समलैंगिक विवाह और सुप्रीम कोर्ट
विभिन्न मत मतान्तरों के बावजूद भी दुनिया के सभी धर्म इस बात पर एकमत हैं कि इस ब्रह्मांड में एक सर्वशक्तिमान ईश्वर है, भले ही उसे किसी नाम से पुकारा जाय।इसी तरह दुनिया के सारे समुदायों और धर्मों ने सृष्टि को एक व्यस्थित ढंग से चलाने के लिये विवाह संस्था को मान्यता दी है। इसमें ध्यान देने की बात है कि विवाह सिर्फ पुरुष और स्त्री का ही हो सकता है क्योंकि सृष्टि चलाने के लिए यह अनिवार्य शर्त है। बिना विवाह के भी स्त्री-पुरुष के मिलन से सृष्टि चल सकती है लेकिन वह व्यवस्था अराजक और आने वाली पीढ़ी के लिए विनाशक होगी। यही कारण है कि दुनिया के प्रत्येक भाग में विवाह संस्था को मान्यता दी गई है। सनातन धर्म में तो इसे जन्म जन्मान्तर का बंधन कहा गया है। हिन्दू विवाह पद्धति में कन्यादान के समय अपनी कन्या का हाथ वर के हाथ में देते हुए पिता यह मंत्र दुहराता है -- अहं सन्तानोत्पन्नार्थ त्वाम् माम कन्या समर्पये। अर्थ है मैं तुम्हें सन्तान उत्पन्न करने के लिये अपनी कन्या समर्पित करता हूँ। विवाह कोई मौज-मस्ती का खेल नहीं है बल्कि परम पिता की सृष्टि को आगे बढ़ाने का एक परम पवित्र संस्कार है। पता नहीं यह छोटी सी बात सुप्रीम कोर्ट के तथाकथित विद्वान् न्यायाधीशों की समझ में क्यों नहीं आ रही। उन्होंने हमारी सनातन परंपरा और मूल्यों को ध्वस्त करने की जैसे सौगंध ले रखी है। इस वाद के पहले सुप्रीम कोर्ट ने समलैगिक संबन्धों और बिना विवाह के Live in relation को मान्यता प्रदान कर रखी है जिसके परिणामस्वरूप लड़कियों के शरीर का उपयोग करके उसके शरीर को टुकड़े-टुकड़े करके चील-कौवों को खिलाने की घटनाएं सामने आ चुकी हैं। पता नहीं अधार्मिक, अप्राकृतिक और अनैतिक संबन्धों को वैधता प्रदान करने में सुप्रीम कोर्ट को कौन सा आनन्द आ रहा है।
इस समय समलैंगिक विवाह को वैधता प्रदान करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में नियमित बहस चल रही है। भारत सरकार के सालिसिटर जनरल श्री तुषार मेहता से मुख्य न्यायाधीश जस्टिस चन्द्रचूड़ स्वयं बहस कर रहे हैं। उनके तर्कों को पढ़ने-सुनने के बाद ऐसा लग रहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह को मान्यता देने का पहले ही मन बना रखा है। ज्ञात हो कि जस्टिस चन्द्रचूड़ के एक मित्र के बेटे ने जो दिल्ली का एक बहुत बड़ा वकील है, समलैंगिक विवाह कर रखा है और सुप्रीम कोर्ट की कालेजियम ने उसका नाम अपनी अनुशंसा के साथ सुप्रीम कोर्ट का जज बनाने के लिए सरकार के पास भेज रखा है। सरकार ने उसका नाम वापस कर दिया है। कोर्ट समलैंगिक विवाह को वैध घोषित कर अपनी खुन्नस निकाल सकता है। अगर ऐसा होता है तो यह भारत और सनातन धर्म के लिये अत्यन्त दुर्भाग्यपूर्ण होगा।
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