Sunday, May 24, 2015

नाले में सरकारी धन

     बाल बंगरा, बिहार के सिवान जिले के महाराजगंज तहसील का भारत के लाखों गांवों की तरह एक गांव है। भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन में विशिष्ट योगदान के बावजूद भी प्रादेशिक या राष्ट्रीय समाचारों की सुर्खियों में नहीं आया कभी इसका नाम। १९४२ के १६ अगस्त को इस गांव के फुलेना प्रसाद ने महाराजगंज थाने पर एक विशाल जनसमूह के साथ कब्ज़ा कर लिया था और महाराजगंज को आज़ाद घोषित  किया था। थाने पर तिरंगा फहरा दिया गया और स्व. प्रसाद ने थानाध्यक्ष को गांधी टोपी पहनकर झंडे को सलामी देने पर बाध्य किया था। सूचना मिलते ही अंग्रेज पुलिस कप्तान वहां पहुंचा और सबके सामने फुलेना प्रसाद को गोली मार दी। सीने पर आठ गोली खाकर फुलेना प्रसाद अमर शहीद हो गए। उनकी पत्नी तारा रानी को गिरफ़्तार कर लिया गया। उन्हें १९४६ में जेल से रिहा किया गया। आज भी महाराजगंज शहर के मध्य में लाल रंग का शहीद स्मारक अमर शहीद फुलेना प्रसाद की हिम्मत एवं वीरता की कहानी कहता है। उस समय यह गांव समाचार पत्रों में कई दिनों तक स्थान पाता रहा। एक बार फिर १९७१ के १५ अगस्त को इस गांव का नाम बिहार के समाचार पत्रों में छपा। अमर शहीद फुलेना प्रसाद की विधवा पत्नी तारा रानी श्रीवास्तव को बिहार की प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के रूप में तात्कालीन प्रधान मंत्री ने लाल किले में एक विशेष समारोह में ताम्र-पत्र देकर सम्मानित किया। मेरा जन्म इसी बालबंगरा गांव में हुआ था। मेरा सौभाग्य रहा कि मार्च १९८७ तक मुझे स्व. तारा रानी श्रीवास्तव का आशीर्वाद प्राप्त होता रहा। उन्हें इलाके के सभी लोग -- बूढ़े, बच्चे, जवान -- दिदिया (दीदी) कहकर पुकारते थे।
बालबंगरा गांव के पूरब में एक बरसाती नदी बहती है। गांव का एक बड़ा हिस्सा बरसात में एक बड़े झील का रूप ले लेता है। उसमें धान की खेती होती है। सामान्य से थोड़ी भी अधिक वर्षा होने पर धान के खेत का पानी गांव के रिहायशी इलाकों घुस जाता है। अतिरिक्त पानी को निकालने के लिए ७०-८० साल पहले गांव वालों ने ही सामूहिक प्रयास से एक किलोमीटर लंबी एक छोटी नहर की खुदाई की। इस नहर के द्वारा बाढ़ का पानी गांव के निचले हिस्से से बरसाती नदी में पहुंचने लगा। फिर हमारे गांव में कभी बाढ़ नहीं आई और धान की फसल भी पानी के प्रवाह में कभी बही नहीं। गांव वाले स्वयं ही कभी-कभी छोटी नहर की सफाई कर लेते थे।
आज वहीं छोटी नहर मनरेगा के माध्यम से कमाई का स्रोत बनी है। साल में कम से कम छ: बार कागज पर उसकी खुदाई और सफाई होती है और लाखों रुपयों की बन्दरबांट हो जाती है। गांव के सभी इच्छुक पुरुषों और महिलाओं को जाब-कार्ड मिला हुआ है। बिना कोई काम किए ही प्रतिदिन ७० रुपए वे मनरेगा से पा जाते हैं। शेष ५५ रुपए जन-प्रतिनिधियों, अधिकारी और कर्मचारियों में बंट जाते हैं। कभी कार सेवा से बनी नहर अब नाले का रूप ले चुकी है जबकि मनरेगा की व्यय-राशि करोड़ों में पहुंच चुकी है।
मनरेगा में व्याप्त भ्रष्टाचार की चर्चा तो कई बार प्रधान मंत्री ने भी की है, लेकिन इसकी पुष्टि National Council of Applied Economic Research (NCAER), Natioanal Institute of Public Finance & Policy और Natioanal Institute of Financial Management ने वित्त मन्त्रालय भारत सरकार को २०१३ और २०१४ में प्रस्तुत रिपोर्ट में कर दी थी। कांग्रेस की सरकार ने इसे दबा दिया था। वर्तमान सरकार ने इसे सार्वजनिक कर दिया है। www.timesofindia.com पर पूरी रिपोर्ट उपलब्ध है। रिपोर्ट में मनरेगा के अतिरिक्त सार्वजनिक वितरण प्रणाली, इन्दिरा आवास योजना, सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम और ग्रामीण दलित बच्चों की छात्रवृत्ति में व्याप्त भ्राष्टाचार की विस्तार से चर्चा है। हर वर्ष हमारे राजकोष का ५०% भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाता है।

Thursday, May 21, 2015

Anarchist केजरीवाल


केजरीवाल ने जब अपनी ही पार्टी के संस्थापक सदस्यों, योगेन्द्र यादव और प्रशान्त भूषण को पार्टी से निष्कासित किया, तो लोगों ने उन्हें डिक्टेटर कहा। जब केजरीवाल ने अन्ना के भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन में अग्रणी भूमिका निभाई, तो लोगों ने उन्हें रिवोल्युशनरी कहा। जब केजरीवाल ४९ दिनों तक सरकार चलाकर भाग खड़े हुए, तो लोगों ने उन्हें भगोड़ा कहा। जब उन्होंने वाराणसी संसदीय क्षेत्र से नरेन्द्र मोदी को ललकारा तो लोगों ने उन्हें फाइटर कहा। लेकिन वास्तव में उपरोक्त विशेषण में से कोई उनपर फिट नहीं बैठता है। सत्य यह है कि वे एक जन्मजात Anarchist हैं। उन्हें लड़ने के लिए हमेशा एक Target चाहिए। Good governance से उनका कोई लेना-देना नहीं।
दिल्ली में मुख्यमंत्री और उप राज्यपाल के बीच चल रही जंग के मूल में वर्तमान मुख्य सचिव शकुन्तला गैमलिन की अस्थाई नियुक्ति का मामला है। शकुन्तला दिल्ली की वरिष्ठतम आई.ए.एस. अधिकारी हैं और उनपर भ्रष्टाचार या अनियमितता की कोई जांच भी नहीं चल रही है; पूर्व में भी कोई जांच नहीं चली है। ऐसे में उनकी वरिष्ठता को नज़रअन्दाज़ करते हुए एक कनिष्ठ का नाम जिसपर राष्ट्रमंडल खेल घोटाले का आरोप है, मुख्य सचिव के लिए Recommend करना कही से भी उचित नहीं था। उप राज्यपाल ने शकुन्तला के साथ न्याय किया और उन्हें कार्यवाहक मुख्य सचिव नियुक्त कर दिया। सरकारी नियमों के अनुसार फ़ाईल पर अनुमोदन सक्षम अधिकारी देता है लेकिन औपचारिक आदेश प्रधान सचिव या नियुक्ति सचिव द्वारा जारी किया जाता है। उप राज्यपाल के अनुमोदन के पश्चात शकुन्तला की तदर्थ नियुक्ति का आदेश जारी करना Principal Secretary की वाध्यता थी। मज़ुमदार ने वह आदेश जारी कर दिया। नाराज़ केजरीवाल ने मज़ुमदार को Principal Secretary के पद से हटा दिया। उप राज्यपाल ने मुख्यमंत्री का आदेश निरस्त करते हुए मज़ुमदार को पुनः Principal Secretary नियुक्त कर दिया। केजरीवाल ने तमाम शिष्टाचार को तिलांजलि देते हुए मज़ुमदार के कमरे पर ताला जड़वा दिया। 
लगभग एक साल पहले गुजरात के प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा नरेन्द्र मोदी को दी गई विदाई का दृश्य मेरी आंखों के सामने घूम जाता है। विदाई समारोह में शामिल अधिकांश अधिकारियों की आंखें गीली थीं। कुछ तो फफक-फफक कर रो रहे थे। मोदी ने उन्हीं आई.ए.एस. अधिकारियों के साथ काम किया और गुजरात को विकास के शिखर पर पहुंचाया। Good governance का यह एक अनुपम उदाहरण है। केजरीवाल ने दिल्ली के उप राज्यपाल और केन्द्र सरकार के खिलाफ़ जंग छेड़ने के बाद अब आई.ए.एस. अधिकारियों के खिलाफ़ मोर्चा खोला है। अधिकारियों को नियम के अनुसार सार्वजनिक रूप से कुछ भी कहने का अधिकार नहीं होता लेकिन व्यवस्था के सर्वोच्च पद पर बैठे हुए मुख्यमंत्री को जनसभा में कुछ भी बोलने का अधिकार होता है। केजरीवाल ने इस अधिकार का दुरुपयोग करते हुए एक जनसभा में मुख्य सचिव शकुन्तला गैमलिन को भ्रष्ट बताते हुए जनता से प्रश्न पूछा - "क्या आप इस भ्रष्ट महिला को स्वीकार करेंगे?”
यह एक महिला और ब्युरोक्रेसी का अपमान है। केजरीवाल अपने चुनावी वादों को कभी भी पूरा नहीं कर सकते। मुफ़्तखोरी का सपना एक या दो बार दिखाया जा सकता है। वे इसे भलीभांति जानते हैं। वे उप राज्यपाल, केन्द्र सरकार और दिल्ली के अधिकारियों से जंग छेड़कर Anarchism का ऐसा माहौल उत्पन्न करना चाहते हैं कि केन्द्र सरकार उनकी सरकार को बर्खास्त कर दे और वे शहीद का दर्ज़ा पा जायें। उनके पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है। सुशासन दे पाना उनके वश में नहीं है। आगे जो भी घटनाक्रम सामने आये, नुकसान तो दिल्ली की जनता का ही होना है।

Monday, May 11, 2015

मीडिया की हकीकत


    मैं अरविन्द केजरीवाल का समर्थक नहीं हूं, बल्कि उनके घोर विरोधियों में से एक हूं। पाठकों को याद होगा - मैंने उनके खिलाफ कई  लेख लिखे हैं। लेकिन मीडिया के खिलाफ़ उनके द्वारा जारी किए गए सर्कुलर का मैं समर्थन करता हूं। कारण यह है कि भारत की मीडिया, विशेष रूप से इलेक्ट्रोनिक मीडिया मर्यादा की सारी सीमाएं लांघ चुकी है। लोकतंत्र में विरोध का अपना एक विशेष स्थान होता है लेकिन अंध और पूर्वाग्रहयुक्त विरोध का प्रतिकार होना ही चाहिए। न्यूज चैनलों को भारत और भारतीयता से गहरी नफ़रत है।  अपनी इस मानसिकता के कारण वे हिन्दी, हिन्दुत्व, आर.एस.एस, शिवसेना, अकाली दल, बाबा रामदेव, हिन्दू धर्मगुरु, भारतीय परंपरायें और देसी नेताओं को नित्य ही अपने निशाने पर लेती हैं। बंगाल में एक नन के साथ दुर्भाग्यपूर्ण बलात्कार हुआ, मीडिया ने प्रमुखता से समाचार दिया, खुद ही मुकदमा चलाया और खुद ही फ़ैसला भी दे दिया। घटना के लिए मोदी सरकार और कट्टरवादी हिन्दू संगठनों को दोषी करार दिया। सरकार ने जांच की। पता लगा कि रेप करने वाले बांग्लादेशी मुसलमान थे। दिल्ली के एक चर्च में एक मामूली चोरी की घटना हुई। मीडिया ने इसके लिए मोदी एवं आर.एस.एस. को कटघरे में न सिर्फ़ खड़ा किया बल्कि मुज़रिम भी करार दिया। आगरा में बच्चे क्रिकेट खेल रहे थे। बाल एक चर्च की खिड़की के शीशे से टकरा गई। शीशा टूट गया। मीडिया ने इसे क्रिश्चनिटी पर हमला बताया। जब से नरेन्द्र मोदी प्रधान मंत्री बने हैं, मीडिया ने एक वातावरण बनाया है कि भारत में धर्मनिरपेक्षता खतरे में है। नरेन्द्र मोदी का एक ही अपराध है कि वे आज़ाद भारत के पहले पूर्ण स्वदेशी प्रधान मंत्री हैं - चिन्तन में भी, व्यवहार में भी।
      मीडिया की चिन्ता का दूसरा केन्द्र अरविन्द केजरीवाल बन रहे हैं। दिल्ली में उनकी अप्रत्याशित सफलता से वही मीडिया जो उन्हें सिर-आंखों पर बैठाती थी, अब बौखलाई-सी दिखती है। कारण स्पष्ट है - अरविन्द केजरीवाल में ही मोदी का विकल्प बनने की क्षमता है। धीरे-धीरे क्षेत्रीय दल किनारे हो रहे हैं और कांग्रेस की राजमाता एवं शहज़ादे अपनी चमक खोते जा रहे हैं। केजरीवाल भी मीडिया को भा नहीं रहे हैं क्योंकि मोदी की तरह वे भी एक देसी नेता हैं जो अपने सीमित शक्तियों और साधनों के बावजूद आम जनता की भलाई सोचते हैं। मैंने बहुत सोचा कि आखिर मीडिया भारतीयता के पीछे क्यों हाथ धोकर पड़ी रहती है? मेरे प्रश्नों के उत्तर दिए मेरे एक मित्र श्री विन्देश्वरी सिंह ने जो जियोलोजिकल सर्वे आफ़ इन्डिया के पूर्व वरिष्ठ वैज्ञानिक हैं। उनसे प्राप्त सूचना का सार निम्नवत है -
      सन २००५ में एक फ्रान्सिसी पत्रकार फ़्रैन्कोईस भारत के दौरे पर आया। उसने भारत में हिन्दुत्व पर हो रहे अत्याचारों का अध्ययन किया और बहुत हद तक इसके लिए मीडिया को जिम्मेदार ठहराया। उसने काफी शोध किए और पाया कि भारत में चलने वाले अधिकांश न्यूज चैनल और अखबार भारत के हैं ही नहीं। उसने पाया कि --
१. दि हिन्दू ... जोशुआ सोसायटी, बर्न स्विट्जरलैंड द्वारा संचालित है।
२. एनडीटीवी - गोस्पेल आफ़ चैरिटी, स्पेन, यूरोप द्वारा संचालित।
३. सीएनएन, आईबीएन-७, सीएनबीसी - साउदर्न बेप्टिस्ट चर्च यूरोप द्वारा संचालित
४. टाइम्स आफ़ इन्डिया ग्रूप - बेनेट एन्ड कोलमैन यूरोप द्वारा संचालित। इसके लिए ८०% फ़न्डिंग क्रिश्चियन कौन्सिल द्वारा तथा २०% फ़न्डिंग इटली के राबर्ट माइन्दो द्वारा की जाती है। राबर्ट माइन्दो कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी के निकट संबंधी हैं।
५. हिन्दुस्तान टाइम्स ग्रूप - पहले यह बिरला ग्रूप का था। अब इसका भी स्वामित्व टाइम्स आफ़ इन्डिया के पास है।
६. दैनिक जागरण ग्रूप - इसके एक प्रबंधक समाजवादी पार्टी से राज्य सभा के सांसद हैं। सभी को ज्ञात है कि समाजवादी पार्टी मुस्लिम परस्त है।
७. दैनिक सहारा - जेल में बंद सुब्रतो राय इसके सर्वेसर्वा हैं जो मुलायम और दाउद के करीबी रहे हैं।
८. आन्ध्र ज्योति - हैदराबाद की घोर सांप्रदायिक पार्टी MIM ने इसे खरीद लिया है।
९. स्टार टीवी ग्रूप - सेन्ट पीटर पोंटिफ़िसियल चर्च, यूरोप द्वारा संचालित
१०. दि स्टेट्समैन - कम्युनिस्ट पार्टी आफ़ इन्डिया द्वारा संचालित।
......................................... यह लिस्ट बहुत लंबी है। किस-किस का उल्लेख करें?
जिस मीडिया की फ़न्डिंग विदेश से होती है वह भारत के बारे में कैसे सोच सकती है? यही कारण है कि यह मीडिया शुरु से ही इस धरती और धरती-पुत्रों को अपनी आलोचना के निशाने पर रखती है। देर-सबेर केन्द्र सरकार को भी इनपर लगाम लगानी ही पड़ेगी।


Friday, May 8, 2015

Convicted को बेल, Under trial को जेल


वाह रे न्यायपालिका! एक सुपर स्टार वी.आई.पी. के लिए सारे नियम ताक पर। परसों दिनांक ६-५-१५ को मुंबई की सेसन कोर्ट विभिन्न धाराओं में सलमान खान को दिन के १.३० बजे ५ साल की सज़ा सुनाती है और आधे घंटे के अंदर दिन के दो बजे मुंबई हाई कोर्ट उसे ज़मानत दे देती है। नशे में धुत होकर फुटपाथ पर सोए गरीब बेकरी-मज़दूरों पर गाड़ी चढ़ाकर एक को मौत की नींद सुलाने और चार को अपाहिज़ बनाने वाले अपराधी को एक मिनट के लिए भी जेल नहीं जाना पड़ा। आज उस अपराधी के पक्की बेल के लिए मुंबई हाई कोर्ट में सुनवाई हुई। जैसी उम्मीद थी, सलमान को पक्की ज़मानत मिल गई। उनकी सज़ा पर स्टे भी मिल गया है। उन्हें हाई कोर्ट का अन्तिम फ़ैसला आने तक गिरफ़्तार नहीं किया जा सकता। मुंबई के पुलिस कमिश्नर सतपाल सिंह ने फ़ैसले पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा है कि अदालत के इस फ़ैसले से अपराधियों का मनोबल बढ़ेगा। कमिश्नर साहब को आश्चर्य हुआ है, मुझे बिल्कुल नहीं हुआ। उच्च न्यायालय वी.आई.पी. सुपर स्टार के मामले में आवश्यकता से अधिक फ़ास्ट और एक्टिव था। जब आधे घंटे में अन्तरिम ज़मानत मिल सकती थी तो पक्की ज़मानत पर आश्चर्य कैसा। कोई सांसद किसी महिला की तारीफ़ कर दे, लोगबाग टूट पड़ते हैं। उसे संसद में माफ़ी मांगनी पड़ती है। किसी की भावनाओं को चोट पहुंचाने वाली बात करने पर जेल जाने की नौबत आ जाती है। आज ही राहुल गांधी कोर्ट में पेश हुए हैं। कोई सरकारी कर्मचारी व्यवस्था के खिलाफ़ बोल ही नहीं सकता है। अगर १० रुपए की रिश्वत लेते हुए पकड़ा जाता है, तो नौकरी चली जाती है। लेकिन एक की हत्या करने और चार को अपाहिज़ बनाने वाले को उच्च न्यायालय एक मिनट के लिए भी जेल भेजने में  हिचकिचाता है। अदालत के खिलाफ़ बोलने या लिखने पर अवमानना का मुकदमा चल सकता है और जेल भी हो सकती है, लेकिन यह सब जानते हुए भी मैं चुप रहना, अन्याय करने के समान मानता हूं। मुझे यह कहने या लिखने में तनिक भी हिचक नहीं है कि आज और दिनांक ६ मई का मुंबई हाई कोर्ट का फ़ैसला प्रायोजित था।
      मुंबई के पुलिस कमिश्नर ने कहा है कि देश में एक लाख से ज्यादा व्यक्ति Under trial हैं और वर्षों से जेल में बंद हैं। अगर न्यायालय ने सलमान के केस की १०% तेजी भी उन दुर्भाग्यशाली गरीब विचाराधीन कैदियों के प्रति दिखाई होती, तो लाखों परिवारों का जीवन बर्बाद होने से बच सकता था। उनके द्वारा तथाकथित किए गए अपराध उतने बड़े नहीं होंगे, जितना बड़ा अपराध उनका गरीब और निरीह होना है। समझ में नहीं आता है  कि यह कैसा देश है, इसका कैसा कानून है और इसकी कैसी अदालतें हैं जो एक ही ज़ुर्म और एक ही कानून की व्याख्या अपनी धारणा, स्वविवेक और अपनी सुविधा के अनुसार करती हैं। इसके मापदंड वी.आई.पी के लिए अलग है, आम जनता के लिए अलग। एक ही जुर्म में लालू, जयललिता, ए.राजा आदि आदि को हाई कोर्ट सज़ा सुना देती है, वे जेल भी चले जाते हैं लेकिन सुप्रीम कोर्ट उन्हें अनिश्चित काल के लिए ज़मानत दे देती है। अगर आपकी औकात हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में जाने की नहीं है तो ...............। जरा सोचिए आपका क्या हश्र होगा? सारा खेल पैसे का है रे बाबा !
  जय न्यायपालिका! जय न्यायाधीश!!

Wednesday, May 6, 2015

सलमान को सज़ा


सन २००२ में प्रसिद्ध अभिनेता सलमान खान ने नशे में धुत होकर तेज रफ़्तार से गाड़ी चलाते हुए फूटपाथ पर सोए चार लोगों पर अपनी कार चढ़ा दी जिसके कारण एक व्यक्ति की मौके पर ही मौत हो गई और चार गंभीर रूप से घायल हो गए। मुकदमा दर्ज़ किया गया और केस की सुनवाई १३ साल तक चली। यह केस “हिट एन्ड रन” नाम से मशहूर हुआ। मुंबई सेसन कोर्ट को कोटिशः धन्यवाद कि उसने फ़ैसला मात्र १३ वर्षों में ही सुना दिया। न्यायपालिका की वर्तमान रफ़्तार को देखते हुए इसमें ६३ साल भी लग सकते थे, ७३ साल भी लग सकते थे। अदालत ने सलमान खान को मोटर विहिकल एक्ट और बाम्बे प्रोबेशन एक्ट की निम्न धाराओं के अनुसार दोषी पाया है -
१. धारा ३०४(२) - गैर इरादतन हत्या
२. धारा १८१ - नियमों का उल्लंघन कर गाड़ी चलाना
३. धारा २७९ - लापरवाही से गाड़ी चलाना
४. धारा १८५ - नशे में धुत होकर तेज रफ़्तार से गाड़ी चलाना
५. धारा ३७७, ३३८ - जान को जोखिम में डालना।
जिस समय सलमान खान गाड़ी चला रहे थे, उस समय उन्हें कानूनन गाड़ी चलाने का अधिकार ही नहीं था क्योंकि उनके पास ड्राइविंग लाइसेन्स नहीं था। इतनी गंभीर धाराओं के अनुसार वे दोषी पाए गए। इन अपराधों के लिए १० साल के बामशक्कत कैद का प्राविधान है लेकिन उन्हें सिर्फ ५ साल की सज़ा मिली है। यहां भी उनका स्टारडम काम आया। संजय दत्त को भी अपने स्टारडम और सुनील दत्त के बेटे होने का लाभ मिला और देशद्रोह का अभियोग साबित होने के बाद भी आजन्म कारावास की सज़ा नहीं मिली। वे सज़ा के दौरान भी पैरोल के बहाने अक्सर घर आकर ऐश करते हैं। सलमान भी वही करेंगे। यह अंग्रेजों द्वारा बनाए गए और आज तक असंशोधित इंडियन पेनल कोड, मोटर विहिकल एक्ट और बाम्बे प्रोबेशन एक्ट तथा सेलिब्रेटी के प्रति हमारी विशेष दृष्टि का ही परिणाम है कि बड़ी मछलियां आज़ादी से तैरती हैं और छोटी मछलियां कानून की शिकार बन जाती हैं।

Friday, May 1, 2015

आरक्षण


आई.आई.टी. में प्रवेश के लिए आयोजित संयुक्त प्रवेश परीक्षा के परिणाम घोषित हो चुके हैं। आई.आई.टी. में ५०% सीटें विभिन्न वर्गों के लिए आरक्षित हैं। इस बार संयुक्त प्रवेश परीक्षा (JEE) की कट आफ़ मार्क की तालिका निम्नवत है -
      सामान्य वर्ग - १०५
      ओबीसी वर्ग - ७०
      एससी वर्ग - ५०
      एसटी वर्ग - ४४

देश के सबसे प्रतिष्ठित प्राद्यौगिक संस्थान में प्रवेश पाने वाले ५०% छात्रों का स्तर उपरोक्त तालिका से स्पष्ट है। यही हाल मेडिकलविश्वविद्यालय, प्रबन्धन और प्रशासनिक सेवा के लिए आयोजित प्रवेश परीक्षाओं का भी है। भारत आनेवाले वर्षों में दुनिया का सुपर पावर बनने का सपना देख रहा है। क्या ऐसे इंजीनियर, डाक्टर, प्रबन्धक और प्रशसकों के साथ यह संभव है? यह एक यक्ष प्रश्न है, जिसका उत्तर देश के समस्त बुद्धिजीवियों से अपेक्षित है।