Wednesday, March 28, 2012

सुषमा स्वराज का प्रलाप


भारत के पूर्व प्रधान मंत्री और विश्व राजनीति के शिखर पुरुष श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने संसद में एकबार दिव्य सुक्ति कही थी कि बोलने के लिए सिर्फ वाणी की आवश्यकता होती है, लेकिन चुप रहने के लिए वाणी और विवेक, दोनों की आवश्यकता होती है। उनके अस्वस्थ होने से छुटभैया नेताओं की बन आई है। भारतीय जनता पार्टी में नेताओं द्वारा बिना सोचे समझे वक्तव्य देने की जैसे प्रतियोगिता चल रही हो। अब इस क्लब में सुषमा स्वराज भी शामिल हो गई हैं। स्वामी रामदेव जी के समर्थकों पर रामलीला मैदान में गत वर्ष लाठी चार्ज के विरोध में भाजपा द्वारा राजघाट पर आयोजित धरने में सुषमा जी का नृत्य टीवी के माध्यम से पूरे देश ने देखा था। वह कही से भी विपक्ष की नेता, वह भी भाजपा की नेता की मर्यादा के अनुकूल नहीं था। जहां सारा देश बाबा रामदेव और उनके समर्थकों पर अर्द्धरात्रि में बर्बर पुलिसिया कार्यवाही से सदमे में था, सुषमा जी अपनी प्रसन्नता रोक नहीं पा रही थीं। उन्हें आनेवाले चुनावों में भाजपा के लिए अनुकूल अवसर दिखाई दे रहा था। अपनी प्रसन्नता को उन्होंने नृत्य के माध्यम से अभिव्यक्त किया। लगता है भाजपा विपक्ष में रहकर ज्यादा संतुष्ट है। अन्ना हजारे और बाबा रामदेव के भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन का सबसे अधिक लाभ भाजपा को ही मिलने की संभावना थी। उत्तर प्रदेश में मायावती के विरुद्ध भ्रष्टाचार विरोधी लहर पर सवार होकर भाजपा को सत्ता प्राप्त करने का सुनहरा अवसर समय ने स्वयं उपलब्ध कराया था लेकिन ऐन मौके पर मायावती सरकार के भ्रष्टतम मंत्री बाबू लाल कुशवाहा को पार्टी में शामिल कर भाजपा ने अपने ही पैरों में कुल्हाड़ी मार ली। समय और समुद्र की लहरें किसी की प्रतीक्षा नहीं करतीं। बाजी समाजवादी पार्टी के हाथ में चली गई। एक कहावत है - सूत न कपास, जुलाहों में लठमलठ। उत्तर प्रदेश की ४०३ सदस्यों वाली विधान सभा में मात्र ४८ सीटें पाने वाली भाजपा में मुख्यमंत्री पद के लिए सर्वाधिक नेता कुश्ती लड़ रहे थे। यही स्थिति केन्द्र में है। जनाधारविहीन नेताओं ने भाजपा के संसदीय दल पर कब्जा कर रखा है। जिस पार्टी में अरुण जेटली, सुषमा स्वराज, नितिन गडकरी, वेंकटैया नायडू, और राजनाथ सिंह जैसे नेताओं का वर्चस्व हो, उसे हराने के लिए किसी सोनिया, दिग्विजय, मुलायम या लालू की जरुरत नहीं है। अटल जी बिस्तर पर हैं और आडवानी जी उम्र के अन्तिम पड़ाव पर। बड़बोले नेताओं पर किसी का नियंत्रण नहीं है। तभी तो सुषमा जी ने गत २६ मार्च को अन्ना टीम को निशाना बनाते हुए संसद में सिर्फ कटाक्ष ही नहीं किया, बल्कि आन्दोलन की निन्दा भी की। सभी कांग्रेसी चुप थे, वे मज़ा ले रहे थे। उनका काम सुषमा जी कर रही थीं। लालू, मुलायम और शरद यादव के वक्तव्य को कोई गंभीरता से नहीं लेता, लेकिन विपक्ष की नेता के भाषण को यूं ही हवा में नहीं उड़ाया जा सकता। अरविन्द केजरीवाल ने गत २५ मार्च को जन्तर-मन्तर पर सभा को संबोधित करते हुए सांसदों पर जो टिप्पणी की थी, उसमें कुछ भी गलत नहीं था। क्या इस तथ्य को झुठलाया जा सकता है कि सुषमा जी जिसे लोकतंत्र का मन्दिर कहती हैं, उसकी शोभा मरते दम तक कुख्यात दस्यु-सुन्दरी फुलन देवी बढ़ाती रहीं।
स्विस बैंक कारपोरेशन ने दिनांक ३१.१०.११ को भारत सरकार को लिखे अपने पत्र में खाता संख्या के साथ दस शीर्ष भारतीयों के नाम मुहैय्या कराए हैं। पत्र के अनुसार राजीव गांधी के नाम १९८३५६ करोड़, ए. राजा के नाम ७८५६ करोड़, शरद पवार के नाम २८९५६ करोड़, पी. चिदम्बरम के नाम ३३४५१ करोड़, सुरेश कलमाडी के नाम ५५६० करोड़, करुणानिधि के नाम ३५००९ करोड़ तथा कलानिधि मारन के नाम १५०९० करोड़ रुपए जमा हैं। सांसदों की तरफदारी करने वाली सुषमा जी क्या यह बता सकती हैं कि उपरोक्त व्यक्तियों की तुलना में वीरप्पन, मलखान या दाउद छोटे नहीं दिखाई पड़ते? क्या यह सत्य नहीं है कि नरसिंहा राव की सरकार और २००८ में मनमोहनी सरकार को बचाने के लिए संसद भवन में करोड़ों का लेन-देन हुआ था? कुर्सियों और माइक से संसद और विधान सभाओं में एक-दूसरे को लहुलुहान करनेवालों को क्या कहा जाएगा - गौतम बुद्ध, महावीर, विवेकानन्द या ..........? मुख्य विपक्षी दल होने के नाते बाबा रामदेव और अन्ना हजारे के देशव्यापी जनान्दोलन का सीधा लाभ भारतीय जनता पार्टी को ही मिलना तय था लेकिन सुषमा जी और उनकी मंडली ऐसे ही विवेकहीन बयान देते रहे, तो उत्तर प्रदेश की तरह केन्द्र में भी यह पार्टी अप्रासंगिक हो जाएगी। कही सोनिया जी और सुषमा जी में कोई मिलीभगत तो नहीं है?

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