Sunday, September 25, 2011

सुब्रह्मण्यम स्वामी > भाजपा+कांग्रेस+कम्युनिस्ट+अन्य............



कहावत है - अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता। लेकिन सुब्रह्मण्यम स्वामी ने इसे झूठा सिद्ध कर दिखाया है। कुछ वर्ष पूर्व जब उन्होंने सोनिया गांधी के विदेशी बैंकों में जमा अकूत धन के विषय में लेख लिखा, प्रधान मंत्री को पत्र लिखा और प्रेस कान्फ़रेन्स में अपनी बात दुहराई, तो कांग्रेसियों ने उन्हें पागल करार दिया। सरकार समर्थित मीडिया ने उन्हें अफ़वाह फैलाने वाला और सस्ती लोकप्रियता के लिए मनगढ़न्त कहानी बनाने वाला सबसे बड़ा झूठा घोषित किया। कांग्रेसियों ने डा. स्वामी के घर हमला भी किया था। लेकिन सुब्रह्मण्यम स्वामी न तो डरे और न हार मानी। २-जी स्पेक्ट्रम घोटाले की गंध सबसे पहले उन्होंने ही सूंघी। नवम्बर, २००८ में पौने दो लाख करोड़ रुपयों के घोटाले में संचार मंत्री सहित कई प्रभावशाली मंत्रियों और वी.आई.पी. की संलिप्तता के विषय में प्रमाण सहित उन्होंने जांच के लिए पांच चिठ्ठियां लिखीं। हमारे तथाकथित ईमानदार प्रधान मंत्री ने न कोई कार्यवाही कि और न चिठ्ठियों का कोई उत्तर ही दिया, उल्टे राजा, मारन और चिदम्बरम को क्लीन चीट दी अलग से। डा. स्वामी ने सर्वोच्च न्य़ायालय में जनहित याचिका दायर की, खुद ही बहस की और सुप्रीम कोर्ट को पूर्ण रूप से संतुष्ट कर दिया कि घोटाला हुआ था। सरकार तो निष्क्रिय रही लेकिन सुप्रीम कोर्ट सक्रिय हुआ और सारा घोटाला सामने आ गया। फिर एक-एक कर कैग (CAG), सी.बी,आई, ट्राई (TRAI) और संयुक्त संसदीय समिति (JPC) ने भी घोटाले की पुष्टि की। परिणामस्वरूप पूर्व संचार मंत्री ए. राजा, करुणानिधि की बेटी और दर्जनों घोटालेबाज तिहाड़ जेल की शोभा बढ़ा रहे हैं। कोई स्वीकार करे या न करे, भ्रष्टाचार के खिलाफ़ पूरे देश में जो माहौल बना, उसके लिए जमीन सुब्रह्मण्यम स्वामी ने ही तैयार की थी। अब डा. स्वामी की बातों को कोई हल्के में नहीं लेता - न कोर्ट, न सरकार और न जनता। मीडिया का रुख अभी भी संतोषजनक नहीं है। सुब्रह्मण्यम स्वामी के अनुसार जेल में बंद ए. राजा बहुत छोटी मछली हैं। बड़ी मछलियां तो आज भी बाहर हैं। गृहमंत्री पी. चिदम्बरम और पूर्व संचार मंत्री दयानिधि मारन का इस घोटाले में बहुत बड़ा हिस्सा है। मारन को तो मंत्री पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा, चिदम्बरम जी जल्दी ही चित्त होने वाले हैं।
गत २१ सितम्बर को सुप्रीम कोर्ट को डा. स्वामी द्वारा सौंपे गए अभिलेखों में ३० जनवरी, २००८ का वह अभिलेख भी है जिसमें चिदम्बरम ने खुली निविदा के बदले "पहले आओ, पहले पाओ" की ए. राजा की नीति का अनुमोदन किया था। ध्यान देने की बात है कि इस नीति के कारण ही दोनों अपनी मनपसन्द कंपनियों को २-जी स्पेक्ट्रम का इच्छित भाग आवंटित कर पाए जिसके कारण देश को पौने दो लाख करोड़ रुपयों का घाटा उठाना पड़ा। २-जी स्पेक्ट्रम घोटाले का एक बड़ा हिस्सा राजा के अतिरिक्त चिदंबरम को भी प्राप्त हुआ था, जिसे उन्होंने विदेशी बैंक में जमा किया। इन्टरनेट पर जारी सूचना के अनुसार (Rudolf Elmer, 2.8.11, Port 9999 SSL enabled, IP 88.80.16.63) विदेशी बैंक Rothschild Bank AG के खाता संख्या 19sub में चिदंबरम के नाम से ३२००० करोड़ रुपए जमा हैं जबकि ए. राजा के विदेशी खाते में मात्र ७८०० करोड़ रुपए जमा हैं। प्रधान मंत्री अभी भी उन्हें बेदाग बता रहे हैं। चिदंबरम यदि मंत्रिपरिषद से त्यागपत्र दे देते हैं, तो अभी जेल जाएंगे और नहीं देते हैं अगली सरकार जेल भेजेगी।
सुब्रह्मण्यम स्वामी ने २-जी घोटाले में तीसरे और सबसे बड़े लाभार्थी के रूप में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के नाम का खुलासा किया है। उनका कहना है कि कुल घोटाले की ६०% राशि सोनिया जी और उनके रिश्तेदारों के पास गई है। सोनिया जी की बहनें, अनुष्का और नाडिया - प्रत्येक ने १८००० करोड़ रुपए पाए। उन्होंने दिनांक १५.४.११ को २०६ पृष्ठों की एक याचिका (Petition) उपलब्ध प्रमाणों के साथ प्रधान मंत्री के समक्ष दायर की है जिसके द्वारा उन्होंने सोनिया जी के खिलाफ़ मुकदमा चलाने की गुजारिश की है। उन्होंने सन १९७२ के बाद सोनिया जी द्वारा अवैध धन कमाने और भ्रष्टाचार के विवरण मज़बूत साक्ष्यों के साथ दिए हैं। स्विस पत्रिका Schweizer Illustriete (अंक ११.११.९१) का संदर्भ देते हुए यह रहस्योद्‌घाटन किया है कि उस समय यूनियन बैंक आफ़ स्विट्‌ज़रलैंड (UBS) के राजीव गांधी के खाते में २.२ बिलियन डालर जमा थे और सोनिया जी के खाते में १३००० करोड़ रुपए। प्रधान मंत्री कार्यालय से उनकी याचिका का कोई उत्तर प्राप्त नहीं हुआ है, होगा भी नहीं। हमारे ईमानदार प्रधान मंत्री सब कर सकते हैं लेकिन सोनिया जी की नाराजगी नहीं मोल ले सकते। कुर्सी और अस्तित्व का सवाल जो है।
एक वर्ष पूर्व तक सुब्रह्मण्यम स्वामी को गंभीरता से नहीं लेने वाले उनके आलोचक भी अब उनकी बातों में गहराई तलाश रहे हैं। २-जी मामले में डा, स्वामी ने जिसपर भी ऊंगली उठाई है, उस पर घोटाला साबित हुआ है। राजा, मारन, चिदम्बरम की पोल तो खुल गई है, अब सोनिया जी की बारी है।
धुन के पक्के डा. स्वामी ने असंभव से दीखने वाले अनेक कार्य अकेले किए हैं जिसे कई संगठन मिलकर भी नहीं कर सकते थे। लोकनायक जय प्रकाश नारायण की संपूर्ण क्रान्ति से प्रेरणा प्राप्त बनी जनता पार्टी को जब उसके सारे घटक दलों ने छोड़ दिया, सुब्रह्मण्यम स्वामी ने अकेले उसका झण्डा पकड़े रखा। वे आज भी संपूर्ण क्रान्ति के लिए प्रतिबद्ध जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के आह्वान पर वे हार्वार्ड युनिवर्सिटी, अमेरिका में प्रोफ़ेसर की नौकरी छोड़कर दिल्ली आए और तात्कालीन जनसंघ को सुस्पष्ट स्वदेशी आर्थिक नीति दी। इन्दिरा गांधी की तानाशाही और आपात्काल का उन्होंने प्रखर विरोध किया। सरकार ने उन्हें गिरफ़्तार करने की बहुत कोशिश की लेकिन उन्हें गिरफ़्तार नहीं किया जा सका। चमत्कारिक रूप से उन्होंने सरकारी गुप्तचर एजेन्सियों को छकाते हुए इमरजेन्सी के दौरान एक दिन संसद की कार्यवाही में भाग भी लिया। बाहर निकलने पर उनको गिरफ़्तार करने की मुकम्मिल तैयारी थी लेकिन पता नहीं वे किस रास्ते से बाहर निकले कि पुलिस हाथ मलती रह गई; वे गिरफ़्तार नहीं किए जा सके। इमरजेन्सी की समाप्ति तक भूमिगत रहकर उन्होंने देशव्यापी आन्दोलन चलाया था। १९९०-९१ में चन्द्रशेखर की सरकार में केन्द्रीय वाणिज्य एवं विधि मंत्री की हैसियत से राष्ट्र के लिए आर्थिक सुधारों का पहला ब्लू प्रिन्ट डा. स्वामी ने ही तैयार किया था जिसे पूर्व प्रधान मंत्री नरसिंहा राव ने भी अनुमोदित किया। नरसिंहा राव उनकी प्रतिभा से इतने प्रभावित थे कि उन्होंने दलगत राजनीति से उपर उठकर उन्हें लेबर स्टैन्डरड्स और इन्टरनेशनल ट्रेड कारपोरेशन का अध्यक्ष बनाया। नरसिंहा राव, मनमोहन सिंह और सुब्रह्मण्यम स्वामी की तिकड़ी ने ही भारत में आर्थिक सुधारों की नींव डाली। इसमें सर्वाधिक उल्लेखनीय भूमिका डा. स्वामी की ही थी। प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह ने कुछ ही महीने पूर्व इस तथ्य को स्वीकार किया है।
डा. सुब्रह्मण्यम स्वामी देश की विदेश नीति, आन्तरिक सुरक्षा, आतंकवाद, आर्थिक नीति, भ्रष्टाचार और व्यवस्था परिवर्तन पर स्पष्ट राय और विचार रखते हैं। वे चीन के साथ भारत के अच्छे संबन्धों के सदा से पक्षपाती रहे हैं। इसके लिए उन्होंने चीनी भाषा सीखी। आज भी इसके लिए वे कार्यरत हैं। सन १९८१ में अपनी चीन यात्रा के दौरान उन्होंने चीन के राष्ट्राध्यक्ष डेंग ज़ियाओपिंग से भेंट की और दोनों देशों के नागरिकों के मध्य विश्वास बहाली के लिए तिब्बत स्थित कैलाश-मानसरोवर तीर्थ को भारतीयों के लिए खोलने का आग्रह किया। डा. स्वामी के तर्कों और बातचीत से प्रभावित हो डेंग ज़ियाओपिंग ने फौरन सहमति दी और तत्संबन्धी आदेश जारी किए। इस तरह हिन्दू तीर्थयात्रियों के लिए वर्षों से बन्द पड़ी कैलाश-मानसरोवर कि यात्रा का दुर्लभ स्वप्न पूरा हो सका। डा. स्वामी ने तीर्थयात्रियों के पहले जत्थे का नेतृत्व भी किया और १९८१ में ही कैलाश-मानसरोवर की यात्रा भी की।
भारत और श्रीलंका के बीच समुद्र से होते हुए सामुद्रिक जल परिवहन के लिए भारत सरकार ने सेतु समुद्रम शिपिंग चैनेल परियोजना को मंजूरी दे दी। इस परियोजना के पूरा होने पर हजारों वर्ष पुराने श्रीराम सेतु का नष्ट हो जाना निश्चित था। कई हिन्दू संगठनों ने इस परियोजना का विरोध किया लेकिन हमारी तथाकथित धर्म निरपेक्ष सरकार को हिन्दुओं की धार्मिक भावनाओं की परवाह ही कब रहती है, सो परियोजना पर काम आरंभ हो गया। डा. स्वामी ने सन २००९ में इस परियोजना को रोकने के लिए सीधे प्रधान मंत्री को पत्र लिखा। हमेशा की तरह प्रधान मंत्री कार्यालय से कोई उत्तर नहीं आया। कभी हार न मानने वाले स्वामी ने सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई। वहां से उन्हें स्टे मिला और इस तरह श्रीराम सेतु, जिसके अस्तित्व की पुष्टि नासा ने भी की थी, नष्ट होने से बच गया। अदालतों में अपने मामलों की पैरवी के लिए डा. स्वामी कोई वकील नहीं रखते। वे स्वयं बहस करते हैं जबकि उनकी पत्नी सुप्रीम कोर्ट की नामी वकील हैं।
अपनी बेबाकी और साफ़गोई के लिए प्रसिद्ध डा. स्वामी के विचार कभी अस्पष्ट नहीं रहे। कश्मीर के लिए बनी धारा ३७० की समाप्ति के लिए वे कल भी प्रतिबद्ध थे, आज भी हैं। श्रीलंका के आतंकवादी संगठन लिट्टे के वे मुखर विरोधी रहे हैं। वे महात्मा गांधी की तरह किसी भी तरह के धर्म परिवर्तन के धुर विरोधी हैं। एक जुझारू राष्ट्रवादी होने के नाते वे इस बात के पक्षधर हैं कि बांगला देश से आए करोड़ों अवैध नागरिकों को बसाने के लिए बांगला देश का कुछ हिस्सा भारत से संबद्ध कर लिया जाय। इस समस्या का यही समाधान है। भारत में इस्लामी आतंकवाद के प्रखर विरोधी डा. स्वामी के पास इस समस्या के समाधान के लिए ठोस समाधान है। उन्हें कुछ लोग घोर हिन्दूवादी और हिन्दू तालिबान का नेता कहते हैं। उनपर कई बार अराष्ट्रीय तत्वों द्वारा जानलेवा हमले भी हो चुके हैं लेकिन इन सबसे अप्रभावित डा, सुब्रह्मण्यम स्वामी अपने सिद्धान्तों और आदर्शों पर अडिग रहते हुए राष्ट्र कि सेवा में अहर्निश लगे हैं। उन्हें सर्वधर्म समभाव में अटूट श्रद्धा और विश्वास है। उनका अपना परिवार इसका सबसे बड़ा और प्रत्यक्ष प्रमाण है। उनकी पत्नी डा. रुखसाना स्वामी पारसी हैं। उनकी दो बेटियां हैं - गीतांजली स्वामी और सुहासिनी हैदर - एक दामाद मुस्लिम है। उनका ब्रदर इन ला यहूदी है और सिस्टर इन ला ईसाई।
भारत से भ्रष्टाचार के समूल उन्मूलन के लिए पूर्ण रूप से प्रतिबद्ध डा. सुब्रह्मण्यम स्वामी के भगीरथ प्रयास के कारण ही भारत के इतिहास के सबसे बड़े घोटाले २-जी स्पेक्ट्रम स्कैम का पर्दाफ़ाश हुआ। अन्ना हजारे और बाबा रामदेव के आन्दोलन की पृष्ठभूमि डा. स्वामी ने ही तैयार की। भ्रष्टाचारमुक्त भारत के निर्माण के लिए डा. सुब्रह्मण्यम स्वामी के योगदान को कभी विस्मृत नहीं किया जा सकता। भारत के सभी राजनीतिक संगठन एकसाथ मिलकर भी इस संघर्षशील योद्धा का मुकाबला नहीं कर सकते।

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