Thursday, October 3, 2013

नीड़

तिनके, पत्ते थे साथ चुने
धागे थे अरमानों के बुने
हल्का झोंका भी सह न सका
सूखे पत्तों सा बिखर गया
वह नीड़ अचानक उजड़ गया।

हमने, तुमने मिलकर जिसकी
रचना की थी अपने खूं से
सपना ही कहें तो अच्छा है
जब आंख खुली तो सिहर गया
वह नीड़ अचानक उजड़ गया।

गलती मेरी या हवा की थी
मौसम की थी या ज़माने की
क्या भूलूं किसको याद करूं
किस गली-मोड़ से गुज़र गया
वह नीड़ अचानक उजड़ गया।

सोचा था उसका साथ है जब
कुदरत की है छाया मुझपर
अब थके पैर हैं दिशाहीन
न आये समझ मैं किधर गया
वह नीड़ अचानक उजड़ गया।

कोई एक कदम चलकर भागा
कोई दो पग चलकर रूठ गया
तेरे जाने के बाद प्रिये
अपना भी हमसे बिछड़ गया
वह नीड़ अचानक उजड़ गया।



      

No comments:

Post a Comment