Saturday, February 11, 2012

१० माह का आत्मन


गर्दन में डाल नन्हीं बांहें, जब गोद मेरी चढ़ जाता है,
नवजीवन पा जाता हूं, जब तू बाबा तुतलाता है।

होत सवेरा जगने पर, तू मुझे ढूंढ़ता आता है,
निश्छल आंखें बाहें पसार, तू मुझे निमंत्रण देता है,
जब पास मैं तेरे आता हूं, तू धीरे से मुस्काता है,
नवजीवन पा जाता हूं, जब तू बाबा तुतलाता है।

माता के हाथ कटोरी है, ममता से भरे निवेदन पर,
पापा की घेरेबन्दी में, चन्दा-तारों के गाने पर,
लंबी अवधि मनुहार करा, तू धीरे-धीरे खाता है;
नवजीवन पा जाता हूं, जब तू बाबा तुतलाता है।

नन्हीं सी तेरी हथेली है, अति कोमल हैं तेरे घुटने,
बन मकोइया तेजी से, चलता है, बुनता है सपनें,
अधरों से अस्फुट बोल फुटे, हंसता है सिर झटकाता है;
नवजीवन पा जाता हूं, जब तू बाबा तुतलाता है।

खेल, शरारत, तोड़फोड़, सोकर जगने पर यही काम,
खिलौने तुझको कम प्यारे, सब व्यस्त रहें बस एक ध्यान,
स्नानगृह के पास आकर, दस्तक दे मुझे बुलाता है;
नवजीवन पा जाता हूं, जब तू बाबा तुतलाता है।

संध्या को घूम-टहलकर मैं, जब वापस घर को आता हूं,
घंटी की ध्वनि सुनते ही, दरवाजे पर तू आता है,
चंचल आंखें, मुखमुद्रा से,अपनी बातें समझाता है;
नवजीवन पा जाता हूं, जब तू बाबा तुतलाता है।

कभी घुटने पर कभी पेट के बल, बस तू चलता ही रहता है,
जब मैं कहता हूं - पकड़-पकड़, तू और तेज हो जाता है,
फिर पीछे मुड़कर देख मुझे, हंसता है, खिल-खिल जाता है;
नवजीवन पा जाता हूं, जब तू बाबा तुतलाता है।

मेरा चश्मा, तेरा दुश्मन, तू उसे फेंकना चाहे नित,
पर जब पहना देता तुझको, सुन्दरता बढ़ जाती अगणित,
शीशे से नेत्र तेरे झांकें, सम्मोहित तू कर जाता है;
नवजीवन पा जाता हूं, जब तू बाबा तुतलाता है।

खेल-खेल कर दिन पर्यन्त, जब तू थोड़ा थक जाता है,
होठों को करके गोल-गोल, जब तू जमुहाई लेता है,
सचराचर सृष्टि मुझे दिखती, जीवन सार्थक बन जाता है;
नवजीवन पा जाता हूं, जब तू बाबा तुतलाता है।

मेरी बेसुरी लोरी पर, कंधे पर मेरे सिर रखकर,
मेरी थपकी के साथ-साथ, मेरी धड़कन की आहट पर,
गुन-गुन, धीमे-धीमे, तू सुर में सुर मिलाता है
नवजीवन पा जाता हूं, जब तू बाबा तुतलाता है।

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