Saturday, October 27, 2012

नौकरी के नौ सिद्धान्त - अशोक खेमका के नाम एक खुला पत्र




प्रिय खेमका जी,
हमेशा खुश रहिए।
दिनांक १६ अक्टुबर के पहले न मैं आपको जानता था और न आप मुझे। लेकिन अब तो मैं ही क्या सारा हिन्दुस्तान आपको जान गया है। मुझे जानने की आपको कोई जरुरत नहीं। वैसे भी नौकरशाही के शीर्ष पर बैठे किसी भी अधिकारी को अपने से छोटे ओहदेवालों को जानना या याद करना पद की गरिमा के अनुकूल नहीं होता। फिर भी मैं आपको बता दूं कि उत्तर प्रदेश  में एक उच्च पदस्थ अधिकारी हूं। सरकारी नौकरी करने का मेरा अनुभव आपसे १४ वर्ष ज्यादा है। उम्र भी अधिक है। अतः बिना मांगे भी मुफ़्त की सलाह आपको देने का मुझे स्वाभाविक अधिकार प्राप्त है। 
आपने हरियाणा के चकबन्दी महानिदेशक के पद पर रहते हुए १५ अक्टुबर को राज जमाता कुंवर राबर्ट वाड्रा द्वारा डीएलएफ को बेची गई ३.५३ एकड़ ज़मीन का म्यूटेशन (दाखिल खारिज़) रद्द कर दिया। यह म्यूटेशन २० सितंबर को गुड़गांव के कर्त्तव्यनिष्ठ, वफ़ादार और आज्ञाकारी सहायक चकबन्दी अधिकारी ने किया था। आपने बिना सोचे-समझे सहायक चकबन्दी अधिकारी का आदेश रद्द कर दिया। उसी दिन आपका तबादला कर दिया गया। यह तो होना ही था। शुक्र कीजिए कि हरियाणा एक छोटा प्रान्त है। हुड्डा जी आपका ट्रान्सफर कहां करेंगे - चन्डीगढ़, गुड़गांव, भिवंडी या हिसार। सारी जगहें राजमाता की राजधानी के पास ही हैं। कल्पना कीजिए, आप यू.पी. में होते! ऐसे अपराध के लिए आपका ट्रान्सफर पीलीभीत से बलिया या नोएडा से सोनभद्र भी हो सकता था। पता नहीं आपको नौकरी का सहूर क्यों नहीं आता। आपने मसूरी और हैदराबाद में सही प्रशिक्षण लिया भी था अथवा नहीं? २० साल की नौकरी में ४३ तबादले! अपने तौर-तरीके बदलिए ज़नाब वरना केजरीवाल की तरह सड़क पर आने के अलावा कोई चारा नहीं बचेगा। उन्हें तो अन्ना जैसा एक गाड फादर मिल गया। आपको कौन मिलेगा? माना कि आप नौकरशाही के शीर्ष पद पर हैं, पर हैं तो नौकर ही न। जिस तरह न्यूटन ने गति के तीन नियम प्रतिपादित किए थे उसी तरह सरकारी नौकरी में सफलता के लिए मैंने नौ नियम प्रतिपादित किए हैं। मुगल काल से लेकर आज तक जिसने भी इन नियमों का ईमानदारी और निष्ठा से पालन किया है, उसकी दसों उंगलियां हमेशा शुद्ध देसी घी में रही हैं। अपने लंबे शोध और अनुभव के आधार पर मैंने इन्हें लिपिबद्ध किया है। आप बहुत बड़े आई.ए.एस. आफिसर हैं। मेरे इस शोध के लिए मेरा नाम अगर नोबेल प्राइज़ के लिए भेजने में यदि दिक्कत हो तो कम से कम रेवड़ी की तरह बंटने वाले राष्ट्रीय पद्म पुरस्कारों के लिए अनुमोदित तो कर ही सकते हैं। आप तो जानते ही हैं कि बिना पैरवी के सरकारी नौकरी में वार्षिक वेतनवृद्धि भी नहीं मिलती। विषयान्तर हो गया। कभी-कभी मेरा मन भी Inadia Against Corruption के नेताओं की तरह लक्ष्य से भटक जाता है।
सरकारी नौकरी के नौ सिद्धान्त
१. सदैव याद रखें - बास हमेशा सही होता है - Boss is always right.
२. अपने बास को कभी ‘ना’ मत कहो - Never say `No' to your boss.
३. इस देश में दो तरह का राजस्व होता है - (अ) पी.आर. (personal revenue), (ब) एस.आर (State revenue)
             पी.आर. बढ़ाने के लिए सतत त्रुटिहीन तकनीक डिजाइन करो।
४. प्राप्त पी.आर. का मात्र ५०% ही अपनी आनेवाली सात पीढ़ियों के लिए सुरक्षित जगह पर रखो। शेष ५०% को मंत्रियों, नेताओं, बास और मीडिया में ईमानदारी से बांट दो।
५. हमेशा आज्ञाकारी रहो और हर हाइनेस (Her Highness)  यानि Mrs. Boss की हर पुकार पर एक पैर पर खड़े रहो।
६. श्रीमती बास की मखमली गोद में खेलते हुए अपने बास के सफ़ेद, प्यारे, नन्हे पामेलियन बबुआ कुत्ते को हमेशा पुत्रवत स्वाभाविक प्यार और स्नेह दो।
७. इस तथ्य को हृदयंगम कर लो कि तुम सत्ताधारी पार्टी के नौकर हो, केन्द्र या राज्य सरकार के नहीं।
८. काम कम दिखावा ज्यादा - Work less, show more.
९. बातें कम, सुनना ज्यादा - Talk less, listen more.
खेमका भाई! आप मेरे छोटे भाई की तरह हैं। इसलिए मैंने ३४ वर्षों के अनुभव के आधार पर स्वयं द्वारा प्रतिपादित इन शाश्वत सिद्धान्तों को आपके हित में सार्वजनिक किया। आप इन सूत्रों को अमली जामा पहनाइए। फिर देखिए यू.पी. की नीरा यादव, अखंड प्रताप सिंह और सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश बाल कृष्णन की तरह लक्ष्मी आपकी दासी होंगीं और कुबेर सबसे विश्वस्त दास। रिटायरमेन्ट के बाद भी नौकरी पक्की।
कम लिखना, ज्यादा समझना।
                               ।इति।
       शुभकामनाओं के साथ,
                                                   आपका शुभचिन्तक
                                                    यादव सिंह कृष्णन

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