Tuesday, February 22, 2011

राजनीतिज्ञों के तीन चेहरे

महान वैज्ञानिक आइंस्टीन से एकबार एक पत्रकार ने पूछा, “अगले जन्म में आप क्या बनना चाहेंगे?" “प्लंबर," आइंस्टीन क उत्तर था. पत्रकार द्वारा यह पूछे जाने पर कि वे पुनः वैज्ञानिक बनना क्यों नहीं पसंद करेंगे, उस महान वैज्ञानिक ने बताया कि वैज्ञानिक एक निरीह जीव होता है. वह जो चाहता है, कभी नहीं कर पाता है. वह रात दिन एक करके, अपनी सारी बुद्धि और सामर्थ्य लगाकर मानवता के कल्याण के लिए कुछ आविष्कार करता है, लेकिन अन्ततः उसका उपयोग राजनीतिज्ञ करते हैं. उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था कि पदार्थ से ऊर्जा में रूपान्तरण के उनके आणविक सिद्धान्त, परमाणु बम के निर्माण के लिए उपयोग में लाए जाएंगे. हिरोशिमा और नागासाकी पर अमेरिका द्वारा गिराए गए परमाणु बमों के विस्फोट से उत्पन्न विभीषिका के फ़ोटोग्राफ्स उन्होंने स्वयं देखे थे. सारा अमेरिका द्वितीय विश्व युद्ध में अपनी निर्णायक जीत पर जश्न मना रहा था और आइंस्टीन एक बंद कमरे में जोर-जोर से रो रहा था. उन्हें राजनीतिज्ञों से घृणा हो गयी जो जीवनपर्यन्त बनी रही. उनके अनुसार राजनीतिज्ञ दुनिया का सबसे खतरनाक जीव होता है. वह अपनी स्वार्थपूर्ति के लिए किसी भी सिद्धान्त, किसी भी अन्वेषण, किसी भी दर्शन और किसी भी व्यक्ति का दुरुपयोग कर सकता है.
राजनीतिज्ञों के विषय में एक कथा बहुत प्रचलित है - एक आदमी को पुत्र-रत्न की प्राप्ति हुई. जब बालक पांच वर्ष का हुआ तो पिता को यह चिन्ता सताने लगी कि बच्चे को कैसी शिक्षा दी जाय. उसने अपनी चिन्ता अपने आध्यत्मिक गुरु के सामने रखी. गुरु ने सलाह दी कि बच्चे की जिस विषय में प्राकृतिक अभिरूचि हो, उसे वही शिक्षा दी जाय. लेकिन प्रश्न यह था कि पांच वर्ष के बालक की प्राकृतिक रूचि कैसे पता की जाय? गुरुजी ने उपाय बतलाया कि बच्चे के कमरे की मेज़ पर तीन चीजें रख दी जाय - गीता की पुस्तक, एक हज़ार रुपए का नोट और एक तलवार. कमरे में घुसने के बाद बच्चा जिस चीज से खेलने लग जाय, वह उसकी रूचि की वस्तु होगी. अगर वह गीता उठाता है, तो उसे धार्मिक शिक्षा दी जाय, अगर रुपया उठाता है, तो उसे व्यवसायिक शिक्षा दी जाय और अगर तलवार उठाता है, तो उसे सैन्य शिक्षा दी जाय. पिता ने पुत्र के कमरे में उसकी मेज़ पर तीनों चीजें सजाकर रख दी. बच्चा कमरे में घुसा. उसने हज़ार का नोट उठाकर जेब में रखा, गीता को बगल में दबाया और दाहिने हाथ में तलवार को पकड़कर हवा में तलवारबाज़ी करने लगा. पिता की समझ में कुछ नहीं आया. वह दौड़ा-दौड़ा अपने गुरु के पास पहुंचा और सारी कहानी विस्तार से सुनाई. गुरु ने हंसते हुए कहा - “तुम्हारे पुत्र की तीनों वस्तुओं में समान रुचि है. घबराओ नहीं, वह बड़ा होकर राजनीतिज्ञ बनेगा और देश का नेतृत्व करेगा."
आइंस्टीन ने कभी सोचा नहीं होगा कि उसके द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्त से परमाणु बम बनाया जाएगा. न्यूटन के मस्तिष्क में यह विचार आया भी नहीं होगा कि गति के तीसरे सिद्धान्त के आधार पर परमाणु बम ले जानेवाली मिसाइलें बनाई जाएंगी. बायो-टेक्नोलाजी के आविष्कारक वैज्ञानिकों ने कभी कल्पना भी नहीं की होगी कि उनके आविष्कार से प्रेरित हो जैविक-रासायनिक बम भी बनाए जा सकते हैं. क्या मुहम्मद साहब ने कुरान लिखवाते समय कभी भी सोचा होगा कि एक हाथ में कुरान और दूसरे हाथ में एके-४७ थामकर उनके ही अनुयायी सारी दुनिया को आतंक की आग में झोंक देंगे? दुनिया को शान्ति, दया, क्षमा और सेवा का अमर संदेश देनेवाले जिसस क्राइस्ट ने कभी कल्पना की होगी कि उन्हीं के भक्त अमेरिका के रेड इंडियन्स और आस्ट्रेलिया की मूल जातियों का संपूर्ण विनाश कर देंगे? कार्ल मार्क्स ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि क्रान्ति के नाम पर स्टालिन २० लाख यहुदियों की निर्मम हत्या करा देगा और महात्मा बुद्ध के अनुयायी देश चीन का प्रधान, सांस्कृतिक क्रान्ति के नाम पर अपने ही देश के लाखों नागरिकों के खून से धरती को लाल कर देगा.
दुनिया के सारे राजनीतिज्ञों के कम से कम तीन चेहरे होते हैं - पहला महात्मा गांधी का, दूसरा अंबानी का और तीसरा स्टालिन का.

Thursday, February 3, 2011

भ्रष्टाचार का अनुमोदन

सरकारी विभागों में किसी भी पद पर नियुक्ति के पूर्व पुलिस जांच (Police verification) अनिवार्य होती है. विपरीत जांच रिपोर्ट की स्थिति में किसी को नौकरी नहीं मिल सकती. इसके अतिरिक्त सरकारी महकमों में चपरासी से लेकर सर्वोच्च अधिकारी को भी वर्ष में एक बार अनिवार्य रूप से सत्यनिष्ठा प्रमाण पत्र देना पड़ता है. यह प्रमाण पत्र नियंत्रक अधिकारी (Controlling officer) द्वारा जारी किया जता है. संदिग्ध सत्यनिष्ठा वाले कर्मचारी या अधिकारी की सेवाएं सीधे समाप्त करने का प्रावधान है. सरकारी नौकरी में संदिग्ध सत्यनिष्ठा के साथ एक चपरासी भी नौकरी नहीं कर सकता, तो एक व्यक्ति मुख्य सतर्कता आयुक्त के उच्च संवैधानिक पद पर नियुक्ति कैसे पा सकता है? सरकार जब स्वयं की बनाई सेवा नियमावली का स्वयं खुल्लमखुल्ला उल्लंघन कर रही है, तो शेष लोगों के लिए लक्षमण रेखा कैसे खींची जा सकती है? यह एक यक्ष प्रश्न है, जिसका उत्तर भारत की जनता को चाहिए.
केन्द्रीय सतर्कता आयोग (CVC) के आयुक्त के पद पर पी.जे.थामस की नियुक्ति, और कुछ नहीं, बल्कि भारत सरकार द्वारा भ्रष्टाचार का सीधे-सीधे अनुमोदन है. जिसका दामन खुद दागदार हो, वह वह उच्च स्तर पर फैले भ्रष्टाचार की जांच कैसे कर सकता है? पामोलीन तेल घोटाले में थामस मुख्य अभियुक्त हैं और २-जी स्पेक्ट्रम घोटाले के सूत्रधार हैं. समझ में नहीं आता कि उन्होंने कौन सी घुट्टी पिलाई कि हमारे (ईमानदार?) प्रधान मंत्री और (स्वच्छ छवि वाले?) गृह मंत्री को भी जीती मक्खी निगलनी पड़ी. एक झूठ को छिपाने के लिए कई झूठ बोले गए. भारत के एटार्नी जनरल ने सुप्रीम कोर्ट को गुमराह किया कि थामस के विरुद्ध केसों की फाइलों को सेलेक्शन पैनल की बैठकों में रखा ही नहीं गया. प्रधान मंत्री ने इसकी पुष्टि भी की. लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने अगले ही दिन प्रधान मंत्री के वक्तव्य का खंडन करते हुए मीडिया को बताया कि प्रधान मंत्री झूठ बोल रहे हैं. थामस के घोटालों की चर्चा चयन समिति की बैठक में विस्तार से की गई थी. स्मरण रहे सतर्कता आयुक्त के चयन के लिए गठित तीन सदस्यीय समिति में प्रधान मंत्री, गृह मंत्री के साथ लोकसभा में विपक्ष का नेता भी नामित होता है. सुषमा स्वराज ने चयन समिति की बैठक में यह मुद्दा उठाया था, अपना लिखित विरोध भी दर्ज़ कराया था, लेकिन उसे नज़रअदाज कर दिया गया. दो-एक के बहुमत से थामस की नियुक्ति कर दी गई. अगर विपक्ष के नेता की सलाह कोई अर्थ ही नहीं रखती, तो उन्हें चयन समिति में रखने का औचित्य ही क्या है?
दिनांक ३१.१.२०११ को नई दिल्ली में गृह मंत्री पी. चिदंबरम ने यह स्वीकार किया है कि गत ४, सितंबर, २०१० को चयन समिति (Selection panel) की बैठक में पामोलीन तेल घोटाला और इसमें पी.जे.थामस की संलिप्तता पर विस्तार से चर्चा की गई थी. समिति की महत्त्वपूर्ण सदस्या सुषमा स्वराज ने अपना विरोध भी दर्ज़ कराया था. भारत की जनता यह जानने का अधिकार तो रखती ही है कि किन वाध्यताओं और परिस्थितियों से प्रेरित हो पी.जे.थामस जैसे दागदार अधिकारी को पवित्र सतर्कता आयोग के आयुक्त पद पर नियुक्त किया गया.
आज अपने देश की जो हालत है, वैसी ही हालत सन १९७५ में इन्दिरा गांधी के शासन काल में थी. सत्ता की निरंकुशता और भ्रष्टाचार को न्यायोचित ठहराने के लिए इन्दिरा गांधी ने देश पर आपात्काल थोप दिया था. लेकिन लोकनायक जय प्रकाश नारायण की संपूर्ण क्रान्ति को दबया नहीं जा सका. १९७७ में केन्द्र में पहली गैर कांग्रेसी सरकार बनवाने का श्रेय इन्दिरा गांधी को दिया जा सकता है. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की पुण्यतिथि (३०.१.११) पर पूरे देश में भ्रष्टाचार के विरुद्ध किया गया शान्त विरोध प्रदर्शन ढेर सारे संदेश देता है. सत्ताधारी चेत जांय वरना मिस्र से उठी लपटों का कोई भरोसा नहीं. आजकल वैसे ही पछिया हवा (Westen wind) चल रही है.