Friday, November 9, 2012

दिग्विजय की राह पर केजरीवाल




अपुष्ट प्रमाणों के आधार पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाकर किसी का भी चरित्र-हनन करना अरविन्द केजरीवाल का स्वभाव बन चुका है। वे अपने उद्देश्य से भटक गए हैं। अन्ना हजारे को लगभग दो वर्षों तक उन्होंने भुलावे में रखा। जन लोकपाल बिल के लिए अन्ना के आन्दोलन से ही अरविन्द केजरीवाल अचानक नायक की भांति उभरे।  अन्ना के गिरते स्वास्थ्य की चिन्ता किए बिना उन्होंने अन्नाजी को मुंबई और दिल्ली में अनिश्चित काल के लिए अनशन पर बैठा दिया। अन्नाजी को अरविन्द केजरीवाल की राजनीतिक महत्त्वाकांक्षा को पहचानने में दो वर्ष लग गए। एक कहावत है - साधु, चोर और लंपट ज्ञानी, जस अपने तस अनका जानी। साधु अन्ना अपनी तरह ही अपने सलाहकारों को साधु समझते रहे। उन्हें पहला झटका स्वामी अग्निवेश ने दिया, दूसरा झटका केजरीवाल ने। जब आन्दोलन के पीछे केजरीवाल की राजनीतिक मंशा से पर्दा हटा, तो उन्होंने न केवल इसका विरोध किया, अपितु केजरीवाल से अपना संबन्ध विच्छेद भी कर लिया। किरण बेदी ने भी यही किया। अन्नाजी ने सार्वजनिक रूप से अपने नाम का उपयोग करने से केजरीवाल को स्पष्ट मनाही कर दी। आज दोनों के रास्ते अलग-अलग हैं। एक व्यवस्था परिवर्तन चाहता है, तो एक अन्ना के आन्दोलन का लाभ उठाकर सत्ता। प्रश्न यह है कि अगर अरविन्द केजरीवाल के सपनों का जन लोकपाल कानून बिना किसी काट-छांट के पास भी कर दिया जाय, तो क्या गारन्टी है कि यह भारत की न्याय-व्यवस्था की तरह भ्रष्टाचार का केन्द्र बनने से बच पाएगा? हमारी सारी समस्याओं की जड़ हमारा उधारी संविधान, इसके द्वारा संचालित व्यवस्था और इसके द्वारा उत्पन्न चारित्रिक गिरावट है। एक नहीं, सौ लोकपाल बिल पास आ जाएं, फिर भी भ्रष्टाचार में कोई कमी नहीं आएगी, वरन बढ़ेगा। अवैध धन कमाने का एक और काउंटर खुल जाएगा। अन्नाजी ने देर से इस तथ्य को समझा। इसीलिए वे बाबा रामदेव, किरण बेदी और जनरल वी.के.सिंह के साथ व्यवस्था परिवर्तन के लिए कार्य कर रहे हैं।
अरविन्द केजरीवाल अब दिग्विजय सिंह की राह पर चल पड़े हैं। सलमान खुर्शीद, वाड्रा, मुकेश अंबानी और गडकरी पर उन्होंने जो आरोप लगाए हैं, वे मात्र सनसनी फैलाने के लिए हैं। २-जी, कामनवेल्थ और कोलगेट के मुकाबले ये घोटाले कही ठहरते नहीं हैं। उन्हें डा. सुब्रह्मण्यम स्वामी की तरह पूरे प्रमाणों के साथ कोर्ट में जाना चाहिए ताकि राष्ट्र का कल्याण हो सके। २-जी स्कैम के लिए अगर स्वामी सुप्रीम कोर्ट में नहीं गए होते, तो इसे कभी का दबा दिया गया होता। सुब्रह्मण्यम स्वामी ने देश पर एक बड़ा उपकार किया है। सरकार की अनैतिक गतिविधियों पर प्रभावी अंकुश लगाया है। भ्रष्टाचार के खिलाफ़ उनका संघर्ष सही दिशा में है। केजरीवाल या तो दिग्भ्रान्त हैं या अपनी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए कुछ भी कर गुजरने के लिए कटिबद्ध हैं। वे अपने रहस्योद्घाटनों से यह सिद्ध करने का प्रयास कर रहे हैं कि सभी राजनीतिज्ञ भ्रष्ट हैं। ऐसा करके परोक्ष रूप से वे भ्रष्टाचार की जननी कांग्रेस की ही मदद कर रहे हैं। वे यह धारणा बनवा रहे हैं कि पूरे भारत में उनके अतिरिक्त कोई भी ईमानदार नहीं है। यदि उन्हें बेहतर राजनीतिक विकल्प देने की चिन्ता होती, तो वे राजनीतिक पार्टी बनाने की दिशा में ठोस पहल करते, जो कांग्रेस और भाजपा का विकल्प बनने की क्षमता रखती। राष्ट्रीय स्तर की पार्टी बनाना कोई हंसी ठठ्ठा नहीं है। उनके पास हिमाचल और गुजरात के चुनावों से आरंभ करने का एक सुनहरा अवसर था, जिसे उन्होंने खो दिया। यदि उनकी पार्टी २०१४ के लोकसभा के चुनाव से कार्य आरंभ करना चाहती है, तो भी सदस्य बनाने, संगठन बनाने, चुनाव कोष एकत्रित करने और ५४२ योग्य उम्मीदवारों का चयन कोई छोटी प्रक्रिया नहीं है। वर्तमान व्यवस्था में बड़ी जटिल प्रक्रिया है यह। इसके अतिरिक्त श्री केजरीवाल को राष्ट्रीय/अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दों, यथा अर्थव्यवस्था, विदेश नीति, आतंकवाद, कश्मीर, बांग्लादेशी आव्रजन, सर्वधर्म समभाव, पूंजीवाद, समाजवाद, स्वदेशी, रक्षानीति, व्यवस्था परिवर्तन, जनलोकपाल में मीडिया, एन.जी.ओ. और कारपोरेट घरानों को सम्मिलित करने के विषय में, राष्ट्रीयकरण, निजीकरण, निवेश, ऊर्जा नीति, आणविक नीति, शिक्षा, चिकित्सा, न्याय पद्धति, कृषि, उद्योग, ब्यूरोक्रेसी और आरक्षण पर अपने सुस्पष्ट विचारों से भारत की जनता को अवगत कराना चाहिए।
कांग्रेस के साथ भाजपा की विश्वसनीयता को संदिग्ध बनाकर कुछ भी हासिल नहीं होनेवाला। कल्पना कीजिए - अगर केजरीवाल के प्रयासों के कारण भाजपा की विश्वसनीयता समाप्त हो जाती है, तो देश की जनता के पास क्या विकल्प रहेगा? केजरीवाल विकल्प नहीं दे सकते। क्या भारत की जनता सन २०१४ के बाद भी अगले पांच सालों तक कांग्रेस को झेलने के लिए पुनः अभिशप्त होगी? अन्ना के आभामंडल का भरपूर दोहन कर केजरीवाल जनता में भ्रम की स्थिति का निर्माण कर रहे हैं। वे पूर्ण रूप से दिग्विजय सिंह की राह पर चल चुके हैं, परिणाम की परवाह किए बिना। हिन्दी न्यूज चैनलों के समाचार वाचकों की तरह चिल्ला-चिल्ला कर बोलने से न तो समस्याएं कम होती हैं और न समाधान निकल पाते हैं। सनसनी समाधान नहीं बन सकती।

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