Friday, July 15, 2011

जयराम रमेश की पर्यावरण मंत्रालय से छुट्टी



मनमोहनी मंत्रिमंडल में जो फ़ेरबदल हुआ है, वह और कुछ भी नहीं, बल्कि नई बोतल में पुरानी शराब की तरह है. डी.एम.के. के दागी मंत्रियों की छुट्टी करने में मनमोहन जी ने कोई खास संकोच नहीं किया लेकिन अपनी पार्टी के दागी मंत्रियों पर कोई कार्यवाही करने से कतराते रहे. उनकी मज़बूरी समझी जा सकती है. सोनिया गांधी के प्रिय पात्र कपिल सिब्बल ने अपने पुराने मुवक्किल मुकेश अंबानी को लाभ पहुंचाने के लिए अपने विशे्षाधिकार का प्रयोग करते हुए ६६५ करोड़ रुपए की पेनाल्टी को मात्र ५ करोड़ में परिवर्तित कर दिया. राजकीय राजस्व को एक झटके में ६६० करोड़ का चूना लगा दिया लेकिन मनमोहन सिंह के पास चुप रहने के अलावा चारा भी क्या था? -जी स्कैम में वर्तमान गृह मंत्री पी. चिदंबरम की संलिप्तता अब किसी से छिपी नहीं है लेकिन प्रधान मंत्री को इसका पता तब चलेगा, जब सुप्रीम कोर्ट की समिति अपनी रिपोर्ट पेश कर देगी. इस फ़ेरबदल में मनमोहन जी ने बस एक नेक काम किया है - जयराम रमेश की पर्यावरण मंत्रालय से छुट्टी करके. सभी तरह के उपलब्ध प्रचार माध्यमों की सहायता से जयराम रमेश ने अपनी छवि एक प्रतिबद्ध पर्यावरण रक्षक के रूप में दिखाने की पूरी चेष्टा की. लेकिन सत्य यह है कि जयराम को पर्यावरण का ककहरा भी ज्ञात नहीं है. वे निर्णय लेने में हमेशा पूर्वाग्रह से ग्रस्त रहे. कांग्रेस शासित राज्यों में अगर कोई उद्योग लगता था, तो उनका मंत्रालय बेहिचक अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी कर देता था लेकिन उड़ीसा, झारखंड, गुजरात आदि राज्यों में उसी स्थिति में उनकी नंगी तलवार चलने लगती थी. वे टेक्नोलाजी को पर्यावरण का सबसे बड़ा शत्रु समझते हैं. ऐसी सोच वाले व्यक्ति को पर्यावरण मंत्रालय का कार्यभार देकर मनमोहन सिंह ने भारी गलती की थी. भारत का औद्योगिक विकास १० साल पीछे चला गया. क्या जयराम रमेश बिजली, कार मोबाइल, ध्वनि विस्तारक, .सी. या हवाई जहाज का प्रयोग नहीं करते? इनमें से कौन पर्यावरण मित्र है? पर्यावरण मंत्री रहते उनकी निगाहें कभी शहर-गांव की गंदगी, बजबजाती नालियां, ओवरफ़्लो करते सीवर के मैनहोल, गटर में परिवर्तित होती हुई नदियां, मुंबई से बनारस तक के रेलवे स्टेशनों के प्लेटफ़ार्मों पर नाक पर रूमाल रखकर प्रतीक्षारत यात्रियों और खेतों के रूप में खुले शौचालयों पर नहीं गई. वे बस इस बात पर अड़े रहे कि किसी भी सूरत में उड़ीसा में पास्को को अपना स्टील प्लांट नहीं लगाने देंगे. ऐसा करके उन्होंने लाखों लोगों को रोज़गार से वंचित किया और उड़ीसा एवं देश के विकास को अवरुद्ध किया. यह एक अक्षम्य अपराध है

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जब भी कोई विकास होता है, पर्यावरण का थोड़ा-बहुत नुकसान होता है. लेकिन इस कारण विकास को नहीं रोका जा सकता. लंबे समय के लिए गणना करने पर विकास का पलड़ा भारी दिखेगा. कौन देश औद्योगिक विकास और टेक्नोलाजी को नकारकर आगे बढ़ा है? बिजली के बिना आज का जीवन संभव नहीं है. हमें पावर हाउस बनाने ही होंगे. जल-विद्युत के लिए बड़े-बड़े बांधों का निर्माण करना ही होगा. कैचमेन्ट एरिया में डूब क्षेत्र आएगा ही. हमें विस्थापितों के लिए उचित मुआवजा, रोज़गार और आवास देने के विषय में प्रभावी नीतियां और कार्यक्रम बनाने चाहिए. यह सर्वविदित और निर्विवाद है कि पनबिजली सबसे ज्यादा विश्वसनीय, सस्ती और पर्यावरण-मित्र होती है. ताप विद्युत गृहों में भी चिमनियों में एलेक्ट्रोस्टेटिक प्रेसीपिटेटर लगाकर प्रदूषण को ना के बराबर किया जा सकता है. टेक्नोलाजी के आंख बंदकर इस्तेमाल से जहां पर्यावरण प्रदूषित होता है, वही प्रदूषण रोकने की उन्नत टेक्नोलाजी के प्रयोग से इसे नियंत्रित भी किया जा सकता है. सीवर वाटर और ड्रेनेज वाटर का उचित ट्रीटमेन्ट करके हम भारत की सारी नदियों को प्रदूषण मुक्त कर सकते हैं. इनवायरमेन्ट टेक्नोलाजी पर विश्व में बहुत सारे काम हुए हैं. इन्वायरमेन्ट की आड़ में विकास को रोकना छद्म देशद्रोह है

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पर्यावरण का सबसे बड़ा शत्रु है, हमारी अज्ञानता. अपने देश के नागरिकों को शिक्षित और जागृत करने की आवश्यकता है. खुले शौचालय, नदियों-तालाबों में फेंके गए शव, प्लास्टिक की करोड़ों टन की थैलियां, वाहनों से निकलते काले धूंए, हर गली-मुहल्ले में सड़क के किनारे सड़ रहे कूड़े, देश के संपूर्ण औद्योगिक प्रदूषण से ज्यादा प्रदूषण फैलाते हैं. इसे कानून बनाकर नहीं, बल्कि शिक्षा और जनजागरण द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है. नए पर्यावरण मंत्री राजनीति को दरकिनार कर समस्या के मूल में जाकर चिन्तन और कर्म करेंगे एवं ऐसी दुराशा करने के लिए हम पर कोई कानूनी कार्यवाही नहीं करेंगे, ऐसी अपेक्षा है

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