Wednesday, October 19, 2011

देश की अखंडता और अन्ना का मौन



भ्रष्टाचार के खिलाफ़ जनलोकपाल बिल के लिए अन्ना हजारे ने अप्रिल, २०११ में दिल्ली के जन्तर-मन्तर में आमरण अनशन किया। मंच की पृष्ठभूमि में भारत माता का चित्र लगा हुआ था। स्वामी अग्निवेश उस समय अन्ना के मुख्य सलाहकार हुआ करते थे। उन्होंने सलाह दी कि भारत माता का चित्र लगाने से अल्पसंख्यक समुदाय में गलत संदेश जाएगा। अनशन के दो दिन के बाद मंच की पृष्ठभूमि से भारत माता का चित्र हटा दिया गया। अन्नाजी के अगस्त आन्दोलन के दौरान देश के करोड़ों युवकों ने ‘वन्दे मातरम्‌’ और‘भारत माता की जय’ के उद्‌घोष के साथ भ्रष्टाचार के खिलाफ़ जो मोर्चा खोला वह अद्‌भुत और अविस्मरणीय है। १९७४ के जेपी आन्दोलन के बाद पहली बार देश की युवा शक्ति एकजुट होकर भ्रष्टाचार के खिलाफ़ अन्ना के नेतृत्व में प्रत्यक्ष संघर्ष के लिए उतरी। करोड़ों भारतवासियों के हृदय में राष्ट्र के लिए सबकुछ न्योछावर करने का जज्बा भरने वाले उद्‌घोष - वन्दे मातरम्‌, पर दिल्ली के जामा मस्जिद के शाही ईमाम मौलाना बुखारी ने गंभीर आपत्ति दर्ज़ की, इस नारे को ईस्लाम के खिलाफ़ बताया और मुसलमानों को अन्ना के आन्दोलन से दूर रहने का फ़तवा जारी कर दिया। अन्ना के हाथ-पांव फूल गए। फ़ौरन किरण बेदी को मनाने के लिए जामा मस्जिद भेजा। बुखारी से किरण बेदी ने घंटों मिन्नतें की लेकिन बुखारी टस से मस नहीं हुए। निराश किरण बेदी वापस आ गईं। इस घटना के कुछ ही दिन बाद अन्नाजी का अनशन समाप्त हो गया - वन्दे मातरम्‌ बच गया। अन्नाजी के अगले आन्दोलन से वन्दे मातरम्‌ और भारत माता गायब हो जाएं, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
प्रशान्त भूषण टीम अन्ना के सबसे महत्त्वपूर्ण सदस्य हैं और अन्नाजी के मुख्य सलाहकार भी। उनके और अरविन्द केजरीवाल के मुख से निकली वाणी अन्नाजी की ही मानी जाती है। अक्टुबर, २०११ के पहले सप्ताह में वाराणसी में उन्होंने बयान दिया कि कश्मीर से भारत को अपनी सेना अविलंब हटा लेनी चाहिए और जनमत संग्रह कराकर कश्मीरियों को आज़ादी दे देनी चाहिए। इस राष्ट्रद्रोही बयान के कारण १२, अक्टुबर को तीन आक्रोशित युवकों ने प्रशान्त भूषण की लात-घूसों से मरम्मत की। इस घटना के बाद प्रशान्त का बयान पुनः सुर्खियों में आया। अन्नाजी से इस बयान पर अपनी राय जाहिर करने के लिए असंख्य लोगों ने पत्र लिखकर, फेसबुक के माध्यम से, उनके ब्लाग पर टिप्पणी द्वारा आग्रह किया। उत्तर में अन्नाजी एक हफ़्ते के मौन व्रत पर चले गए। मौन रहते हुए भी वे पर्चियों पर पूछे गए प्रश्नों का लिखित उत्तर देते हैं, निर्देश भी जारी करते हैं, लेकिन प्रशान्त भूषण के अराष्ट्रीय बयान पर उन्होंने एक शब्द भी नहीं लिखा।
अन्नाजी के आन्दोलन के दौरान प्रथमतया भारत माता के चित्र का मंच की पृष्ठभूमि से अचानक गायब हो जाना, द्वितीयतया मौलाना बुखारी जैसे घोर सांप्रदायिक व्यक्ति के यहां किरण बेदी का जाकर समर्पण की मुद्रा में समर्थन के लिए याचना करना और तृतीयतया प्रशान्त भूषण का पाकिस्तान समर्थक देशद्रोही बयान क्या एक सोची-समझी रणनीति के तीन कदम नहीं हैं? क्या यह कांग्रेस की तुष्टीकरण नीति की सीधी नकल नहीं है? क्या यह बहुसंख्यक राष्ट्रवादियों का अपमान नहीं है?
मैं व्यक्तिगत रूप से अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन का प्रबल समर्थक हूं। अपने मित्रों के साथ अन्ना के समर्थन में २१ अगस्त को वाराणसी के भारत माता मन्दिर में एक दिन का प्रतीक अनशन भी रखा। मैं हृदय से चाहता हूं कि अन्नाजी का जनलोकपाल बिल शीघ्रातिशीघ्र कानून का रूप ले ले। लेकिन कश्मीर की आज़ादी की वकालत करते हुए उनके प्रिय सहयोगी प्रशान्त भूषण का देशद्रोही बयान और इसपर अन्नाजी की सप्रयास चुप्पी ने मुझे आहत किया है। कही अन्नाजी वही गलती तो नहीं दुहराने जा रहे हैं, जो १९४७ में महात्मा गांधी ने की थी? उस समय महात्मा गांधी कांग्रेस के सबसे शक्तिशाली नेता थे, राष्ट्रपिता थे। उन्होंने मुसलमानों और जिन्ना को खुश करने की हर संभव कोशिश की, लेकिन देश के बंटवारे को नहीं टाल सके। जिन्ना को कायदे आज़म का खिताब महात्मा गांधी ने ही दिया था। अन्ना हजारे को आज दूसरे गांधी का दर्ज़ा दिया जा रहा है। कही अन्नाजी भी तुष्टीकरण की पुरानी ग्रन्थि के शिकार तो नहीं हैं? कहा जाता है कि अन्नाजी ठेठ स्पष्टवादी हैं। उनसे अपेक्षा है कि इन विषयों पर मतिभ्रम की स्थिति में आए युवाशक्ति का मार्गदर्शन करेंगे। भ्रष्टाचार के मुद्दे पर सारा देश उनके साथ है लेकिन भारत की अखंडता के मुद्दे पर यदि उन्होंने प्रशान्त भूषण का समर्थन किया, तो उनके साथ भूषण द्वय ही बचेंगे। अभी तक तो ऐसा ही लग रहा है - मौनं स्वीकृतिं लक्षणं।

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