Saturday, January 10, 2015

कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन

           दिनांक ९.१.२०१५ को आई.आई.टी., बी.एच.यू. के १९७६ बैच के पूर्व छात्रों का समागम कार्यक्रम आरंभ हुआ। यह १९७६ बैच के आईटीशियन का दूसरा समागम था। लगभग १०० पूर्व छात्र इसमें सम्मिलित हुए। दुनिया के हर कोने से आए इन पूर्व छात्रों के साथ ज़िन्दगी के कुछ अति सुन्दर और यादगार क्षण बिताना इतना सुखद और आनन्ददायक था कि इसे शब्दों में व्यक्त करना असंभव प्रतीत हो रहा है। कुछ पूर्व छात्र तो अपनी पत्नी और बच्चों के साथ समागम में शामिल हुए। सभी के रहने की व्यवस्था आई.आई.टी. गेस्ट हाउस में थी। समागम के पहले दिन दोपपहर तक Reintroduction और Registration का काम चला। फिर सबने एक साथ Lunch लिया। थोड़ा विश्राम करने के बाद सभी अस्सी घाट पहुँचे। वहां दुल्हन की तरह सजी 2-Tier की चार नौकाएं आगन्तुकों के स्वागत के लिए तैयार थीं। गुलाब की पंखुड़ियों के छिड़काव से सबका स्वागत किया गया। गद्दे, मसनद और कंबलों से सुसज्जित बज़रों में सभी ने अपना स्थान ग्रहण किया। फिर सितार-वादन और शास्त्रीय संगीत के कलाकारों ने अपने-अपने हुनर से सबको मंत्रमुग्ध किया। काशी का प्रसिद्ध चिउड़ा-मटर, समोसा और रबड़ी-रसगुल्ला खाते-खाते कब और कैसे पेट भर गया, समझ में ही नहीं आया। बीच-बीच में गरम-गरम चाय की चुस्कियां गप्पबाजों के लिए मुफ़ीद माहौल भी प्रदान कर रही थीं। देखते ही देखते शाम के साढ़े छः बज गए। अस्सी से राजघाट और राजघाट से दशाश्वमेध घाट की सैर करने के बाद हमने बज़ड़े से ही विश्व विख्यात गंगा-आरती के दर्शन किए। नरेन्द्र मोदी जी के प्रधान मंत्री बनने के बाद घाटों के कायाकल्प के दृश्य अपनी आँखों से देखा। विश्वास ही नहीं हो रहा था कि हमेशा गंदे रहने वाले घाट इतने साफ-सुथरे और आकर्षक बन जायेंगे। गंगा आरती देखने के पश्चात्‌ हम सभी बज़ड़े से ही अस्सी घाट आये। वहां से पुनः गेस्ट हाउस आकर महिलाओं ने अपने -अपने मेक-अप दुबारा करीने से ठीक किए और पुनः तैयार होकर रात के आठ बजे  हम सभी होटल क्लार्क्स पहुंचे। पुरुषों को गप्पें मारने से फुर्सत कहां थी? वे जैसे सवेरे थे, वैसे ही शाम को होटल में भी थे। वहां स्थानीय कलाकारों के कर्णप्रिय संगीत के साथ काकटेल पार्टी का शुभारंभ हुआ। दो घंटे के बाद १९७६ बैच के गायकों ने गीत और नृत्य का मंच संभाल लिया। सब नाचे और दिल खोलकर नाचे। गाने वालों पूर्व छात्रों ने अपने मधुर गायन से समा बांध दी। महिलाओं और बच्चों ने भी साथ दिया। दिव्य डिनर की व्यवस्था तो थी ही, लेकिन किसी को इसकी सुध ही कहां थी। रात के दो बजे पार्टी का समापन हुआ।
दिनांक १०.०१.२०१५ को सभी पूर्व छात्र दिन के दस बजे पुनः मिले। स्थान था आई.आई.टी. का ABLT हाल। हमलोगों के ज़माने में आधुनिक साज-सज्जा से युक्त यह सुन्दर आडिटोरियम नहीं था। Reunion कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्ज्वलन और अपने मधुर कुलगीत से हुई। निदेशक, आई.आई.टी. प्रो. राजीव संगल मुख्य अतिथि थे, पूर्व निदेशक प्रोफ़. एस.एन.उपाध्याय विशिष्ट अतिथि थे और डीन आफ़ स्टुडेन्ट प्रो. आनिल त्रिपाठी कार्यक्रम के संयोजक। १९७६ बैच के पूर्व छात्र सुनील खन्ना ने २० किलोवाट के एक ऊर्जा संयंत्र की आई.आई.टी. में स्थापना की घोषणा की। उक्त प्लान्ट का संचालन आई.आई.टी. और १९७६ बैच के पूर्व छात्र मिलकर करेंगे। यह प्लान्ट अध्ययनशील छात्रों को व्यवहारिक ज्ञान प्रदान करने में सहायक होगा। याद कीजिए तब के BENCO और बीच के आई.टी. के कालखंड में एक थर्मल पावर प्लान्ट हुआ करता था जो १९६५ तक पूरे विश्वविद्यालय को बिजली की सप्लाई सुनिश्चित करता था। इसका संचालन छात्र ही स्टाफ़ के सहयोग से करते थे। उसकी चिमनी पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा BENCO दूर ही से इंजीनियरिंग कालेज का पता बता देते थे। हमलोगों ने उसके Boiler और Turbine पर Practicals भी किए थे। एक कसक सी होती है कि एक आंधी में गिरी BENCO की वह चिमनी दुबारा लग नहीं पाई। वेब्काक्स-बिलकाक्स का वह Open-Herth boiler कार्यशील नहीं है। Turbine  और Generator भी जंग खा रहे हैं। 
दो घंटे तक चले इस विशेष समारोह के बाद आई.आई.टी. के वर्तमान छात्रों ने सभी को विशेष जलपान पर आमंत्रित किया। दो पीढ़ियों के इस Interaction को भी कभी भुलाया नहीं जा सकता। दिन के ढाई बजे गेस्ट हाउस में लंच के बाद सभी विश्राम कर रहे हैं। शाम को सात बजे फिर सभी नदेसर स्थित बनारस क्लब में एकत्रित होंगे और फिर शुरु हो जायेगा वही पुरानी मस्ती का दौर। गीत भी होगा, संगीत भी होगा, लतीफ़े भी होंगे, बीते दिनों की स्मृति भी होगी और साथ में होगी काकटेल पार्टी और यादगार डिनर। कल दिनांक ११.०१.२०१५ को पूर्व छात्र-समागम का अन्तिम दिन होगा। अगला समागम विश्वविद्यालय की स्थापना के सौ वर्ष पूरा होने के उपलक्ष्य में सिंगापुर या दुबई में होगा। फिलहाल तो इस समागम की मधुर स्मृतियां जेहन में हैं जो जीवन भर बनी रहेंगी। सब यही कह रहे थे - जाने कहां गये वो दिन ......। 

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