Sunday, January 22, 2012

सर्वोच्च पदों का अवमूल्यन




कांग्रेस की सरकार जब-जब केन्द्र में रही है,
इसने देश के सर्वोच्च पदों का अवमूल्यन करने में अपनी ओर से कोई को्र
कसर नहीं छोड़ी है। इस परंपरा की शुरुआत इन्दिरा गांधी ने देश पर आपात्‌ काल
थोपने के कुछ ही दिनों बाद की, जब सर्वोच्च न्य़ायालय के चार वरिष्ठ न्यायधीशों की योग्यता
और वरिष्ठता को दरकिनार कर ए.एन.राय को सर्वोच्च न्यायालय के
मुख्य न्यायाधीश का प्रतिष्ठित पद सौंपा गया। जिस अपेक्षा से उन्हें यह दायित्व सौंपा
गया, उन्होंने इसे पूरा भी किया। श्रीमती गांधी के रायबरेली संसदीय क्षेत्र से चुनाव
को अवैध घोषित करने तथा उन्हें छः वर्षों तक चुनाव लड़ने से अयोग्य
ठहराने के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को पलटने में सर्वोच्च न्यायालय को कोई
असुविधा नहीं हुई। कारण था मुख्य न्यायाधीश के पद पर इन्दिरा गांधी के वफ़ादार जस्टिस
राय का विद्यमान होना और अपनी वरिष्ठता को नज़रअन्दाज़ करने के विरोध में जस्टिस खन्ना
के नेतृत्व में चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों का त्यागपत्र देना। सर्वोच्च न्यायालय के अवमूल्यन के वे प्रारंभिक दिन थे।
भारत का राष्ट्रीय चुनाव आयोग तो टी.एन. शेषन के मुख्य चुनाव आयुक्त
बनने तक पूर्ण रूप से सरकार का जेबी संगठन था। शेषन ने पहली बार भारत की जनता को चुनाव
आयोग की स्वायत्तता से परिचित कराया लेकिन सरकार को यह रास नहीं आया। सरकार ने एक सदस्यीय
चुनाव आयोग को त्रिसदस्यीय बनाकर चुनाव आयोग के भी पर कतर दिए। फिर से चुनाव आयोग १९८०
के पूर्व की राह पर अग्रसर है। उत्तर प्रदेश में हाथी को ढंकने तथा उत्तराखंड में जानबूझकर
भयंकर हिमपात के दौरान चुनाव की तिथि रखने के पीछे कांग्रेस को फ़ायदा पहुंचाने का उद्देश्य
साफ़ हो जाता है।
भारत के सर्वोच्च संवैधानिक पद - राष्ट्रपति के पद का अवमूल्यन करने
में भी कांग्रेस की केन्द्रीय सरकार को तनिक भी हिचक नहीं हुई।
डा. राजेन्द्र प्रसाद, डा. राधाकृष्णन और डा. ए.पी.जे.कलाम ने अपने कार्यों और ऊंचे
व्यक्तित्व से राष्ट्रपति पद की गरिमा में जो चार चांद लगाया था, क्या शेष राष्ट्रपति
उसके आसपास भी पहुंच सके? नेहरू जी के बाद कांग्रेस ने पार्टी और पार्टी नेतृत्व के
प्रति प्रतिबद्धता को ही राष्ट्रपति पद के लिए सर्वोच्च योग्यता मानी। हद तो तब हो
गई जब भ्रष्टाचार के मामलों का सामना कर रहे देश के लिए एक अनजान प्रत्याशी को राष्ट्रपति
बना दिया गया। आज की तिथि में प्रधान मंत्री के पद का जो अवमूल्यन हुआ है, किसी से
छिपा नहीं है। कोई भी मंत्री, प्रधान मंत्री के अधीन नहीं है। वास्तविक सत्ता का केन्द्र
कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष का आवास हो गया है। स्वायत्त संस्था सी.वी.सी
के अध्यक्ष के पद पर दागी थामस साहब की नियुक्ति, मानवाधिकार
आयोग के अध्यक्ष के पद पर विवादास्पद पूर्व मुख्य न्यायाधीश बालकृष्णन की नियुक्ति
इन संस्थाओं का सप्रयास अवमूल्यन नहीं तो और क्या है? सरकार द्वारा
सी.बी.आई., सी.ए.जी और राज्यपाल द्वारा अपने विरोधियों को साधने
के अनगिनत उदाहरण आए दिन समाचार पत्रों की सुर्खियों में हमेशा रहते हैं।
सेना में वरिष्ठता और योग्यता को दरकिनार न करने
की एक श्रेष्ठ परंपरा रही है। इसे पहली बार तोड़ा इन्दिरा गांधी ने। आपात्‌ काल के बाद
पुनः सत्ता प्राप्त करने के उपरान्त श्रीमती गांधी का आत्मविश्वास हिल गया था। उन्हें
सभी दिशाओं से षडयंत्र की गंध आती थी। जनरल एस.के.सिन्हा, अपनी वरिष्ठता और योग्यता के आधार पर स्थल सेनाध्यक्ष के पद के एकमात्र सही
दावेदार थे। उनका कैरियर बेदाग था और वे सबसे वरिष्ठ थे लेकिन इन्दिरा गांधी के इशारे
पर उनकी वरिष्ठता को नज़र अन्दाज़ कर उनसे कनिष्ठ जनरल को स्थल सेनाध्यक्ष बना दिया गया।
जनरल सिन्हा के पास त्यागपत्र देने के सिवा कोई दूसरा विकल्प नहीं था। उनका दोष यही
था कि वे लोकनायक जय प्रकाश नारायण की बिरादरी के थे और जे.पी. की संपूर्ण क्रान्ति
की जन्मभूमि बिहार के रहने वाले थे।
कैसी विडंबना है कि पड़ोसी पाकिस्तान में सरकार
की उम्र सेनाध्यक्ष तय करता है और हिन्दुस्तान में सेनाध्यक्ष की उम्र सरकार तय करती
है! भारत के वर्तमान सेनाध्यक्ष जनरल वी.के.सिंह एक भ्रष्ट सरकार की कुटिल मंशा के
ताज़ा शिकार हैं। इस बार सेना का मनोबल गिराने और इसे विवादास्पद बनाने के लिए सरकार ने सारी सीमाएं तोड़ दी है। सेनाध्यक्ष न्याय
की फ़रियाद लेकर सुप्रीम कोर्ट जाये, यह दुर्भाग्यपूर्ण
ही नहीं, शर्मनाक भी है। जनरल वी.के.सिंह जब साढ़े चौदह वर्ष के
थे, तो राष्ट्रीय रक्षा अकादमी में प्रवेश के लिए उन्होंने आवेदन
फार्म भरा था। इस उम्र में अधिकांश छात्र अपने
शिक्षक या अभिभावक से सलाह लेते हैं। छात्र वी.के.सिंह ने अपना फ़ार्म अपने शिक्षक श्री
भटनागर को दिखाया और उसे भरने के लिए उनसे सहायता का आग्रह किया। शिक्षक भटनागर ने
पूरा फर्म स्वयं भर दिया और बालक जनरल की उम्र १० मई, १९५० लिख
दी। यही एकमात्र भूल जनरल से हुई है। सारे विश्व में हाई स्कूल सर्टिफिकेट में अंकित
जन्मतिथि को ही मान्यता प्राप्त है। अपने देश में भी सर्वोच्च न्यायालय ने हाई स्कूल
सर्टिफिकेट में अंकित जन्मतिथि को ही अन्तिम रूप से वैध माना है। हाई स्कूल सर्टिफिकेट
में जनरल वी.के.सिंह की जन्मतिथि १० मई १९५१ दर्ज़ है और इसे ही आधार मानकर उनकी नियुक्ति
और पदोन्नतियां हुई हैं। अब अचानक चार दशकों से भी अधिक के उनके बेदाग कैरियर को विवादास्पद
बनाते हुए ‘आर्मी लिस्ट’ में अंकित उनकी जन्मतिथि, १०-५-५० को
रक्षा मंत्रालय ने सही माना है। सेना में अधिकारियों
के समस्त विवरण सेना द्वारा अभिरक्षित और जारी ‘आर्मी लिस्ट’ में दिए जाने की परंपरा
है। लेकिन इस अभिलेख को कोई कानूनी मान्यता प्राप्त नहीं है। बड़ी चालाकी से इसमें जनरल
सिंह की जन्मतिथि १०-५-१९५० डाल दी गई। अन्य सभी अभिलेखों में जनरल की जन्मतिथि १०-५-१९५१
ही दर्ज़ है। आज एक व्यक्ति विशेष को सेनाध्यक्ष बनाने के लिए उन्हें समय से पूर्व सेवानिवृत्त
करने हेतु आर्मी लिस्ट में दी गई जन्मतिथि को सरकार मुख्य आधार मान रही है। स्थल सेनाध्यक्ष
जनरल वी.के.सिंह एक कर्मठ, ईमानदार और साफ-सुथरी छवि के सेनाधिकारी
रहे हैं। सरकार को यह भ्रम होने लगा है कि भारत का हर स्वच्छ छवि का व्यक्ति अन्ना
का समर्थक है। कुछ दिनों के अन्दर ही कांग्रेस के महासचिव का बयान भी आ सकता है कि
जनरक वी.के.सिंह भी आर.एस.एस. के एजेन्ट हैं। इस सरकार को सिर्फ़ घोटालेबाज ही पसन्द
आते हैं। इस अभियान के तहत जनरल वी.के.सिंह की सेवानिवृति को विवादास्पद बनाने का हर
संभव प्रयास किया जा रहा है।
अवकाश प्राप्त मेजर जनरल आर.एस.एन.सिंह सेना
के मिलिटरी इन्टेलिजेन्स आफिसर रहे हैं। उन्होंने दिनांक २२ जनवरी, २०१२ को दक्षिण से प्रकाशित अंग्रेजी दैनिक ‘डेक्कन क्रोनिकल’ में
`Biggest Fraud In The Army' शीर्षक से एक लेख लिखा है। उन्होंने लिखा
है कि सेना द्वारा जारी `Army List' को जिसमें जनरल वी.के.सिंह
की उम्र एक साल ज्यादा दिखाई गई है, कोई कानूनी वैधता या मान्यता
प्राप्त नहीं है। यह एक ऐसा डोजियर है जिसमें तमाम त्रुटियां भरी हैं। सेना के अफसरों
के बारे में इस अभिलेख में दिए गए विवरण में कई अफसरों के गलत नाम-पते, जन्मतिथियां और आई.सी. नंबर भरे पड़े हैं। मेजर जनरल सिंह ने दावा किया है कि
उनके समकालीन ब्रिगेडियर रैंक के एक अधिकारी के पिता के नाम के स्थान पर स्वयं अधिकारी
का ही नाम दर्ज़ था और अवकाश प्राप्ति के बाद भी इसमें कोई सुधार नहीं किया गया। जनरल
वी.के.सिंह ने इस डोजियर में उल्लिखित अपनी जन्मतिथि (१०-५-५०) को अपने हाई स्कूल सर्टिफिकेट
में अंकित जन्मतिथि (१०-५-५१) के आधार पर सुधारने के लिए सन्‌ २००६ एवं २००८ में आवेदन
पत्र दिया जिसका निस्तारण जनवरी २०१२ में करते हुए रक्षा मंत्रालय ने Army
List में अंकित जन्मतिथि को ही सही मानते हुए उनकी याचिका को खारिज़ कर
दिया। हाई स्कूल का सर्टिफिकेट एक कानूनी मान्यता प्राप्त अभिलेख है। इसमें वर्णित
जन्मतिथि को ही अन्तिम रूप से वैध माना जाता है। ड्राइविंग लाइसेंस से लेकर पासपोर्ट
जारी करने की प्रक्रिया में इसे ही सही माना जाता है। जनरल वी.के.सिंह के हाई स्कूल
के शिक्षक श्री भटनागर की जल्दीबाज़ी में की गई एक छोटी सी भूल की सज़ा स्थल सेनाध्यक्ष
को देने का सरकार मन बना चुकी है। ऐसे में
अपने स्वाभिमान की रक्षा करने हेतु जनरल वी.के.सिंह का सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाना
कही से भी अनुचित प्रतीत नहीं होता। वहां देर भले है, अंधेर नहीं।

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