Monday, April 6, 2009

राम ने सीता-परित्याग कभी किया ही नहीं

अब तक यही मान्यता रही है कि भगवान श्रीराम ने माता सीता का परित्याग किया था और अपने राज्य में तपस्यारत एक शूद्र का वध भी किया था. ये दोनों प्रकरण मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के चरित्र से मेल नहीं खाते. प्रचलित वाल्मीकीय रामायण के उत्तरकांड में इन दोनों घटनाओं का विस्तार से वर्णन है. लेकिन गोस्वामी तुलसीदास ने अपने रामचरित मानस में इन दोनों घटनओं का उल्लेख तक नहीं किया है. वाल्मीकीय रामायण का ध्यान से अध्ययन करने के बाद यह तथ्य स्वयं सामने आ जाता है कि उक्त दोनों घटनायें काल्पनिक हैं, क्योंकि उत्तरकांड मूल वाल्मीकीय रामायण का अंग है ही नहीं. इसे बहुत बाद में जोड़ दिया गया -- यह अन्तःसाक्ष्य, वहिःसाक्ष्य और परिस्थितिजन्य साक्ष्य, तीनों प्रकार से स्वतः सिध्द है. रामकथा पर सबसे प्रामाणिक शोधकर्ता फ़ादर कामिल बुल्के का स्पष्ट मत है कि वाल्मीकीय रामायण उत्तरकांड बहुत बाद की प्रक्षिप्त रचना है. हिन्दी के प्रख्यात साहित्यकार डा. राम कुमार वर्मा और राष्ट्रधर्म के सम्पादक श्री आनंद मिश्र अभय ने भी इसकी पुष्टि की है. वाल्मीकीय रामायण के उत्तरकांड की भाषा, शैली और कथानक के वर्णन की गति युद्धकांड तक के रामायण से सर्वथा भिन्न है. इसके अलावा रचनाकार ने उत्तरकांड में छः बार यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि उत्तरकांड भी मूल वाल्मीकीय रामायण का ही अंग है, जबकि इसके पहले के किसी कांड में ऐसा प्रयास नहीं किया गया है. उत्तरकांड में ही एक श्लोक में कहा गया है कि महर्षि वल्मीकि ने आदि से लेकर अंत तक पाँच सौ सर्ग तथा छः कांड का निर्माण किया है. सर्गों और कांडों की गिनती करने पर युद्धकांड तक पाँच सौ सर्ग और छः कांड पूरे हो जाते हैं. सातवां कांड, जिसे उत्तरकांड कहा गया है, कहाँ से आया? किसी भी ग्रंथ का अंत फलश्रुति से करने की परम्परा संस्कृत के सभी ग्रन्थों में पाई जाती है. महर्षि वाल्मीकि ने युद्धकांड में ही फलश्रुति लिख दी है.
संपूर्ण रामकथा महर्षि वेदव्यास ने भी महाभारत के वनपर्व के रामोपाख्यान पर्व में लिखी है. ब्रह्मांड पुराण, विष्णु पुराण, वायु पुराण, कूर्म पुराण, वाराह पुराण, लिंग पुराण, नारद पुराण, स्कंद पुराण, पद्म पुराण, हरिवंश पुराण, नरसिंह पुराण में भी रामकथा का वर्णन है, लेकिन सीता-परित्याग एवं शंबूक वध का कहीं उल्लेख तक नहीं किया गया है. वस्तुतः सीता-परित्याग की प्रामाणिकता है ही नहीं.
उत्तरकांड के रचनाकार द्वारा योजनाबद्ध ढंग से निहित उद्देश्यों की पूर्ति हेतु वाल्मीकीय रामायण में उत्तरकांड को जोड़ा गया और प्रचार किया गया. चूँकि महर्षि वक्मीकि की पांडुलिपि कहीं उपलब्ध थी नहीं, तथा श्रुति और स्मृति माध्यम से ही लाखों वर्षों तक वाल्मीकीय रामायण जनमानस में विद्यमान था, अतः उसमें एक कांड और जोड़ देना सरल था. ऐसा पुरुषसत्तात्मक समाज की, स्त्रियों पर श्रेष्ठता बनाये रखने तथा जन्मना वर्ण-व्यवस्था के औचित्य को सिद्ध करने के लिये किया गया. बडी चालाकी से इन दोनों विषयों पर रचनाकार ने अपने मत के अनुमोदन हेतु मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम से मुहर लगवाने का प्रयास किया है.
वाल्मीकीय रामायण का पूरा उत्तरकांड कल्पनिक है और हजारों/लाखों वर्षों बाद मूल में जोड़ा गया. सीता-परित्याग और शंबूक-वध की घटनायें पूर्णतः असत्य हैं. श्रीरामचन्द्रजी ने ग्यारह सहस्त्र वर्षों तक जनकनन्दिनी सीता एवं समस्त भ्राताओं के साथ राजनगरी अयोध्या से प्रजा-पालन करते हुए कोसल देश पर सुखपूर्वक राज किया था.
लेखक ने इस विषय पर अपने दो वर्षों के शोध के पश्चात एक शोधपत्र पुस्तकाकार में प्रकाशित किया है, जिसमें समस्त तथ्यों का सन्दर्भ के साथ वैज्ञानिक विश्लेषण किया गया है. विस्तृत जानकारी के लिये पुस्तक प्रत्येक भारतीय को पढ़नी चाहिए. वाराणसी के प्रतिष्ठित प्रकाशक संस्कृति ने यह पुस्तक प्रकाशित की है. निम्न पते पर यह पुस्तक हमेशा उपलब्ध है --

संस्कृति शोध एवं प्रकाशन
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3 comments:

  1. मैने रामचरित मानस मे कभि नहि पढ़ कि सीता का वनवास हुआ है. ना हि राम जी के चरित्र से ये शारि बाते मेल खाति है, ये तो मुल रामायन के साथ द्देर द्दार किया गया है भगवन राम के चरित्र से ये मेल हि नहि खाता कि वो किसि सुद्रा का वध किये और माता सीता को वन भेजा था.आपने सीता पारित्याग पे लिखकर समाज के लिये बाहुत बरा काम किया है मैन जरुर इस किताब का अध्ययान करुन्गा और आपने ग्यान को बर्हाने कि कोशिस करुन्गा.

    अमित

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  2. bahut se versons hain - har ek ka apna justification hai - har ek kee apni kami bhi hai |

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  3. विपिन किशोर जी, क्या आपका शोध पत्र ऑनलाइन उपलब्ध है? या
    इसे पीडीएफ फॉर्मेट में कहीं से डाउनलोड किया जा सकता है?

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