Wednesday, March 19, 2014

शिशुपाल और केजरीवाल

         दिल्ली का मुख्यमन्त्री बनने के पहले अरविन्द केजरीवाल ने कांग्रेस और भ्रष्टाचार-विरोध का एक मुखौटा लगा रखा था जो समय के साथ-साथ तार-तार हो रहा है। कहते हैं कि इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छुपते। केजरीवाल की हरकतें इस कहावत की सत्यता सिद्ध करती हैं। शक तो तभी होने लगा था, जब केजरीवाल को मुख्यमंत्री बनाने के लिए कांग्रेस ने बिना शर्त समर्थन दिया था। अब इस शक को साबित करने की आवश्यकता नहीं रह गई है। केजरीवाल के अन्ध मोदी-विरोध ने शक की संभावना छोड़ी ही कहां है? 
महाभारत में एक पात्र है - शिशुपाल। वह श्रीकृष्ण का फ़ुफ़ेरा भाई था। वह कही से भी स्वयं को श्रीकृष्ण से कम नहीं समझता था। श्रीकृष्ण का अद्वितीय व्यक्तित्व उसकी ईर्ष्या का मुख्य कारण था। गुणों में तो वह श्रीकृष्ण का पासंग भी नहीं था लेकिन स्वयं को उनसे कम नहीं आंकता था। भक्ति करने के लिए तो प्रयास की आवश्यकता होती है लेकिन ईर्ष्या के लिये तो कुछ भी नहीं करना होता है। यह स्वभागत विकृति होती है जो दुष्ट-जनों में अत्यधिक मात्रा में पाई जाती है। शिशुपाल की यह ईर्ष्या सार्वजनिक रूप से सामने आई जब पाण्डवों के राजसूय यज्ञ में श्रीकृष्ण का चुनाव प्रथम पूजन के लिए किया गया। यह चुनाव सर्वसम्मति से भीष्म पितामह की पहल पर किया था। पूरी सभा ने इसका अनुमोदन किया था। शिशुपाल को जब इसकी सूचना मिली, तो वह उग्र हो गया। अपनी असहमति और नाराज़गी को वह छिपा नहीं सका और यज्ञमंडप में ही उसने अशिष्टता प्रारंभ कर दी। उसने श्रीकृष्ण पर तरह-तरह के आरोप लगाते हुए गाली बकना शुरु कर दिया। पूरा यज्ञमंडप स्तब्ध था। युधिष्ठिर ने उसे रोकने की बहुत कोशिश की लेकिन उसने उनकी बात नहीं मानी। उधर वह गाली दे रहा था, इधर श्रीकृष्ण मुस्कुराये जा रहे थे। अर्जुन से श्रीकृष्ण का यह अपमान सहन नहीं हुआ। वे शिशुपाल के वध के लिये आगे बढ़े लेकिन स्वयं श्रीकृष्ण ने उन्हें रोक दिया। अर्जुन को समझाते हुये उन्होंने शिशुपाल को सुनाते हुए कहा -
“अर्जुन! तुम तनिक भी चिन्ता मत करो। यह पापी अपने पापों के कारण स्वयं अपने अन्त को प्राप्त करेगा। यह मेरे प्रति घोर ईर्ष्या-भाव रखता है और प्रत्येक अवसर पर मेरा विरोध ही नहीं करता, मेरा अपमान भी करता है। इसकी माता इसके इस स्वभाव से परेशान रहती है। मैं तो इसका वध कबका कर चुका होता, परन्तु मैं स्वयं अपनी बुआ को दिये गए वचन के कारण विवश हूं। मैंने इसकी मां को वचन दिया है कि मैं इसके सौ अपराध क्षमा करूंगा। परन्तु जैसे ही इसके अपराधों की संख्या सौ के पार जायेगी, मैं तत्क्षण इसका वध कर दूंगा। संभवतः वह दिन आज आ गया है। मैं इसके अपराधों की गिनती कर रहा हूं। शीघ्र ही इसकी संख्या सौ पार करने वाली है। इसका अन्त निकट आ गया है। धैर्य रखो और देखते जाओ।”
श्रीकृष्ण का यह संदेश शिशुपाल और यज्ञमंडप में उपस्थित सभी राजाओं ने स्पष्ट सुना। श्रीकृष्ण का यह वचन शिशुपाल के लिए अन्तिम चेतावनी थी लेकिन उसने सुनकर भी अनसुना कर दिया और अपनी रफ़्तार से गाली बकता रहा। जैसे ही सौ गालियों की सीमा पार हुई उसकी गर्दन उसके धड़ से अलग थी। श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का अन्त कर दिया।
आज मैं सोचता हूं कि आखिर नरेन्द्र मोदी ने अरविन्द केजरीवाल का क्या बिगाड़ा है कि वे घूम-घूमकर, पानी पी-पीकर शिशुपाल की तरह गालियों की बौछार कर रहे हैं। पूरा देश मोदी की ओर आशा भरी निगाहों से देख रहा है। गुजरात को विकास के शिखर पर पहुंचाने के कारण पूरी दुनिया उन्हें विकास पुरुष के रूप में जानती, पहचानती है। उनपर भ्रष्टाचार का कोई आरोप उनके धुर विरोधी शहज़ादा भी नहीं लगा सकते। अनुशासन और कर्त्तव्यनिष्ठा उनके व्यक्तित्व के अभिन्न अंग हैं। सुशासन और सुप्रशासन उनके अमोघ अस्त्र हैं। वर्तमान परिवेश में उनका कोई विकल्प नहीं है। भारत की जो दुर्दशा पिछले १० वर्षों में हुई है उसके लिए वे कही से भी जिम्मेदार नहीं हैं। फिर क्या कारण है कि अरविन्द केजरीवाल कांग्रेस और सोनिया गांधी को छोड़कर नरेन्द्र मोदी के पीछे पड़े हुए हैं। अभी तक तो वे मल्लिका-ए-हिन्दुस्तान सोनिया और अमेरिकी कुबेर फ़ोर्ड के ही एजेन्ट के रूप में जाने जाते हैं, लेकिन मेरा मानना है कि वे शिशुपाल के कलियुगी अवतार हैं। 

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