Wednesday, September 24, 2014

मंगल पर ऐतिहासिक विजय


      २४ सितम्बर, २०१४ का वह सुहाना सवेरा क्या कोई भारतीय भूल पाएगा? शायद कभी नहीं। यह दिन हमारे लिये उतना ही गौरवशाली और ऐतिहासिक है जितना अमेरिकियों के लिए २१ जुलाई १९६९ था जिस दिन नील ए. आर्मस्ट्रौन्ग ने चन्द्रमा पर पहला कदम रखा था। भारतीय वैज्ञानिकों ने वह कर दिखाया जिसे सारी दुनिया असंभव समझती थी। २४ सितंबर को सवेरे ७.४७ बजे हमारे स्वदेशी मंगलयान को हमारे वैज्ञानिकों ने सफलतापूर्वक लाल ग्रह की कक्षा में स्थापित कर दिया। सारा देश खुशी और गर्व से झूम उठा। इस ऐतिहासिक क्षण का इसरो के वैज्ञानिकों के साथ साझा करते हुए प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने अपने हृदय के स्वाभाविक उद्गार व्यक्त करते हुए कहा - जब काम मंगल होता है, इरादे मंगल होते हैं, तो यात्रा भी मंगल होती है। प्रधानमंत्री का कथन सौ फीसदी सत्य है। भारत को जगत्गुरु बनने से कोई रोक नहीं सकता।

      PSLV-C25 प्रक्षेपक से ऐतिहासिक मंगलयान गत वर्ष ५ नवम्बर, २०१३ को श्रीहरिकोटा से प्रक्षिप्त किया गया। यान ने दिनांक १ दिसम्बर, २०१३ को पृथ्वी की कक्षा का परित्याग कर लाल ग्रह के लिये अपनी महत्त्वाकांक्षी यात्रा आरंभ की। यह एक जटिल प्रक्रिया थी क्योंकि भारत परंपरागत ठोस ईंधन के स्थान पर तरल ईंधन का प्रयोग कर रहा था। सारी दुनिया इस प्रयोग को संशय की दृष्टि से देख रही थी। उन्हें विश्वास ही नहीं था कि एक विकासशील देश ऐसे प्रयोग से मंगल तक पहुंच सकता है। लेकिन सबके सन्देह उस दिन ध्वस्त हो गये जिस दिन नैनो कार की आकृति के बराबर हमारे मंगल यान ने लाल ग्रह से प्रभावित वातावरण में प्रवेश किया। यह शुभ दिन १९ सितम्बर २०१४ का था। २२ सितम्बर को हमारा यान मंगल के और करीब आया और सफलतापूर्वक मंगल के गोल मंडल में प्रवेश कर गया। विदेशी वैज्ञानिक जहां हैरान थे वही हमारे वैज्ञानिकों के चेहरे चमक रहे थे। लेकिन अन्तिम परीक्षा बाकी थी। लाल ग्रह की कक्षा में सही-सही स्थापित करने के लिये लगाया गया हमारा 440N Liquid Engine लगभग ३०० दिनों से सुप्त था। अगर वह चालू नहीं होता, तो सारा मिशन व्यर्थ हो जाता। सबके दिल धड़क रहे थे। वैज्ञानिकों की आंखों से नींद गायब हो चुकी थी। रेडियो सिग्नल की मदद से इन्जन का पायरो (Pyro)  वाल्व खोला गया और उसी दिन, २२ सितम्बर को ३३० दिनों से सुप्त 440N Liquid Engine को ४ सेकेन्ड के लिये फ़ायर करके मंगलयान की Trajectory को सही किया गया। अबतक किये गये सारे प्रयोग शत प्रतिशत सही एवं खरे उतर रहे थे। प्रधानमंत्री लगातार वैज्ञानिको के संपर्क में थे। वे अपनी उत्सुकता को दबा नहीं पाये और दिनांक २४ सितम्बर को उन वैज्ञानिकों के बीच पहुंच ही गये जिन्होंने भारत को उस मुकाम तक पहुंचाया था जहां बड़े-बड़े विकसित देश भी नहीं पहुंच पाये थे। प्रधानमंत्री की उपस्थिति में वैज्ञानिकों ने तरल इंजन को दुबारा फायर किया और खुली आंखों से देखा हुआ एक सपना साकार हो ही गया। हमारा मंगलयान सवेरे ७ बजकर ४७ मिनट पर मंगल की कक्षा में स्थापित हो गया। भारत ओलंपिक में १०० स्वर्ण पदक पा ले, एसियाड के सारे गोल्ड मेडल पर कब्जा कर ले, तो भी उतनी खुशी नहीं होगी, जितनी खुशी २४ सितम्बर का यह स्वर्णिम दिवस दे गया।
      भारत की यह उपलब्धि इसलिए और भी विशिष्ट हो जाती है कि अपने प्रथम प्रयास में ही लाल ग्रह पर पहुंचने वाला यह पहला देश बन गया है। अबतक मंगल तक पहुंचने के लिये विश्व ने ५१ प्रयास किये हैं लेकिन मात्र २१ प्रयास ही सफलता प्राप्त कर सके हैं। हमारा मंगलयान  Lyman Alpha Photometer से लैस है जो मंगल के उपरी वातावरण में deuterium और hydrogen की उपस्थिति और मात्रा की माप करेगा जिससे यह पता लगाया जा सकेगा कि ग्रह की उपरी सतह पर कभी जल था या नहीं। यान में स्थापित मिथेन सेंसर ग्रह पर मिथेन गैस की खोज करेगा और रंगीन कैमरा - Thermal infrared spectrometer वे दुर्लभ तस्वीरें लेगा जिससे ग्रह से उत्सर्जित तापीय ऊर्जा, खनिज पदार्थ एवं मिट्टी का आंकलन किया जा सकेगा। मंगल ग्रह पर यान भेजने के अपने पहले मिशन में अमेरिका ने जहां ४००० करोड़, युरोपियन यूनियन ने ३५०० करोड़, रुस ने २५०० करोड़ रुपए खर्च किये थे वहां हमने सिर्फ ४५० करोड़ खर्च करके यह उपलब्धि पाई है। दुनिया आश्चर्यचकित है। हमने असंभव को संभव कर दिखाया है। सचमुच हमारा सीना ५६ इन्च का हो गया है।
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊंचा रहे हमारा

Saturday, September 13, 2014

ये संवैधानिक पद


          राष्ट्रपति, राज्यपाल, सी.ए.जी., मानवाधिकार आयोग का अध्यक्ष और विश्वविद्यालयों के वाईस चान्सलर आदि के पद संवैधानिक मान्यता प्राप्त पद हैं लेकिन पिछले ६५ वर्षों में इन पदों पर सत्ताधारी पार्टियों ने जिस तरह योग्यता और प्रतिभा की अनदेखी कर अपने चमचों की नियुक्तियां की है, उससे न सिर्फ़ इन पदों की गरिमा घटी है बल्कि आम जनता में यह धारणा पुष्ट हो गई है कि ये पद सत्ताधारी पार्टी के निष्क्रिय नेताओं और चमचों के लिये आरक्षित रहते थे, रहते हैं और रहेंगे भी। निस्सन्देह सबसे ज्यादा समय तक सत्ता में रहे कांग्रेसियों ने अपने कार्यकर्त्ताओं और समर्थकों को इन मलाईदार पदों का तोहफ़ा सर्वाधिक दिया है लेकिन अन्य पार्टियां भी पीछे नहीं रही हैं। जिसको जितना भी मौका मिला, जी भर के फायदा लिया। अब तो वी.सी. बनने के लिये करोड़ों रुपये एडवान्स दिये जा रहे हैं।
श्रीमती प्रतिभा पाटिल इन्दिरा गांधी की किचेन में उनकी पसन्द के स्पेशल डिश बनाती थीं। सोनिया ने उन्हें राष्ट्रपति बना दिया। ज्ञानी जैल सिंह कहते थे कि इन्दिरा जी कहें तो मैं झाड़ू भी लगा सकता हूं। उन्हें वफ़ादारी का ईनाम मिला। वे राष्ट्रपति बना दिये गये। एक-एक राष्ट्रपति की कुण्डली पर चर्चा करना बहुत उपयोगी नहीं होगा। बस इतना ही पर्याप्त है कि भारत की जनता सिर्फ़ तीन राष्ट्रपतियों को भारत का सच्चा राष्ट्रपति मानती है। वे हैं - डा. राजेन्द्र प्रसाद, डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन और डा. ए.पी.जे. कलाम। राजभवन तो सड़े-गले नेताओं का आश्रय हो गया है। हैदराबाद के राजभवन में नारायण दत्त तिवारी ने क्या नहीं किया? उनकी रति-क्रीड़ा की सीडी के सार्वजनिक होने के बाद ही उनसे इस्तीफ़ा लिया गया। मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष पद पर विद्यमान सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश श्री बालकृष्णन आज भी अपने कार्यकाल के दौरान दामाद द्वारा उनके नाम पर किये गये अनेक घोटालों में फ़ंसे हुए हैं। रिटायर होने के बाद अध्यक्ष पद का तोहफ़ा पा गये। सरकार के पक्ष में कुछ निर्णायक फ़ैसले जो दिये थे उन्होंने।
वीसी का पद तो आजकल पूरी तरह बिकाऊ हो गया है। जो जितनी ऊंची बोली लगायेगा, चुना जायेगा। अगर गहरी राजनीतिक पैठ है, तो मामला सस्ते में भी निपट सकता है। मैं बी.एच.यू. का छात्र रहा हूं। कालू लाल श्रीमाली से लेकर आजतक इस केन्द्रीय विश्वविद्यालय को एकाध अपवाद को छोड़कर कोई भी योग्य वीसी नहीं मिला। इतना सुन्दर विश्वविद्यालय दुर्दशा को प्राप्त हो गया है। जिस विश्वविद्यालय के कुलपति के पद को परम आदरणीय महामना मालवीय जी, डा. राधाकृष्णन, आचार्य नरेन्द्र्देव इत्यादि विभूतियों ने गौरव प्रदान किया उसी पद पर कालू लाल श्रीमाली जैसे घटिया राजनीतिज्ञ और लालजी सिंह, पंजाब सिंह जैसे जोड़-तोड़ में माहिर घोर जातिवादियों को बैठाया गया। आश्चर्य होता है कि आजकल चपरासी के पद पर भी नियुक्ति के पूर्व लिखित परीक्षा और साक्षात्कार से गुजरना पड़ता है लेकिन वीसी की नियुक्ति के लिये कुछ भी आवश्यक नहीं है। यह पद आनेवाली पीढ़ियों को मार्गदर्शन प्रदान करनेवाला पद है। इसपर कार्य करनेवाले व्यक्ति के पास प्रशासनिक और प्रबन्धन की दक्षता होनी चाहिये। संघ लोकसेवा आयोग को लिखित परीक्षा और साक्षात्कार के माध्यम से वीसी के चयन की जिम्मेदारी देनी चाहिए। तभी इन पदों पर योग्य व्यक्तियों की तैनाती संभव है। इन पदों पर नियुक्ति में कांग्रेस द्वारा फिलाए गए भ्रष्टाचार तो जगजाहिर हैं लेकिन उस गन्दगी को साफ करने के लिये वर्तमान सरकार की ओर से भी कोई सार्थक प्रयास नहीं किया जा रहा है। भारत की शिक्षा-व्यवस्था का भगवान ही मालिक है।

Tuesday, September 9, 2014

फ़िरकापरस्त और कश्मीर की बाढ़


आज का समाचार है कि कश्मीर में चार लाख लोग अभी भी बाढ़ में फ़ंसे हैं। राहत कार्य में सेना के एक लाख जवान जुटे हैं। ६० हजार लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया।
कश्मीर में अपनी जान को जोखिम में डालकर बाढ़ पीड़ितों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचानेवाले सेना के ये वही जवान हैं जिन्हें  वहां के राजनेता, फ़िरकापरस्त और कट्टरपन्थी कल तक काफ़िर कहकर संबोधित करते थे। ज़िहादी उनके खून के प्यासे थे। वही सेना के जवान आज देवदूत बनकर कश्मीरियों की रक्षा के लिये अपनी जान की बाज़ी लगा रहे हैं। पिछले आम चुनाव में फ़ारुख अब्दुल्ला ने सार्वजनिक बयान दिया था कि नरेन्द्र मोदी और उनको वोट देने वालों को समुन्दर में फ़ेंक देना चाहिये। उसी नरेन्द्र मोदी ने कश्मीरियों के लिये केन्द्र का खज़ाना खोल दिया है। बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिये न तो हिज़्बुल मुज़ाहिदिन आगे आया और न तालिबान। न आई.एस.आई.एस. ने पहल की न अल-कायदा ने। न आज़म खां आगे बढ़े, न ओवैसी। उनकी मदद की है तथाकथित सांप्रदायिक सेना ने, मौत का सौदागर कहे जाने वाले नरेन्द्र मोदी ने और ज़िहाद के शिकार करोड़ों काफ़िरों ने।
कश्मीर में आई बाढ़ से लाखों लोग विस्थापित हो गये हैं। अपना घर छोड़कर शरणार्थी बनने का दर्द अब उन्हें महसूस होना चाहिये। प्रकृति ने उन्हें यह अवसर प्रदान किया है। इन बाढ़ पीड़ितों को तो सिर्फ़ अपना घर छोड़ना पड़ा है लेकिन तनिक खयाल कीजिए उन हिन्दू विस्थापितों का जिन्हें कश्मीरी आतंकवादियों और अलगाववादियों ने बम-गोले और एके-४७ की मदद से जबरन घाटी से निकाल दिया था। किसी ने अपनी जवान बेटी खोई, तो किसी ने अपनी बहू। किसी ने अपना पिता खोया, किसी ने बेटा। न फ़ारुख की आंख से आंसू का एक बूंद टपका न उमर का दिल पसीजा। न सोनिया ने एक शब्द कहा, न राहुल ने बांहें चढ़ाई। इसके उलट ओवैसी के हैदराबाद और आज़म के रामपुर में मिठाइयां बांटी गईं।
यह वक्त है स्थिर चित्त से चिन्तन करने का। क्या धारा ३७० की उपयोगिता अभी भी है?

Monday, July 28, 2014

एक पाती राहुल बबुआ के नाम


प्रिय राहुल बबुआ,
      जब से तुम्हारी पार्टी लोकसभा का चुनाव हारी, हम सदमे में चले गये। उत्तराखण्ड में हुए उपचुनाव में तीनों विधान सभा की सीटें कांग्रेस ने जीत ली है। इस खबर से इस मुर्दे में थोड़ी जान आई है। इसीलिये आज बहुत दिनों के बाद एक पाती लिख रहा हूं।
      बेटा, हिम्मत मत हारना। हारिए न हिम्मत बिसारिये न हरि नाम। हरि से तो तुम्हारे खानदान और परिवार का कोई वास्ता कभी नहीं रहा है लेकिन हिम्मत से हमेशा रहा है। हिम्मत के मामले में तुम्हारी दादी बेजोड़ रही हैं। कांग्रेस से अलग होकर इन्दिरा कांग्रेस बनाने तथा १९७५ में एमरजेन्सी लगाने का काम कोई बड़ी हिम्मत वाला शक्स ही कर सकता था। तुम्हारे में भी थोड़ी-बहुत हिम्मत है। जब तुम बाहें चढ़ाकर चमचों के बीच भाषण देते थे, तो लोग तुम्हें यन्ग्री यंगमैन समझने लगे थे। मीडिया ने तुमको अमिताभ बच्चन का नया अवतार कहना शुरु कर दिया था। जब तुमने दागी विधायकों और सांसदों को बचानेवाले अपने ही सरकार के अध्यादेश  को प्रेस के सामने फाड़ कर फेंक दिया था, तुम अचानक राजनीति के राबिनहुड बन गये थे। चाटुकार दरबारियों को तुमसे बहुत आशायें थी लेकिन नरेन्द्र मोदी ने सब गुड़ गोबर कर दिया। योजना तो तुमने ठीक ही बनाई थी। केजरीवाल को पटाकर लोकसभा की ४४० से अधिक सीटों पर आप के उम्मीदवार खड़ा कराकर काग्रेस विरोधी वोट बांटने का तुम्हारा और भौजी का प्रयास सराहनीय था। लेकिन केजरीवाल पर भगोड़ा होने का लेबल इस तरह चस्पा  हुआ कि वह खुद तो हारा ही अपने महारथियों की जमानत भी गंवा बैठा। तुम्हारा गुरु योगेन्द्र यादव चारों खाने चित्त हो गया। मोदी की सुनामी ने बड़े बड़ों का बन्टाढाढ़ कर दिया। बताओ, आज नेता विरोधी दल के भी लाले पड़ गए।
      पुरखे कह गये हैं - मनुष्य बली नहीं होत है, समय होत बलवान, भीलन गोपी छीन लिए वही अर्जुन वही बाण | बेटा, सपने हमेशा ऊंचे देखना चाहिये। प्रधान मंत्री का सपना देखते-देखते, नेता विपक्ष का सपना क्यों देखने लगे? तुम्हीं बताओ, ४४ की संख्या पर नेता, विपक्ष कैसे बनोगे? यह छोटा सा गणित तुम्हरी समझ में काहे नहीं आ रहा है? तुम लोगों के लिये सौ खून माफ़ है, लेकिन मोदी ने अगर एक गलती की, तो नेशनल/इन्टर नेशनल मीडिया उसे शूली पर टांग देगी। तुम्हारी दादी के किचेन में घुसकर खाना बनानेवाली प्रतिभा पाटिल को तुम्हारी मम्मी और हमारी भौजाई ही राष्ट्रपति बना सकती हैं, दूसरे किसी में इतनी हिम्मत नहीं है। बेटवा, यह माना कि तुम खानदानी शहज़ादा हो। लाल बत्ती की गाड़ी में चलने की तुम्हारे परिवार को आदत है लेकिन यह लोकतंत्र भी कभी-कभी पेनाल्टी किक दागिए देता है। इन्तज़ार करने में कवनो हरज नहीं है। पैसा-कौड़ी की तो तुम्हारे पास वैसे ही कवनो किल्लत नहीं है। अभी तो राजीव भैया के स्विटजरलैंड का पैसा ही खर्च नहीं हुआ होगा, २-जी, ३-जी, कोलगेट, कामनवेल्थ आदि-आदि का पैसा भी भौजाई बीमारी के बहाने अमेरिका जाकर सुरक्षित जगह पर रखिये आई हैं। एक नहीं, सौ जेटली आयेंगे, तो भी तुम्हारे पैसे का सुराग नहीं पा पायेंगे। इसलिये चिन्ता की कवनो बात नहीं है। लेकिन बेटा, कुछ बुरी आदतें तो छोड़नी ही पड़ेंगी। लोकसभा चल रही थी, महंगाई पर गंभीर चर्चा चल रही थी और तीसरी पंक्ति में बैठे-बैठे तुम सो रहे थे। टीवी चैनल वालों की मदद से सारी दुनिया ने यह दृश्य देखा। दूसरे दिन भौजा ने बुलाकर फ़्रौन्ट रो में तुम्हें अपने पास बिठाया। बेटा, वे कबतक स्कूल मास्टर की भूमिका निभायेंगी। उनके आंचल की छांव में कबतक पनाह लोगे। अब तो तुम्हारी उमर भी ४५ को पार कर गई होगी। अब अपने लिये फ़ुल टिकट की व्यवस्था करो। हाफ़ टिकट पर कबतक चलोगे? कोई भी बाप अपनी बेटी के लिये एक कमाऊ और समझदार बालिग दामाद ढूंढ़ता है। जरा मैच्युरिटी दिखाओ, वरना ज़िन्दगी भर कुंवारा ही रहना पड़ेगा। कही तुमने प्रधानमन्त्री बनने के बाद ही शादी करने की कसम तो नहीं खा रखी है? अगर ऐसा है, तो बहुत बुरा है। जनता ने जिस तरह लोकतंत्र का पेनाल्टी किक लगाया है, उसको देखते हुए तो ऐसा नहीं लग रहा है कि ५ साल बाद भी कोई चान्स मिलेगा। वैसे भी मोदी जहां का चार्ज लेते हैं वहां कम से कम तीन चुनाव तो जीतते ही हैं। तबतक तुम्हारी बुढ़ौती आ जायेगी। फिर भांजों के साथ ही बारात निकालनी पड़ेगी। दिग्विजय को अमृता राय मिल भी गई, तुम्हारे लिये लड़की तलाशना लोहे  का चना चबाने जैसा होगा। फिर तुम्हें खुद ही अपने परनाना की तरह किसी एडविना माउन्टबेटन की तलाश करनी होगी।
      हमलोग यहां राजी-खुशी हैं। भगवान तुम्हें भी भौजी के साथ राजी-खुशी रखें। बबुआ मेरी बात का खयाल रखना -
            तूने रात गंवाई खाय के; दिवस गंवाया सोय के,
            हीरा जनम अमोल था, कौड़ी बदले जाय।
      जय रामजी की। इति शुभ।
                  तुम्हारा - चाचा बनारसी

Thursday, July 17, 2014

घरेलू उपकरणों में बिजली की बचत - रेफ़्रिजरेटर



     रेफ़्रिजरेटर - सब्जी, भोजन, फल व अन्य सामग्रियों को ताजा रखने के लिए रेफ़्रिजरेटर जिसे फ़्रीज भी कहते हैं, अब लगभग हर घर में प्रयोग में आने लगा है। गृहिणियों के लिए यह उपकरण बड़े काम का है। इसकी मदद से वे बच्चों को आइसक्रीम खिला सकती हैं और कोल्ड ड्रिन्क्स भी पिला सकती हैं। दिन का खाना रात में भी खिला सकती हैं और रोज-रोज सब्जी खरीदने से मुक्ति भी पा सकती हैं। फ़्रीज का परिचालन अगर थोड़ी सी सावधानी से करें, तो ३०% बिजली की बचत भी हो सकती है और फ़्रीज की आयु भी बढ़ सकती है। कुछ सुझाव निम्नवत हैं --
     १. नियमित रूप से फ़्रीज और फ़्रीजर को डिफ़्रास्ट करते रहें। फ़्रीज के अन्दर नमी बढ़ने से कम्प्रेसर अधिक चलता है जिसके कारण बिजली की      खपत ज्यादा होती है।
     २. फ़्रीज और दीवार के बीच हवा के प्रवाह के लिए कम से कम ९ इन्च जगह खाली रखें। फ़्रीज के    पिछले हिस्से से ही कम्प्रेसर की गर्मी बाहर     निकलती है। अगर गर्म हवा बिना किसी प्रतिरोध के बाहर निकलती है, तो फ़्रीज की कार्य कुशलता बढ़ जाती है और बिजली की खपत भी कम हो      जाती है।
     ३. फ़्रीज के दरवाजे को वायु निरोधक बनायें। दरवाजे से फ़्रीज के अन्दर न हवा अन्दर आनी चाहिये     और न फ़्रीज की ठंढ़ी हवा बाहर जानी    चाहिए। दरवाजा पूरी तरह एयर टाइट होना चाहिए।
     ४. फ़्रीज में रखे जाने वाले तरल एवं खाद्य पदार्थों को ढक कर रखें। बिना ढके भोज्य पदार्थ नमी पैदा   करते हैं जिससे कम्प्रेसर पर दबाव बढ़ जाता    है और बिजली की खपत ज्यादा होती है।
     ५. फ़्रीज के दरवाजे को अनावश्यक अथवा अधिक समय तक न खोलें। ऐसा करने से भी कम्प्रेसर पर     दबाव बढ़ जाता है और बिजली कि खपत बढ़   जाती है, फलस्वरूप आपका बिल ज्यादा आता है।
     ६. नियमित रूप से प्रयोग की जाने वाली चीजों के लिए छोटे कैबिनेट का प्रयोग करें।     
     ७. फ़्रीज में भोजन अथवा अन्य भोज्य पदार्थ कमरे के तापक्रम पर लाने के बाद ही रखें। गर्म भोजन अथवा पदार्थ सीधे फ़्रीज में रखने से ठंढ़ा करने के लिए फ़्रीज को ज्यादा कार्य करना पड़ता है। इससे   कम्प्रेसर अतिभारित होता है और बिजली की खपत बढ़ जाती है।
              आपके द्वारा की गई बिजली की बचत विद्युत उत्पादन करने के समतुल्य है। राष्ट्रहित में बिजली बचायें।

Monday, July 14, 2014

घरेलू उपकरणों में बिजली की बचत


     एयर कन्डीशनर - कमरे/हाल/दूकान/कार्यस्थल के अन्दर तापमान को सुविधाजनक स्तर पर रखने के लिये एयर कन्डीशनर का प्रयोग एक आम बात हो गई है। एयर कन्डीशनर को स्वतः तापमान नियंत्रक कट आफ़ पर रखें। रेगुलटर को २२ डिग्री से २६ डिग्री पर सेट करें। यही तापमान का वह रेन्ज है जो मानव शरीर के अनुकूल है। कुछ लोग निम्नतम तापमान सेट नहीं करते हैं जिसके कारण एयर कन्डीशनर  लगातार चलता रहता है और तापमान काफी नीचे आ जता है। यह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। लगातार चलने से एसी का कम्प्रेसर गर्म हो जाता है और जलने की संभावना बढ़ जाती है। कम्प्रेसर एयर कन्डीशनर का दिल होता है। कम्प्रेसर बन्द तो एसी बन्द। कम्प्रेसर जैसे-जैसे गर्म होता है, बिजली की खपत वैसे-वैसे बढ़ती जाती है। अतः रेगुलेटर को २२ से २६ डिग्री के बीच ही रखें।
      एयर कन्डीशनर के साथ छत पर लगे पंखे को भी चलायें। ऐसा करने से ठंढ़ी हवा पूरे कमरे में प्रभावी ढंग से फैलती है जिससे एसी और ठंढ़क प्रदान करता है। सिर्फ़ एसी चलाने से ठंढी हवा नीचे रहती है और गर्म हवा ऊपर रहती है। इसके कारण एयर कन्डीशनर पर अनावश्यक भार पड़ता है।
      एयर कन्डीशनर खरीदते समय स्टार रेटेड एसी ही लेने का प्रयास करें। स्टार रेटेड एसी में बिजली की खपत कम होती है। कमरे की साईज़ के अनुकूल ही एसी की क्षमता का चयन करें। छोटे कमरे में बड़ी क्षमता का एसी लगाने से ठंढ़क थोड़ी ज्यादा जरूर मिलती है लेकिन बिजली की खपत बहुत बढ़ जाती है। कमरे के क्षेत्रफल के हिसाब से ही एसी कि क्षमता का चयन करें। १२० वर्गफ़ीट के कमरे के लिये १ टन की क्षमता वाले एसी की आवश्यकता होती है। एसी लगे कमरों की खिड़कियों पर पर्दे अवश्य लगायें। खिड़की और दरवाजे कभी खुला न रखें। बाहर से हवा आने-जाने वाले सभी स्रोतों को सील कर दें।
       एसी थर्मोस्टेट के निकट लैम्प, टीवी, कमप्यूटर या कोई अन्य गर्म होने वाला उपकरण न रखें। इन उपकरणों से गर्मी निकलती है जिसे थर्मोस्टेट ग्रहण करता है। इसके कारण एसी अनावश्यक रूप से अधिक समय तक चलता है। इससे बिजली ज्यादा खर्च होती है और बिल की राशि भी बढ़ जाती है।
      कमरे के बाहर निकले एसी के भाग पर हमेशा छांव रखने कि व्यवस्था करें। इसके लिए उसके आसपास लता या छोटे-बड़े पेड़ लगाएं। यदि यह संभव नहीं है तो उचित दूरी एवं ऊंचाई के शेड का प्रयोग करें। इससे १०% तक बिजली की बचत होती है।
      ध्यान रहे, विद्युत की बचत विद्युत उत्पादन के समतुल्य है।

Saturday, July 12, 2014

ऊर्जा का महत्त्व, उपयोग एवं संरक्ष ण


    मार्च २०११ में मैं दादा बना। पोते के आगमन पर खुशी तो हो रही थी लेकिन मन में तरह-तरह की शंकाएं भी घर कर रही थीं। कारण था - मेरा पोता निर्धारित समय से एक महीना पूर्व ही आ गया था। यह एक प्री मैच्योर्ड डिलीवरी का केस था। स्वाभाविक था - बच्चा बहुत कमजोर था और वज़न भी कम था। खुशियां तो आईं लेकिन आशंकाओं और दुश्चिन्ताओं की संभावनाओं के साथ। मैंने अपनी चिन्ता डाक्टर को बताई। वे हंसी और बोलीं - "आप नाहक परेशान हो रहे हैं। हम बेबी को १५ दिन तक इन्क्यूबेटर में रखेंगे, उसके बाद ही आपको सौंपेंगे। १५ दिनों में बेबी का फ़ुल ग्रोथ हो जायेगा। चिन्ता की कोई बात नहीं है।” इन्क्यूबेटर एक ऐसा साधन है जिसका तापक्रम मां के गर्भ के समान रखा जाता है। बच्चे को भोजन और केयर बिल्कुल मां के गर्भ की तरह मिलता है। एलेक्ट्रिकल इन्जीनियरिंग, मेकेनिकल इन्जीनियरिंग और मेडिकल साइन्स की उच्च श्रेणी की प्रतिभा के समन्वय का नाम है इन्क्यूबेटर। मेरा पोता १५ दिनों के बाद हास्पीटल से डिस्चार्ज हुआ। वह पूर्ण स्वस्थ था और वज़न भी बढ़ गया था। आजकल वह स्कूल जाता है। अपनी उम्र के लड़कों में वह सबसे ज्यादा सक्रिय है। मैं सोचता हूं कि आपरेशन थिएटर और इन्क्यूबेटर के लिए यदि हमने २४ घंटे की विद्युत आपूर्ति न दी होती, तो क्या हम अपने पोते को वर्तमान रूप में पा पाते?
      कुछ वर्ष पहले जो कार्य असंभव दिखता था, आज हम बिजली के माध्यम से चुटकी बजाते कर लेते हैं। २०वीं सदी के आरंभ में हवा और पानी ही हमारे जीवित रहने के प्रमुख कारक थे लेकिन  २१वीं सदी के आते-आते हवा और पानी के साथ बिजली का नाम भी जुड़ गया। बिजली हमारी जीवन रेखा बन गई। इस सदी के बच्चे का पहला पड़ाव होगा, बिजली से चलने वाला आपरेशन थिएटर और अन्तिम पड़ाव होगा विद्युत शवदाह गृह।
      आज की तारीख में देश का ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं होगा जो बिजली का उपयोग नहीं करता। मोबाइल फ़ोन से लेकर टीवी, किचेन से लेकर बेडरूम, झोंपड़ी से लेकर गगनचुम्बी एपार्टमेन्ट - सबमें बिजली का उपयोग अनिवार्य आवश्यकता बन गई है। हम सभी बिजली का इस्तेमाल तो करते हैं लेकि कभी हमने सोचा है कि बिजली की खपत में बचत करके आने वाली पीढ़ियों और राष्ट्र के उपर हम सीधा अनुग्रह कर सकते हैं?
      इस समय उपलब्ध बिजली का ६०% हम ताप विद्युत गृहों से प्राप्त करते हैं। ऐसी बिजली के उत्पादन के लिए कोयले की आवश्यकता होती है। कोयले का भंडार सीमित है। पूरे विश्व में अगर इसी तरह कोयले की खपत होती रही, तो आनेवाले ७५ वर्षों में कोयले का भंडार समाप्त हो जाएगा। फिर हम अगली पीढ़ी के लिए विरासत में क्या छोड़ जायेंगे? क्या हम पुनः लालटेन युग में लौट जायेंगे? समस्या भयावह है लेकिन समाधान असंभव नहीं। छोटा से बड़ा आदमी भी अगर बिजली का इस्तेमाल कंजूस के धन की तरह करे, तो हम अपनी खपत ३५% तक कम कर सकते हैं। इससे हमारा बिजली का बिल भी कम आयेगा और हमारे संसाधन भी लंबे समय तक संरक्षित रहेंगे। इसके लिए कोई कठिन श्रम करने की आवश्यकता  नहीं है, बस निम्न सुझाओं को अपनाने की जरुरत है -
      १. साधारण बल्ब या ट्यूब राड की जगह सीएफ़एल या एलईडी लैंप का उपयोग किया जाय।
      २. एसी. फ़्रीज तथा अन्य विद्युत उपकरण आई.एस.आई. अथवा स्टार रेटिंग वाला ही खरीदा जाय।
      ३. पंखा/पंप/मोटर आदि की समय-समय पत ग्रिसिंग/सर्विसिंग कराई जाय।
      ४. काम समाप्त होने पर कंप्यूटर/टीवी/माइक्रोवेव/ओवन/पंखा/लाईट स्विच से बन्द किया जाय।
      ५. एसी में लगे एयर फ़िल्टर की प्रत्येक सप्ताह सफाई की जाय।
      ६. फ़्रीज को कम से कम खोला जाय और सप्ताह में कम से कम एक बार डिफ़्रास्ट किया जाय।
      ७. घर से निकलते समय अनावश्यक विद्युत उपकरण के मेन स्विच बन्द कर दिये जांय।
            बिजली की बचत विद्युत उत्पादन करने के समतुल्य है।