Monday, July 28, 2014

एक पाती राहुल बबुआ के नाम


प्रिय राहुल बबुआ,
      जब से तुम्हारी पार्टी लोकसभा का चुनाव हारी, हम सदमे में चले गये। उत्तराखण्ड में हुए उपचुनाव में तीनों विधान सभा की सीटें कांग्रेस ने जीत ली है। इस खबर से इस मुर्दे में थोड़ी जान आई है। इसीलिये आज बहुत दिनों के बाद एक पाती लिख रहा हूं।
      बेटा, हिम्मत मत हारना। हारिए न हिम्मत बिसारिये न हरि नाम। हरि से तो तुम्हारे खानदान और परिवार का कोई वास्ता कभी नहीं रहा है लेकिन हिम्मत से हमेशा रहा है। हिम्मत के मामले में तुम्हारी दादी बेजोड़ रही हैं। कांग्रेस से अलग होकर इन्दिरा कांग्रेस बनाने तथा १९७५ में एमरजेन्सी लगाने का काम कोई बड़ी हिम्मत वाला शक्स ही कर सकता था। तुम्हारे में भी थोड़ी-बहुत हिम्मत है। जब तुम बाहें चढ़ाकर चमचों के बीच भाषण देते थे, तो लोग तुम्हें यन्ग्री यंगमैन समझने लगे थे। मीडिया ने तुमको अमिताभ बच्चन का नया अवतार कहना शुरु कर दिया था। जब तुमने दागी विधायकों और सांसदों को बचानेवाले अपने ही सरकार के अध्यादेश  को प्रेस के सामने फाड़ कर फेंक दिया था, तुम अचानक राजनीति के राबिनहुड बन गये थे। चाटुकार दरबारियों को तुमसे बहुत आशायें थी लेकिन नरेन्द्र मोदी ने सब गुड़ गोबर कर दिया। योजना तो तुमने ठीक ही बनाई थी। केजरीवाल को पटाकर लोकसभा की ४४० से अधिक सीटों पर आप के उम्मीदवार खड़ा कराकर काग्रेस विरोधी वोट बांटने का तुम्हारा और भौजी का प्रयास सराहनीय था। लेकिन केजरीवाल पर भगोड़ा होने का लेबल इस तरह चस्पा  हुआ कि वह खुद तो हारा ही अपने महारथियों की जमानत भी गंवा बैठा। तुम्हारा गुरु योगेन्द्र यादव चारों खाने चित्त हो गया। मोदी की सुनामी ने बड़े बड़ों का बन्टाढाढ़ कर दिया। बताओ, आज नेता विरोधी दल के भी लाले पड़ गए।
      पुरखे कह गये हैं - मनुष्य बली नहीं होत है, समय होत बलवान, भीलन गोपी छीन लिए वही अर्जुन वही बाण | बेटा, सपने हमेशा ऊंचे देखना चाहिये। प्रधान मंत्री का सपना देखते-देखते, नेता विपक्ष का सपना क्यों देखने लगे? तुम्हीं बताओ, ४४ की संख्या पर नेता, विपक्ष कैसे बनोगे? यह छोटा सा गणित तुम्हरी समझ में काहे नहीं आ रहा है? तुम लोगों के लिये सौ खून माफ़ है, लेकिन मोदी ने अगर एक गलती की, तो नेशनल/इन्टर नेशनल मीडिया उसे शूली पर टांग देगी। तुम्हारी दादी के किचेन में घुसकर खाना बनानेवाली प्रतिभा पाटिल को तुम्हारी मम्मी और हमारी भौजाई ही राष्ट्रपति बना सकती हैं, दूसरे किसी में इतनी हिम्मत नहीं है। बेटवा, यह माना कि तुम खानदानी शहज़ादा हो। लाल बत्ती की गाड़ी में चलने की तुम्हारे परिवार को आदत है लेकिन यह लोकतंत्र भी कभी-कभी पेनाल्टी किक दागिए देता है। इन्तज़ार करने में कवनो हरज नहीं है। पैसा-कौड़ी की तो तुम्हारे पास वैसे ही कवनो किल्लत नहीं है। अभी तो राजीव भैया के स्विटजरलैंड का पैसा ही खर्च नहीं हुआ होगा, २-जी, ३-जी, कोलगेट, कामनवेल्थ आदि-आदि का पैसा भी भौजाई बीमारी के बहाने अमेरिका जाकर सुरक्षित जगह पर रखिये आई हैं। एक नहीं, सौ जेटली आयेंगे, तो भी तुम्हारे पैसे का सुराग नहीं पा पायेंगे। इसलिये चिन्ता की कवनो बात नहीं है। लेकिन बेटा, कुछ बुरी आदतें तो छोड़नी ही पड़ेंगी। लोकसभा चल रही थी, महंगाई पर गंभीर चर्चा चल रही थी और तीसरी पंक्ति में बैठे-बैठे तुम सो रहे थे। टीवी चैनल वालों की मदद से सारी दुनिया ने यह दृश्य देखा। दूसरे दिन भौजा ने बुलाकर फ़्रौन्ट रो में तुम्हें अपने पास बिठाया। बेटा, वे कबतक स्कूल मास्टर की भूमिका निभायेंगी। उनके आंचल की छांव में कबतक पनाह लोगे। अब तो तुम्हारी उमर भी ४५ को पार कर गई होगी। अब अपने लिये फ़ुल टिकट की व्यवस्था करो। हाफ़ टिकट पर कबतक चलोगे? कोई भी बाप अपनी बेटी के लिये एक कमाऊ और समझदार बालिग दामाद ढूंढ़ता है। जरा मैच्युरिटी दिखाओ, वरना ज़िन्दगी भर कुंवारा ही रहना पड़ेगा। कही तुमने प्रधानमन्त्री बनने के बाद ही शादी करने की कसम तो नहीं खा रखी है? अगर ऐसा है, तो बहुत बुरा है। जनता ने जिस तरह लोकतंत्र का पेनाल्टी किक लगाया है, उसको देखते हुए तो ऐसा नहीं लग रहा है कि ५ साल बाद भी कोई चान्स मिलेगा। वैसे भी मोदी जहां का चार्ज लेते हैं वहां कम से कम तीन चुनाव तो जीतते ही हैं। तबतक तुम्हारी बुढ़ौती आ जायेगी। फिर भांजों के साथ ही बारात निकालनी पड़ेगी। दिग्विजय को अमृता राय मिल भी गई, तुम्हारे लिये लड़की तलाशना लोहे  का चना चबाने जैसा होगा। फिर तुम्हें खुद ही अपने परनाना की तरह किसी एडविना माउन्टबेटन की तलाश करनी होगी।
      हमलोग यहां राजी-खुशी हैं। भगवान तुम्हें भी भौजी के साथ राजी-खुशी रखें। बबुआ मेरी बात का खयाल रखना -
            तूने रात गंवाई खाय के; दिवस गंवाया सोय के,
            हीरा जनम अमोल था, कौड़ी बदले जाय।
      जय रामजी की। इति शुभ।
                  तुम्हारा - चाचा बनारसी

Thursday, July 17, 2014

घरेलू उपकरणों में बिजली की बचत - रेफ़्रिजरेटर



     रेफ़्रिजरेटर - सब्जी, भोजन, फल व अन्य सामग्रियों को ताजा रखने के लिए रेफ़्रिजरेटर जिसे फ़्रीज भी कहते हैं, अब लगभग हर घर में प्रयोग में आने लगा है। गृहिणियों के लिए यह उपकरण बड़े काम का है। इसकी मदद से वे बच्चों को आइसक्रीम खिला सकती हैं और कोल्ड ड्रिन्क्स भी पिला सकती हैं। दिन का खाना रात में भी खिला सकती हैं और रोज-रोज सब्जी खरीदने से मुक्ति भी पा सकती हैं। फ़्रीज का परिचालन अगर थोड़ी सी सावधानी से करें, तो ३०% बिजली की बचत भी हो सकती है और फ़्रीज की आयु भी बढ़ सकती है। कुछ सुझाव निम्नवत हैं --
     १. नियमित रूप से फ़्रीज और फ़्रीजर को डिफ़्रास्ट करते रहें। फ़्रीज के अन्दर नमी बढ़ने से कम्प्रेसर अधिक चलता है जिसके कारण बिजली की      खपत ज्यादा होती है।
     २. फ़्रीज और दीवार के बीच हवा के प्रवाह के लिए कम से कम ९ इन्च जगह खाली रखें। फ़्रीज के    पिछले हिस्से से ही कम्प्रेसर की गर्मी बाहर     निकलती है। अगर गर्म हवा बिना किसी प्रतिरोध के बाहर निकलती है, तो फ़्रीज की कार्य कुशलता बढ़ जाती है और बिजली की खपत भी कम हो      जाती है।
     ३. फ़्रीज के दरवाजे को वायु निरोधक बनायें। दरवाजे से फ़्रीज के अन्दर न हवा अन्दर आनी चाहिये     और न फ़्रीज की ठंढ़ी हवा बाहर जानी    चाहिए। दरवाजा पूरी तरह एयर टाइट होना चाहिए।
     ४. फ़्रीज में रखे जाने वाले तरल एवं खाद्य पदार्थों को ढक कर रखें। बिना ढके भोज्य पदार्थ नमी पैदा   करते हैं जिससे कम्प्रेसर पर दबाव बढ़ जाता    है और बिजली की खपत ज्यादा होती है।
     ५. फ़्रीज के दरवाजे को अनावश्यक अथवा अधिक समय तक न खोलें। ऐसा करने से भी कम्प्रेसर पर     दबाव बढ़ जाता है और बिजली कि खपत बढ़   जाती है, फलस्वरूप आपका बिल ज्यादा आता है।
     ६. नियमित रूप से प्रयोग की जाने वाली चीजों के लिए छोटे कैबिनेट का प्रयोग करें।     
     ७. फ़्रीज में भोजन अथवा अन्य भोज्य पदार्थ कमरे के तापक्रम पर लाने के बाद ही रखें। गर्म भोजन अथवा पदार्थ सीधे फ़्रीज में रखने से ठंढ़ा करने के लिए फ़्रीज को ज्यादा कार्य करना पड़ता है। इससे   कम्प्रेसर अतिभारित होता है और बिजली की खपत बढ़ जाती है।
              आपके द्वारा की गई बिजली की बचत विद्युत उत्पादन करने के समतुल्य है। राष्ट्रहित में बिजली बचायें।

Monday, July 14, 2014

घरेलू उपकरणों में बिजली की बचत


     एयर कन्डीशनर - कमरे/हाल/दूकान/कार्यस्थल के अन्दर तापमान को सुविधाजनक स्तर पर रखने के लिये एयर कन्डीशनर का प्रयोग एक आम बात हो गई है। एयर कन्डीशनर को स्वतः तापमान नियंत्रक कट आफ़ पर रखें। रेगुलटर को २२ डिग्री से २६ डिग्री पर सेट करें। यही तापमान का वह रेन्ज है जो मानव शरीर के अनुकूल है। कुछ लोग निम्नतम तापमान सेट नहीं करते हैं जिसके कारण एयर कन्डीशनर  लगातार चलता रहता है और तापमान काफी नीचे आ जता है। यह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। लगातार चलने से एसी का कम्प्रेसर गर्म हो जाता है और जलने की संभावना बढ़ जाती है। कम्प्रेसर एयर कन्डीशनर का दिल होता है। कम्प्रेसर बन्द तो एसी बन्द। कम्प्रेसर जैसे-जैसे गर्म होता है, बिजली की खपत वैसे-वैसे बढ़ती जाती है। अतः रेगुलेटर को २२ से २६ डिग्री के बीच ही रखें।
      एयर कन्डीशनर के साथ छत पर लगे पंखे को भी चलायें। ऐसा करने से ठंढ़ी हवा पूरे कमरे में प्रभावी ढंग से फैलती है जिससे एसी और ठंढ़क प्रदान करता है। सिर्फ़ एसी चलाने से ठंढी हवा नीचे रहती है और गर्म हवा ऊपर रहती है। इसके कारण एयर कन्डीशनर पर अनावश्यक भार पड़ता है।
      एयर कन्डीशनर खरीदते समय स्टार रेटेड एसी ही लेने का प्रयास करें। स्टार रेटेड एसी में बिजली की खपत कम होती है। कमरे की साईज़ के अनुकूल ही एसी की क्षमता का चयन करें। छोटे कमरे में बड़ी क्षमता का एसी लगाने से ठंढ़क थोड़ी ज्यादा जरूर मिलती है लेकिन बिजली की खपत बहुत बढ़ जाती है। कमरे के क्षेत्रफल के हिसाब से ही एसी कि क्षमता का चयन करें। १२० वर्गफ़ीट के कमरे के लिये १ टन की क्षमता वाले एसी की आवश्यकता होती है। एसी लगे कमरों की खिड़कियों पर पर्दे अवश्य लगायें। खिड़की और दरवाजे कभी खुला न रखें। बाहर से हवा आने-जाने वाले सभी स्रोतों को सील कर दें।
       एसी थर्मोस्टेट के निकट लैम्प, टीवी, कमप्यूटर या कोई अन्य गर्म होने वाला उपकरण न रखें। इन उपकरणों से गर्मी निकलती है जिसे थर्मोस्टेट ग्रहण करता है। इसके कारण एसी अनावश्यक रूप से अधिक समय तक चलता है। इससे बिजली ज्यादा खर्च होती है और बिल की राशि भी बढ़ जाती है।
      कमरे के बाहर निकले एसी के भाग पर हमेशा छांव रखने कि व्यवस्था करें। इसके लिए उसके आसपास लता या छोटे-बड़े पेड़ लगाएं। यदि यह संभव नहीं है तो उचित दूरी एवं ऊंचाई के शेड का प्रयोग करें। इससे १०% तक बिजली की बचत होती है।
      ध्यान रहे, विद्युत की बचत विद्युत उत्पादन के समतुल्य है।

Saturday, July 12, 2014

ऊर्जा का महत्त्व, उपयोग एवं संरक्ष ण


    मार्च २०११ में मैं दादा बना। पोते के आगमन पर खुशी तो हो रही थी लेकिन मन में तरह-तरह की शंकाएं भी घर कर रही थीं। कारण था - मेरा पोता निर्धारित समय से एक महीना पूर्व ही आ गया था। यह एक प्री मैच्योर्ड डिलीवरी का केस था। स्वाभाविक था - बच्चा बहुत कमजोर था और वज़न भी कम था। खुशियां तो आईं लेकिन आशंकाओं और दुश्चिन्ताओं की संभावनाओं के साथ। मैंने अपनी चिन्ता डाक्टर को बताई। वे हंसी और बोलीं - "आप नाहक परेशान हो रहे हैं। हम बेबी को १५ दिन तक इन्क्यूबेटर में रखेंगे, उसके बाद ही आपको सौंपेंगे। १५ दिनों में बेबी का फ़ुल ग्रोथ हो जायेगा। चिन्ता की कोई बात नहीं है।” इन्क्यूबेटर एक ऐसा साधन है जिसका तापक्रम मां के गर्भ के समान रखा जाता है। बच्चे को भोजन और केयर बिल्कुल मां के गर्भ की तरह मिलता है। एलेक्ट्रिकल इन्जीनियरिंग, मेकेनिकल इन्जीनियरिंग और मेडिकल साइन्स की उच्च श्रेणी की प्रतिभा के समन्वय का नाम है इन्क्यूबेटर। मेरा पोता १५ दिनों के बाद हास्पीटल से डिस्चार्ज हुआ। वह पूर्ण स्वस्थ था और वज़न भी बढ़ गया था। आजकल वह स्कूल जाता है। अपनी उम्र के लड़कों में वह सबसे ज्यादा सक्रिय है। मैं सोचता हूं कि आपरेशन थिएटर और इन्क्यूबेटर के लिए यदि हमने २४ घंटे की विद्युत आपूर्ति न दी होती, तो क्या हम अपने पोते को वर्तमान रूप में पा पाते?
      कुछ वर्ष पहले जो कार्य असंभव दिखता था, आज हम बिजली के माध्यम से चुटकी बजाते कर लेते हैं। २०वीं सदी के आरंभ में हवा और पानी ही हमारे जीवित रहने के प्रमुख कारक थे लेकिन  २१वीं सदी के आते-आते हवा और पानी के साथ बिजली का नाम भी जुड़ गया। बिजली हमारी जीवन रेखा बन गई। इस सदी के बच्चे का पहला पड़ाव होगा, बिजली से चलने वाला आपरेशन थिएटर और अन्तिम पड़ाव होगा विद्युत शवदाह गृह।
      आज की तारीख में देश का ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं होगा जो बिजली का उपयोग नहीं करता। मोबाइल फ़ोन से लेकर टीवी, किचेन से लेकर बेडरूम, झोंपड़ी से लेकर गगनचुम्बी एपार्टमेन्ट - सबमें बिजली का उपयोग अनिवार्य आवश्यकता बन गई है। हम सभी बिजली का इस्तेमाल तो करते हैं लेकि कभी हमने सोचा है कि बिजली की खपत में बचत करके आने वाली पीढ़ियों और राष्ट्र के उपर हम सीधा अनुग्रह कर सकते हैं?
      इस समय उपलब्ध बिजली का ६०% हम ताप विद्युत गृहों से प्राप्त करते हैं। ऐसी बिजली के उत्पादन के लिए कोयले की आवश्यकता होती है। कोयले का भंडार सीमित है। पूरे विश्व में अगर इसी तरह कोयले की खपत होती रही, तो आनेवाले ७५ वर्षों में कोयले का भंडार समाप्त हो जाएगा। फिर हम अगली पीढ़ी के लिए विरासत में क्या छोड़ जायेंगे? क्या हम पुनः लालटेन युग में लौट जायेंगे? समस्या भयावह है लेकिन समाधान असंभव नहीं। छोटा से बड़ा आदमी भी अगर बिजली का इस्तेमाल कंजूस के धन की तरह करे, तो हम अपनी खपत ३५% तक कम कर सकते हैं। इससे हमारा बिजली का बिल भी कम आयेगा और हमारे संसाधन भी लंबे समय तक संरक्षित रहेंगे। इसके लिए कोई कठिन श्रम करने की आवश्यकता  नहीं है, बस निम्न सुझाओं को अपनाने की जरुरत है -
      १. साधारण बल्ब या ट्यूब राड की जगह सीएफ़एल या एलईडी लैंप का उपयोग किया जाय।
      २. एसी. फ़्रीज तथा अन्य विद्युत उपकरण आई.एस.आई. अथवा स्टार रेटिंग वाला ही खरीदा जाय।
      ३. पंखा/पंप/मोटर आदि की समय-समय पत ग्रिसिंग/सर्विसिंग कराई जाय।
      ४. काम समाप्त होने पर कंप्यूटर/टीवी/माइक्रोवेव/ओवन/पंखा/लाईट स्विच से बन्द किया जाय।
      ५. एसी में लगे एयर फ़िल्टर की प्रत्येक सप्ताह सफाई की जाय।
      ६. फ़्रीज को कम से कम खोला जाय और सप्ताह में कम से कम एक बार डिफ़्रास्ट किया जाय।
      ७. घर से निकलते समय अनावश्यक विद्युत उपकरण के मेन स्विच बन्द कर दिये जांय।
            बिजली की बचत विद्युत उत्पादन करने के समतुल्य है।