Monday, December 26, 2016

बेनकाब मायावती

        ८ नवंबर की रात के बाद मोदी द्वारा नोटबन्दी किए जाने के बाद लगभग सभी विपक्षी दल विक्षिप्त हो गए। अब उन्होंने खुद ही प्रमाण देना शुरु कर दिया है कि उनकी यह दशा क्यों हुई। कल दिनांक २६ दिसंबर को प्रवर्तन निर्देशालय द्वारा जारी की गई सूचना में यह खुलासा हुआ है कि बसपा सुप्रिमो मैडम मायावती ने दिल्ली के करोल बाग स्थित यूनियन बैंक के अपनी पार्टी के खाते में ८ दिसंबर के बाद १०४.३६ करोड़ रुपए के पुराने ५०० और हज़ार रुपए के नोट जमा कराए। विवरण निम्नवत है --
दिनांक             राशि
१०.११.१६          ३६ लाख
२.१२.१६ १५.० करोड़
३.१२.१६ १५.८ करोड़
५.१२.१६ १७.० करोड़
६.१२.१६ १५.० करोड़
७.१२.१६ १८.० करोड़
८.१२.१६ १८.० करोड़
९.१२.१६ ५.२ करोड़
कुल १०४.३६ करोड़
इनमें से १०२ करोड़ रुपए पुराने १००० रुपए तथा शेष २.३६ करोड़ रुपए ५०० रुपए के नोट थे। यही नहीं उनके भाई आनन्द कुमार के उसी बैंक के खाते में भी इसी अवधि में १.४३ करोड़ के पुराने नोट जमा कराए गए। मायावती हमेशा की तरह यही कहेंगी कि ये रुपए गरीब पार्टी के कार्यकर्ताओं द्वारा दिए गए चन्दे थे। मायावती कुछ भी बहाने बनाएं लेकिन यह सत्य है कि इतनी बड़ी धनराशि घर में रखने के पीछे पार्टी का भला कम और अपनी धनलिप्सा की प्रवृत्ति ज्यादा थी। मायावती से ममता तनिक भी कम विक्षिप्त नहीं हैं। जो नेता जितना विक्षिप्त है, मोदी को उसी अनुपात में गालियां दे रहा है। सूत्र बताते हैं कि स्वास्थ्य लाभ करने के बाद जय ललिता को नोटबन्दी की जब जानकारी हुई, तो वे सदमा नहीं झेल पाईं। राहुल गांधी भी विक्षिप्तता की सीमा पार कर गए हैं। अगर उनके, उनकी माताजी और बहन-बहनोई के यहां छापे डाले जांय, तो मायावती के काले धन से कई गुणा ज्यादा काला धन प्राप्त होगा। लेकिन मोदी के हाथ बंधे हुए हैं। उनके घर पर छापा डालने से यह प्रचार किया जाएगा कि मोदी ने राजनीतिक बदला लेने के लिए छापा डलवाया था।
           हिन्दुस्तान में सबसे भ्रष्ट प्रजाति नेताओं की है। इन्होंने अपने स्वार्थ के लिए समाज के हर तबके, व्यापारियों और नौकरशाहों को भ्रष्ट बना रखा है। सोनिया गांधी ने अगस्ता हेलिकाप्टर घोटाले में पूर्व वायु सेनाध्यक्ष को भी लपेट लिया। विश्वास नहीं होता कि कोई सेनाध्यक्ष बिना किसी बड़े दबाव के नियमों में फेरबदल करके सोनिया जी की पसन्दीदा फ़र्म को क्रयादेश दिला सकता है। लेकिन वे मायावती की तरह मूर्ख भी नहीं हैं कि काला धन बैंक में जमा करके बदनामी मोल लें। उनके और अन्य नेताओं के तहखाने से काला धन निकालने के लिए मोदी और जेटली को नई युक्ति सोचनी पड़ेगी। विदेशी खातों की पूर्ण और पुष्ट जानकारी प्राप्त होने के बाद ही इनपर शिकंजा कसना संभव हो पाएगा। नोटबन्दी के बाद विदेशी कालाधन को शीघ्र देश में लाए जाने की अब अपेक्षा की जा रही है। मोदी अगर इसमें सफल हो गए तो इतिहास पुरुष बन जायेंगे। मुलायम, ममता, लालू, करुणानिधि, शरद पवार और अन्य धंधेबाज नेता मायावती की तरह बैंक में भले ही कालाधन जमा न करें, परन्तु चार दिनों के बाद अपने नोटों को रद्दी में बदलने से नहीं रोक सकते।
प्रधान मन्त्री जी से अनुरोध है कि वे विपक्ष के भौंकने से विचलित हुए बिना इनके परिसर पर छापा डलवाएं। लोढ़ा और भुजियावाले के यहां इनके धन का बहुत छोटा हिस्सा था। सिर्फ कांग्रेस ही नहीं, मुलायम, मायावती, जय ललिता, करुणानिधि, राजा और पवार जैसे नेताओं ने भी देश को खूब लूटा है। इन्हें भी बेनकाब करने का अब समय आ गया है।

Sunday, November 27, 2016

हम नहीं सुधरेंगे

      भारत की पुलिस और भारत की रेलवे ने यह कसम खा रखी है कि “हम नहीं सुधरेंगे"। रेल मन्त्री सुरेश प्रभु के बारे में सुना था कि वे एक कर्मठ और संवेदनशील नेता हैं। प्रधान मन्त्री नरेन्द्र मोदी ने उनके इन्हीं गुणों को ध्यान में रखकर उन्हें रेल मन्त्री बनाया था, लेकिन पिछले ढाई सालों में रेलवे की गुणवत्ता में कोई सुधार नहीं हुआ, उल्टे व्यवस्था बिगड़ती ही गई। पिछले रविवार को कानपुर के पास हुई रेल दुर्घटना ने दिल को झिंझोड़कर रख दिया। रेलवे द्वारा ट्रैकों के समुचित रखरखाव की कलई खुल गई। प्रधान मन्त्री तेज रफ़्तार ट्रेनों और बुलेट ट्रेन की बात करते हैं। क्या ऐसी ट्रेनें चलाना भारतीय रेल के लिए संभव है? कहावत है - Speed gives thrill but invites danger. रेलवे एक सफेद हाथी बन चुका है, जिसमें किसी सुधार की संभावना नहीं दिखाई दे रही। ट्रेनों की रफ्तार जिस गति से बढ़ेगी यात्रियों की मौत भी उसी रफ्तार से होगी। एक बहुत साधारण सा काम है - ट्रेनों का सही समय से परिचालन। लेकिन रेलवे को भारत की जनता के कीमती समय की कोई परवाह नहीं है। सुरेश प्रभु जी को मैंने फ़ेसबुक और ट्विटर के माध्यम से ट्रेनों के सही समय पर परिचालन के लिए कई बार लिखा, लेकिन आज तक न कोई सुधार हुआ और न ही उन्होंने कोई उत्तर देने की ज़हमत उठाई। इतने संवेदनशील हैं हमारे रेल मन्त्री। मेरे घर को एक ट्रेन जाती है - लिच्छवी एक्सप्रेस -- १४००५/१४००६। पिछले हफ्ते अप और डाउन दोनों ट्रेनें लगभग १२ घंटे विलंब से चलीं। आज भी यह उतने ही विलंब से चल रही है। यह ट्रेन कभी भी सही समय से नहीं चलती। मैंने इसे समय से चलाने के लिए रेल मन्त्री से कई बार आग्रह किया, लेकिन हर बार ढाक के तीन पात का ही परिणाम रहा।
ट्रेनों में आदमी पिज्जा और बर्गर खाने के लिए सफर नहीं करता। यात्री की एक ही अपेक्षा रहती है -- समय पर सुरक्षित अपने गंतव्य तक पहुंच जाना। रेलवे इस उद्देश्य में पूरी तरह नाकाम साबित हुआ है। भ्रष्टाचार भी चरम पर है। प्रतीक्षा सूची के यात्री ताकते रह जाते हैं और टीटीई पैसा लेकर दूसरों को बर्थ आवंटित कर देते हैं। पता नही सायबर कैफ़े वालों के पास कौन सा कोटा होता है कि वे किसी भी ट्रेन में किसी भी दिन का कन्फर्म टिकट निकाल लेते हैं। प्रधान मन्त्री के स्वच्छता अभियान को रेलवे ठेंगा दिखा रहा है। छोटे-छोटे रेलवे स्टेशन के शौचालय के पास से आपको नाक दबाकर निकलना पड़ेगा। जेनरल बोगी में सफर करने वालों को तो सरकार जानवर से भी बदतर मानती है। किसी भी लंबी दूरी के ट्रेन में जेनरल बोगी में बोरों की तरह भरे यात्रियों को किसी भी दिन देखा जा सकता है। लोग शौचालयों में अखबार बिछाकर बैठे मिलते हैं। यात्रियों को मल-मूत्र त्यागने की भी सुविधा नहीं मिलती। स्टेशनों पर जिसमें दिल्ली और मुंबई भी शामिल हैं, प्रतीक्षा कर रहे यात्रियों को बैठने के लिए पर्याप्त संख्या में बेन्च भी नहीं हैं। लोग फ़र्श पर ही बैठे देखे जा सकते हैं। 
इन्दिरा गांधी ने इमरजेन्सी में ढेर सारे अत्याचार किए थे, लेकिन इमर्जेन्सी को ट्रेनों के सही समय पर चलने के लिए आज भी याद किया जाता है। आखिर क्या कारण है कि मोदी राज में अधिकांश ट्रेनें लेट चल रही हैं? क्या यह समस्या नियंत्रण के बाहर है? यदि हां, तो रेल मन्त्री इसे स्वीकार करते हुए इस्तीफ़ा दें। अकेले मोदी क्या-क्या कर लेंगे। अगर उनके मन्त्रिमंडल में ऐसे नक्कारा मन्त्री हों तो अच्छे दिनों की कल्पना भी नहीं की जा सकती।

Thursday, November 17, 2016

एक पाती प्रधान मन्त्री के नाम


 प्रिय मोदी बाबू,
            भगवान तोके हमेशा स्वस्थ और प्रसन्न रखें!
      आगे समाचार ई हौ कि आजकल लोग भगवान को कम और तोके जियादा याद कर रहे हैं। पान की दूकान से लेकर स्टेट बैंक तक लोग केवल तुम्हरे नाम की माला जप रहे हैं। अइसा स्ट्राइक काहे किए कि गरीब से अमीर तक की जुबान पर न राम हैं, न कृष्ण हैं, न मोहम्मद हैं, न ईसा हैं। धनतरिणी को पार करने के लिए सब तुम्हारा ही नाम जप रहे हैं। बचपन में सुनते रहे कि भगवान एक घड़ी में राई को पहाड़ और पहाड़ को राई बना सकते हैं। बस सुना ही था, कभी देखा नहीं था। तुमने दिखा भी दिया। एक ही रात में मायावती का मोटा-तगड़ा हाथी करिया बकरी बन गया , अखिलेश की सयकिल पंक्चर हो गई. राहुल का हाथ अपने ही गाल पर तमाचा लगाने लगा, केजरीवाल का फ़ोर्ड फ़ाउन्डेशन डालर रखकर भी कंगाल हो गया, अतंकवादी दिवालिया हो गए और नक्सलवादी फेनु Have not हो गए। नेपाल और बांगला देश से आनेवाले पाकिस्तानी नोटों के सहारे सत्ता हासिल करनेवाली ममता की तो भगई ही ढीली हो गई। गनीमत है कि जयललिता अभी पूरी तरह स्वस्थ नहीं है, वरना वह तो डेलीगेशन लेकर डोनाल्ड ट्रम्प के पास जाती। बड़ा गड़बड़ काम किया मोदी बाबू तुमने। शिवसेना की हफ़्ता वसूली बंद करा दी और दाउद के नोटों को कागज का टुकड़ा बना दिया। कोई नोट गंगा में बहा रहा है, तो कोई जला रहा है, तो कोई कूड़े में फेंक रहा है। वाह भाई तूने तो कमाल कर दिया। २-जी, ३-जी, कोयला घोटाला, हेलिकोप्टर घोटाला के नायक-नायिका के हृदय के टुकड़े युवराज पप्पू को महज ४००० रुपए के लिए लाईन में लगवा दिया। दो करोड़ की गाड़ी लाईन में खड़ी तो हो नहीं सकती, इसलिए बेचारे को पसीना बहाना ही पड़ा। अब तो लालू चारा काटने वाली मशीन में 500 और हजार के नोटों को काटकर अपनी गायों को खिलायेंगे। भैया मोदी! तुमने तो अमर सिंह को सिंगापुर में इलाज कराने के लायक भी नहीं छोड़ा। शिवपाल और मुलायम कैसे चुनाव लड़ेंगे? एक ठे बात समझ में नहीं आ रही है। ई नितिशवा तोहरे समर्थन में कैसे आ गया। लालू की उंगली पकड़ कर चलने वाला खुलकर नोटबन्दी का समर्थन कर रहा है। पर्दे के पीछे कोई डिलिंग हो गई है क्या? वैसे उहो लालू के अत्याचार से छटपटाइये रहा है। पाला बदलने का  वह पुराना खिलाड़ी है। कबहूं कुछ हो सकता है।
      सुप्रीम कोर्ट के टी.एस. ठाकुर से जरा होशिया रहना बचवा। ई मत समझना कि व्यापरियों, उद्योगपतियों, दाउदों, आतंकवादियों, नेताओं और नौकरशाहों के पास ही १०००-५०० का जखीरा है। जज भी कुछ कम नहीं हैं। एक सिरफिरे ने सुप्रीम कोर्ट में तोहरे निर्णय के खिलाफ जनहित याचिका दायर कर रखी है। हालांकि बंबई और चेन्नई हाई कोर्ट ने ऐसी याचिका खारिज कर दी है, लेकिन ठाकुर का कोई भरोसा नहीं है। उसका बाप कांग्रेस के कोटे से कश्मीर में मन्त्री रह चुका है। उसकी काट सोचकर रखना बचवा। वैसे हमको भी एक दिन बैंक से पैसा निकालने मे तीन घंटे तक लाईन में खड़ा रहना पड़ा, लेकिन हमको कोई शिकायत नहीं है। देश के लिए सेना के जवान जान कुर्बान कर रहे हैं, तुम जान कुर्बान करने पर आमादा हो। ऐसे में हमारे २-३ घंटे अगर कुर्बान हो जाते हैं तो कैसा गिला और कैसी शिकायत। बचवा, इसी तरह छप्पन इन्च के सीने के साथ काम करते रहो। हाथी चलता है, तो कुकुर सारे भूंकते ही है।
     थोड़ा लिखना, ज्यादा समझना। हम इहाँ राजी-खुशी हैं। तुम बुलन्द रहना।

     इति। तुम्हारा -- चाचा बनारसी

Monday, October 24, 2016

एक पाती अखिलेश बचवा के नाम

प्रिय बबुआ अखिलेश,
राजी खुशी रहो।
आगे समाचार ई है कि टीवी चैनल और अखबार वाले तोके तरह-तरह की सलाह दे रहे हैं। कुछ लोग तो तोके हीरो बनाए हुए हैं और कुछ लोग नालायक बेटा। हम भी सोचे कि इस संकट की घड़ी में चाचा होने के नाते तुमको कुछ सलाह देइये दें। बचवा ई बात का खयाल रखना कि हम शिवपाल चाचा या अमर अंकल नहीं हैं, हम बनारसी चाचा हैं। आजकल तुम जैसी फाइट दे रहे हो, उसको देखकर हिरण्यकश्यपु और प्रह्लाद की याद आ रही है है। तोहरे बाबूजी तोके मुख्यमंत्री तो बना दिए, लेकिन तुमसे वे कभी खुश नहीं रहे। पहले भी सार्वानिक रूप से तुम्हारे काम-काज पर विरोधी दल की तरह टिप्पणी करते रहे। आज तुम्हारी माँ जिन्दा रहती तो तुमको ये दिन नहीं देखने पड़ते। कहते हैं कि जब सौतेली माँ घर में आती है तो सबसे पहले बाप ही सौतेला हो जाता है। तुम्हारे बाप का व्यवहार देखकर अब इस बात पर यकीन न करने का कवनो सवाले नहीं उठता है। बेटा तुममें एक छोड़कर कवनो कमी नहीं है। तुम आदमी पहचानने में थोड़ा ज्यादा टैम लेते हो। तुम्हारे पिता के केन्द्र में जाने के बाद तुम्हारा चाचा, अरे वही शिवपलवा, अपने को ही मुख्यमंत्री की कुर्सी का असली अधिकारी मानता था। वह बन भी जाता कि बीच में तुम टपक पड़े। उस समय मुलायम भी तुमको एक आज्ञाकारी पुत्र के रूप में जानते थे। लेकिन इसमें कोई सन्देह नहीं कि शिवपलवा पहले ही दिन से तुमपर घात लगाए था। उसने और आज़म खाँ ने तुम्हें पप्पू बनाने का कोई भी अवसर हाथ से जाने नहीं दिया। वे शायद भूल गए कि उनका पाला आस्ट्रेलिया में पढ़े एक इंजीनियर से पड़ा था। तुम समय-समय पर उन्हें २५० वोल्ट का झटका देते रहे, वे फिर भी नहीं संभले। मुज़फ़्फ़र नगर में दंगा कराकर और बुलंद शहर में सार्वजनिक बलात्कार कराकर तुम्हें कुर्सी से बेदखल करने की बहुते कोशिश हुई, लेकिन तब तुम अपने पिताश्री का विश्वास जीतने में कामयाब रहे। लेकिन अब जब तुमने सब के पेट पर लात मारने की कोशिश की है, तो सब एकजूट हो गए। बचवा, राजनीति में हो तो इतना तो जानते ही होगे कि चुनाव में बेतहाशा खर्च होता है। तुम्हारे जैसे साफ-सुथरा मनई सैकड़ों करोड़ का इन्तज़ाम कैसे करता? ऐन मौके पर चाचा को हटा दिए और गायत्री प्रजापति का इस्तीफ़ा लेकर अपनी कैकयी माता को भी नाराज़ कर दिए। बाबर सिर्फ १२,००० सेना लेकर हिन्दुस्तान में आया था। उसका साथ अगर यहां के राजा नहीं देते तो वह दिल्ली तक नहीं पहुंच पाता। तुमने यह तो साबित कर दिया है कि तुम एक काबिल मुख्यमंत्री हो, जो भ्रष्टाचार और जुगाड़ में विश्वास नहीं करता। लेकिन तुम्हारा यह गुण आज़मों, अमरों और शिवपालों का कैसे बर्दाश्त होगा? अब तो तुम्हें आर-पार की लड़ाई लड़नी है। जब टिकट के बँटवारे में तुम्हारी कवनो पूछे नहीं है, तो चुनाव के बाद तुम्हें मुख्यमंत्री कौन बनायेगा। इसलिए बचवा, अपनी लड़ाई आप लड़ो। महाभारत में अर्जुन के सामने उनके दादा, मामा, चचेरे भाई, रिश्तेदार और मित्र खड़े थे, लेकिन उन्होंने धर्मयुद्ध में किसी को नहीं बक्शा। तुम भी हथियार लेकर युद्ध के लिए तैयार हो जाओ। समय बहुत कम है। लंबी तैयारी करनी है। यदुवंशी श्रीकृष्ण तुम्हारा साथ दें, यही प्रार्थना है।
    थोड़ा लिखना, ज्यादा समझना। हम इहां ठिकेठाक हैं। तुम अपना ख्याल रखना।
इति शुभ। 
      तुम्हारा
 चाचा बनारसी

Friday, September 2, 2016

कश्मीर की समस्या

      कश्मीर की समस्या ऐसी समस्या है जिसके मूल में जाने का कोई प्रयास ही नहीं करता है। वैसे भी हम कश्मीर घाटी के मुट्ठी भर सुन्नी मुसलमानों के असंतोष को पूरे कश्मीर की समस्या मान बैठे हैं। जम्मू और कश्मीर के अधिकांश क्षेत्रों में कोई समस्या नहीं है। लद्दाख और जम्मू में तो बिल्कुल ही नहीं है। भारत के मुसलमानों की जिस मानसिकता के कारण  पाकिस्तान का निर्माण हुआ वही मानसिकता घाटी के सुन्नी मुसलमानों में आज भी कायम है। वे भारत में रहना ही नहीं चाहते हैं। वे कश्मीर का पाकिस्तान में विलय चाहते हैं। वे दूसरे विकल्प के रूप में एक स्वतंत्र देश के रूप में अपना अस्तित्व देखना चाहते हैं। इसमें से कोई भी विकल्प भारत को मन्जूर नहीं हो सकता। भारत अपने अन्य राज्यों की  तुलना में कश्मीर पर सबसे ज्यादा खर्च करता है। केन्द्र सरकार हमेशा इस मुगालते में रही है कि कश्मीर का विकास करके वे कश्मीरियों का दिल जीत लेंगे। लेकिन यह मृग मरीचिका ही सिद्ध हुई है। अगर कश्मीर की सीमाएं पाकिस्तान से नहीं मिलतीं, तो कश्मीर में कोई समस्या ही नहीं होती। अगर हैदराबाद की सीमा पाकिस्तान से मिलती, तो हैदराबाद देश का दूसरा कश्मीर होता। जो मुसलमान पाकिस्तान के कट्टर समर्थक थे, वे देश के बंटवारे के साथ ही पाकिस्तान चले गए। जो मुसलमान भारत में रह गए, उनमें से अधिकांश का शरीर ही भारत में रहता है, आत्मा पाकिस्तान में बसती है। संभवत: भारत के एक और विभाजन की आशा में वे हिन्दुस्तान में रह गए। इसी सपने की पूर्ति के लिए यहां आतंकवादी हमले किए जाते हैं और सामान्य नागरिक संहिता लागू नहीं करने दी जाती। निम्नलिखित तरीके से कश्मीर समस्या का समाधान किया जा सकता है --
१. पाकिस्तान का अस्तित्व समाप्त कर दिया जाय। इसे बलूचिस्तान, सिन्ध, पंजाब और पश्चिमोत्तर सीमा प्रान्त में बांट दिया जाय। सैन्य कार्यवाही करके गुलाम कश्मीर को भारत में मिला लिया जाय।
२. धारा ३७० खत्म करके भारतीयों को कश्मीर में बसने और उद्योग लगाने की अनुमति प्रदान की जाय। कश्मीरी पंडितों की वापसी हो और सेवानिवृत्त सैनिकों को विशेष सुविधा के साथ उस क्षेत्र में बसाया जाय। जनसंख्या का संतुलन हिन्दुओं के पक्ष में किए बिना वहां स्थाई शान्ति की कल्पना नहीं की जा सकती। इतिहास गवाह है कि देश के जिस भाग में हिन्दू अल्पसंख्यक हुआ वह हिस्सा देश से कट गया या कटने की तैयारी में है।
३. देश में समान नागरिक संहिता लागू की जाय
४. अगर उपर बताए गए विकल्पों को लागू करने में समय लगने या किसी अन्य प्रकार की दिक्कत हो तो लंका से सीख लेते हुए जाफ़ना मे तमिल समस्या के निराकरण का उपाय अपनाना चाहिए। कश्मीरियों के पास तो सिर्फ पत्थर है, जाफ़ना के तमिल उग्रवादियों के पास तो वायु सेना और जल सेना भी थी। वहां सैनिक अभियान चलाकर देशद्रोहियों का इस तरह सफ़या कर देना चाहिए ताकि कोई पाकिस्तान की ओर मुंह करके नमाज़ पढ़ने का भी साहस न कर सके।
सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल भेजने से कुछ नहीं होनेवाला। एक दृढ़प्रतिज्ञ केन्द्र सरकार ही कड़े कदम उठाकर घाटी की समस्या का समाधान कर सकती है। कश्मीर में अलगाववाद का रोग इतना क्रोनिक है कि होमियोपैथी की मीठी गोलियों से निदान असंभव है। आपरेशन करना ही पड़ेगा। संयोग से नरेन्द्र मोदी के रूप में देश ने एक दृढ़ इच्छाशक्ति का प्रधान मंत्री पाया है। उनसे देशवासियों को काफी उम्मीदें हैं।

Wednesday, August 31, 2016

केजरीवाल के नगीने

      महाभारत के अन्त में जब अर्जुन को यह ज्ञात हुआ कि कर्ण उनका सहोदर भ्राता था, तो उन्होंने श्रीकृष्ण से प्रश्न पूछा कि यह जानते हुए भी कि पाण्डव उसके सगे भाई हैं, कर्ण ने द्रौपदी के चीरहरण के लिए दुःशासन को क्यों प्रेरित किया, दुर्योधन के सारे षडयंत्रों में क्यों मुख्य भूमिका निभाई? श्रीकृष्ण ने उत्तर दिया कि यह संगत का परिणाम था। तुम्हें मेरी संगत मिली और कर्ण को दुर्योधन की। बस इसी मूल अन्तर ने सारा अनर्थ करा दिया। दिल्ली के मुख्यमन्त्री अरविन्द केजरीवाल के महिला एवं बाल कल्याण मन्त्री सन्दीप कुमार की सेक्स सीडी सामने आने के बाद यह सवाल स्वाभाविक रूप से उठता है कि सन्दीप कुमार केजरीवाल की संगत में बिगड़े या केजरीवाल सन्दीप कुमार की संगत में? आदमी की दोस्ती सामान्य और स्वाभाविक रूप से अपने समान विचार वालों से पहले होती है। केजरीवाल के छः मन्त्रियों में से तीन की जालसाजी, रिश्वतखोरी और सेक्स स्कैन्डल में बर्खास्तगी क्या साबित करती है? साथी भ्रष्ट और नेता दूध का धुला हुआ?
दिल्ली को और कौन-कौन-सा तमाशा दिखायेंगे केजरीवाल? केजरीवाल के मित्र मन्त्री जितेन्द्र तोमर जून, २०१५ में फ़र्जी डिग्री के मामले में जेल की हवा खाने के बाद बर्खास्त किए गए। उनके दूसरे विश्वस्त मन्त्री असीम अहमद खान रिश्वतखोरी में पकड़े जाने पर अक्टूबर, २०१५ में बर्खास्त किए गए और कल यानी ३१ अगस्त, २०१६ को उनके महिला और बाल कल्याण मन्त्री सन्दीप कुमार अपने कल्याण के साथ कई महिलाओं का कल्याण करने की सीडी के सार्वजनिक होने के बाद बर्खास्त किए गए। केजरीवाल के पास ६७ विधायक हैं जिनमें से १३ विधायक भ्रष्टाचार के मामलों में गिरफ़्तार होकर जेल की हवा खा चुके हैं। कुछ दिन और इन्तज़ार कीजिए, तिहाड़ जेल के जेलर महोदय यह दावा करेंगे कि उन्हें मुख्यमंत्री बनाया जाय क्योंकि उनके पास केजरीवाल से ज्यादा विधायक हैं। तोमर के फ़र्जीवाड़े और असीम अहमद की रिश्वतखोरी के बाद केजरीवाल ने देश के प्रधान मन्त्री नरेन्द्र मोदी पर आरोप लगाया था कि वे उनके मन्त्रियों और विधायकों को झूठे मामलों में फंसाकर जेल भिजवा रहे हैं। वे कजरीवाल को काम नहीं करने दे रहे हैं। घोर आश्चर्य है कि सन्दीप कुमार के सेक्स स्कैंडल पर मोदी को दोषी ठहराते हुए केजरीवाल का कोई बयान अभी तक नहीं आया है। हमें तो अपेक्षा थी कि वे कहेंगे कि सन्दीप कुमार वास्तव में महिला कल्याण ही तो कर रहे थे और मोदी ने वह भी नहीं करने दिया।
केजरीवाल को सन्दीप कुमार की सेक्स सीडी १५ दिन पहले ही मिल गई थी, लेकिन उन्होंने कोई कार्यवाही नहीं की। वे इसको दबाना चाहते थे। लेकिन जब उन्हें मालूम हुआ कि सीडी एल.जी. और मिडिया तक भी पहुँच गई है, तो उन्होंने सन्दीप को बर्खास्त किया। इस मामले में झूठ बोलकर मनीष सिसोदिया ने देश और दिल्ली की जनता को धोखा दिया है। सब एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं। केजरीवाल के एक विधायक पर बलात्कार का आरोप है। पीड़ित लड़की, जो आप की वर्कर थी, ने केजरीवाल से शिकायत की और न्याय की मांग की। केजरीवाल का जवाब था कि मामले को तूल मत दो और विधायक से कम्प्रोमाइज कर लो। बलात्कारी से कम्प्रोमाइज? ऐसा सिर्फ केजरीवाल ही सोच सकते हैं। पीड़ित, बेबस लड़की ने कहीं से न्याय न पाने के कारण आत्महत्या कर ली। केजरीवाल का विश्वस्त पूर्व मन्त्री सोमनाथ भारती अपनी पत्नी की रोज पिटाई करता था और कुत्ते से कटवाता था।केजरी ने उसका भी बचाव किया था। केजरीवाल के साथी कैसे निकले, यह जनता के सामने है। सत्संगी को सत्संगी मिलता है और व्यभिचारी को व्यभिचारी - यह प्रकृति का नियम है। सारा आरोप एल.जी., मोदी और अपने दागी मन्त्रियों तथा विधायकों पर थोपकर केजरीवाल अपने को साफ-सुथरा साबित नहीं कर सकते। आजतक केजरीवाल ने अपने दागी मन्त्रियों और विधायकों में से एक को भी पार्टी से  नहीं निकाला है। केजरी फैसला लेने में बहुत कमजोर हैं। वे लगातार जनता के भरोसे का कत्ल कर रहे हैं। जो आदमी अपने आधा दर्ज़न मन्त्रियों को कन्ट्रोल नहीं कर सकता है, वह दिल्ली को क्या कन्ट्रोल करेगा। खोखली नैतिकता के स्वामी केजरीवाल में अगर तनिक भी शर्म बाकी हो तो बिना विलंब किए मुख्यमन्त्री के पद से त्यागपत्र दे देना चाहिए और जनता को अपना कालिख पुता चेहरा फिर न दिखाने की कसम भी खा लेनी चाहिए।

Sunday, August 21, 2016

बलूचिस्तान की जंगे आज़ादी

      बलूचिस्तान वर्तमान में पाकिस्तान का पश्चिमी प्रान्त है। पाकिस्तान का यह सबसे बड़ा प्रान्त है। यहां तेल और प्राकृतिक गैस का विशाल भंडार है। यह सोना समेत अनेक खनिज संपदा भी अपने गर्भ में छिपाए हुए है। ईसा पूर्व बलूचिस्तान का कुछ हिस्सा ईरान (सिस्तान व बलूचिस्तान प्रान्त) तथा अफ़गानिस्तान में भी पड़ता था। सबसे बड़ा क्षेत्र पाकिस्तान में पड़ता है, लेकिन इसकी आज़ादी की मांग से ईरान भी भयभीत रहता है। इसकी राजधानी क्वेटा है तथा भाषा बलूच है।
            १९४७ के पहले इसे कलात के रियासत के रूप में जाना जाता था। इसका दर्ज़ा हिन्दुस्तान के अन्य रियासतों की ही तरह था। १९४४ में अंग्रेज इसे पूर्ण स्वतंत्रता देना चाहते थे लेकिन जिन्ना और मुस्लिम लीग के विरोध के कारण यह १४ अगस्त १९४७ को एक स्वतंत्र रियासत के रूप में आज़ाद हुआ। पाकिस्तान के आज़ाद होने के एक दिन बाद ही कलात रियासत (वर्तमान बलूचिस्तान) ने अपने शासक ज़नाब खान साहब के नेतृत्व में एक मुल्क के रूप में अपनी आज़ादी की घोषणा कर दी। कलात के स्वतंत्र अस्तित्व की पुष्टि मुस्लिम लीग ने की और कलात की नेशनल एसेम्बली  ने भी की। लेकिन १ एप्रिल १९४८ में पाकिस्तानी सेना ने कलात में मार्च किया और कलात के शासक ज़नाब खान साहब को गिरफ़्तार कर लिया। उनसे जबर्दस्ती विलय के समझौते पर दस्तखत करा लिया गया। लेकिन खान के भाई अब्दुल करीम ने तत्काल विद्रोह की घोषणा कर दी और कलात को स्वतंत्र राष्ट्र घोषित करते हुए बलोच नेशनल एसेम्बली के लिए एक घोषणा पत्र भी जारी किया जिसमें पाकिस्तान के साथ विलय को अस्वीकृत किया गया था। प्रिन्स को अफ़गानिस्तान से समर्थन की अपेक्षा थी क्योंकि अफ़गानिस्तान बलूच और पख्तून क्षेत्रों के पाकिस्तान में विलय का विरोधी था। अफ़गानिस्तान का भी इरादा नेक नहीं था। वह इस क्षेत्र का अफ़गानिस्तान में विलय चाहता था।
            बलूचिस्तान में आज़ादी के लिए संघर्ष कोई आज की घटना नहीं है, बल्कि १९४८ में ही इसके पाकिस्तान में जबर्दस्ती विलय के समय से ही शुरुआत हो चुकी थी। पाकिस्तान के खिलाफ़ बलूचियों ने १९४८-५२, १९५८-६०, १९६२-६९ और २००४-०५ में खुली बगावत की जिसका एक ही मकसद था – पाकिस्तान से आज़ादी।
            प्रिन्स अब्दुल करीम ने १९५० के मई के अन्त में पाकिस्तानी सेना के खिलाफ़ झालवान जिले में गुरिल्ला युद्ध आरंभ करके खुली बगावत का एलान किया। इसपर पाकिस्तान की सेना के  अधिकारियों ने यह चेतावनी दी कि अगर बगावत जारी रही तो गिरफ़्तार शासक खान साहब की दुर्गति कर देंगे। पाकिस्तान की सेना के अधिकारियों और अब्दुल करीम खां के प्रतिनिधियों के बीच कुरान की शपथ लेते हुए एक समझौता हुआ  जिसमें सभी बागियों को माफ़ी देने तथा उनकी सुरक्षा के साथ-साथ अच्छे व्यवहार की गारंटी दी गई थी। लेकिन सेना ने छल किया और प्रिन्स तथा उनके १०२ सथियों को कलात जाने के रास्ते में ही गिरफ़्तार कर लिया। लेकिन इस विद्रोह से दुनिया के सामने दो चीजें स्पष्ट हो गईं ---
१.       बलूच और पख्तून बलूचिस्तान के पाकिस्तान में विलय को स्वीकार नहीं करते।
२.      बलूचियों में यह विश्वास घर कर गया कि पाकिस्तान ने उनके साथ धोखा किया है और समझौता तोड़कर विश्वासघात किया है।
करीम और उनके साथियों को लंबी अवधि की जेल की सज़ा हुई, परन्तु वे बलूचिस्तान की आज़ादी के प्रतीक बन गए।
    अब्दुल करीम १९५५ में जेल से छूटकर आए और फिर आज़ादी के दीवानों को संगठित करना शुरु कर दिया। उन्होंने पाकिस्तान की सेना के मुकाबले के लिए एक समानान्तर सेना का गठन किया। पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने ६ अक्टूबर, १९५८ को इस विद्रोह को दबाने के लिए सेना को कलात में कूच करने का आदेश दिया और एक दिन बाद मार्शल ला भी लगा दिया। सेना ने खान बन्धुओं को फिर से गिरफ़्तार कर लिया और देशद्रोह का मुकदमा ठोक दिया। खान बन्धुओं की गिरफ़्तारी का भयंकर प्रतिरोध हुआ और पूरे बलूचिस्तान में हिंसा भड़क उठी। सेना ने गुरिल्लाओं के संभावित ठिकानों के सन्देह में कई गाँवों पर बमबारी भी की। झालवान के जेहरी जनजातीय प्रमुख नौरोज खान ने मीरघाट की पहाड़ियों में पाकिस्तानी सेना के छक्के छुड़ा दिए। लेकिन अन्त में सेना ने कुरान की कसम दिलाते हुए एक समझौता करने में सफलता पा ली। नौरोज ने अच्छे व्यवहार की आशा में हथियार डाल दिए, लेकिन सेना ने फिर विश्वासघात किया तथा उन्हें और उनके पुत्रों को गिरफ़्तार कर जेल में डाल दिया गया। जुलाई १९६० में नौरोज के बेटों को हैदराबाद और सुकुर में फाँसी पर चढ़ा दिया गया। गम से टूटे नौरोज  भी १९६२ में कोहलू के जेल में स्वर्गवासी हो गए।
               १९५८ में सेना ने बलूचिस्तान के अन्दर के इलाकों में बेस कैंप बनाना शुरु किया तो  एक बार फिर विद्रोह भड़क उठा। इस विद्रोह का नेतृत्व शेर मुहम्मद मर्री ने किया। वे एक दूरदर्शी नेता थे। उन्होंने एक व्यापक गुरिल्ला युद्ध की तैयारी की। इसके लिए उन्होंने झालवान के आदिवासी क्षेत्रों, मर्री और उत्तर के बुग्ती क्षेत्रों में अपना प्रभावी नेटवर्क स्थापित किया। आज़ादी  के दीवाने गुरिल्लाओं को सैन्य प्रशिक्षण और बम बनाने तथा चलाने की ट्रेनिंग दी गई। सेना ने इसका जबर्दस्त विरोध किया और शेर मुहम्मद मर्री तथा उनके रिश्तेदारों के १३,००० एकड़ में फैले बादाम के बगीचों को बुलडोज़र चला कर ध्वस्त कर दिया। लड़ाई १९६९ तक जारी रही। अन्त में याह्या खान ने सीमित स्वायत्तता प्रदान करते हुए अपनी सेना की एक यूनिट को वापस बुला लिया। क्षेत्र में एक अस्थाई शान्ति कायम हुई।
            सन १९७० में राष्ट्रवादी बलूचियों ने उत्तर पश्चिम सीमान्त प्रदेश (NWFP) के पख्तूनों से संपर्क किया और नेशनल अवामी पार्टी के नाम से एक राजनीतिक पार्टी बनाई। १९७१ के आम चुनाव में इस पार्टी ने बलूचिस्तान और NWFP में जीत भी हासिल की। इस बीच क्वेटा और मस्तुंग में पंजाबियों के खिलाफ़ बलूचियों के आक्रामक रवैये तथा ईरानी दूतावास में भारी मात्रा में संहारक हथियारों की बरामदगी से पाकिस्तानी शासकों को यह विश्वास हो गया कि बलूचिस्तान में विद्रोही फिर से सक्रिय हो गए हैं। पाकिस्तान के प्रधान मन्त्री भुट्टो ने राज्य सरकार को तुरन्त बर्खास्त कर दिया। बर्खास्तगी से नाराज बलूच गुरिल्ले फिर से सक्रिय हो गए। बांग्ला देश की घटना से विक्षिप्त भुट्टो ने बलूचिस्तान को फिर सेना के हवाले कर दिया तथा बलूचिस्तान के तीन बुजुर्ग सम्मानित नेता – गौस बक्स बिजेन्जो, अयातुल्ला खान मेंगल और कबीर मर्री को गिरफ़्तार कर जेल में डाल दिया। लेकिन बलूचिस्तान में आन्दोलन थमा नहीं और अगले चार साल तक जारी रहा। यह युद्ध जब चरम पर था, तो पाकिस्तान को अपने ८०,००० फौजियों को वहाँ तैनात करना पड़ा। यह अबतक का सबसे बड़ा विद्रोह था। रेल और रोड लिंक ध्वस्त हो गए थे। बलूचिस्तान लंबे समय तक पाकिस्तान से कटा रहा। ईरान के शाह को यह डर सताने लगा कि उसके नियंत्रण वाले बलूचिस्तान के क्षेत्र में भी कहीं बगावत न हो जाय, उसने ३० अमेरिकी कोबरा हेलिकाप्टर अपने पायलट के साथ पाकिस्तान की मदद के लिए भेजा। १९७४ की सर्दियों में पाकिस्तानी सेना ने हवाई और जमीनी आक्रमण से हजारों बलूच आदिवासियों की हत्या की। बलूच गुरिल्ले, जिन्हें किसी बाहरी शक्ति का समर्थन प्राप्त नहीं था, लंबे समय तक पाकिस्तानी सेना का सामना नहीं कर सके और बलूच स्वतंत्रता के अधिकांश नेता पाकिस्तान के बाहर ब्रिटेन और अफ़गानिस्तान जैसे देशों में चले गए। इसके बाद भी बलूच स्टूडेन्ट‘स यूनियन और अन्य स्वतंत्रता प्रेमी बलूच समूहों ने फिर लड़ाई की शुरुआत की जो आजतक जारी है।

            बलूचों के संघर्ष की दास्तान से सारी दुनिया लगभग अनजान थी। वहाँ आज़ादी की मांग बहुत पुरानी है। प्रधान मन्त्री नरेन्द्र मोदी ने इसे स्वर प्रदान किया है। आज़ादी के लिए हथियारबंद अलगाववादी समूह आज भी सक्रिय हैं। इनमें प्रमुख हैं – बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी और लश्कर-ए-बलूचिस्तान। पाकिस्तानी सरकार लगातार बलूच आन्दोलन को योजनाबद्ध से कुचलने और बलूचियों की मांग को दरकिनार करने का प्रयास करती रही है। पाकिस्तान ने हजारों बलूचों को नज़रबंद किया, हजारों युवकों का अपहरण कर उन्हें गायब कर दिया, सेना और सरकारी नौकरियों में बलूचियों के प्रवेश पर रोक लगाई, लोकतांत्रिक बलूच नेताओं की हत्या कराई। पुरुषों का कत्ल और महिलाओं से रेप पाकिस्तानी सेना के लिए आम बात है।बलूचिस्तान के इतिहास में पहली बार किसी अन्तर्राष्ट्रीय नेता ने बलूचिस्तान की आज़ादी का समर्थन करने का संकेत दिया है। प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी को थोड़ा आगे बढ़कर बलूचिस्तान को सैन्य सहायता प्रदान करने पर भी विचार करना चाहिए। कश्मीर में पाकिस्तान द्वारा प्राय़ोजित आतंकवाद का यह सबसे सटीक उत्तर होगा। अगर बलूचिस्तान पाकिस्तान से अलग हो जाता है तो पाकिस्तान की कमर टूट जाएगी और वह कंगाल हो जाएगा।