Sunday, January 22, 2012

सर्वोच्च पदों का अवमूल्यन




कांग्रेस की सरकार जब-जब केन्द्र में रही है,
इसने देश के सर्वोच्च पदों का अवमूल्यन करने में अपनी ओर से कोई को्र
कसर नहीं छोड़ी है। इस परंपरा की शुरुआत इन्दिरा गांधी ने देश पर आपात्‌ काल
थोपने के कुछ ही दिनों बाद की, जब सर्वोच्च न्य़ायालय के चार वरिष्ठ न्यायधीशों की योग्यता
और वरिष्ठता को दरकिनार कर ए.एन.राय को सर्वोच्च न्यायालय के
मुख्य न्यायाधीश का प्रतिष्ठित पद सौंपा गया। जिस अपेक्षा से उन्हें यह दायित्व सौंपा
गया, उन्होंने इसे पूरा भी किया। श्रीमती गांधी के रायबरेली संसदीय क्षेत्र से चुनाव
को अवैध घोषित करने तथा उन्हें छः वर्षों तक चुनाव लड़ने से अयोग्य
ठहराने के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को पलटने में सर्वोच्च न्यायालय को कोई
असुविधा नहीं हुई। कारण था मुख्य न्यायाधीश के पद पर इन्दिरा गांधी के वफ़ादार जस्टिस
राय का विद्यमान होना और अपनी वरिष्ठता को नज़रअन्दाज़ करने के विरोध में जस्टिस खन्ना
के नेतृत्व में चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों का त्यागपत्र देना। सर्वोच्च न्यायालय के अवमूल्यन के वे प्रारंभिक दिन थे।
भारत का राष्ट्रीय चुनाव आयोग तो टी.एन. शेषन के मुख्य चुनाव आयुक्त
बनने तक पूर्ण रूप से सरकार का जेबी संगठन था। शेषन ने पहली बार भारत की जनता को चुनाव
आयोग की स्वायत्तता से परिचित कराया लेकिन सरकार को यह रास नहीं आया। सरकार ने एक सदस्यीय
चुनाव आयोग को त्रिसदस्यीय बनाकर चुनाव आयोग के भी पर कतर दिए। फिर से चुनाव आयोग १९८०
के पूर्व की राह पर अग्रसर है। उत्तर प्रदेश में हाथी को ढंकने तथा उत्तराखंड में जानबूझकर
भयंकर हिमपात के दौरान चुनाव की तिथि रखने के पीछे कांग्रेस को फ़ायदा पहुंचाने का उद्देश्य
साफ़ हो जाता है।
भारत के सर्वोच्च संवैधानिक पद - राष्ट्रपति के पद का अवमूल्यन करने
में भी कांग्रेस की केन्द्रीय सरकार को तनिक भी हिचक नहीं हुई।
डा. राजेन्द्र प्रसाद, डा. राधाकृष्णन और डा. ए.पी.जे.कलाम ने अपने कार्यों और ऊंचे
व्यक्तित्व से राष्ट्रपति पद की गरिमा में जो चार चांद लगाया था, क्या शेष राष्ट्रपति
उसके आसपास भी पहुंच सके? नेहरू जी के बाद कांग्रेस ने पार्टी और पार्टी नेतृत्व के
प्रति प्रतिबद्धता को ही राष्ट्रपति पद के लिए सर्वोच्च योग्यता मानी। हद तो तब हो
गई जब भ्रष्टाचार के मामलों का सामना कर रहे देश के लिए एक अनजान प्रत्याशी को राष्ट्रपति
बना दिया गया। आज की तिथि में प्रधान मंत्री के पद का जो अवमूल्यन हुआ है, किसी से
छिपा नहीं है। कोई भी मंत्री, प्रधान मंत्री के अधीन नहीं है। वास्तविक सत्ता का केन्द्र
कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष का आवास हो गया है। स्वायत्त संस्था सी.वी.सी
के अध्यक्ष के पद पर दागी थामस साहब की नियुक्ति, मानवाधिकार
आयोग के अध्यक्ष के पद पर विवादास्पद पूर्व मुख्य न्यायाधीश बालकृष्णन की नियुक्ति
इन संस्थाओं का सप्रयास अवमूल्यन नहीं तो और क्या है? सरकार द्वारा
सी.बी.आई., सी.ए.जी और राज्यपाल द्वारा अपने विरोधियों को साधने
के अनगिनत उदाहरण आए दिन समाचार पत्रों की सुर्खियों में हमेशा रहते हैं।
सेना में वरिष्ठता और योग्यता को दरकिनार न करने
की एक श्रेष्ठ परंपरा रही है। इसे पहली बार तोड़ा इन्दिरा गांधी ने। आपात्‌ काल के बाद
पुनः सत्ता प्राप्त करने के उपरान्त श्रीमती गांधी का आत्मविश्वास हिल गया था। उन्हें
सभी दिशाओं से षडयंत्र की गंध आती थी। जनरल एस.के.सिन्हा, अपनी वरिष्ठता और योग्यता के आधार पर स्थल सेनाध्यक्ष के पद के एकमात्र सही
दावेदार थे। उनका कैरियर बेदाग था और वे सबसे वरिष्ठ थे लेकिन इन्दिरा गांधी के इशारे
पर उनकी वरिष्ठता को नज़र अन्दाज़ कर उनसे कनिष्ठ जनरल को स्थल सेनाध्यक्ष बना दिया गया।
जनरल सिन्हा के पास त्यागपत्र देने के सिवा कोई दूसरा विकल्प नहीं था। उनका दोष यही
था कि वे लोकनायक जय प्रकाश नारायण की बिरादरी के थे और जे.पी. की संपूर्ण क्रान्ति
की जन्मभूमि बिहार के रहने वाले थे।
कैसी विडंबना है कि पड़ोसी पाकिस्तान में सरकार
की उम्र सेनाध्यक्ष तय करता है और हिन्दुस्तान में सेनाध्यक्ष की उम्र सरकार तय करती
है! भारत के वर्तमान सेनाध्यक्ष जनरल वी.के.सिंह एक भ्रष्ट सरकार की कुटिल मंशा के
ताज़ा शिकार हैं। इस बार सेना का मनोबल गिराने और इसे विवादास्पद बनाने के लिए सरकार ने सारी सीमाएं तोड़ दी है। सेनाध्यक्ष न्याय
की फ़रियाद लेकर सुप्रीम कोर्ट जाये, यह दुर्भाग्यपूर्ण
ही नहीं, शर्मनाक भी है। जनरल वी.के.सिंह जब साढ़े चौदह वर्ष के
थे, तो राष्ट्रीय रक्षा अकादमी में प्रवेश के लिए उन्होंने आवेदन
फार्म भरा था। इस उम्र में अधिकांश छात्र अपने
शिक्षक या अभिभावक से सलाह लेते हैं। छात्र वी.के.सिंह ने अपना फ़ार्म अपने शिक्षक श्री
भटनागर को दिखाया और उसे भरने के लिए उनसे सहायता का आग्रह किया। शिक्षक भटनागर ने
पूरा फर्म स्वयं भर दिया और बालक जनरल की उम्र १० मई, १९५० लिख
दी। यही एकमात्र भूल जनरल से हुई है। सारे विश्व में हाई स्कूल सर्टिफिकेट में अंकित
जन्मतिथि को ही मान्यता प्राप्त है। अपने देश में भी सर्वोच्च न्यायालय ने हाई स्कूल
सर्टिफिकेट में अंकित जन्मतिथि को ही अन्तिम रूप से वैध माना है। हाई स्कूल सर्टिफिकेट
में जनरल वी.के.सिंह की जन्मतिथि १० मई १९५१ दर्ज़ है और इसे ही आधार मानकर उनकी नियुक्ति
और पदोन्नतियां हुई हैं। अब अचानक चार दशकों से भी अधिक के उनके बेदाग कैरियर को विवादास्पद
बनाते हुए ‘आर्मी लिस्ट’ में अंकित उनकी जन्मतिथि, १०-५-५० को
रक्षा मंत्रालय ने सही माना है। सेना में अधिकारियों
के समस्त विवरण सेना द्वारा अभिरक्षित और जारी ‘आर्मी लिस्ट’ में दिए जाने की परंपरा
है। लेकिन इस अभिलेख को कोई कानूनी मान्यता प्राप्त नहीं है। बड़ी चालाकी से इसमें जनरल
सिंह की जन्मतिथि १०-५-१९५० डाल दी गई। अन्य सभी अभिलेखों में जनरल की जन्मतिथि १०-५-१९५१
ही दर्ज़ है। आज एक व्यक्ति विशेष को सेनाध्यक्ष बनाने के लिए उन्हें समय से पूर्व सेवानिवृत्त
करने हेतु आर्मी लिस्ट में दी गई जन्मतिथि को सरकार मुख्य आधार मान रही है। स्थल सेनाध्यक्ष
जनरल वी.के.सिंह एक कर्मठ, ईमानदार और साफ-सुथरी छवि के सेनाधिकारी
रहे हैं। सरकार को यह भ्रम होने लगा है कि भारत का हर स्वच्छ छवि का व्यक्ति अन्ना
का समर्थक है। कुछ दिनों के अन्दर ही कांग्रेस के महासचिव का बयान भी आ सकता है कि
जनरक वी.के.सिंह भी आर.एस.एस. के एजेन्ट हैं। इस सरकार को सिर्फ़ घोटालेबाज ही पसन्द
आते हैं। इस अभियान के तहत जनरल वी.के.सिंह की सेवानिवृति को विवादास्पद बनाने का हर
संभव प्रयास किया जा रहा है।
अवकाश प्राप्त मेजर जनरल आर.एस.एन.सिंह सेना
के मिलिटरी इन्टेलिजेन्स आफिसर रहे हैं। उन्होंने दिनांक २२ जनवरी, २०१२ को दक्षिण से प्रकाशित अंग्रेजी दैनिक ‘डेक्कन क्रोनिकल’ में
`Biggest Fraud In The Army' शीर्षक से एक लेख लिखा है। उन्होंने लिखा
है कि सेना द्वारा जारी `Army List' को जिसमें जनरल वी.के.सिंह
की उम्र एक साल ज्यादा दिखाई गई है, कोई कानूनी वैधता या मान्यता
प्राप्त नहीं है। यह एक ऐसा डोजियर है जिसमें तमाम त्रुटियां भरी हैं। सेना के अफसरों
के बारे में इस अभिलेख में दिए गए विवरण में कई अफसरों के गलत नाम-पते, जन्मतिथियां और आई.सी. नंबर भरे पड़े हैं। मेजर जनरल सिंह ने दावा किया है कि
उनके समकालीन ब्रिगेडियर रैंक के एक अधिकारी के पिता के नाम के स्थान पर स्वयं अधिकारी
का ही नाम दर्ज़ था और अवकाश प्राप्ति के बाद भी इसमें कोई सुधार नहीं किया गया। जनरल
वी.के.सिंह ने इस डोजियर में उल्लिखित अपनी जन्मतिथि (१०-५-५०) को अपने हाई स्कूल सर्टिफिकेट
में अंकित जन्मतिथि (१०-५-५१) के आधार पर सुधारने के लिए सन्‌ २००६ एवं २००८ में आवेदन
पत्र दिया जिसका निस्तारण जनवरी २०१२ में करते हुए रक्षा मंत्रालय ने Army
List में अंकित जन्मतिथि को ही सही मानते हुए उनकी याचिका को खारिज़ कर
दिया। हाई स्कूल का सर्टिफिकेट एक कानूनी मान्यता प्राप्त अभिलेख है। इसमें वर्णित
जन्मतिथि को ही अन्तिम रूप से वैध माना जाता है। ड्राइविंग लाइसेंस से लेकर पासपोर्ट
जारी करने की प्रक्रिया में इसे ही सही माना जाता है। जनरल वी.के.सिंह के हाई स्कूल
के शिक्षक श्री भटनागर की जल्दीबाज़ी में की गई एक छोटी सी भूल की सज़ा स्थल सेनाध्यक्ष
को देने का सरकार मन बना चुकी है। ऐसे में
अपने स्वाभिमान की रक्षा करने हेतु जनरल वी.के.सिंह का सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाना
कही से भी अनुचित प्रतीत नहीं होता। वहां देर भले है, अंधेर नहीं।

Thursday, January 12, 2012

११ सितंबर 1893 को शिकागो में आयोजित विश्वधर्म-महासभा में स्वामी विवेकानन्द के ऐतिहासिक संबोधन का हिन्दी रूपान्तरण

महान युगद्रष्टा स्वामी विवेकानन्द जी की १५०वीं जयन्ती के अवसर पर


अमेरिकावासी बहनो तथा भाइयों,
आपने जिस सौहार्द्र और स्नेह के साथ हमलोगों का स्वागत किया है, उसके प्रति आभार प्रकट करने के निमित्त खड़े होते समय मेरा हृदय अवर्णनीय हर्ष से पूर्ण हो रहा है। संसार में संन्यासियों की सबसे प्राचीन परंपरा की ओर से मैं आपको धन्यावाद देता हूं; धर्मों की माता की ओर से धन्यवाद देता हूं और सभी संप्रदायों एवं मतों के कोटि-कोटि हिन्दुओं की ओर से भी धन्यवाद देता हूं।
मैं इस मंच पर बोलने वाले उन कतिपय वक्ताओं के प्रति भी ध्न्यवाद ज्ञापित करता हूं, जिन्होंने प्राची के प्रतिनिधियों का उल्लेख करते समय आपको यह बतलाया है कि सुदूर देशों के ये लोग सहिष्णुता का भाव विविध देशों में प्रसारित करने के गौरव का दावा कर सकते हैं। मैं एक ऐसे धर्म का अनुयायी होने में गर्व का अनुभव करता हूं, जिसने संसार को सहिष्णुता तथा सार्वभौम स्वीकृति, दोनों की ही शिक्षा दी है। हमलोग सभी धर्मों के प्रति केवल सहिष्णुता में विश्वास नहीं करते, वरन्‌ समस्त धर्मों को सच्चा मानकर स्वीकार करते हैं। मुझे एक ऐसे देश का व्यक्ति होने का अभिमान है, जिसने इस पृथ्वी के समस्त धर्मों और देशों के उत्पीड़ितों और शरणार्थियों को आश्रय दिया है। मुझे आपको यह बतलाते हुए गर्व होता है कि हमने अपने वक्ष में यहुदियों के विशुद्धत्तम अवशिष्ट अंश को स्थान दिया था, जिन्होंने दक्षिण भारत आकर उसी वर्ष शरण ली थी, जिस दिन उनका पवित्र मन्दिर रोमन जाति के अत्याचार से धूल में मिला दिया गया था। ऐसे धर्म का अनुयायी होने में मैं गर्व का अनुभव करता हूं, जिसने महान्‌ जरथ्रुष्ट्र जाति के अवशेष अंश को शरण दी और जिसका पालन वह अबतक कर रहा है। भाइयो, मैं आपलोगों को एक स्तोत्र की कुछ पंक्तियां सुनाता हूं, जिसकी आवृत्ति मैं अपने बचपन से कर रहा हूं और जिसकी आवृत्ति मेरे देश में प्रतिदिन लाखों मनुष्य किया करते हैं :
रुचिनां वैचित्र्यादृजुकुटिलनानापथजुषाम्‌।
नृणामेको गम्यस्त्वमसि पयसामर्णव इव च॥
-“जैसे विभिन्न नदियां भिन्न-भिन्न स्रोतों से निकलकर समुद्र में मिल जाती हैं, उसी प्रकार हे प्रभो! भिन्न-भिन्न रुचि के अनुसार विभिन्न टेढ़े-मेढ़े अथवा सीधे रास्ते से जानेवाले लोग अन्त में तुझमें ही आकर मिल जाते हैं।”
यह सभा, जो अभीतक आयोजित सर्वश्रेष्ठ सम्मेलनों में से एक है, स्वतः ही गीता के इस अद्‌भुत उपदेश का प्रतिपादन एवं जगत के प्रति उसकी घोषणा है :
ये यथा मां प्रपद्यन्ते तास्तंथैव भजाम्यहम्‌।
मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः॥
-“जो कोई मेरी ओर आता है - चाहे किसी प्रकार से हो - मैं उसको प्राप्त होता हूं। लोग भिन्न-भिन्न मार्ग द्वारा प्रयत्न करते हुए अन्त में मेरी ही ओर आते हैं।”
साम्प्रदायिकता, हठधर्मिता और उनकी वीभत्स वंशधर धर्मान्धता, इस सुन्दर पृथ्वी पर बहुत समय तक राज कर चुकी हैं। वे पृथ्वी को हिंसा से भरती रही हैं, उसको बारंबार मानवता के रक्त से नहलाती रही हैं, सभ्यताओं को विध्वस्त करती और पूरे पूरे देशों को निराशा के गर्त में डालती रही हैं। यदि ये वीभत्स दानवी नहीं होतीं, तो मानव समाज आज की अवस्था से कही अधिक उन्नत हो गया होता। पर अब उनका समय आ गया है, और मैं आन्तरिक रूप से आशा करता हूं कि आज सुबह इस सभा के सम्मान में जो घण्टाध्वनि हुई है, वह समस्त धर्मान्धता का, तलवार या लेखनी के द्वारा होनेवाली सभी उत्पीड़नों का, तथा एक ही लक्ष्य की ओर अग्रसर होनेवाले मानवों की पारस्परिक कटुताओं का मृत्युनिनाद सिद्ध हो।
(रामकृष्ण मठ, नागपुर द्वारा प्रकाशित स्वामी विवेकानन्द साहित्य से साभार)

Wednesday, December 28, 2011

कहां ले जाएगा, ये रोग हमें आरक्षण का



समाज का विभाजन अन्ततः भूमि के विभाजन में परिवर्तित हो जाता है। अंग्रेजों को इस भारत भूमि से तनिक भी स्वाभाविक लगाव नहीं था। उनका एकमात्र उद्देश्य था - अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए इस देश के संसाधनों का अधिकतम दोहन। बिना सत्ता में रहे यह संभव नहीं था। हिन्दुस्तान पर राज करने के लिए उन्होंने जिस नीति का सफलता पूर्वक संचालन किया, वह थी - फूट डालो, और राज करो। महात्मा गांधी का सत्‌प्रयास भी हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच अंग्रेजों द्वारा योजनाबद्ध ढ़ंग से निर्मित खाई को पाट नहीं सका। अंग्रेजों के समर्थन और प्रोत्साहन से फली-फूली मुस्लिम लीग की पृथक आरक्षित निर्वाचन क्षेत्र की मांग, पृथक देश की मांग में कब बदल गई, कुछ पता ही नहीं चला। राष्ट्रवादी शक्तियों के प्रबल विरोध और महात्मा गांधी की अनिच्छा के बावजूद भी अंग्रेज कुछ कांग्रेसी नेताओं और जिन्ना के सहयोग से अपने षडयंत्र में सफल रहे - १९४७ में देश बंट ही गया, भारत माता खंडित हो ही गईं।
यह एक स्थापित सत्य है कि जो देश अपने इतिहास से सबक नहीं लेता है, उसका भूगोल बदल जाता है। भारत की सत्ताधारी कांग्रेस ने बार-बार देश का भूगोल बदला है। इस पार्टी को भारत के इतिहास से कोई सरोकार ही नहीं, अतः सबक लेने का कोई प्रश्न ही पैदा नहीं होता। १९४७ में पाकिस्तान के निर्माण के साथ इस प्राचीनतम राष्ट्र के भूगोल से एक भयंकर छेड़छाड़ की गई। एक वर्ष भी नहीं बीता था, १९४८ में कश्मीर समस्या को पं. जवाहर लाल नेहरू ने राष्ट्रसंघ में ले जाकर दूसरी बार देश का भूगोल बदला। सरदार पटेल हाथ मलते रह गए। तिब्बत पर चीनी आधिपत्य को मान्यता देकर तीसरी बार हमारे तात्कालीन प्रधान मंत्री पं. नेहरू ने १९६२ में भारत का भूगोल बदला। साम्राज्यवादी चीन से हमारी सीमा इतिहास के किसी कालखण्ड में नहीं मिलती थी। तिब्बत को चीन की झोली में डाल हमने उसे अपना पड़ोसी बना लिया और पड़ोसी ने नेफा-लद्दाख की हमारी ६०,००० वर्ग किलो मीटर धरती अपने कब्जे में कर ली।
नेहरू परिवार को न कभी भारत के भूगोल से प्रेम रहा है और न कभी भारत के इतिहास पर गर्व। इस परिवार ने सिर्फ इंडिया को जाना है और उसी पर राज किया है। इस परंपरा का निर्वाह करते हुए सोनिया जी ने मुस्लिम आरक्षण का जिन्न देश के सामने खड़ा कर दिया है। धर्म के आधार पर आरक्षण का हमारे संविधान में कहीं भी कोई प्रावधान नहीं है। मुस्लिम और ईसाई समाज स्वयं को जातिविहीन समाज होने का दावा करते हैं। उनके समाज में न कोई दलित जाति है, न कोई पिछड़ी जाति, फिर अन्य पिछड़ा वर्ग और दलित वर्ग के कोटे में इन्हें आरक्षण देने का क्या औचित्य? दुर्भाग्य से हिन्दू समाज में अगड़े, पिछड़े और दलित वर्गों में सैकड़ों जातियां हैं। इसे संविधान ने भी स्वीकार किया है। इन जातियों में परस्पर सामाजिक विषमताएं पाटने के लिए संविधान में मात्र दस वर्षों के लिए आरक्षण की व्यवस्था थी। आज सोनिया और कांग्रेस हिन्दू दलितों और पिछड़ों के मुंह का निवाला छीन, मुसलमानों को देना चाहती है।
अब तो हद हो गई। सोनिया जी ने तुष्टीकरण की सारी सीमाएं तोड़ते हुए लोकपाल में भी मुस्लिम आरक्षण का प्रावधान कर दिया है। जब लोकपाल जैसी प्रमुख संस्था में धर्म के नाम पर आरक्षण दिया जा सकता है, तो सेना, पुलिस, लोकसभा, विधान सभा, चुनाव आयोग, सी.बी.आई., सी.ए.जी., सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट, क्रिकेट टीम, हाकी टीम इत्यादि में क्यों नहीं दिया जा सकता? सत्ता और वोट के लिए कांग्रेस कुछ भी कर सकती है। खंडित भारत के अन्दर एक और पाकिस्तान के निर्माण की नींव पड़ चुकी है। अगर जनता नहीं चेती, तो चौथी बार भारत के भूगोल को परिवर्तित होने से कोई नहीं बचा सकता।
इस आरक्षण से यदि नेहरू परिवार का कोई सदस्य प्रभावित होता, तो आरक्षण की व्यवस्था कभी की समाप्त हो गई होती। क्या राहुल गांधी अपनी प्रतिभा के बल पर मनरेगा का जाब-कार्ड भी पा सकते हैं? किसी भी प्रतियोगिता में बैठकर एक क्लर्क की नौकरी भी हासिल करने की योग्यता है उनके पास? लेकिन वे प्रधान मंत्री पद के योग्य हैं, क्योंकि उस पद पर उनका खानदानी आरक्षण है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि प्रतिभा का दमन सबसे बड़ा भ्रष्टाचार है। इसकी निगरानी कौन लोकपाल करेगा?

Thursday, December 8, 2011

मीडिया में व्याप्त भ्रष्टाचार



प्रेस काँसिल आफ इन्डिया के अध्यक्ष सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस मारकण्डेय काटजू ने कुछ ही दिन पूर्व प्रधान मंत्री को लिखे पत्र में मीडिया में व्याप्त भ्रष्टाचार का उल्लेख करते हुए दृश्य मीडिया को भी प्रेस काँसिल के दायरे में लाने की सिफारिश की है। उन्होंने प्रेस काँसिल आफ इंडिया का नाम बदलकर मीडिया काँसिल करने की मांग भी की है। उन्होंने सार्वजनिक रूप से टिप्पणी की है कि मीडिया, विशेषकर समाचार चैनल बुनियादी मुद्दों की अपेक्षा गैर जरुरी मुद्दों पर अधिक समय देते हैं। सेक्स और सनसनीखेज खबर परोसने वाले ये चैनल आम जनता या उससे संबन्धित समस्याओं से एक निश्चित दूरी बनाए रखते हैं। जस्टिस काटजू अपनी ईमानदारी और बेबाक टिप्पणी के लिए विख्यात हैं। उन्होंने बड़े शालीन शब्दों में मीडिया का यथार्थ चित्र उकेरा है।
कारपोरेट घराने की चर्चित दलाल नीरा राडिया ने गत वर्ष, प्रमुख पत्रकार प्रभु चावला से बात करते हुए सुप्रीम कोर्ट में जजमेंट फिक्स करने के लिए लंबी बात की थी। प्रभु चावला ‘सीधी बात’ में सबकी बखिया उधेड़ते हैं लेकिन नीरा राडिया से बातचीत में खुद ही बेनकाब हो गए हैं। बातचीत का पूरा आडियो टेप ‘यू ट्यूब’ पर आज भी उपलब्ध है। नीरा राडिया पैसे देकर सरकार के पक्ष में लेख लिखवाने के लिए बरखा दत्त, वीर सिंहवी, राजदीप सरदेसाई आदि अनेक नामचीन पत्रकारों के लगातार संपर्क में रहती हैं। इसका खुलासा भी नेट पर उपलब्ध इन पत्रकारों से नीरा राडिया की बातचीत के आडियो टेप में है। एक टेप में राजदीप सरदेसाई ने अपने लेख का मज़मून पहले नीरा राडिया को सुनाया। नीरा ने उसमें कुछ संशोधन सुझाए। उन संशोधनों को अपने लेख में शामिल करने के बाद पुनः पूरा लेख नीरा राडिया को सुनाया और राडिया के अनुमोदन के पश्चात ही सरदेसाई ने उसे प्रेस को भेजा। १९७५-७७ में इन्दिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपात्काल के दौरान खुशवंत सिंह अंग्रेजी पत्रिका ‘इलस्ट्रेटेड वीकली’ के संपादक थे। उन्होंने उस वर्ष फर्जी ओपिनियन पोल कराकर संजय गांधी को ‘मैन आफ द इयर’ घोषित किया था। उनके इस कृत्य के कारण पाठकों ने उन्हें ‘चमचा आफ द इयर’ घोषित किया। खुशवंत सिंह ने इसे स्वीकार किया और वीकली में स्थान भी दिया।
१९९२ में बाबरी विध्वंश के बाद कुलदीप नैयर ने दिल्ली से पटना की हवाई यात्रा की। पहले वे दिल्ली से लखनऊ आए, वहां दिन भर रुके, अपने पत्रकार मित्रों से मिले भी, फिर हवाई जहाज से ही पटना के लिए प्रस्थान किया। उन्होंने उसी तिथि में लख्ननऊ से पटना की यात्रा का विवरण देते हुए एक लेख लिखा जो कई अखबारों में छपा। उन्होंने लिखा - मैंने लखनऊ से पटना जाते समय अयोध्या के आसपास के क्षेत्रों में भयभीत मुसलमानों को देखा जो सिर पर अपने सामानों की गठरी लिए सड़क पर किसी सुरक्षित स्थान की ओर जा रहे थे। उनके एक पत्रकार मित्र राजनाथ सिंह जिन्होंने कुलदीप नैयर को लखनऊ के अमौसी हवाई अड्डे पर पटना के लिए विदा किया था, अपने लेख में लिखा - कुलदीप नैयर का लेख पढ़कर न मुझे सिर्फ आश्चर्य हुआ, बल्कि क्षोभ भी हुआ। वे हवाई जहाज से लख्ननऊ से पटना गए थे। अगर खिड़की वाली सीट पर भी वे बैठे होंगे, तो क्या ३८,००० फीट की ऊंचाई से वे सड़क पर चलने वाले लोगों की गतिविधियां और चेहरे के भाव देख सकते थे? क्या वे दूरबीन लेकर यात्रा करते हैं। (हवाई यात्रा में दूरबीन लेकर चलना सख्ती से मना है)। अपनी मनगढ़न्त स्टोरी से जनता में सांप्रदायिक उन्माद फैलाने के लिए उन्हें भारत की जनता से माफी मंगनी चाहिए। कुलदीप नैयर ने न आज तक माफी मांगी और न कोई उत्तर दिया। ये वहीं कुलदीप नैयर हैं जिन्होंने कुछ ही महीने पहले अमेरिका में गिरफ्तार पाकिस्तान की कुखात खुफिया अजेन्सी आइ.एस.आई के शातिर एजेण्ट गुलाम नबी फई का आतिथ्य स्वीकार किया और उसके द्वारा वाशिंगटन में आयोजित एक सेमिनार में भारत विरोधी और पाकिस्तान समर्थक भाषण दिया। ज्ञात हो कि कुलदीप नैयर के आने-जाने, पांच सितारा होटल में ठहरने, खाने-पीने और अमेरिका-दर्शन का संपूर्ण व्यय आई.एस.आई. ने गुलाम नबी फई के माध्यम से वहन किया था। उस सेमिनार में भारत सरकार द्वारा नामित कश्मीर के वार्त्ताकार दिलीप पडगांवकर और राधा प्रसाद भी फई के आमंत्रित अतिथि थे। लौटते समय फई ने वजनदार लिफाफों से, जिसमें डालर भरे थे, इन विद्वान (देशद्रोहियों) अतिथियों की विदाई की। देश की प्रमुख मीडिया ने इसकी चर्चा तक नहीं की। भारत सरकार ने कोई कार्यवाही भी नहीं की क्योंकि ये सभी लोग आई.एस.आई के साथ-साथ भारत की सत्ताधारी पार्टी के भी एजेण्ट हैं।
देश का पूरा मीडिया, चाहे वह प्रिंट मीडिया हो या दृश्य मीडिया हो, अपने आकाओं के हाथ बिका हुआ है, आकण्ठ भ्रष्टाचार में डूबा है। देश के सभी प्रतिष्ठित समाचार पत्रों और दृश्य मीडिया के स्वामी मल्टी नेशनल, कारपोरेट घराने और बड़े पूंजीपति हैं। ये लोग रातोरात किसी अदने पत्रकार को भी विश्वस्तरीय पत्रकार बनाने की क्षमता रखते हैं। सभी बड़े पत्रकार इन्हीं से मार्गदर्शन प्राप्त करते हैं। सरकार भी अरबों-खरबों के विज्ञापनों के माध्यम से इन्हें प्रभावित करती है। प्रिन्ट मीडिया की नई खोज है, ‘एडवर्टोरियल’ यानि समाचारों के रूप में विज्ञापन। पहले प्रथम पृष्ठ पर विज्ञापन छापना अनैतिक समझा जाता था लेकिन आज की तारीख में भारत के सभी छोटे-बड़े समाचार पत्र प्रथम पृष्ठ पर भी पूरे पेज का विज्ञापन देकर, विज्ञापन दाता की डुगडुगी बजाते मिल जाएंगे। अखबारों का संपादकीय पृष्ठ भी राजनीतिक दल के प्रवक्ताओं के चरागाह बन चुके हैं। संसद को मछली बाजार बना देने वाले कई लंपट इस पृष्ठ पर चाटुकारिता के जौहर दिखा रहे हैं। यह मीडिया ही है जो पैसे खाकर लालू यादव को सबसे बड़ा मैनेजमेन्ट गुरु तथा सोनिया गांधी को राजमाता बना देता है।
आज आम आदमी हर तरह की मीडिया से दूर हो गया है। मीडिया को शीला की जवानी, मुन्नी की बदनामी, राखी का इन्साफ और करीना के जीरो फीगर की ज्यादा चिन्ता रहती है। इसी वर्ष कारगिल विजय-दिवस के दिन पाकिस्तान की युवा खूबसूरत विदेश मंत्री हिना रब्बानी भारत के दौरे पर आई थीं। देश की पूरी मीडिया उनके आगे-पीछे चक्कर लगाती रही - कैमरे से उनका नख-शिख वर्णन करती रही। उनके पर्स से लेकर उनकी जूती पर तरह-तरह की टिप्पणियां की गईं। न्यूज चैनल वाले उनकी खूबसूरती पर दीवाने हो रहे थे। उसी दिन भारत की सेना और जनता कारगिल-विजय दिवस मना रही थी। मीडिया ने इन कार्यक्रमों की कोई कवरेज नहीं की।
पैसा और ग्लैमर ही मीडिया का आदर्श बन चुका है। प्रिन्ट और दृश्य मीडिया में कार्यरत अधिकांश पत्रकार अपनी तनख्वाह के अतिरिक्त बाहरी एजेन्सियों से भी नियमित रूप से भारी धनराशि प्राप्त करते हैं। टेन्डर नोटिस पाने के लिए सरकारी अधिकारियों की बैठकों में उनके मनमाफिक समाचार की कतरनों के साथ पत्रकार अक्सर देखे जा सकते हैं। नक्सलवादियों और चीन से पैसा पानेवाले सजायाफ्ता विनायक सेन को राष्ट्रनायक बना देते हैं, कारपोरेट घराने से धन पाने वाले टाटा को भारत रत्न दिला देते हैं, आई.एस.आई. से पैसा पानेवाले इस्लामी आतंकवादियों के समर्थन में पूरी शक्ति झोंक देते हैं और सी.आई.ए. से माल-पानी पाकर परमाणु समझौते को मनमोहन की सबसे बड़ी उपलब्धि बताकर एक चुनाव तो जीता ही देते हैं।
जैसे-जैसे भूमंडलीय दौर में पत्रकारिता मुनाफा कमाने का जरिया बनती चली गई, वैसे-वैसे यह मिशन कम, व्यवसायिक ज्यादा हो गई। पेड न्यूज अर्थात पैसे लेकर पैसे देनेवाले के हित में समाचार छापना या प्रसारित करना आजकल आम बात हो गई है। पेड न्यूज के मामले में चुनाव आयोग ने हाल ही में उत्तर प्रदेश के बिसौली विधान सभा क्षेत्र की विधायक श्रीमती उर्मिलेश यादव पर तीन साल के लिए चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी है। यह तो पेड न्यूज का एक घोषित और सिद्ध मामला है। न्यूज चैनल और प्रिन्ट मीडिया नित्य ही पेड न्यूज प्रसारित करते और छापते हैं। मीडिया में भ्रष्टाचार की यह पराकाष्ठा है। लोकतंत्र का चौथा स्तंभ भ्रष्टाचार की सारी सीमाएं लांघ चुका है।
पुलिस, कचहरी, नौकरशाही और राजनीति से भी अधिक भ्रष्टाचार मीडिया में व्याप्त है, जिसे लोकतंत्र का चौथा खंभा कहा जाता है। हमारे देश के उच्च जीवन मूल्यों और संस्कृति को विकृत करने के लिए मीडिया ने जितना काम किया है, वह लार्ड मैकाले भी नहीं कर पाया था।
एक वक्त था जब समर्पित देशभक्त पत्रकारों ने अपने गली-मुहल्ले से छोटे-छोटे अखबार निकाले और अपने क्रान्तिकारी विचारों को जनता के बीच पहुंचाया। ब्रिटिश सरकार की नींव हिला दी थी राष्ट्रसेवा के लिए कटिबद्ध देशभक्त पत्रकारों ने। यह उन पत्रकारों की विरासत है कि आज हम आदतन सवेरे-सवेरे अखबार पढ़ते हैं। उस समय लोकमान्य तिलक, वीर सावरकर, महात्मा गांधी, पं. मदन मोहन मालवीय, गणेश शंकर विद्यार्थी, पं. माखनलाल चतुर्वेदी, लक्ष्मीशंकर गर्दे, प्रताप नारायण मिश्र, विष्णुराव पराड़कर ......... आदि पत्रकारों ने अपने ओजस्वी लेखन से उच्च चरित्र, नैतिकता और राष्ट्रप्रेम के बीज बोए थे जिसकी फसल भगत सिंह, चन्द्रशेखर आजाद, नेताजी सुभाषचन्द्र बोस, राम प्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाक उल्ला खां जैसे क्रान्तिकारियों के रूप में देखने को मिली। आज की पत्रकारिता की फसल हैं - ए. राजा, कनिमोझी, दयानिधि मारन, करुणानिधि। ये सभी लोग दक्षिण में एकाधिकार जमाए ‘सूर्या टीवी’ के बोर्ड आफ डाइक्ट्रेट के सम्मानित सदस्य, पदाधिकारी और मालिक हैं। किस-किस का और कितनों का नाम गिनाएं। पूरे कुएं में भांग पड़ी है।
बोए थे फूल, उग आए नागफनी के कांटे,
किस-किस को दोष दें, किस-किस को डांटें।

Tuesday, November 29, 2011

राष्ट्रीय तमाचा पार्टी

राष्ट्रीय तमाचा पार्टी
भ्रष्टाचार भवन,
धनपथ,
धृतराष्ट्र नगर
INDIA (That is bharat)
पिन कोड - ४२०-४२०
कार्यालय ज्ञापन

सं ०१/रातपा/सार्वजनिक दिनांक - इच्छानुसार
सर्वसाधारण को सूचित किया जाता है कि INDIA (That is bharat) में राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखते हुए गहन विचार-विमर्श और चिन्तन के पश्चात राष्ट्रीय तमाचा पार्टी का गठन किया गया है। इसकी प्रेरणा का स्रोत सत्ताधारी राष्ट्रीय पार्टी है जिसने स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात अपने निर्जीव तमाचा चुनाव चिह्न के सहारे दशकों तक INDIA पर राज किया है और आज भी कर रही है। राष्ट्रीय तमाचा पार्टी भारत के राष्ट्रीय जनता आयोग के द्वारा मान्यता प्राप्त एक प्रतिष्ठित एनजीओ है। ज्ञात हो कि श्री अन्ना हजारे जी राष्ट्रीय जनता आयोग के सम्मानित अध्यक्ष हैं। पार्टी के विद्वत्‌परिषद ने भारत के इतिहास की निम्न घटनाओं का गहराई से अध्ययन, चिन्तन और मनन करने के पश्चात राष्ट्रीय हित और समाज के समग्र कल्याण हेतु रातपा जैसी अद्वितीय पार्टी के गठन का निर्णय लिया।
१. अगर ऋषि पुलस्त्य ने रावण को बचपन में ही तमाचा पदक से सम्मानित किया होता, तो सीता-हरण नहीं होता।
२. पितामह भीष्म और धृतराष्ट्र ने दुर्योधन को पाद पदक से सम्मानित किया होता, तो द्रौपदी चीरहरण नहीं होता, महाभारत नहीं होता।
३. महात्मा गांधी ने जिन्ना को पादुका पदक से सम्मानित किया होता, तो देश का बंटवारा नहीं होता।
राष्ट्रीय तमाचा पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष वीरवर सरदार हरविन्दर सिंह हैं जिन्होंने कुछ ही दिवस पूर्व INDIA (That is bharat) के सम्माननीय कृषि मंत्री माननीय शरद पवार जी को उनकी मूल पार्टी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के निर्जीव चुनाव चिह्न के जोरदार सजीव प्रयोग से सम्मानित किया था। पूरे देश में भ्रष्टाचारियों के बीच प्रभावी खौफ पैदा करने के लिए पुरस्कारस्वरूप सरदार हरविन्दर सिंह को सर्वसम्मति से पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया है। पार्टी ने सर्वसम्मति से श्री तेजपाल सिंह को जिन्हें वकील प्रशान्त भूषण को हस्त-पाद पुरस्कार देने का गौरव प्राप्त है, पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव चुना है। इन दोनों की राय-मशविरा के पश्चात पार्टी की कार्यकारिणी का भी गठन किया गया है जिसे नेताओं के कालेधन की तरह देशहित और जनहित में गुप्त रखा गया है। कार्यकारिणी ने पूरे देश में अधिकतम एक अरब, इक्कीस करोड़ और न्यूनतम एक करोड़ सक्रिय सदस्य बनाने का लक्ष्य रखा है। सदस्य बनने की शर्तें निम्नवत हैं -
१. INDIA (That is bharat) का कोई भी नागरिक इस संगठन का सदस्य बन सकता है।
२. कोई विदेशी इसकी सदस्यता ग्रहण नहीं कर सकता।
३. उम्र - बाल, युवा, वृद्ध।
४. योग्यता - हाथ-पांव का प्रभावी प्रयोग करने की इच्छाशक्ति एवं क्षमता।
५. पार्टी की सदस्यता निःशुल्क है।
६. सदस्यता के लिए किसी आवेदन पत्र की आवश्यकता नहीं है।
७. पार्टी की उद्देश्य-पूर्ति का दृढ़ संकल्प ही सदस्यता की गारंटी है।
पार्टी का उद्देश्य -
-- इस महान देश में INDIA (That is bharat) के नेता भारत को भिखमंगा कहते हैं। INDIA को गौरवशाली भारत बनाना हमारा पहला लक्ष्य है।
-- देश के सभी राजनेता, नौकरशाह, वकील, जनसेवक, एन.जी.ओ., न्यायपालिका, कार्यपालिका, विधायिका, उद्योगपतियों, मीडिया और पूंजीपतियों के कार्यों और चरित्रों का सूक्ष्म अवलोकन और समीक्षा।
-- उपरोक्त श्रेणी के व्यक्तियों को उनकी योग्यता, क्षमता और अबतक किए गए कार्यों की समीक्षा के आधार पर निम्नलिखित पदकों से सम्मानित करना।
१. तमाचा पदक
२. पाद पदक
३. पादुका पदक
उपलब्धियां -
अबतक देश के माननीय कृषि मंत्री श्री शरद पवार जी और हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री श्री सुखराम जी को तमाचा पदक और खण्डित भारत के प्रवक्ता, वकील श्री श्री प्रशान्त भूषण जी को पाद पदक से सम्मानित किया जा चुका है।
पार्टी के सर्वोच्च पदक - पादुका पदक से अभीतक किसी को अलंकृत नहीं किया गया है। लेकिन भारी संख्या में अभ्यर्थियों ने अपने आवेदन पत्र लिखित और ई-मेल के माध्यम से भेजे हैं। पादुका पदक के लिए इन अभ्यर्थियों में कई केन्द्रीय मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों, सत्तारुढ़ पार्टी के महासचिवों और युवराजों के नाम शामिल हैं। सम्यक विचारोपरान्त योग्य पात्र का चुनाव कर शीघ्र ही अधिसूचना निर्गत की जाएगी।
पार्टी का कोई भी सदस्य पदक के लिए घोषित किसी भी लाभार्थी को भारत में कहीं भी स्वयं पदक प्रदान कर सकता है। लाभार्थियों की सूची समय-समय पर अधिसूचित की जाएगी। सफलता पूर्वक पदक प्रदानकर्त्ता को कानूनी सहायता, जमानत और पुरस्कार का दायित्व पार्टी वहन करेगी। जो सदस्य जितना अधिक पदक प्रदान करेगा, उसे उसी अनुपात में पार्टी में महत्व, पद और प्रतिष्ठा दी जाएगी।
देश के समस्त नागरिकों से अपील है कि अधिक से अधिक संख्या में राष्ट्रीय तमाचा पार्टी की सक्रिय सदस्यता ग्रहण कर राष्ट्र निर्माण के कार्य में सहयोग करें। एक करोड़ की सक्रिय सदस्यता के बाद हर क्षेत्र में शुभ परिवर्तन, सूर्योदय और सूर्यास्त की भांति अवश्यंभावी है।
हमारा नारा है -
तुम पदक दो - हम सुराज देंगे।
शुभस्य शीघ्रम्‌!

(तेजेन्द्र पाल सिंह)
महासचिव एवं पाद पदक प्रदानकर्त्ता
(प्रशान्त भूषण को)


Wednesday, November 9, 2011

पेट्रोल की बेलगाम कीमत और सरकार की संवेदनहीनता



वाकई अब हद हो गई। क्या अंग्रेजों की सरकार भी इतनी संवेदनहीन थी? शायद नहीं। आखिर यह सरकार किसकी है - पूंजीपतियों की, कारपोरेट घरानों की, तेल कंपनियों की या जनता की? सरकार का कोई भी प्रतिनिधि प्रथम तीन की सरकार होने की बात कभी भी सार्वजनिक रूप से स्वीकार नहीं कर सकता। सड़क से लेकर संसद तक सरकारी मंत्री और सांसद अपनी सरकार को जनता की सरकार ही कहते हैं लेकिन यह सबसे बड़ा झूठ है। महंगाई से जनता की कमर टूट चुकी है, लोगबाग त्राहि-त्राहि कर रहे हैं और राष्ट्रीय प्रगतिशील गठबंधन की नेता कांग्रेस अध्यक्ष अपने विदेशी दौरों पर सरकार यानि भारत की गरीब जनता के १८०० करोड़ रुपए फूंक चुकी हैं। सरकार की फिजुलखर्ची, भ्रष्टाचार, काला धन, अकुशल प्रबंधन, पूजीपतियों की हित-रक्षा, अमेरिका परस्त नीतियों, अदूरदर्शिता और जनता के प्रति घोर असंवेदनशीलता की चरम परिणति है पेट्रोल की कीमतों में बेलगाम वृद्धि। सुरसा के मुख की तरह बढ़ती महंगाई के भी यही मुख्य कारण हैं। पिछले डेढ़ साल में हमारी भ्रष्ट केन्द्रीय सरकार ने सात बार पेट्रोल की कीमतों में बढ़ोत्तरी की। कीमत कब और कितनी बढ़ी, उसका व्योरा रुपयों में निम्नवत है -
तिथि वृद्धि कुल कीमत
२६.२.१० २.८६ ५०.५३४
२५.६.१० ३.७३ ५५.१८
१४.१२.१० ३.०० ५८.९५
१५.१.११ २.६६ ६१.७२
१५.४.११ ५.२७ ६६.९७
१५.९.११ ३.३१ ७०.५९
३.११.११ २.०१ ७२.६० (ये सभी कीमते वाराणसी में लागू हैं)
सरकार ने पता नहीं कौन सी अर्थव्यवस्था लागू की है जिसके कारण तेल कंपनियों को यह अधिकार प्राप्त हो गया है कि वे जब चाहें, जितना चाहें, घाटे का हवाला देकर कीमतें बढ़ा सकती हैं। समझ में नहीं आता कि यह स्वतंत्रता सिर्फ तेल कंपनियों को ही क्यों प्राप्त है? अगर यह स्वतंत्रता देश की बिजली कंपनियों को भी दे दी जाय, तो सभी बिजली बोर्ड फायदे में चलने लगेंगे, मोबाइल कंपनियों और बी.एस.एन.एल को दे दी जाय, तो वे अल्प समय में ही बेहिसाब मुनाफ़ा कमाकर दिखा सकते हैं, भले ही जनता की कमर टूट जाय। अलग-अलग कंपनियों के लिए अलग-अलग मापदंड और नीतियां क्यों? इस्पात, सेल बनाता है, मूल्य निर्धारण सरकार करती है। अनाज किसान पैदा करता है, समर्थन मूल्य सरकार तय करती है। तेल के मामले में मुक्त व्यापार की बात की जाती है, बाकी मामलों में सरकारी नियंत्रण की। आइये जरा एक नज़र डालें अपने पड़ोसी देशों में पेट्रोल की वर्तमान कीमत पर। कीमतें भारतीय रुपए में दिखाई गई हैं -
पाकिस्तान - २६
बांग्ला देश - २२
नेपाल - ३४
म्यामार - ३०
अफ़गानिस्तान - ३६
भारत - ७२.६०
एक ज्वलन्त प्रश्न है - क्यों अन्तर्राष्ट्रीय बाज़ारों में पेट्रोलियम पदार्थों की बढ़ती कीमतों का सर्वाधिक असर भारत पर ही पड़ता है?
भारत में पेट्रोल की कीमत इसलिए सर्वाधिक है क्योंकि हमारी सरकार विश्व की सबसे असंवेदनशील सरकार है। जनता की पीड़ा, दुःख, यातना, कष्ट या असुविधा के विषय में सोचने वाला इस सरकार में एक भी व्यक्ति नहीं है। सारी सोच आयातित है। मूल्यवृद्धि पर कांग्रेसमाता और युवराज की चुप्पी चौंकानेवाली है। वैसे सर्वसाधारण और देशहित में यह तथ्य बताना अत्यन्त आवश्यक है कि अपने देश में भी पेट्रोल की बेसिक कीमत मात्र रु.१६.५०/लीटर ही है। शेष राशि केन्द्रीय कर, एक्साइज ड्‌युटी, विक्री कर, राज्य कर और भ्रष्टाचार कर के रूप में सरकार हमारी जेबों से लेती है। देश का ८०% पेट्रोल मध्यम वर्ग या निम्न मध्यम वर्ग के नागरिकों द्वारा ही उपयोग में लाया जाता है। इस वर्ग का सरकार पर सीधे कोई राजनीतिक दबाव नहीं है। इसके उलट ८०% डीजल की खपत करने वाले बड़े-बड़े कारखाने, पावर हाउस, ट्रान्सपोर्टर, पूंजीपति और भारतीय रेल है। किसान सिर्फ ५% डीजल की खपत करते हैं, लेकिन सरकार किसानों कि दुहाई देकर डीजल की कीमत नहीं बढ़ाती है। इसके पीछे असली कारण उद्योगपतियों और कारपोरेट घरानों की सरकार में असरदार घुसपैठ ही है। दो सौ साल तक हमें अंग्रेजों ने लूटा और आज़ादी के बाद कांग्रेस लूट रही है।
जागो जनता जागो!
जागो ग्राहक जागो!!

Monday, November 7, 2011

गंगा के लिए, गंगा किनारे, सांप्रदायिक सद्‌भाव का ऐतिहासिक सम्मेलन



ऐसी ऐतिहासिक घड़ियां बहुत कम ही आती हैं जब हिन्दू और मुसलमान एक साथ, एक ही स्वर में, एक ही मंच से एक ही बात कहें। ऐसी घड़ी का साक्षात्कार गंगा भक्तों ने किया - दिनांक ५ नवंबर को सायंकाल ६ बजे, काशी के ऐतिहासिक अस्सी घाट के नवनिर्मित महामना मालवीय घाट पर जब हिन्दुओं और मुसलमानों के शीर्ष धर्मगुरु गंगा महासभा द्वारा आयोजित एक महत्त्वपूर्ण सम्मेलन में एक साथ मंच पर विराजमान हुए। कांची कामकोटि के पीठाधीश्वर जगद्‌गुरु शंकराचार्य स्वामी जयेन्द्र सरस्वती, अन्तर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त रामकथावाचक श्री मोरारी बापू, हरिद्वार के स्वामी चिदानन्द महाराज मुनिजी, मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के उपाध्यक्ष मौलाना कल्बे सादिक, लखनऊ के शाही इमाम मौलाना फ़जलुर्रहमान को मंच पर एक साथ बैठकर विचार-विमर्श करते हुए देखना अत्यन्त सुखद था। स्वामी चिदानन्द जी द्वारा गंगोत्री से लाए पवित्र गंगाजल को जिस भक्ति भाव से मौलाना कल्बे सादिक ने ग्रहण किया, वह दृश्य अभूतपूर्व था। मां गंगा की पीड़ा को सबने एकसाथ समभाव से हृदय के अन्तस्तल से अनुभव किया। सबने एक स्वर से भारत सरकार से मांग की कि गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के उद्देश्य से गंगा एक्ट पास किया जाय। साथ ही गंगा को गंगा बनानेवाली अलकनन्दा और भागीरथी पर बन रहे बांधों को रोकने की भी प्रधान मंत्री से मांग की गई। कानपुर आई.आई.टी. के पूर्व प्रोफ़ेसर जी.डी.अग्रवाल, जो संन्यास लेने के बाद स्वामी ज्ञानस्वरूप सानन्द हो चुके हैं, ने घोषणा की कि यदि मकर संक्रन्ति के पूर्व इन नदियों पर निर्माणाधीन बांधों पर निर्माण का कार्य नहीं रुका, तो वे १५ जनवरी से चौथी बार आमरण अनशन करेंगे। महामना मालवीय जी द्वारा स्थापित गंगा महासभा की ओर से सन्तों का यह समागम महामना पंडित मदन मोहन मालवीय जी की १५०वीं जयन्ती-वर्ष के अवसर पर संपन्न हुआ। उन्होंने कहा कि गंगा महोत्सव और गंगा आरती से कुछ नहीं हासिल होना है। भारत का एक-एक नागरिक व्यवहारिक रूप में गंगा को प्रदूषण मुक्त करने का संकल्प ले, तभी कुछ अच्छे परिणाम की कल्पना की जा सकती है। इस अवसर पर गंगाभक्तों को संबोधित करते हुए सन्त मोरारी बापू ने कहा कि १५०वीं जयन्ती का दसांश निकालें। १५ बिन्दु तैयार किए जाएं जिनपर गंगा के निमित्त राष्ट्रजागरण अभियान चले। प्रधान मंत्री को समग्र भारत की भावना का खयाल रखते हुए शीघ्र निर्णय लेना चाहिए। लखनऊ से आए मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के उपाध्यक्ष मौलाना कल्बे सादिक ने कहा कि जिस प्रकार लखनऊ से आनेवाली गोमती काशी से कुछ आगे औड़िहार में अपनी ही बहन गंगा से मिलकर एक हो जाती है और फिर एक होकर एक साथ आगे बढ़ती है, करोड़ों की प्यास बुझाती हैं, हजारों-लाखों एकड़ जमीन की सिंचाई करके करोड़ों टन अनाज पैदा कर करोड़ों के पेट भरती हैं, उसी प्रकार हम मुस्लिम अपने बड़े भाई हिन्दुओं के गले में बाहें डालकर आगे बढ़ने के लिए तैयार हैं। उन्होंने कहा कि आने वाले सौ वर्षों में देश में एक भी मस्जिद न बने, एक भी मन्दिर न बने, एक भी गुरुद्वारा या गिरिजाघर न बने, उन्हें तनिक भी मलाल नहीं होगा, लेकिन गंगा समाप्त हो जाएगी तो उन्हें बहुत मलाल होगा, बेइन्तहां तललीफ होगी क्योंकि तब यह देश पाकिस्तान बन जाएगा। मेरी खुदा से गुज़ारिश है कि वे कभी भी हिन्दुस्तान को पाकिस्तान न बनने दें। गंगा से ही हिन्दुस्तान है। इसलिए गंगा को बचाना सभी हिन्दू-मुसलमानों का फ़र्ज़ है।
कैलाश-मानसरोवर पर चीन सरकार की अनुमति लेकर तीर्थयात्रियों के लिए विशाल धर्मशाला बनवाने वाले स्वामी चिदानन्द महाराज मुनि जी ने सुरसरि गंगा में व्याप्त प्रदूषण के कारण हो रही मौतों का रोंगटा खड़ा कर देने वाला विवरण दिया। उन्होंने सप्रमाण बताया कि देश में आतंकवाद से भी ज्यादा मौतें गंगा का प्रदूषित जल पीने से होती हैं। लखनऊ से पधारे वहां के शाही इमाम मौलाना फ़ज़लुर्रहमान ने कुरान की आयतों का हवाला देते हुए बताया कि खुदा ने पानी के रूप में इस दुनिया को सबसे पाक चीज अता की है। कुरान के माध्यम से अल्लाताला ने यह हुक्म दिया है कि पानी को हमेशा पवित्र और साफ़सुथरा रखा जाय। खुदा के इस हुक्म को मानना हरेक मुसलमान के लिए जरुरी है। आज समूची मुस्लिम कौम हिन्दुओं के आगे शर्मिन्दा है जिसने वक्त रहते गंगा की बढ़ती दुश्वारियों की ज़ानिब उनका ध्यान नहीं दिलाया। यह गंगा ही है जिसमें स्नान करके हिन्दू पूजा-पाठ करता है और मुसलमान जिसके पानी से वज़ु करके नमाज़ पड़ता है। गंगा सिर्फ़ हिन्दू-मुसलमानों की ही नहीं, सारे हिन्दुस्तान की विरासत है, धरोहर है। हम हिन्दू और मुस्लिम अपनी भूल सुधारेंगे और साथ मिलकर गंगा को बचाएंगे। कांचिकामकोटि के जगद्‌गुरु शंकराचार्य स्वामी जयेन्द्र सरस्वती के आशीर्वचन से आयोजन को विराम दिया गया। इस अवसर पर महामना पंडित मदन मोहन मालवीय जी के पौत्र महामना मालवीय मिशन के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष जस्टिस गिरिधर मालवीय, समाजसेवी ओ.पी.केजरीवाल, महेश्वर त्रिपाठी, प्रेमस्वरूप पाठक आदि विभूतियों ने भी अपनी उपस्थिति से गंगाभक्तों का मनोबल बढ़ाया। इलाहाबाद हाई कोर्ट के ख्यातिप्राप्त अधिवक्ता और ‘गंगारत्न’ की उपाधि से सम्मानित श्री अरुण गुप्ता जी ने बताया की गंगा एक्ट का प्रारूप तैयारी के अन्तिम चरण में है। प्रयाग में जस्टिस गिरिधर मालवीय की अध्यक्षता में दिनांक २७ से ३१ दिसंबर तक होने वाली बैठक में इसे अन्तिम रूप देकर प्रधान मंत्री को सौंप दिया जाएगा।
दिनांक ५ नवंबर को अस्सी घाट पर गंगा महासभा द्वारा आयोजित सम्मेलन कई दृष्टियों से अभूतपूर्व था। हिन्दुओं के साथ मुसलमानों ने जिस उत्साह से कार्यक्रम में भाग लिया और गंगा को प्रदूषणमुक्त करने की प्रतिज्ञा ली, वह दृश्य दर्शनीय था। यह सम्मेलन भविष्य के लिए एक शुभ संदश दे गया - अखबारबाज़ी, चैनलबाज़ी, बयानबाज़ी करने से किसी भी समस्या का समाधान नहीं निकलने वाला। हिन्दुओं और मुसलमानों की ऐसी कोई समस्या नहीं जिसे दोनों समुदाय के धर्मगुरु एक साथ बैठकर हल नहीं कर सकें। जनता एकसाथ रहना चाहती है, धर्मगुरुओं के विचारों में भी काफी समानता है। बांटने का काम कभी जिन्ना और नेहरु ने किया था; आज सोनिया और मुलायम कर रहे हैं। राजनीति ने भारत को काफी नुकसान पहुंचाया है, इसके टुकड़े-टुकड़े किए हैं। हमें राजनीतिज्ञों से सावधान रहने की आवश्यकता है।