Friday, July 12, 2013

यक्ष -प्रश्न - तीसरी कड़ी

यक्ष-प्रश्न (१६) - किस वस्तु के त्यागने से मनुष्य प्रिय होता है? किसे त्यागने पर शोक नहीं करता? किसे त्यागने पर वह अर्थवान होता है? और किसे त्यागकर वह सुखी होता है?
युधिष्ठिर - मान (अहंकार) को त्यागने से मनुष्य प्रिय होता है। क्रोध को त्यागने पर शोक नहीं करता। काम को त्यागने पर वह अर्थवान होता है और लोभ को त्यागकर वह सुखी होता है।
यक्ष (१७) - ब्राह्मण को किसलिए दान दिया जाता है? नट और नर्त्तकों को क्यों दान देते हैं? सेवकों को दान देने का क्या प्रयोजन है? और राजा को क्यों दान दिया जाता है?
युधिष्ठिर - ब्राह्मण को धर्म के लिए दान दिया जाता है। नट-नर्त्तकों को यश के लिए दान (पुरस्कार) दिया जाता है। सेवकों को भरण पोषण के लिए दान (वेतन) दिया जाता है और राजा को भय के कारण दान दिया जाता है।
यक्ष (१८) - यह जगत किस वस्तु से ढंका हुआ है? किसके कारण वह प्रकाशित नहीं होता? मनुष्य मित्रों को किसलिए त्याग देता है? और स्वर्ग में किस कारण नहीं जाता?
युधिष्ठिर - यह जगत अज्ञान से ढंका हुआ है। तमोगुण के कारण वह प्रकाशित नहीं होता। लोभ के कारण मनुष्य मित्रों को त्याग देता है और आसक्ति के कारण स्वर्ग में नहीं जाता।
यक्ष (१९) - पुरुष किस प्रकार मरा हुआ कहा जाता है? राष्ट्र किस प्रकार मरा हुआ कहलाता है? श्राद्ध किस प्रकार मृत हो जाता है? और यज्ञ कैसे मृत हो जाता है? 
युधिष्ठिर - दरिद्र पुरुष मरा हुआ है। बिना राजा के राष्ट्र मरा हुआ है। श्रोत्रिय ब्राह्मण के बिना, श्राद्ध मृत हो जाता है और बिना दक्षिणा के यज्ञ मरा हुआ है।
यक्ष (२०) - दिशा क्या है? जल क्या है? अन्न क्या है? विष क्या है और श्राद्ध का समय क्या है?
युधिष्ठिर - सत्पुरुष दिशा हैं क्योंकि वे मुक्ति का मार्ग बताते हैं। आकाश जल है, क्योंकि बादल उसी में उत्पन्न होते हैं। गौ अन्न है क्योंकि गौ से दूध-घी आदि हव्य प्राप्त होता है, उससे हवन होता है, हवन से वर्षा होती है और वर्षा से अन्न होता है। कामना विष है और उत्तम ब्राह्मण की प्राप्ति ही श्राद्ध का समय है।
यक्ष (२१) - उत्तम क्षमा क्या है? लज्जा किसे कहते हैं? तप का लक्षण क्या है? और दम क्या कहलाता है?
युधिष्ठिर - द्वन्द्वों को सहना क्षमा है। अकरणीय कार्य से दूर रहना लज्जा है। अपने धर्म में स्थिर रहना तप है और मन का शमन दम है।
यक्ष (२२) - ज्ञान किसे कहते हैं? शम क्या कहलाता है? दया किसका नाम है? और आर्जव (सरलता) किसे कहते हैं? 
युधिष्ठिर - वास्तविक वस्तु को ठीक-ठीक जानना ज्ञान है। चित्त की शान्ति शम है। सबके सुख की इच्छा रखना दया है और और समचित्त होना आर्जव (सरलता) है।
यक्ष (२३) - मनुष्यों का दुर्जय शत्रु कौन है? अनन्त व्याधि क्या है? साधु कौन माना जाता है? और असाधु किसे कहते हैं? 
युधिष्ठिर - क्रोध दुर्जय शत्रु है। लोभ अनन्त व्याधि है। समस्त प्राणियों का हित करने वाला साधु है और निर्दय पुरुष असाधु हैं।
यक्ष (२४) - मोह किसे कहते हैं? मान क्या कहलाता है? आलस्य किसे जानना चाहिए? और शोक किसे कहते हैं?
युधिष्ठिर - धर्ममूढ़ता ही मोह है। आत्माभिमान ही मान है। धर्म न करना आलस्य है और अज्ञान शोक है।
यक्ष (२५) - ऋषियों ने स्थिरता किसे कहा है? धैर्य क्या कहलाता है? स्नान किसे कहते हैं? और दान किसका नाम है? 
युधिष्ठिर - अपने धर्म में स्थिर रहना ही स्थिरता है। इन्द्रियनिग्रह धर्म है। मानसिक मलों को छोड़ना स्नान है और प्राणियों की रक्षा करना दान है।
यक्ष (२६) - किस पुरुष को पण्डित समझना चाहिए? नास्तिक कौन कहलाता है? मूर्ख कौन है? काम क्या है और मत्सर किसे कहते हैं?
युधिष्ठिर - धर्मज्ञ को पण्डित समझना चाहिए। मूर्ख नास्तिक कहलाता है। नास्तिक ही मूर्ख है। वासना काम है और हृदय का ताप मत्सर है।
यक्ष (२७) - अहंकार किसे कहते हैं? दंभ क्या कहलाता है? परम दैव क्या है? और पैशुन्य किसका नाम है?
युधिष्ठिर - महान अज्ञान अहंकार है। अपने को झूठमूठ बड़ा धर्मात्मा प्रसिद्ध करना दंभ है। दान का फल दैव कहलाता है और दूसरों को दोष लगाना पैशुन्य है।
यक्ष (२८) - धर्म, अर्थ और काम - इन परस्पर विरोधी तत्त्वों का एक स्थान पर कैसे संयोग हो सकता है?
युधिष्ठिर - धर्म और भार्या परस्पर वशवर्ती हों, तो धर्म, अर्थ और काम - तीनों का संयोग हो सकता है।
यक्ष - विस्तार से बताओ।
युधिष्ठिर - जब भार्या धर्मानुवर्तिनी हो, तो इन तीनों का संयोग हो सकता है, क्योंकि भार्या काम का साधन है; वह यदि अग्निहोत्र एवं दानादि धर्म का विरोध नहीं करेगी, तो उनका यथावत अनुष्ठान होने से वे अर्थ के भी साधक हो जाएंगे। इस प्रकार काम, धर्म और अर्थ - तीनों का साथ-साथ संपादन हो सकेगा।
यक्ष (२९) - भरतश्रेष्ठ! अक्षय नरक किस पुरुष को प्राप्त होता है?
युधिष्ठिर - जो पुरुष भिक्षा मांगनेवाले किसी अकिंचन ब्राह्मण को स्वयं बुलाकर, फिर उसे दान नहीं देता, वह अक्षय नरक प्राप्त करता है। जो वेद, धर्मशास्त्र, ब्राह्मण, देवता और पितृधर्मों में मिथ्याबुद्धि रखता है और धनवान होते हुए भी लोभवश दान और भोग से रहित है और कह देता है कि मेरे पास कुछ भी नहीं है, वह अक्षय नरक को प्राप्त करता है।
यक्ष (३०) - राजन! कुल, आचार, स्वाध्याय और शास्त्रश्रवण - इनमें किसके द्वारा ब्राह्मणत्व सिद्ध होता है? 
युधिष्ठिर - कुल, स्वाध्याय और शास्त्रश्रवण - इनमें से कोई भी ब्राह्मणत्व का कारण नहीं है। निःसन्देह सदाचार ही ब्राह्मणत्व का कारण है। अतः प्रयत्नपूर्वक सदाचार की रक्षा करनी चाहिए। जिसका सदाचार अक्षुण्य है, उसका ब्राह्मणत्व भी बना रहता है। जिसका आचार नष्ट हो गया, वह तो स्वयं ही नष्ट हो जाता है। पढ़नेवाले, पढ़ानेवाले और शास्त्र का विचार करनेवाले - ये सब व्यसनी और मूर्ख हैं, पण्डित तो वह है जो अपने कर्त्तव्य का पालन करता है। चारों वेद पढ़ा होने पर भी यदि कोई दूषित आचरण वाला हो, तो वह किसी भी प्रकार शूद्र से बढ़कर नहीं है। वस्तुतः जो अग्निहोत्र में तत्पर और जितेन्द्रिय है, वही ‘ब्राह्मण’ है।
शेष अगली कड़ी (समापन) में।

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