Sunday, September 11, 2022

अष्टावक्र -- अद्भुत ज्ञानी

 

अद्वितीय ज्ञानी अष्टावक्र

                                    विपिन किशोर सिन्हा

                                                                        --२--

 

            मिथिला में राजा जनक अपने मुख्य पुरोहित बन्दी की देखरेख में ‘समृद्धि संपन्न यज्ञ’ कर रहे थे। अष्टावक्र अपने मामा के साथ राज महल के द्वार पर पहुँचे और द्वारपाल को राजा से मिलने की अपनी इच्छा से अवगत कराया। द्वारपाल ने प्रणाम करते हुए कहा --

            "हे ऋषिवर! राजाज्ञा के अनुसार हर किसी को यज्ञशाला में प्रवेश की अनुमति नहीं है। उसमें केवल वृद्ध और विद्वान्‌ ब्राह्मण ही प्रवेश पा सकते हैं।“

            अष्टावक्र ने द्वारपाल को समझाते हुए कहा --

            "द्वारपाल! मनुष्य अधिक उम्र या बाल पक जाने से वृद्ध या परिपक्व नहीं हो जाता। ब्राह्मणों में वही बड़ा माना जाता है जो वेदों का सच्चा ज्ञाता हो -- ऐसा ऋषि-मुनियों का मत है। मैं राजपुरोहित बन्दी से शास्त्रार्थ करने के  लिये लंबी यात्रा करके आया हूँ। तुम महाराज को यह सूचना दे दो।“

            अष्टावक्र के उत्तर से प्रभावित हो, द्वारपाल उन्हें राजा के पास ले गया। राजा जनक द्वारा आगमन का प्रयोजन पूछे जाने पर अष्टावक्र ने कहा --

            "राजन्‌! आप एक धर्मपारायण, कर्त्तव्यनिष्ठ और चक्रवर्ती सम्राट हैं। आपकी सहमति से आपके राजपुरोहित बन्दी ने यह कैसा नियम बना रखा है कि जो भी विद्वान्‌ उससे शास्त्रार्थ में पराजित हो जायेगा, उसे जल में डुबो दिया जायेगा? मैं उससे शास्त्रार्थ करके उसे पराजित करना चाहता हूँ। आप अनुमति प्रदान करें।"

            राजा आठों अंगों से टेढ़े अष्टावक्र को देखकर विस्मित हुए परन्तु उनकी वाणी के ओज से प्रभावित भी हुए। उन्होंने पहले स्वयं परीक्षा लेने का निर्णय लिया और पूछा --

            "ब्रह्मन्‌! जो पुरुष तीस अवयव, बारह अंश, चौबीस पर्व और तीन सौ साठ अरों वाले पदार्थ को जानता है, वह बड़ा विद्वान्‌ है?"

            अष्टावक्र ने उत्तर दिया --

            "राजन्‌! जिसमें पक्षरूप में चौबीस पर्व, ऋतुरूप छः नाभि, मासरूप बारह अंश और दिनरूप तीन सौ साठ अरे हैं, वह निरन्तर घूमनेवाला संवत्सररूप कालचक्र आपकी रक्षा करे।"

            अष्टावक्र के उत्तर से प्रभावित राजा ने दूसरा प्रश्न किया --

            "सोने के समय कौन नेत्र नहीं मूँदता? जन्म लेने के बाद किसमें गति नहीं होती? हृदय किस में नहीं होता और वेग से कौन बढ़ता है?

            अष्टावक्र ने उत्तर दिया --

            "मछली सोने के समय नेत्र नहीं मूँदती, अंडा उत्पन्न होने पर भी चेष्टा नहीं करता, पत्थर में हृदय नहीं होता और नदी वेग से बहती है।"

            आश्चर्य से राजा जनक की आँखें फटी की फटी रह गईं। वे अष्टावक्र की विद्वता का लोहा मान गये। उन्होंने बन्दी से शास्त्रार्थ की अनुमति प्रदान कर दी। यज्ञशाला में बन्दी और अष्टावक्र के बीच शास्त्रार्थ आरंभ हुआ। निर्णायक स्वयं राजा जनक थे।

            --- शेष अगले अंक में

 

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