Friday, November 16, 2012

राजनीति ही क्यों




महात्मा गांधी ने कांग्रेस को लोकप्रियता के चरम शिखर पर पहुंचाया। उन्होंने इसके माध्यम से देश को पराधीनता की बेड़ियों से मुक्त भी कराया। लेकिन क्या उन्होंने सपने में भी सोचा था कि उनकी कांग्रेस बोफ़ोर्स, २-जी स्कैम, राष्ट्रमंडल घोटाला, कोलगेट जैसे घोटालों में आकण्ठ डूब जाएगी? जबतक कांग्रेस गांधीजी के आभामंडल के आस-पास थी, देश के लिए काम किया। सरदार पटेल, डा. राजेन्द्र प्रसाद, लाल बहादुर शास्त्री, मोरारजी देसाई जैसे चरित्रवान नेता कांग्रेस की ही देन थे। लेकिन जब से कांग्रेस ने चरित्र को बाहर का रास्ता दिखाया, तब से यह राजीव गांधी, सोनिया गांधी, राहुल गांधी, नारायण दत्त तिवारी, चिदंबरम, वाड्रा, अभिषेक सिंघवी और दिग्विजय सिंह की पार्टी बनकर रह गई। भारत की ऐसी कौन सी राजनीतिक पार्टी है जो अपने घोषणा पत्र में घोटालों और भ्रष्टाचार की वकालत करती है? कौन पार्टी वंशवाद को अपना नैतिक अधिकार मानती है?  सबके सिद्धान्त अच्छे प्रतीत होते हैं। उनके कार्यक्रम भी लोक लुभावन हैं।  फिर ऐसा कौन सा कारण है कि कोई भी पार्टी भ्रष्टाचार को रोकने में सफल नहीं हो पा रही है? कारण एक ही है - चरित्र की कमी। विवेकानन्द ने कहा था - I want a man with capital M. इस समय capital M वाले मनुष्यों की समाज के हर क्षेत्र में कमी हो गई है जिसका परिणाम घोटाले, भ्रष्टाचार, बलात्कार, लूटपाट, आगजनी, दंगा इत्यादि के रूप में सबके सामने है। क्या पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम, मनरेगा, मिड डे मिल, वृद्धावस्था पेन्शन, पंचायती राज, सांसद/विधायक निधि की योजनाएं गलत हैं? शायद नहीं। लेकिन भ्रष्टाचार के घुन ने इन्हें इतना खोखला कर दिया है कि सभी योजनाएं लक्ष्य से भटक गईं हैं। स्वराज प्राप्ति के पश्चात सुराज कि अत्यन्त आवश्यकता थी और इसके लिए अधिक चरित्रवान और निष्ठावान कार्यकर्त्ताओं की आवश्यकता थी, लेकिन दुर्भाग्य से देश में चरित्र निर्माण करने वाले संगठनों की भारी कमी होने के कारण हम चरित्रवान नागरिकों का निर्माण नहीं कर पाए। ले-देकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसी एक ही संस्था देश को उपलब्ध हुई जिसने चरित्रवान कार्यकर्त्ताओं की कई पीढ़ियों का निर्माण किया। राजनीति और इसके इतर भी इसके कार्यकर्ताओं ने अपने कार्य से राष्ट्र की महत्तम सेवा की है। पंडित दीन दयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण अडवानी ने अपने अपने क्षेत्र में मील के पत्थर स्थापित किए, परन्तु आज की तिथि में येदुरप्पा, मधु कोड़ा और नीतिन गडकरी के क्रिया कलापों को देख मन में यह संशय घर करने लगता है कि इस महान संगठन के प्रशिक्षण में भी कही कोई दोष तो नहीं?
आजकल हर आदमी कुछ दिन समाज सेवा करता है, आन्दोलन चलाता है और फिर राजनीति में घुस जाता है। हम यह भूल जाते हैं कि राजनीति से अधिक श्रेष्ठ समाज सेवा है। समाज श्रेष्ठ होगा तो सरकारें स्वयं ही श्रेष्ठ बन जाएंगीं। स्व. लोकमान्य तिलक अपने समय के सर्वमान्य राजनेता थे। वे अपने युग की राजनीति के शिखर पुरुष थे। उनका नारा - स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है, वन्दे मातरम की तरह देश पर मर मिटने वालों के लिए ध्येय वाक्य था। उन्हीं दिनो तिलक जी से किसी पत्रकार ने पूछा -
"यदि इन कुछ वर्षों में स्वराज मिल गया तो आप भारत सरकार के किस पद को संभालना पसंद करेंगे?"
इस सवाल को पूछने वाले ने सोचा था कि तिलक महाराज उत्तर में अवश्य प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति बनने की मंशा जाहिर करेंगे। लेकिन उसे लोकमान्य तिलक का उत्तर सुनकर अत्यन्त हैरानी हुई। बाल गंगाधर तिलक ने कहा था -
" मैं तो देश के स्वाधीन होने के पश्चात स्कूल का अध्यापक होना पसंद करूंगा क्योंकि देश को सबसे बड़ी आवश्यकता अच्छे नागरिक एवं उन्नत व्यक्तियों की होगी जिसे शिक्षा एवं समाज सेवा के द्वारा ही पूरा किया जाना संभव है।"
हजार वर्षों की गुलामी के कारण अपना सबकुछ खो बैठने वाले समाज में अनगिनत बुराइयों के साथ नैतिक, बौद्धिक और सामाजिक पिछड़ेपन को दूर किया जाना आज की तिथि में सबसे बड़ा काम है और इसे किसी राजनीति के द्वारा नहीं बल्कि सामाजिक सत्प्रवृतियों के द्वारा ही पूरा किया जा सकता है। समाजसेवा के लिए अनगिनत क्षेत्र हैं। निरक्षरता की समस्या अभी खत्म नहीं हुई है। प्रौढ़ों और महिलाओं को पढ़ाने की सुध किसे है? सरकार तो अपने वर्तमान शैक्षणिक ढांचे को चलाने में ही चरमरा रही है। ऐसी स्थिति में शिक्षा की सामयिक चुनौती को समर्पित लोकसेवी ही पूरी कर सकते हैं। खर्चीली शादियां, तंबाकू, शराब, भांग, अफ़ीम, दिखावा आदि में समाज के हजारों लाखों करोड़ नित्य ही व्यर्थ जा रहे हैं। यह धन २-जी स्कैम और कोलगेट से ज्यादा है। यदि इस धन को बचाया जा सके तो न जाने कितनी राष्ट्रीय समस्याओं के समाधान के साथ अनगिनत परिवारों की खुशियां वापस लौट सकती हैं। 
जात-पांत के नाम पर हजारों टुकड़ों में बंटे-बिखरे समाज को फिर से एकता-समता के सूत्र में बांधने की आवश्यकता है। गृह उद्योगों के अभाव में देश की महिलाएं एवं वृद्ध निठल्ला जीवन जीते हैं। यदि इन्हें विकसित किया जाय तो घरों के साथ देश की आर्थिक स्थिति भी सुधर सकती है। देश का युवा वर्ग आज के सिनेमा और टीवी चैनलों से दिशा प्राप्त कर रहा है। सार्थक साहित्य का सृजन ठप्प है। ये पंक्तियां समाज सेवा की अनगिनत जरुरतों में से कुछ की ही चर्चा करती हैं। इनके अतिरिक्त और भी अनेकों कार्य करने को पड़े हैं जिन्हें हाथ में लेकर व्यक्ति, समाज और राष्ट्र के लिए बहुत कुछ किया जा सकता है। लेकिन ये सारे कार्य करेगा कौन? सोनिया या अरविन्द केजरीवाल?

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