कल्पना
कीजिये कि दिनांक २७-१०-१३ को नरेन्द्र मोदी की पटना रैली के दौरान गांधी मैदान और
पटना रेलवे स्टेशन पर हुए सिरियल बम ब्लास्ट जैसे बम ब्लास्ट राहुल गांधी की अहमदाबाद
की रैली में हुए होते?
देश-विदेश, सरकार, मीडिया,
स्वघोषित सेकुलर, जातिवादी और वंशवादी पार्टियों
की क्या प्रतिक्रिया होती? क्या नरेन्द्र मोदी वैसे विस्फोट के
बाद एक दिन भी सत्ता में रह पाते? इन छद्म सेकुलरिस्टों ने बवाल
मचा कर उन्हें कब का पदच्युत कर दिया होता। याद कीजिये - राम-मन्दिर - बाबरी मस्जिद
का ढांचा गिरा था उत्तर प्रदेश में और कांग्रेसियों ने बर्खास्त की थीं राजस्थान,
मध्यप्रदेश और हिमाचल की भाजपा की सरकारें। ऐसा लोकतंत्र और ऐसी संसदीय
प्रणाली सिर्फ भारत में संभव है।
देश
की सबसे बड़ी और चुस्त सुरक्षा व्यवस्था का उपयोग करने वाले राजवंशी परिवार के राहुल
गांधी कहते हैं कि इन लोगों ने मेरी दादी को मार डाला, मेरे पिता
को मार डाला और अब मेरी जान के पीछे पड़े हैं। अपनी जान को खतरे में बताकर वे जनता से
सहानुभूति की उम्मीद रखते हैं। अगले चुनाव में कांग्रेस के पास जनता से कहने के लिये
है ही क्या? इस पार्टी ने सदा जनता की भावनाओं का दोहन किया है
और दी है देश विभाजन की त्रासदी, कश्मीर की समस्या, चीन के हाथों शर्मनाक पराजय, विभाजन और उसके बाद के दंगों
में लक्ष-लक्ष जनता कत्लेआम, १९८४ में सिक्खों का सामूहिक नरसंहार,
गरीबी, बेरोजगारी, भूखमरी
और समाज का विभाजन। आज जब नरेन्द्र मोदी कांग्रेस के कुकृत्यों का जवाब मांग रहे हैं,
तो बौखलाए राजनेता षडयंत्र पर उतर आये हैं।
नरेन्द्र
मोदी की पटना की रैली के दौरान हुए बम-विस्फोट सुनियोजित थे। यहश विस्फोट नीतीश और
कांग्रेस की युगलबन्दी का सीधा परिणाम था। नरेन्द्र मोदी को हमेशा के लिये मिटा देने
की साज़िश थी। देश की राजनीति को इन छद्म सेकुलरिस्टों ने उस अंधेरी गली में ढकेल दिया
है जहां सहिष्णुता का स्थान व्यक्तिगत घृणा ने ले लिया है। इन फ़ासिस्ट ताकतों को हिन्दुस्तान
से कोई प्यार नहीं। इन्हें सिर्फ़ सत्ता चाहिये, चाहे वह नरेन्द्र मोदी की हत्या के
मार्फ़त आये, आई.एस.आई. से हाथ मिलाकर आये, नक्सलवाद से आये, जातिवाद फैलाकर आये या जनता के भावनात्मक
शोषण से आये।
पटना
में बम-विस्फोट होता है और देश का गृह-मंत्री मुम्बई में फिल्मी शो करता है। राहुल, सोनिया और
प्रधानमंत्री संवेदना के दो बोल नहीं बोलते हैं। ओसमा बिन लादेन की मौत पर भी आंसू
बहाने वाली मीडिया सलाह दे रही है कि मोदी को ब्लास्ट के बाद रैली नहीं करनी चाहिए
थी। नीतीश ने तो कृतघ्नता की हद कर दी। अगर भाजपा का सहयोग नहीं मिला होता तो वे कभी
भी बिहार के मुख्यमंत्री नहीं बन पाते। लेकिन नरेन्द्र मोदी से व्यक्तिगत द्वेष उन्हें
नीचता की इस हद तक ले जा सकता है, इसकी कल्पना नहीं थी। मोदी
की अत्यन्त सफल रैलियों से आक्रान्त कोई आईएसआई और कांग्रेस से इतना घृणित समझौता कैसे
कर सकता है? लालू ने आडवानी को सम्मान जनक ढंग से सिर्फ़ गिरफ़्तार
किया था, जान से मारने की साज़िश नहीं रची थी। नीतीश लालू से कई
योजन आगे निकल गये। केन्द्र और खुफ़िया एजेन्सियों की हिदायतों के बाद भी इरादतन लापरवाही
बरती गई। बिहार सरकार का यह अपराध अक्षम्य है। इसका फ़ैसला जनता की अदालत में ही हो
सकता है और वह दिन भी अब ज्यादा दूर नहीं। पटना में विस्फोट कराकर केन्द्र सरकार यू.पी
और अन्य राज्यों की छद्म सेकुलरिस्ट सरकारों को यह संदेश भी देना चाहती है कि सुरक्षा,
दंगों और शान्ति-व्यवस्था के नाम पर नरेन्द्र मोदी की होनेवाली रैलियां
रोक दी जांय। कुछ भी कर सकती हैं ये स्वार्थी सरकारें, लेकिन
जनता का मन नहीं बदल सकतीं। लोकनायक जय प्रकाश नारायण के बाद हिन्दुस्तान ने पहली बार
नरेन्द्र मोदी के रूप में एक जन-नायक पाया है। उसे कई जयचन्द, कई मिरज़ाफ़र और कई पप्पू भी एक साथ मिलकर नहीं रोक सकते।
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