Wednesday, January 11, 2017

एक पाती मुलायम भाई के नाम

       स्वस्तिश्री लिखीं चाचा बनारसी के तरफ से मुलायम भाई को शुभकामना पहुँचे। आगे समाचार हौ कि तुम्हरे बाप-बेटा की लड़ाई से हमार चिन्ता बढ़ गई है। ना तो तुम पीछे हटने के लिए तैयार हो और न तुम्हारा बेटवा। तुम तो पहलवान रहे हो। अपने बाहुकण्टक दांव में फँसाकर तुमने कितनों को चित किया है। सोनिया भौजी तो तुम्हारा बाहुकण्टक दांव ताउम्र नहीं भूल सकतीं, जब तुमने अटल जी की तेरह महीने की सरकार  गिरने के बाद उनके पी.एम. बनने के सपने को ऐन वक्त पर चकनाचूर कर दिया था। तुम्हारे दांव को मायावती आज भी याद करती हैं, जब गेस्ट हाउस में तुम्हारे चेलों ने उनकी साड़ी-ब्लाउज़ के तार-तार कर दिए थे। हमारी समझे में नहीं आ रहा है कि पहलवान तुम हो और धोबिया पाट का इस्तेमाल अखिलेशवा कर रहा है। भाइ मुलायम, बेटा बुढ़ापे की लाठी होता है। दूसरी पत्नी के चक्कर में बुढ़ापा बर्बाद करने पर काहे तुले हुए हो। हमहुं यह मानता हूँ कि पहली बीबी पांव की जूती होती है और दूसरी सिर की टोपी। अमर सिंह ने बुढ़ौती में सुन्दर युवती से तोहर बियाह कराके तोके बांड़ होने से बचा लिया; लेकिन एकर मतलब इ तो नाहीं है न कि अपने सगे बेटवा को अपना दुश्मन बना लो। भैया, तोहरी आवाज और तोहरे पैर तो अभिए से लड़खड़ाय लगे हैं; अब तो गिनती के दिन बचे हैं, राजपाट बेटवा को दे देना ही हमके उचित लग रहा है। पाण्डवों के पूर्वज ययाति की भोगलिप्सा इतनी बढ़ गई थी कि उन्होंने अपने बेटे की जवानी उधार ले ली, फिर भी वे तृप्त नहीं हुए। तुम भी काहे ययाति बन रहे हो? अब टैम आ गया है संन्यास लेने का। अडवानी और जोशी की तरह मार्ग दर्शक काहे नहीं बन जाते? शिवपलवा, अमर और साधना के चक्कर में पड़कर अपना इहलोक तो बर्बाद करिए रहे हो, परलोकवा भी हाथ से चला जाएगा। सायकिल के पीछे काहे पड़े हो, अब तुम्हरी उमर छड़ी लेकर चलने की हो गई है।
            कभी-कभी हमरे दिमाग में यह भी आता है कि जो टीवी पर देख रहा हूँ वही सत्य है या पर्दे के पीछे कोई और ड्रामा खेला जा रहा है। तुम छोटे-मोटे पहलवान नहीं हो। तुम्हारा दांव वी.पी. सिंह, चन्द्रशेखर, सोनिया भौजी और बहन मायावती भी नहीं समझ पाईं, तो हमार का औकात हौ? हम तो ऐसही कचौड़ी-जिलेबी के बाद भांग का एक गोला खाकर पान घुलाते हुए अन्दाज लगाता रहता हूँ। कही तुम और अखिलेश नूरा कुश्ती तो नहीं लड़ रहे हो? पिछला पांच साल में ५०० दंगा, बुलन्द शहर का रेप काण्ड, कैराना से हिन्दुओं को भगाने, कानून व्यवस्था गुण्डों के हवाले करने, जमीनों पर जबरन कब्जा करने, गो हत्यारों को करोड़ों रुपया देने और अपनी बिरादरी के लोगों को ऊंचे पदों पर बैठाने के अलावे बेटवा की भी कोई उपलब्धि नहीं है। कहीं इन मुद्दों से जनता का ध्यान हटाने के लिए तुम दोनों शो मैच तो नहीं खेल रहे हो? भाई मुलायम, तोहर थाह पाना बहुते मुश्किल काम है। अगर झगड़ा सचमुच का है, तो एमें तोके खुशे होना चाहिए। कम से कम तोहर बेटवा इ काबिल तो हो गया कि अब धोबिया पाट में एक्सपर्ट हो गया है। हर बाप चाहता है कि बेटे का कद और पद बाप से बड़ा हो जाय। तोके परेशानी कवना बात के हौ? अगर अगले चुनाव के बाद वह मुख्यमन्त्री नहीं भी बना, तो भी वह बेकार नहीं बैठ सकता। तुम उसको विदेश में भेजकर इंजीनियर बनाये  हो। वह सोनिया भौजी के पपुआ की तरह तो है नहीं कि कंपीटिशन देकर चपरासी की नोकरी भी हासिल न कर सके। अपना अखिलेशवा बंगलोर में कवनों कंपनी में नोकरी करके बीबी बच्चों का पेट पाल सकता है। तोके त अपना बेटवा पर नाज़ होखे के चाहीं आ इहां तू ओकरे टांग खींचने पर तुले हो। देखऽ मुलायम। हमार बात के गांठ बांध लेना, अन्त समय में बेटवे काम आयेगा। शिवपलवा सबसे पहले साथ छोड़कर भागेगा।
            चिट्ठी में केतना सलाह दूं। जल्दिए लखनऊ आऊंगा, तब डिटेल में बतकही होगी।
          इति शुभ,
                                                तोहार आपन

                                                चाचा बनारसी

Friday, January 6, 2017

हैवानियत का नया साल


            बंगलोर को बड़े शहरों में लड़कियों के लिए अपेक्षाकृत सुरक्षित माना जाता है। यही कारण है कि सुदूर बिहार और यू.पी. से भी लड़कियां यहां इन्जीनियरिंग, मेडिकल और मैनेजमेन्ट पढ़ने के लिए अकेले आ जाती हैं और अकेले रहकर ही पढ़ाई भी पूरी कर लेती हैं। यही नहीं यहां नौकरी भी अकेले रहकर कर लेती हैं। लेकिन ३१ दिसंबर २०१६ की रात में हुई दो घटनाओं ने न सिर्फ बंगलोर को कलंकित किया बल्कि देश का भी सिर शर्म से झुका दिया। पिछले  साल की अन्तिम रात को बंगलोर के कमनहल्ली में सड़क से गुजर रही एक युवती को दो मोटर सयकिल चालक युवकों ने अपहरण की नीयत से पकड़ लिया। लडकी द्वारा विरोध करने पर उससे अभद्र ढंग से छेड़खानी की गई, मोलेस्टेशन किया गया और अपने उद्देश्य में अस्फल होने पर सड़क पर ही बलपूर्वक फेंक कर गिरा दिया गया। दोनों युवक नए साल का जश्न मनाकर आ रहे थे और नशे में धुत्‌ थे। दूसरी घटना इसी शहर के महात्मा गांधी रोड की है जहां प्रशासन ने शहर के हर्ट में स्थित खुली, चौड़ी सड़क पर आधी रात के बाद दो घंटे तक सामूहिक रूप से नए साल का जश्न मनाने की अनुमति दी थी। नशे में धुत्‌ युवक-युवतियां देर तक एक-दूसरे के साथ नाचते रहे। लड़कियों को जबतक कुछ समझ में आता, नशेड़ी युवकों ने उन्हें पकड़कर चूमना शुरु कर दिया, जबर्दस्ती पकड़ कर अश्लील हरकतें आरंभ कर दी और सरे आम मोलेस्टेशन भी प्रारंभ कर दिया। पुलिस बहुत देर के बाद हरकत में आई। किसी तरह लड़कियों को बचाया गया। सबसे चौकाने वाली बात यह रही कि इन दोनों घटनाओं पर कर्नाटक के गृहमन्त्री का बयान आया कि नये साल के जश्न में ऐसी घटनाएं तो होती रहती हैं। ऐसी घटनाओं में हमेशा नंबर एक पर रहने वाली दिल्ली में भी नशे में धुत्‌ युवकों ने मुख्य मार्ग पर एक लड़की को अपना शिकार बनाया। गनीमत थी कि वहां पुलिस उपस्थित थी। पुलिस ने लड़की को बचाया। पुलिस की इस कार्यवाही से उत्तेजित लड़कों ने अपने सैकड़ों साथियों के साथ थाने पर ही हमला बोल दिया। जमकर पत्थरबाज़ी और तोड़फोड़ की।

            नये साल का जश्न मनाना बुरा नहीं है, लेकिन इस दिन शराब पीकर इन्सानियत की हद पारकर हैवानियत पर उतर आना घोर निन्दनीय है। पता नहीं पश्चिम का उअह कैसा त्योहार है जिसदिन सवेरे से ही युवक-युवतियों पर इश्कबाज़ी का नशा सवार हो जाता है। इस दिन शराब की बिक्री बेतहाशा बढ़ जाती है। अधिकांश युवक अपने को मजनू और राह चलती लड़की को लैला समझने लगते हैं। मनुष्य और पशु में अन्तर सिर्फ विवेक का होता है, वरना भूख-प्यास, निद्रा-मैथुन -- दोनों में समान होते हैं। शराब मनुष्य के विवेक को ही नष्ट कर देती है, फिर वह पशुता को प्राप्त हो जाता है। ऐसे में वह कुछ भी कर सकता है। नई पीढ़ी का अपने मूल संस्कारों से कट जाना और पश्चिम का अन्धानुकरण समस्या के मुख्य करणों मे से एक बड़ा कारण है। पाठ्यपुस्कों से तुलसी, सूर, रसखान, जायसी, सुब्रह्मण्यम भारती, चन्द्रबरदाई जैसे कवियों और लेखकों के लुप्त होने के कारण अब युवा पीढ़ी टीवी के बिग बास और देल्ही-वेली जैसी फिल्मों से ही संस्कार ग्रहण करने के लिए वाध्य है। परिणाम सामने है। यह देश जबतक India रहेगा, तबतक ऐसा होता रहेगा। इसे भारत बनाइये, ऐसी समस्याएं अपने आप सुलझ जायेंगीं। हमें नहीं चाहिए आंग्ल नव वर्ष और वेलेन्टाईन डे, जो हमारे युवक-युवतियों को हैवानियत की ओर ले जाय।  हम अपने, दिवाली, दशहरा, पोंगल, उगाडी, वर्ष प्रतिपदा, बैसाखी और ईद-बकरीद में ही खुश हैं।

Monday, December 26, 2016

बेनकाब मायावती

        ८ नवंबर की रात के बाद मोदी द्वारा नोटबन्दी किए जाने के बाद लगभग सभी विपक्षी दल विक्षिप्त हो गए। अब उन्होंने खुद ही प्रमाण देना शुरु कर दिया है कि उनकी यह दशा क्यों हुई। कल दिनांक २६ दिसंबर को प्रवर्तन निर्देशालय द्वारा जारी की गई सूचना में यह खुलासा हुआ है कि बसपा सुप्रिमो मैडम मायावती ने दिल्ली के करोल बाग स्थित यूनियन बैंक के अपनी पार्टी के खाते में ८ दिसंबर के बाद १०४.३६ करोड़ रुपए के पुराने ५०० और हज़ार रुपए के नोट जमा कराए। विवरण निम्नवत है --
दिनांक             राशि
१०.११.१६          ३६ लाख
२.१२.१६ १५.० करोड़
३.१२.१६ १५.८ करोड़
५.१२.१६ १७.० करोड़
६.१२.१६ १५.० करोड़
७.१२.१६ १८.० करोड़
८.१२.१६ १८.० करोड़
९.१२.१६ ५.२ करोड़
कुल १०४.३६ करोड़
इनमें से १०२ करोड़ रुपए पुराने १००० रुपए तथा शेष २.३६ करोड़ रुपए ५०० रुपए के नोट थे। यही नहीं उनके भाई आनन्द कुमार के उसी बैंक के खाते में भी इसी अवधि में १.४३ करोड़ के पुराने नोट जमा कराए गए। मायावती हमेशा की तरह यही कहेंगी कि ये रुपए गरीब पार्टी के कार्यकर्ताओं द्वारा दिए गए चन्दे थे। मायावती कुछ भी बहाने बनाएं लेकिन यह सत्य है कि इतनी बड़ी धनराशि घर में रखने के पीछे पार्टी का भला कम और अपनी धनलिप्सा की प्रवृत्ति ज्यादा थी। मायावती से ममता तनिक भी कम विक्षिप्त नहीं हैं। जो नेता जितना विक्षिप्त है, मोदी को उसी अनुपात में गालियां दे रहा है। सूत्र बताते हैं कि स्वास्थ्य लाभ करने के बाद जय ललिता को नोटबन्दी की जब जानकारी हुई, तो वे सदमा नहीं झेल पाईं। राहुल गांधी भी विक्षिप्तता की सीमा पार कर गए हैं। अगर उनके, उनकी माताजी और बहन-बहनोई के यहां छापे डाले जांय, तो मायावती के काले धन से कई गुणा ज्यादा काला धन प्राप्त होगा। लेकिन मोदी के हाथ बंधे हुए हैं। उनके घर पर छापा डालने से यह प्रचार किया जाएगा कि मोदी ने राजनीतिक बदला लेने के लिए छापा डलवाया था।
           हिन्दुस्तान में सबसे भ्रष्ट प्रजाति नेताओं की है। इन्होंने अपने स्वार्थ के लिए समाज के हर तबके, व्यापारियों और नौकरशाहों को भ्रष्ट बना रखा है। सोनिया गांधी ने अगस्ता हेलिकाप्टर घोटाले में पूर्व वायु सेनाध्यक्ष को भी लपेट लिया। विश्वास नहीं होता कि कोई सेनाध्यक्ष बिना किसी बड़े दबाव के नियमों में फेरबदल करके सोनिया जी की पसन्दीदा फ़र्म को क्रयादेश दिला सकता है। लेकिन वे मायावती की तरह मूर्ख भी नहीं हैं कि काला धन बैंक में जमा करके बदनामी मोल लें। उनके और अन्य नेताओं के तहखाने से काला धन निकालने के लिए मोदी और जेटली को नई युक्ति सोचनी पड़ेगी। विदेशी खातों की पूर्ण और पुष्ट जानकारी प्राप्त होने के बाद ही इनपर शिकंजा कसना संभव हो पाएगा। नोटबन्दी के बाद विदेशी कालाधन को शीघ्र देश में लाए जाने की अब अपेक्षा की जा रही है। मोदी अगर इसमें सफल हो गए तो इतिहास पुरुष बन जायेंगे। मुलायम, ममता, लालू, करुणानिधि, शरद पवार और अन्य धंधेबाज नेता मायावती की तरह बैंक में भले ही कालाधन जमा न करें, परन्तु चार दिनों के बाद अपने नोटों को रद्दी में बदलने से नहीं रोक सकते।
प्रधान मन्त्री जी से अनुरोध है कि वे विपक्ष के भौंकने से विचलित हुए बिना इनके परिसर पर छापा डलवाएं। लोढ़ा और भुजियावाले के यहां इनके धन का बहुत छोटा हिस्सा था। सिर्फ कांग्रेस ही नहीं, मुलायम, मायावती, जय ललिता, करुणानिधि, राजा और पवार जैसे नेताओं ने भी देश को खूब लूटा है। इन्हें भी बेनकाब करने का अब समय आ गया है।

Sunday, November 27, 2016

हम नहीं सुधरेंगे

      भारत की पुलिस और भारत की रेलवे ने यह कसम खा रखी है कि “हम नहीं सुधरेंगे"। रेल मन्त्री सुरेश प्रभु के बारे में सुना था कि वे एक कर्मठ और संवेदनशील नेता हैं। प्रधान मन्त्री नरेन्द्र मोदी ने उनके इन्हीं गुणों को ध्यान में रखकर उन्हें रेल मन्त्री बनाया था, लेकिन पिछले ढाई सालों में रेलवे की गुणवत्ता में कोई सुधार नहीं हुआ, उल्टे व्यवस्था बिगड़ती ही गई। पिछले रविवार को कानपुर के पास हुई रेल दुर्घटना ने दिल को झिंझोड़कर रख दिया। रेलवे द्वारा ट्रैकों के समुचित रखरखाव की कलई खुल गई। प्रधान मन्त्री तेज रफ़्तार ट्रेनों और बुलेट ट्रेन की बात करते हैं। क्या ऐसी ट्रेनें चलाना भारतीय रेल के लिए संभव है? कहावत है - Speed gives thrill but invites danger. रेलवे एक सफेद हाथी बन चुका है, जिसमें किसी सुधार की संभावना नहीं दिखाई दे रही। ट्रेनों की रफ्तार जिस गति से बढ़ेगी यात्रियों की मौत भी उसी रफ्तार से होगी। एक बहुत साधारण सा काम है - ट्रेनों का सही समय से परिचालन। लेकिन रेलवे को भारत की जनता के कीमती समय की कोई परवाह नहीं है। सुरेश प्रभु जी को मैंने फ़ेसबुक और ट्विटर के माध्यम से ट्रेनों के सही समय पर परिचालन के लिए कई बार लिखा, लेकिन आज तक न कोई सुधार हुआ और न ही उन्होंने कोई उत्तर देने की ज़हमत उठाई। इतने संवेदनशील हैं हमारे रेल मन्त्री। मेरे घर को एक ट्रेन जाती है - लिच्छवी एक्सप्रेस -- १४००५/१४००६। पिछले हफ्ते अप और डाउन दोनों ट्रेनें लगभग १२ घंटे विलंब से चलीं। आज भी यह उतने ही विलंब से चल रही है। यह ट्रेन कभी भी सही समय से नहीं चलती। मैंने इसे समय से चलाने के लिए रेल मन्त्री से कई बार आग्रह किया, लेकिन हर बार ढाक के तीन पात का ही परिणाम रहा।
ट्रेनों में आदमी पिज्जा और बर्गर खाने के लिए सफर नहीं करता। यात्री की एक ही अपेक्षा रहती है -- समय पर सुरक्षित अपने गंतव्य तक पहुंच जाना। रेलवे इस उद्देश्य में पूरी तरह नाकाम साबित हुआ है। भ्रष्टाचार भी चरम पर है। प्रतीक्षा सूची के यात्री ताकते रह जाते हैं और टीटीई पैसा लेकर दूसरों को बर्थ आवंटित कर देते हैं। पता नही सायबर कैफ़े वालों के पास कौन सा कोटा होता है कि वे किसी भी ट्रेन में किसी भी दिन का कन्फर्म टिकट निकाल लेते हैं। प्रधान मन्त्री के स्वच्छता अभियान को रेलवे ठेंगा दिखा रहा है। छोटे-छोटे रेलवे स्टेशन के शौचालय के पास से आपको नाक दबाकर निकलना पड़ेगा। जेनरल बोगी में सफर करने वालों को तो सरकार जानवर से भी बदतर मानती है। किसी भी लंबी दूरी के ट्रेन में जेनरल बोगी में बोरों की तरह भरे यात्रियों को किसी भी दिन देखा जा सकता है। लोग शौचालयों में अखबार बिछाकर बैठे मिलते हैं। यात्रियों को मल-मूत्र त्यागने की भी सुविधा नहीं मिलती। स्टेशनों पर जिसमें दिल्ली और मुंबई भी शामिल हैं, प्रतीक्षा कर रहे यात्रियों को बैठने के लिए पर्याप्त संख्या में बेन्च भी नहीं हैं। लोग फ़र्श पर ही बैठे देखे जा सकते हैं। 
इन्दिरा गांधी ने इमरजेन्सी में ढेर सारे अत्याचार किए थे, लेकिन इमर्जेन्सी को ट्रेनों के सही समय पर चलने के लिए आज भी याद किया जाता है। आखिर क्या कारण है कि मोदी राज में अधिकांश ट्रेनें लेट चल रही हैं? क्या यह समस्या नियंत्रण के बाहर है? यदि हां, तो रेल मन्त्री इसे स्वीकार करते हुए इस्तीफ़ा दें। अकेले मोदी क्या-क्या कर लेंगे। अगर उनके मन्त्रिमंडल में ऐसे नक्कारा मन्त्री हों तो अच्छे दिनों की कल्पना भी नहीं की जा सकती।

Thursday, November 17, 2016

एक पाती प्रधान मन्त्री के नाम


 प्रिय मोदी बाबू,
            भगवान तोके हमेशा स्वस्थ और प्रसन्न रखें!
      आगे समाचार ई हौ कि आजकल लोग भगवान को कम और तोके जियादा याद कर रहे हैं। पान की दूकान से लेकर स्टेट बैंक तक लोग केवल तुम्हरे नाम की माला जप रहे हैं। अइसा स्ट्राइक काहे किए कि गरीब से अमीर तक की जुबान पर न राम हैं, न कृष्ण हैं, न मोहम्मद हैं, न ईसा हैं। धनतरिणी को पार करने के लिए सब तुम्हारा ही नाम जप रहे हैं। बचपन में सुनते रहे कि भगवान एक घड़ी में राई को पहाड़ और पहाड़ को राई बना सकते हैं। बस सुना ही था, कभी देखा नहीं था। तुमने दिखा भी दिया। एक ही रात में मायावती का मोटा-तगड़ा हाथी करिया बकरी बन गया , अखिलेश की सयकिल पंक्चर हो गई. राहुल का हाथ अपने ही गाल पर तमाचा लगाने लगा, केजरीवाल का फ़ोर्ड फ़ाउन्डेशन डालर रखकर भी कंगाल हो गया, अतंकवादी दिवालिया हो गए और नक्सलवादी फेनु Have not हो गए। नेपाल और बांगला देश से आनेवाले पाकिस्तानी नोटों के सहारे सत्ता हासिल करनेवाली ममता की तो भगई ही ढीली हो गई। गनीमत है कि जयललिता अभी पूरी तरह स्वस्थ नहीं है, वरना वह तो डेलीगेशन लेकर डोनाल्ड ट्रम्प के पास जाती। बड़ा गड़बड़ काम किया मोदी बाबू तुमने। शिवसेना की हफ़्ता वसूली बंद करा दी और दाउद के नोटों को कागज का टुकड़ा बना दिया। कोई नोट गंगा में बहा रहा है, तो कोई जला रहा है, तो कोई कूड़े में फेंक रहा है। वाह भाई तूने तो कमाल कर दिया। २-जी, ३-जी, कोयला घोटाला, हेलिकोप्टर घोटाला के नायक-नायिका के हृदय के टुकड़े युवराज पप्पू को महज ४००० रुपए के लिए लाईन में लगवा दिया। दो करोड़ की गाड़ी लाईन में खड़ी तो हो नहीं सकती, इसलिए बेचारे को पसीना बहाना ही पड़ा। अब तो लालू चारा काटने वाली मशीन में 500 और हजार के नोटों को काटकर अपनी गायों को खिलायेंगे। भैया मोदी! तुमने तो अमर सिंह को सिंगापुर में इलाज कराने के लायक भी नहीं छोड़ा। शिवपाल और मुलायम कैसे चुनाव लड़ेंगे? एक ठे बात समझ में नहीं आ रही है। ई नितिशवा तोहरे समर्थन में कैसे आ गया। लालू की उंगली पकड़ कर चलने वाला खुलकर नोटबन्दी का समर्थन कर रहा है। पर्दे के पीछे कोई डिलिंग हो गई है क्या? वैसे उहो लालू के अत्याचार से छटपटाइये रहा है। पाला बदलने का  वह पुराना खिलाड़ी है। कबहूं कुछ हो सकता है।
      सुप्रीम कोर्ट के टी.एस. ठाकुर से जरा होशिया रहना बचवा। ई मत समझना कि व्यापरियों, उद्योगपतियों, दाउदों, आतंकवादियों, नेताओं और नौकरशाहों के पास ही १०००-५०० का जखीरा है। जज भी कुछ कम नहीं हैं। एक सिरफिरे ने सुप्रीम कोर्ट में तोहरे निर्णय के खिलाफ जनहित याचिका दायर कर रखी है। हालांकि बंबई और चेन्नई हाई कोर्ट ने ऐसी याचिका खारिज कर दी है, लेकिन ठाकुर का कोई भरोसा नहीं है। उसका बाप कांग्रेस के कोटे से कश्मीर में मन्त्री रह चुका है। उसकी काट सोचकर रखना बचवा। वैसे हमको भी एक दिन बैंक से पैसा निकालने मे तीन घंटे तक लाईन में खड़ा रहना पड़ा, लेकिन हमको कोई शिकायत नहीं है। देश के लिए सेना के जवान जान कुर्बान कर रहे हैं, तुम जान कुर्बान करने पर आमादा हो। ऐसे में हमारे २-३ घंटे अगर कुर्बान हो जाते हैं तो कैसा गिला और कैसी शिकायत। बचवा, इसी तरह छप्पन इन्च के सीने के साथ काम करते रहो। हाथी चलता है, तो कुकुर सारे भूंकते ही है।
     थोड़ा लिखना, ज्यादा समझना। हम इहाँ राजी-खुशी हैं। तुम बुलन्द रहना।

     इति। तुम्हारा -- चाचा बनारसी

Monday, October 24, 2016

एक पाती अखिलेश बचवा के नाम

प्रिय बबुआ अखिलेश,
राजी खुशी रहो।
आगे समाचार ई है कि टीवी चैनल और अखबार वाले तोके तरह-तरह की सलाह दे रहे हैं। कुछ लोग तो तोके हीरो बनाए हुए हैं और कुछ लोग नालायक बेटा। हम भी सोचे कि इस संकट की घड़ी में चाचा होने के नाते तुमको कुछ सलाह देइये दें। बचवा ई बात का खयाल रखना कि हम शिवपाल चाचा या अमर अंकल नहीं हैं, हम बनारसी चाचा हैं। आजकल तुम जैसी फाइट दे रहे हो, उसको देखकर हिरण्यकश्यपु और प्रह्लाद की याद आ रही है है। तोहरे बाबूजी तोके मुख्यमंत्री तो बना दिए, लेकिन तुमसे वे कभी खुश नहीं रहे। पहले भी सार्वानिक रूप से तुम्हारे काम-काज पर विरोधी दल की तरह टिप्पणी करते रहे। आज तुम्हारी माँ जिन्दा रहती तो तुमको ये दिन नहीं देखने पड़ते। कहते हैं कि जब सौतेली माँ घर में आती है तो सबसे पहले बाप ही सौतेला हो जाता है। तुम्हारे बाप का व्यवहार देखकर अब इस बात पर यकीन न करने का कवनो सवाले नहीं उठता है। बेटा तुममें एक छोड़कर कवनो कमी नहीं है। तुम आदमी पहचानने में थोड़ा ज्यादा टैम लेते हो। तुम्हारे पिता के केन्द्र में जाने के बाद तुम्हारा चाचा, अरे वही शिवपलवा, अपने को ही मुख्यमंत्री की कुर्सी का असली अधिकारी मानता था। वह बन भी जाता कि बीच में तुम टपक पड़े। उस समय मुलायम भी तुमको एक आज्ञाकारी पुत्र के रूप में जानते थे। लेकिन इसमें कोई सन्देह नहीं कि शिवपलवा पहले ही दिन से तुमपर घात लगाए था। उसने और आज़म खाँ ने तुम्हें पप्पू बनाने का कोई भी अवसर हाथ से जाने नहीं दिया। वे शायद भूल गए कि उनका पाला आस्ट्रेलिया में पढ़े एक इंजीनियर से पड़ा था। तुम समय-समय पर उन्हें २५० वोल्ट का झटका देते रहे, वे फिर भी नहीं संभले। मुज़फ़्फ़र नगर में दंगा कराकर और बुलंद शहर में सार्वजनिक बलात्कार कराकर तुम्हें कुर्सी से बेदखल करने की बहुते कोशिश हुई, लेकिन तब तुम अपने पिताश्री का विश्वास जीतने में कामयाब रहे। लेकिन अब जब तुमने सब के पेट पर लात मारने की कोशिश की है, तो सब एकजूट हो गए। बचवा, राजनीति में हो तो इतना तो जानते ही होगे कि चुनाव में बेतहाशा खर्च होता है। तुम्हारे जैसे साफ-सुथरा मनई सैकड़ों करोड़ का इन्तज़ाम कैसे करता? ऐन मौके पर चाचा को हटा दिए और गायत्री प्रजापति का इस्तीफ़ा लेकर अपनी कैकयी माता को भी नाराज़ कर दिए। बाबर सिर्फ १२,००० सेना लेकर हिन्दुस्तान में आया था। उसका साथ अगर यहां के राजा नहीं देते तो वह दिल्ली तक नहीं पहुंच पाता। तुमने यह तो साबित कर दिया है कि तुम एक काबिल मुख्यमंत्री हो, जो भ्रष्टाचार और जुगाड़ में विश्वास नहीं करता। लेकिन तुम्हारा यह गुण आज़मों, अमरों और शिवपालों का कैसे बर्दाश्त होगा? अब तो तुम्हें आर-पार की लड़ाई लड़नी है। जब टिकट के बँटवारे में तुम्हारी कवनो पूछे नहीं है, तो चुनाव के बाद तुम्हें मुख्यमंत्री कौन बनायेगा। इसलिए बचवा, अपनी लड़ाई आप लड़ो। महाभारत में अर्जुन के सामने उनके दादा, मामा, चचेरे भाई, रिश्तेदार और मित्र खड़े थे, लेकिन उन्होंने धर्मयुद्ध में किसी को नहीं बक्शा। तुम भी हथियार लेकर युद्ध के लिए तैयार हो जाओ। समय बहुत कम है। लंबी तैयारी करनी है। यदुवंशी श्रीकृष्ण तुम्हारा साथ दें, यही प्रार्थना है।
    थोड़ा लिखना, ज्यादा समझना। हम इहां ठिकेठाक हैं। तुम अपना ख्याल रखना।
इति शुभ। 
      तुम्हारा
 चाचा बनारसी

Friday, September 2, 2016

कश्मीर की समस्या

      कश्मीर की समस्या ऐसी समस्या है जिसके मूल में जाने का कोई प्रयास ही नहीं करता है। वैसे भी हम कश्मीर घाटी के मुट्ठी भर सुन्नी मुसलमानों के असंतोष को पूरे कश्मीर की समस्या मान बैठे हैं। जम्मू और कश्मीर के अधिकांश क्षेत्रों में कोई समस्या नहीं है। लद्दाख और जम्मू में तो बिल्कुल ही नहीं है। भारत के मुसलमानों की जिस मानसिकता के कारण  पाकिस्तान का निर्माण हुआ वही मानसिकता घाटी के सुन्नी मुसलमानों में आज भी कायम है। वे भारत में रहना ही नहीं चाहते हैं। वे कश्मीर का पाकिस्तान में विलय चाहते हैं। वे दूसरे विकल्प के रूप में एक स्वतंत्र देश के रूप में अपना अस्तित्व देखना चाहते हैं। इसमें से कोई भी विकल्प भारत को मन्जूर नहीं हो सकता। भारत अपने अन्य राज्यों की  तुलना में कश्मीर पर सबसे ज्यादा खर्च करता है। केन्द्र सरकार हमेशा इस मुगालते में रही है कि कश्मीर का विकास करके वे कश्मीरियों का दिल जीत लेंगे। लेकिन यह मृग मरीचिका ही सिद्ध हुई है। अगर कश्मीर की सीमाएं पाकिस्तान से नहीं मिलतीं, तो कश्मीर में कोई समस्या ही नहीं होती। अगर हैदराबाद की सीमा पाकिस्तान से मिलती, तो हैदराबाद देश का दूसरा कश्मीर होता। जो मुसलमान पाकिस्तान के कट्टर समर्थक थे, वे देश के बंटवारे के साथ ही पाकिस्तान चले गए। जो मुसलमान भारत में रह गए, उनमें से अधिकांश का शरीर ही भारत में रहता है, आत्मा पाकिस्तान में बसती है। संभवत: भारत के एक और विभाजन की आशा में वे हिन्दुस्तान में रह गए। इसी सपने की पूर्ति के लिए यहां आतंकवादी हमले किए जाते हैं और सामान्य नागरिक संहिता लागू नहीं करने दी जाती। निम्नलिखित तरीके से कश्मीर समस्या का समाधान किया जा सकता है --
१. पाकिस्तान का अस्तित्व समाप्त कर दिया जाय। इसे बलूचिस्तान, सिन्ध, पंजाब और पश्चिमोत्तर सीमा प्रान्त में बांट दिया जाय। सैन्य कार्यवाही करके गुलाम कश्मीर को भारत में मिला लिया जाय।
२. धारा ३७० खत्म करके भारतीयों को कश्मीर में बसने और उद्योग लगाने की अनुमति प्रदान की जाय। कश्मीरी पंडितों की वापसी हो और सेवानिवृत्त सैनिकों को विशेष सुविधा के साथ उस क्षेत्र में बसाया जाय। जनसंख्या का संतुलन हिन्दुओं के पक्ष में किए बिना वहां स्थाई शान्ति की कल्पना नहीं की जा सकती। इतिहास गवाह है कि देश के जिस भाग में हिन्दू अल्पसंख्यक हुआ वह हिस्सा देश से कट गया या कटने की तैयारी में है।
३. देश में समान नागरिक संहिता लागू की जाय
४. अगर उपर बताए गए विकल्पों को लागू करने में समय लगने या किसी अन्य प्रकार की दिक्कत हो तो लंका से सीख लेते हुए जाफ़ना मे तमिल समस्या के निराकरण का उपाय अपनाना चाहिए। कश्मीरियों के पास तो सिर्फ पत्थर है, जाफ़ना के तमिल उग्रवादियों के पास तो वायु सेना और जल सेना भी थी। वहां सैनिक अभियान चलाकर देशद्रोहियों का इस तरह सफ़या कर देना चाहिए ताकि कोई पाकिस्तान की ओर मुंह करके नमाज़ पढ़ने का भी साहस न कर सके।
सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल भेजने से कुछ नहीं होनेवाला। एक दृढ़प्रतिज्ञ केन्द्र सरकार ही कड़े कदम उठाकर घाटी की समस्या का समाधान कर सकती है। कश्मीर में अलगाववाद का रोग इतना क्रोनिक है कि होमियोपैथी की मीठी गोलियों से निदान असंभव है। आपरेशन करना ही पड़ेगा। संयोग से नरेन्द्र मोदी के रूप में देश ने एक दृढ़ इच्छाशक्ति का प्रधान मंत्री पाया है। उनसे देशवासियों को काफी उम्मीदें हैं।