पूजनीय काका,
चरण-कमलों में सादर परनाम!
आगे काका के मालूम हो कि ईहां का समाचार अच्छा है, हम
राजी खुशी हैं। बस, ठंढ़िए कभी-कभी वाणप्रस्थी हडियन में समा जाती
है। काका, तुम तो जानते ही हो कि अपनी दिहाड़ी की मज़दूरी से सिर्फ
नून, तेल और लकड़ी का ही इन्तज़ाम हो पाता है। तोहार चेलवा दिल्ली
का मुख्यमंत्री बन गया है। आम आदमी है, इसलिये बड़े अरमान से एगो
चिट्ठी लिखकर खिचड़ी पर कुछ पैसा-कौड़ी मनीआर्डर से भेजने का निवेदन किया था। का बतायें
काका, ई परब-त्योहार हमलोगों के गले का फांस बनकर आता है। अपने
घर खाने के लिये नून-रोटी-मुरई लेकिन बहिनौरा और फुफु के यहां चिऊड़ा, लाई, मिठाई, आलू, गोभी, मटर, दाल आऊर कुछ नकदी अगर
खिचड़ी पर न भेजी जाय, तो बहन-बुआ की जगहंसाई तो होगी ही,
बहनोई और फुफा शादियो-बियाह में आना बन्द कर देंगे। इहे कुल्ही सोच के
अरविन्दजी को एक पाती लिखे रहे। लेकिन ऊ कौनो जवाबे नहीं दिये। अब तो ऊ सचिवालय की
छत से जनता दरबार चला रहे हैं। का करते; उधार-पाईंच लेकर खिचड़ी
भेज दिये।
काका, एक बात हमरी समझ में नहीं आ रही है। ई तोहार टोपिया
केजरीवलवा लेकर कैसे भाग गया? हम तोहके बचपन से देख रहे हैं।
तुम्हरी टोपी तो झकाझक सफेद हुआ करती थी, अभी भी है। उसपर कवनो
भाषा में कुछ लिखा नहीं रहता था। आदर्श, चरित्र और ईमानदारी की
कोई भाषा तो होती नहीं। गांधीजी की टोपी पर भी एको अच्छर नहीं लिखा था। अगर वे कुछ
लिखवाते भी, तो उसपर रामराज्य ही लिखवाते। लेकिन वे जानते थे
कि कांग्रेस के काले-भूरे अंग्रेज उसको लाइक नहीं करेंगे। सो, उन्होंने टोपिया को ब्लैंक ही छोड़ दिया। बाद में जवाहर लाल नेहरू ने टोपिया
हथिया ली। उसपर कभी सेकुलरिज्म लिखा, तो कभी समाजवाद। बड़े आराम
से तीन पीढ़ी राज की। चौथी पीढ़ी करने को तैयार है। काका, जब तुम्हरी
टोपिया केजरिवलवा किडनैप कर रहा था, तो तुम्हारी समझ में का कुच्छो
नहीं आया? पहिले उसपर लिखा - मैं भी अन्ना, तू भी अन्ना। इन्कम टैक्स कमिश्नर को चेला बनाकर तुम भी खूब खुश हुए थे। जब
टोपिया पर वह आम आदमी लिखवाया, तब तुम्हारी आंख खुली। तब तक तो
बहुत देर हो चुकी थी; वह आम आदमी छाप, अन्ना
टोपी का पेटेन्ट करा चुका था। गांधी जी की पार्टी में औरतें टोपी नहीं पहनती थीं। इसने
तो औरतों को भी टोपी पहना दी है। हिम्मत तो देखो इसकी, जिस लोकपाल
को खून-पसीना, अनशन-आन्दोलन, जूस-पानी से
सींचकर तुमने राहुल बबुआ की मदद से संसद से पास कराकर रिकार्ड पीरियड में पर्णबो मुखर्जी
से दस्तखत करा लिया, उसी को वह बकवास कह रहा है। माना कि उसमें
न एनजीओ है, न मीडिया है और न कारपोरेट घराना। फिर भी कुछ तो
है। उसकी नीयत ठीक नहीं है। तुम जब दिल्ली में अनशन करते थे, तो वह रतिया में गाज़ियाबाद पहुंच जाता था। बीवी के साथ मालपुआ खाता था और फिर
भिनसहरे तुम्हारे पास हाज़िर हो जाता था। तुम तो ठहरे भोले बाबा। स्वामी अग्निवेश को
भी अपने साथ बिठा लिया था। वह तो भला हो पुलिस कप्ताईन किरण बेदी का। पता नहीं कैसे
कैमरा अग्निवेशवा के घर पर लगवा दी, स्वामी-सिब्बल वार्त्तालाप
तो टेप किया ही, फोटुआ भी खींच लिया। न्यूज चैनलों को वीडियो
भी दे दिया। तब जाकर तुम्हारा आन्दोलन बचा। वह भेदिया तो केजरीवाल की मदद से तुम्हारे
बगल का आसन तो हथियाइये लिया था। उसने भी केजरीवाल की काफी मदद की थी। सोनिया भौजी
की राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार परिषद का मेम्बर बनवाने के लिये उसने एड़ी-चोटी एक कर
दी थी। एक बार भौजी के साथ चाय भी पिलवाई थी। तुमने उसे पहचाना, लेकिन देर से। इससे अब कम से कम इतना तो फायदा होगा ही कि वह तुम्हारी झकाझक
सफ़ेद धोती और कुर्ते का अपहरण नहीं कर पायेगा।
काका, ई जाड़ा-पाला का दिन जब बीत जाय, तो अपनी सेहत को ध्यान में रखते हुए देश के लिये कुछ करने का मन बनाओ। केजरीवलवा
तो क्वीन का प्यादा बन गया, आम से खास हो गया, प्रशान्त भूषणवा कश्मीर पाकिस्तान को दे रहा, ऊ विदूषक
का क्या नाम है ...... कुमार विश्वास। कुछ ही दिन पहले नरेन्दर मोदी को सामने बैठाकर
राग दरबारी की कवितायें सुना रहा था, अब नक्सलवादी विनायक सेन
के कसीदे काढ़ रहा है। शहज़ादा के खिलाफ़ चुनाव लड़ेगा, लखनऊ के फाइव-स्टार
होटल से। सुना है उस होटल के एक कमरे का एक दिन का किराया ५००० रुपिया है। रुपये-पैसे
की चिन्ता अब आम आदमी को क्यों होगी? सैंया भये कोतवाल
........। कही खुदा-न-खाश्ते पैसे की कमी पड़ भी गई, तो अमेरिका
का एनजीओ ‘आवाज़’ और महादानी फ़ोर्ड किस काम
आयेंगे। काका, फ़ोर्ड को तो आप जानते ही होंगे। आपके चेले के एनजीओ
‘परिवर्तन’ और ‘कबीर’
के लिये उसने अबतक साढे तीन लाख डालर से ज्यादा पैसे दिये हैं। चलते-चलते
‘आवाज़’ के बारे में भी बता दें। अमेरीकी
पूंजीपतियों के द्वारा स्थापित यह संगठन अमेरिकी हितों के लिये विदेशी सरकारों को गिराकर
अव्यवस्था फैलाने का काम करती है। इसका बजट भारत के वार्षिक बजट से ज्यादा है। जैसमिन
क्रान्ति के नाम पर मिस्र, लीबिया और सीरिया के गृहयुद्ध में
इसका प्रत्यक्ष योगदान है। काकू, चुप बैठने का समय नहीं है। अभी
नहीं, तो कभी नहीं। तुमने राष्ट्र-सेवा का व्रत ले रखा है। अब
जब सारा राष्ट्र नरेन्दर मोदी के नेतृत्व में राष्ट्र निर्माण का संकल्प ले रहा है
और बहुरुपिया केजरीवाल को आगे कर भ्रष्ट वंशवाद, प्रौक्सी वार
की तैयारी कर रहा है, चुप बैठना या तटस्थ रहना ऐतिहासिक भूल होगी।
जिस भूमिका का निर्वाह श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र के धर्मयुद्ध में किया था,
उसी भूमिका में आओ। आओ अन्ना, आओ, देर मत लगाओ।
ई पाती जरुरत से ज्यादा ही लंबी हो गई। भारत में कवनो चीज छोटे में कब खत्म
होती है। रामजी के राज मिलल -चौदह साल के बाद, पाण्डवन के राज
मिलल - तेरह साल के बाद, उहो सबकुछ गंववला के बाद और आज़ादी भी
मिली, त उहो एक हज़ार साल बाद - भारत माता के अंग-भंग के साथ.
सुराज का मौका ६५ साल के बाद उपस्थित हुआ है। मैं इन्हीं आंखों से, इसी देह से भारत माता को परम वैभव पर आसीन होते देखना चाहता हूं। भतीजे की
ख्वाहिश पूरी करो काका। छोटी मुंह बड़ी बात। अगर गलती हो गई हो तो माफ़ करना। छमा बड़न
को चाहिये, छोटन को अपराध।
पाती बन्द करता हूं। थोड़ा लिखना, ज्यादा समझना। बाल-बच्चे
और तोहरी बहुरिया तोके पयलग्गी बोल रहे हैं। अपने स्वास्थ्य पर ध्यान देना। उमर भी
कोई चीज है। किसी के चढ़ावे में आकर अन्न-जल जिन त्यागना। तुम्हारी हुंकार ही काफी है।
शेष कुशल। इति शुभ।
तोहार भतीजा - चाचा बनारसी
khubh likha hai khub lahegi chacha banarasi jindabad
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