Wednesday, August 31, 2011

स्वामी अग्निवेश - एक रंगा सियार



दिनांक २८ अगस्त, २०११ को दिन के दो बजे न्यूज२४ चैनल से स्वामी अग्निवेश और केन्द्रीय मंत्री कपिल सिब्बल से हुई बातचीत का विडियो टेप के माध्यम से सजीव प्रसारण हुआ। यह विडियो आज भी यू-ट्‌यूब पर उपलब्ध है। इसमें अग्निवेश भगवा वस्त्र पहने हैं और मोबाइल से बात करते हुए स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं। बातचीत हिन्दी में हुई थी, जो शब्दशः नीचे प्रस्तुत है -
"..................................................." फोन पर दूसरी ओर कपिल हैं, जिनकी आवाज़ सुनाई नहीं पड़ रही है।
अग्निवेश - "जय हो, जय हो कपिल जी, जय हो महाराज। बहुत जरुरी है कपिल जी, नहीं तो ये तो पागल की तरह हो रहे हैं, जैसे कोई हाथी हो।"
"..................................................."
अग्निवेश - "लेकिन जितना कंसीड करती जाती है गवर्नमेंट, उतना ही ज्यादा ये सिर पर चढ़ते हैं।"
"...................................................."
अग्निवेश - "बिल्कुल कंसीड नहीं करना चाहिए, फर्म होकर करिए।"
"..................................................."
अग्निवेश - "कोई सरकार को इस तरह से ये करे तो ये बहुत बुरी बात है। हमें शर्म महसूस हो रही है कि हमारी सरकार इतनी कमजोर हो गई है।"
"......................................................."
अग्निवेश - "देखिए न, इतनी बड़ी अपील करने के बाद भी अन्ना फास्ट नहीं तोड़ते। इतनी बड़ी चीज कह दी और इतनी उनके शब्दों में प्रधान मंत्री जी........................"
कुटिल मुस्कान के साथ अग्निवेश टहलते हुए स्थान बदल देते हैं, इसलिए आगे की बातचीत रिकार्ड नहीं की जा सकी, लेकिन बातचीत का जो अंश उपर दिया गया है, उतना ही स्वामी अग्निवेश के दोहरे चरित्र को उजागर करने के लिए पर्याप्त है।
अग्निवेश अप्रिल तक टीम अन्ना के सक्रिय सदस्य थे। अप्रिल में अन्नाजी द्वारा किए गए अनशन के दौरान वे हमेशा मंच पर विराजमान रहे। इस अगस्त क्रान्ति के दौरान भी वे अन्नाजी के मंच पर शुरुआती दिनों में देखे गए, लेकिन अनुभवी पुलिस अधिकारी किरण बेदी की आंखों ने भगवा वस्त्र में लिपटे इस ढोंगी संन्यासी के मुखबिरी चेहरे को पहचान लिया। अन्नाजी ने भी इस रंगे सियार से बात करना बंद कर दिया। अग्निवेश ने फिर भी हार नहीं मानी। उन्होंने पीएमो से सीधे फोन कराया और टीम अन्ना पर दबाव डलवाया कि उन्हें भी टीम में महत्वपूर्ण भूमिका के साथ रखा जाय। वे सरकार और टीम अन्ना के बीच मध्यस्थता के लिए सबसे उपयुक्त रहेंगे, ऐसा सुझाव भी पीएमो की ओर से दिया गया। लेकिन अन्नाजी टस से मस नहीं हुए क्योंकि उन्हें पक्का विश्वास हो चुका था कि अग्निवेश की निष्ठा कांग्रेस और सरकार के प्रति थी न कि भ्रष्टाचार विरोधी अगस्त-क्रान्ति के साथ। अन्ना टीम को यह भी पता चल गया था कि बाबा रामदेव का करीबी बनकर जून में इन्होंने ही सरकार के लिए मुखबिरी की थी और बाबा के आंदोलन को कुचलने में सरकार का उपकरण बने थे।
अग्निवेश की भूमिका आरंभ से ही संदिग्ध और विवादास्पद रही है। ये नक्सलवादियों, आतंकवादियों, विघटनकारियों और देशद्रोहियों के सलाहकार और सरकारी एजेन्ट हैं। ये भगवा वस्त्र पहनते हैं। भगवा रंग पवित्रता, त्याग, तपस्या, तप, और सर्वशक्तिमान ईश्वर के प्रति समर्पण का प्रतीक है। जनमानस में इसके लिए अथाह श्रद्धा का भाव है। इसी का लाभ उठाने के लिए इस बहुरूपिए ने भगवा रंग धारण कर रखा है। ये अपने को आर्य समाजी कहते हैं, लेकिन आज की तिथि में आर्य समाज से भी इनका दूर-दूर का भी कोई नाता नहीं है। इनका आचरण महर्षि दयानन्द सरस्वती के पवित्र आदर्शों को कलंकित करने के समान है। भ्रष्टाचार एवं देशद्रोह को समर्थन करनेवाला यह ढ़ोंगी कहीं से भी भगवा वस्त्र का अधिकारी नहीं है। इन्हें भगवा वस्त्र का परित्याग कर स्वयं काला वस्त्र अपना लेना चहिए। वह दिन दूर नहीं जब जनता जनार्दन वस्त्रों के साथ इनका मुंह भी काला करके राजधानी की सड़कों पर घुमाएगी। कब तक ये अंडरग्राउंड रहेंगे?
पता नहीं इस सरकारी दलाल ने अपने नाम के पहले "स्वामी" उपसर्ग कहां से और कब लगा लिया। "स्वामी" शब्द बड़ा पवित्र और महान है। इसके उच्चारण से सबसे पहले स्वामी विवेकानन्द जी का चित्र आंखों के सामने साकार हो उठता है। अग्निवेश जैसा निकृष्ट व्यक्ति अपने नाम के आगे स्वामी लगाए, यह सह्य नहीं है। यह भारत की सभ्यता, संसकृति और गौरवशाली परंपरा का खुला अपमान है। भारत की जनता से अनुरोध है कि नक्सलवाद, आतंकवाद और भ्रष्टाचार के प्रबल समर्थक अग्निवेश को आज के बाद "रंगा सियार" ही कहकर संबोधित करे, भले ही कांग्रेस की सरकार उन्हें "भारत-रत्न" से ही क्यों न सम्मानित कर दे। उनके पापों की यह सबसे हल्की सज़ा होगी।

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