Friday, January 4, 2013

वाह रे सरकार



      नव वर्ष के अवसर पर एक ओर पूरा देश अपने सारे समारोहों को स्थगित कर ब्लात्कार की पीड़िता लड़की की मृत्यु पर शोक मना रहा था, तो दूसरी ओर हमारा विदेश मंत्री तमिलनाडू के एक अवैध रिसौर्ट में अपनी विदेशी पत्नी के साथ जश्न मना रहा था। भारत की बहुसंख्यक जनता बलात्कारियों को मौत की सज़ा देने के लिए कानून बनाने की मांग कर रही थी, तो दूसरी तरफ़ कांग्रेस की सहयोगी पार्टी मज़लिस-ए-इत्तहाद के एम.एल.ए. अकबरुद्दीन ओवैसी हैदराबाद में भारत सरकार से १५ मिनट के लिए देश के हर हिस्से से पुलिस को हटाने की मांग कर रहे थे। ओवैसी ने एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा था कि हिन्दुस्तान से सिर्फ़ १५ मिनट के लिए पुलिस को हटा लीजिए, हम इस मुल्क के १०० करोड़ हिन्दुओं को खत्म कर देंगे।
      पाकिस्तान के संस्थापक जिन्ना का भी ऐसा वक्तव्य कभी भी मेरी निगाह से नहीं गुजरा। ओसामा बिन लादेन ने भी हिन्दुस्तान और हिन्दुओं के लिए कभी ऐसा बयान दिया हो, मुझे याद नहीं। लेकिन लादेन के मानस पुत्र ओवैसी ने सार्वजनिक रूप से यह बयान दिया और वह आज़ाद हिन्दुस्तान में पूरी आज़ादी के साथ घूम भी रहा है। देश की एकता और अखंडता को तार-तार करने वाके उसके बयान के बाद भी अभी तक उसपर कोई कानूनी कार्यवाही नहीं हुई। दिल्ली में सत्तारुढ़ यू.पी.ए. के घटक मज़लिस-ए-इत्तहाद के नेता के बयान की निन्दा न तो प्रधान मंत्री ने की और ना ही कांग्रेस सुप्रीमो सोनिया गांधी ने । ओवैसी ने पाकिस्तान प्रायोजित हत्या काण्ड के मुख्य आरोपी कसाब की तरफ़दारी करते हुए उसे निर्दोष बच्चा कहा और मुंबई में २०० निरपराध नागरिकों की हत्या करने वाले कसाब को फांसी पर लटकाने की आलोचना की। उसने गुजरात में मुसलमानों की कथित हत्या कराने के लिए नरेन्द्र मोदी को भी कसाब की तरह फ़ांसी पर लटकाने की जोरदार मांग की। कांग्रेस ने ओवैसी की राजद्रोह की श्रेणी में आनेवाले भाषण की इसलिए आलोचना नहीं की कि उसने मोदी को भी कटघरे में खड़ा किया था। हमारी पश्चिम परस्त मीडिया ने भी देशद्रोह के इस कृत्य को नज़र अन्दाज़ करना ही मुनासिब समझा। वाह रे सरकार और वाह रे लोकतंत्र। समझ में नहीं आता कि वोट की यह संकीर्ण राजनीति हमें कहां ले जाएगी। देश हित के प्रति इतनी असंवेदनशीलता की कल्पना, क्या विश्व के किसी और देश में की जा सकती है?
      कोई भी आतंकवादी, तस्कर, अपराधी या राष्ट्रद्रोही अगर अल्पसंख्यक समुदाय से है, तो वर्तमान सरकार उसके खिलाफ़ कार्यवाही करने में सौ बार हिचकती है। कल्पना कीजिए कि ओवैसी जैसा बयान यदि किसी हिन्दू नेता ने दिया होता, तो सरकार क्या ऐसे ही निष्क्रिय बैठी रहती? दाउद इब्राहिम के खिलाफ कार्यवाही करने में सरकार की उदासीनता जग जाहिर है। आगामी ६ दिसंबर को होने वाले भारत-पाकिस्तान के एक दिवसीय मैच को देखने के लिए पाकिस्तानी क्रिकेटर जावेद मियांदाद को वीज़ा दिया गया है। एक क्रिकेटर के रूप में जावेद मियांदाद को वीज़ा देने में किसी को क्या आपत्ति हो सकती है? परन्तु मियांदाद क्रिकेटर के साथ ही दाउद इब्राहीम के सगे समधि भी हैं। राष्ट्रीय हित और प्रतिबद्धताओं को तिलांजलि देकर उनके लिए वीज़ा की व्यवस्था की गई है। भारत सरकार की यह कार्यवाही दाउद और उसके संबन्धियों को पासपोर्ट या वीज़ा जारी न करने की घोषित नीतियों के खिलाफ़ है। लेकिन जब इस देश का विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद हो, प्रधान मंत्री मौन मोहन सिंह हों और यूपीए की नेता सोनिया जी हों, तो कुछ भी संभव है। मुट्ठी भर वोट के लिए ये लोग कभी भी देश का सौदा कर सकते हैं। 

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