Monday, October 27, 2014

इन गद्दार सेकुलरिस्टों की आंखें कब खुलेंगी?

पश्चिम बंगाल के बर्दवान में हुए बम धमाकों की जांच के सिलसिले में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल जब बर्दवान जिले के खागड़ागढ़ पहुंचे, तो कुछ चौंकानेवाले तथ्य पूरे देश के सामने आये। उन्होंने वरिष्ठ अधिकारियों के साथ विस्फोट स्थल का मुआयना किया और कुख्यात आतंकी संगठन ज़मात-उल-मुज़ाहिदीन के बहुमंजिला मुख्यालय का भी निरीक्षण किया। बहुमंजिली ईमारत में बम बनाने का विशाल कारखाना था, बड़ी मात्रा में अलगाववादी और ज़ेहादी साहित्य था, बड़ी मात्रा में अवैध अत्याधुनिक आग्नेयास्त्र थे, भारत के विभिन्न महत्त्वपूर्ण नगर एवं प्रतिष्ठानों के नक्शे थे, पचासों कंप्यूटर थे, हज़ारों सीडी, पेन ड्राइव थे जिसमें भारत विरोधी और इस्लामी ज़ेहाद की प्रचार-सामग्री भरी थी। यही नहीं उस बहुमंजिली ईमारत से १.५ किमी की एक पक्की सुरंग भी मिली जिसका धड़ल्ले से आतंकवादी उपयोग करते थे। सुरक्षा बलों ने इसके अतिरिक्त विभिन्न स्थानों पर कार्यशील ६५ बम बनानेवाले कारखानों का भी प्रमाण के साथ पता लगाया।
आतंकवादियों ने इतना बड़ा नेटवर्क कोई एक दिन में नहीं खड़ा किया होगा। ऐसा भी नहीं हो सकता कि ज़मात-उल-मुज़ाहिदीन की गतिविधियों,  उसके बम के कारखानों और उसके बहुमंजिले मुख्यालय की सूचना पश्चिम बंगाल सरकार और पुलिस को न रही हो। बर्दवान न तो कश्मीर की तरह दुर्गम पहाड़ियों-घाटियों वाला क्षेत्र है और ना ही झारखण्ड जैसा दुर्गम वन-क्षेत्र। एक मैदानी इलाके में ऐसी दुर्दान्त आतंकवादी गतिविधियां चलती रहीं और राज्य सरकार कान में तेल डाल, आंखें बन्द कर सोती रही - सिर्फ तुष्टीकरण और वोट के लिये। इतने बड़े खुलासे के बाद भी ममता बनर्जी, वामपन्थी पार्टियां, सोनिया-राहुल, मेधा पाटेकर, अरविन्द केजरीवाल, लालू, मुलायम, नीतिश, नवीन, दिग्विजय आदि बड़बोले नेता बिल्कुल खामोश रहे। किसी ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। 
क्या ये सेकुलरिस्ट भारत के सीरिया या इराक बनने का इन्तज़ार कर रहे हैं? इस देश में आतंकवाद या नक्सलवाद फल-फूल ही नहीं सकता है अगर उसे इन राष्ट्रद्रोहियों का समर्थन प्राप्त न हो। क्या उनकी आंखें तब खुलेंगी जब हिन्दुस्तान पैन इस्लाम की छतरी तले आ जायेगा? लेकिन तब पछताने के अलावा कुछ भी नहीं बचेगा। 

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