकल जांय.
कुछ ही वर्ष पूर्व संयुक्त राष्ट्रसंघ द्वारा ‘फ़ूड फार ऑयल’ की जांच हेतु गठित वोल्कर कमिटी ने कांग्रेस पार्टी को एक लाभार्थी के रूप में नामित किया है. भारतीय जांच एजेंसियों और इन्कम टैक्स की जांच में यह साफ सिद्ध हुआ है कि बोफ़ोर्स घूस कांड में दलाली लेनेवालों में इटली के अतावियो क्वात्रोची ने ए.ई.सर्विसेज़ और कोल बार इंवेस्टमेंट जैसी कंपनियों की आड़ में घूस ली है. क्वात्रोची और उनकी पत्नी मारिया के कांग्रेस पार्टी की अध्यक्षा सोनिया गांधी और स्व. राजीव गांधी से संबंध निर्विवाद और सर्वज्ञात है. एक स्विस पत्रिका ‘Schweizer Illustrirte' के १९ नवंबर १९९१ के अंक में प्रकाशित एक खोजपरक समाचार में तीसरी दुनिया के १४ वैश्विक नेताओं के नाम दिए गए हैं, जिनके स्विस बैंकों में खाते हैं. भारत के एक पूर्व प्रधानमंत्री का नाम भी उस सूची में शामिल है. डा. येवनेज़िया एलबट्स की पुस्तक ‘The state within a state - The KGB hold on Russia in past and future' में चौंकानेवाले रहस्योद्घाटन किए गए हैं कि भारत के एक पूर्व प्रधानमंत्री और उनके परिवार को रूस से व्यवसायिक सौदों के बदले लाभ मिले हैं.
उपरोक्त तथ्यों को ध्यान में रखते हुए वर्तमान सरकार और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से यह आशा करना कि वे सफ़ेदपोश बने उन नेताओं, पूंजीपतियों, नौकरशाहों और माफ़ियाओं के नाम, जिन्होंने देश की संपत्ति लूटकर विदेशी बैंकों में जमा कर रखी है, सार्वजनिक करेंगे, निश्चित रूप से मूर्खता होगी. लाचार मनमोहन सिंह धृतराष्ट्र हैं. सारे मंत्री कौरव हैं. जनता द्रौपदी है. विरोधी दल द्यूत में हारे पांडव हैं. श्रीकृष्ण की प्रतीक्षा है. क्या पता, वे सर्वोच्च न्यायालय की वीथियों से आएं!

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