रेलवे बज़ट अब आने ही वाला है। हमेशा
की तरह लोक-लुभावन वादों की झड़ी इस बज़ट में भी होगी। अपने ६० वर्षों के जीवन में जब
से होश संभाला है, बड़े ध्यान से रेलवे
बज़ट देखता हूं। अन्यों की तरह मुझे भी जिज्ञाशा रहती है कि मेरे गृह-स्टेशन से इस साल कोई नई ट्रेन चली या नहीं। सारी नई ट्रेनें कलकत्ता,
मुंबई, दिल्ली, चेन्नई,
बंगलोर, अहमदाबाद, पटना या
लखनऊ से ही चलती हैं। दूरस्थ स्थानों की सुधि लेनेवाला कोई नहीं है - चाहे वे लालू
हों, नीतिश हों या सुरेश प्रभु हों।
आज एक समाचार टीवी पर देखा - ट्रेन में अब पिज़्ज़ा भी मिलेगा। बर्गर, सैन्डविच, पकौड़े,
दही, मठ्ठा, लिट्टी-बाटी,
चावल-रोटी, दाल, सब्जी,
वेज, नान-वेज, चाय-काफी आदि
खाद्य सामग्री तो पहले भी मिला करती थीं। चलिये, एक नाम पिज़्ज़े
का और जुड़ गया। मेरी समझ में नहीं आता है कि जनता रेल से सफ़र खाने के लिए करती है या
गंतव्य तक पहुंचने के लिए? क्या महानगरियों तक जाने वाली ट्रेनों
की सामान्य बोगियों की ओर कभी आपका ध्यान गया है? यदि आप सिर्फ
एसी में सफ़र करते हैं, तो मेरा आग्रह है कि किसी स्टेशन पर रुककर
सामान्य बोगियों का एक चक्कर अवश्य लगा लें।
आपकी आंखों में आंसू न आएं, ऐसा हो ही नहीं सकता। एक के
उपर एक लदे लोग - बिल्कुल बोरे जैसे, शौचालय में भी अखबार बिछाकर
बैठे लोग, रोते बच्चे, आंचल संभालतीं महिलायें,
गर्मी में उतरकर स्टेशन से पीने का पानी न ले आने की मज़बूरी से ग्रस्त
पुरुष और सबको कुचलकर डिब्बे में प्रवेश को आतुर भीड़ के दृश्य कलकत्ता, मुंबई, दिल्ली, चेन्नई आदि महानगरों
को जाने वाली हर ट्रेन में दिखाई पड़ेंगे। अन्ना भी जन्तर-मन्तर पर धरने के लिए जिन्दल
ग्रूप के हवाई जहाज से आते हैं, केजरीवाल भी विमान के एक्जीक्युटिव
क्लास में सफ़र करते हैं। है कोई महात्मा गांधी, जो थर्ड क्लास
(अब द्वितीय श्रेणी, सामान्य) में यात्रा करने का दुस्साहस कर
सके? आज़ाद हिन्दुस्तान में तो ऐसा साहस न किसी नेता ने दिखाया
है और न किसी समाजसेवी ने। अब आप ही सोचिए उस डब्बे में जब मूंगफली वाला प्रवेश करने
की हिम्मत नहीं कर पाता है, तो वातानुकूलित पैन्ट्री कार का पिज़्ज़ा
वाला कैसे पहुंच सकता है? क्या जेनरल बोगियों में यात्रा करने
वाले के कष्टों के निवारण के लिए इस बज़ट में कुछ होगा? रेल राज्य
मंत्री मनोज सिन्हा आई.आई.टी. बी.एच.यू. में मुझसे एक साल जूनियर थे। मित्रता अब भी
बरकरार है। मेरी तरह वे भी एक साधारण परिवार से ही आये हैं। मैं यह लेख उनको भी मेल
कर रहा हूं। देखता हूं, यह बज़ट भी हमेशा की तरह इंडिया के लिए
ही होगा या भारत भी कहीं-कहीं दिखाई पड़ेगा।
ध्यान रहे कि जनता ट्रेन की यात्रा पिज़्ज़ा खाने के लिए नहीं करती।
यात्रियों की सरकार और रेलवे से मात्र एक ही अपेक्षा रहती है - अपने गन्तव्य पर सुरक्षित
और समय से पहुंच जायें। जब इन्दिरा गांधी के आपात्काल में सारी ट्रेनें समय से चल सकती
थीं, तो मोदी के सुराज में यह
संभव क्यों नहीं है? हम हाथ जोड़कर विनती करते हैं कि रेलवे हमें
हमारे गंतव्य पर सुरक्षित और समय से पहुंचाना सुनिश्चित करे। यह कठिन हो सकता है,
असंभव नहीं।
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