Saturday, October 15, 2011

सलाहकारों द्वारा अन्ना का दोहन


भोजपुरी में एक कहावत है -
साधु, चोर और लंपट, ज्ञानी,
जस अपने तस अनका जानी।
साधु, चोर, लंपट और ज्ञानी, अपने समान ही औरों को भी समझते हैं।
यह कहावत अन्ना हजारे पर शत-प्रतिशत खरी उतरती है। अन्ना जन्मजात सन्त हैं, बाल ब्रह्मचारी हैं, सत्याग्रही हैं, भारत माता के पुजारी हैं और महात्मा गांधी के सच्चे अनुयायी हैं। लेकिन यही बातें उनके सलाहकारों पर लागू नहीं होतीं। वे सभी अपना राजनीतिक और व्यक्तिगत स्वार्थ सिद्ध करने में लगे हैं और इस काम के लिए अन्ना के साफ सुथरे चरित्र का दोहन कर रहे हैं। अन्ना के सलाहकार नंबर-१ हैं - प्रशान्त भूषण। प्रशान्त जी कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह की तरह अपने विवादास्पद बयानों के लिए कुख्यात हैं। वे जब चुप रहते हैं, तो बहुत अच्छे लगते हैं, लेकिन जब बोलते हैं, तो जहर उगलते हैं। पाकिस्तान, इस्लामी आतंकवाद और नक्सलवाद के प्रबल समर्थक प्रशान्त जी ने अभी हाल ही में बयान दिया था कि कश्मीर से भारत को अपनी सेना को पूरी तरह हटाकर जनमत संग्रह के माध्यम से कश्मीर को आज़ादी दे देनी चाहिए। जिस युवा शक्ति ने अन्ना के लिए ऐतिहासिक अगस्त क्रान्ति की थी, उसी शक्ति को यह बात इतनी नागवार गुजरी कि दिनांक १२ अक्टुबर को प्रशान्त भूषण के सुप्रीम कोर्ट स्थित चैंबर में घुसकर लात-घूंसों से उनकी जबर्दस्त पिटाई कर दी। युवकों के इस व्यवहार की प्रशंसा नहीं की जा सकती, लेकिन उन्हें यह काम करने के लिए प्रशान्त भूषण ने ही मज़बूर किया था। कश्मीर के मुद्दे पर प्रशान्त जी का वह देशद्रोही वक्तव्य वन्दे मातरम और भारत माता की जय के साथ अन्ना की जयकार बोलने वाले समस्त युवा वर्ग को अत्यन्त आपत्तिजनक लगा है। यह दुर्घटना भावों की अभिव्यक्ति के रूप में आई है। यह बात और है कि तरीका प्रशंसनीय नहीं था। लेकिन कल्पना कीजिए कि अगर प्रशान्त भूषण चीन में होते और तिब्बत की आज़ादी के विषय में ऐसी ही राय जाहिर करते, तो क्या होता?
अन्ना जी ने प्रशान्त भूषण को अपने विवादास्पद बयान के लिए माफ़ी मांगने का कोई निर्देश नहीं दिया है, जबकि उनसे ऐसी अपेक्षा थी। उनकी चुप्पी को प्रशान्त भूषण के बयान का समर्थन न समझ लिया जाय, अतः उन्हें स्पष्ट रूप से उस बयान की निन्दा करनी चाहिए और अविलम्ब प्रशान्त भूषण को अपनी टीम से निकाल बाहर करना चाहिए। प्रशान्त भूषण के बयान पर अन्ना की चुप्पी उनके करोड़ों युवा भक्तों में मतिभ्रम की स्थिति पैदा कर देगी।
अन्ना स्वामी अग्निवेश पर भी बहुत विश्वास करते थे। अग्निवेश २१ अगस्त, २०११ तक टीम अन्ना के सक्रिय सदस्य थे। भला हो किरण बेदी का जिनकी खुफ़िया दृष्टि के कारण अग्निवेश बेनकाब हुए। वे टीम अन्ना नहीं, टीम सिब्बल के एजेन्ट थे। कपिल सिब्बल से स्वामी अग्निवेश की गोपनीय बातचीत का आडियो-वीडियो टेप आज भी U-Tube पर उपलब्ध है।
अन्ना के तीसरे विश्वासपात्र हैं - अरविन्द केजरीवाल। इनका अथक प्रयास है कि जनलोकपाल बिल में एन.जी.ओ., मीडिया और कारपोरेट घराने शामिल न होने पाएं। वे अपने को सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टीस और प्रधान मंत्री से भी उपर मानते हैं। ज्ञात हो कि जनलोकपाल बिल का जो मसौदा टीम अन्ना द्वारा पेश किया गया है उसमें प्रधान मंत्री और सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को शामिल करने का तो प्रावधान है लेकिन एन.जी.ओ., मीडिया और कारपोरेट घराने को बाहर रखने की सिफारिश की गई है। कारण है टीम अन्ना के अरविन्द केजरीवाल, मनीष सिसोदिया और किरण बेदी के द्वारा कई एन.जी.ओ. संचालित होते हैं जिन्हें कारपोरेट घरानों से करोड़ों रुपए प्राप्त होते हैं। इन्हें ईसाई मिशनरियों, इस्लामी आतंकवादियों और नक्सलवादियों की तरह विदेशों से भी अकूत धन प्राप्त होते हैं। प्रसिद्ध अंगेरेजी पत्रिका OUTLOOK ने अपने १९.९.११ के अंक में अमेरिका के फोर्ड फाउन्डेशन से वित्तीय सहायता प्राप्त कई एन.जी.ओ. के नाम का खुलासा, प्राप्त रकम के साथ किया है। अरविन्द केजरीवाल और मनीष सिसोदिया द्वारा संयुक्त रूप से चलाए जाने वाले एन.जी.ओ. ‘कबीर’ ने फोर्ड फाउन्डेशन से ३,९७,००० डालर प्राप्त किए। अन्य लाभार्थियों की सूची निम्नवत है -
१. योगेन्द्र यादव (CSDS) - 3,50,000 डालर
२. पार्थिव साह (CMAC) - 255000 डालर
३. नन्दन एम निलकेनी (NCAER) - 230000 डालर
४. अमिताभ बेहर, National Foundation for India - 2500000 डालर
५. ग्लेडविन जोसफ (ATREE) - 1319031 डालर
६. किनशुक मित्रा (WIN ROCK) - 800000 डालर
७. संदीप दीक्षित (CBGA) - 650000 डालर
८. इन्दिरा जयसिंह (Lawyers' Collective) - 1240000 डालर
९. Shiwadas Centre for Advocacy & Research - 500000 डालर
१०. प्रताप भान मेहता (Centre for Policy Research) - 687888 डालर
११. जे. महन्ती (Credibility Alliance) - 600000 डालर
१२. JNU Law & Governance - 400000 डालर
फोर्ड पाउन्डेशन के अतिरिक्त इन लोगों ने कोका कोला और लेहमन ब्रदर्स से भी करोड़ों रुपए प्राप्त किए हैं। आजकल एन.जी.ओ. चलाना बहुत फ़ायदे का धंधा है। इसपर मन्दी का असर नहीं पड़ता है। मनीष सिसोदिया जी टीवी के कर्ताधर्ता हैं। इन्होंने अन्ना आंदोलन में सभी न्यूज चैनलों द्वारा रामलीला मैदान के कार्यक्रमों के २४-घंटे के कवरेज की प्रशंसनीय अभूतपूर्व व्यवस्था की थी। प्रस्तावित जनलोकपाल बिल की परिधि से एन.जी.ओ., मीडिया और कारपोरेट घराने को बाहर रखने का यही मूल कारण है।
अन्ना के एक और विश्वस्त सहयोगी हैं, पूर्व कानून मंत्री शान्तिभूषण। वे मुकदमा कम लड़ते हैं क्रिकेट की तर्ज़ पर मुकदमा फिक्स ज्यादा करते हैं। मुलायम सिंह और अमर सिंह के साथ एक मुकदमें के लिए २ करोड़ रुपए के खर्चे में सुप्रीम कोर्ट से मनपसन्द निर्णय दिलवाने संबन्धित उनकी बातचीत का व्योरा कुछ ही महीने पूर्व एक सीडी के माध्यम से सभी न्यूज चैनलों ने प्रसारित किया था। मुलायम ही नहीं, उत्तर प्रदेश की वर्तमान मुख्य मंत्री मायावती के भी वे कानूनी सलाहकार हैं। स्मरणीय है कि ये दोनों आय से अधिक संपत्ति रखने के मामलों में सुप्रीम कोर्ट में कई मुकदमें लड़ रहे हैं। अन्ना जी भ्रष्टाचार का जड़-मूल से उन्मूलन चाहते हैं और उनके सलाहकार मुलायम और मायावती जैसे लोगों को संरक्षण देते हैं। कैसा विरोधाभास है! घोर आश्चर्य तो तब हुआ जब अन्ना जी के सलाहकारों ने उन्हें तो आमरण अनशन पर बैठा दिया लेकिन स्वयं एक दिन का प्रतीक अनशन भी नहीं किया। किरण बेदी तो रंग बिरंगे परिधान बदलने में ही व्यस्त रहीं। हद तो तब हो गई जब उन्होंने अन्ना जी की उपस्थिति में उसी मंच से दुपट्टे की सहायता से तरह-तरह के नाटक अभिनीत करना शुरु कर दिया। अन्ना जी इतने सरल हृदय और शरीफ़ हैं कि वे सबमें अपनी ही छवि देखते हैं। इसे गुण भी कह सकते हैं और सद्‌गुण विकृति भी। अन्ना जी, चाटुकार और स्वार्थी सलाहकारों से होशियार रहने की जरुरत है, क्योंकि ----------
ALL IS NOT WELL

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