Monday, May 12, 2014

काशी में मतदान

       मैं काशी के महामनापुरी का निवासी हूं और सौभाग्य से अन्तिम दौर तक मेरा नाम मतदाता सूची में मौजूद रहा। विधान सभा के लिये मैं रोहनिया के लिये और लोकसभा के लिए वाराणसी से अपने प्रतिनिधि चुनता हूं। दोनों की मतदाता सूची में मेरा नाम है लेकिन यह विडंबना ही है कि लोकतन्त्र के सबसे निचले पायदान, ग्राम पन्चायत की मतदाता सूची में मेरा नाम नहीं है। दो बार सूची में रहने के बाद तीसरी बार अचानक गायब हो गया। पता नहीं चुनाव आयोग हजारों करोड़ रुपए खर्च करके किस तरह मतदाता सूची तैयार कराता है कि जीवित मतदाता सूची से गायब हो जाते हैं और मृत जीवित हो उठते हैं। चुनाव आयोग और प्रशासन की महिमा लाख प्रयत्न करने के बाद भी मेरी समझ में नहीं आई। निष्पक्ष और प्रभावी मतदान की तैयारियों के लिये चुनाव आयोग द्वारा पानी की तरह बहाया गया पैसा गंगा की सफाई के लिये बहाये गये पैसों के समान ही है। जिस तरह गंगा मैली उसी तरह चुनाव आयोग भी।
मैंने आज सवेरे ही निर्णय लिया कि मतदान करने के बाद ही नाश्ता करुंगा। मतदान केन्द्र मेरे घर से १/२ कि.मी. की दूरी पर आई.टी.आई. करौदी में था। मैं सात बजे मतदान स्थल पर पहुंच गया। लोग मुझसे भी कई गुना जागरुक थे। सैकड़ों लोग पहले से ही लाईन में खड़े थे। पीठासीन अधिकारी और पोलिंग अधिकारी बहुत सुस्त थे। एक मतदाता पर कमसे कम तीन मिनट का समय ले रहे थे। मतदाताओं के लिये किसी तरह के शेड या तंबू की व्यवस्था नहीं थी। पसीने से तरबतर मतदाता चटखती धूप में अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रहे थे। दिन के नौ बजे ही बाहर का तापमान ४२ डिग्री पहुंच गया। प्यास से बुरा हाल था लेकिन आस-पास कही पानी की व्यवस्था नहीं थी। इतनी गर्मी में घंटों खड़े होकर मतदान करना ७५ के उपर के वरिष्ठ नागरिकों के लिये बहुत मुश्किल साबित हो रहा था। समाधान लाईन में खड़े मतदाता ही निकाल रहे थे। स्वयं पीछे रहकर बुजुर्गों को आगे कर दे रहे थे। बनारस की यह मौलिक तहज़ीब मुझे बहुत अच्छी लगी।
बूथ के अन्दर किसी बाहरी व्यक्ति का प्रवेश निषिद्ध था। राजनीतिक पार्टियों के कार्यकर्त्ताओं ने अपना केन्द्र २०० मीटर की दूरी पर पर ही रखा था। लेकिन बूथ के अन्दर आकर आम आदमी का एक कार्यकर्त्ता लाईन में खड़े मतदाताओं से झाड़ू पर मुहर लगाने का लगातार आग्रह कर रहा था। न पीठासीन अधिकारी उसे मना कर रहा था और न केन्द्रीय सुरक्षा बल के जवान। मुझसे नहीं रहा गया। मैं उसे लेकर पीठासीन अधिकारी के पास गया और शिकायत दर्ज़ कराई। उन्होंने लिखित शिकायत लेने से इन्कार कर दिया। तभी पेट्रोलिंग मज़िस्ट्रेट साहब पधारे। मैंने उनसे भी शिकायत की। उन्होंने उसे बाहर भेज दिया। मैं उसकी गिरफ़्तारी की मांग कर रहा था लेकिन चुनाव अधिकारी और मजिस्ट्रेट ने उसे राहत देते हुए सिर्फ़ बाहर भेजा। यह घटना भाग संख्या ३०९ के पोलिंग बूथ पर हुई। मैं अपना मोबईल फोने घर पर ही छोड़ आया था इसलिये कोई फोटो नहीं ले पाया लेकिन अगर सीसी टीवी कैमरा उस बूथ पर लगा होगा तो उस अवांछित एजेन्ट, मेरी, चुनाव अधिकारी तथा मजिस्ट्रेट की बातचीत अवश्य रिकार्ड हुई होगी। यह घटना सवेरे ७.३० बजे की है।
कुछ ही देर बाद ‘आप’ का एक नेता टोपी लगाये हुए बूथ पर पहुंचा और उसने भी वही करना शुरु किया जो कुछ देर पहले ‘आप’ के एक कर्यकर्त्ता ने किया था। लोगों ने उसकी उपस्थिति और वह भी पार्टी की टोपी में, कड़ा विरोध किया। टोपी उतारकर उसे भी जाना पड़ा।  यह घटना भाग संख्या ३१० के पोलिंग बूथ पर सवेरे ८ बजे घटी। पुलिस के जवान और चुनाव अधिकारी सिर्फ़ तमाशबीन रहे। दो घंटे की मिहनत के बाद मैं वोट डालने में सफल रहा। घर आकर टीवी पर समाचार देखा। कांग्रेस के प्रत्याशी अजय राय सीने पर पंजे के बैज के साथ सीना तानकर पोलिंग बूथ में पहुंचे और वोट दिया। मीडिया के अलावे किसी ने इसपर आपत्ति नहीं की। कोई शायद ही भूला होगा जब वोट डालने के बाद पोलिंग बूथ से २०० मीटर की दूरी के बाहर संवाददाताओं से बातचीत में फूल दिखाने पर बदोदरा में नरेन्द्र मोदी पर एफ़.आई.आर. दर्ज़ हुई थी। सारे मोदी विरोधी दलों और प्रत्याशियों को चुनाव आयोग और प्रशासन का संरक्षण मिल रहा है। यह अनजाने में नहीं हो रहा है, बल्कि पूर्ण रूप से नियोजित है। देखते हैं देश की जनता इस मिलीभगत का उत्तर कैसे देती है?

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