Sunday, May 8, 2011

खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे



पाकिस्तान और भारत में वही अन्तर है, जो उर्दू और हिन्दी में. अरबी में लिख दीजिए तो उर्दू और देवनागरी में लिख दीजिए तो हिन्दी. एक व्याकरण एक भाव. पढ़ने और बोलने पर लिपि की सीमाएं अपने आप ध्वस्त हो जाती हैं. लेकिन पाकिस्तान इस तथ्य को स्वीकार करने से कतराता है, क्योंकि उसका निर्माण ही भारत से घृणा के आधार पर हुआ है. जब-जब दोनो देशों की जनता के बीच घृणा की मात्रा कम होने लगती है, वहां के वास्तविक शासक (फ़ौज़) घबराने लगते हैं. एक राष्ट्र के रूप में पाकिस्तान के अस्तित्व का कोई आधार ही नहीं है. वह जब भी अपना स्वतंत्र इतिहास लिखेगा, भारत का इतिहास लिखेगा. एक देश के रूप में १९४७ में वह एक स्वतंत्र देश तो बन गया लेकिन राष्ट्र के रूप में उसकी स्वतंत्र पहचान बन ही नहीं सकती. वह हमेशा भारतीय राष्ट्र का स्वाभाविक अंग ही रहेगा. इसे अंग्रेजी में इंडियन सब कण्टीनेन्ट और हिन्दी में अखंड भारत की राष्ट्रीयता कही जा सकती है. किसी भी राष्ट्र के लिए मौलिक सभ्यता, संस्कृति और गौरवशाली इतिहास से सुसंपन्न एक भूभाग की आवश्यकता होती है. इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि दोनों की सभ्यता, संस्कृति और इतिहास साझे हैं. यदि मज़हब ही राष्ट्रीयता की आवश्यक शर्त होती, तो सारे अरब देश एक राष्ट्र होते, बांग्ला देश पाकिस्तान से कभी अलग नहीं होता. पाकिस्तान के निर्माण के लिए गढ़ा गया द्विराष्ट्रवाद का सिद्धान्त पूर्णतः अप्राकृतिक और अस्वाभाविक था. यह मुस्लिम सांप्रदायिकता का सबसे वीभत्स चेहरा था, जिसे सत्तालोलूप नेताओं द्वारा स्थापित किया गया और स्वीकार किया गया. पाकिस्तान के बंटवारे ने इस सिद्धान्त की धज्जियां उड़ा दीं. हिन्दू और मुसलमान बंट ही नहीं सकते. दोनों के खान-पान एक जैसे हैं, पहनावा-ओढ़ावा एक जैसा है, रीति रिवाज़ एक जैसे हैं, मान्यताएं एक जैसी हैं, भाषा एक है, बोली एक है, संगीत एक है, साहित्य एक है, रंग-रूप एक है, कद-काठी एक है विरासत एक है, इतिहास एक है.. कुछ ही हजार वर्ष पूर्व दोनों समानधर्मी भी थे. हिन्दुओं और मुसलमानों में समानताएं अधिक हैं, विषमताएं नगण्य. पाकिस्तान का शहादत हसन मंटो किसी भी अरब सहित्यकार की तुलना में प्रेमचन्द के ज्यादा करीब है. कट्टरपन्थी लाख कोशिश करें, वे मौलिकता को नष्ट नहीं कर सकते. पाकिस्तान के कट्टरपन्थी शासक इसी बात से भयभीत रहते हैं. जब भी उनकी गद्दी डगमगाने लगती है, वे भारत के विरुद्ध घृणा का प्रचार तेज कर देते हैं. इतिहास गवाह है, वे अपनी असफलताओं से पाकिस्तानी अवाम का ध्यान हटाने के लिए तीन बार भारत पर आक्रमण भी कर चुके हैं.
पाकिस्तान को भारत से ज्यादा अमेरिका और आतंकवाद से खतरा है. भारत से दुश्मनी करके भी एक देश के रूप में उसका आज का स्वरूप कायम रह सकता है. भारत ने कभी भी उसकी सार्वभौमिकता पर न कभी चोट पहुंचाई है और न कोई प्रश्न चिह्न ही खड़ा किया है. अमेरिका से दोस्ती उसके अस्तित्व के लिए अब भयानक खतरा है. पाकिस्तान इसे न निगल सकता है, न उगल सकता है. गत दस वर्षों से इस्लामिक आतंकवाद को सरकारी संरक्षण और प्रोत्साहन देकर पाकिस्तान ने अनगिनत बार भारत के आन्तरिक मामलों में खुला हस्तक्षेप किया है. कारगिल पर हमला, संसद पर हमला और मुंबई पर हमला भारत की प्रभुसत्ता पर सीधा हमला माना जा सकता था और अन्तर्राष्ट्रीय नियमों के तहत भारत द्वारा सैन्य कार्यवाही वैध सिद्ध की जा सकती थी. लेकिन भारत ने संयम से काम लिया (अधिकांश भारतवासी इसे कायरता मानते हैं). ओसामा बिन लादेन को मारने के लिए अमेरिका द्वारा की गई कार्यवाही को पाकिस्तानी शासक सार्वभौमिकता का उल्लंघन नहीं मानते. नित्य ही अमेरिका के ड्रोन विमान उसकी वायुसीमा में घुसकर बम बरसा जाते हैं, पाकिस्तान गंभीरता से मौखिक विरोध भी नहीं कर पाता. जबरा मारे और रोने भी न दे. द्विराष्ट्रवाद के कृत्रिम सिद्धान्त की कमजोर बुनियाद पर निर्मित पाकिस्तान के लिए उसके द्वारा पाला पोसा गया इस्लामिक आतंकवाद ही भस्मासुर सिद्ध होगा. वह अब एक अमेरिकी उपनिवेश बनने की राह में है. पाकिस्तान के शासकों को अब इसका एहसास होने लगा है. लेकिन उन्हें पाकिस्तान की कम, अपनी कुर्सियों की चिन्ता ज्यादा है. आक्रमण पश्चिमोत्तर से हो रहा है, उन्हें सपना पूरब की मिसाइलों का आ रहा है. ओसामा की हत्या के बाद अपनी जनता में उभरे एक, बेबस, लाचार और कमजोर पाकिस्तान की ओर से ध्यान हटाने के लिए उसने भारत को फिर से अपना दुश्मन नंबर एक घोषित कर दिया है. सीमा पर सेना का जमाव करना शुरु कर दिया है. जनता में भारत के विरुद्ध घृणा का सरकारी प्रचार चरम पर है. मुमकिन है विक्षिप्तावस्था में वह मुंबई जैसी किसी आतंकवादी घटना को अंजाम भी दे दे. उसे लतिया अमेरिका रहा है, गुर्रा भारत पर रहा है.
खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे!

No comments:

Post a Comment