Thursday, July 25, 2013

नारी - आदिशक्ति या कमोडीटी

         पूरे विश्व के नारियों  में एक होड़ सी मची है - अधिक-से अधिक सुन्दर और आधुनिक दीखने का। भारत में यह चूहादौड़ १५ वर्ष पहले ना के बराबर थी, लेकिन बढ़ते उपभोक्तावाद ने अपने देश में भी इस रेस को ऐसी गति दी है कि अब यह रुकने का नाम ही नहीं ले रहा। फैशन और आधुनिकता के पीछे भागती महिलाओं को यह एहसास ही नही हो रहा है कि वे इस दौड़ में बिना सोचे समझे भाग लेकर अपना, नारी जाति, अगली पीढ़ी और संपूर्ण मानवता का कितना बड़ा अहित कर रही हैं। 
सृष्टि द्वारा सृजित हर तरह के प्राणियों में मादा प्राणी स्वयं में पूर्ण आकर्षण रखता है। मादा को रिझाने के लिए नर प्राणी हर तरह का उपक्रम करता है। नर प्राणी या तो स्वयं शृंगार करके मादा को रिझाने का प्रयास करता है या मीठी ध्वनि निकालकर अपनी ओर आकर्षित करता है। कोयल की जिस सुरीली तान पर असंख्य कविताएं लिखी जा चुकी हैं, वह सुरीली ध्वनि नर कोयल ही निकालता है। मादा चुप ही रहती है। नर मयूर ही अपने सतरंगे पंख फैलाकर नृत्य करता है, मादा चुपचाप देखती है। मादा मोर के पंख भी सतरंगे नहीं होते हैं। मादा मुर्गी के सिर पर कोई कलंगी नहीं होती जबकि नर मुर्गे के सिर पर सुन्दर-सी कलंगी होती है। प्राकृतिक रूप से मादा को रिझाने के लिए पुरुह के शृंगार की ही परंपरा रही है। नारी का नारी होना ही अपने आप में पूर्ण है। कुकुरमुत्ते की तरह गांव से लेकर महानगरों में उग आये ब्यूटी पार्लरों के अस्तित्व में आने के पहले भी नारियां सुन्दर हुआ करती थीं। शृंगार रस की श्रेष्ठ कविताएं उस युग की ही हैं जब नारियां ब्यूटी पार्लर का नाम भी नहीं जानती थीं। समाज के समस्त स्त्रियों का विवाह भी हो जाता था। लेकिन तब न कोई विश्व सुन्दरी प्रतियोगिता हुआ करती थी और न कोई स्त्री कण्डोम बेचा करती थी। आज विश्व में सौन्दर्य प्रसाधनों का बाज़ार इतना बड़ा हो गया है कि प्रोक्टर और गैम्बुल जैसी कंपनियां दवा बनाना छोड़ कौस्मेटिक के बाज़ार में उतर आई हैं। सौन्दर्य प्रसाधनों का बाज़ार स्टील और इलेक्ट्रानिक उत्पादों के बाज़ारों से प्रतियोगिता कर रहा है। इस समय विश्व में प्रति वर्ष १७० बिलियन अमेरिकी डालर के मूल्य के सौन्दर्य प्रसाधनों की खपत है। स्कूल-कालेज जानेवाली लड़कियां भी घर से निकलने के पहले फ़ुल मेकप करने लगी हैं। पहले वही स्त्रियां अपने को सुन्दर दिखाने के लिए सौन्दर्य प्रसाधनों का प्रयोग करती थीं जिनके लिए सौन्दर्य एक बिकाऊ वस्तु था और उनकी आजीविका का साधन था। पश्चिम में नारी स्वातन्त्र्य आन्दोलन के बाद उभरती हुई नारी शक्ति से भयभीत पुरुष समाज ने आधुनिकता के नाम पर स्त्रियों के दोहन की सुविचारित योजनाएं बनाई। सौन्दर्य प्रतियोगिताएं और विज्ञापनों में नारी देह का प्रदर्शन इन योजनाओं में प्रमुख हैं। पुरुषों द्वारा बिछाए गए जाल में पूरे विश्व की औरतें फंसती गईं और अब हालत यह है कि इस दलदल से बाहर निकलना असंभव-सा दिख रहा है।
पुरुषों की मानसिकता की समझ के बिना कोई नारी मुक्ति आन्दोलन सफल नहीं हो सकता। संसद या न्यायालयों में ऊंची-ऊंची बात करनेवाला पुरुष समाज औरतों को मूल रूप में एक कमोडीटी ही मानता है। यही कारण है कि पुरुष हर विज्ञापन में अल्प वस्त्रों वाली कमसीन लड़की या महिला को ही देखना पसन्द करता है। अब तो हद ही हो गई है। खेल में भी सौन्दर्य का धंधा जोर पकड़ रहा है। क्रिस गेल का छक्का बाउन्ड्री पार क्या करता है कि आयातित चीयर गर्ल्स का डान्स शुरु हो जाता है। दर्शक रिप्ले का इन्तज़ार करता है कि करीना विज्ञापन लेकर हाज़िर हो जाती है। हाकी मैचों में भी यही तमाशा है। वह दिन भी दूर नहीं, जब संसद और सरकारी दफ़्तरों में भी चीयर गर्ल्स नियुक्त करने के लिए कानून बन जाएगा। पता नहीं औरतों में जागरण कब आएगा जब वे अपनी विशेष देहयष्टि और कृत्रिम सौन्दर्य का सहारा लिए बिना स्वाभिमान के साथ अपनी प्रतिभा के बल पर पूरे विश्व पटल पर मैडम क्यूरी की तरह अपनी पहचान बना पायेंगी।

Friday, July 12, 2013

यक्ष -प्रश्न - तीसरी कड़ी

यक्ष-प्रश्न (१६) - किस वस्तु के त्यागने से मनुष्य प्रिय होता है? किसे त्यागने पर शोक नहीं करता? किसे त्यागने पर वह अर्थवान होता है? और किसे त्यागकर वह सुखी होता है?
युधिष्ठिर - मान (अहंकार) को त्यागने से मनुष्य प्रिय होता है। क्रोध को त्यागने पर शोक नहीं करता। काम को त्यागने पर वह अर्थवान होता है और लोभ को त्यागकर वह सुखी होता है।
यक्ष (१७) - ब्राह्मण को किसलिए दान दिया जाता है? नट और नर्त्तकों को क्यों दान देते हैं? सेवकों को दान देने का क्या प्रयोजन है? और राजा को क्यों दान दिया जाता है?
युधिष्ठिर - ब्राह्मण को धर्म के लिए दान दिया जाता है। नट-नर्त्तकों को यश के लिए दान (पुरस्कार) दिया जाता है। सेवकों को भरण पोषण के लिए दान (वेतन) दिया जाता है और राजा को भय के कारण दान दिया जाता है।
यक्ष (१८) - यह जगत किस वस्तु से ढंका हुआ है? किसके कारण वह प्रकाशित नहीं होता? मनुष्य मित्रों को किसलिए त्याग देता है? और स्वर्ग में किस कारण नहीं जाता?
युधिष्ठिर - यह जगत अज्ञान से ढंका हुआ है। तमोगुण के कारण वह प्रकाशित नहीं होता। लोभ के कारण मनुष्य मित्रों को त्याग देता है और आसक्ति के कारण स्वर्ग में नहीं जाता।
यक्ष (१९) - पुरुष किस प्रकार मरा हुआ कहा जाता है? राष्ट्र किस प्रकार मरा हुआ कहलाता है? श्राद्ध किस प्रकार मृत हो जाता है? और यज्ञ कैसे मृत हो जाता है? 
युधिष्ठिर - दरिद्र पुरुष मरा हुआ है। बिना राजा के राष्ट्र मरा हुआ है। श्रोत्रिय ब्राह्मण के बिना, श्राद्ध मृत हो जाता है और बिना दक्षिणा के यज्ञ मरा हुआ है।
यक्ष (२०) - दिशा क्या है? जल क्या है? अन्न क्या है? विष क्या है और श्राद्ध का समय क्या है?
युधिष्ठिर - सत्पुरुष दिशा हैं क्योंकि वे मुक्ति का मार्ग बताते हैं। आकाश जल है, क्योंकि बादल उसी में उत्पन्न होते हैं। गौ अन्न है क्योंकि गौ से दूध-घी आदि हव्य प्राप्त होता है, उससे हवन होता है, हवन से वर्षा होती है और वर्षा से अन्न होता है। कामना विष है और उत्तम ब्राह्मण की प्राप्ति ही श्राद्ध का समय है।
यक्ष (२१) - उत्तम क्षमा क्या है? लज्जा किसे कहते हैं? तप का लक्षण क्या है? और दम क्या कहलाता है?
युधिष्ठिर - द्वन्द्वों को सहना क्षमा है। अकरणीय कार्य से दूर रहना लज्जा है। अपने धर्म में स्थिर रहना तप है और मन का शमन दम है।
यक्ष (२२) - ज्ञान किसे कहते हैं? शम क्या कहलाता है? दया किसका नाम है? और आर्जव (सरलता) किसे कहते हैं? 
युधिष्ठिर - वास्तविक वस्तु को ठीक-ठीक जानना ज्ञान है। चित्त की शान्ति शम है। सबके सुख की इच्छा रखना दया है और और समचित्त होना आर्जव (सरलता) है।
यक्ष (२३) - मनुष्यों का दुर्जय शत्रु कौन है? अनन्त व्याधि क्या है? साधु कौन माना जाता है? और असाधु किसे कहते हैं? 
युधिष्ठिर - क्रोध दुर्जय शत्रु है। लोभ अनन्त व्याधि है। समस्त प्राणियों का हित करने वाला साधु है और निर्दय पुरुष असाधु हैं।
यक्ष (२४) - मोह किसे कहते हैं? मान क्या कहलाता है? आलस्य किसे जानना चाहिए? और शोक किसे कहते हैं?
युधिष्ठिर - धर्ममूढ़ता ही मोह है। आत्माभिमान ही मान है। धर्म न करना आलस्य है और अज्ञान शोक है।
यक्ष (२५) - ऋषियों ने स्थिरता किसे कहा है? धैर्य क्या कहलाता है? स्नान किसे कहते हैं? और दान किसका नाम है? 
युधिष्ठिर - अपने धर्म में स्थिर रहना ही स्थिरता है। इन्द्रियनिग्रह धर्म है। मानसिक मलों को छोड़ना स्नान है और प्राणियों की रक्षा करना दान है।
यक्ष (२६) - किस पुरुष को पण्डित समझना चाहिए? नास्तिक कौन कहलाता है? मूर्ख कौन है? काम क्या है और मत्सर किसे कहते हैं?
युधिष्ठिर - धर्मज्ञ को पण्डित समझना चाहिए। मूर्ख नास्तिक कहलाता है। नास्तिक ही मूर्ख है। वासना काम है और हृदय का ताप मत्सर है।
यक्ष (२७) - अहंकार किसे कहते हैं? दंभ क्या कहलाता है? परम दैव क्या है? और पैशुन्य किसका नाम है?
युधिष्ठिर - महान अज्ञान अहंकार है। अपने को झूठमूठ बड़ा धर्मात्मा प्रसिद्ध करना दंभ है। दान का फल दैव कहलाता है और दूसरों को दोष लगाना पैशुन्य है।
यक्ष (२८) - धर्म, अर्थ और काम - इन परस्पर विरोधी तत्त्वों का एक स्थान पर कैसे संयोग हो सकता है?
युधिष्ठिर - धर्म और भार्या परस्पर वशवर्ती हों, तो धर्म, अर्थ और काम - तीनों का संयोग हो सकता है।
यक्ष - विस्तार से बताओ।
युधिष्ठिर - जब भार्या धर्मानुवर्तिनी हो, तो इन तीनों का संयोग हो सकता है, क्योंकि भार्या काम का साधन है; वह यदि अग्निहोत्र एवं दानादि धर्म का विरोध नहीं करेगी, तो उनका यथावत अनुष्ठान होने से वे अर्थ के भी साधक हो जाएंगे। इस प्रकार काम, धर्म और अर्थ - तीनों का साथ-साथ संपादन हो सकेगा।
यक्ष (२९) - भरतश्रेष्ठ! अक्षय नरक किस पुरुष को प्राप्त होता है?
युधिष्ठिर - जो पुरुष भिक्षा मांगनेवाले किसी अकिंचन ब्राह्मण को स्वयं बुलाकर, फिर उसे दान नहीं देता, वह अक्षय नरक प्राप्त करता है। जो वेद, धर्मशास्त्र, ब्राह्मण, देवता और पितृधर्मों में मिथ्याबुद्धि रखता है और धनवान होते हुए भी लोभवश दान और भोग से रहित है और कह देता है कि मेरे पास कुछ भी नहीं है, वह अक्षय नरक को प्राप्त करता है।
यक्ष (३०) - राजन! कुल, आचार, स्वाध्याय और शास्त्रश्रवण - इनमें किसके द्वारा ब्राह्मणत्व सिद्ध होता है? 
युधिष्ठिर - कुल, स्वाध्याय और शास्त्रश्रवण - इनमें से कोई भी ब्राह्मणत्व का कारण नहीं है। निःसन्देह सदाचार ही ब्राह्मणत्व का कारण है। अतः प्रयत्नपूर्वक सदाचार की रक्षा करनी चाहिए। जिसका सदाचार अक्षुण्य है, उसका ब्राह्मणत्व भी बना रहता है। जिसका आचार नष्ट हो गया, वह तो स्वयं ही नष्ट हो जाता है। पढ़नेवाले, पढ़ानेवाले और शास्त्र का विचार करनेवाले - ये सब व्यसनी और मूर्ख हैं, पण्डित तो वह है जो अपने कर्त्तव्य का पालन करता है। चारों वेद पढ़ा होने पर भी यदि कोई दूषित आचरण वाला हो, तो वह किसी भी प्रकार शूद्र से बढ़कर नहीं है। वस्तुतः जो अग्निहोत्र में तत्पर और जितेन्द्रिय है, वही ‘ब्राह्मण’ है।
शेष अगली कड़ी (समापन) में।

Monday, July 8, 2013

यक्ष-प्रश्न - दूसरी कड़ी


यक्ष (६) - देवतर्पण करनेवालों के लिए कौन वस्तु श्रेष्ठ है? पितरों का तर्पण करनेवालों के लिए क्या श्रेष्ठ है? प्रतिष्ठा चाहनेवालों के लिए कौन वस्तु श्रेष्ठ है? तथा सन्तान चाहनेवालों के लिए क्या श्रेष्ठ है?
युधिष्ठिर - देवतर्पण करनेवालों के लिए वर्षा श्रेष्ठ फल है। पितरों का तर्पण करनेवालों के लिए बीज श्रेष्ठ है। प्रतिष्ठा चाहनेवालों के लिए गौ श्रेष्ठ है और सन्तान चाहनेवालों के लिए पुत्र श्रेष्ठ है।
यक्ष (७) - ऐसा कौन पुरुष है जो इन्द्रियों के विषयों को अनुभव करते हुए, श्वास लेते हुए तथा बुद्धिमान, लोक में सम्मानित और सब प्राणियों का माननीय होकर भी वास्तव में जीवित नहीं है?
युधिष्ठिर - जो देवता, अतिथि, सेवक, माता-पिता और आत्मा - इन पांचों का पोषण नहीं करता, वह श्वास लेने पर भी जीवित नहीं है।
यक्ष (८) - पृथ्वी से भी भारी क्या है? आकाश से भी ऊंचा क्या है ? वायु से भी तेज चलनेवाला क्या है? और तिनकों से भी अधिक संख्या में क्या है?
युधिष्ठिर - माता भूमि से भी भारी (अधिक महत्त्वपूर्ण) है। पिता आकाश से भी ऊंचा है। मन वायु से भी तेज चलनेवाला है और चिन्ता तिनकों से भी बढ़कर है।
यक्ष (९) - सो जाने पर पलक कौन नहीं मूंदता? उत्पन्न होने पर चेष्टा कौन नहीं करता? हृदय किसमें नहीं है? और वेग से कौन बढ़ता है?
युधिष्ठिर - मछली सोने पर भी पलक नहीं मूंदती। अण्डा उत्पन्न होने पर भी चेष्टा नहीं करता। पत्थर में हृदय नहीं होता और नदी वेग से बढ़ती है।
यक्ष (१०) - विदेश में जानेवाले का मित्र कौन है? घर में रहनेवाले का मित्र कौन है? रोगी का मित्र कौन है? और मृत्यु के पास पहुंचे हुए मानव का मित्र कौन है?
युधिष्ठिर - साथ में जानेवाले यात्री विदेश जानेवाले के मित्र हैं। स्त्री घर में रहनेवाले की मित्र है। वैद्य रोगी का मित्र है और दान मुमूर्षु (मृत्यु के समीप पहुंचा हुआ) का मित्र है।
यक्ष (११) - समस्त प्राणियों का अतिथि कौन है? अमृत क्या है? सनातन धर्म क्या है?  और यह सारा जगत क्या है?
युधिष्ठिर - अग्नि समस्त प्राणियों का अतिथि है। गौ का दूध अमृत है। अविनाशी नित्यधर्म ही सनातन धर्म है और वायु यह सारा जगत है।
यक्ष (१२) - अकेला कौन विचरता है? एक बार उत्पन्न होकर पुनः कौन उत्पन्न होता है? शीत की औषधि क्या है? और महान देवतर्पण क्षेत्र क्या है?
युधिष्ठिर - सूर्य अकेला विचरता है। चन्द्रमा एक बार जन्म लेकर पुनः जन्म लेता है। अग्नि शीत की औषधि है और पृथ्वी सबसे महान देवतर्पण क्षेत्र है।
यक्ष (१२) - धर्म का मुख्य स्थान क्या है? यश का मुख्य स्थान क्या है? स्वर्ग का मुख्य स्थान क्या है? और सुख का मुख्य स्थान क्या है?
युधिष्ठिर - धर्म का मुख्य स्थान दक्षता है। यश का मुख्य स्थान दान है। स्वर्ग का मुख्य स्थान सत्य है और सुख का मुख्य स्थान शील है।
यक्ष (१३) - मनुष्य की आत्मा क्या है? उसका दैवकृत सखा कौन है? उपजीवन (जीने का सहारा) क्या है? और उसका परम आश्रय क्या है?
युधिष्ठिर - पुत्र मनुष्य की आत्मा है। स्त्री इसकी दैवकृत सखा है। मेघ उपजीवन है और दान परम आश्रय है।
यक्ष (१४) - धन्यवाद के योग्य पुरुषों में उत्तम गुण क्या है? धनों में उत्तम धन क्या है? लाभों में प्रधान लाभ क्या है? और सुखों में श्रेष्ठ सुख क्या है?
युधिष्ठिर - धन्य पुरुषों में दक्षता ही उत्तम गुण है। धनों में शास्त्रज्ञान प्रधान है। लाभों में आरोग्य प्रधान है और सुखों में संतोष श्रेष्ठ सुख है।
यक्ष (१५) - लोक में श्रेष्ठ धर्म क्या है? नित्य फलवाला धर्म क्या है? किसको वश में रखने से शोक नहीं होता? और किसके साथ की हुई संधि नष्ट नहीं होती?
युधिष्ठिर - लोक में दया श्रेष्ठ धर्म है। वेदोक्त धर्म नित्य फलवाला है। मन को वश में रखने से शोक नहीं होता और सत्पुरुषों के साथ की हुई संधि कभी नष्ट नहीं होती।
शेष प्रश्न और उत्तर अगली कड़ी में।
यक्ष-प्रश्न - दूसरी कड़ी
यक्ष (६) - देवतर्पण करनेवालों के लिए कौन वस्तु श्रेष्ठ है? पितरों का तर्पण करनेवालों के लिए क्या श्रेष्ठ है? प्रतिष्ठा चाहनेवालों के लिए कौन वस्तु श्रेष्ठ है? तथा सन्तान चाहनेवालों के लिए क्या श्रेष्ठ है?
युधिष्ठिर - देवतर्पण करनेवालों के लिए वर्षा श्रेष्ठ फल है। पितरों का तर्पण करनेवालों के लिए बीज श्रेष्ठ है। प्रतिष्ठा चाहनेवालों के लिए गौ श्रेष्ठ है और सन्तान चाहनेवालों के लिए पुत्र श्रेष्ठ है।
यक्ष (७) - ऐसा कौन पुरुष है जो इन्द्रियों के विषयों को अनुभव करते हुए, श्वास लेते हुए तथा बुद्धिमान, लोक में सम्मानित और सब प्राणियों का माननीय होकर भी वास्तव में जीवित नहीं है?
युधिष्ठिर - जो देवता, अतिथि, सेवक, माता-पिता और आत्मा - इन पांचों का पोषण नहीं करता, वह श्वास लेने पर भी जीवित नहीं है।
यक्ष (८) - पृथ्वी से भी भारी क्या है? आकाश से भी ऊंचा क्या है ? वायु से भी तेज चलनेवाला क्या है? और तिनकों से भी अधिक संख्या में क्या है?
युधिष्ठिर - माता भूमि से भी भारी (अधिक महत्त्वपूर्ण) है। पिता आकाश से भी ऊंचा है। मन वायु से भी तेज चलनेवाला है और चिन्ता तिनकों से भी बढ़कर है।
यक्ष (९) - सो जाने पर पलक कौन नहीं मूंदता? उत्पन्न होने पर चेष्टा कौन नहीं करता? हृदय किसमें नहीं है? और वेग से कौन बढ़ता है?
युधिष्ठिर - मछली सोने पर भी पलक नहीं मूंदती। अण्डा उत्पन्न होने पर भी चेष्टा नहीं करता। पत्थर में हृदय नहीं होता और नदी वेग से बढ़ती है।
यक्ष (१०) - विदेश में जानेवाले का मित्र कौन है? घर में रहनेवाले का मित्र कौन है? रोगी का मित्र कौन है? और मृत्यु के पास पहुंचे हुए मानव का मित्र कौन है?
युधिष्ठिर - साथ में जानेवाले यात्री विदेश जानेवाले के मित्र हैं। स्त्री घर में रहनेवाले की मित्र है। वैद्य रोगी का मित्र है और दान मुमूर्षु (मृत्यु के समीप पहुंचा हुआ) का मित्र है।
यक्ष (११) - समस्त प्राणियों का अतिथि कौन है? अमृत क्या है? सनातन धर्म क्या है?  और यह सारा जगत क्या है?
युधिष्ठिर - अग्नि समस्त प्राणियों का अतिथि है। गौ का दूध अमृत है। अविनाशी नित्यधर्म ही सनातन धर्म है और वायु यह सारा जगत है।
यक्ष (१२) - अकेला कौन विचरता है? एक बार उत्पन्न होकर पुनः कौन उत्पन्न होता है? शीत की औषधि क्या है? और महान देवतर्पण क्षेत्र क्या है?
युधिष्ठिर - सूर्य अकेला विचरता है। चन्द्रमा एक बार जन्म लेकर पुनः जन्म लेता है। अग्नि शीत की औषधि है और पृथ्वी सबसे महान देवतर्पण क्षेत्र है।
यक्ष (१२) - धर्म का मुख्य स्थान क्या है? यश का मुख्य स्थान क्या है? स्वर्ग का मुख्य स्थान क्या है? और सुख का मुख्य स्थान क्या है? 
युधिष्ठिर - धर्म का मुख्य स्थान दक्षता है। यश का मुख्य स्थान दान है। स्वर्ग का मुख्य स्थान सत्य है और सुख का मुख्य स्थान शील है।
यक्ष (१३) - मनुष्य की आत्मा क्या है? उसका दैवकृत सखा कौन है? उपजीवन (जीने का सहारा) क्या है? और उसका परम आश्रय क्या है?
युधिष्ठिर - पुत्र मनुष्य की आत्मा है। स्त्री इसकी दैवकृत सखा है। मेघ उपजीवन है और दान परम आश्रय है।
यक्ष (१४) - धन्यवाद के योग्य पुरुषों में उत्तम गुण क्या है? धनों में उत्तम धन क्या है? लाभों में प्रधान लाभ क्या है? और सुखों में श्रेष्ठ सुख क्या है?
युधिष्ठिर - धन्य पुरुषों में दक्षता ही उत्तम गुण है। धनों में शास्त्रज्ञान प्रधान है। लाभों में आरोग्य प्रधान है और सुखों में संतोष श्रेष्ठ सुख है।
यक्ष (१५) - लोक में श्रेष्ठ धर्म क्या है? नित्य फलवाला धर्म क्या है? किसको वश में रखने से शोक नहीं होता? और किसके साथ की हुई संधि नष्ट नहीं होती?
युधिष्ठिर - लोक में दया श्रेष्ठ धर्म है। वेदोक्त धर्म नित्य फलवाला है। मन को वश में रखने से शोक नहीं होता और सत्पुरुषों के साथ की हुई संधि कभी नष्ट नहीं होती।
शेष प्रश्न और उत्तर अगली कड़ी में।
यक्ष-प्रश्न - दूसरी कड़ी
यक्ष (६) - देवतर्पण करनेवालों के लिए कौन वस्तु श्रेष्ठ है? पितरों का तर्पण करनेवालों के लिए क्या श्रेष्ठ है? प्रतिष्ठा चाहनेवालों के लिए कौन वस्तु श्रेष्ठ है? तथा सन्तान चाहनेवालों के लिए क्या श्रेष्ठ है?
युधिष्ठिर - देवतर्पण करनेवालों के लिए वर्षा श्रेष्ठ फल है। पितरों का तर्पण करनेवालों के लिए बीज श्रेष्ठ है। प्रतिष्ठा चाहनेवालों के लिए गौ श्रेष्ठ है और सन्तान चाहनेवालों के लिए पुत्र श्रेष्ठ है।
यक्ष (७) - ऐसा कौन पुरुष है जो इन्द्रियों के विषयों को अनुभव करते हुए, श्वास लेते हुए तथा बुद्धिमान, लोक में सम्मानित और सब प्राणियों का माननीय होकर भी वास्तव में जीवित नहीं है?
युधिष्ठिर - जो देवता, अतिथि, सेवक, माता-पिता और आत्मा - इन पांचों का पोषण नहीं करता, वह श्वास लेने पर भी जीवित नहीं है।
यक्ष (८) - पृथ्वी से भी भारी क्या है? आकाश से भी ऊंचा क्या है ? वायु से भी तेज चलनेवाला क्या है? और तिनकों से भी अधिक संख्या में क्या है?
युधिष्ठिर - माता भूमि से भी भारी (अधिक महत्त्वपूर्ण) है। पिता आकाश से भी ऊंचा है। मन वायु से भी तेज चलनेवाला है और चिन्ता तिनकों से भी बढ़कर है।
यक्ष (९) - सो जाने पर पलक कौन नहीं मूंदता? उत्पन्न होने पर चेष्टा कौन नहीं करता? हृदय किसमें नहीं है? और वेग से कौन बढ़ता है?
युधिष्ठिर - मछली सोने पर भी पलक नहीं मूंदती। अण्डा उत्पन्न होने पर भी चेष्टा नहीं करता। पत्थर में हृदय नहीं होता और नदी वेग से बढ़ती है।
यक्ष (१०) - विदेश में जानेवाले का मित्र कौन है? घर में रहनेवाले का मित्र कौन है? रोगी का मित्र कौन है? और मृत्यु के पास पहुंचे हुए मानव का मित्र कौन है?
युधिष्ठिर - साथ में जानेवाले यात्री विदेश जानेवाले के मित्र हैं। स्त्री घर में रहनेवाले की मित्र है। वैद्य रोगी का मित्र है और दान मुमूर्षु (मृत्यु के समीप पहुंचा हुआ) का मित्र है।
यक्ष (११) - समस्त प्राणियों का अतिथि कौन है? अमृत क्या है? सनातन धर्म क्या है?  और यह सारा जगत क्या है?
युधिष्ठिर - अग्नि समस्त प्राणियों का अतिथि है। गौ का दूध अमृत है। अविनाशी नित्यधर्म ही सनातन धर्म है और वायु यह सारा जगत है।
यक्ष (१२) - अकेला कौन विचरता है? एक बार उत्पन्न होकर पुनः कौन उत्पन्न होता है? शीत की औषधि क्या है? और महान देवतर्पण क्षेत्र क्या है?
युधिष्ठिर - सूर्य अकेला विचरता है। चन्द्रमा एक बार जन्म लेकर पुनः जन्म लेता है। अग्नि शीत की औषधि है और पृथ्वी सबसे महान देवतर्पण क्षेत्र है।
यक्ष (१२) - धर्म का मुख्य स्थान क्या है? यश का मुख्य स्थान क्या है? स्वर्ग का मुख्य स्थान क्या है? और सुख का मुख्य स्थान क्या है? 
युधिष्ठिर - धर्म का मुख्य स्थान दक्षता है। यश का मुख्य स्थान दान है। स्वर्ग का मुख्य स्थान सत्य है और सुख का मुख्य स्थान शील है।
यक्ष (१३) - मनुष्य की आत्मा क्या है? उसका दैवकृत सखा कौन है? उपजीवन (जीने का सहारा) क्या है? और उसका परम आश्रय क्या है?
युधिष्ठिर - पुत्र मनुष्य की आत्मा है। स्त्री इसकी दैवकृत सखा है। मेघ उपजीवन है और दान परम आश्रय है।
यक्ष (१४) - धन्यवाद के योग्य पुरुषों में उत्तम गुण क्या है? धनों में उत्तम धन क्या है? लाभों में प्रधान लाभ क्या है? और सुखों में श्रेष्ठ सुख क्या है?
युधिष्ठिर - धन्य पुरुषों में दक्षता ही उत्तम गुण है। धनों में शास्त्रज्ञान प्रधान है। लाभों में आरोग्य प्रधान है और सुखों में संतोष श्रेष्ठ सुख है।
यक्ष (१५) - लोक में श्रेष्ठ धर्म क्या है? नित्य फलवाला धर्म क्या है? किसको वश में रखने से शोक नहीं होता? और किसके साथ की हुई संधि नष्ट नहीं होती?
युधिष्ठिर - लोक में दया श्रेष्ठ धर्म है। वेदोक्त धर्म नित्य फलवाला है। मन को वश में रखने से शोक नहीं होता और सत्पुरुषों के साथ की हुई संधि कभी नष्ट नहीं होती।
शेष प्रश्न और उत्तर अगली कड़ी में।

यक्ष प्रश्न प्रथम कड़ी

        यक्ष प्रश्न, वे प्रश्न हैं जो काल के किसी भी अंश में अप्रासंगिक नहीं हैं। वनवासी युधिष्ठिर द्वारा यक्ष के सारे प्रश्नों के दिए गए उत्तर भी कालजयी है। यक्ष प्रश्न का उल्लेख सदियों से किया जाता है। प्रामाणिक, गूढ़ और जटिल प्रश्न को यक्ष प्रश्न कहने की परंपरा-सी बन गई है; परन्तु मूल यक्ष प्रश्न क्या हैं, बहुत ही कम विद्वानों को विदित है। वेद व्यास द्वारा रचित मूल महाभारत से प्राप्त यक्ष के प्रश्नों और युधिष्ठिर द्वारा दिए गए उत्तर का हिन्दी अनुवाद प्रसंग के साथ स्वान्त सुखाय प्रस्तुत कर रहा हूं। प्रश्नोत्तर का क्रम जैसे-जैसे आगे बढ़ता है, नये-नये तथ्यों और रहस्यों का उद्घाटन होता जाता है।
अपने तेरह वर्षों के वनवास के अन्तिम चरण में द्वैतवन में निवास करने के समय एक दिन एक ऋषि के आरणीयुक्त मन्थनकाष्ठ को अपने सिंग में फंसाकर भाग रहे एक मृग को ढूंढ़ने के क्रम में पांचो पाण्डव निर्जन वन में दूर तक निकल गए। अत्यधिक श्रम से क्लान्त सभी भ्राता एक विशाल वट-वृक्ष के नीचे भूख और प्यास से पीड़ित हो बैठ गए। प्यास के मारे सबकी बुरी दशा थी। नकुल को जल लाने का कार्य सौंपा गया। कुछ ही दूरी पर उन्हें निर्मल जल का एक सरोवर मिला। प्यास से व्याकुल नकुल ने जैसे ही जल पीने का प्रयास किया, नेपथ्य से मेघ-गर्जना के समान एक ध्वनि सुनाई पड़ी -
‘तात नकुल! जल पीने का साहस न करो। इस सरोवर का स्वामी मैं हूं। मेरी अनुमति के बिना न कोई जल पी सकता है, और ना ही ले जा सकता है। तुम पहले मेरे प्रश्नों के उत्तर दो, पश्चात जल भी पीना और ले भी जाना।’
नकुल ने दिव्य वाणी की ओर ध्यान ही नहीं दिया। सम्मुख कोई दिखाई पड़ नहीं रहा था। निरापद समझ उन्होंने जल पी लिया। परन्तु जल पीते ही अचेत हो वे सरोवर के किनारे गिर पड़े। उनको ढूंढ़ने बारी-बारी से सहदेव, अर्जुन और भीम भी सरोवर के पास गए। सभी से अदृश्य यक्ष ने अपने प्रश्नों के उत्तर देने के बाद ही जल ग्रहण करने की सलाह दी; परन्तु अपनी शक्ति के गर्व में फूले सबने यक्ष प्रश्नों की अवहेलना की। परिणाम स्वरूप जल पीने के पश्चात सभी अचेत हो किनारे पर सो गए। सबसे अन्त में युधिष्ठिर अपने भ्राताओं को ढूंढते हुए सरोवर के पास पहुंचे। सुन्दर सरोवर के किनारे अपने मृतप्राय भ्राताओं को देख वे शोकसमुद्र में गोते लगाने लगे। तरह-तरह की दुश्चिन्ताएं मन में घर बनाने लगीं - कही दुर्योधन और शकुनि ने सरोवर को विषैला तो नहीं बना दिया? किसी राक्षस ने धोखे से इन महावीरों का वध तो नहीं कर दिया? न,न....ऐसा नहीं हो सकता है। इस पृथ्वी पर प्रत्यक्ष युद्ध में इन वीरों का सामना करने का साहस संभवतः किसी में नहीं है। फिर इनके मृत शरीरों पर किसी तरह के आयुधों के प्रहार के चिह्न भी नहीं हैं। विषयुक्त जल पीने से मृत शरीर का रंग भी बदल जाता है। परन्तु इनके शरीर में किसी तरह का विकार लक्षित नहीं हो रहा, मुखमण्डल भी खिला हुआ है...........। गहरी चिन्ता में डूबे युधिष्ठिर ने स्वयं जल के परीक्षण का निर्णय लिया। जैसे ही वे जल में उतरने के लिए तत्पर हुए, नेपथ्य से मेघ-गर्जना की भांति एक ध्वनि उनके कानों से भी टकराई -
‘हे तात! तुम्हारे भ्राताओं ने भी तुम्हारी तरह दुस्साहस कर जल पीने का प्रयास किया था। परिणाम तुम्हारे सामने है। यदि तुम भी मेरे प्रश्नों के उत्तर दिए बिना दुस्साहस करोगे, तो अपने भ्राताओं की तरह इन्हीं के साथ सदा के लिए सो जाओगे। मैं इस सरोवर का स्वामी हूं। इसके शीतल जल को पीने की कुछ शर्तें हैं। मेरे कुछ प्रश्न हैं। उनके सही उत्तर देनेवालों को ही इस सरोवर का जल पीने की अनुमति है। आजतक किसी ने मेरे प्रश्नों के उत्तर नहीं दिए; अतः इस दिव्य सरोवर के दिव्य जल का पान कोई नहीं कर सका है। तुम पहले मेरे प्रश्नों के उत्तर दो, पश्चात जल पीना भी, ले भी जाना।’
युधिष्ठिर ने सभी दिशाओं में दृष्टि दौड़ाई, पर कोई दिखाई नहीं पड़ा। उन्होंने विनम्र स्वर में स्वयं प्रश्न किया -
‘हे इस दिव्य सरोवर के स्वामी! मैं आपको देख नहीं पा रहा हूं। पृथ्वी के इन चार महावीरों को प्रत्यक्ष युद्ध में मृत्यु प्रदान करने में स्वयं इन्द्र भी सक्षम नहीं हैं। परन्तु आपने यह कार्य धोखे से ही सही, किया है। मैं आपके दर्शन करना चाहता हूं। आपके प्रश्नों को सुनने के पहले मैं अपने एक प्रश्न का उत्तर चाहता हूं। कृपया सम्मुख आ मुझे बताने का कष्ट करें कि आप कौन हैं - रुद्र, वसु, मरुत, इन्द्र, यमराज, राक्षस या यक्ष?’
युधिष्ठिर का प्रश्न सुन एक विशालकाय आकृति घने वृक्षों के मध्य प्रकट हुई। सम्मुख आ उसने परिचय दिया -
‘राजन! मैं यक्ष हूं, इस वनक्षेत्र और इस सरोवर का स्वामी। मैंने तुम्हारे भ्राताओं को बार-बार रोका था। परन्तु इन्होंने मेरे प्रश्नों का उत्तर दिए बिना ही जल ग्रहण करने का प्रयास किया। उनके इस अपराध के कारण ही मैंने स्वयं इनका वध किया है। तुम भी बिना मेरे प्रश्नों का उत्तर दिए ऐसा प्रयास करोगे, तो इनकी ही गति को प्राप्त होगे।’
युधिष्ठिर ने स्थिरचित्त हो उत्तर दिया -
‘मैं आपके अधिकार की वस्तु बिना आपकी अनुमति के स्पर्श भी नहीं करूंगा। आप प्रश्न पूछिए, मैं अपनी बुद्धि और अपने ज्ञान के अनुसार सही उत्तर देने का हर संभव प्रयास करूंगा।’
यक्ष-प्रश्न (१) - ‘सूर्य कौन उदित करता है? उसके चारों ओर कौन चलते हैं? उसे कौन अस्त करता है? और वह किसमें प्रतिष्ठित है?’
युधिष्ठिर - ‘ब्रह्म सूर्य को उदित करता है, देवता उसके चारों ओर चलते हैं। धर्म उसे अस्त करता है और वह सत्य में प्रतिष्ठित है।’
यक्ष-प्रश्न (२) - ‘मनुष्य श्रोत्रिय किससे होता है? महत पद को किसके द्वारा प्राप्त करता है? किसके द्वारा वह द्वितीयवान होता है? और किससे बुद्धिमान होता है?
युधिष्ठिर - ‘श्रुति के द्वारा मनुष्य श्रोत्रिय होता है। तप से महत्पद प्राप्त करता है। धृति से द्वितीयवान (ब्रह्मरूप) होता है और वृद्ध पुरुषों की सेवा से बुद्धिमान होता है।
यक्ष (३) - ‘ब्राह्मणों में देवत्व क्या है? उनमें सत्पुरुषों-सा धर्म क्या है? मनुष्यता क्या है? और असत्पुरुषों-सा आचरण क्या है?’
युधिष्ठिर -‘वेदों का स्वाध्याय ही ब्राह्मणों में देवत्व है। तप सत्पुरुषों-सा धर्म है। मरना मानुषी भाव है और निन्दा करना असत्पुरुषों-सा आचरण है।’
यक्ष (४) - क्षत्रियों में देवत्व क्या है? उनमें सत्पुरुषों-सा धर्म क्या है? उनके लिए मनुष्यता क्या है? उनमें असत्पुरुषों-सा आचरण क्या है?’
युधिष्ठिर - ‘बाणविद्या क्षत्रियों का देवत्व है। यज्ञ उनका सत्पुरुषों सा धर्म है। भय मानवी भाव है। दीनों की रक्षा न करना असत्पुरुषों-सा आचरण है।’
यक्ष (५) - ‘कौन एक वस्तु यज्ञीय साम है? कौन एक यज्ञीय यजुः है। कौन एक वस्तु यज्ञ का वरण करती है? और किस एक का यज्ञ अतिक्रमण नहीं करता?’
युधिष्ठिर -‘प्राण ही यज्ञीय साम है। मन ही यज्ञीय यजुः है। एकमात्र ऋक ही यज्ञ का वरण करती है और एकमात्र ऋक का ही यज्ञ अतिक्रमण नहीं करता।’
आज सिर्फ ५ प्रश्न और उनके उत्तर। शेष अगली कड़ी में।

Sunday, July 7, 2013

अन्तर-पथ - एक समीक्षा

        ‘अन्तर-पथ’ एक कविता संग्रह है जिसे शब्द-भाव दिए हैं, डा. रचना शर्मा ने और प्रकाशित किया है पिलग्रिम्स पब्लिशिंग, वाराणसी ने। सामान्यतः पिलग्रिम्स पब्लिशिंग नए साहित्यकारों की रचनाएं कम ही छापता है। परन्तु डा. रचना शर्मा का यह काव्य-संग्रह प्रकाशित करके, प्रकाशक ने अपनी पुरानी छवि तोड़ने का सराहनीय प्रयास किया है। ऐसी ललित रचनाओं को प्रकाशित करने का श्रेय और सौभाग्य विरले प्रकाशकों को प्राप्त हो पाता है।
‘अन्तर-पथ’ ५८ आधुनिक अतुकान्त कविताओं का एक अद्भुत संग्रह है। पुस्तक की प्रत्येक कविता पाठक से सीधा संवाद स्थापित करती है। एक भी ऐसी कविता नहीं है, जो समझ में न आए। कवियित्री ने अपनी संवेदनाओं को अभिव्यक्त करने के लिए कही बिंबों का सहारा लिया है, तो कही प्रत्यक्ष संवाद का। दोनों ही स्थितियों में परिणाम एक सा है यानि गुणवत्ता समान है। रचना की पहली कविता ‘शब्द’ से लेकर अन्तिम कविता ‘बोल दो’ तक दो बार आद्योपान्त पढ़ने के बाद भी मैं निश्चय नहीं कर पाया कि सर्वश्रेष्ठ ५ कविताओं का चयन कैसे करूं। आज से पहले यह धर्मसंकट कभी नहीं आया था। सारी कविताएं उत्कृष्ट हैं। 
पुरुष कवियों ने नारी की भावनाओं और पीड़ा को उकेरने का कई बार सफल/असफल प्रयास किया है। परन्तु ‘अन्तर-पथ’ को पढ़ने के बाद मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि नारी की भावना, संवेदना, पीड़ा और अनुभूति की अभिव्यक्ति जितने सुन्दर ढंग से एक नारी कर सकती है, वह किसी और के वश का नहीं।  रचना की एक कविता, स्मृति - 
व्यस्त जिन्दगी में कभी
दिल के दर पर दस्तक देती
सुनहरी यादें
बिखेर देती हैं
तुम्हारे स्नेह की संचित किरणों को
अन्तस में

और मैं 
आलोकित अन्तस में
चुनने लगती हूं
उन पुष्पों को
जो,
कभी नहीं मुरझाएंगे,
और
जिनकी सुगन्ध
शाश्वत है।
भीष्म की प्रतिज्ञा से मुग्ध पुरुष को उलाहना देते हुए रचना का संदेश कालजयी है -
नहीं कर सकते हो यदि
कृष्ण के समान रक्षा
द्रौपदी की
तो, शर्म नहीं।
पर
मत करना प्रतिज्ञा
भीष्म के समान।

नारी की पीड़ा को उकेरने के लिए कही-कही रचना ने पुरुष मानसिकता पर करारा प्रहार भी किया है। कई स्थानों पर दूर तक फैली उदासी भी दिखाई पड़ती है। परन्तु न तो सारे पुरुष एक जैसे होते हैं और न सारी नारियां एक जैसी। पुरुष और प्रकृति एक दूसरे के पूरक हैं और यह संबंध शाश्वत है। एक-दूसरे को समझ कर, एक दूसरे का सम्मान कर ही नई दुनिया का निर्माण किया जा सकता है; घृणा या प्रतिद्वन्द्विता से नहीं। और इस पृथ्वी पर हजारों तरह के फूल खिलते हैं - कांटों में भी, रेगिस्तान में भी, मधुवन में भी। चाहे वह पुरुष हो या नारी, दृष्टि धनात्मक हो तो प्रत्येक क्षण, प्रत्येक स्थान और प्रत्येक वस्तु का आनन्द लिया जा सकता है। धोखा खाना अच्छा है, धोखा देना नही। बुरा अनुभव भी बहुत कुछ दे जाता है। अपने अनुभवों के आधार पर रचना द्वारा रचित कुछ कविताएं अनुपम हैं। काव्य-संग्रह पठनीय ही नहीं, संग्रहणीय भी है।