Sunday, April 13, 2014

क्या इतना नीचे गिरना चाहिये केजरीवाल को

 गज़ल-सम्राट जगजीत सिंह की एक गज़ल है -
      ज़िन्दगी भर मेरे काम आए उसूल
      एक-एक कर उन्हें बेचा किया,
      आज मैंने अपना फिर सौदा किया।
गज़ल की उपरोक्त पंक्तियां अरविन्द केजरीवाल पर एकदम सटीक बैठती हैं। अपने आसपास सिद्धान्तों का जाल बुनना और फिर उचित समय पर उनका सौदा कर लेने की कला में केजरीवाल से माहिर कौन है? अन्ना की अगुआई में देशव्यापी आन्दोलन में केजरीवाल ने स्पष्ट घोषणा की थी कि यह आन्दोलन गैर राजनीतिक है और व्यवस्था परिवर्तन के लिये समर्पित है। इस सिद्धान्त का पहला सौदा उन्होंने अन्ना के विरोध के बावजूद राजनीतिक पार्टी बनाकर किया। भारत माता की जय का नारा बुलन्द करने वाले केजरीवाल ने अपनी पार्टी में प्रशान्त भूषण जैसे देशद्रोही और विनायक सेन जैसे आतंकवादियों को प्रमुखता दी। दिल्ली विधान सभा के चुनाव में अपने बच्चों की कसम के साथ स्पष्ट घोषणा की कि वे कांग्रेस या भाजपा की मदद से सरकार नहीं बनायेंगे। मुख्यमंत्री बनने के लिये सोनिया की गोद में जा बैठे। यही कारण है कि भ्रष्टाचार की जननी कांग्रेस और उसके हाई कमान मल्लिका और शहज़ादे के खिलाफ़ चुनाव न लड़कर वे मोदी के खिलाफ़ ताल ठोंकने बनारस पहुंच गये। मोदी को हराने के लिये उन्हें आई.एस.आई., सी.आई.ए., नक्सलवादी, आतंकवादी, माफ़िया डान ........ किसी का समर्थन लेने से गुरेज नहीं है। जेल में बन्द पूर्वी उत्तर प्रदेश के माफ़िया डान मुख्तार अन्सारी के बड़े भाई अफ़ज़ाल अन्सारी से केजरीवाल की लंबी मुलाकातें आखिरकार रंग लाई। मुख्तार अन्सारी कौमी एकता दल के बनारस से प्रत्याशी थे। पिछली लोकसभा के चुनाव में उन्होंने मुरली मनोहर जोशी को बहुत जबर्दस्त टक्कर दी थी। जोशीजी बमुश्किल केवल १७ हजार वोटों से जीत पाए थे। इसबार मुख्तार अन्सारी ने अरविन्द केजरीवाल के समर्थन में बनारस संसदीय सीट से न लड़ने की घोषणा पिछले गुरुवार को कर दी। अब वे घोसी से चुनाव लड़ेंगे जहां  आप अपना कोई उम्मीदवार नहीं उतारेगी। केजरीवाल और नापाक राष्ट्रद्रोहियों के बीच गठबन्धन के ये कुछ प्रमाणित नमूने हैं। केजरीवाल कोई लालू, राबड़ी या मुलायम नहीं हैं। उन्होंने आईआईटी, खड़गपुर से बी.टेक. की डिग्री ली है, भारत की सर्वाधिक प्रतिष्ठित सेवा में आला अधिकारी रहे हैं। वे उचित-अनुचित, सब जानते हैं। लेकिन राजनीतिक महत्त्वाकांक्षा और स्वार्थ ने उन्हें दुर्योधन बना दिया है। महाभारत के एक प्रसंग की मुझे अनायास याद आ रही है ---
      महाभारत के युद्ध की तैयारियां अपने अन्तिम चरण में थीं। दोनों पक्ष की सेनायें एकत्र हो चुकी थीं। भगवान श्रीकृष्ण ने शान्ति की आशा फिर भी नहीं छोड़ी थी। समझौते के अन्तिम समाधान के लिये उन्होंने स्वयं पाण्डवों के दूत के रूप में हस्तिनापुर जाने का निर्णय लिया। सूचना प्रेषित कर दी गई। निर्धारित तिथि को हस्तिनापुर की राजसभा को उन्होंने संबोधित किया। उसका प्रभाव भी पड़ा। दुर्योधन, कर्ण, शकुनि और दुशासन के अतिरिक्त सभी उपस्थित सभासदों और भीष्म, द्रोण, विदुर तथा स्वयं धृतराष्ट्र ने भगवान श्रीकृष्ण के प्रस्ताव से सहमति जताते हुए पाण्डवों का राज वापस करने का सत्परामर्श सार्वजनिक रूप से दिया। लेकिन दुर्योधन तो अपने निश्चय पर अटल था। भगवान श्रीकृष्ण एवं सभी सम्मानित जनों की सलाह को किनारे करते हुए उसने उत्तर दिया -
      “ प्रत्येक मनुष्य विधाता की कृति है। उससे कब, कैसे और क्या काम लेना है, विधाता ने ही निर्धारित कर रखा है। मुझे भी ईश्वर ने किसी विशेष प्रयोजन से ही रचा है। हम और आप उसके कार्यक्रम को बदल नहीं सकते। मुझे यह भी ज्ञात है कि क्या धर्म है और अधर्म क्या है। मैंने भी धर्मग्रन्थ पढ़े हैं और गुरु द्रोण से ही शिक्षा पाई है। मुझे यह भी पता है कि क्या उचित है और क्या अनुचित। मैं विधाता की योजना के क्रियान्यवन के प्रति प्रतिबद्ध हूं। अगर विधाता को क्षत्रिय कुल का विनाश मेरे  माध्यम से ही स्वीकार है, तो मैं क्या कर सकता हूँ| सबकुछ विधाता पर छोड़कर, जाइये युद्ध की तैयारी कीजिये| ‘’
            दुर्योधन की तरह केजरीवाल को भी धर्म-अधर्म, उचित अनुचित सबकी पहचान है; लेकिन स्वार्थ और महत्त्वाकांक्षा ने उन्हें अन्धा बना रखा है। उन्हें न अन्ना की सलाह भाती है, न किरण बेदी की। जनता ने अपने तरीके से वाराणसी, हरियाणा और दिल्ली में उन्हें उत्तर देना आरंभ कर दिया है। लोकसभा के चुनाव के नतीजे उनके लिये महाभारत ही सिद्ध होंगे। आखिर उसूलों और मूल्यों की सौदेबाज़ी को जनता कबतक सहेगी।





      

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