Sunday, May 24, 2015

नाले में सरकारी धन

     बाल बंगरा, बिहार के सिवान जिले के महाराजगंज तहसील का भारत के लाखों गांवों की तरह एक गांव है। भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन में विशिष्ट योगदान के बावजूद भी प्रादेशिक या राष्ट्रीय समाचारों की सुर्खियों में नहीं आया कभी इसका नाम। १९४२ के १६ अगस्त को इस गांव के फुलेना प्रसाद ने महाराजगंज थाने पर एक विशाल जनसमूह के साथ कब्ज़ा कर लिया था और महाराजगंज को आज़ाद घोषित  किया था। थाने पर तिरंगा फहरा दिया गया और स्व. प्रसाद ने थानाध्यक्ष को गांधी टोपी पहनकर झंडे को सलामी देने पर बाध्य किया था। सूचना मिलते ही अंग्रेज पुलिस कप्तान वहां पहुंचा और सबके सामने फुलेना प्रसाद को गोली मार दी। सीने पर आठ गोली खाकर फुलेना प्रसाद अमर शहीद हो गए। उनकी पत्नी तारा रानी को गिरफ़्तार कर लिया गया। उन्हें १९४६ में जेल से रिहा किया गया। आज भी महाराजगंज शहर के मध्य में लाल रंग का शहीद स्मारक अमर शहीद फुलेना प्रसाद की हिम्मत एवं वीरता की कहानी कहता है। उस समय यह गांव समाचार पत्रों में कई दिनों तक स्थान पाता रहा। एक बार फिर १९७१ के १५ अगस्त को इस गांव का नाम बिहार के समाचार पत्रों में छपा। अमर शहीद फुलेना प्रसाद की विधवा पत्नी तारा रानी श्रीवास्तव को बिहार की प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के रूप में तात्कालीन प्रधान मंत्री ने लाल किले में एक विशेष समारोह में ताम्र-पत्र देकर सम्मानित किया। मेरा जन्म इसी बालबंगरा गांव में हुआ था। मेरा सौभाग्य रहा कि मार्च १९८७ तक मुझे स्व. तारा रानी श्रीवास्तव का आशीर्वाद प्राप्त होता रहा। उन्हें इलाके के सभी लोग -- बूढ़े, बच्चे, जवान -- दिदिया (दीदी) कहकर पुकारते थे।
बालबंगरा गांव के पूरब में एक बरसाती नदी बहती है। गांव का एक बड़ा हिस्सा बरसात में एक बड़े झील का रूप ले लेता है। उसमें धान की खेती होती है। सामान्य से थोड़ी भी अधिक वर्षा होने पर धान के खेत का पानी गांव के रिहायशी इलाकों घुस जाता है। अतिरिक्त पानी को निकालने के लिए ७०-८० साल पहले गांव वालों ने ही सामूहिक प्रयास से एक किलोमीटर लंबी एक छोटी नहर की खुदाई की। इस नहर के द्वारा बाढ़ का पानी गांव के निचले हिस्से से बरसाती नदी में पहुंचने लगा। फिर हमारे गांव में कभी बाढ़ नहीं आई और धान की फसल भी पानी के प्रवाह में कभी बही नहीं। गांव वाले स्वयं ही कभी-कभी छोटी नहर की सफाई कर लेते थे।
आज वहीं छोटी नहर मनरेगा के माध्यम से कमाई का स्रोत बनी है। साल में कम से कम छ: बार कागज पर उसकी खुदाई और सफाई होती है और लाखों रुपयों की बन्दरबांट हो जाती है। गांव के सभी इच्छुक पुरुषों और महिलाओं को जाब-कार्ड मिला हुआ है। बिना कोई काम किए ही प्रतिदिन ७० रुपए वे मनरेगा से पा जाते हैं। शेष ५५ रुपए जन-प्रतिनिधियों, अधिकारी और कर्मचारियों में बंट जाते हैं। कभी कार सेवा से बनी नहर अब नाले का रूप ले चुकी है जबकि मनरेगा की व्यय-राशि करोड़ों में पहुंच चुकी है।
मनरेगा में व्याप्त भ्रष्टाचार की चर्चा तो कई बार प्रधान मंत्री ने भी की है, लेकिन इसकी पुष्टि National Council of Applied Economic Research (NCAER), Natioanal Institute of Public Finance & Policy और Natioanal Institute of Financial Management ने वित्त मन्त्रालय भारत सरकार को २०१३ और २०१४ में प्रस्तुत रिपोर्ट में कर दी थी। कांग्रेस की सरकार ने इसे दबा दिया था। वर्तमान सरकार ने इसे सार्वजनिक कर दिया है। www.timesofindia.com पर पूरी रिपोर्ट उपलब्ध है। रिपोर्ट में मनरेगा के अतिरिक्त सार्वजनिक वितरण प्रणाली, इन्दिरा आवास योजना, सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम और ग्रामीण दलित बच्चों की छात्रवृत्ति में व्याप्त भ्राष्टाचार की विस्तार से चर्चा है। हर वर्ष हमारे राजकोष का ५०% भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाता है।

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