Monday, April 28, 2014

पुरखों का युद्ध था गोरों से, मोदी का युद्ध है चोरों से


हे भारत माँ के अनुपम सुत
जन-जन की आँखों के तारे
नर इंद्र तुम्हीं दामोदर हो
हे कोटि जनों के तुम प्यारे |
      गाँधी ने अलख जगाई थी
      सरदार ने राह  दिखाई थी
      उस मिट्टी में तुम पले बढ़े
      है काम तेरे न्यारे-न्यारे
      हे कोटि जनों के तुम प्यारे
      जन-जन की आँखों के तारे |

हे महामना के मानस पुत्र
सन्देश तुम्हीं विवेका  के
बाबा की धरती पर स्वागत
करते काशीवासी सारे
हे कोटि जनों के तुम प्यारे
जन-जन की आँखों के तारे |
      पुरखों का युद्ध था गोरों से
      खंडित आज़ादी पाई थी
      संघर्ष तुम्हारा चोरों से
      हे सुराज्य के रखवारे
      हे कोटि जनों के तुम प्यारे
      जन-जन की आँखों के तारे |
सूरज के आते ही नभ में
धरती आलोकित होती है
आशा विश्वास करोड़ों के
हर लो तुम सारे अंधियारे
हे कोटि जनों के तुम प्यारे
जन-जन की आँखों के तारे |




Monday, April 21, 2014

ई रजा काशी हौ


 मधुर मनोहर अतीव सुंदर यह सर्वविद्या की राजधानी। तीनों लोकों से न्यारी यह नगरी बाबा विश्वनाथ के त्रिशूल पर अवस्थित है। सारी दुनिया में पाखंड की पूजा हो सकती है लेकिन यहाँ सत्यं शिवं सुन्दरम ही पूजित है। काशी से चुनाव लड़ने के पहले अरविन्द केजरीवाल ने यही सोचा था कि दिल्ली की तरह यहाँ की जनता को भी मूर्ख बना लेंगे लेकिन उनका यह दाव फिलहाल उल्टा पड़ रहा है। काशी की जनता एक छठी इन्द्रिय भी रखती है जिससे वह पाखंडियों को देखते ही पहचान लेती है और तदनुसार आचरण भी करने लगती है। केजरीवाल ने अन्ना का भरपूर दोहन किया और प्रसिद्धि प्राप्त होते ही उन्हें दूध की मक्खी की तरह बाहर निकालकर फ़ेंक दिया। दिल्ली के चुनाव में अपने बच्चों की कसम खाने के बावजूद भी कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाई। दिल्ली विधान सभा के चुनाव में सबसे आगे आकर आटो वालों ने चुनाव प्रचार किया। इस गरीब तबके के प्रत्येक व्यक्ति ने पेट काटकर पांच पांच सौ रूपए आप के चुनाव फंड में दिए। केजरीवाल ने उनसे वादा किया था की सत्ता संभालते ही ऑटो का किराया दूना कर देंगे, उनके लिए मुफ्त आवास की व्यवस्था करेंगे, बिजली-पानी मुफ्त देंगे और उन्हें पुलिसिया उत्पीडन से पूरी मुक्ति दिलाएंगे। अपने 49 दिनों के कार्यकाल में उन्होंने इस तबके के लिए कुछ नहीं किया। वे एक भगोड़े साबित हुए। दिल्ली के आटो चालक लाली का केजरीवाल को जड़ा गया थप्पड़ पूरे समुदाय के दिल में उबलते आक्रोश की अभिव्यक्ति मात्र था। भारत की दुर्दशा के लिए पूरी तरह से जिम्मेदार कांग्रेस पार्टी का विरोध करने के बदले उन्होंने मोदी का विरोध करने का निश्चय किया। यहाँ वे पूरी तरह बेनकाब हो गए। आज की तारीख में मोदी से अधिक लोकप्रिय कोई नेता नहीं है। वे भारत के उज्जवल भविष्य के प्रतीक बन चुके हैं। भारत की जनता की आशा के वे एकमात्र केंद्र हैं। उन्होंने चुनौतियाँ स्वीकार की है और विपरीत परिस्थितियों के बावजूद गुजरात में विकास के नए-नए मापदंड स्थापित किये हैं। वे एक जांचे-परखे नेता हैं। देश की जनता के मन में उनके प्रति अगाध श्रद्धा और विश्वास है। मोदी के माध्यम से देश के विकास में सहभागी बनने के बदले केजरीवाल ने उनके अंध विरोध का फैसला लिया। यह फैसला भी उनका अपना नहीं बल्कि मल्लिका-ए-हिंदुस्तान का फैसला था जिसे उन्होंने सर झुकाकर स्वीकार किया। ऐसे रँगे सियार को काशी ने देखते ही पहचान लिया। उनका स्वागत लंका के पान की दूकान पर चप्पलों से, कंपनी बाग में सड़े अण्डों से तथा भीषम पुर में चहेट कर किया गया। काशी के तुलसी घाट पर बने संकट मोचन मंदिर के गेस्ट हाउस से उन्हें निकाल बाहर किया गया। उन्हें रहने के लिए काशी में कोई घर नहीं मिल पा रहा है। आजकल वे अमीठी में कुमार विश्वास का चुनाव प्रचार कर रहे हैं।
  गंगा के सुरम्य तट पर बसी काशी स्वयं सुज्ञान, धर्म और सत्यराशि है। यह सत्यशिक्षा का अनुपम केंद्र है। राजा हरिश्चन्द्र ने चांडाल के हाथों बिककर सत्य की स्थापना की थी। वे केशव का पान खाने के लिए लंका नहीं जाते थे। महर्षि व्यास ने यही वेदों की रचना की थी। गणेश जी के सहयोग से यही महाभारत और गीता की रचना की थी। यह ब्रह्मविद्या की राजधानी है।मुक्तिपद को दिलानेवाले, सुधर्म पर चलानेवाले बुद्ध और शंकर की तपोभूमि है। गंगा, वरुणा और अस्सी की सुरम्य धाराओं से घिरी वाराणसी में पूर्वाग्रह मुक्त कबीर और तुलसी ने पवित्र स्नान किया है। यह वाग्विद्या की राजधानी है। यहाँ प्रतीचि-प्राची का सुन्दर संगम है। यहाँ का काशी हिन्दू विश्वविद्यालय राष्ट्र निर्माता महामना पंडित मदन मोहन मालवीय जी की प्रखर देशभक्ति, उनकी हिम्मत और उनकी शक्ति का प्रतीक है। यह कर्मवीरों की राजधानी है। यहाँ की गौरवशाली परम्पराएँ राष्ट्र गौरव नरेन्द्र मोदी का कोटि-कोटि भुजाएं फैलाकर स्वागत कर रही हैं। बाबा विश्वनाथ, बुद्ध, महावीर, शंकर, नानक, कबीर, व्यास, तुलसी, रविदास, कीनाराम, लाल बहादुर शास्त्री और संपूर्णानंद की पुण्य आत्माएं नरेन्द्र मोदी को आशीर्वाद देने के लिए आतुर हैं। यहाँ भगोड़े का क्या काम?
      नए नहीं हैं ये ईंट पत्थर, है विश्वकर्मा का कार्य सुन्दर;

      रचे हैं विद्या के भव्य मंदिर, यह कर्मविद्या की राजधानी।

Friday, April 18, 2014

बनारस में केजरीवाल की चौपाल

 भाजपा के प्रधान मंत्री के प्रत्याशी नरेन्द्र मोदी के खिलाफ़ ताल ठोंक रहे आप के संयोजक अरविन्द केजरीवाल दिनांक १७-४-१४ को दिन भर बनारस और आसपास के क्षेत्रों में भ्रमण करते रहे। उन्हें हर जगह खट्टे-मीठे और तीखे अनुभवों से गुजरना पड़ा। उनके साथ भ्रमण करने वाली टीम में स्थानीय कार्यकर्ताओं का प्रतिनिधित्व लगभग शून्य था। वे हमेशा दिल्ली से आये कार्यकर्ताओं के घेरे में ही रहे जो आप की टोपी लगाए थे। कई स्थानों पर उनको सुनने वालों से अधिक भीड़ सुरक्षा बलों की थी। जिन स्थानों पर उन्होंने जनता से सीधा संवाद स्थापित किया, उनमें से कुछ के दृश्य -----
      लंका - काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के मुख्य द्वार से लेकर अस्सी तक फैले क्षेत्र को लंका कहा जाता है। विश्वप्रसिद्ध रामनगर की रामलीला में लंका से संबन्धित दृश्यों का मंचन  कभी यही किया जाता था। इसीलिये इस जगह का नाम लंका पड़ा जो आज भी अपरिवर्तित है। राजनीतिक दृष्टि से यह बहुत संवेदनशील क्षेत्र है। यहां से आप पूरे बनारस की नब्ज़ टटोल सकते हैं। अन्ना आन्दोलन के दौरान यहा २४ घंटे सभायें हुआ करती थीं और वातावरण अन्ना और केजरीवाल के ज़िन्दाबाद के नारों से गूंजता रहता था। भ्रष्टाचार के विरोध में नित्य ही प्रभात फेरी निकलती थीं और सायं जुलूस। लंका में रविदास गेट पर बनारसी पान की सर्वाधिक चर्चित केशव पान भंडार है। यहां आकर पान खाना बनारसी ग्लैमर का अंग बन चुका है। कई फिल्मी सितारे और राजनेता स्वयं चलकर केशव की दूकान पर खड़े होकर पान खा चुके हैं जिनकी तस्वीरें दूकानदार ने बड़े करीने से अपनी दूकान में लगा रखी है। ऐसे में केजरीवाल भला केशव की दूकान का पान खाने के लोभ से अपने को कैसे रोक पाते? वे पहुंच गये केशव पान भंडार, पान खाने। दूकान पर हमेशा १५-२० लोगों की भीड़ रहती है। पान नंबर से ही मिलता है। केजरीवाल को भी पान के लिए प्रतीक्षा करनी पड़ी। इस समय का उपयोग उन्होंने लोगों की राय जानने और नरेन्द्र मोदी को गाली देने के लिये करना शुरु किया। देखते ही देखते माहौल गरम हो गया। मोदी के लिये अभद्र भाषा का इस्तेमाल सुनकर स्थानीय जनता भड़क उठी। अरविन्द केजरीवाल को चप्पल-जूते दिखाये गये, उनपर टमाटर और अंडे फेंके गये, उनके खिलाफ़ जबर्दस्त नारेबाज़ी आरंभ हो गई। डरकर केजरीवाल को बेसमेन्ट में शरण लेनी पड़ी।  अगर पुलिस ने भीड़ पर लाठीचार्ज नहीं किया होता, तो कुछ भी अप्रत्याशित हो सकता था। पुलिस ने बड़ी कठिनाई से उन्हें बाहर निकाला। केजरीवाल ने केशव की दूकान से मीठा पान खाया, सादा पान खाया या सूरती वाला कड़वा पान खाया, यह तो वही जाने, लेकिन इस घटना की चर्चा मुंह में पान घुलाते हुए बनारसी हफ़्तों करेंगे।
      दिन के समय केजरीवाल ने बनारस के गांवों का दौरा किया। भीषमपुर गांव में चौपाल के दौरान केजरीवाल ने लोगों से पूछा कि कितने लोग नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाना चाहते हैं। अधिकांश लोगों ने हाथ उठाए, तो उन्होंने दूसरा सवाल जड़ा कि वे मोदी को क्यों पसन्द करते हैं? इसपर किसी ने मोदी को डिसिजन मेकर, तो किसी ने क्षमता वाला नेता कहा। कुछ लोगों ने कहा कि वे भाजपा के पक्ष में नहीं हैं लेकिन मोदी को भारत के प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं क्योंकि वे भारत का विकास चाहते हैं। केजरीवाल ने जब अपने बारे में जनता की राय पूछी तो लोगों ने बेबाकी से कहा कि उनमें अनुभव और हिम्मत की कमी है। वे जिम्मेदारी संभालने के बदले भागना पसन्द करते हैं। फिर क्या था दिल्ली से आए केजरीवाल के समर्थकों और स्थानीय लोगों के बीच लहज़ा इतना सख्त हो गया कि माहौल बिगड़ने की आशंका को देखते हुए सुरक्षाकर्मियों को चौपाल बीच में ही रुकवानी पड़ी।

      गुरुवार को ही जलालपुर, रसूलहा, बरस्तां, बरियारपुर और मुबारकपुर में भी केजरीवाल ने चौपाल लगाई। इस दौरान भी उन्हें तीखे सवालों का सामना करना पड़ा। जलालपुर में बेरुका निवासी सत्य नारायण सिंह ने केजरीवाल से पूछा कि आपने अपने बच्चों की कसम खाई थी, बावजूद इसके कांग्रेस से समर्थन क्यों लिया? अरविन्द ने अपने उत्तर से उन्हें संतुष्ट करने का भरसक प्रयास किया लेकिन बात और उलझती गई। सत्यनारायण के तेवर सख्त होने पर पुलिस ने उन्हें चौपाल से बाहर कर दिया। केजरीवाल ने प्रत्येक चौपाल में मोदी पर सीधा हमला किया और हर जगह उन्हें भयंकर विरोध का सामना करना पड़ा। सभी चौपालों में खास बात यह रही कि जन-संवाद में अधिकतर लोग आप की टोपी पहने थे लेकिन सवाल-जवाब के दौरान उनका ही लहज़ा इतना सख्त हो गया कि हर चौपाल में पुलिस को हस्तक्षेप करना पड़ा।

Sunday, April 13, 2014

क्या इतना नीचे गिरना चाहिये केजरीवाल को

 गज़ल-सम्राट जगजीत सिंह की एक गज़ल है -
      ज़िन्दगी भर मेरे काम आए उसूल
      एक-एक कर उन्हें बेचा किया,
      आज मैंने अपना फिर सौदा किया।
गज़ल की उपरोक्त पंक्तियां अरविन्द केजरीवाल पर एकदम सटीक बैठती हैं। अपने आसपास सिद्धान्तों का जाल बुनना और फिर उचित समय पर उनका सौदा कर लेने की कला में केजरीवाल से माहिर कौन है? अन्ना की अगुआई में देशव्यापी आन्दोलन में केजरीवाल ने स्पष्ट घोषणा की थी कि यह आन्दोलन गैर राजनीतिक है और व्यवस्था परिवर्तन के लिये समर्पित है। इस सिद्धान्त का पहला सौदा उन्होंने अन्ना के विरोध के बावजूद राजनीतिक पार्टी बनाकर किया। भारत माता की जय का नारा बुलन्द करने वाले केजरीवाल ने अपनी पार्टी में प्रशान्त भूषण जैसे देशद्रोही और विनायक सेन जैसे आतंकवादियों को प्रमुखता दी। दिल्ली विधान सभा के चुनाव में अपने बच्चों की कसम के साथ स्पष्ट घोषणा की कि वे कांग्रेस या भाजपा की मदद से सरकार नहीं बनायेंगे। मुख्यमंत्री बनने के लिये सोनिया की गोद में जा बैठे। यही कारण है कि भ्रष्टाचार की जननी कांग्रेस और उसके हाई कमान मल्लिका और शहज़ादे के खिलाफ़ चुनाव न लड़कर वे मोदी के खिलाफ़ ताल ठोंकने बनारस पहुंच गये। मोदी को हराने के लिये उन्हें आई.एस.आई., सी.आई.ए., नक्सलवादी, आतंकवादी, माफ़िया डान ........ किसी का समर्थन लेने से गुरेज नहीं है। जेल में बन्द पूर्वी उत्तर प्रदेश के माफ़िया डान मुख्तार अन्सारी के बड़े भाई अफ़ज़ाल अन्सारी से केजरीवाल की लंबी मुलाकातें आखिरकार रंग लाई। मुख्तार अन्सारी कौमी एकता दल के बनारस से प्रत्याशी थे। पिछली लोकसभा के चुनाव में उन्होंने मुरली मनोहर जोशी को बहुत जबर्दस्त टक्कर दी थी। जोशीजी बमुश्किल केवल १७ हजार वोटों से जीत पाए थे। इसबार मुख्तार अन्सारी ने अरविन्द केजरीवाल के समर्थन में बनारस संसदीय सीट से न लड़ने की घोषणा पिछले गुरुवार को कर दी। अब वे घोसी से चुनाव लड़ेंगे जहां  आप अपना कोई उम्मीदवार नहीं उतारेगी। केजरीवाल और नापाक राष्ट्रद्रोहियों के बीच गठबन्धन के ये कुछ प्रमाणित नमूने हैं। केजरीवाल कोई लालू, राबड़ी या मुलायम नहीं हैं। उन्होंने आईआईटी, खड़गपुर से बी.टेक. की डिग्री ली है, भारत की सर्वाधिक प्रतिष्ठित सेवा में आला अधिकारी रहे हैं। वे उचित-अनुचित, सब जानते हैं। लेकिन राजनीतिक महत्त्वाकांक्षा और स्वार्थ ने उन्हें दुर्योधन बना दिया है। महाभारत के एक प्रसंग की मुझे अनायास याद आ रही है ---
      महाभारत के युद्ध की तैयारियां अपने अन्तिम चरण में थीं। दोनों पक्ष की सेनायें एकत्र हो चुकी थीं। भगवान श्रीकृष्ण ने शान्ति की आशा फिर भी नहीं छोड़ी थी। समझौते के अन्तिम समाधान के लिये उन्होंने स्वयं पाण्डवों के दूत के रूप में हस्तिनापुर जाने का निर्णय लिया। सूचना प्रेषित कर दी गई। निर्धारित तिथि को हस्तिनापुर की राजसभा को उन्होंने संबोधित किया। उसका प्रभाव भी पड़ा। दुर्योधन, कर्ण, शकुनि और दुशासन के अतिरिक्त सभी उपस्थित सभासदों और भीष्म, द्रोण, विदुर तथा स्वयं धृतराष्ट्र ने भगवान श्रीकृष्ण के प्रस्ताव से सहमति जताते हुए पाण्डवों का राज वापस करने का सत्परामर्श सार्वजनिक रूप से दिया। लेकिन दुर्योधन तो अपने निश्चय पर अटल था। भगवान श्रीकृष्ण एवं सभी सम्मानित जनों की सलाह को किनारे करते हुए उसने उत्तर दिया -
      “ प्रत्येक मनुष्य विधाता की कृति है। उससे कब, कैसे और क्या काम लेना है, विधाता ने ही निर्धारित कर रखा है। मुझे भी ईश्वर ने किसी विशेष प्रयोजन से ही रचा है। हम और आप उसके कार्यक्रम को बदल नहीं सकते। मुझे यह भी ज्ञात है कि क्या धर्म है और अधर्म क्या है। मैंने भी धर्मग्रन्थ पढ़े हैं और गुरु द्रोण से ही शिक्षा पाई है। मुझे यह भी पता है कि क्या उचित है और क्या अनुचित। मैं विधाता की योजना के क्रियान्यवन के प्रति प्रतिबद्ध हूं। अगर विधाता को क्षत्रिय कुल का विनाश मेरे  माध्यम से ही स्वीकार है, तो मैं क्या कर सकता हूँ| सबकुछ विधाता पर छोड़कर, जाइये युद्ध की तैयारी कीजिये| ‘’
            दुर्योधन की तरह केजरीवाल को भी धर्म-अधर्म, उचित अनुचित सबकी पहचान है; लेकिन स्वार्थ और महत्त्वाकांक्षा ने उन्हें अन्धा बना रखा है। उन्हें न अन्ना की सलाह भाती है, न किरण बेदी की। जनता ने अपने तरीके से वाराणसी, हरियाणा और दिल्ली में उन्हें उत्तर देना आरंभ कर दिया है। लोकसभा के चुनाव के नतीजे उनके लिये महाभारत ही सिद्ध होंगे। आखिर उसूलों और मूल्यों की सौदेबाज़ी को जनता कबतक सहेगी।





      

Thursday, April 10, 2014

जस करनी तस भोगहु ताता.......

                               लोकतंत्र में हिंसा सर्वथा वर्जित है। मर्यादा में रहकर अपनी बात कहने का अधिकार सबको है।लेकिन वाणी, हथियार या थप्पड़ के माध्यम से जबरदस्ती अपनी बात मनवाने का अधिकार किसी को भी नहीं है। अमूमन हथियार या शारीरिक शक्ति का विरोधियों पर प्रयोग को ही हिंसा की मान्यता प्राप्त है।हमने वाणी की हिंसा को हिंसा न मानने की भूल हमेशा की है। इस चुनाव में वाणी की हिंसा अपने चरम पर है। विरोधियों पर बिना सबूत के अनर्गल आरोप लगाना, गाली-गलौज की भाषा का इस्तेमाल करना और दूसरों की भावनाओं को जानबूझ कर आहत करना आज का नेता-धर्म बन गया है। इस नेता-धर्म के निर्वहन में आप के नेता अरविन्द केजरीवाल अन्य नेताओं से मीलों आगे हैं। चूँकि इसका त्वरित लाभ उन्हें दिल्ली विधान सभा के चुनाव में बड़ी आसानी से मिल गया, उन्होंने ने इसे पेटेंट करा लिया। लोकसभा के चुनाव में उन्होंने अपनी इसी स्टाइल से जनता को लुभाने या गुमराह करने की कोशिश की। लेकिन उनके अपने ही गढ़, दिल्ली में ही उनके अपनों ने ही लघु हिंसा द्वारा अपना विरोध सार्वजनिक करना आरंभ कर दिया है। पिछले मंगलवार के दिन रोड शो के दौरान आटो रिक्शा चालक लाली द्वारा केजरीवाल के गाल पर जड़ा जोरदार तमाचा और कुछ नहीं, जनता के टूटे हुए सपनों की प्रतिध्वनि है। इसके कुछ ही दिन पहले केजरीवाल जी दिल्ली में ही गर्दन पर घूंसा खा चुके हैं और वाराणसी में स्याही से अपना चेहरा काला करा चुके हैं। इन घटनाओं का जिक्र करने का यह मकसद कही से भी नहीं है कि लेखक इनका समर्थन करता है। ऐसी घटनाओं की जितनी भी निंदा की जाय, कम होगी। लेकिन यह प्रश्न स्वाभाविक रूप से उठता है की ये घटनाएँ आम आदमी के स्वघोषित प्रतिनधि के साथ ही क्यों घटित हो रही हैं? सभी नेता जनसभा और रोड शो कर रहे हैं लेकिन जनता के आक्रोश का शिकार सिर्फ केजरिवाल ही हो रहे हैं। देश की दुर्दशा के लिए सर्वाधिक जिम्मेदार शहजादे और मल्लिका-ए-हिंदुस्तान भी निर्द्वन्द्व अपने कार्यक्रम कर रहे हैं परन्तु जनता या तो उन्हें सुनती है या नहीं सुनती है; इस तरह का अपमानजनक व्यवहार नहीं करती है।केजरीवाल के अलावा किसी भी नेता ने जनता की भावनाओं से इतना निर्मम खिलवाड़ नहीं किया है। मात्र 49 दिनों में ही जनता के सपनों और आकाँक्षाओं को हिमालय के समान ऊंचाई देकर उसे बेवजह हिन्द महासागर में डुबो देने का अक्षम्य अपराध अरविन्द केजरीवाल ने ही किया है। जनता मतपत्र के माध्यम से विरोध करने का धैर्य खो रही है। यह कोई शुभ संकेत नहीं है बल्कि झूठे वादे करने वाले, सत्तालोलुप, अक्षम, विदेशी शक्तियों की कठपुतली बने भगोड़े नेताओं के लिए सन्देश है। अरविन्द केजरीवाल अपने ही कर्मों की फसल काट रहे हैं।
           जस करनी तस भोगाहूँ ताता, नरक जात में क्यों पछताता?