Thursday, December 27, 2012

यौन-अनाचार, कानून और समाज


१. दिल्ली की चलती बस में एक २३ वर्षीया युवती के साथ छः दरिन्दों द्वारा ब्लात्कार। युवती अस्पताल में वेन्टीलेटर पर।
२. ऊंझा (मेहसाना) में गत मंगलवार की रात में एक ३७ वर्षीया विधवा से दो लोगों द्वारा ब्लात्कार।
३. पुलिस की हिरासत में पिछले ९ वर्षों में बलात्कार की ४५ घटनाएं (पंजीकृत एफ़.आई.आर के आधार पर) - द एशियन सेन्टर फ़ार ह्युमन राइट्स
४. पटना के मनेर कस्बे में रात में सोते समय एक युवती से सामूहिक ब्लात्कार की कोशिश। असफल होने पर तेज़ाब से हमला। लड़की का पटना मेडिकल कालेज हास्पीटल में गत २ महीने से जीवन और मृत्यु से संघर्ष जारी।
५. पूर्व मुख्यमंत्री और राज्यपाल नारायण दत्त तिवारी के अवैध पुत्र को हाईकोर्ट ने नारायण दत्त तिवारी का वैध पुत्र घोषित किया।
६. कांग्रेस के प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी द्वारा सुप्रीम कोर्ट के अपने चैंबर में एक महिला के साथ यौनाचार।
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      महिलाओं पर पुरुषों की दरिन्दगी के न जाने कितने ऐसे मामले हैं जो प्रकाश में आए ही नहीं। ऐसी घटनाएं जो अखबारों में छप जाती हैं या न्यूज चैनलों द्वारा प्रमुखता से कवर कर ली जाती हैं, वास्तविक घटना का मात्र १% है। जब भी दिल्ली की चलती बस में ब्लात्कार जैसी कोई घटना प्रकाश में आती है, जनाक्रोश, प्रदर्शन, आन्दोलन की बाढ़-सी आ जाती है। कुछ दिनों के बाद सबकुछ सामान्य हो जाता है। केन्द्रीय गृह मन्त्री शिन्दे ठीक ही कहते हैं - जनता की याद्दाश्त बहुत कमजोर होती है। इस समय देश के हर कोने से यह मांग की जा रही है कि संसद का विशेष सत्र बुलाकर बलात्कारियों को मृत्युदण्ड देने के लिए कानून बनाया जाय। क्या मत्युदण्ड या कोई अन्य सख्त कानून इस समस्या का समाधान हो सकता है? क्या हत्यारे को मृत्युदण्ड देने का स्पष्ट प्रावधान कानून में नहीं है? हत्याओं का प्रतिशत बढ़ता ही जा रहा है। क्या दहेज लेना गैर कानूनी नहीं है? यह रोग दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। क्या रिश्वत और भ्रष्टाचार विधिसम्मत है? अन्ना के आन्दोलन के बाद भी इसमें कोई कमी नहीं आई है। किस अपराध के लिए इंडियन पेनल कोड-१८६० में दण्ड की व्यवस्था नहीं है? क्या अपराध कानून बनाने से रुक जाते हैं?
      समरस समाज, प्रेरणादायक नेतृत्व और नागरिकों के उच्च चरित्र ही अपराध की रोकथाम या उन्मूलन में सहायक होते हैं। फिजिक्स, केमिस्ट्री, मैथेमेटिक्स, इतिहास, भूगोल और अर्थशास्त्र की किस पुस्तक में लिखा है कि बड़ों का सम्मान करो, स्त्रियों को मां-बहन का सम्मान दो, माता-पिता-गुरु को पैर छूकर प्रणाम करो। राम, कृष्ण, गौतम, गांधी के चरित्र को हृदय से हृदयंगम किए बिना नैतिकता और चरित्र का विकास असंभव है। मैकाले की सेकुलर शिक्षा व्यवस्था ने नैतिकता और चरित्र को कालवाह्य बनाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है।
      फरवरी १८३५ में इंग्लैंड के हाउस आफ़ कामन्स में भारत की शिक्षा व्यवस्था में परिवर्तन हेतु अपनी दलील देते हुए लार्ड मेकाले ने कहा था -
      "I have travelled across the length and breadth of India and I have not seen one person who is beggar, who is a thief. Such wealth I have seen in this country, such high moral values, people of such calibre, that I do not think that we would ever conquer this country unless we break the very backbone of this nation, which is the cultural and the spiritual heritage, and thereof, I propose that we replace her old and ancient education system, her culture, for if the Indians think that all that is foreign and English is good and greater than their own, they will lose their self esteem, their native culture and they will become what we want them - a truly dominated nation." (बिना किसी संशोधन के एक-एक शब्द, कामा फ़ुलस्टाप के साथ मेकाले के लिखित वक्तव्य से उद्धृत)
      "मैंने पूरे भारत की यात्रा की और ऐसा व्यक्ति नहीं देखा जो भिखारी हो या चोर हो। इस तरह की संपत्ति मैंने इस देश में देखी है, इतने ऊंचे नैतिक मूल्य, लोगों की इतनी क्षमता, मुझे नहीं लगता कि कभी हम इस देश को जीत सकते हैं, जबतक कि इस देश की रीढ़ को नहीं तोड़ देते जो कि उसकी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत है। इसलिए मैं प्रस्ताव करता हूं कि हमें इसकी पुरानी और प्राचीन शिक्षा-व्यवस्था, इसकी संस्कृति को बदलना होगा। इसके लिए यदि हम भारतीयों को यह सोचना सिखा दें कि जो भी विदेशी है और अंग्रेज है, यह उनके लिए अच्छा और बेहतर है, तो इस तरह से वे अपना आत्मसम्मान खो देंगे, अपनी संस्कृति खो देंगे और वे वही बन जायेंगे जैसा हम चाहते हैं - एक बिल्कुल गुलाम देश।"
      एक अंग्रेज जो भारत और भारतीयों के लिए बड़ी ओछी मानसिकता रखता था, वह भी भारतीयों के चरित्र और व्यवस्था से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका। भारतीयों को अपनी मूल प्रकृति, संस्कृति, शिक्षा और उच्च नैतिक मूल्यों से विरत करने के लिए ही उसने स्पष्ट रूप से भारत में शिक्षा के क्षेत्र में अंग्रेजीकरण की वकालत की थी जिसे इंग्लैंड की संसद ने न सिर्फ स्वीकार किया बल्कि लागू भी कर दिया। आज़ादी के बाद हमारे पास अपना संविधान, अपने नियम-कानून, अपनी न्याय-व्यवस्था और अपनी शिक्षा-व्यवस्था को परिभाषित करने तथा लागू करने का अवसर प्राप्त हुआ था जिसे हमने बड़ी सहजता से गंवा दिया। दुर्भाग्य से हमारा नेतृत्व ऐसे लोगों के हाथ में चला गया, जो मैकाले की मानसिकता से बुरी तरह ग्रस्त थे और जिन्हें भारत की संस्कृति के लिए कोई आदर-भाव भी नहीं था। भारत का युवा किसका अनुसरण करे - जवाहर लाल नेहरू, इन्दिरा गांधी, नारायण दत्त तिवारी या अभिषेक मनु सिंहवी का? रही सही कसर हमारी फिल्मों, टीवी सिरियल्स, इन्टरनेट और घटिया साहित्य ने पूरी कर दी। अभिनय के लिए हमारा सर्वोच्च राष्ट्रीय पुरस्कार ‘डर्टी पिक्चर’ में अभिनय के लिए विद्या बालन को जाता है। इस फिल्म को कोई भी संवेदशील व्यक्ति अपने पूरे परिवार के साथ नहीं देख सकता। ऐसी फिल्मों ने राखी सावन्त, प्रियंका चोपड़ा, मलाइका अरोड़ा, बीना मलिक, सनी लियोन आदि को देश की युवतियों का रोल माडेल बना दिया। नारी स्वातंत्रय, उच्छृंखलता और अल्प वस्त्र का पर्याय बन गया। असंस्कारित युवक-युवतियों का सार्वजनिक स्थानों पर आपत्तिजनक अवस्था में प्रेम-प्रदर्शन मुंबई, दिल्ली पुणे या अन्य मेट्रोपोलिटन में आम बात है। ऐसी स्थिति में दिल्ली जैसी घटना की पुनरावृत्ति  मात्र कानून बनाने से नहीं रोकी जा सकती।
      मेरे गांव से मेरा स्कूल दो किलो मीटर की दूरी पर था। मेरे गांव के सभी लड़के और लड़कियां एक स्थान पर एकत्रित होते थे और साथ ही पैदल स्कूल जाते थे। लड़कियों की सुरक्षा का सामूहिक दायित्व लड़कों पर रहता था क्योंकि होश संभालने के बाद से ही हमें बताया गया था कि गांव की सभी लड़कियां तुम्हारी बहनें हैं। मैं ११वीं कक्षा क छात्र था - शरीफ़ एवं पढ़ाकू। मेरे गांव की एक लड़की जो दसवीं कक्षा में पढती थी को उसके क्लास के एक लड़के ने छेड़ दिया। उसने लौटते समय हमलोगों को बताया। दूसरे दिन हम लोग थोड़ा जल्दी घर से निकले, स्कूल के गेट पर उस लड़के को पकड़ा और लात-घूंसों से जबर्दस्त पिटाई की। उसने स्कूल के प्रिन्सिपल से हमलोगों की शिकायत की। प्रिन्सिपल ने मुझे बुलाकर पूछताछ की। मैंने अपराध स्वीकार किया और यह भी बताया कि क्यों हमलोगों को ऐसा करना पड़ा। विद्यालय का अनुशासन तोड़ने की सज़ा हमें मिली - दो-दो बेंत हमलोगों की हथेलियों पर लगाए गए। वहां उपस्थित वाइस प्रिन्सिपल ने हमलोगों की सज़ा का विरोध किया था। प्रिन्सिपल ने अपनी सफाई में कहा था - लड़कों ने काम तो अच्छा किया था लेकिन अनुशासन के लिए सज़ा देना जरुरी था। हमलोगों को न कोई खेद था, न पश्चाताप। शाम को हमलोग अपने गांव आए। गांव के बुज़ुर्गों ने भी हमारे कार्य की सराहना की। क्या लड़के-लड़कियों में आज के अभिभावक ऐसी भावना भर रहे हैं? कोई भी सामाजिक संस्था इस दिशा में कार्य कर रही है? शायद नहीं।
      चरित्र और चरित्र निर्माण ही एकमात्र विकल्प है। विवेकानन्द ने कहा था - I want a man with capital `M'. कहां लुप्त हो गया हमारा capital `M'? इस देश को राजनीतिक परिवर्तन की कम, सामाजिक परिवर्तन की आवश्यकता है। जन्मघुट्टी की तरह प्रत्येक के मन-मस्तिष्क में यह संदेश स्थापित करने की आवश्यकता है -
      मातृवत परदारेषु पर द्रव्येषु लोष्टवत।
      आत्मवत सर्वभूतेषु यः पश्यति स पण्डितः॥
      सभी स्त्रियों को माता समान, दूसरे के धन को मिट्टी के ढेले के समान तथा सभी जीवों को अपने समान जो देखता है, वही सच्चा विद्वान है।
      पश्चिमी सभ्यता की चकाचौंध में हम कबतक अपनी मौलिक अच्छाइयों की अनदेखी करते रहेंगे? हम इन अच्छाइयों को कालवाह्य या दकियानूसी मानकर खारिज़ नहीं कर सकते। हम भारतीय हैं, कभी भी अंग्रेज नहीं बन सकते। हमारा चरित्र-बल ही हमें हमारी समस्त समस्याओं से मुक्ति दिलाने का एकमात्र साधन है। क्यों नहीं अपने आचार-विचार, बोल-चाल और वस्त्रों में हम मर्यादा का ध्यान रखें? जो चीज हमारे पूरे समाज में क्रान्तिकारी परिवर्तन ला सकती है, उसे अपनाने में कैसा संकोच? यह निर्णय लेने की घड़ी है - अभी नहीं तो कभी नहीं।
      

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