Thursday, December 8, 2011

मीडिया में व्याप्त भ्रष्टाचार



प्रेस काँसिल आफ इन्डिया के अध्यक्ष सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस मारकण्डेय काटजू ने कुछ ही दिन पूर्व प्रधान मंत्री को लिखे पत्र में मीडिया में व्याप्त भ्रष्टाचार का उल्लेख करते हुए दृश्य मीडिया को भी प्रेस काँसिल के दायरे में लाने की सिफारिश की है। उन्होंने प्रेस काँसिल आफ इंडिया का नाम बदलकर मीडिया काँसिल करने की मांग भी की है। उन्होंने सार्वजनिक रूप से टिप्पणी की है कि मीडिया, विशेषकर समाचार चैनल बुनियादी मुद्दों की अपेक्षा गैर जरुरी मुद्दों पर अधिक समय देते हैं। सेक्स और सनसनीखेज खबर परोसने वाले ये चैनल आम जनता या उससे संबन्धित समस्याओं से एक निश्चित दूरी बनाए रखते हैं। जस्टिस काटजू अपनी ईमानदारी और बेबाक टिप्पणी के लिए विख्यात हैं। उन्होंने बड़े शालीन शब्दों में मीडिया का यथार्थ चित्र उकेरा है।
कारपोरेट घराने की चर्चित दलाल नीरा राडिया ने गत वर्ष, प्रमुख पत्रकार प्रभु चावला से बात करते हुए सुप्रीम कोर्ट में जजमेंट फिक्स करने के लिए लंबी बात की थी। प्रभु चावला ‘सीधी बात’ में सबकी बखिया उधेड़ते हैं लेकिन नीरा राडिया से बातचीत में खुद ही बेनकाब हो गए हैं। बातचीत का पूरा आडियो टेप ‘यू ट्यूब’ पर आज भी उपलब्ध है। नीरा राडिया पैसे देकर सरकार के पक्ष में लेख लिखवाने के लिए बरखा दत्त, वीर सिंहवी, राजदीप सरदेसाई आदि अनेक नामचीन पत्रकारों के लगातार संपर्क में रहती हैं। इसका खुलासा भी नेट पर उपलब्ध इन पत्रकारों से नीरा राडिया की बातचीत के आडियो टेप में है। एक टेप में राजदीप सरदेसाई ने अपने लेख का मज़मून पहले नीरा राडिया को सुनाया। नीरा ने उसमें कुछ संशोधन सुझाए। उन संशोधनों को अपने लेख में शामिल करने के बाद पुनः पूरा लेख नीरा राडिया को सुनाया और राडिया के अनुमोदन के पश्चात ही सरदेसाई ने उसे प्रेस को भेजा। १९७५-७७ में इन्दिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपात्काल के दौरान खुशवंत सिंह अंग्रेजी पत्रिका ‘इलस्ट्रेटेड वीकली’ के संपादक थे। उन्होंने उस वर्ष फर्जी ओपिनियन पोल कराकर संजय गांधी को ‘मैन आफ द इयर’ घोषित किया था। उनके इस कृत्य के कारण पाठकों ने उन्हें ‘चमचा आफ द इयर’ घोषित किया। खुशवंत सिंह ने इसे स्वीकार किया और वीकली में स्थान भी दिया।
१९९२ में बाबरी विध्वंश के बाद कुलदीप नैयर ने दिल्ली से पटना की हवाई यात्रा की। पहले वे दिल्ली से लखनऊ आए, वहां दिन भर रुके, अपने पत्रकार मित्रों से मिले भी, फिर हवाई जहाज से ही पटना के लिए प्रस्थान किया। उन्होंने उसी तिथि में लख्ननऊ से पटना की यात्रा का विवरण देते हुए एक लेख लिखा जो कई अखबारों में छपा। उन्होंने लिखा - मैंने लखनऊ से पटना जाते समय अयोध्या के आसपास के क्षेत्रों में भयभीत मुसलमानों को देखा जो सिर पर अपने सामानों की गठरी लिए सड़क पर किसी सुरक्षित स्थान की ओर जा रहे थे। उनके एक पत्रकार मित्र राजनाथ सिंह जिन्होंने कुलदीप नैयर को लखनऊ के अमौसी हवाई अड्डे पर पटना के लिए विदा किया था, अपने लेख में लिखा - कुलदीप नैयर का लेख पढ़कर न मुझे सिर्फ आश्चर्य हुआ, बल्कि क्षोभ भी हुआ। वे हवाई जहाज से लख्ननऊ से पटना गए थे। अगर खिड़की वाली सीट पर भी वे बैठे होंगे, तो क्या ३८,००० फीट की ऊंचाई से वे सड़क पर चलने वाले लोगों की गतिविधियां और चेहरे के भाव देख सकते थे? क्या वे दूरबीन लेकर यात्रा करते हैं। (हवाई यात्रा में दूरबीन लेकर चलना सख्ती से मना है)। अपनी मनगढ़न्त स्टोरी से जनता में सांप्रदायिक उन्माद फैलाने के लिए उन्हें भारत की जनता से माफी मंगनी चाहिए। कुलदीप नैयर ने न आज तक माफी मांगी और न कोई उत्तर दिया। ये वहीं कुलदीप नैयर हैं जिन्होंने कुछ ही महीने पहले अमेरिका में गिरफ्तार पाकिस्तान की कुखात खुफिया अजेन्सी आइ.एस.आई के शातिर एजेण्ट गुलाम नबी फई का आतिथ्य स्वीकार किया और उसके द्वारा वाशिंगटन में आयोजित एक सेमिनार में भारत विरोधी और पाकिस्तान समर्थक भाषण दिया। ज्ञात हो कि कुलदीप नैयर के आने-जाने, पांच सितारा होटल में ठहरने, खाने-पीने और अमेरिका-दर्शन का संपूर्ण व्यय आई.एस.आई. ने गुलाम नबी फई के माध्यम से वहन किया था। उस सेमिनार में भारत सरकार द्वारा नामित कश्मीर के वार्त्ताकार दिलीप पडगांवकर और राधा प्रसाद भी फई के आमंत्रित अतिथि थे। लौटते समय फई ने वजनदार लिफाफों से, जिसमें डालर भरे थे, इन विद्वान (देशद्रोहियों) अतिथियों की विदाई की। देश की प्रमुख मीडिया ने इसकी चर्चा तक नहीं की। भारत सरकार ने कोई कार्यवाही भी नहीं की क्योंकि ये सभी लोग आई.एस.आई के साथ-साथ भारत की सत्ताधारी पार्टी के भी एजेण्ट हैं।
देश का पूरा मीडिया, चाहे वह प्रिंट मीडिया हो या दृश्य मीडिया हो, अपने आकाओं के हाथ बिका हुआ है, आकण्ठ भ्रष्टाचार में डूबा है। देश के सभी प्रतिष्ठित समाचार पत्रों और दृश्य मीडिया के स्वामी मल्टी नेशनल, कारपोरेट घराने और बड़े पूंजीपति हैं। ये लोग रातोरात किसी अदने पत्रकार को भी विश्वस्तरीय पत्रकार बनाने की क्षमता रखते हैं। सभी बड़े पत्रकार इन्हीं से मार्गदर्शन प्राप्त करते हैं। सरकार भी अरबों-खरबों के विज्ञापनों के माध्यम से इन्हें प्रभावित करती है। प्रिन्ट मीडिया की नई खोज है, ‘एडवर्टोरियल’ यानि समाचारों के रूप में विज्ञापन। पहले प्रथम पृष्ठ पर विज्ञापन छापना अनैतिक समझा जाता था लेकिन आज की तारीख में भारत के सभी छोटे-बड़े समाचार पत्र प्रथम पृष्ठ पर भी पूरे पेज का विज्ञापन देकर, विज्ञापन दाता की डुगडुगी बजाते मिल जाएंगे। अखबारों का संपादकीय पृष्ठ भी राजनीतिक दल के प्रवक्ताओं के चरागाह बन चुके हैं। संसद को मछली बाजार बना देने वाले कई लंपट इस पृष्ठ पर चाटुकारिता के जौहर दिखा रहे हैं। यह मीडिया ही है जो पैसे खाकर लालू यादव को सबसे बड़ा मैनेजमेन्ट गुरु तथा सोनिया गांधी को राजमाता बना देता है।
आज आम आदमी हर तरह की मीडिया से दूर हो गया है। मीडिया को शीला की जवानी, मुन्नी की बदनामी, राखी का इन्साफ और करीना के जीरो फीगर की ज्यादा चिन्ता रहती है। इसी वर्ष कारगिल विजय-दिवस के दिन पाकिस्तान की युवा खूबसूरत विदेश मंत्री हिना रब्बानी भारत के दौरे पर आई थीं। देश की पूरी मीडिया उनके आगे-पीछे चक्कर लगाती रही - कैमरे से उनका नख-शिख वर्णन करती रही। उनके पर्स से लेकर उनकी जूती पर तरह-तरह की टिप्पणियां की गईं। न्यूज चैनल वाले उनकी खूबसूरती पर दीवाने हो रहे थे। उसी दिन भारत की सेना और जनता कारगिल-विजय दिवस मना रही थी। मीडिया ने इन कार्यक्रमों की कोई कवरेज नहीं की।
पैसा और ग्लैमर ही मीडिया का आदर्श बन चुका है। प्रिन्ट और दृश्य मीडिया में कार्यरत अधिकांश पत्रकार अपनी तनख्वाह के अतिरिक्त बाहरी एजेन्सियों से भी नियमित रूप से भारी धनराशि प्राप्त करते हैं। टेन्डर नोटिस पाने के लिए सरकारी अधिकारियों की बैठकों में उनके मनमाफिक समाचार की कतरनों के साथ पत्रकार अक्सर देखे जा सकते हैं। नक्सलवादियों और चीन से पैसा पानेवाले सजायाफ्ता विनायक सेन को राष्ट्रनायक बना देते हैं, कारपोरेट घराने से धन पाने वाले टाटा को भारत रत्न दिला देते हैं, आई.एस.आई. से पैसा पानेवाले इस्लामी आतंकवादियों के समर्थन में पूरी शक्ति झोंक देते हैं और सी.आई.ए. से माल-पानी पाकर परमाणु समझौते को मनमोहन की सबसे बड़ी उपलब्धि बताकर एक चुनाव तो जीता ही देते हैं।
जैसे-जैसे भूमंडलीय दौर में पत्रकारिता मुनाफा कमाने का जरिया बनती चली गई, वैसे-वैसे यह मिशन कम, व्यवसायिक ज्यादा हो गई। पेड न्यूज अर्थात पैसे लेकर पैसे देनेवाले के हित में समाचार छापना या प्रसारित करना आजकल आम बात हो गई है। पेड न्यूज के मामले में चुनाव आयोग ने हाल ही में उत्तर प्रदेश के बिसौली विधान सभा क्षेत्र की विधायक श्रीमती उर्मिलेश यादव पर तीन साल के लिए चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी है। यह तो पेड न्यूज का एक घोषित और सिद्ध मामला है। न्यूज चैनल और प्रिन्ट मीडिया नित्य ही पेड न्यूज प्रसारित करते और छापते हैं। मीडिया में भ्रष्टाचार की यह पराकाष्ठा है। लोकतंत्र का चौथा स्तंभ भ्रष्टाचार की सारी सीमाएं लांघ चुका है।
पुलिस, कचहरी, नौकरशाही और राजनीति से भी अधिक भ्रष्टाचार मीडिया में व्याप्त है, जिसे लोकतंत्र का चौथा खंभा कहा जाता है। हमारे देश के उच्च जीवन मूल्यों और संस्कृति को विकृत करने के लिए मीडिया ने जितना काम किया है, वह लार्ड मैकाले भी नहीं कर पाया था।
एक वक्त था जब समर्पित देशभक्त पत्रकारों ने अपने गली-मुहल्ले से छोटे-छोटे अखबार निकाले और अपने क्रान्तिकारी विचारों को जनता के बीच पहुंचाया। ब्रिटिश सरकार की नींव हिला दी थी राष्ट्रसेवा के लिए कटिबद्ध देशभक्त पत्रकारों ने। यह उन पत्रकारों की विरासत है कि आज हम आदतन सवेरे-सवेरे अखबार पढ़ते हैं। उस समय लोकमान्य तिलक, वीर सावरकर, महात्मा गांधी, पं. मदन मोहन मालवीय, गणेश शंकर विद्यार्थी, पं. माखनलाल चतुर्वेदी, लक्ष्मीशंकर गर्दे, प्रताप नारायण मिश्र, विष्णुराव पराड़कर ......... आदि पत्रकारों ने अपने ओजस्वी लेखन से उच्च चरित्र, नैतिकता और राष्ट्रप्रेम के बीज बोए थे जिसकी फसल भगत सिंह, चन्द्रशेखर आजाद, नेताजी सुभाषचन्द्र बोस, राम प्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाक उल्ला खां जैसे क्रान्तिकारियों के रूप में देखने को मिली। आज की पत्रकारिता की फसल हैं - ए. राजा, कनिमोझी, दयानिधि मारन, करुणानिधि। ये सभी लोग दक्षिण में एकाधिकार जमाए ‘सूर्या टीवी’ के बोर्ड आफ डाइक्ट्रेट के सम्मानित सदस्य, पदाधिकारी और मालिक हैं। किस-किस का और कितनों का नाम गिनाएं। पूरे कुएं में भांग पड़ी है।
बोए थे फूल, उग आए नागफनी के कांटे,
किस-किस को दोष दें, किस-किस को डांटें।

Tuesday, November 29, 2011

राष्ट्रीय तमाचा पार्टी

राष्ट्रीय तमाचा पार्टी
भ्रष्टाचार भवन,
धनपथ,
धृतराष्ट्र नगर
INDIA (That is bharat)
पिन कोड - ४२०-४२०
कार्यालय ज्ञापन

सं ०१/रातपा/सार्वजनिक दिनांक - इच्छानुसार
सर्वसाधारण को सूचित किया जाता है कि INDIA (That is bharat) में राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखते हुए गहन विचार-विमर्श और चिन्तन के पश्चात राष्ट्रीय तमाचा पार्टी का गठन किया गया है। इसकी प्रेरणा का स्रोत सत्ताधारी राष्ट्रीय पार्टी है जिसने स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात अपने निर्जीव तमाचा चुनाव चिह्न के सहारे दशकों तक INDIA पर राज किया है और आज भी कर रही है। राष्ट्रीय तमाचा पार्टी भारत के राष्ट्रीय जनता आयोग के द्वारा मान्यता प्राप्त एक प्रतिष्ठित एनजीओ है। ज्ञात हो कि श्री अन्ना हजारे जी राष्ट्रीय जनता आयोग के सम्मानित अध्यक्ष हैं। पार्टी के विद्वत्‌परिषद ने भारत के इतिहास की निम्न घटनाओं का गहराई से अध्ययन, चिन्तन और मनन करने के पश्चात राष्ट्रीय हित और समाज के समग्र कल्याण हेतु रातपा जैसी अद्वितीय पार्टी के गठन का निर्णय लिया।
१. अगर ऋषि पुलस्त्य ने रावण को बचपन में ही तमाचा पदक से सम्मानित किया होता, तो सीता-हरण नहीं होता।
२. पितामह भीष्म और धृतराष्ट्र ने दुर्योधन को पाद पदक से सम्मानित किया होता, तो द्रौपदी चीरहरण नहीं होता, महाभारत नहीं होता।
३. महात्मा गांधी ने जिन्ना को पादुका पदक से सम्मानित किया होता, तो देश का बंटवारा नहीं होता।
राष्ट्रीय तमाचा पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष वीरवर सरदार हरविन्दर सिंह हैं जिन्होंने कुछ ही दिवस पूर्व INDIA (That is bharat) के सम्माननीय कृषि मंत्री माननीय शरद पवार जी को उनकी मूल पार्टी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के निर्जीव चुनाव चिह्न के जोरदार सजीव प्रयोग से सम्मानित किया था। पूरे देश में भ्रष्टाचारियों के बीच प्रभावी खौफ पैदा करने के लिए पुरस्कारस्वरूप सरदार हरविन्दर सिंह को सर्वसम्मति से पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया है। पार्टी ने सर्वसम्मति से श्री तेजपाल सिंह को जिन्हें वकील प्रशान्त भूषण को हस्त-पाद पुरस्कार देने का गौरव प्राप्त है, पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव चुना है। इन दोनों की राय-मशविरा के पश्चात पार्टी की कार्यकारिणी का भी गठन किया गया है जिसे नेताओं के कालेधन की तरह देशहित और जनहित में गुप्त रखा गया है। कार्यकारिणी ने पूरे देश में अधिकतम एक अरब, इक्कीस करोड़ और न्यूनतम एक करोड़ सक्रिय सदस्य बनाने का लक्ष्य रखा है। सदस्य बनने की शर्तें निम्नवत हैं -
१. INDIA (That is bharat) का कोई भी नागरिक इस संगठन का सदस्य बन सकता है।
२. कोई विदेशी इसकी सदस्यता ग्रहण नहीं कर सकता।
३. उम्र - बाल, युवा, वृद्ध।
४. योग्यता - हाथ-पांव का प्रभावी प्रयोग करने की इच्छाशक्ति एवं क्षमता।
५. पार्टी की सदस्यता निःशुल्क है।
६. सदस्यता के लिए किसी आवेदन पत्र की आवश्यकता नहीं है।
७. पार्टी की उद्देश्य-पूर्ति का दृढ़ संकल्प ही सदस्यता की गारंटी है।
पार्टी का उद्देश्य -
-- इस महान देश में INDIA (That is bharat) के नेता भारत को भिखमंगा कहते हैं। INDIA को गौरवशाली भारत बनाना हमारा पहला लक्ष्य है।
-- देश के सभी राजनेता, नौकरशाह, वकील, जनसेवक, एन.जी.ओ., न्यायपालिका, कार्यपालिका, विधायिका, उद्योगपतियों, मीडिया और पूंजीपतियों के कार्यों और चरित्रों का सूक्ष्म अवलोकन और समीक्षा।
-- उपरोक्त श्रेणी के व्यक्तियों को उनकी योग्यता, क्षमता और अबतक किए गए कार्यों की समीक्षा के आधार पर निम्नलिखित पदकों से सम्मानित करना।
१. तमाचा पदक
२. पाद पदक
३. पादुका पदक
उपलब्धियां -
अबतक देश के माननीय कृषि मंत्री श्री शरद पवार जी और हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री श्री सुखराम जी को तमाचा पदक और खण्डित भारत के प्रवक्ता, वकील श्री श्री प्रशान्त भूषण जी को पाद पदक से सम्मानित किया जा चुका है।
पार्टी के सर्वोच्च पदक - पादुका पदक से अभीतक किसी को अलंकृत नहीं किया गया है। लेकिन भारी संख्या में अभ्यर्थियों ने अपने आवेदन पत्र लिखित और ई-मेल के माध्यम से भेजे हैं। पादुका पदक के लिए इन अभ्यर्थियों में कई केन्द्रीय मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों, सत्तारुढ़ पार्टी के महासचिवों और युवराजों के नाम शामिल हैं। सम्यक विचारोपरान्त योग्य पात्र का चुनाव कर शीघ्र ही अधिसूचना निर्गत की जाएगी।
पार्टी का कोई भी सदस्य पदक के लिए घोषित किसी भी लाभार्थी को भारत में कहीं भी स्वयं पदक प्रदान कर सकता है। लाभार्थियों की सूची समय-समय पर अधिसूचित की जाएगी। सफलता पूर्वक पदक प्रदानकर्त्ता को कानूनी सहायता, जमानत और पुरस्कार का दायित्व पार्टी वहन करेगी। जो सदस्य जितना अधिक पदक प्रदान करेगा, उसे उसी अनुपात में पार्टी में महत्व, पद और प्रतिष्ठा दी जाएगी।
देश के समस्त नागरिकों से अपील है कि अधिक से अधिक संख्या में राष्ट्रीय तमाचा पार्टी की सक्रिय सदस्यता ग्रहण कर राष्ट्र निर्माण के कार्य में सहयोग करें। एक करोड़ की सक्रिय सदस्यता के बाद हर क्षेत्र में शुभ परिवर्तन, सूर्योदय और सूर्यास्त की भांति अवश्यंभावी है।
हमारा नारा है -
तुम पदक दो - हम सुराज देंगे।
शुभस्य शीघ्रम्‌!

(तेजेन्द्र पाल सिंह)
महासचिव एवं पाद पदक प्रदानकर्त्ता
(प्रशान्त भूषण को)


Wednesday, November 9, 2011

पेट्रोल की बेलगाम कीमत और सरकार की संवेदनहीनता



वाकई अब हद हो गई। क्या अंग्रेजों की सरकार भी इतनी संवेदनहीन थी? शायद नहीं। आखिर यह सरकार किसकी है - पूंजीपतियों की, कारपोरेट घरानों की, तेल कंपनियों की या जनता की? सरकार का कोई भी प्रतिनिधि प्रथम तीन की सरकार होने की बात कभी भी सार्वजनिक रूप से स्वीकार नहीं कर सकता। सड़क से लेकर संसद तक सरकारी मंत्री और सांसद अपनी सरकार को जनता की सरकार ही कहते हैं लेकिन यह सबसे बड़ा झूठ है। महंगाई से जनता की कमर टूट चुकी है, लोगबाग त्राहि-त्राहि कर रहे हैं और राष्ट्रीय प्रगतिशील गठबंधन की नेता कांग्रेस अध्यक्ष अपने विदेशी दौरों पर सरकार यानि भारत की गरीब जनता के १८०० करोड़ रुपए फूंक चुकी हैं। सरकार की फिजुलखर्ची, भ्रष्टाचार, काला धन, अकुशल प्रबंधन, पूजीपतियों की हित-रक्षा, अमेरिका परस्त नीतियों, अदूरदर्शिता और जनता के प्रति घोर असंवेदनशीलता की चरम परिणति है पेट्रोल की कीमतों में बेलगाम वृद्धि। सुरसा के मुख की तरह बढ़ती महंगाई के भी यही मुख्य कारण हैं। पिछले डेढ़ साल में हमारी भ्रष्ट केन्द्रीय सरकार ने सात बार पेट्रोल की कीमतों में बढ़ोत्तरी की। कीमत कब और कितनी बढ़ी, उसका व्योरा रुपयों में निम्नवत है -
तिथि वृद्धि कुल कीमत
२६.२.१० २.८६ ५०.५३४
२५.६.१० ३.७३ ५५.१८
१४.१२.१० ३.०० ५८.९५
१५.१.११ २.६६ ६१.७२
१५.४.११ ५.२७ ६६.९७
१५.९.११ ३.३१ ७०.५९
३.११.११ २.०१ ७२.६० (ये सभी कीमते वाराणसी में लागू हैं)
सरकार ने पता नहीं कौन सी अर्थव्यवस्था लागू की है जिसके कारण तेल कंपनियों को यह अधिकार प्राप्त हो गया है कि वे जब चाहें, जितना चाहें, घाटे का हवाला देकर कीमतें बढ़ा सकती हैं। समझ में नहीं आता कि यह स्वतंत्रता सिर्फ तेल कंपनियों को ही क्यों प्राप्त है? अगर यह स्वतंत्रता देश की बिजली कंपनियों को भी दे दी जाय, तो सभी बिजली बोर्ड फायदे में चलने लगेंगे, मोबाइल कंपनियों और बी.एस.एन.एल को दे दी जाय, तो वे अल्प समय में ही बेहिसाब मुनाफ़ा कमाकर दिखा सकते हैं, भले ही जनता की कमर टूट जाय। अलग-अलग कंपनियों के लिए अलग-अलग मापदंड और नीतियां क्यों? इस्पात, सेल बनाता है, मूल्य निर्धारण सरकार करती है। अनाज किसान पैदा करता है, समर्थन मूल्य सरकार तय करती है। तेल के मामले में मुक्त व्यापार की बात की जाती है, बाकी मामलों में सरकारी नियंत्रण की। आइये जरा एक नज़र डालें अपने पड़ोसी देशों में पेट्रोल की वर्तमान कीमत पर। कीमतें भारतीय रुपए में दिखाई गई हैं -
पाकिस्तान - २६
बांग्ला देश - २२
नेपाल - ३४
म्यामार - ३०
अफ़गानिस्तान - ३६
भारत - ७२.६०
एक ज्वलन्त प्रश्न है - क्यों अन्तर्राष्ट्रीय बाज़ारों में पेट्रोलियम पदार्थों की बढ़ती कीमतों का सर्वाधिक असर भारत पर ही पड़ता है?
भारत में पेट्रोल की कीमत इसलिए सर्वाधिक है क्योंकि हमारी सरकार विश्व की सबसे असंवेदनशील सरकार है। जनता की पीड़ा, दुःख, यातना, कष्ट या असुविधा के विषय में सोचने वाला इस सरकार में एक भी व्यक्ति नहीं है। सारी सोच आयातित है। मूल्यवृद्धि पर कांग्रेसमाता और युवराज की चुप्पी चौंकानेवाली है। वैसे सर्वसाधारण और देशहित में यह तथ्य बताना अत्यन्त आवश्यक है कि अपने देश में भी पेट्रोल की बेसिक कीमत मात्र रु.१६.५०/लीटर ही है। शेष राशि केन्द्रीय कर, एक्साइज ड्‌युटी, विक्री कर, राज्य कर और भ्रष्टाचार कर के रूप में सरकार हमारी जेबों से लेती है। देश का ८०% पेट्रोल मध्यम वर्ग या निम्न मध्यम वर्ग के नागरिकों द्वारा ही उपयोग में लाया जाता है। इस वर्ग का सरकार पर सीधे कोई राजनीतिक दबाव नहीं है। इसके उलट ८०% डीजल की खपत करने वाले बड़े-बड़े कारखाने, पावर हाउस, ट्रान्सपोर्टर, पूंजीपति और भारतीय रेल है। किसान सिर्फ ५% डीजल की खपत करते हैं, लेकिन सरकार किसानों कि दुहाई देकर डीजल की कीमत नहीं बढ़ाती है। इसके पीछे असली कारण उद्योगपतियों और कारपोरेट घरानों की सरकार में असरदार घुसपैठ ही है। दो सौ साल तक हमें अंग्रेजों ने लूटा और आज़ादी के बाद कांग्रेस लूट रही है।
जागो जनता जागो!
जागो ग्राहक जागो!!

Monday, November 7, 2011

गंगा के लिए, गंगा किनारे, सांप्रदायिक सद्‌भाव का ऐतिहासिक सम्मेलन



ऐसी ऐतिहासिक घड़ियां बहुत कम ही आती हैं जब हिन्दू और मुसलमान एक साथ, एक ही स्वर में, एक ही मंच से एक ही बात कहें। ऐसी घड़ी का साक्षात्कार गंगा भक्तों ने किया - दिनांक ५ नवंबर को सायंकाल ६ बजे, काशी के ऐतिहासिक अस्सी घाट के नवनिर्मित महामना मालवीय घाट पर जब हिन्दुओं और मुसलमानों के शीर्ष धर्मगुरु गंगा महासभा द्वारा आयोजित एक महत्त्वपूर्ण सम्मेलन में एक साथ मंच पर विराजमान हुए। कांची कामकोटि के पीठाधीश्वर जगद्‌गुरु शंकराचार्य स्वामी जयेन्द्र सरस्वती, अन्तर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त रामकथावाचक श्री मोरारी बापू, हरिद्वार के स्वामी चिदानन्द महाराज मुनिजी, मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के उपाध्यक्ष मौलाना कल्बे सादिक, लखनऊ के शाही इमाम मौलाना फ़जलुर्रहमान को मंच पर एक साथ बैठकर विचार-विमर्श करते हुए देखना अत्यन्त सुखद था। स्वामी चिदानन्द जी द्वारा गंगोत्री से लाए पवित्र गंगाजल को जिस भक्ति भाव से मौलाना कल्बे सादिक ने ग्रहण किया, वह दृश्य अभूतपूर्व था। मां गंगा की पीड़ा को सबने एकसाथ समभाव से हृदय के अन्तस्तल से अनुभव किया। सबने एक स्वर से भारत सरकार से मांग की कि गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के उद्देश्य से गंगा एक्ट पास किया जाय। साथ ही गंगा को गंगा बनानेवाली अलकनन्दा और भागीरथी पर बन रहे बांधों को रोकने की भी प्रधान मंत्री से मांग की गई। कानपुर आई.आई.टी. के पूर्व प्रोफ़ेसर जी.डी.अग्रवाल, जो संन्यास लेने के बाद स्वामी ज्ञानस्वरूप सानन्द हो चुके हैं, ने घोषणा की कि यदि मकर संक्रन्ति के पूर्व इन नदियों पर निर्माणाधीन बांधों पर निर्माण का कार्य नहीं रुका, तो वे १५ जनवरी से चौथी बार आमरण अनशन करेंगे। महामना मालवीय जी द्वारा स्थापित गंगा महासभा की ओर से सन्तों का यह समागम महामना पंडित मदन मोहन मालवीय जी की १५०वीं जयन्ती-वर्ष के अवसर पर संपन्न हुआ। उन्होंने कहा कि गंगा महोत्सव और गंगा आरती से कुछ नहीं हासिल होना है। भारत का एक-एक नागरिक व्यवहारिक रूप में गंगा को प्रदूषण मुक्त करने का संकल्प ले, तभी कुछ अच्छे परिणाम की कल्पना की जा सकती है। इस अवसर पर गंगाभक्तों को संबोधित करते हुए सन्त मोरारी बापू ने कहा कि १५०वीं जयन्ती का दसांश निकालें। १५ बिन्दु तैयार किए जाएं जिनपर गंगा के निमित्त राष्ट्रजागरण अभियान चले। प्रधान मंत्री को समग्र भारत की भावना का खयाल रखते हुए शीघ्र निर्णय लेना चाहिए। लखनऊ से आए मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के उपाध्यक्ष मौलाना कल्बे सादिक ने कहा कि जिस प्रकार लखनऊ से आनेवाली गोमती काशी से कुछ आगे औड़िहार में अपनी ही बहन गंगा से मिलकर एक हो जाती है और फिर एक होकर एक साथ आगे बढ़ती है, करोड़ों की प्यास बुझाती हैं, हजारों-लाखों एकड़ जमीन की सिंचाई करके करोड़ों टन अनाज पैदा कर करोड़ों के पेट भरती हैं, उसी प्रकार हम मुस्लिम अपने बड़े भाई हिन्दुओं के गले में बाहें डालकर आगे बढ़ने के लिए तैयार हैं। उन्होंने कहा कि आने वाले सौ वर्षों में देश में एक भी मस्जिद न बने, एक भी मन्दिर न बने, एक भी गुरुद्वारा या गिरिजाघर न बने, उन्हें तनिक भी मलाल नहीं होगा, लेकिन गंगा समाप्त हो जाएगी तो उन्हें बहुत मलाल होगा, बेइन्तहां तललीफ होगी क्योंकि तब यह देश पाकिस्तान बन जाएगा। मेरी खुदा से गुज़ारिश है कि वे कभी भी हिन्दुस्तान को पाकिस्तान न बनने दें। गंगा से ही हिन्दुस्तान है। इसलिए गंगा को बचाना सभी हिन्दू-मुसलमानों का फ़र्ज़ है।
कैलाश-मानसरोवर पर चीन सरकार की अनुमति लेकर तीर्थयात्रियों के लिए विशाल धर्मशाला बनवाने वाले स्वामी चिदानन्द महाराज मुनि जी ने सुरसरि गंगा में व्याप्त प्रदूषण के कारण हो रही मौतों का रोंगटा खड़ा कर देने वाला विवरण दिया। उन्होंने सप्रमाण बताया कि देश में आतंकवाद से भी ज्यादा मौतें गंगा का प्रदूषित जल पीने से होती हैं। लखनऊ से पधारे वहां के शाही इमाम मौलाना फ़ज़लुर्रहमान ने कुरान की आयतों का हवाला देते हुए बताया कि खुदा ने पानी के रूप में इस दुनिया को सबसे पाक चीज अता की है। कुरान के माध्यम से अल्लाताला ने यह हुक्म दिया है कि पानी को हमेशा पवित्र और साफ़सुथरा रखा जाय। खुदा के इस हुक्म को मानना हरेक मुसलमान के लिए जरुरी है। आज समूची मुस्लिम कौम हिन्दुओं के आगे शर्मिन्दा है जिसने वक्त रहते गंगा की बढ़ती दुश्वारियों की ज़ानिब उनका ध्यान नहीं दिलाया। यह गंगा ही है जिसमें स्नान करके हिन्दू पूजा-पाठ करता है और मुसलमान जिसके पानी से वज़ु करके नमाज़ पड़ता है। गंगा सिर्फ़ हिन्दू-मुसलमानों की ही नहीं, सारे हिन्दुस्तान की विरासत है, धरोहर है। हम हिन्दू और मुस्लिम अपनी भूल सुधारेंगे और साथ मिलकर गंगा को बचाएंगे। कांचिकामकोटि के जगद्‌गुरु शंकराचार्य स्वामी जयेन्द्र सरस्वती के आशीर्वचन से आयोजन को विराम दिया गया। इस अवसर पर महामना पंडित मदन मोहन मालवीय जी के पौत्र महामना मालवीय मिशन के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष जस्टिस गिरिधर मालवीय, समाजसेवी ओ.पी.केजरीवाल, महेश्वर त्रिपाठी, प्रेमस्वरूप पाठक आदि विभूतियों ने भी अपनी उपस्थिति से गंगाभक्तों का मनोबल बढ़ाया। इलाहाबाद हाई कोर्ट के ख्यातिप्राप्त अधिवक्ता और ‘गंगारत्न’ की उपाधि से सम्मानित श्री अरुण गुप्ता जी ने बताया की गंगा एक्ट का प्रारूप तैयारी के अन्तिम चरण में है। प्रयाग में जस्टिस गिरिधर मालवीय की अध्यक्षता में दिनांक २७ से ३१ दिसंबर तक होने वाली बैठक में इसे अन्तिम रूप देकर प्रधान मंत्री को सौंप दिया जाएगा।
दिनांक ५ नवंबर को अस्सी घाट पर गंगा महासभा द्वारा आयोजित सम्मेलन कई दृष्टियों से अभूतपूर्व था। हिन्दुओं के साथ मुसलमानों ने जिस उत्साह से कार्यक्रम में भाग लिया और गंगा को प्रदूषणमुक्त करने की प्रतिज्ञा ली, वह दृश्य दर्शनीय था। यह सम्मेलन भविष्य के लिए एक शुभ संदश दे गया - अखबारबाज़ी, चैनलबाज़ी, बयानबाज़ी करने से किसी भी समस्या का समाधान नहीं निकलने वाला। हिन्दुओं और मुसलमानों की ऐसी कोई समस्या नहीं जिसे दोनों समुदाय के धर्मगुरु एक साथ बैठकर हल नहीं कर सकें। जनता एकसाथ रहना चाहती है, धर्मगुरुओं के विचारों में भी काफी समानता है। बांटने का काम कभी जिन्ना और नेहरु ने किया था; आज सोनिया और मुलायम कर रहे हैं। राजनीति ने भारत को काफी नुकसान पहुंचाया है, इसके टुकड़े-टुकड़े किए हैं। हमें राजनीतिज्ञों से सावधान रहने की आवश्यकता है।

Monday, October 31, 2011

ज़िन्दगी



ज़िन्दगी एक संघर्ष है,
जब तक जिओगे, हर पल संघर्ष करना है -
आखिरी सांस तक।
ज़िन्दगी एक पाठशाला है,
हर दिन, हर आदमी से सीखना है,
आखिरी आस तक।
ज़िन्दगी एक प्रयोगशाला है,
गलतियां होंगी, सुधारना है,
आखिरी प्रयास तक।
ज़िन्दगी एक यात्रा है,
चलते रहो, आगे ही बढ़ना है,
मंज़िल आ जाने तक।
स्वर्ग-नरक एक कल्पना है,
कौन आया है लौटकर,
अनुभव बताने को।
यहां से वहां अच्छा नहीं,
जहां हो, वहीं अच्छा है,
जरुरत क्या आज़माने को।
दर्पण में नहीं, छवि देखो अपनी,
आसपास रहने वालों में,
वही आएंगे बताने को।
हर प्रश्न का उत्तर अन्दर है,
कहीं नहीं जाना है,
समाधान तलाशने को।
संसाधन सभी तुम्हारे पास हैं,
दृष्टि तो उठाओ,
उन्हें पहचानने को।
सीमित साधनों से भी,
चमत्कार संभव है,
निर्णय तो लो,
हौसला दिखाने को।

Wednesday, October 19, 2011

देश की अखंडता और अन्ना का मौन



भ्रष्टाचार के खिलाफ़ जनलोकपाल बिल के लिए अन्ना हजारे ने अप्रिल, २०११ में दिल्ली के जन्तर-मन्तर में आमरण अनशन किया। मंच की पृष्ठभूमि में भारत माता का चित्र लगा हुआ था। स्वामी अग्निवेश उस समय अन्ना के मुख्य सलाहकार हुआ करते थे। उन्होंने सलाह दी कि भारत माता का चित्र लगाने से अल्पसंख्यक समुदाय में गलत संदेश जाएगा। अनशन के दो दिन के बाद मंच की पृष्ठभूमि से भारत माता का चित्र हटा दिया गया। अन्नाजी के अगस्त आन्दोलन के दौरान देश के करोड़ों युवकों ने ‘वन्दे मातरम्‌’ और‘भारत माता की जय’ के उद्‌घोष के साथ भ्रष्टाचार के खिलाफ़ जो मोर्चा खोला वह अद्‌भुत और अविस्मरणीय है। १९७४ के जेपी आन्दोलन के बाद पहली बार देश की युवा शक्ति एकजुट होकर भ्रष्टाचार के खिलाफ़ अन्ना के नेतृत्व में प्रत्यक्ष संघर्ष के लिए उतरी। करोड़ों भारतवासियों के हृदय में राष्ट्र के लिए सबकुछ न्योछावर करने का जज्बा भरने वाले उद्‌घोष - वन्दे मातरम्‌, पर दिल्ली के जामा मस्जिद के शाही ईमाम मौलाना बुखारी ने गंभीर आपत्ति दर्ज़ की, इस नारे को ईस्लाम के खिलाफ़ बताया और मुसलमानों को अन्ना के आन्दोलन से दूर रहने का फ़तवा जारी कर दिया। अन्ना के हाथ-पांव फूल गए। फ़ौरन किरण बेदी को मनाने के लिए जामा मस्जिद भेजा। बुखारी से किरण बेदी ने घंटों मिन्नतें की लेकिन बुखारी टस से मस नहीं हुए। निराश किरण बेदी वापस आ गईं। इस घटना के कुछ ही दिन बाद अन्नाजी का अनशन समाप्त हो गया - वन्दे मातरम्‌ बच गया। अन्नाजी के अगले आन्दोलन से वन्दे मातरम्‌ और भारत माता गायब हो जाएं, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
प्रशान्त भूषण टीम अन्ना के सबसे महत्त्वपूर्ण सदस्य हैं और अन्नाजी के मुख्य सलाहकार भी। उनके और अरविन्द केजरीवाल के मुख से निकली वाणी अन्नाजी की ही मानी जाती है। अक्टुबर, २०११ के पहले सप्ताह में वाराणसी में उन्होंने बयान दिया कि कश्मीर से भारत को अपनी सेना अविलंब हटा लेनी चाहिए और जनमत संग्रह कराकर कश्मीरियों को आज़ादी दे देनी चाहिए। इस राष्ट्रद्रोही बयान के कारण १२, अक्टुबर को तीन आक्रोशित युवकों ने प्रशान्त भूषण की लात-घूसों से मरम्मत की। इस घटना के बाद प्रशान्त का बयान पुनः सुर्खियों में आया। अन्नाजी से इस बयान पर अपनी राय जाहिर करने के लिए असंख्य लोगों ने पत्र लिखकर, फेसबुक के माध्यम से, उनके ब्लाग पर टिप्पणी द्वारा आग्रह किया। उत्तर में अन्नाजी एक हफ़्ते के मौन व्रत पर चले गए। मौन रहते हुए भी वे पर्चियों पर पूछे गए प्रश्नों का लिखित उत्तर देते हैं, निर्देश भी जारी करते हैं, लेकिन प्रशान्त भूषण के अराष्ट्रीय बयान पर उन्होंने एक शब्द भी नहीं लिखा।
अन्नाजी के आन्दोलन के दौरान प्रथमतया भारत माता के चित्र का मंच की पृष्ठभूमि से अचानक गायब हो जाना, द्वितीयतया मौलाना बुखारी जैसे घोर सांप्रदायिक व्यक्ति के यहां किरण बेदी का जाकर समर्पण की मुद्रा में समर्थन के लिए याचना करना और तृतीयतया प्रशान्त भूषण का पाकिस्तान समर्थक देशद्रोही बयान क्या एक सोची-समझी रणनीति के तीन कदम नहीं हैं? क्या यह कांग्रेस की तुष्टीकरण नीति की सीधी नकल नहीं है? क्या यह बहुसंख्यक राष्ट्रवादियों का अपमान नहीं है?
मैं व्यक्तिगत रूप से अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन का प्रबल समर्थक हूं। अपने मित्रों के साथ अन्ना के समर्थन में २१ अगस्त को वाराणसी के भारत माता मन्दिर में एक दिन का प्रतीक अनशन भी रखा। मैं हृदय से चाहता हूं कि अन्नाजी का जनलोकपाल बिल शीघ्रातिशीघ्र कानून का रूप ले ले। लेकिन कश्मीर की आज़ादी की वकालत करते हुए उनके प्रिय सहयोगी प्रशान्त भूषण का देशद्रोही बयान और इसपर अन्नाजी की सप्रयास चुप्पी ने मुझे आहत किया है। कही अन्नाजी वही गलती तो नहीं दुहराने जा रहे हैं, जो १९४७ में महात्मा गांधी ने की थी? उस समय महात्मा गांधी कांग्रेस के सबसे शक्तिशाली नेता थे, राष्ट्रपिता थे। उन्होंने मुसलमानों और जिन्ना को खुश करने की हर संभव कोशिश की, लेकिन देश के बंटवारे को नहीं टाल सके। जिन्ना को कायदे आज़म का खिताब महात्मा गांधी ने ही दिया था। अन्ना हजारे को आज दूसरे गांधी का दर्ज़ा दिया जा रहा है। कही अन्नाजी भी तुष्टीकरण की पुरानी ग्रन्थि के शिकार तो नहीं हैं? कहा जाता है कि अन्नाजी ठेठ स्पष्टवादी हैं। उनसे अपेक्षा है कि इन विषयों पर मतिभ्रम की स्थिति में आए युवाशक्ति का मार्गदर्शन करेंगे। भ्रष्टाचार के मुद्दे पर सारा देश उनके साथ है लेकिन भारत की अखंडता के मुद्दे पर यदि उन्होंने प्रशान्त भूषण का समर्थन किया, तो उनके साथ भूषण द्वय ही बचेंगे। अभी तक तो ऐसा ही लग रहा है - मौनं स्वीकृतिं लक्षणं।

Saturday, October 15, 2011

सलाहकारों द्वारा अन्ना का दोहन


भोजपुरी में एक कहावत है -
साधु, चोर और लंपट, ज्ञानी,
जस अपने तस अनका जानी।
साधु, चोर, लंपट और ज्ञानी, अपने समान ही औरों को भी समझते हैं।
यह कहावत अन्ना हजारे पर शत-प्रतिशत खरी उतरती है। अन्ना जन्मजात सन्त हैं, बाल ब्रह्मचारी हैं, सत्याग्रही हैं, भारत माता के पुजारी हैं और महात्मा गांधी के सच्चे अनुयायी हैं। लेकिन यही बातें उनके सलाहकारों पर लागू नहीं होतीं। वे सभी अपना राजनीतिक और व्यक्तिगत स्वार्थ सिद्ध करने में लगे हैं और इस काम के लिए अन्ना के साफ सुथरे चरित्र का दोहन कर रहे हैं। अन्ना के सलाहकार नंबर-१ हैं - प्रशान्त भूषण। प्रशान्त जी कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह की तरह अपने विवादास्पद बयानों के लिए कुख्यात हैं। वे जब चुप रहते हैं, तो बहुत अच्छे लगते हैं, लेकिन जब बोलते हैं, तो जहर उगलते हैं। पाकिस्तान, इस्लामी आतंकवाद और नक्सलवाद के प्रबल समर्थक प्रशान्त जी ने अभी हाल ही में बयान दिया था कि कश्मीर से भारत को अपनी सेना को पूरी तरह हटाकर जनमत संग्रह के माध्यम से कश्मीर को आज़ादी दे देनी चाहिए। जिस युवा शक्ति ने अन्ना के लिए ऐतिहासिक अगस्त क्रान्ति की थी, उसी शक्ति को यह बात इतनी नागवार गुजरी कि दिनांक १२ अक्टुबर को प्रशान्त भूषण के सुप्रीम कोर्ट स्थित चैंबर में घुसकर लात-घूंसों से उनकी जबर्दस्त पिटाई कर दी। युवकों के इस व्यवहार की प्रशंसा नहीं की जा सकती, लेकिन उन्हें यह काम करने के लिए प्रशान्त भूषण ने ही मज़बूर किया था। कश्मीर के मुद्दे पर प्रशान्त जी का वह देशद्रोही वक्तव्य वन्दे मातरम और भारत माता की जय के साथ अन्ना की जयकार बोलने वाले समस्त युवा वर्ग को अत्यन्त आपत्तिजनक लगा है। यह दुर्घटना भावों की अभिव्यक्ति के रूप में आई है। यह बात और है कि तरीका प्रशंसनीय नहीं था। लेकिन कल्पना कीजिए कि अगर प्रशान्त भूषण चीन में होते और तिब्बत की आज़ादी के विषय में ऐसी ही राय जाहिर करते, तो क्या होता?
अन्ना जी ने प्रशान्त भूषण को अपने विवादास्पद बयान के लिए माफ़ी मांगने का कोई निर्देश नहीं दिया है, जबकि उनसे ऐसी अपेक्षा थी। उनकी चुप्पी को प्रशान्त भूषण के बयान का समर्थन न समझ लिया जाय, अतः उन्हें स्पष्ट रूप से उस बयान की निन्दा करनी चाहिए और अविलम्ब प्रशान्त भूषण को अपनी टीम से निकाल बाहर करना चाहिए। प्रशान्त भूषण के बयान पर अन्ना की चुप्पी उनके करोड़ों युवा भक्तों में मतिभ्रम की स्थिति पैदा कर देगी।
अन्ना स्वामी अग्निवेश पर भी बहुत विश्वास करते थे। अग्निवेश २१ अगस्त, २०११ तक टीम अन्ना के सक्रिय सदस्य थे। भला हो किरण बेदी का जिनकी खुफ़िया दृष्टि के कारण अग्निवेश बेनकाब हुए। वे टीम अन्ना नहीं, टीम सिब्बल के एजेन्ट थे। कपिल सिब्बल से स्वामी अग्निवेश की गोपनीय बातचीत का आडियो-वीडियो टेप आज भी U-Tube पर उपलब्ध है।
अन्ना के तीसरे विश्वासपात्र हैं - अरविन्द केजरीवाल। इनका अथक प्रयास है कि जनलोकपाल बिल में एन.जी.ओ., मीडिया और कारपोरेट घराने शामिल न होने पाएं। वे अपने को सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टीस और प्रधान मंत्री से भी उपर मानते हैं। ज्ञात हो कि जनलोकपाल बिल का जो मसौदा टीम अन्ना द्वारा पेश किया गया है उसमें प्रधान मंत्री और सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को शामिल करने का तो प्रावधान है लेकिन एन.जी.ओ., मीडिया और कारपोरेट घराने को बाहर रखने की सिफारिश की गई है। कारण है टीम अन्ना के अरविन्द केजरीवाल, मनीष सिसोदिया और किरण बेदी के द्वारा कई एन.जी.ओ. संचालित होते हैं जिन्हें कारपोरेट घरानों से करोड़ों रुपए प्राप्त होते हैं। इन्हें ईसाई मिशनरियों, इस्लामी आतंकवादियों और नक्सलवादियों की तरह विदेशों से भी अकूत धन प्राप्त होते हैं। प्रसिद्ध अंगेरेजी पत्रिका OUTLOOK ने अपने १९.९.११ के अंक में अमेरिका के फोर्ड फाउन्डेशन से वित्तीय सहायता प्राप्त कई एन.जी.ओ. के नाम का खुलासा, प्राप्त रकम के साथ किया है। अरविन्द केजरीवाल और मनीष सिसोदिया द्वारा संयुक्त रूप से चलाए जाने वाले एन.जी.ओ. ‘कबीर’ ने फोर्ड फाउन्डेशन से ३,९७,००० डालर प्राप्त किए। अन्य लाभार्थियों की सूची निम्नवत है -
१. योगेन्द्र यादव (CSDS) - 3,50,000 डालर
२. पार्थिव साह (CMAC) - 255000 डालर
३. नन्दन एम निलकेनी (NCAER) - 230000 डालर
४. अमिताभ बेहर, National Foundation for India - 2500000 डालर
५. ग्लेडविन जोसफ (ATREE) - 1319031 डालर
६. किनशुक मित्रा (WIN ROCK) - 800000 डालर
७. संदीप दीक्षित (CBGA) - 650000 डालर
८. इन्दिरा जयसिंह (Lawyers' Collective) - 1240000 डालर
९. Shiwadas Centre for Advocacy & Research - 500000 डालर
१०. प्रताप भान मेहता (Centre for Policy Research) - 687888 डालर
११. जे. महन्ती (Credibility Alliance) - 600000 डालर
१२. JNU Law & Governance - 400000 डालर
फोर्ड पाउन्डेशन के अतिरिक्त इन लोगों ने कोका कोला और लेहमन ब्रदर्स से भी करोड़ों रुपए प्राप्त किए हैं। आजकल एन.जी.ओ. चलाना बहुत फ़ायदे का धंधा है। इसपर मन्दी का असर नहीं पड़ता है। मनीष सिसोदिया जी टीवी के कर्ताधर्ता हैं। इन्होंने अन्ना आंदोलन में सभी न्यूज चैनलों द्वारा रामलीला मैदान के कार्यक्रमों के २४-घंटे के कवरेज की प्रशंसनीय अभूतपूर्व व्यवस्था की थी। प्रस्तावित जनलोकपाल बिल की परिधि से एन.जी.ओ., मीडिया और कारपोरेट घराने को बाहर रखने का यही मूल कारण है।
अन्ना के एक और विश्वस्त सहयोगी हैं, पूर्व कानून मंत्री शान्तिभूषण। वे मुकदमा कम लड़ते हैं क्रिकेट की तर्ज़ पर मुकदमा फिक्स ज्यादा करते हैं। मुलायम सिंह और अमर सिंह के साथ एक मुकदमें के लिए २ करोड़ रुपए के खर्चे में सुप्रीम कोर्ट से मनपसन्द निर्णय दिलवाने संबन्धित उनकी बातचीत का व्योरा कुछ ही महीने पूर्व एक सीडी के माध्यम से सभी न्यूज चैनलों ने प्रसारित किया था। मुलायम ही नहीं, उत्तर प्रदेश की वर्तमान मुख्य मंत्री मायावती के भी वे कानूनी सलाहकार हैं। स्मरणीय है कि ये दोनों आय से अधिक संपत्ति रखने के मामलों में सुप्रीम कोर्ट में कई मुकदमें लड़ रहे हैं। अन्ना जी भ्रष्टाचार का जड़-मूल से उन्मूलन चाहते हैं और उनके सलाहकार मुलायम और मायावती जैसे लोगों को संरक्षण देते हैं। कैसा विरोधाभास है! घोर आश्चर्य तो तब हुआ जब अन्ना जी के सलाहकारों ने उन्हें तो आमरण अनशन पर बैठा दिया लेकिन स्वयं एक दिन का प्रतीक अनशन भी नहीं किया। किरण बेदी तो रंग बिरंगे परिधान बदलने में ही व्यस्त रहीं। हद तो तब हो गई जब उन्होंने अन्ना जी की उपस्थिति में उसी मंच से दुपट्टे की सहायता से तरह-तरह के नाटक अभिनीत करना शुरु कर दिया। अन्ना जी इतने सरल हृदय और शरीफ़ हैं कि वे सबमें अपनी ही छवि देखते हैं। इसे गुण भी कह सकते हैं और सद्‌गुण विकृति भी। अन्ना जी, चाटुकार और स्वार्थी सलाहकारों से होशियार रहने की जरुरत है, क्योंकि ----------
ALL IS NOT WELL