Tuesday, May 20, 2014

वंशवाद की विषबेल

        आज़ादी के बाद अगर अंग्रेज भी ब्रिटिश कांग्रेस पार्टी के नाम से चुनाव लड़ते तो कम से कम ४४ सीटें जरुर पा जाते। उपलब्धियों के नाम पर गिनाने के लिये उनके पास ढेर सारे प्रकरण थे। भारत में विश्व की सबसे लंबी रेल लाईन का निर्माण उन्होंने किया था, डाक-तार सेवा का आरंभ उन्होंने किया था, न्याय प्रणाली की स्थापना उन्होंने की थी, पुलिस-व्यवस्था उन्हीं की देन थी आदि, आदि। कांग्रेस की तरह अपनी इन उपलब्धियों का मीडिया और गुलाम चाटुकारों के माध्यम से प्रचार करके वे बड़ी आसानी से भारतीय राजनीति में एक सम्मानजनक उपस्थिति दर्ज़ करा सकते थे लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। कारण यह था की अंग्रेजियत की पालकी ढोने के लिये उनकी चहेती पार्टी कांग्रेस में ही अग्रिम पंक्ति के नेताओं की कोई कमी नहीं थी। पंडित नेहरू के प्रधानमंत्री बनने के कारण वे आश्वस्त थे कि ब्रिटेन और अमेरिका के हित पहले की तरह ही सुरक्षित रहेंगे। देश की एकता, अखंडता और सामाजिक सौहार्द्र को छिन्न-भिन्न करने की जो कोशिश वे २०० वर्षों तक करते रहे, नेहरू जी ने आते ही उसे अंजाम दे दिया। सांप्रदायिक आधार पर देश को दो टुकड़ों में बांट दिया। नेहरू जी इससे भी संतुष्ट नहीं हुए। कश्मीर का एक तिहाई हिस्सा पाकिस्तान को दे दिया और बचे कश्मीर को धारा ३७० का उपहार देकर शेष भारत से हमेशा के लिये काट दिया। हिन्दी-चीनी भाई-भाई का नारा लगाकर उत्तर पूर्व की ६०००० वर्ग किलो मीटर जमीन चीन को उपहार में दे दिया। सदियों से स्वतंत्र देश तिब्बत को खुशी-खुशी चीन का गुलाम बना दिया। ज्ञातव्य है कि १९६२ के पूर्व भारत की सीमायें कही भी चीन से नहीं मिलती थीं। देश की एकता और अखंडता के साथ उन्होंने जितना खिलवाड़ किया उतना उनकी प्यारी बेटी ने भी नहीं किया। लेकिन हिन्दुस्तान पर तानाशाही थोपने का प्यारी बेटी ने अभूतपूर्व प्रयोग किया। कुर्सी बचाने के लिये देश में आपात्काल थोप दिया गया। आपात्काल की सबसे बड़ी देन थे संजय गांधी जिन्हें न संविधान में विश्वास था और न नियम-कानून में। हिन्दुस्तान वंशवाद की बेड़ी में पुनः परतंत्र हो गया। जनता ने पहली बार अपनी ताकत दिखाई और वंशवाद एक ही झटके में धूल चाटता नज़र आया। लेकिन इस देश में न तो जयचन्दों की कमी रही है और न मीरज़ाफ़रों की। जनता के विश्वास को एक बार फिर सत्ता के दलालों ने धोखा दिया और ढाई साल बाद ही वंशवाद पुनः स्थापित हो गया जो कुछ छोटे अन्तरालों को छोड़कर फलता फूलता रहा। हद तो तब हो गई जब कांग्रेसियों ने देश की सत्ता एक विदेशी महिला को सौंपने का निर्णय ले लिया। भला हो मुलायम सिंह यादव, डा. सुब्रह्मण्यम स्वामी और तात्कालीन राष्ट्रपति डा. ए.पी.जे. कलाम का जिन्होंने इटली और अमेरिका की मन्शा पूरी नहीं होने दी। निराश महिला ने रिमोट कन्ट्रोल से सत्ता संचालित करने का निर्णय लिया। वरिष्ठ और योग्य नेताओं को दरकिनार कर एक नौकरशाह को प्रधानमंत्री बना दिया गया। सफल नौकरशाह बहुत अच्छे YES MAN होते हैं। मनमोहन सिंह इस कसौटी पर खरे उतरे। पिछले १० सालों में वंशवाद ने पूरे देश में नंगा नाच किया। भ्रष्टाचार, महंगाई, अराजकता ने सुरसा के मुंह की तरह विस्तार पाया। राष्ट्रीय सुरक्षा, अर्थव्यवस्था, न्याय, नैतिकता - सबके सब मां-बेटे की सरकार की भेंट चढ़ गए। दामाद ने एक लाख लगाकर ३०० करोड़ की संपत्ति अर्जित कर ली और स्वयं विदेशी खातों में जमा अकूत धन के स्वामी बन बैठे। शहज़ादे की ताज़पोशी के लिए चाटुकारों की विशेष टोली का निर्माण किया गया जिसमें झूठ के बड़बोले और चरित्रहीनों का दबदबा था। दिग्विजय सिंह, अभिषेक मनु सिंहवी, शशि थरुर, कपिल सिब्बल, सलमान खुर्शीद, जनार्दन द्विवेदी आदि आदि विरोधियों का चरित्रहरण और शहज़ादे की वन्दना करने के लिये चारण का काम मनोयोग से करने लगे। सभी एक ऐसे युवक के गुणों का बखान करने की होड़ लगाये हुए थे जो लिखित परीक्षा देकर बाबू की नौकरी पाने की पात्रता भी नहीं रखता था। बांह चढ़ाकर अपनी ही सरकार के आदेशों को पत्रकारों के सामने चिन्दी-चिन्दी करने के अलावे उसे कुछ भी नहीं आता था।
जनता के सब्र का बांध आखिर टूट ही गया। खंडित राजनीतिक आज़ादी हमने १९४७ में प्राप्त की थी लेकिन यह आज़ादी वंशवाद की गिरवी बन गई थी। नरेन्द्र मोदी की आवाज़ जन-जन की आवाज़ बनी और हिन्दुस्तान ने मानसिक गुलामी से मुक्ति पाने का निर्णय ले ही लिया। मोदी की आवाज़ अवाम की आवाज़ बन गई जिसे पूरे हिन्दुस्तान ने ध्यान से सुना। १६ मई को नतीज़ा पूरी दुनिया ने देखा। एक चमत्कार हुआ है जिसकी कल्पना कुछ साल पहले की नहीं जा सकती थी। भारत अपने स्वर्णिम भविष्य की ओर अग्रसर है। १९४७ अगर राजनीतिक आज़ादी के लिये याद किया जायेगा, तो निश्चय ही २०१४ भी मानसिक आज़ादी के लिये सदा स्मृति पटल पर रहेगा।
                              तेरा वैभव अमर रहे मां, हम दिन चार रहे न रहें।
    सत्यमेव जयते, भारत माता की जय, वन्दे मातरम।

No comments:

Post a Comment